किरण-स्मृति पर विशेष
आइ जँ रहितथि किरणजी,
तँ पड़बे करितनि डांग
आ फुटितनि अबस्से कपार।
आइ जँ रहितथि यात्री,
तँ बजबे करितथि,
अनटोटल बोल,
आ दरबारी
तथा राजाकेँ लगितनि अनसोहांत,
आ फेर जैतथि ओ जेल।
मुदा, बाबा, आ किरणजी
नीके भेल चलि जाइत गेलहुँ
अहाँलोकनि,
आ छोड़बो ने कयल केओ शिष्य।
कारण, आइ जँ रहितहुँ
तँ अहाँलोकनिकें
पार नहि लगैत
सिखब नव ककहरा
ने छोड़ितियैक उचित कहब ,
आ बाजब अनटोटल बोल,
तखन रखिते के रोच?
तेँ, भोगितहुँ अवस्से नव व्यवहार:
देखिते छिऐक रङताल!
अथच,
आ अहुँलोकनिक,
नित्तह फुटबे करैत कपार।
किरणजी आ बाबा,
नीके भेल चलि जाइत गेलहुँ
अहाँलोकनि
आ छोड़बो ने कयल केओ शिष्य ।
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