हुसैन(मा), अङरेज(बा), लुल्हा-नङरा, कलरी; बौअन, अजब, आ यदुनंदन ठाकुर, आ गाम
विगत शताब्दीक गामक जिनगीमे व्यक्तिक महत्व केवल समृद्धिए टा पर निर्भर नहि रहैक। कोनो अनपढ़ो गुणी मानल जाइत छल, हरबाह-चरबाह सेहो कमासुत होइत छल. ऊपरसँ ककरो झाड़-फूकक गुण रहैक, ककरो जड़ी-बूटीक ज्ञान रहैक। केओ गछचढ़ाक रूपमे नामी छल तँ केओ नीक बहलमान। गाममे काहिल, गंजेरी-भंगेड़ी, चोर आ छिनारक सेहो कोन कमी. तैओ जकरासँ जकर उपकार होइत छलैक, ओ ओकरा हेतु उपकारक बूझल जाइत छल. हँ, किछु लोक अपन व्यवसायक कारण समाजक हेतु अत्यावश्यके रहय।
एहि छोट संस्मरणमे एहने किछु व्यक्तिक चर्चा अछि, जे अपन गुण वा व्यवसायक कारण समाजमे अपन-अपन स्थान बनौने रहथि। आरंभ हुसैन(मा) आ अङरेज(बा)सँ करैत छी.
मुदा, पहिने एकटा दोसरे गप; एक जड़ प्रथाक चर्चा- नामकेँ अपमानजनक बनयबाक रियाए। ओहि युगमे ब्राह्मण-कायस्थ-राजपूतकेँ छोड़ि केओ ककरो सोझ नाम कहाँ लैक। जाधरि नाममे अनादरसूचक प्रत्यय- ‘आ’ शिवसँ शिबुआ , ‘बा’ अंग्रेजसँ अँगरेजबा, ‘ना’ मूसनसँ मुसना, ‘या’ बदरीसँ बदरिया, ‘हा’ जेना सड़लाहा, जरलाहा, ‘मा’ बनियाँसँ बनीमा, ‘रा’ तेतरसँ तेतरा - नहि जोड़ल जाइक सभ्य-सवर्णकेँ गरीब-दलितक प्रति प्रेम आ दुलार नहि, सत्यतः मनुखक -पिछड़ल-दलित हेबाक आभासे नहि होइक। हँ, जकर नाम कुतबा, लुल्हा आ लंगड़ा, कुरहेड़बा आ कुकरा रहैक, ओकरा अपना अपन नाम केहन लगैक से, केओ पुछितैक तखन ने. ऊपरसँ जखन मुँहपुरुक लोकनिककेँ लोक धिया-पुताक नाम रखबा लेल कहनि, तँ जेहने चालि, तेहने किरिया। एकटा खबासिनिक मुँहे सुनने रहियनि: हमर छौड़ाक केहन नाम राखि देलखिन। बौआकेँ पुछलियनि, छौड़ाकेँ की नाम रखियै? कहलखिन,’ की रखबीही? कुड़हरिए-सन तँ छौक. कुड़हेरबा राखि दही!’ तेँ हुसैन(मा),अङरेज(बा)क माय-बाप सेहो ओकरा सबकेँ हुसैन आ अंग्रेज नाम रखने हेतैक। मुदा, समाज अनेक सब-जकाँ हिनको लोकनिक नाम तेना दूरि कए देलकनि जे ठीके जँ केओ आदरपूर्वक सोर करितनि तँ अपने नाम अनचिन्हार लगितनि। मुदा, ई विषयान्तर भेल तेँ ई एखन दूर रहओ. तैओ हम हिनका लोकनिक नाम दूरि नहि होअए देबनि।
तेँ, अवाम गाममे हुसैन आ अँगरेजक कोन महत्व रहैक, एखन तकरे गप.
हुसैन
हमर छोट गाममे मुसलमानक दू टोल. एकमे गोड़ चारिएक घर. दोसर टोल पैघ. पैघ टोलमे मस्जिद सेहो रहैक। मुसलमानक समुदाय आने सब-जकाँ मेहनति-मजदूरी आ खेतक बटाईसँ गुजर करय. मुदा, अछूत हेबाक कारणे सवर्णक ओतय ओकरा सबकेँ सब जन-मजदूरीमे अढ़ाओल नहि जाइक।
हुसैन ने हमरा लोकनिक बटेदार छल आ ने पसारी. मुदा, ओ हमरा ओतय कहिओ काल आबि जाय. दाई कहथि, ‘अहाँक जान हुसैनमे बचओने अछि’। आ तेँ हमर माता जीवन भरि हुसैनक प्रति उपकृत छलीह। ओहि युगमे, जहिया रहरहाँ नवजात, प्रसूति, आ नेनाक मृत्यु भए जाइक, तहिया हमरा सब भाई-बहिनमे केओ कालकवलित नहि भेलहुँ, से माता-पिताक साधारण उपलब्धि नहि।
ओहुना हुसैन अबितो छलाह तँ कथिक लेल? आवश्यकताओ तेहन जे आब लोककेँ विश्वासो नहि हेतैक; कहिओ दू टा नेबोक, एकटा काँच पपीताक, वा कहिओ नेबोक निमकीक एक फाँकक काज। सब कथुक प्रयोजन रोगे-व्याधि लेल, बेर-कुबेरहिक हेतु। मुदा, दाई हुनका कहियो खाली हाथ नहि जाए देथिन।
सुनैत छी, भूत-प्रेतकेँ भगयबामे हुसैन माहिर रहथि। सत्य वा झूठ, गाम जानय. माताक सर्टिफिकेट तँ भेटले रहनि। हमरा अपना ओहि घटनाक इतिहास बुझबाक ने कहिओ रूचि भेल आ ने माताकेँ पुछलियनि। ओना, छोट वयसमे कान पातर भेने अनायासहु बहुतो गप कानमे पड़िए जाइत छैक। मुदा, एतबा स्मरण अछि, जे हुसैनकेँ अनेक बेर झाड़-फूकक लेल टोल दिस जाइत देखियनि। झाड़-फूकमे आ दूध किनबामे तहियो जाति-पाँति आ छुआछुत बिला जाइक। दूध लोक खानाबदोश करोड़ियासँ सेहो किनैत छल. तेँ, समाजक मिथ्याचारक उपहास करैत किरणजी तँ ‘पराशर’मे लिखने छथिन, ‘रतिमे नहि लगैत छैक, छूति-तूति।’
हुसैन छौ फुट लंबा। गेहुँआ रंग। चारखाना लुंगी। देह पर गमछा। पातर मोछ, आ मोछक कोर पर ताओ। जखन झाड़-फूक लेल टोल पर बजाहटि होइनि तँ बामा हाथमे मैल लत्तामे लपटाओल गोड़ दुइएक हड्डी- प्रायः कोनो नेनाक जांघक वा बाँहिक हड्डी छल रहैक - सेहो रहनि। इएह रहनि, हुसैनक काया-कलेवर आ भूत भगेबाक उपकरण। ओकरे भँजैत ओ किछु मंत्र पढ़थि, आ रोगीकेँ फुकथि. बाजब बहुत कम .
ओहुना बिनु काजे हिन्दूक टोल पर मुसलमान किएक आओत. कतहु जेबाक भेलैक, तँ टोल पर बाटें-बाट गेल. कओ टोकलकैक तँ बेस, नहि तँ बाट धेने सोझे चल गेल.
किन्तु, एतबा अवश्य स्मरण अछि, जे हुनकर बेटालोकनि गामे-गाम सोनारक भट्ठीसँ छाउर जमा करथि आ छाउरकेँ छानि कए सोना-चानी निकालबाक व्यापार कथि. तेँ, जखन कखनहुँ ओलोकनि टोल पर बाटें कतहु विदा होथि तँ पीठ पर कपड़ामे बान्हल छोट-पैघ अढ़ियाक एक गेंट होइनि. ताहिसँ बेसी किछु परिचय हमरा स्मरण नहि अछि। मुदा, आधा शताब्दीसँ बेसी भए गेलैक। मुदा, हुसैन स्मरण छथि।
अङरेज
अङरेज(बा) एनिमल सर्जन रहथि. आ कसाई सेहो। छागरो कातथि, आ बाछाक बधिया सेहो करथि. मानव शरीरक छेदन आ शल्य चिकित्सा तँ हम पछाति सिखलहुँ, मुदा, अङरेज(बा)केँ सड़कक कातहिमे जेना हम बाछाक बधिया करैत हिया देखने रहियनि, तकर जँ आई मूल्यांकन करी तँ अङरेज(बा) सेहो बार्बर-सर्जन एवं एनिमल सर्जन लोकनिक ओही सुदीर्घ परंपराक अन्तिम वंशज रहथि, आधुनिक चिकित्सा जकर परवर्ती पीढ़ी थिक। कारण, हुनका जेना बधिया करैत देखने रहियैक ओहिमे एनेस्थीसिया आ पीड़ा निवारण भले नहि छल होइक, सड़कछाप शल्य चिकित्सकक दक्षता तँ अवश्ये रहैक। हुनका पर समाजक विश्वास तँ छलैके। ओहुना आइओ तँ गामे-गाम क्लिनिक खोलि सड़क छाप सर्जन टाका बटोरिए रहल छथि।
जहिया हम अङरेजकेँ टोल पर बाछा बधिया करैत देखने रहियनि, हमरा जीव-जन्तुक शरीर रचनाक कोनो ज्ञान नहि छल. मुदा, आइओ अंगरेज(बा)क हाथक ओ जटिल शल्यक्रियाक विधि, जकरा वेटिनरी सर्जनक लोकनि बड़का ऑपरेशन (major surgery) कहैत छथिन, एखनो आँखिक सोझाँ अयना-जकाँ झलकि रहल अछि. सिलसिलेबार, त्वरित आ शर्तिया। तेँ, जँ परीक्षक रहितियैक तँ बंध्याकरण ऑपरेशन लेल अङरेज(बा) केँ फर्स्ट क्लासक सर्टिफिकेट भेटितैक।
प्रशंगवश, एतय इहो कहि दी, जे ब्राह्मणक हेतु अपन दरबज्जा पर बाछाक बधिया करायब प्रायश्चित करबा योग्य पाप रहैक। मुदा, बिनु बधियाक बाछा हरमे जोतलो नहि जाय. तेँ ब्राह्मणलोकनि बुधिबधिया करबथि। माने, बधियाक हेतु किछु दिन लेल बाछा कतहु पोसिया पर दोसरक खुट्टा पर जाय. ओतहि बधिया होइक आ बाछा बड़द बनि अपन थरि पर घूरि आबय. इएह भेल बुधिबधिया, माने काजो सुतरि गेल आ आ छार-भार अनके कपार !
लुल्हा-नङरा
सहोदर दू भाई, लुल्हा-नङरा जन्मजात दिव्याङ्ग छल; लुल्हाकेँ एकेटा हाथ रहैक, नङराकेँ एकेटा पयर। बाँकी सब दुरश्त। तथापि, नङरा तँ नहि, लुल्हा अवाम गामक अजूबा छल. अजुका युग रहितैक तँ लोक ओकर फिल्म बनबैत, ओकरा दुनूकेँ कतेक पुरस्कार भेटितैक। कारण, दिव्याङ्ग रहितो ओ दुनू भाई नचार नहि छल, ओकरालोकनिसँ कोनो काज छूटल नहि रहैक। लुल्हा गाछ चढ़ैत छल, कोदारि तमैत छल, एके हाथेँ कुड़हरि पाड़ैत छल, जारनि चिरैत छल. मुदा, एहि सबसँ बेसी आश्चर्यजनक रहैक जे ओ दाहिना हाथ आ बामा पयरक सहायतासँ भीड़ीक-भीड़ी साबेक जौड़ सेहो बाँटि लैत छल. जँ आजुका युग रहितैक तँ लुल्हाक जौड़ बँटबाक कलाक वीडियो कतय नहि जाइत।
कलरी
स्वतंत्रताक बादहु मिथिलांचलमे प्रसूति सेवाक सर्वथा अभाव रहैक। तें, प्रसव होइक वा कारण /अकारण गर्भपात, गामक एकमात्र चमैनि कलरी, मिडवाइफ तँ नहि, अमेरिकाक समाजक doulaǂ तथा स्त्रीगणलोकनिक बड़का बल छलीह। हुनकर काजे एहन रहनि जे, जातिगत अवहेलनाक अछैतो, बड़कासँ छोटका धरि एहन कोनो घर नहि छल, जतय दिन-दुपहरिया, राति-विराति, कलरीक बजाहटि नहि होइक, लोक ओकर बाट नहि तकैक, ओकर प्रवेश नहि रहैक।
भुट्ट-खांट, गोरि आ मृदु भाषी कलरी हमर माताक सेहो प्रिय रहनि, सबहक प्रिय छलि। आ किएक नहि। हमरालोकनि सात भाई-बहिन। कोनो प्रसवमे ने माताक कोनो नेनाक हानि भेलनि, ने अपने प्राण गेलनि। सबमे कलरी सहयोग आ अपन शरीरक गुण तथा सजगता। माता छोटि बहिनि- हमर एक माउसि - तँ प्रथमे प्रसवमे दिवंगत भए गेल रहथिन।
बहुत दिन धरि दाईक लग मिहिसिक सींगक बेंटबला एकटा छूरी रहनि। कहथिन,कलरी अहाँ सातो भाई-बहिनिक नार एही छूरीसँ कटने रहय.
जतेक स्मरण अछि, कलरी जखन कखनो घरसँ बहारथि तँ दाहिना हाथमे एकटा छोट-सन पितड़ियाक लोटा लेने। लोटामे मालिशक हेतु तेल रहैक, से सुनियैक।
भारत सरकारक जननी सुरक्षा योजनाक अंतर्गत प्रसूतिक सुरक्षाकेँ ध्यानमे रखैत सरकार अस्पतालमे प्रसवकेँ प्रोत्साहन दैछ. प्रसूतिक सुरक्षा पर एकर सकारात्मक प्रभाव भेलैए। तेँ, पुरान परंपरा अब इतिहास थिक।
बौअन ठाकुर
बौअन ठाकुर हमर गामक एकमात्र बरही छलाह। हुनक मृत्युक आ कृषिक बदलैत प्रणालीक संग पुरान ज़मानाक हर-फार आ कमरसारिक अंत भए गेल. ओही संग अंत भए गेल जूड़ि-शीतलक बाँसक फुचुक्काक, आ बाँस-बातीक पनिसालाक बनब। संगहि समाप्त भए गेल, भाथि आ निहाई आ कमरसारिमे गृहस्थलोकनिक भोरुका जमघटक। हिनकर परिवारक युवक सब भिन्न-भिन्न व्यवसाय धेलनि आ पारंपरिक ‘गिरहस्त’क पसारीक परंपराक अंत भेल
लकड़ीक करोबारक अतिरिक्त, बौअन ठाकुर हारमोनियम सेहो बजबथि। प्रत्येक शनि आ मंगलक साँझ हुनका दरबज्जा पर सामूहिक कीर्तन होइत छल, जाहिमे जन-बनिहार वर्गक गबैया- बजनिया आ संग देनिहार भक्त लोकनि जमा होथि। आब ई सब किछु इतिहास भए गेल. ने ओ नगरी, ने ओ ठाम। गाम ठामहि अछि, समाजे बदलि गेल, शिक्षित आ किसान, दुनूक पलायनसँ गाम सुन्न भए गेल।
अजब ठाकुर सोनार
अजब ठाकुर सोनारक एकमात्र सोनार रहथि। गरीब गाममे दोसर सोनारक प्रायः काजो नहि रहैक. अवाम निम्न एवं मध्यम श्रेणीक खेतिहरक गाम छल. तथापि, कर्णबेध आ नाक छेदब होइते रहैक। उपनयन- विवाह होइते रहैक! दुब्बर-पातर अजबक स्वभावो अजबे रहनि; मृदुभाषी आ ठोर पर मुसुकी छिटकैत। हमर गाम छूटि गेल। अजब कहिया गत भए गेलाह, बुझबो नहि केलिऐक।
यदुनंदन आ हित(बा)
यदुनंदन आ हित(बा) दू भाई रहथि हजाम-ठाकुर रहथि। हजाम ठाकुरो एके घर। एहि दुनू भाईमे नब्बे बरखकेँ धक्का दैत यदुनंदन एखनो तक टेक धेने छथि आ घर आँगन देने छथि. हमर पिछलो यात्रामे हमरासँ दवाई लिखबयबा लेल आयल रहथि। मुदा,अब पाकल आम थिकाह। एहि दुनू परिवारक धिया-पुता एखन धरि तँ गाम धेने छथिन, तथापि, समृद्ध छथि, से प्रसन्नताक विषय थिक. ओना आब गाममे जीविकाक अवसर आ अगिला पीढ़ीक आकांक्षा गामक भविष्यक स्थितिक निर्णय करत। कारण, अगिला पीढ़ीक शिक्षा सब वर्गक प्राथमिकता छैक.
उपसंहार
हमर पड़ोसिया करीब तीस बरखक युवक पिछला दस वर्षसँ बेसीसँ दिल्लीमे कोनो फार्मेसीमे काज करैत छथि. एखन गाममे नव डीह पर घर बना रहल छथि. हमहूँ अपन पुराण घर तोड़ि नव घर बनायब शुरू केने छी. पुछलनि, ‘ बाबा गाममे फेर घर बनबैत छियैक, रहबैक?’
हम पुछलियनि, बाउ घर तँ अहूँ बना रहल छी। अहाँ रहबैक ? कहलनि, ‘बाबा, रहि जैतियैक। आब गामहुमे शहरबला रोजगारक अवसर छैक. मुदा, एखन पन्द्रह बरिस हमरा दिल्लीएमे रहय पड़त. एतय पढ़ाई-लिखाईक सुविधा नहि छैक!