Saturday, November 30, 2024

किरणजीक ‘पराशर’ पर विमर्श बाँकी अछि

 

किरणजीक ‘पराशर’1 पर विमर्श बाँकी अछि

कालजयी कृति ओकर कृतीमे एकटा मौलिक अंतर होइछ: कृती नश्वर होइछ, आ कृति अमर.
भर्तृहरिक नीतिशतक रससिद्ध कवि लोकनिक एहने कालजयी कृतिकेँ  हुनकालोकनिक ‘ जरा भय मुक्त सुयश शरीर’ क संज्ञा देने छथिन.
जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धाः कवीश्वराः।

नास्ति येषां यशःकाये जरामरणजं भयं।।

                        (भर्तृहरिः, नीतिशतक, २४)         

तथापि, कवि रससिद्ध छथि वा नहि, कृति क्षणभंगुर थिक वा कालजयी सिद्ध हएत तकर निर्णय पाठक करथु, वा ‘निरवधि’ काल करत.
एतय हम किरणजीक ‘पराशर’क चर्चा करैत छी; एहि लेखमे कृतीसँ फराक, कृति पर संक्षिप्त चर्चा अछि.

‘पराशर’क आरंभ वन्दनासँ होइछ; मंगलाचरण, ईश-वन्दना आ शुभकामना काव्य-ग्रन्थ आरंभ करबाक पारंपरिक विधि थिक. किन्तु, ‘पराशर’क आरंभ ‘जननी माता- परमेश पिता’क वन्दनासँ - ‘जनिकर मानवीय मधुर इच्छेँ भेल हमर उत्पत्ति’, एवं मानव जीवन केर ‘आधार प्राण धरती,अनिल-सलिल-सूर्य-चान-आसमान’ तथा ‘हिमगिरि’- जनिक देहक कण-कणसँ  अछि बनल हमर सभक ई देश- क ‘ तीरभुक्तिक ब्रह्मा-विष्णु-महेश- जकाँ प्रशस्ति सर्वथा नवीन थिक.

‘पराशर’ अतुकान्त- तुकान्त, मुक्तवृत्त कवितामे लोक भाषाक रचना थिक. एकर शैलीक तुलना  ‘आल्हा-उदल’  गाथाक महराईसँ कए सकैत छी, जकर पाठ कविता-जकाँ,वा मोन होअए तँ गद्य-जकाँ करबाक छूट छैक. मुदा, तेँ ‘पराशर’क स्वरुप वा कथ्यमे ओहिसँ कोनो समानता नहि. कारण, ‘आल्हा- उदल’ लोक-कण्ठमे रचल-बसल शौर्य आ प्रशस्ति-गाथा थिक; ‘पराशर’ लीक छोड़ि चलनिहार प्राचीन ऋषिक प्रगतिवादी विचार आ व्यवहारक प्रशस्तिक संग कविक चिन्तनक परिणाम थिक.
सरल ठेंठ भाषाक  कारण ‘पराशर’क अर्थ सुगम-सरल छैक. पढ़बा-बुझबा लेल कोनो शब्दकोषक सहायता नहि. संयोगवश, किरणजीक सोझ भाषा पर सबसँ पहिने  आचार्य रमानाथ झाक नजरि पड़ल रहनि. मुदा, ध्यान देबाक थिक, ‘पराशर’ मैथिलीक  हड़ाएल-भुतियायल शब्द, उड़रल-उपटल गाछ-वृक्ष, विलुप्त जड़ी बूटी, कीड़ा-मकोड़ा, आ पक्षी-जीव-जंतुक लधु कोष थिक. ओहिमे वर्णित कतेको गाछ-वृक्ष आ भैषज्य आ भेटबो नहि करत. तेँ, ‘पराशर’ चर्चित गाछ-वृक्ष आ वनौषधि सबहक परिचय लेल एकटा स्वतंत्र लेख चाही. 
            ‘पराशर’क कथाक श्रोत महाभारत थिक. मुदा, किरणजीक ‘पराशर’मे ऋषि पराशर आ सत्यवती (गाङो) क केन्द्रमे रहितो, प्रशंगवश एहि पोथीमे अयोध्यासँ सीताक निर्वासनक चर्चा भेल अछि. रामायणक एही प्रकरणक जे विश्लेषण ‘पराशर’ मे कवि केने छथि, से सर्वथा नव अछि. तेँ, कथा आ उपकथाक पौराणिक श्रोतक अछैतो, ‘पराशर’ मे किरणजीक अपन चिंतन, घटनाक नवीन विश्लेषण सबठाम देखबामे आओत. तेँ, ‘पराशर’ घटना प्रधान वा विवरण-प्रधान नहि, ई चिंतन प्रधान ग्रन्थ थिक. तेँ ‘पराशर’कें ओही दृष्टिए पढ़ल जेबाक चाही.
संयोगसँ ‘पराशर’क कथ्य पर जेहन विमर्शक उचित छल, पाठ्यपुस्तकक रटन्त-घोखन्त संस्कृति आ पुरस्कार- प्रशस्तिक परंपराक हूलि-मालिमे मैथिली साहित्य तत्काल ताहिसँ चुकि गेल. आ ‘पराशर’केँ मैथिली पाठकलोकनि मोटा-मोटी बिसरि गेलाह. किन्तु, किरणजीक जीवन कालहुमे स्थिति ओहिसँ भिन्न नहि रहैक, से किरण जीक अनन्य मित्र, सुमन जी ‘पराशर’क भूमिकाक एक वाक्यांश-’भले हिनका समीक्षात्मक उपेक्षा भेटल होइनि’ 2– मे व्यक्त कयने छथि. ( एतय सुमन जीक एहि वाक्यांशक रेखांकन लेखकक थिकनि)
आब ‘पराशर’सँ  चुनल किछु कथ्य पर अबैत छी.  आरंभ शिक्षाक अर्थ-उद्देश्यसँ  करी:

पढ़बाक अर्थे थिक सत्यक अन्वेषण-उन्मेषण ( पृष्ठ ५ )  

आगाँ अबैछ, ‘बुझय स्वजन मानवकेँ मानव’क केन्द्रीय दर्शन आ श्रम आ सुरक्षा पर आधारित जीवन पद्धतिक विषयमे किरण जीक उक्ति; ई दर्शन एहि ग्रन्थक प्राण थिक:
 कलम, कोदारि, कुड़हरि, कचिया
ओ तीर-धनुष तरुआरि

सबकेँ बना सहोदर पोसी

बसमे राखि सम्हारि ।

मान प्राण रक्षक हेतु टा

मानव पर अस्त्र चलाबी

बुझय स्वजन मानवकेँ मानव

से जन–जनकेँ पाठ पढ़ाबी।

मुदा, शिक्षाक अर्थ केवल पढ़ब आ घोँटब नहि,  आ ने एक व्यक्तिक अनुभव समाजक हेतु पाथर पर लिखल नीति थिक. एक दोसरासँ अनुभवक आदान-प्रदान आ संशोधन ज्ञानक विकासक मूल थिक, से निम्नलिखित अंशमे स्पष्ट होइछ:

चिन्तन अनुभूतिकेँ लिखि राखब थिक आवश्यक

केओ ओकरा पढ़त करत मनन

अपन चिन्तन अनुभूतिक संग करत मिलान

संशोधन परिवर्तनक  देत संकेत

एहिसँ ज्ञानक  हैत विकास।   ( पृष्ठ ६ )

मुदा, चिन्तन-अनुभूतिक एहि मिलान आ आदान-प्रदानमे एतबा अवश्य स्मरण रहय किरणजीक उक्ति:
उचित सत्य कहबाक चेतना साहस
बनल रहय जीवन भरि, चल जाय वरु सरवस

स्वाभिमान रक्षार्थ सन्नद्ध रहय मन सदिखन,

पबितहुँ कष्ट अपार, बौआइत वन-वन ।  ( पृष्ठ ८ )

किरणजी ई उक्ति ‘ न ब्रूयात् सत्यमप्रियं’क विपरीत थिक. कारण, एहिसँ ‘उचित सत्य कहबाक चेतना साहस ’ अवरुद्ध होइछ.

‘ऋचा पाठ’क अंतिम ऋचा, जाहिमे रामक राज्याभिषेकक अवसर पर सीताक निर्वासन आ हुनक जंगल  जयबाक प्रकरणक विश्लेषण अछि, एहि अध्यायक एहन रोचक प्रसंग थिक, जाहिमे मृत्युक एतेक दिन पछातियो किरणजीकेँ हुनक जीवन कालहि-जकाँ विवादास्पद आ आक्रमणक लक्ष्य बनयबाक प्रबल संभावना निहित छैक. कारण, कविक दृष्टिमे रामक अश्वमेधक योजनाक प्रति सीताक प्रतिवादे सीताक निर्वासनक मूलमे तँ छल. तेँ, एहि ठाम सीता आ रामक बीच संवादक समय रामकेँ मर्यादा पुरषोत्तम- जकाँ नहि, ह्रदयहीन पाथर-जकाँ जड़वत् – सन प्रस्तुत कयल गेल अछि. यद्यपि, धीरोद्दात ‘मानवीय’ नायकहुक चरित्रक अनेक पक्ष होइछ; किछु उदात्त, तँ किछु साधारण मनुखक समान. ई मनुखक जीवनक सत्य थिक. कारण, चरित्रक भिन्न-भिन्न पक्षक अनेकताए मनुष्यकेँ मनुष्य बनबैछ. आ राम सेहो मनुष्य रहथि. मुदा, इएह सत्य एखनुको राजनीतिक-सामाजिक जीवन सत्य थिक, से मोन रखबाक थिक. तथापि, किरण जीक निम्न उक्तिमे दोष निकालब संभव नहि:
.. गतिशील ओ जड़वादी विचार मे,
सह अस्तित्वक संधिक कल्पने थिक मूर्खता । ( पृष्ठ  १५ )

आगू ‘वनक बाट’ नामक अध्यायक आरंभहिमे कविक निम्न उक्ति आकृष्ट करैछ:

‘लक्ष्य पर पहुँचब थिक इष्ट
मोछक लड़ाई मे शक्ति गमैब थिक
अनुचित अज्ञता’ ( पृष्ठ १६ )

एकर ठीक बाद जहिना जंगलक विविध गाछ-वृक्ष आ चिडै-चुनमुनीक वर्णन अछि, तहिना अछि ओहिमे धिया-पुताक गमैया खेल-धुपक वर्णन ( पृष्ठ १८) अछि जे आब विलुप्त नहिओ भेल हो तैओ मोबाईल फ़ोन आ कम्प्यूटर युग मे गामक नेना-भुटका ई सब खेल आब खेलाइत अछि वा नहि, कहब कठिन.  

‘पराशरक नव अनुभूति’ नामक अध्यायमे दुष्ट मित्र - दुष्ट मित्र छइ घसकि जाइत बेर पर – क अवगुणक तुलना तिरुवल्लुवरक असली मित्रक गुण – ससरय वस्त्र सम्हारय हाथ, विपरीत काल मित्र केर साथ 3- सँचमत्कृत करैछ. दुनू उपमा दू भिन्न प्रकारक मित्रक संबंधमे देल दू कविक उक्ति थिक.

तहिना एही अध्यायमे मेनका आ विश्वामित्रक प्रकरणमे ‘अपन साहित्यसँ विश्वामित्रकेँ  बुझैत छलहुँ हुंड, मोचंड, उनटे बंसुरी बजोनिहार, कामी, क्रोधी’ (पृष्ठ २७). किन्तु, मलाह लोकनिक विवेचनामे ओ छलाह ‘प्रगतिशील मानव’ आ  ‘आब ओकरे (मलाह लोकनिक) साहित्य बूझि पड़ैछ सत्य यथार्थ’ (पृष्ठ २७) क अभिव्यक्ति ऋषि विश्वामित्रक संबंधमे समाजमे प्रचलित आम धारणाकेँ ध्वस्त कए हुनक नव छविक स्थापना करैछ.
‘जीवछक जीवन’ खढ़क घरक वर्णन गरीबक सामान्य फुसघरक वर्णन थिक. आब ओहि शब्दक क्रमशः अर्थ सेहो विलुप्त भए रहल छैक. एतय मछहरमे उपयुक्त अनेक उपकरणक वर्णन छैक. मुदा, मछहरक ओहि उपकरणक तुलना कवि रनक खेतमे पल्टन अस्त्र-शस्त्रसँ करैत छथि. दोसर दिस जतय समाज श्रमिकेँ सबसँ दुर्बल बूझैछ, तकरा संबंधमे, ‘श्रमिकक जीवन थिक, सदिखन रहब लड़ैत’ ( पृष्ठ २९ ) कहि किरणजी श्रमिक आ सैनिककेँ एक समान आदरक अधिकारी बना देलनि.
ततबे नहि ओ श्रमिकक संगिनीकेँ ‘ओहि समर खेत केर  सहयोगी’ कहैत छथिन:

जे दिन राति काज करै अछि
तकर रसक आलम्बन
अपन पत्नीओ, समर खेत केर
सहयोगी सङबे बनि जाइत ।
वंशवृद्धि केर पाशव प्रवृत्ति टा रहै अछि जीवित । ( पृष्ठ ३१ )   
तथापि, खेदक विषय जे ‘पेटबोनिया लोकक जीवनकेँ, केओ ने आइ धरि चिन्हलक’ ( पृष्ठ ३१ ) तेँ, अगिला उक्ति छैक, ‘तोँ जनी जाति जँ करह जोर, तँ नरकी जिनगी केर भ’ सकत ओर’ । ( पृष्ठ ३२ )
मुदा, पराशरक संग बेटी सत्यवती (गाङो)क विवाहक प्रस्ताव पर जीबछ अपन विचार तँ दैछ, मुदा,  स्वेच्छासँ निर्णय लेबाक ओकर स्वतंत्रताक हनन नहि करैछ :
जँ मनुख तोरा पसिन्न
तकरो जँ तोँ भ’ जाही पसिन्न
तँ क’ ले बिआह
बिआहक छिअइ इहे सबसँ उत्तम विधान

ई सब निर्विवाद सामाजिक विधान नहि, कविक दृष्टि थिक.
एहिसँ  आगाँ ‘व्यासक उत्पत्ति’ आकृष्ट करैछ। ई अध्याय अनेक अर्थमे उत्कृष्ट अछि. उषाकालक वर्णन (पृष्ठ ४९) क प्रतीक आ बिंबमे निर्विवाद नवीनता छैक:
नदीक कलकल कोबर गीत
विवाहक सुन्दर नवल रीति-नीति
.........................................
द्विजराज चन्द्रमाकेँ लगलनि अनसोहाँत
द्विजक श्रेष्ठता खतरा मे पड़ल मानि
जनि भ’ गेलाह कान्तिहीन ।
तरेगन सब चुप्पे ससरि गेल
जेना राजाकेँ मरितहि सैनिक छल पड़ा जाइत ।
किछु अजगुत अभिनव हर्षक अछि बाट भेल

से मानि उषा उड़बय लागल जनि लाल रंग
खग मुख सँ देलक नारा “इन्किलाब”।
यथास्थितिक पक्षधृ दिनकर तामसें तम तम करैत
बढ़लाह उपर।
किन्तु अगणित मानवक उल्लास हास
कुहेसकेँ जनि कए देलक सघन
रहि गेलाह पँकिल पानि मे दहाति

पितड़िया थर जकाँ कान्तिहीन निस्तेज ।  

मुदा, ‘व्यासक पैत्रिक गमन’ अबैत-अबैत, भामती-भारतीक वंशज, नारिक स्वतंत्रताक पक्षधर किरणजी क्षण भरि लेल नितान्त परंपरावादी भए जाइत छथि:
“पत्नी पोथी थिक शत्रु ,
रहि न सकय एकठाम ।
ह्रदय सटलि पत्नी रहति, छोड़ू पढ़बाक नाम ।“
ततबे नहि, पुत्रक जन्मक पछाति अपन पयर झाड़ि, पत्नीकेँ दोसर विवाहक हेतु मुक्त कए देबाक व्यवहार पर  अबैत पराशरक भक्त किरण जी, हुनकर व्यवहार पर कोनो प्रश्न नहि उठबैत छथिन. अस्तु, एहि ठाम आबि पराशरक स्वार्थ हुनक महत्ताकेँ चुनौती दैत अवश्य प्रतीत होइछ. मुदा, पौराणिक कथा योजना शांतनुक संग सत्यवतीक संयोग आ अछूत सत्यवतीक राजवंशक जननी बनबाक घटनाकेँ अछूतक जीवनक उद्धारक रूपेँ प्रस्तुत करैछ. पौराणिक कथाक परिदृश्यमे पराशरक व्यवहारक ई विन्दु विचारणीय थिक वा नहि, तकर विचार सत्यवती माता-पिता तँ करबे केलनि, पाठक सेहो एहि पर मंथन करथु ।

‘शान्तनुक विरह’ नामक अध्याय (पृष्ठ ६७) मे राजतंत्र आ भाग्यवादी समाज दैवी प्रकोपकेँ  प्रजाक सब रोग-विपत्ति लेल दोषी ठहरा, कोना राजाकेँ सब दोषसँ मुक्त रखैछ, भीष्मक मुँहे तकर प्रतिपादन रोचक छैक। संक्षेपमे, नगरिकक सबटा विपत्ति कपारेक दोष थिक; दाही-जरती-महामारी दैवी-अगिलगी दैवी प्रकोप थिक । तखन, शासकक कोन दायित्व ! शांतनु चिंता किएक करथु. की मिथिलामे प्रशासन प्रति विरोध-विद्रोहक सर्वथा अभाव हमरा लोकनिक भाग्यवादी स्वभाव आ धर्मप्राण वा धर्मभीरुताएक फल थिक?

 ‘बूढ़ा मन्त्री ओ भीष्म’ नामक अध्यायमे विवाहक उद्देश्यक रोचक प्रतिपादन अछि; ई पढ़बा योग्य अछि । केओ कविक दृष्टिसँ असहमतो भए सकैत छथि ।   एही अध्यायमे पाककलाकेँ, ‘काव्य रसक ब्रह्मानन्द सहोदर कहनिहार पण्डितक चानि पर मूसर’क संज्ञा, पाककलाक विशेषताक प्रति सहज आदर थिक. ओहुना किरणजी कहनहु रहथिन,  ‘मरबाकाल मुँहमे गंगाजलक एक बूँदक स्थान एक चम्मच माछक झोर पड़य; कोन ठेकान ओकर पोषक तत्वसँ किछु क्षण आओर जिबि जाइ! 
यद्यपि, कतहु इहो कहल गेल अछि जे ‘आजुक कवि (अर्थात् किरणक समकालीन) हुनक (किरणक) ह्रदयमे कोनो विशेष आदरक अधिकारी नहि रहथि’,4  तथापि, ‘पराशर’मे कवि संगतिकेँ ओ ‘अज्ञात पुण्यक फल’ कहैत छथि. राजाक प्रति प्रजाक अनुराग-विराग तथा शासन समाजमे व्यवस्था परिवर्तनक इच्छाक ज्ञानक श्रोत ओ कविक ‘ निर्लिप्त, निर्लोभ, निर्भीक’ वाणीएकेँ मानैत छथि. ततबे नहि ओ आगू कहैत छथि
जे समाज भ’ जाइत अछि साहित्यसँ  दूर
तकर दिमाग भ’ जाइत छै डबरा
सड़ल, पीलु केर जन्मस्थल   
स्पष्ट अछि, कविक एहि उक्तिमे राजा द्वारा पोषित, आ राजतंत्रसँ भयभीत वा राजाक अनुकंपा पयबाक अभिलाषी, प्रशस्तिपाठ कयनिहार कविक स्थान नहि.

एही अध्यायमे कविलोकनिक उक्ति ( पृष्ठ ७५-७६ ) किरणजीक समता एवं मानवतावादी उदार विचारधाराक उदघोष थिक. एकरा स्वतंत्ररूपेँ पढ़ल जयबाक चाही.
एतहि पण्डितक परिभाषा – मानव हित मे जे अरपय जान ... से थिक पंडित, सैह महान- केर संग समाजमे समतामूलक संस्कृति, ‘थीक मानव सब सहोदर भाय समान’क दर्शन विस्तार अगिला दस पाँतिमे कयल अछि. मुदा, ओकर आगू जे किछु अछि से अजुका समाजक लेल अत्यंत प्रासंगिक अछि:

मानव समाजकेँ खंडित करय जे
त्याज्य थिक से वेद, धर्मशास्त्र, पुराण ।
‘गाङोक हस्तिनापुर गमन’क अध्यायक प्रत्येक पाँति मार्मिक अछि, प्रत्येक पाँति सूक्ति अछि. ताहूमे,
नेना-भुटका संग रखिहे सिनेह

तै बेर मे तकिहइ नूआ-फट्ठा, मूँह-कान,
मायक नजरि मे सब सन्तान
थिक एक रंग , एक समान’

जेहने मार्मिक अछि, तेहने दर्शन अछि ।
‘सिंहासन पर सत्यवती’ मे राम द्वारा शम्बूकक हत्या आ तकर विपरीत देवव्रत द्वारा ओही ‘शम्बूकक स्वजन गोढ़नी’ सत्यवतीकेँ हस्तिनापुरक सिंहासन पर बैसायबकेँ पराशर मुनि स्तुत्य कहैत छथिन, कवि ‘गतिशील विचार’क संज्ञा दैत छथिन. एतहि उपसंहारक रूपमे अबैछ राज्य आ राजधर्म पर किरणजीक दृष्टि, किछु शास्त्र-सम्मत, किछु कविक अपन. एकर एक अंश जे अजुको परिप्रेक्ष्यमे पस्न्गिक अछि, से द्रष्टव्य थिक:
धनबलसँ चालित व्यवस्थाक जन
भ’ जाइत अछि कुकुर समान
जे दैत अछि अहगर खीर
तकरे दिस गेल घूरि
...........................
स्नेह सद्भावनाक बल होइत अछि सबसँ
मजगूत संगहि मधुर।  

आकारमे छोट, कथ्यमे सोझ, भाषामे सरल, लोकगाथाक शैलीमे रचित ‘पराशर’ किरण जीक अंतिम कृति तँ थिके, ई  किरणजीक सबसँ महत्वपूर्ण कृति सेहो थिक. एहि पर सार्थक विमर्श हएब एखन बाँकी अछि. बिततैक समयक संग समाजमे  ‘पराशर’ पर विचार होइत रहैक, एकर प्रतिष्ठा बढ़तैक, आ किरणजीकेँ ओ सम्मान भेटतनि जे हुनक जीवन कालमे हुनकासँ चोरा-नुक्की खेलाइत रहल ।

सन्दर्भ:

       झा, काञ्चीनाथ ‘किरण’ : पराशर, चिनगी प्रकाशन १९८८, दरभंगा.

       झा, सुरेन्द्र ’सुमन’: पराशर ओ किरण : कृति ओ कृती, पराशर, चिनगी प्रकाशन १९८८, दरभंगा, पृष्ठ क-च .

       झा, कीर्तिनाथ. कुरल मैथिली भावानुवाद २०१७,पाण्डिचेरी, पृष्ठ ९५.

       झा, भीमनाथ. के बताह कवि......, अर्पण, दरभंगा ५३-५६.
 

   
     

 

 
 

 
  

 

  

Sunday, November 3, 2024

राजनीतिक परंपराक भूमंडलीकरण

राजनीतिक परंपराक भूमंडलीकरण

सुनैत छी, अमेरिकाक उपराष्ट्रपति कमला हैरिस सेहो

जीविकाक लेल बेलने रहथि पापड़ 

आ छनने रहथि आलू

मैकडोनाल्डक भनसाघरमे !

मुदा, आलू छानि, आ बेचिकए चाह

जँ केओ भए सकैत अछि उपराष्ट्रपति

वा प्रधानमंत्री

तँ पूर्व राष्ट्रपतिओ एही नुस्खासँ

 पुनः जीति सकैत छथि चुनाओ !

एही गुरकेँ मानि गुरुमंत्र

भाई ट्रम्प एहि बेर शुभ मुहूर्तमे 

मैकडोनाल्डक भनसाघरमे पूरा केलनि

 आलू छनबाक अभियान!

ततबे नहि,

सुनैत छी, ट्रम्पक एवजमे बैसल छल,

मैट्रिक/ ‘सैट’ परीक्षामे

 केओ फर्जी विद्यार्थीओ.

ऊपरसँ ट्रम्पक छनि माथ पर कुल

चौंतीसे टा अपराधक केस-

बलात्कार, हत्या, आर्थिक अपराध आ देशद्रोह,

किछुओ नहि शेष !

तथापि, थिकाह भूतपूर्व राष्ट्रपति

आ छथिए पुनः एहि बेर चुनावमे ठाढ़!

माने, वएह सबटा योग्यता आ गुण

छैक अमेरिकहुमे भेल जा रहल छैक अपरिहार्य,

जे जितबाक हेतु चुनाव

छैक भारतमे मोटा-मोटी

आवश्यक-अनिवार्य! 

भेलैक ने ई असली

राजनीतिक परंपराक भूमंडलीकरण !

Saturday, November 2, 2024

रावण-दहन

 

रावण-दहन

मैदानमे ठाढ़,

जरबा लेल तैयार,

रावणक ठोर पर पसरि गेलनि मुसुकी,

देखिते ठाढ़ मंच पर

मुँहपुरुखक समूह.

मने कहैत होथि ओ:

भाइलोकनि,

सत्ते, थिक ई बड्ड सनगर खेल !

पुनः क्षणहिमे जेना

ठहाका दए हँसय लगलाह रावण.

थम्हलनि ठहाका

तँ, गजय लगलाह मनहि-मन,

देलनि मोँछ पर ताओ,

दैत एकत्र समूहकेँ  चुनौती,

भाईलोकनि, करह जतेक होअह ब्योंत,

जरबह नहि हम किन्नहु,

हेबो करत नहि ताधरि हमर वध,

ने हएत हमर दिन बाम

जाधरि तोहरा लोकनिक ह्रदयक कोनमे

नुकायल रहबह हम

आ दुबकल पड़ल रहताह राम !

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो