न कोई है
पराया, न कोई अंजान
सूरज,
चाँद और तारे
पड़ोसी हैं
हमारे
एक उर्जा का
श्रोत
दूसरा शीतलता
का पर्याय,
सुन्दरता का
प्रतीक।
नजदीकी से
कदाचित्
होता है अपमान
भी,
दूरी से दुराव,
पर,
दूरी से रहता
आकर्षण,
छूने की ललक,
देखने की
आकांक्षा-
बदलते रूप की,
प्रकृति और
मिजाज की।
आज जब
आदमी हो रहा
है
अपनों से दूर,
सुदूर के
पड़ोसी
से मिलता है
उसे शुकून।
कभी वह चाँद
को निहारता है,
कभी लेता है
सूरज की खबर,
कभी करता है
तारों से
गुफ्तगू,
जब अपने
चुराते हैं
नजर।
फूल भी,
पत्ती भी,
पेड़ भी,
पानी भी,
मिट्टी भी,
हवा से भी
होती हैं
बातें,
इसलिए,
जाते-आते
होती है सबसे
दुआ सलाम,
न कोई है
पराया,
न कोई अंजान।
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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.