पाठकीय प्रतिक्रिया
सिरहाक दूभि सगरमाथाक चोटी पर पहुँचबाक संकेत
छपाईक आविष्कारक पूर्व मनीषी लोकनिक सृजन/चिन्तनक आनन्द लोक सुनिए कए लैत छल
हएत. पछाति, जखन पोथी छपब आरंभ भेलैक, तैओ छपल साहित्य आ काव्यपाठक संप्रेषणीयताक
सीमा छलैके. अर्थ ई जे पोथीमे लिखल काव्यक भाव पाठक धरि ओतेक सहजतासँ नहि पहुँचैत
छैक, जतेक कविता पाठ वा गाओल गीत श्रोताकेँ प्रभावित करैछ. तेँ, पाठकीय
प्रतिक्रिया वा समीक्षाक स्थान पर पाठककेँ जँ कविक चुनल उक्ति सुनबा लेल भेटनि तँ प्रायः
कविताक गुण-अवगुण आ नीक-बेजायक विचार सुलभ भए सकैछ. ओहुना, विज्ञानक परंपरा छैक जे
पहिने सोझे तथ्य प्रस्तुत कयल जाय, निष्कर्ष आ विचार पछाति.
तेँ, पहिने कवि विकास वत्सनाभक ‘नेपथ्यसँ अबैत हाक’ नामक मैथिली कविता
संग्रहसँ कविएक शब्दमे किछु चुनल उक्ति सुनू, जे हमरा नीक लागल. एतबा तँ अवश्य जे
कविता जखन गेयताक कड़ाम तोड़ि यथास्थितिक मेहसँ मुक्त भेल तखन पाठककेँ शब्द आ भावेक
मोह रहि गेलैक; से छुटबो कोना करितैक? कविक शब्द, उक्ति आ भावे कविताकेँ सार्थक
रखने अछि, ओकर प्रासंगिकताकेँ अक्षुण्ण रखने अछि. हमरा जनैत, पाठकीय प्रतिक्रिया
सेहो किछु एही तरहें लिखल जाय, जाहिसँ समीक्षक साहित्यक गुण-दोषकेँ अपना शब्दमे
व्यक्त करबासँ पहिने रचनाकरक शब्द आ उक्तिएकेँ बाजय देथि. एहिसँ पाठक समीक्षकक
विचारसँ प्रभावित नहि हेताह, पाठकीय प्रतिक्रियाक पूर्वाग्रहसँ मुक्त रहताह.
कवि विकास नवयुवक छथि, मुदा, नवसिखा नहि. ई सुपरिचित छथि आ हिनक परिचय कहैत
अछि जे ‘अल्प समयमे प्रचुर ख्याति अर्जित कयने छथि.’ हम देखने सुनने नहि छियनि, से
भिन्न बात. ओहुना साहित्यकारक असल परिचय ओकर साहित्य थिकैक.ओना आरंभहिमे अपन
वक्तव्य ‘एहि बाटपर कोनहुना, किछु चेन्ह द’ सकी’मे कवि विकास, कविता, आ अपन सृजन
मादे विचार तँ स्पष्ट करिते छथि, संगहि ओ ‘मैथिली काव्य यात्राक बाट पर अपन.....
दायित्व सेहो स्वीकार करैत’ छथि.
आब नेपथ्यसँ अबैत हाककेँ उनटाबी. मुदा, पहिने कनेक बिलमि, पोथीक नाम पर ध्यान दी. ‘नेपथ्य’ शब्द
नाट्यकलासँ संबंध रखैछ. मुदा, एहि ठाम हमरा जनैत, नेपथ्यक अर्थ पृष्ठभूमि (background) थिक. ‘हाक’ थिकैक ध्यान आकृष्ट
करबाक हेतु तेज स्वरमे शोर करब. मुदा, हमरा जनैत, ई काव्य संकलन नेपथ्यक हाक नहि,
नेपथ्यमे होइत गतिविधिक स्वर जे भले कविकेँ लक्ष्य कए नहिओ कहल गेल हो, तथापि ओ
नेपथ्यक स्वरकेँ अकानैत छथि. समाज आ विश्वमे होइत हलचलक प्रति खाहे ओ भारत, नेपाल,
फिलिस्तीन वा अमेरिकामे हो ओ ‘तानि कमरिया पड़े रहो’- सन निरपेक्ष मनुख नहि छथि.
एखन संवेदनशीलताक ह्रासक वा स्वतँत्र अभिव्यक्ति पर विश्व भरि होइत दमन केर अनेक कारण
कलाकार-साहित्यकार- पत्रकार मौन आ मूक छथि. मुदा, एहि पोथीमे जे किछु अछि,
पृष्ठभूमिसँ अबैत स्वरक प्रति कविक प्रतिक्रिया थिक, अपना आँखिए देखल यथार्थक बोधक
अभिव्यक्ति थिक.
एहि पोथीमे अनेक विचार विन्दु अछि. मुदा, किछु जे बेर-बेर भिन्न-भिन्न रूपें
कविक दृष्टि पथपर अबैत छनि, ओ थिक मनुखक मूलोच्छेद; गामसँ ओकर उपटब, भकोभंड
घर-आँगन, आ जलवायु परिवर्तन आ पर्यावरणक प्रदूषण. मुदा, एहि सबहक बीच ठाम-ठाम जीवन
प्रति अनुरागक अभिव्यक्ति आ विलक्षण उपमा मन मोहि लैछ. हिनक दृष्टि ने मात्र तात्कालिक, छनि आ ने अपने अड़ोस-पड़ोस धरि सीमित
छनि. तथापि, अशक्तताक कारण किछु निरपेक्षता अवश्य अभिव्यक्त भेल अछि. अस्तु, आब पुनः
विषय पर आबी.
प्रकृति आ पर्यावरणक प्रति सचेत, विकास प्रेमसँ अभिभूत छथि; द्रष्टव्य थिक, ‘कविक
घोषणापत्र’ :
अपन नहपर एक मिसिया माटि धयने
पृथ्वीक निरीक्षण करैत
घोषणापत्रक शीर्षक लिखलनि अछि कवि
तेसर विश्वयुद्धक उपचारक हेतु
एकमात्र औषधि होयत प्रेम
ओ स्वीकार करैत छथि, ‘गाजा-पट्टीक गदौस पर ठाढ़ भेल/ तकैत छी ओहि नेनाक बाट / जे
भोरे बहरायल छल सिंगरहार बीछय’............. कारण, ‘अग्निवर्षाक विरुद्ध यैह अछि
हमर हस्तक्षेप’.
‘कखन हरब दुःख मोर’ केन्द्र विन्दुमे मिथिला अछि. एहि कवितामे जखन पढ़ल ‘अछैते
पानियें छछरिया कटबाक लेल लचार मिथिला’ तँ मन पड़ि आयल दिसंबर 2023 क अपन सुपौल
यात्रा; ओतय भोजनक संग, पीबाक हेतु बोतलबंद पानि भेटल तँ क्षुब्ध भए गेलहुँ. एहन
सदानीरा कोसीक प्रांगण आ पेयजलक एहन अकाल. पछाति, बुझबामे आयल जे कुसहामे वर्ष
2008 मे कोसीक बान्ह टुटलाक पछाति ओहि इलाकाक जल विषाक्त भए गेल छैक. मुदा, उपाय
की? सुनू:
एहि देशक संसदक प्रश्नकालमे उठैत होयत जतेक प्रश्न
ताहिसँ बेसी प्रश्न अछि एसगर मिथिला लग
जखन कि प्रश्न पूछब एखुनका समयमे
बमोजिम भ’ गेल अछि कोनो राष्ट्रीय अपराध
तेँ एहि प्रश्नकालमे हेराय जाइत अछि मिथिला
मुदा, जँ कवि एतबो कहबाक साहस केलनि तँ, पीठ अवश्य ठोकबाक चाही! मुदा, हताशा
देखल जा सकैछ . कारणो छैक. अनेक कारणसँ गामसँ बहरा शहर जायब एक गोट बाध्यता थिक, आ
एकटा मुक्ति सेहो. मुदा, जे गाममे रहि आयल अछि, तकरा सोझाँ गाम आ शहरक अंतरे टा
नहि छैक, ओकर मनमे शहर केर गाम हयबाक सेहंता एखनो बाँकी छैक. कारण, कविएक शब्दमे
सुनू:
जतेक लोकगर अछि जे नगर
ततेक असगर अछि ताहि ठामक लोक
ओना तँ एसगर लाल काकी सेहो रहैत छथि
तैयो सवा लाख पार्थिव एकदिना बनबैत अछि गाम
......................................................
नगरकेँ गाम होयब शेष अछि एखन
तहिना परंपराक नेहें सानल मार्मिक चित्र अछि ‘भरदुतिया’:
सिन्नूर-पिठार लगा बहिन पढ़ैत अछि लोकमंत्र
लोटाक जलसँ भरैत अछि मटकूड़
सम्बन्धक धार बहय लगैत अछि युग-युगक
संस्कृतिये संजोगल अछि अरुदा सम्बन्धक
बहिन भरदुतियामे
अपन नहि भाइक अरुदा मंगैत अछि.
एहूसँ सजीव चित्रण भेल अछि, ‘माँ’ मे :
छठिक घाट पर
पीयर नुआ पहिरने पानिमे ठाढ़ भेल
हरियर कचोर सेमारमे
फुलायल कनैलक गाछ लगैत अछि माँ
..........................................
सम्बन्धक गहबरमे सिनेहक जरैत दीप अछि माँ
मुदा, जे चिंता मैथिलहि टाकेँ नहि, बल्कि, पलायनक जे घून मिथिलासँ केरल धरिक गामकेँ
भुस्सा बनओने अछि, तकर अभिव्यक्ति भेल अछि ‘आपादान कारक’मे:
कुलदेवीपर विसर्जित होयबाक अभिलाषमे
बहुत दिन धरि हरिआयल रहल दूभि
कतेको मास पानिमे
आकंठ डूबल भुटिया धान
हेरि रहल देबउठाउन एकादशीक बाट
मचानपर चतरैत रहल पान
बाबा सहस्रशीर्षा पढ़ैत
ओगरैत रहलाह दलान
द्विरागमनक असोआसमे
बाबी पुछैत रहलीह कुशल-क्षेम
................................
बाबीक हाथेँ छछारल भीतसँ
भहरैत माटिक विलापमे
आङनसँ निपत्ता भेल अछि
तुलसी, दूभि, फूल, पान
अगबे काँटे विस्तार पओलक अछि आङनमे
एहने चिंता अछि ‘ग्लोबल गामक गीतमे’ :
एहि गामक लोक
अपन कान्हपर कनहेठने अछि ग्लोब
आँजुरमे हँसोथने अछि सातो समुद्रक पानि
धरतीसँ अकास धरि रखने अछि अबरजात
अपन डीह उजाड़ि क’
चिनबार पर उपजबैत अछि कुश
प्रकृतिक विनाश आ मनुखक हताशा एकहि संग अभिव्यक्ति भेल अछि, ‘खेमचंद आ पहाड़ी चिड़ै’मे
‘कहैत अछि खेमचंद
हजूर परुकाँ आयल रहै पहाड़सँ जोड़ा चिड़ै
आ एबरी साओनमे भ’ गेलै राँड
साहुजीक बेटा करेजमे भेंसिक देलकै छर्रा
चिड़ै क जाननाकेँ
पीठपर डोको लदने स्त्रीगणक हेंज / मद्धिम भास पर गबैत अछि ‘असारे गीत’
‘शिरको फूल शिरमै सुक्यो’
आधा सुक्यो मनैमा’
बीच-बीचमे उचित विहित सेहो आ खोंइचा छोड़ाकए. जेना “धर्मसत्ता’
इतिहास गवाह अछि एकर
ने अल्लाह सलामति रखलनि कोनो राजसत्ता
ने ईश्वर विजय दिऔलनि मंदिर बनेनिहारकेँ
...................................
मंदिर-मस्जिदक पाँजरमे
एक टा अस्पताल बनाओल जयबाक चाही
जतय मंदिर-मस्जिद बनैत अछि
अस्पतालक खगता बढ़ि जाइत अछि ततय
तहिना कविक उपहासो करैत छथि आ चिंतित सेहो छथि. उदाहरण अछि, ‘के पांगत पाखंड’.
एहि गाछक अधबैसू ठाढ़ि
...........................
बाधित करैत अछि गामक अबरजात
....................................
तेँ की केओ काटि देतैक पीपरक ठाढ़ि
.....................................
मुदा, के पांगत पाखंड
मुदा, पाखंड आ अंधविश्वास टूटि नहि रहल अछि, से नहि. ‘प्रवासी’क एकटा उद्धरण देखल
जाय:
जतरा काल / नहि छुलकै चिनबार/ नहिए टेकलकैक पीपर तर माथ
कहाँ पुछलकैक पुरहित कक्काकेँ ? कहिया पड़ैत छैक भदवा ? कहिया पड़ैत छैक मसांत
मुदा, मानसिकताक परिवर्तनक आधार थिकैक, यथार्थ आ जिजीविषा. तेँ, प्रवासक
‘फज्झतिसँ/ नहि गरमाइत छैक ओकर खून? नहि असवार होइत छथिन / दीना-भद्री आकि सलहेस’.
एहि सबहक बीच जीवनक अनुराग भोरुका सुरुजक किरण-जकाँ हुलकी दैत चमकि उठैछ:
नहिओ किछु होइत
बहुत किछु भ’ जाइछ रातिक विस्तारमे
अन्हरियाकेँ चीरैत ट्रेन चलैत रहैत अछि
दू टा मोनमे सिनेहक इजोरिया फुटैत रहैत अछि
मुदा, समाजमे अनेक वर्गक यथार्थ भिन्न-भिन्न होइछ, आ सोच सेहो. तेँ, ‘अनाहूत समय:
आहूत विमर्श’ मे संवेदना कविकेँ जाहि दिस ल’ जाइत छनि, ओहि दिस सैनिकक सोच कहियो
ने जाइत छैक! मुदा, टीसनक ओलतीमे सिसकैत
नवकनियाकेँ देखि कवि सोचैत छथि;
आइ चतुर्थीक प्रात/ हिनक प्रियतम जाइत छथिन लेह
घुरि सकथिन आपस
एहि प्रश्नचिह्न पर/ के लगाओत पूर्ण विराम ?
मुदा, सैनिक सदा जितबाक मानसिकतासँ मोर्चा दिस अग्रसर होइछ.
एहि कविता-संग्रहमे प्रचुर संख्यामे ग्राम्य जीवनक एहन शब्द भेटत जे थिक तँ
चिन्हल-जानल, मुदा, आब विलुप्त भए रहल अछि. ‘सझिया दलान’ एहन शब्द सबसँ भरल अछि.
एहन शब्द सब अओरो बहुतो ठाम अभरल आ नीक लागल.
अंतमे एहि संग्रह किछु एहन कविताक चर्चा जे युवा-मनक कोमल भावक सहज उदाहरण तँ
थिके, ओहिमे उपयुक्त उपमा ग्राम्य-जीवनक हरियरी आ लालीसँ अछि. कहय नहि पड़त, विकासक
ह्रदय गामहि बसैत छनि.
अनुरागक अतिरेक ‘गुड्डी भेल मोनमे’ व्यक्त होइछ:
जखन बालकोनीमे बैसल/ बसातक सिहकीमे /उधियाइत अछि अहाँक फुजल केस / हमरा मन पड़ैत
अछि बाध / बाधक हत्ता / बाधक हत्ता पर छिरहरिया खेलाइत साबे
अयनाक सोझाँ शृंगार केने ठाढ़/ अहाँक ठोरक टुहटुही देखि ? हमरा मोन पड़ैत अछि
चुमाओन/ चुमाओनक डाला / डालामे गाँथल अजोह बाँसक सिक्की
आ अंतमे यक्ष-प्रश्न ‘विद्रोह सनेस’मे. ई मिथिला आ मैथिलक हेतु अछि:
कुल-खूंटक रच्छा / अगबे दुर्गा सप्तशतीक पाठे नहि / बलि-प्रदान सेहो मंगैत छैक?
अपना सब विद्रोही कहिया हेबैक भाई ?
पढ़ू. ‘नेपथ्यसँ अबैत हाक’क स्वाद अवश्य भिन्न लागत. आ जँ कीनि कए (?) पढ़ब तँ घाटा
नहि लागत! हँ, ई संक्षिप्त पाठकीय प्रतिक्रिया अहाँक हेतु बाहरसँ पोथीक भीतर
हुलकी-मात्र थिक. संपूर्ण पोथीक गुण-दोषक विस्तार तँ अपने अनुभवक विषय थिक.
नेपथ्यसँ अबैत हाक : मैथिली कविता संग्रह
रचनाकार: विकास वत्सनाभ
प्रकाशक: किसुन संकल्प लोक, सुपौल-852131
मूल्य: रु. 200/-
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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.