Friday, August 22, 2025

चारि गोट कविता

 1

नहि जानि कहिया ई गीड़ि लेत सूर्य !

बंगलोर शहरक उपनगरमे फ्लैटक समूहक टोल 

तेरह महला मकानक बीच एक फ्लैट 

दूर धरि पसरल हरियरीक बिछाओनक आगाँ

आबि रहल अछि दौगल 

सौ महला भवनक बाढ़ि .

होइत अछि, आशंका- अधैर्य 

नहि जानि कहिया धरि

ई चाटि लेत हरियरी 

आ ई गीड़ि लेत सूर्य ! 

2

गाम घरक प्रगति

बीनि रहल अछि सड़कक महाजाल 

मुदा, मनुख शहरमे; जीविकाक जंजाल !

मकड़ा बीनि रहल अछि गोसाउनिक सीर पर 

अपन जाल

मनुख लेल डीह-डाबर आ खेत भेल छैक 

जानक भारी  जंजाल 

3

पहाड़मे बसल नारि उघैए पानि 

बिछैए जारनि आ कटैए घास, 

पलिबार बसैत छैक गाममे 

अपंग पति, काहिल बेटा आ चाकरीक लेल 

बंगलादेशी मुमताज़ करैए बंगलोर बास !

4

माए बाजथु मैथिली, तमिल, कन्नड़, वा मलयालम 

बाप बजौक हिन्दी, नेपाली, मराठी वा  बांग्ला बोल 

नेना होउक ककरो 

सब करैए  सुदुक अंग्रेजीमे अनघोल ! 

    

Friday, August 8, 2025

‘किरण’जीक दृष्टिमे ‘वर्णरत्नाकर’क रचनाक उद्देश्य


अनपढ़ समाजमे धर्मक प्रति गौरव आ भारतक प्रति अपनत्वक विकास

कविशेखराचार्य ज्योतिरीश्वरक ‘वर्णरत्नाकर’क आरंभिक पृष्ठ अनुपलब्ध रहबाक कारण एहि ग्रन्थक रचनाक उद्देश्य अनुमानक विषय थिक. सुनीति कुमार चटर्जी एकरा ‘कव्योपयोगी गद्य ग्रन्थ’ कहलखिन, तं, संयुक्त संपादक बबुआ मिश्रकेँ ‘भाषा साहित्यक रचनाक आरंभहिक युगमे गद्यग्रन्थक रचना असंगत लगलनि’, मुदा, ओ एहि विषय पर आओर विमर्श नहि केलनि.

पछाति अनेक साहित्यकार वर्णरत्नाकरक अध्ययन केलनि, मुदा, सब केओ चटर्जी महाशय आ पण्डित मिश्रक मत स्वीकार करैत चल गेलाह.

किरणजी अपन अध्ययनमे ग्रन्थक स्वरुप एवं उद्देश्य पर उक्त विद्वानलोकनिक विचारसँ  असहमति प्रकट करबामे असोकर्य अनुभव करितहुँ, अपन अकाट्य तर्कसँ हुनकालोकनिक मतक खण्डन केलनि. मुदा, ‘किरणजी मत कतेक गोटेक नजरि पर आयल’, कहब कठिन. 2005मे पुस्तकाकार प्रकाशनक पछाति ‘वर्णरत्नाकरक काव्यशास्त्रीय अध्ययन’क किछु  समीक्षा छपल. मुदा, ताहिमे केवल मोहन भारद्वाजक नजरि ‘वर्णरत्नाकर’क रचनाक उद्देश्य पर किरणजी विमर्श पर ध्यान गेलनि, मुदा, संपूर्णतामे नहि.
बाँकी सब केओ एहि अनुसन्धानक विषयवस्तु वा निष्कर्षहि धरि ध्यान केन्द्रित केलनि. मुदा, वर्णरत्नाकरक रचनाक उद्देश्य पर किरणक सर्वथा नव उपस्थापन पर हुनकालोकनिक नजरिनहि गेलनि. ई विषय किरणजीक मौलिक चिंतन थिक, हुनक अवदान थिक.

अस्तु, एहि लेखमे ‘वर्णरत्नाकर’क रचनाक उद्देश्य पर किरणजीक उक्ति हुनके शब्दमे प्रस्तुत करब हमर अभीष्ट अछि. आगाँ यदि एहि विषय पर विमर्श भेल तं तकर स्वागत हेबाक चाही.
‘वर्णरत्नाकर’क रचनाक उद्देश्य पर किरण जीक दू गोट विन्दु प्रस्तुत कयने छथि:

1.     ‘वर्णरत्नाकर’ कव्योपयोगी ग्रन्थ थिक- केर खण्डन. अर्थात् ई काव्य थिक. एवं

2.     ‘वर्णरत्नाकर अखिल भारतक मूर्ति थिक’ केर उपस्थापना

‘वर्णरत्नाकर’ काव्यग्रन्थ थिक
‘वर्णरत्नाकरक काव्यशास्त्रीय अध्ययन’ किरणजीक अनुसन्धानक विषय रहनि. अस्तु, किरणजी सोझ-सोझ कहैत छथि, ‘ वर्णरत्नाकर अपनहुँ काव्य ग्रन्थ थिक से हमर मत थिक’. हुनक संपूर्ण पोथी एही तर्कक समर्थनमे अछि. मुदा, एहि ग्रन्थकेँ ‘काव्योपयोगी’ बनाएबी रचनाकारक उद्देश्य नहि थिकनि, ताहि पर सेहो किरणजी स्पष्ट आ तर्कसंगत वक्तव्य देने छथि. ‘वर्णरत्नाकर’क रचनाकाल आ संभावित पाठकक दिशि ध्यान आकृष्ट करैत कहैत ओ छथि: 1

डा. चटर्जीक ध्यान एहि दिशि नहि गेलनि जे वर्णरत्नाकर कोन समयमे लिखल गेल आ ककर
निमित्त लिखल गेल. चौदहम शताब्दीक प्रथम चरणमे एकर रचना भेल. केवल द्विज जातिकेँ
पढ़बाक अधिकार छलैक. द्विजोमे प्रमुखतया ब्राह्मणे पढ़ैत छल. पण्डित-समाज अपन अभिव्यक्तिक भाषा संस्कृतकेँ मानैत छल. हुनक समयमे वीरेश्वर चण्डेश्वर सन-सन विद्वान रहथि.
चण्डेश्वर सात गोट रत्नाकर, आठम कृत्य चिन्तामणिक रचना कयल. एहन समय(मे कविशेखर) ककर  हेतु कव्योपयोगी ग्रन्थ मैथिलीमे लिखलनि.
तालपत्र जे संस्कृतमे पढ़त से वर्णरत्नाकरसँ तीर्थक नाम, नदीक नाम आ पुराणक नाम सीखत?
हमरा असंगत, अनसोहाँत लगैछ एहन कल्पना.

ओ अपन तर्ककेँ बढ़बैत दोसर ठाम कहैत छथि2

पुराण, उपपुराण, आगम, स्मृति, वैद्यग्रन्थ, तीर्थ, ऋषि आदिक नाम गना देब पण्डितक हेतु उपयोगी नहि भय सकैत अछि. रामायणक काण्ड, महाभारतक पर्व,क नाम लिखबामे कोन पाण्डित्यक प्रतिपादन भय सकैछ, कोन चमत्कारक सर्जन भय सकैछ ?  

वर्णरत्नाकर अखिल भारतक मूर्ति थिक

किरण जी कहैत छथि, ‘भूमि, जलाशय, वन ,नदी, पर्वत, नगर, ग्राम, लोक, साहित्य, संस्कृति, धर्म, इतिहास , आचार-विचार, व्यवहार आदिए समष्टिए  देश थिक ने ? 

1. वर्णरत्नाकरक काव्यशास्त्रीय अध्ययन पृष्ठ 4  

‘आ तकर समर्थनमे वर्णरत्नाकरमे वर्णित संपूर्ण विषयक सूची दैत किरणजी कहैत छथि, वर्णरत्नाकर अखिल भारतक मूर्ति थिक

ओ आगू कहैत छथि:3

हमरा लोकनिकेँ तत्कालीन मिथिलाक ऐतिहासिक, राजनैतिक ओ सामाजिक परिस्थिति पर दृष्टि राखि वर्णरत्नाकरक रूप-रचनाक विचार करय पड़त. मिथिलाक ओहि दिन विलक्षण स्थिति छल, अपने ई स्वाधीन छल, मुदा अदुनू दिशि विधर्मी यवन साम्राज्य बढ़ि रहल छल. यवन साम्राज्यसँ राजनैतिक टा खतरा नहि छल, धर्म ओ संस्कृति संकटग्रस्त रहैक. बलसँ वा प्रलोभनसँ विधर्मी भय जेबाक स्थिति उत्पन्न छल. एहि परिस्थिति दिशि मिथिलाक एक-दू  विद्वानक दृष्टि गेल. उमापति पारिजात हरणमे मैथिली भाषाक गीतकेँ स्थान दय  ‘आशूद्रान्तं कवीनां भ्रमतु भारती भंगि भेदैः’ द्वारा विद्वानक वाणीकेँ शूद्रक कान धरि पहुँचेबाक कामना कयल.4

अस्तु,.....

जाहि कालमे कविशेखराचार्य ज्योतिरीश्वर छलाह से काल मैथिली विद्वानक लेल असाधारण उद्विग्नताजनक छल. मिथिला छल स्वाधीन- एक क्षत्रिय राजाक सम्प्रभुतामे... सभ महान पद पर आसीन छलाह मूर्धन्य पण्डित लोकनि. केहन आनन्दमय समय छल हयत. परंच, पश्चिममे इन्द्रप्रस्थ, कुरुपांचाल, अवध,ब्रज, मथुरा, काशी, कान्यकुब्जक वक्षस्थलकेँ पददलित कयने ठाढ़ छल विधर्मी विदेशी यवनराज आओर दक्षिण पूर्व मगध अंग-बंगक वक्षकेँ दमेसने दोसर यवनराज ठाढ़ छल.

.. राजनैतिक स्वतंत्रताक समयमे ई सभ(राज्य) भने संबंध तोड़ि अपनहुँ  धरि स्वत्न्र रहबाक प्रयत्न करओ मुदा धार्मिक स्वतंत्रताक बेरमे भारतसँ विच्छिन्न भय कतेक काल बाँचि सकैत ? तें भारतक विद्वानलोकनि हिन्दूधर्मकेँ सम्पूर्ण भूमिक संग सम्बद्ध करबाक प्रयत्न कयलन्हि..... सतीक शरीरकेँ काटि-काटि कामरूपसँ काश्मीर ओ कन्याकुमारीसँ नयपाल धरि स्थापित कयलन्हि, शिवक लिंगकेँ काटि-काटि  संम्पूर्ण भारतमे वितरित कयलन्हि. गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु, कावेरी भारतक भिन्न-भिन्न भागमे प्रवाहमान नदीमे एक गंगाक आधान कय देलन्हि.5

अर्थात् हिमालयसँ दक्षिण कुमारी अन्तरीप धरि{,}अरब सागरसँ कामरूप धरिक भूखण्डकेँ हिन्दू अपन बुझय.  अपन इहलोक ओ परलोक एहि भूभागक संग संम्बन्ध बुझय......(तथा) भारतक अर्थात् हिन्दूजातिक कोनो वर्ग अपनाकेँ एहिसँ  बाहर नहि पाबय आओर सम्पूर्ण भारतकेँ अपन बुझय, हिन्दू धर्मकेँ जीवनक संग सम्बद्ध पाबय, एही भावधारामे एहि ग्रन्थक प्रणयन भेल होयत..... (तथा)  कविशेखराचार्य एही भावधाराकेँ वर्णरत्नाकरक रूपमे साकार बनाय अनपढ़, अज्ञ समाजक मानसमे स्थापित करय चाहलन्हि.5

ततबे नहि,

ज्योतिरीश्वर अपन रचनासँ अशिक्षित जनतामे हिन्दू गरिमाकेँ पहुँचयबाक प्रयत्न कयल.5

2. वर्णरत्नाकरक काव्यशास्त्रीय अध्ययन पृष्ठ 136


3. वर्णरत्नाकरक काव्यशास्त्रीय अध्ययन पृष्ठ 137 

एक दिशि मुसलमानी धर्ममे एक धर्मग्रन्थ कोरान, एक तीर्थ मक्का, एक पैगम्बर(अवतार) मुहम्मद,एक वा दू नदी पवित्र छलैक. दोसर दिशि हिन्दूक पलड़ा पर कविशेखर अष्टादश पुराण, अष्टादश स्मृति, चौदह आगम, रामायण, महाभारतकेँ राखि देल. दशटा अवतार, अष्टमूर्ति, नवग्रह,अष्टवसु, उनचास पवनदेव, द्वादश सूर्यकेँ उपस्थित कय देलन्हि. अड़सठिटा तीर्थ उपस्थित कय ताहिमे मिथिलाक नाम राखि देलन्हि. एकतीस टा पवित्र नदी देलथिन्ह जाहिमे घर लगक वाग्वती ओ कौशिकिओ अछि. 

की एहिसँ हिन्दू धर्मक वैभव नहि द्योतित होइछ ? संगहि मुसलमानी धर्मक दारिद्र्य नहि नाचि उठैछ ? देवी-          देवताक बहुसंख्यकत्व आधुनिक पढ़ल-लिखल समाजकेँ झंझटि भने बूझि पड़ौक, मुदा, यैह बहुदेव प्रियता  बौद्धधर्मकेँ मिथिलामे जड़ि नहि रोपय देलकैक. आ मुसलमनोक संख्या बेसी नहि होमय देलकैक.6

किरणजी  अपन तर्कक पक्षमे आगू कहैत छथि:

परिणाम हमर सभक समक्ष अछि. बंगाल मिथिलासँ पूब अछि. ओतय मुसलमानी शासनो मिथिलासँ पहिने सुदृढ़ भय गेल. आ ओतय जनताओ यवन धर्ममे चल गेल. मिथिलामे दलित- हरिजनक संख्या थोड़ नहि अछि, तथापि ओ सभ मुसलमान नहि भेल कियैक? मिथिलाक विद्वान ओकर ह्रदयमे धार्मिक भावना भरैत रहलाह भाषाक रचना द्वारा. ज्योतिरीश्वर एहि प्रकारक विद्वानमे अग्रगण्य थिकाह.6

वर्णरत्नाकरमे ज्योतीरिश्वरक ‘विलक्षण दृष्टि’केँ रेखांकित करैत किरण जी कहैत छथि:7
यवनधर्म(क गमन)सँ पूर्व बौद्ध धर्मक विरोध ओ खण्डन होइत रहल मिथिलामे, परन्तु यवन  धर्मकअपेक्षा बौद्ध धर्मे मानि कविशेखर चौरासी बौद्ध सिद्धोकेँ ऋषि-मुनिक संग लय लेलन्हि जाहिसँ बौद्धो अपनाकेँ हिन्दूक अंगे मानथि. मुदा) .. तें बौद्ध धर्मक समर्थन नहि कयल (तथा) बौद्ध दर्शन ओ आस्तिक दर्शनक मध्य कोन काम्य थिक से कहि देलन्हि.
निष्कर्षमे किरणजी कहैत छथि, ‘(उपरोक्त  दृष्टिसँ देखने वर्णरत्नाकर एक विलक्षण, अनपढ़- समाजक हेतु अत्यन्त रोचक ओ उपादेय प्रतीत होइछ’2
किरणजीक वक्तव्यकेँ स्पष्ट करबाक हेतु किरणजी उद्धरणक अतिरिक्त आओर किछु कहबाक आवश्यकता नहि.            

संदर्भ :

झा कांचीनाथ. वर्णरत्नाकरक काव्यशास्त्रीय अध्ययन. प्रथम संस्करण 2005. किरण साहित्य शोध
संस्थान, धर्मपुर, उजान, दरभंगा.

1.     वर्णरत्नाकर काव्य किएक नहि थिक पृष्ठ 77

2.     भूमिका पृष्ठ 2

3.     वर्णरत्नाकर काव्य किएक नहि थिक पृष्ठ 77

4.     वएह

5.     भूमिका पृष्ठ 2-3

6.     वर्णरत्नाकरक रचनाक उद्देश्य तथा भाषा-शैली पृष्ठ 95

7.     वएह पृष्ठ 96

8.     भूमिका पृष्ठ 4

9.      वएह पृष्ठ 4

 


मेरा पड़ोसी



ऋतु परिवर्तन से निरपेक्ष इमली का पेड़। 
बहुत छोटे पत्ते, पर सघन छाया। 
न फूलों की खिलखिलाहट 
न पतझड़ में शोकाकुल रूप। 
केवल, वसंत मे हल्का स्मित हास, 
नन्हे-नन्हे स्वर्णिम फूल, 
जो महीने-दो-महीने भर तक
चिपके रहते हैं डालियों से . 
लगता है, 
भाग दौड़ की जिंदगी के शहर बंगलोर में 
केवल इन्हें ही है
माँ से ममता, 
पिता से प्यार, 
पड़ोसी से नाता 
और अपना सुखमय संसार। 
बस इतनी ही बातें, 
इसलिए, 
कुतूहल में मैं वर्ष भर 
हर दिन देखता रहता हूँ 
मौसम की मार से बेखबर 
सदा स्वस्थ प्रसन्न इस 
सुखी पड़ोसी इमली के पेड़ को ।

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

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