Today's ( Dec 28) The Times of India carried a disturbing piece of news. A twenty-four-year old MBA student, a victim of racial abuse and murderous attack died to day at a hospital in Dehradun after fighting for life for fourteen days. The incident occured on December 9 when Anjel and his brother Michael Chakama objected to being called as Chinese,etc. They were allegedly brutally attacked by a group of six men in which Anjel was fatally wounded.
The incident, disturbing as it is, raises serious questions wanton attack by hooligans on people who do no offence. This lawlessness justifiable on no account need to be curbed. But when that doesn't happen lumpen elements feel encouraged and bring shame to the whole country.
Th authorities need to act quckly and devicively to send a strong message and prevent such horrific incidents.
कीर्तिनाथक आत्मालाप, आत्ममंथनक क्षणमें हमर मनक दर्पण थिक. 'Kirtinathak aatmalap' mirrors my mind in moments of reflection.
Sunday, December 28, 2025
Lawlessness Must End
समकालीन मैथिली कथामे बदलैत स्वर
समकालीन मैथिली कथामे बदलैत स्वर
एखन समकालीन मैथिली कथामे बदलैत स्वर हमर चर्चाक विषय थिक. समकालीनसँ हमर
तात्पर्य एकैसम शताब्दीक रचनासँ अछि. ओहि विषयसँ अछि, जे एखन केन्द्रमे अछि, जे
प्रासंगिक अछि. स्वर शब्दसँ हमर अभिप्राय लेखकक विभिन्न वर्ग, विषय वस्तु, कथाक
विभिन्न प्रकारसँ अछि.
एहिमे दू मत नहि जे पछिला पचीस वर्षमे कथा लेखनक परिदृश्य बदल अछि. संख्या थोड़
नहि. प्रिंट आ सोशल मीडिया पर जतेक किछु लिखल जा रहल अछि, से ने सबटा उपलब्ध होइछ,
ने सबहक ठेकान राखबे संभव. ‘धूमकेतु’क गप्प मन पड़ैत अछि. ओ कहैत छथि, ‘खिस्सा जीबैत-भोगैत तँ सब
अछि, मुदा, ओकरा पढ़बाक दृष्टि सबकेँ नहि होइत छैक.’ संगहि ओ इहो कहैत छथि, ‘बोधक
विभिन्न-स्तरीय अन्तर्धारा एक्के संगे प्रवाहित होइत रहित छैक. सभ खिस्सा सभ लेल
ने लिखल जाइछ आ ने सभकेँ नीके लगैत छैक.’ तेँ, एके कालखण्डमे लिखल दू-चारि-पाँच
रचनाकारक नाम प्रत्येक समीक्षा आ संकलनमे भेटत. बाँकी रचनाकारक संज्ञान लोक नहि
लैत छैक. संगहि, कथाक विवेचनामे व्यक्ति सापेक्षताक दोष सेहो संभव छैक. साहित्य
अकादेमी द्वारा 2010मे प्रकाशित ‘मैथिली कथा शताब्दी संचयन’क भूमिकामे रामदेव झा
एहि बातकेँस्वीकार करैत छथि: ‘वर्त्तमान कथा संग्रहक उद्देश्य अछि विगत सय वर्षमे
भेल मैथिली कथाक विकासक एक सामान्य परिचयक हेतु उपयुक्त सामग्रीक संकलन. एहि
संग्रहमे ई कदापि सम्भव नहि जे समस्त उत्कृष्ट कथा अथवा समस्त रचनाकारक कथाकेँ
संकलित कयल जाय.’
एखनि नव बात ई जे एखनुक रचनामे रचनाकारक नव, पुरान सब वर्ग छथि. रचनाकारमे ओहो वर्गक प्रतिनिधित्व अछि, जाहि
वर्गपर केन्द्रित कथा, पहिने बतर ‘उपकार’ बूझल जाइत छल. मुदा,कथाक विषय होएब भिन्न
बात थिक. अपन कथा अपन दृष्टिसँ अपने शब्दमे व्यक्त करब कथाकेँ सहजता, विश्वसनीयता
आ भिन्न स्वादे टा नहि, ओ गुण सेहो दैत छैक, जे घटनाक वर्णनकेँकथा बनबैत अछि. ततबे
नहि, एखन कथा-लेखनमे एहन अनेक स्वर सोझाँ आयल छथि, जे नवे टा नहि, अपन प्रतिभा आ
कथ्यक बलें रचनाकारक रूपमे प्रतिष्ठाक अधिकारी छथि. मुदा, मैथिलीमे पेरूमल मुरुगन तँ
आयब बाँकिए छथि. जे किछु.
तथापि, कथाक वर्त्तमान स्वरपर दृष्टिसँ पूर्व, कनेक ओहि सामाजिक परिवर्तनक चर्चा
करी जाहिसँ एहि युगमे मानवीय जीवन प्रभावित भेले. जनसंख्याक वृद्धि समस्या थिक.
शिक्षाक प्रसार विकासक अंग थिक. जीवन-स्तरमे सुधारक आकांक्षा उचित थिक. रोजगारक
थोड़ अवसर अजुका कटु सत्य थिक. पलायन आ विस्थापनक एहि सभक संगीओ थिक आ परिवारक
विखण्डन कारणो थिक. दोसर दिस, समाजिक न्याय, आ लिंग-भेदक उन्मूलन, नागरिक अधिकार
थिक. एहि सबहक बीच मानवीय मूल्यक ह्रास, आ धार्मिक असहिष्णुताक सत्यकेँके नकारि
सकैछ. मुदा, एहू विषय पर मतभेद सामजिक यथार्थ थिक. ततबे नहि, इहो विडंबना थिक, जे
एहि ‘ग्लोबल विलेज’मे भूमण्डलीकरणक अछैतो देश-देशक बीच उठैत नव-नव देबाल ठाढ़ भए
रहल अछि. ई नव चुनैती थिक. एहि सभक बीच इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी आ सोशल मीडियाक
अभूतपूर्व क्रांतिक संग-संग नव-नव रोजगारक उदय भेले, जाहिमे नारि आ पुरुष दुनू
समान रूपें सहभागी छथि. एहिसँ मनुखक जीवन पद्धतिए नहि दैनिक जीवन सेहो अभूतपूर्व
रूपें प्रभावित भेले. एहि परिवर्तनक प्रभाव दूरगामी भेले. एहि सब परिवर्तनक स्वर
अनेक दिशासँ प्रतिध्वनित होइछ. एहि ब्रेक-नेक (जनमारा) जीवनक पहिया तर मनुख
अपनाकेँ तेहन दाबल अनुभव करैछ, जे समीपक मनुखक हाक तँ दूर, ओ हाहाकारो सूनि, ‘तानि
कमरिआ पड़ल’ रहबे नीक बूझैछ. एहि परिवर्तनक बीच कथाकारलोकनि नजरि मनुष्यक ‘शोर्ट
अटेंशन स्पैन’ पर नहि पड़लनि से नहि. प्रायः, ‘बिहनि कथा’-सन विधा एही पारिस्थितिक
उपज थिक.
एहि सब परिवर्तनक बीच जखन हमरालोकनि वर्तमान कथाक स्वरुप देखैत छी, तँ, कथाक
स्वरुप मोटा-मोटी अपरिवर्तित लगैत अछि. वर्तनीक विभिन्नता अछि. उपभाषामे कथा लेखन
आरंभ भेले; ई नव आ स्वागतयोग्य थिक. उपभाषाक गप भेले तँ एकटा रोचक संदर्भ स्मरण भए
आयल. एक दिन मैथिली-हिन्दीक प्रतिष्ठित हस्ती भाषा-उपभाषा पर फेसबुक पर किछु लिखने
रहथि. भाषाक एकरूपताक गप रहैक. हम लिखि देलियनि, ‘ Gone with the Wind सन कालजयी रचनामे समाजक विभिन्न वर्ग भिन्न-भिन्न अंग्रेजी बजैत छल.’ नहि
जानि, किएक, ओ बमकि गेलाह.’
आब पुनः विषय पर आबी.
मैथिली कथा आ कथ्यक आयाममे परिवर्तन अवश्य भेले. मुदा, कथाक विषय आ वस्तुस्थितिमे
किछु विरोधाभास सेहो छैक. उदारहणक लेल हमरालोकनिक बूढ़-पुरान आ हमरालोकनिक पीढ़ी सेहो गामसँ कमासुत युवाक
पलायन आ खाली होइत गाममे दया नहिओ, तँ पीड़ा आ नास्टैल्जियाक भावसँ देखैत अछि.
मुदा, ई सत्य थिक, हमरालोकनिक अपने पीढ़ी शिक्षा आ रोजगार लेल गाम छोड़ने छल. ततबे
नहि, हमरा सबकेँभले किछु दिन लेल गाम लेल सुन्न लागल हो, मुदा, गामसँ बहरायब हमरालोकनिक
सफलता आ समृद्धिक द्वारिए टा नहि खोललक, आब हमरालोकनिकेँगाम घूरि जायब संभवो नहि
हएत. एखनहु महानगरमे बसैत अधिकतर युवकक शहरी जीवन, जँ पहिल प्रवासी पीढ़ीक हेतु
रोजगारक द्वारि खोलैछ, तँ विस्थापन अगिला पीढ़ीक हेतु शिक्षा-समृद्धि- आ upward mobility क द्वारि खोलैछ. ई सब अवसर गाममे उपलब्ध नहि छैक. पलायनक ई
पहलू, मनुखक जीवनक सत्य केर ई फलक ग्राम्य
जीवनक काल्पनिक रोमांटिक व्यूमे देखबामे नहि अबैछ, आ ने गामसँ बहराइत युवाक स्वरमे
ई व्यक्त होइत अछि. कारण, पलायन अनेक अर्थमे मुक्ति थिकैक.
आब एही परिप्रेक्ष्यमे हमरालोकनि समकालीन मैथिली कथामे बदलैत स्वरकेँ अकानी. एहि
बीचमे विभिन्न लेखकक जे कथा हमरा पढ़बाक अवसर भेटल, ओही पर हमर वक्तव्य आधारित अछि.
सामग्रीक उपलब्धता, रूचि, आ अध्यन हमर सीमा थिक. ततबे नहि, हम एहू हेतु सजग छी, जे
हम निविष्ट विद्वान, प्रसिद्ध साहित्यकार आ सुधी श्रोताक बीच छी.
हमरा लोकनिक समाज पारंपरिक अछि. परंपरामे किछु जड़ता रहैत छैक. मुदा, सामाजिक
परिवर्तन ओ शक्ति थिक, जकर सोझाँ मनुष्य आ समाज अपनाकेँ अशक्त पबैछ. फलतः, लोककेँ बेमोनहु
परिवर्तन अंगेजय पड़ैत छैक. मुदा, ओकर मन भूतसँ अपनाकेँ पूर्णतः तोड़ि नहि पबैछ.
फलतः, विभिन्न वर्गक मैथिल युवक भले अपन भूमिसँ दूर रहथु, भूमिक माया सतत् ह्रदयकेँ सालैत रहैत छनि. ई विषय अनेक मैथिली
कथाक केन्द्रमे देखबामे अबैछ. तहिना, गाममे एसगर पड़ल वृद्धलोकनिक एकाकी जीवनक
चित्रण बेर-बेर सोझाँ अबैत अछि. जे वृद्ध धिया-पुता लोकनिक दवाबें, वा धिया-पुताक
लग रहबाक लोभें शहरमे जा कए रहब स्वीकार करैत छथि, हुनका लोकनिक हेतु शहरी जीवन
चाहे तँ जहल प्रतीत होइत छनि, वा सब सुविधाक अछैतो ‘सोनाक खोप’ भए जाइछ छनि. मुदा,
एकर बीच मज़दूर वर्गक विपन्न वृद्धलोकनिक सेहो एकाकीपनाक दंस ओहो तँ भोगिते छथि.
हिनकालोकनिक एकाकी जीवन समाजक ‘ब्लाइंड स्पॉट’ पर पड़ल रहि जाइछ.
गामक परिदृश्य पर आधारित अनेक कथा नजरि पर अबैत छि. हालमे एही विषय पर डाक्टर शंभु
शंकर झाक पोथी ‘नोर भरल आँखि’ नजरि पर आयल छल.
एक दोसर विषय जे मैथिली कथामे बेर-बेर आ अनेक ठाम अभरैछ ओ थिक रिटायर्ड नागरिक
लोकनिक उपर, घर-द्वार बेचि शहर जा कए बसि जयबाक दवाब. अनेक बेर जखन लोक एहन
प्रस्तावकेँ अंततः स्वीकार कइओ लैछ तँ कदाचित् एहन अघातक शिकार होइछ जकर चर्चा
श्याम दरिहरेक ‘कोखजाया’मे भेल छल. काल्पनिक हो वा सामाजिक सत्य, मुदा, ई समसामयिक
समस्या तँ थिके.
आब किछु आओर रचना बानगीक रूपें देखी:
पहिने हम महिला रचनाकारलोकनिसँ आरम्भ करैत छी, यद्यपि, पुरुष आ महिलामे
रचनाकारक वर्गीकरण कतेक उचित एहि पर मतक भिन्नता संभव. ओना ई रोचक थिक, मैथिली कथा
साहित्यमे भले थोड़, मुदा, नारि सहभागिता बीसम शताब्दी तीसरे चारिम दशक सबसँ आरम्भ
भए गेल छल. शाम्भवी देवीक चर्चा होइत रहल अछि. मुदा, दोसर रचनाकार- अन्नपूर्णा
देवी- जनिक कथा, ‘सासुक स्नेह’ 1934 ई.मे ‘मिथिला मोद’क एक अंकमे छपल छल तनिक
चर्चा, हमर जनैत, केवल ‘किरण’ जी केने छथि.
आब वर्त्तमान रचनाकारक रचना पर एक संक्षिप्त दृष्टि फेरी.
एकठाम विभिन्न रचनाकारक कथाक संकलन वा पोथी-पत्रिकाक उपलाब्धताक समस्या
सर्वविदित अछि. तेँ, हमरा लग मे ‘मिथिला दर्शन’क जतेक अंक उपलब्ध छल. पहिने ओकरे
उनटाओल. ओहिमे प्रत्येक सुपरिचित महिला आ पुरुष रचनाकारक कथा भेटल.
पहिल नजरि नीरजा रेणुक ‘बीआ’ आ ‘अम्मा’ पर पड़ल. दुनूक समस्या ओएह: पहिलमे अपरिचित
नेनाकेँपोसपूत बनएबाक दंस आ दोसरमे अपने सफल बेटासँ अपमान; दुनूमे माइक अवहेलना.
माता-पिताक अवहेलना एहि युगक कथाक आम ‘थीम’ थिक. ‘लांछित के ?’ शेफालिका वर्माक
पुरुष आ नारि सहकर्मीक संबंधक अंतर्द्वंद आकृष्ट केलक. मुदा, ‘पुरुष ओहीठाम ख़राब
होइछ, जतय महिला लिफ्ट दैत छैक’ आजुक युगक कामकाजी महिलाकेँ प्रायः विडंबना पूर्ण
लगतनि. तथापि, पात्रक बीचक उहापोहक वर्णन आ एहि कथाक अंत आकर्षित केलक. शेफालिका
वर्माक ‘क्षणक आवेग’मे कामकाजी नारिक जीवनक ‘पारंपरिक सत्य’क पुरानावृत्ति होइछ.
समस्या अजुको होइत दृष्टि, ‘ नारि जीबैत अछि खंड-खंड भए. ओ संपूर्ण अंतिम श्वासमे
होइत अछि’, पूर्णतामे हमरा नहि अरघल.
पन्ना झाक कथा दोसराइतमे समाजक ओहि वर्ग -नाबालिग नौकर- क चर्चा अछि जे प्रायः
कथाक विषय नहि होइछ. समय अओतैक जखन शहरी बालमज़दूर ‘Slumdog millionaire’-जकाँ वा आन प्रकारें
कथाक दोसर पक्ष- अपन अनुभूतिकेँ - कथा-जकाँ प्रस्तुत करत.
महिलालोकनिमे एक रचनामे सर्वथा नव कथाकारक कथा भेटल: ‘कोरियन बहुआसिन’ लेखिका,
सरिता मिश्र थिकीह. कथाक विषय globalized world मे समान्य मध्यवित्त दंपति जे अपन चारि कन्याक विवाह दहेज़ द’ कए केने
छथि, हुनक बालक कोरियन कन्या चुनि लैत छथिन. एहन अप्रत्याशित दुर्घटनाक कारण
मानसिक रूपें उद्विग्न मातासँ लेखकक भेट ट्रेनमे होइत छनि. दिल्लीसँ पटनाक भरि
रातुक यात्राक First person अकाउंट रोचक तँ छैके, ई भूमंडलीकरण आ परंपरागत समाजक
अपेक्षाक बीच सामाजिक द्वन्दक रोचक आयामक उत्तम चित्रण थिक.
रेणु झाक ‘ऐंठ’ समाजक एक असम्मानजनक परिपाटी- नारिक पतिक ऐंठ खयबाक प्रथाक
अस्वीकृति थिक. कथाकार अभिलाषाक ‘लगलै जेना’ मे भूमिसँ हुलकी दैत नवांकुरकेँ देखि
एक प्रौढ़ाक मनमे जीवनक नव राग अंकुरित होइत छनि. आ ओ अपन दूरस्थ पतिसँ मोबाइल पर
विडियो कॉल कय एक नव स्फूर्तिक अनुभव करैत छथि. कथाक विषय आ नव बिंब आकर्षक लागल.
विभा कुमारीक ‘हनीमून पैकेज’ मे समलैंगिकता आ वाइफ-शेयरिंग-सन सामाजिक सत्य जे एखन
धरि झाँपनक तर छल, से उजागर भेल अछि. ततबे नहि, परिस्थिति देखि पतिक चुनावक तुरत
बदलि जयबाक निर्णय, व्यवहारमे युगानुकूल
परिवर्तनक संकेत दैछ.
कथा सबहक बीच कथाकार अभिलाषाक आओरो कथा पढ़लहुँ. कथाकारक मुहे कथासँ भिन्न कोनो
कथ्य कखनो काल विचलित कए दैत छैक. तहिना लागल ‘उतरी’ पढ़िकय. समाजमे एहनो परिवार
अछि ‘जतय बेटीकेँ गरा महक उतरी टा बूझल जाइत छैक.’ आ दोसर गप आओर पैघ सत्य :
‘नैहरक लोक दहेज़मे किछु देअय, नहि देअय, मुदा, एकटा नाक जरूर दैत अछि. ओहि नाककेँ
बचयबाक लेल, चाहे जतेक पीड़ा पीब पड़ै, आक्रामक आक्रोशक तीत अर्क कंठगत कर’ पड़ै,
मुदा, नाक तँ बचा क’ राखै टा पड़ै छै.’
अभिलाषा अपन कथामे दाम्पत्य जीवनक अतिरिक्त अनेक आओर सामाजिक विषय अनने छथि, जे
एखन धरि कथाक विषय नहि छल. मुदा, एकटा गप्प जे कलाकार-कथाकारकेँ कहिओ नहि बिसरबाक
चाही, जे कथा मनोरंजनक साधन सेहो थिकैक. भाषा आ शिल्पक अभिव्यक्ति सेहो थिकैक.
तेँ, केवल ‘साउंड बाईट आ ‘डायलाग’ कतेक बेर कथाकेँ नारा बना कए छोड़ि दैत छैक, ओकर कथाक
गुण समाप्त कए दैत छैक.
रोमिशाक ‘भावनाक लोभ’ सेहो समसामयिक जीवनक कथा थिक. नव गप ई जे अनेक माता-पिताक
जीवन संध्यामे, बेटीलोकनि माता-पिताक भावनात्मक शून्यताक खाधि भरैत छथिन, देखभाल
करैत छथिन. एकर संबंध नारिक आर्थिक स्वतँत्रता-समृद्धिक अतिरिक्त वैचारिक परिवर्तनसँ
सेहो छैक. बहुत दिन पूर्व बरेली मिलिट्री अस्पतालक लेबर रूमक द्वारिक ऊपर एकटा
स्लोगन पढ़ने रही, से स्मरण भए आयल. स्लोगन रहैक: Son is a son till he gets his wife, daughter is a daughter all her life.
समाजमे माय-बाप प्रति बेटी सभक मनमे दायित्वबोध बढ़ि रहल
छैक. ई दायित्वबोध मजदूर वर्गमे सेहो भेलैए. ई गप कमला चौधरीक कथा ‘दृष्टि’मे बरख
दसेक भिखारि छौड़ीक शब्द ’मायकेँ हमही हतियइ’ सेहो सुनैत छी. आ ओएह शब्द अमृताक मन
बदलि दैत छनि. ओ निर्णय करैत छथि, जे आब ओ मायक तर्क-वितर्क- जमायबाबूक संग रहब
हमरा सभक संस्कार नहि अछि- नहि मानतीह. ई सोचि ओ मायकेँअपना संग ल’ जयबा लेल स्टेशनसँ आपस भए जाइत छथि
मेनका मल्लिकक ‘थोपड़ी माने ..’ मे LGTBQ क विषय पर ‘थोपड़ी’क नव अर्थ उपस्थित करैत छथि.
बिभा कुमारी ‘बाबूजी नीके ना छथि’, जाहिमे तिरस्कृत माता-पिता ओहि घरकेँजाहिमे
बेटा-पुतहु रहैत छलखिन, केँबेचि, अपन अपमानक प्रतिशोध लैत छथि. ई बदलैत समयक दस्तक
थिक.
नीता झाक दू गोट कथा नजरि पर आयल. पहिल, ‘पैतालीस मिनट’. कारण, संपूर्ण कथा
रिक्शावाला मोनोलॉग-जकाँ छैक, जाहिमे कथाकारक उक्ति जे समाजक सब गारि ,माय आ
बहिनिए पर केन्द्रित किएक छैक!, एक क्षण ठमकि किछु सोचबाक हेतु बाध्य करैछ. दोसर
कथा, मिथिलाक बेटी एक नारिक कथा थिक, जकर विवाह (सीता माता-जकाँ) अवधमे भेल रहैक.
मुदा, शराबी पतिसँ आजिज भए ओ धिया-पुताकेँ ल’ कए बिहार आबि रहबाक समाधान चुनलक.
कारण, मिथिला, नैहरक अलावा नशा-मुक्त क्षेत्र छैक. कथा एतबे. मुदा, एहि विषय पर एक
गोट रोचक गप मन पड़ल. पछिला फरबरीमे हमरालोकनिक DMCH एम बी बी एस 1973 बैचक सम्मेलन रहैक. अबितीमे ड्राईवर एकटा
रोचक गप कहलनि: ‘सर, बिहारमे शराब भगवान हो गया है.’ ‘अच्छा?’ ‘जी सर. दिखता कहीं
नहीं, पर, है सब जगह. और याद कीजिए, तो, कहीं भी तुरत प्रकट हो जाता है!’ प्रायः
‘मिथिलाक बेटी’क पति हाल-सालमे बिहार नहि आयल छलाह. आ सेहो नीके. नहि, तँ एतहु
आबि, सीताक जिनगीक आफद बनि जइतथि!
समाज अनेक अर्थमे बदलि रहल अछि. समाज बदलैत छैक तँ देर-सबेर साहित्यमे ओकर
प्रतिध्वनि सहज आ स्वाभाविक थिक. जँ साहित्य परिवर्तनकेँ नहि अकानैछ, तँ से भिन्न
बात. साहित्यमे बदलैत स्वरक एक आओर विडंबना छैक. बदलैत स्वरकेँ सुनिओ कए अनठायब,
अबैत लोकक पदचापकेँ सुनिओ कए नहि सुनब. कारण अनेक छैक, मुदा, ई तँ देखिते हेबैक जे
समालोचना वा संकलनमे नव लोक, नव स्वर आ असहमतिक ध्वनिक समावेश कदाचिते भेटत. संभव
छैक, सहजतासँ उपलब्ध, वा उपलब्ध कराओल वस्तु पढ़ब जतबे कठिन छैक, ततबे सहज आ सुगम
छैक गओले गीत गायब, उद्धरणकेँ सोझे उतारि देब.
आब किछु गप नव आ आओर नव स्वरक गप करी.
मिथिला दर्शनमे हमरा दू गोट रोचक कथा पढ़बालेल भेटल. पहिल केर लेखक थिकाह,
फूलचन्द्र झा ‘प्रवीण. कथा थिक ‘परिवर्तित स्वर’. एहि कथामे नौकरी बचयबाक हेतु
कलकत्तामे एक माड़वारी व्यापारीक ओतय नौकरी करैत
गोविन्द, केवल नौकरी बंचयबाक लेल, मृत पित्तीकेँ कोठलीमे छोड़ि बाहरसँ ताला
बन्न कय दिन भरिक ड्यूटी चल जाइत छथिन. साँझमे जखन ओ काजसँ आपस अबैत छथि, तँ,
स्थानीय समाज आ मैथिल बंधुलोकनिक हुनक घोर भर्त्सना करैत छथिन. एहन विषम
परिस्थितिमे चारूकात सबसँ धकियाओल गोविन्द, यथार्थक हथियार उठा सोझे समाजपर प्रहार
करैत कहैत छथिन, ‘तँ की हम अपन परिवारक चिंता नहि कए लाशक पूजा करय लगितहुँ! जकर
ने तँ कोनो वर्त्तमान छैक आ ने भविष्य !’
एहन सत्य संभव छैक. एहि वाध्यताक कोनो इलाज नहि.
दोसर कथा थिक, ‘एकटा कलाकारक आत्महत्या’. लेखक थिकाह, वरिष्ठ कथाकार,
उपन्यासकार नाटककार सुशील. एहि एके कथामे, कथाक अनेक लेयर छैक; विस्थापनक वाध्यता,
आ एकाकी जीवन. अछूत नारिकेँनोकर रखबाक वाध्यता आ
मैथिल संस्कारक दुविधा. आ एहि सबहक बीच बहैत अछि कथाक मनोवैज्ञानिक
अंतर्धारा. पात्र थिक शिखा नामक बांग्लादेशी मुसलमान खबासिन, जनिका मलिकाइनि
हिन्दू बूझि रखने छथिन, आ कलकत्ता निवासी मैथिल, सेवा-निवृत्त जग्गू बाबू, जे
मुंबईमे बेटीक फ्लैटमे किछु दिन बिता रहल छथि. निम्नवर्गीय आवासक देबालक क्षतविक्षत छैक. ओहि प्लास्टरकेँ जग्गू बाबू
निरंतर तेना देखैत रहैत छथि, जे अंततः पत्नी आ बेटी हुनका विक्षिप्त बूझि
मनोचिकित्सक लग ल’ जेबाक विचार करैत छथिन. ओही बीच पत्नी आ बेटी जखन किछु दिन लेल
कलकत्ता जाइत छथिन. तेँ, जग्गू बाबूकेँपरिस्थितिवश बंबईएमे रहय पड़लनि; घरक
ढेउरेनाइ परम आवश्यक रहनि. आश्रममे केवल जग्गू बाबू आ पार्ट-टाइम खबासिन शिखा रहि
जाइत छनि. एहन निर्जनमे हुनका निचेनसँ देवाल देखबाक आ मनन-चिंतन करबाक अवसर भेटैत
छनि, यद्यपि, शिखा हिनका बीच-बीचमे देबालक पोचारा लेल चड़ियबैत रहैत छनि. अचानक एक
दिन हुनका देबालक टूटल-फूटल प्लास्टरक विचित्र आकृतिमे किछु प्रेरक छवि देखबामे
अबैत छनि, जकरा ओ रातिए भरिमे रंग-टीप कए देखनुक कलाकृतिमे बदलि दैत छथिन. दोसर
दिन, आकृति नव स्वरुप पर शिखाक प्रश्न, हिनक उत्तर आ शिखाक प्रत्युत्तरसँ जग्गू
बाबूक मनमे चिंता आ लज्जाक एहन भावक उदय होइत छनि, जे अगिला रातिए जग्गू बाबू ओहि
चित्रकलाकेँ पोतिकए नष्ट कए दैत छथिन.’ दोसर दिन कलाकृतिक एहन दशा देखि शिखा चकित
रहि जाइछ. ओ कहैत छनि, ‘ अहाँ कलाकारक हत्या कए देल.’
एहि कथा सभक बीच किछु सिद्ध-प्रसिद्ध कथाकारक एहनो कथा देखबामे आयल जे ने
तर्कसंगत छैक, ने मनोरंजक. लंबा-लंबा कथा आ उबाऊ कथोपकथन. एकेटा प्रासंगिकता-
कथाकारक प्रसिद्ध नाम. मुदा, एतय ओ चर्चाक विषय नहि. कतहु-कतहु हमर अपनो कथा सबहक
अभरल, मुदा, ओहो एतय चर्चा विषय नहि.
अकानल स्वरमे किछु सुपरिचित कथाकार छथि. विषय समसामयिक आ प्रासंगिक अछि.
शिक्षा, प्रतिभा, आ श्रमसँ अर्जित अपन सामाजिक ओहदाक बलें अपन इच्छाक अनुकूल नारिक
जीवन-पद्धतिक चर्चा एहि कथा सबमे भेल अछि. अन्य कथामे एखन धरि झाँपन देल सामाजिक
सत्यकेँ उघारि, जीवनक सार्थकताक हेतु लोक मनोनुकूल निर्णय लए रहल अछि सेहो कथा
सबमे स्पष्ट अछि.
मुदा, मैथिली कथामे एखनो ओहि अभिव्यक्ति अभाव अछि जे समाजक भूमंडलीकरणक संग
कथामे आबि रहल अछि. एकटा गप आओर. अधिकतर रचनामे घटनाक वर्णन भेटल. अपन गप कहबाक
हेतु हम पुनः धूमकेतुक शब्दक दोहरबैत, हुनके शब्दमे कहब, ‘रचनाक ओ भावभूमि’, जकरा
धूमकेतु ‘जीवनक निस्तार’ कहैत छथि, आ
हुनके शब्दमे, ‘जत’ निरंतर गहनतम संघर्ष चलैत रहैत छैक’, ‘मनुक्खक’ ओहि ‘संघर्षपूर्ण अंतस स्वयं सँ लड़बाक सनातन
युद्धक्षेत्र’क कथा कदाचित् एखनो कम आबि
रहल अछि.
अंतमे ई अवश्य कहब, जे मैथिली कथाक स्वरुपमे भले बहुत अंतर नहि भए रहल अछि,
कथ्यमे परिवर्तन देखार अछि. बिभा कुमारीक ‘बाबूजी नीके ना छथि’,कमलेश प्रेमेन्द्रक
‘निर्णय’ तथा ‘जितेंद्र नाथ ‘जीतू’क ‘सरप्राइज गिफ्ट’ आकृष्ट केलक’. तथापि, मैथिली कथा समकालीन भारतीय कथा साहित्यक
बीच कतेक समकालीन अछि, ई विवेचनाक विषय थिक. मुदा, एहन कथा जे एकाएक सूतलमे जगा
दियए, बंदूकक गोली-जकाँ लागय, निर्भीकतासँ अप्रिय सत्यकेँ अभिव्यक्त करय, सामाजिक
विसंगतिकेँ ठाई-पठाई व्यंगक संग प्रस्तुत करय तकर अभाव छैक. ऊपरसँ एहन कथा जकर अंत
twist in the tale-जकाँ चमत्कृत कए दियअ, हमरा तेहनो
कथाक दर्शन नहि भेल. हमरा लोकनिक कथामे एखनो ग्रामीण
विपन्न-वृद्ध-परित्यक्त आ अल्पसंख्यक, अल्पसंख्यकेक कोटिमे छथि. तथापि, ओकर चर्चा
नहि छैक से नहि: रोमिशाक कथा ‘भय’मे भागलपुर दंगामे एकटा हिन्दू बच्चा अपन गराक
हनुमानी, आफताबक गरदनिमे पहिरा अपना अंगनामे आनि ओकर जान बचओने रहैक. ‘भय’ कथासँ
हमर अपन कथा ‘शिवचंद’ जे भारतक विभाजनक समयक कथा थिक, स्मरण भए आयल.
समाजिक न्यायक चर्चा होइत रहैए. किन्तु, एखनहु बहुत किछु बदलबी
बाँकी छैक. एहि विन्दुकेँ कनेक स्पष्ट करैत छी. हम सालमे एक-दू बेर गाम जाइत छी.
ओतय किछु दिन रहैत छी. गामक प्रवासमे भोरुका टहलानमे हम गाम नाड़ीक स्पन्दन अनुभव
करबाक प्रयास करैत छी. वर्ष 2024 यात्रामे एक दिन निकलल रही. हमरा गाममे टोल परसँ
कोम्हरो विदा हएब बाट आमक गाछीए-कलम बाटें छैक. आमक मास रहैक. देखल, बाटक कातमे आमक गाछ सब आमसँ
लदल. कलममे एकटा छोट खोपड़ी. खोपड़ीक लगहि, पीच सड़कक कातहि एक मध्यवयसाहु व्यक्ति
कुर्सी
पर बैसल रहथि. लगमे एकटा कुर्सी आओर राखल. हम बाटक पूब दिसक गाछ दिस लक्ष्य कए
पुछलियनि,’ ई आम
किनकर थिकनि ?’
‘मोदाइ मालिकक’. ‘आ
ई? अहाँक थिक?’ हम
बाटक पछबारि कातक
नव गछुली, जे आमक झाबा सबसँ लुधकल रहैक, तकरा लक्ष्य करैत पुछलियनि. ‘नै
मालिक. हम तँ किछु नहि छी. बुझू हम तँ सुगरक गूह थिकहुँ.’
ग्रामीणक एहन उक्ति पर हमर मोन विरक्त भए गेल. हम कहलिअनि,’एना जुनि कहिऔक’. ‘जी, ठीके
कहल-ए.’ ओ अपन गपक समर्थन करैत कहलनि.
हम हुनका लग राखल खाली कुर्सी पर बैसि गेलहुँ. कनेक परिचय पात कयल. मजदूर-किसान. नाम-जाति दूर रहओ. हम पुछलियनि.
‘घर कोन ठाम अछि?’ओ
आंगुरसँ कनिएक दूर पर निर्माणाधीन पक्का मकान दिस संकेत केलनि.
हम कहलिअनि, ‘अपन घर अछि. गुजर अपने करैत छी. तखन एना
किएक कहैत छियैक ?’
जवाबमे ओ अनेक गप कहलनि, जाहिमे ग्रामीण जीवनमे होइत
अनेक परिवर्तन,
जेना, ध्वस्त होइत पुरान, ऊँच घर-परिवारक धन-संपत्तिक ह्रास आ ओही
संपत्तिक बलें नव
स्वामी सबहक उदय, सरकारी
सुविधाक सत्य,
आ माता-पिताक प्रति शहर
दिस जीविका लेल जाइत अनेक युवक लोकनिक उदासीनताक अनेक झलक भेटल. मुदा, एकटा आश्चर्यजनक विषय सुनब एखन बाँकीए छल. ओ कहलनि,’
की कहब सरकार. डीह ले’ फल्लां मालिकक नाति पैसा नेने रहथिन. रजिस्ट्री नहि भेल
रहैक. बाटा-बाटीमे कएक बरिस बीति गेलैक. दोसर भाई एलखिन तँ कहलियनि. तँ कहलखिन,
‘हमरा नहि बुझल अछि.’ फेन पूरा पाई देलियनि. आब घर बनबै छिऐक.’
दोसर विषय, जेना सर्वविदित अछि, गामसँ सब वर्गक पलायन आम थिक. अशिक्षित मज़दूरक बीच पलायनसँ हिन्दू आ मुसलमान दुनू समान रूपें प्रभावित अछि. तथापि, हमरा अपन गामक छोट मुस्लिम समुदायक आर्थिक
स्थिति हिन्दू मज़दूर वर्गक वनिस्बत बहुत बेसी
कमजोर लागल. स्कूलहुमे मुसलमान नेना सबहक उपस्थिति नहिए-जकाँ. हिनका लोकनिकेँइंदिरा आवास योजनाक
लाभ सेहो कदाचिते भेटलनि-ए, से
अनेको गोटे गपक क्रममे कहलनि. प्रमाण
आँखिक सोझाँए देखलिऐक. माने,
गाममे अर्थ, आवास
आ शिक्षाक दृष्टिए मुसलमान समुदाय आन वर्गसँ निश्चय पछुआयल अछि. यद्यपि सब किछु पंचायतक हाथमे छैक. ज ई समस्या आम थिक,
तं, समाजक ई पक्ष एखनो मैथिली कथाक ‘ब्लाइंड स्पॉट’ पर अछि. परिवर्तनक स्वरमे ई
कतहु देखार नहि आओत. ओहुना, साहित्यक मुख्यधाराक दृष्टि समाजक प्रत्येक समुदाय पर
नहि पड़ैछ, ओ सबहक कथा नहि कहि पबैए. कर्नाटकक मुस्लिम समुदायक कथा हमरा लोकनि ओही
समुदायक बानु मुश्ताककहि स्वरमे सुनल.
सारांशमे, मैथिली कथा बदलि रहल अछि. एहिमे कामकाजी युवालोकनि आगू छथि. समकालीन
समस्या कथाक मूल स्वर अछि. फिक्शन, आ प्रयोगक अभाव अछि. राष्ट्रीय स्तर पर पाठककेँआकृष्ट
करबा योग्य कतेक मैथिली कथा आबि रहल अछि, वा नहि, हमरालोकनि स्वयं अनुमान करी.
तथापि, एतबा तँ अवश्य जे, बदलाव गति आओर बढ़बाक चाही. भिन्न विषयक, विविधताक,
स्वाद आ स्वर, शैली आ उपभाषाक कथा चाही. मुदा, पाठक तँ होअय. हमरा जनैत, जखन गामक नव शिक्षितवर्ग
मनोरंजनक लेल मैथिली कथा पढ़य लगताह, वा जखन हुनकालोकनिक मनोरंजनक अनुकूल कथा
उपलब्ध हएत तँ संभव अछि, कथाक गाछ नव-नव पल्लव दियय. मुदा, लगैत नहि अछि?, व्हाट्सएप
आ फेसबुकक युगमे ई मनोरथ ‘मुंगेरी लालक हसीन सपना’ थिक? ओना कोन ठेकान, संभव अछि,
सोशल मीडियाक इएह विधा सब अंततः कथा-साहित्यक संजीवनी साबित होअए, ओकर माध्यम बनय,
ओकरा गतिशील बनाबय.
(एहि लेखक किछु अंश श्रीरंगापत्तनम् मे 24 दिसंबरक दिन आयोजित 'नीर कथाकार सम्मेलन 2025' मे अपन संक्षिप्त वक्तव्य-जकाँ हम प्रस्तुत केने रही.)
नेपथ्यसँ अबैत हाक: सिरहाक दूभि सगरमाथाक चोटी पर पहुँचबाक संकेत
पाठकीय प्रतिक्रिया
सिरहाक दूभि सगरमाथाक चोटी पर पहुँचबाक संकेत
छपाईक आविष्कारक पूर्व मनीषी लोकनिक सृजन/चिन्तनक आनन्द लोक सुनिए कए लैत छल
हएत. पछाति, जखन पोथी छपब आरंभ भेलैक, तैओ छपल साहित्य आ काव्यपाठक संप्रेषणीयताक
सीमा छलैके. अर्थ ई जे पोथीमे लिखल काव्यक भाव पाठक धरि ओतेक सहजतासँ नहि पहुँचैत
छैक, जतेक कविता पाठ वा गाओल गीत श्रोताकेँ प्रभावित करैछ. तेँ, पाठकीय
प्रतिक्रिया वा समीक्षाक स्थान पर पाठककेँ जँ कविक चुनल उक्ति सुनबा लेल भेटनि तँ प्रायः
कविताक गुण-अवगुण आ नीक-बेजायक विचार सुलभ भए सकैछ. ओहुना, विज्ञानक परंपरा छैक जे
पहिने सोझे तथ्य प्रस्तुत कयल जाय, निष्कर्ष आ विचार पछाति.
तेँ, पहिने कवि विकास वत्सनाभक ‘नेपथ्यसँ अबैत हाक’ नामक मैथिली कविता
संग्रहसँ कविएक शब्दमे किछु चुनल उक्ति सुनू, जे हमरा नीक लागल. एतबा तँ अवश्य जे
कविता जखन गेयताक कड़ाम तोड़ि यथास्थितिक मेहसँ मुक्त भेल तखन पाठककेँ शब्द आ भावेक
मोह रहि गेलैक; से छुटबो कोना करितैक? कविक शब्द, उक्ति आ भावे कविताकेँ सार्थक
रखने अछि, ओकर प्रासंगिकताकेँ अक्षुण्ण रखने अछि. हमरा जनैत, पाठकीय प्रतिक्रिया
सेहो किछु एही तरहें लिखल जाय, जाहिसँ समीक्षक साहित्यक गुण-दोषकेँ अपना शब्दमे
व्यक्त करबासँ पहिने रचनाकरक शब्द आ उक्तिएकेँ बाजय देथि. एहिसँ पाठक समीक्षकक
विचारसँ प्रभावित नहि हेताह, पाठकीय प्रतिक्रियाक पूर्वाग्रहसँ मुक्त रहताह.
कवि विकास नवयुवक छथि, मुदा, नवसिखा नहि. ई सुपरिचित छथि आ हिनक परिचय कहैत
अछि जे ‘अल्प समयमे प्रचुर ख्याति अर्जित कयने छथि.’ हम देखने सुनने नहि छियनि, से
भिन्न बात. ओहुना साहित्यकारक असल परिचय ओकर साहित्य थिकैक.ओना आरंभहिमे अपन
वक्तव्य ‘एहि बाटपर कोनहुना, किछु चेन्ह द’ सकी’मे कवि विकास, कविता, आ अपन सृजन
मादे विचार तँ स्पष्ट करिते छथि, संगहि ओ ‘मैथिली काव्य यात्राक बाट पर अपन.....
दायित्व सेहो स्वीकार करैत’ छथि.
आब नेपथ्यसँ अबैत हाककेँ उनटाबी. मुदा, पहिने कनेक बिलमि, पोथीक नाम पर ध्यान दी. ‘नेपथ्य’ शब्द
नाट्यकलासँ संबंध रखैछ. मुदा, एहि ठाम हमरा जनैत, नेपथ्यक अर्थ पृष्ठभूमि (background) थिक. ‘हाक’ थिकैक ध्यान आकृष्ट
करबाक हेतु तेज स्वरमे शोर करब. मुदा, हमरा जनैत, ई काव्य संकलन नेपथ्यक हाक नहि,
नेपथ्यमे होइत गतिविधिक स्वर जे भले कविकेँ लक्ष्य कए नहिओ कहल गेल हो, तथापि ओ
नेपथ्यक स्वरकेँ अकानैत छथि. समाज आ विश्वमे होइत हलचलक प्रति खाहे ओ भारत, नेपाल,
फिलिस्तीन वा अमेरिकामे हो ओ ‘तानि कमरिया पड़े रहो’- सन निरपेक्ष मनुख नहि छथि.
एखन संवेदनशीलताक ह्रासक वा स्वतँत्र अभिव्यक्ति पर विश्व भरि होइत दमन केर अनेक कारण
कलाकार-साहित्यकार- पत्रकार मौन आ मूक छथि. मुदा, एहि पोथीमे जे किछु अछि,
पृष्ठभूमिसँ अबैत स्वरक प्रति कविक प्रतिक्रिया थिक, अपना आँखिए देखल यथार्थक बोधक
अभिव्यक्ति थिक.
एहि पोथीमे अनेक विचार विन्दु अछि. मुदा, किछु जे बेर-बेर भिन्न-भिन्न रूपें
कविक दृष्टि पथपर अबैत छनि, ओ थिक मनुखक मूलोच्छेद; गामसँ ओकर उपटब, भकोभंड
घर-आँगन, आ जलवायु परिवर्तन आ पर्यावरणक प्रदूषण. मुदा, एहि सबहक बीच ठाम-ठाम जीवन
प्रति अनुरागक अभिव्यक्ति आ विलक्षण उपमा मन मोहि लैछ. हिनक दृष्टि ने मात्र तात्कालिक, छनि आ ने अपने अड़ोस-पड़ोस धरि सीमित
छनि. तथापि, अशक्तताक कारण किछु निरपेक्षता अवश्य अभिव्यक्त भेल अछि. अस्तु, आब पुनः
विषय पर आबी.
प्रकृति आ पर्यावरणक प्रति सचेत, विकास प्रेमसँ अभिभूत छथि; द्रष्टव्य थिक, ‘कविक
घोषणापत्र’ :
अपन नहपर एक मिसिया माटि धयने
पृथ्वीक निरीक्षण करैत
घोषणापत्रक शीर्षक लिखलनि अछि कवि
तेसर विश्वयुद्धक उपचारक हेतु
एकमात्र औषधि होयत प्रेम
ओ स्वीकार करैत छथि, ‘गाजा-पट्टीक गदौस पर ठाढ़ भेल/ तकैत छी ओहि नेनाक बाट / जे
भोरे बहरायल छल सिंगरहार बीछय’............. कारण, ‘अग्निवर्षाक विरुद्ध यैह अछि
हमर हस्तक्षेप’.
‘कखन हरब दुःख मोर’ केन्द्र विन्दुमे मिथिला अछि. एहि कवितामे जखन पढ़ल ‘अछैते
पानियें छछरिया कटबाक लेल लचार मिथिला’ तँ मन पड़ि आयल दिसंबर 2023 क अपन सुपौल
यात्रा; ओतय भोजनक संग, पीबाक हेतु बोतलबंद पानि भेटल तँ क्षुब्ध भए गेलहुँ. एहन
सदानीरा कोसीक प्रांगण आ पेयजलक एहन अकाल. पछाति, बुझबामे आयल जे कुसहामे वर्ष
2008 मे कोसीक बान्ह टुटलाक पछाति ओहि इलाकाक जल विषाक्त भए गेल छैक. मुदा, उपाय
की? सुनू:
एहि देशक संसदक प्रश्नकालमे उठैत होयत जतेक प्रश्न
ताहिसँ बेसी प्रश्न अछि एसगर मिथिला लग
जखन कि प्रश्न पूछब एखुनका समयमे
बमोजिम भ’ गेल अछि कोनो राष्ट्रीय अपराध
तेँ एहि प्रश्नकालमे हेराय जाइत अछि मिथिला
मुदा, जँ कवि एतबो कहबाक साहस केलनि तँ, पीठ अवश्य ठोकबाक चाही! मुदा, हताशा
देखल जा सकैछ . कारणो छैक. अनेक कारणसँ गामसँ बहरा शहर जायब एक गोट बाध्यता थिक, आ
एकटा मुक्ति सेहो. मुदा, जे गाममे रहि आयल अछि, तकरा सोझाँ गाम आ शहरक अंतरे टा
नहि छैक, ओकर मनमे शहर केर गाम हयबाक सेहंता एखनो बाँकी छैक. कारण, कविएक शब्दमे
सुनू:
जतेक लोकगर अछि जे नगर
ततेक असगर अछि ताहि ठामक लोक
ओना तँ एसगर लाल काकी सेहो रहैत छथि
तैयो सवा लाख पार्थिव एकदिना बनबैत अछि गाम
......................................................
नगरकेँ गाम होयब शेष अछि एखन
तहिना परंपराक नेहें सानल मार्मिक चित्र अछि ‘भरदुतिया’:
सिन्नूर-पिठार लगा बहिन पढ़ैत अछि लोकमंत्र
लोटाक जलसँ भरैत अछि मटकूड़
सम्बन्धक धार बहय लगैत अछि युग-युगक
संस्कृतिये संजोगल अछि अरुदा सम्बन्धक
बहिन भरदुतियामे
अपन नहि भाइक अरुदा मंगैत अछि.
एहूसँ सजीव चित्रण भेल अछि, ‘माँ’ मे :
छठिक घाट पर
पीयर नुआ पहिरने पानिमे ठाढ़ भेल
हरियर कचोर सेमारमे
फुलायल कनैलक गाछ लगैत अछि माँ
..........................................
सम्बन्धक गहबरमे सिनेहक जरैत दीप अछि माँ
मुदा, जे चिंता मैथिलहि टाकेँ नहि, बल्कि, पलायनक जे घून मिथिलासँ केरल धरिक गामकेँ
भुस्सा बनओने अछि, तकर अभिव्यक्ति भेल अछि ‘आपादान कारक’मे:
कुलदेवीपर विसर्जित होयबाक अभिलाषमे
बहुत दिन धरि हरिआयल रहल दूभि
कतेको मास पानिमे
आकंठ डूबल भुटिया धान
हेरि रहल देबउठाउन एकादशीक बाट
मचानपर चतरैत रहल पान
बाबा सहस्रशीर्षा पढ़ैत
ओगरैत रहलाह दलान
द्विरागमनक असोआसमे
बाबी पुछैत रहलीह कुशल-क्षेम
................................
बाबीक हाथेँ छछारल भीतसँ
भहरैत माटिक विलापमे
आङनसँ निपत्ता भेल अछि
तुलसी, दूभि, फूल, पान
अगबे काँटे विस्तार पओलक अछि आङनमे
एहने चिंता अछि ‘ग्लोबल गामक गीतमे’ :
एहि गामक लोक
अपन कान्हपर कनहेठने अछि ग्लोब
आँजुरमे हँसोथने अछि सातो समुद्रक पानि
धरतीसँ अकास धरि रखने अछि अबरजात
अपन डीह उजाड़ि क’
चिनबार पर उपजबैत अछि कुश
प्रकृतिक विनाश आ मनुखक हताशा एकहि संग अभिव्यक्ति भेल अछि, ‘खेमचंद आ पहाड़ी चिड़ै’मे
‘कहैत अछि खेमचंद
हजूर परुकाँ आयल रहै पहाड़सँ जोड़ा चिड़ै
आ एबरी साओनमे भ’ गेलै राँड
साहुजीक बेटा करेजमे भेंसिक देलकै छर्रा
चिड़ै क जाननाकेँ
पीठपर डोको लदने स्त्रीगणक हेंज / मद्धिम भास पर गबैत अछि ‘असारे गीत’
‘शिरको फूल शिरमै सुक्यो’
आधा सुक्यो मनैमा’
बीच-बीचमे उचित विहित सेहो आ खोंइचा छोड़ाकए. जेना “धर्मसत्ता’
इतिहास गवाह अछि एकर
ने अल्लाह सलामति रखलनि कोनो राजसत्ता
ने ईश्वर विजय दिऔलनि मंदिर बनेनिहारकेँ
...................................
मंदिर-मस्जिदक पाँजरमे
एक टा अस्पताल बनाओल जयबाक चाही
जतय मंदिर-मस्जिद बनैत अछि
अस्पतालक खगता बढ़ि जाइत अछि ततय
तहिना कविक उपहासो करैत छथि आ चिंतित सेहो छथि. उदाहरण अछि, ‘के पांगत पाखंड’.
एहि गाछक अधबैसू ठाढ़ि
...........................
बाधित करैत अछि गामक अबरजात
....................................
तेँ की केओ काटि देतैक पीपरक ठाढ़ि
.....................................
मुदा, के पांगत पाखंड
मुदा, पाखंड आ अंधविश्वास टूटि नहि रहल अछि, से नहि. ‘प्रवासी’क एकटा उद्धरण देखल
जाय:
जतरा काल / नहि छुलकै चिनबार/ नहिए टेकलकैक पीपर तर माथ
कहाँ पुछलकैक पुरहित कक्काकेँ ? कहिया पड़ैत छैक भदवा ? कहिया पड़ैत छैक मसांत
मुदा, मानसिकताक परिवर्तनक आधार थिकैक, यथार्थ आ जिजीविषा. तेँ, प्रवासक
‘फज्झतिसँ/ नहि गरमाइत छैक ओकर खून? नहि असवार होइत छथिन / दीना-भद्री आकि सलहेस’.
एहि सबहक बीच जीवनक अनुराग भोरुका सुरुजक किरण-जकाँ हुलकी दैत चमकि उठैछ:
नहिओ किछु होइत
बहुत किछु भ’ जाइछ रातिक विस्तारमे
अन्हरियाकेँ चीरैत ट्रेन चलैत रहैत अछि
दू टा मोनमे सिनेहक इजोरिया फुटैत रहैत अछि
मुदा, समाजमे अनेक वर्गक यथार्थ भिन्न-भिन्न होइछ, आ सोच सेहो. तेँ, ‘अनाहूत समय:
आहूत विमर्श’ मे संवेदना कविकेँ जाहि दिस ल’ जाइत छनि, ओहि दिस सैनिकक सोच कहियो
ने जाइत छैक! मुदा, टीसनक ओलतीमे सिसकैत
नवकनियाकेँ देखि कवि सोचैत छथि;
आइ चतुर्थीक प्रात/ हिनक प्रियतम जाइत छथिन लेह
घुरि सकथिन आपस
एहि प्रश्नचिह्न पर/ के लगाओत पूर्ण विराम ?
मुदा, सैनिक सदा जितबाक मानसिकतासँ मोर्चा दिस अग्रसर होइछ.
एहि कविता-संग्रहमे प्रचुर संख्यामे ग्राम्य जीवनक एहन शब्द भेटत जे थिक तँ
चिन्हल-जानल, मुदा, आब विलुप्त भए रहल अछि. ‘सझिया दलान’ एहन शब्द सबसँ भरल अछि.
एहन शब्द सब अओरो बहुतो ठाम अभरल आ नीक लागल.
अंतमे एहि संग्रह किछु एहन कविताक चर्चा जे युवा-मनक कोमल भावक सहज उदाहरण तँ
थिके, ओहिमे उपयुक्त उपमा ग्राम्य-जीवनक हरियरी आ लालीसँ अछि. कहय नहि पड़त, विकासक
ह्रदय गामहि बसैत छनि.
अनुरागक अतिरेक ‘गुड्डी भेल मोनमे’ व्यक्त होइछ:
जखन बालकोनीमे बैसल/ बसातक सिहकीमे /उधियाइत अछि अहाँक फुजल केस / हमरा मन पड़ैत
अछि बाध / बाधक हत्ता / बाधक हत्ता पर छिरहरिया खेलाइत साबे
अयनाक सोझाँ शृंगार केने ठाढ़/ अहाँक ठोरक टुहटुही देखि ? हमरा मोन पड़ैत अछि
चुमाओन/ चुमाओनक डाला / डालामे गाँथल अजोह बाँसक सिक्की
आ अंतमे यक्ष-प्रश्न ‘विद्रोह सनेस’मे. ई मिथिला आ मैथिलक हेतु अछि:
कुल-खूंटक रच्छा / अगबे दुर्गा सप्तशतीक पाठे नहि / बलि-प्रदान सेहो मंगैत छैक?
अपना सब विद्रोही कहिया हेबैक भाई ?
पढ़ू. ‘नेपथ्यसँ अबैत हाक’क स्वाद अवश्य भिन्न लागत. आ जँ कीनि कए (?) पढ़ब तँ घाटा
नहि लागत! हँ, ई संक्षिप्त पाठकीय प्रतिक्रिया अहाँक हेतु बाहरसँ पोथीक भीतर
हुलकी-मात्र थिक. संपूर्ण पोथीक गुण-दोषक विस्तार तँ अपने अनुभवक विषय थिक.
नेपथ्यसँ अबैत हाक : मैथिली कविता संग्रह
रचनाकार: विकास वत्सनाभ
प्रकाशक: किसुन संकल्प लोक, सुपौल-852131
मूल्य: रु. 200/-
मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान
कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म लेख मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...
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