Wednesday, March 12, 2025

कुँवर सिंह महाविद्यालय, एवं दरभंगा मेडिकल कालेज, लहेरिया सरायक अध्याय

 

 कुँवर सिंह महाविद्यालय, एवं दरभंगा मेडिकल कालेज, लहेरिया सरायक अध्याय  

१९७१ वर्षमे हमरालोकनिक इलाकामे केवल दुइए टा कालेज रहैक- झंझारपुर जनता कालेज आ सरिसब कालेज. सायंसक पढ़ाई दुनूमे कोनोमे  नहि रहैक. हमरा डाक्टर बनबाक धुनि सवार छल. ताहिसँ कम वा बेसी, कथूक कल्पनाओ नहि छल. लगसँ आओर कोनो व्यवसाय देखनहुँ नहि रहिऐक. छोट वयसमे हमरा रोगो खूब भेल. चिकित्सा लेल दरभंगा जाइ. डाक्टर लोकनिक ताम-झाम, यंत्र-उपकरण आ चमक-दमक मोहि लियअ, डाक्टरलोकनिक छवि आकृष्ट करय. रोड पर जतेक गाड़ी देखिऐक, अधिकतर डाक्टरे लोकनिक रहनि. ऊपरसँ डाक्टर बनबाक विचारक पाछू एकटा आओर प्रेरणा रहथि: स्व. किरणजी. यद्यपि हुनका हम कहिओ वैदागरी करैत देखने नहि रहियनि, मुदा, ओ वैद्य रहथि,.

एतावता मैट्रिक पास केलाक पछाति, गाममे पढ़बाक इच्छा नहि छल. मुदा, परिवारक साधन सीमित छलैक. दादा हमर उपलब्धिसँ गौरवान्वित होथि, मुदा, हाथ छुच्छ रहनि. जमीन्दारी उन्मूलनक संगहि ओ बेरोजगार भए गेल रहथि. हुनकर नौकरीमे कोनो प्रोविडेंट फण्ड, पेंशन वा ग्रैच्युटी तं रहबे नहि करनि. ऊपरसँ जहिया सेवानिवृत्त भेलाह, किछु मासक वेतन संबंधी जमीन्दारक ओतय बांकीए रहि गेल छलनि. तथापि, हुनका पाछू घूरि तकबाक प्रवृत्ति नहि रहनि, असंतोषक गप मुँहसँ नहि बहराइनि. तथापि, सुनैत छी, कहिओ काल कहथिन: ‘सब दिन तं नौकरी संबंधीएक लोकनिक केलहुँ, मुदा, एखनहुँ ओएह लोकनि बंकिऔता रखने छथि!’
फलतः, मैट्रिकक परीक्षामे अप्रत्याशित सफलताक अछैतो, आगू नहि पढ़ि सकब कि नहि, ताहिमे हमरा संदेह होमए लागल छल. मुदा, अंततः हमर संदेह निराधार प्रमाणित भेल, आ हमर जेठ भाई उदयनाथ झा प्रसिद्ध ऊधोजीक प्रयासें हमर पित्ती उमेश बाबूक ओतय हमर रहबाक व्यवस्था भेल आ हम नवजात कुँवर सिंह कालेजमे नाम लिखाओल.

कुँवर सिंह कालेजक स्थापना ओही वर्ष (१९७१ ई.) मे भेल रहैक. संस्थापक लोकनिमे डाक्टर ब्रह्मानन्द सिंह अगुआ रहथि. कालेज डाक्टर ब्रह्मानन्द सिंहक सहायक, परमेश्वर प्रसादक निजी भवनमे चलैत रहैक. स्थानीय सी एम कालेजक अर्थशास्त्र विभागक लेक्चरर, रामविनोद सिंह, प्राचार्य रहथि. अधिकतर शिक्षक सद्यः उत्तीर्ण युवक आ दाता लोकनिक परिवारक सदस्य आ संबंधी लोकनि रहथिन.

शिक्षक लोकनिमे राघवेन्द्र प्रसाद अग्रवाल स्मरण अबैत छथि. डाक्टर अग्रवाल पढ़बा-लिखबामे निष्णात, अनुभवी आ परिपक्व रहथि. ओहि समयमे हुनका-सन योग्य आओर कोनो शिक्षक नहि रहथि. पछाति, ओ वनस्पति विज्ञानक अनेक पुस्तको लिखलनि आ यशस्वी, किन्तु, अल्पायु भेलाह. विज्ञान संकायमे जीव विज्ञानं विभागक केशव कुमार सिंह  एवं रसायन शास्त्र विभागक विश्वेश्वर सिंह मन पड़ैत छथि. दुर्भाग्यवश, इहो दुनू गोटे अल्पायु भेलाह; युवक केशव कुमार सिंहकें काला अजार लए गेलनि, आ विश्वेश्वर सिंह कैंसरक शिकार भेलाह. तहिया काला अजारक कारगर औषधि नहि भेटैक. औषधिक अनुपलब्धताक कारण केशव कुमार सिंहक निधन हमरा बहुत दिन धरि विचलित केने रहल. किन्तु, दुःखद थिक, एतेक दिनक पछातिओ बिहारसँ काला अजारक काल निर्मूल नहि भेले.

श्याम वर्ण, गठीला शरीर आ औसत कद. केशव कुमार सिंह मृदु भाषी, मुदा, विचारें आग्रही रहथि. हमरा ओ खूब मानथि. तें, हुनका प्रति हमरो एकटा भक्ति भाव भए गेल छल. संयोगसँ जहिया ओ कला अजारसँ पीड़ित भेलाह, हम दरभंगा मेडिकल कालेजक छात्र भए गेल रही. तें, जखन ओ दरभंगा मेडिकल कालेजक मेडिकल वार्डमे भर्ती रहथि, करीब मास दिन भरि हम हुनका ओगरि, हुनक बेडक कातमे राति बितौने हएब. मुदा, ओ बंचि नहि सकलाह. दुःखक विषय जे जखन डाक्टर सी पी ठाकुर-सन यशस्वी चिकित्सक भारतक स्वास्थ्य मन्त्री भेलाह तकर पछातिओ बिहारसँ काला अजारक उन्मूलन नहि भए सकल.

सत्तरिक दशकक आरंभ धरि बिहारक शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त भए चुकल रहैक.ताधरि कालेजक संख्या ततेक नहि रहैक, किन्तु, परीक्षा प्रणाली अत्यंत दूषित भए गेल रहैक; विश्वविद्यालयक परीक्षामे किताबक नकल आम रहैक. कुँवर सिंह कालेज नवे टा नहि रहैक. शिक्षक लोकनिक उत्साहक अछैतो हुनका लोकनिक अनुभवक अभावक पढ़ाईक मांग पूरा नहि कए पबैक. संयोगसँ , १९७३क वार्षिक परीक्षासँ किछुए दिन पूर्व विश्वविद्यालयक कमान, नागमणि,आइ ए एसक हाथमे आबी गेल रहनि. नागमणि अनुभवी प्रशासक आ शिक्षा व्यवस्थामे सुधारक प्रति कटिबद्ध आइ ए एस अफसर रहथि. ओ परीक्षामे सख्ती कए देलखिन. जर्जर शिक्षा व्यवस्था आ अचानक सख्त परीक्षाक फल ई भेलैक जे आइ एस-सीक वार्षिक परीक्षामे लगभग ९५ प्रतिशत विद्यार्थी असफल भए गेलाह

दरभंगा मेडिकल कालेज

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1973 ई. मे हमर मनोरथ पूर भेल. 13 नवंबर 1973 क दिन दरभंगा मेडिकल कालेजमे नाम लिखल गेल. शरीरमे नव उर्जाक अनुभूति स्वाभाविके छल, आ जीवनक धार सेहो एकटा नव गति आ दिशा पकड़लक. इहो संयोगे जे ठीक तीन वर्ष पूर्व, 1970 ई. मे मेडिकल कालेजमे एडमिशनक हेतु संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा आरंभ भेल रहैक. एहिसँ हमरा-सन अनेको छात्रक हित भेल रहैक; प्रतियोगिता परीक्षाक बलें खेतिहर, किसान, पोस्टमास्टर आ किरानीक सक्षम सन्तानक हेतु मेडिकल कालेजक द्वारि एकाएक खुजि गेल रहैक. ई हमरा-सन सक्षम, किन्तु नवजात कालेजसँ आयल, छात्रक हेतु एक क्रांति छल. लहेरियासरायमे हमरालोकनिक आवास आ मेडिकल कालेजक गेटक बीच मोसकिलसँ 100 मीटरक दूरी छल हेतैक. कुँवर सिंह कालेज आ  दरभंगा मेडिकल कालेजक बीच केवल एकटा सड़क रहैक. अस्तु, व्यवहारिक दृष्टिऐ हम सड़कक एक कातक एक कालेजसँ बहरा सड़कक दोसर कातक दोसर कालेजमे जायब शुरू केलहुँ. मुदा, पहिले प्रयासमे हमरा भविष्यक हेतु ई बड़का छरपान (giant leap) छल.
ओहि युगमे दरभंगा-सन शहरमे मेडिकल कालेजक पढ़ाई अभिभावक हेतु बड़का बोझ नहि रहैक. प्रत्येक चारि मास पर मात्र पचास टाका कालेजक ट्यूशन फी लगैक. होस्टलमे एकटा सीटक हेतु मात्र बाईस टाका किराया. हमरा तं प्रतिमाह सवा सौ टाका राष्ट्रीय योग्यता छात्रवृत्ति (
National Merit Scholarship) सेहो भेटिते छल. चारि साँझ भोजनक व्यवस्था छले. पोथीओ ततेक महग नहि, सेहो सीनियर लोकिनसँ भेटिए जाइक. ओहुना मेडिकल कालेजक पढ़ाईओ एहन रहैक जाहिमे विद्यार्थी, शिक्षक आ सीनियर-जूनियरक बीच लंबा आ सघन सहयोगक अवसरो रहैक आ आवश्यकता सेहो. तें, अपरिचित वातावरणमे अबितो अपरिचयक बाधा बेसी दिन धरि नहि टिकि पबैक. ई मेडिकल कालेजक ओहि युगक शिक्षा आ संस्कृति बड़का गुण रहैक.

तथापि, कालेज सब आ खास कए मेडिकल आ इन्जिनीरिंग कालेज सबमे रैंगिंग वा सीनियर द्वारा नव छात्रकें सामूहिक रूपें हुथबाक वा रेबाड़क परंपरा एकटा एहन रोग रहैक जे कानूनी वर्जनाक अछैतो छात्र पर भारी पड़ैक. संयोगवश, रैगिंग आइओ छात्र समुदायक अशान्ति एवं जानलेवा कारणक रूपें प्रचलिते अछि. हम मोटामोटी रैगिंगसँ बंचि गेलहुँ, तकर संतोष अछि.
ओहि युगमे मेडिकल शिक्षाक चारू कात एकटा आभामंडल रहैक. संगहि, शिक्षक आ छात्रक बीच बड़का खाधि रहैक. किछु शिक्षक लोकनिक मनमे प्रतिष्ठाक एहन भाव रहनि, जे छात्रक छोटो भूल-चूक प्रतिशोध आ अनौपचारिक दण्डक कारण भए जाइक. दोसर दिस, विद्यार्थी लोकनि सेहो निर्दोष नहि रहथि. जातीय परिचय आ अस्मिताक प्रति छात्र सब सजग रहथि. बहुधा छात्र लोकनि जाति आ
phylum ताकि कए रूम-मेट आ मित्र बनबथि. झगड़ा-झंझट भेलापर जातीय नेतालोकनि द्वन्दक नेतृत्व अपना हाथमे लए तिलकें ताड़ धरि बना देथिन; कखनो काल किछु शिक्षक लोकनि सेहो एहि राजनीतिमे रूचि लेथि. मुदा, बहुतो छात्र एहि रोगसँ मुक्त रहथि. हमरा लोकनिक फर्स्ट इयरक रूम-मेट- कीर्तिनाथ झा, सैयद मुसर्रत हुसैन, सतीश कुमार दास आ विजय कुमार सिन्हा- चारि विभिन्न जाति आ दू भिन्न-भिन्न संप्रदायक इन्द्रधनुषी ग्रुप रही. स्वजातीय छात्र लोकनिक संगोरक आह्वान नहि भेल छल, से नहि. मुदा, हमरालोकनि अपन स्वतंत्र उदारवादी विचारधाराक प्रति प्रतिबद्ध रही, आ एखनो छी, तकर गौरव अछि. हमरा सबकें गौरव छल जे अपने बुत्ता पर कालेजमे प्रवेश केने छी, आ अपनहि बुत्ता पर पास कए बहरायब.  ओना मेडिकल कालेजक वातावरण हमरा लेल सर्वथा नव छल. संगहि, नव व्यवसायमे प्रवेशक एहि डेगसँ हम अभूतपूर्व आनंद आ उत्साहक अनुभव करी.
पढ़ाईक आरंभ शरीर रचना, शरीर-क्रिया तथा जीव रसायनक मूलभूत पाठ आ प्रयोगसँ भेल रहैक. ई एकटा  अभूतपूर्व अनुभव छल. मानव शरीरक आतंरिक संरचनाक देखब रोमांचक लागय. भोरमे एकटा लेक्चर क्लासक बाद दिनचर्या शरीर छेदन (
dissection)सँ आरंभ होइक. हमरा ओहिमे बड्ड मन लागय.
सम्पूर्ण बैच एकहि संग डिसेक्शन हॉलमे एकत्र होइक. पाँच गोट भिन्न-भिन्न ग्रुप.  आगूमे बीससँ तीस गोट मार्बल-टॉप टेबुल. ताहि पर मानव शरीर.  5-10  छात्र लोकनिक ग्रुप निर्धारित अवधिमे शरीरक निर्धारित आ निर्दिष्ट अंगक डिसेक्शन करथि. शरीरक एक अंशक डिसेक्शनक अवधि पूरा भेला पर मौखिक परीक्षा होइक जाहिसँ ग्रुपमे निरंतर प्रतियोगिताक वातावरण बनल रहैक.

बेरुक पहर ट्युटोरियल क्लास एवं शारीर-क्रिया तथा जीव रसायनक प्रायोगिक क्लास होइक. अर्थात् भोर आठ बजेसँ बेरुक पहर करीब चारि बजे धरि लगातार कालेजक पढ़ाई. 

सर्वविदित अछि, दरभंगा मेडिकल कालेजक स्थापना दरभंगा राज एवं महाराज रमेश्वर सिंहक विपुल दानसँ भेल छल. मेडिकल कालेज एवं अस्पतालक विशाल परिसरक लगभग सवा दू सौ एकड़क क्षेत्र महाराजहिक देन थिकनि. प्रशासनक ढिलाई एवं भूमाफियाक आक्रमणक कारण कालेज एवं अस्पतालक भूमिक पैघ क्षेत्रक अतिक्रमण भेल छैक. एहिसँ कालेज एवं अस्पतालक परिसर दिनानुदिन सिकुड़ैत गेलैए. मुदा, प्रशासनक लेल धनि-सन.
एहि परिसरक पुबारि भागमे बुनियादी विज्ञान- शरीर रचना, शरीर-क्रिया विज्ञान एवं जीव रसायन विभागक अतिरिक्त छात्रावास एवं शिक्षक लोकनिक आवास रहनि. पश्चिम भागक क्षेत्रमे अस्पतालक विभिन्न विभाग एवं कालेज तथा अस्पतालक प्रशासनिक  खंड रहैक. कालेज एवं अस्पतालक भूगोल एखनहु ओहने छैक.

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दरभंगा मेडिकल स्कूल, एवं पछाति कालेजक आरंभिक काल कहन रहैक, से कहब मोसकिल. मुदा, सत्तरिक दशकमे कालेज आ अस्पतालक हाल स्वतंत्र भारतक अर्थव्यवस्थाए-जकाँ जर्ज्जर रहैक.
सर्वविदित अछि, भारतक स्वतंत्रताक पछाति जाहि आर्थिक व्यवस्थाक स्थापना भेल ताहिमे गरीबीएकें महिमामंडित कएल गेलैक. सादगी-अपरिग्रह-त्याग-तपस्या अनुकरणीय थिक; निजी उद्यम आ अत्यधिक संपत्तिक उपार्जनकें हेय दृष्टिसँ देखबाक दर्शनकें बल भेटलैक. कल-कारखानामे कोन वस्तुक कतेक उत्पादन हेतैक तकर निर्धारण मांग आ आपूर्तिक नहि, सरकारक कोटा-परमिट करैत छल. कोटा-परमिट राजक एही नीतिक कारण सरकार आमदनीक गति बूँद-बूँदसँ भरैत घैल-सन रहैक. एहना स्थितिमे विकासक लेल टाका ओतेक कतयसँ? एतबे नहि, उद्योग-धंधासँ लए कए शिक्षा धरि सरकारेक एकाधिकार. मुदा, सरकारक हाथ तं छुच्छ रहैक. तें, सरकार बजटमे  कर्मचारीक वेतनक अतिरिक्त केवल दिन-प्रतिदिनक खर्चाक प्रावधान होइत छलैक. एहना स्थितिमे संस्थाक विकासक हेतु अर्थ कतयसँ अबितैक. तें, जतय जे पुरान वस्तु रहैक, ताहीसँ काज चलबय पड़ैक. हमरालोकनिक शिक्षक प्रोफ़ेसर डी. एन. शर्मा कहथिन,’ हमरालोकनिक प्रयोगशाला पुरातत्व विभागक म्यूजियम थिक.’ लेबोरेटरी इन्वेस्टीगेशन, मशीन आ उपकरणक अत्यंत कमी, एतेक धरि जे कार्डियोलॉजी  विभागमे ई सी जी मशीन धरि नहि रहैक.  कालेज लाइब्रेरीमे पोथीक अभाव. छात्रक हेतु एक्स्ट्राकरीकुलर (
extracurricular) गतिविधिक कोनो व्यवस्था नहि. एक्स्ट्राम्यूरल लेक्चर (Extramural lecture), सेमिनार, सी एम ई (Continuing Medical Education) सन कोनो गतिविधि नहि. कालेजमे क्लिनिकल मीटिंग आ सम्मलेन कहियो होइत नहि देखलिऐक. होस्टल सबमे केवल सुतबाक व्यवस्था रहैक. मेस विद्यार्थी लोकनि स्वयं चलबाबथि. बेसी काल बिजली गुल, हमरा लोकनि किरोसीन लैंपक इजोतमे  पढ़ि एम बी बी एस पास केलहुँ. किरासिन तेल आ चीनीक लेल हमरा सबकें राशन कार्ड अवश्य भेटल छल. व्यवस्थाक नाम पर एतबे. ऊपरसँ प्रशासन एकदम लचर. हाउससर्जन लोकनिक हॉस्टलमे कमराक अनाधिकार दखल आम रहैक. एहि सबसँ द्वन्द आ मारि-पीट सेहो होइक. 1975 ई. मे ईस्ट होस्टलमे एक बम काण्डमे किछु छात्र मारलो गेल रहथि. किछु कालेज छोड़ि भागिओ गेल रहथि.  गुण एतबे रहैक जे नियमतः क्लास होइत छलैक. शिक्षक लोकनि दक्ष रहथि आ तत्पर रहैत छलाह. क्लिनिकल टीचिंगक स्तर नीक रहैक. रोगीक संख्या आ विविधताक पर्याप्त रहैक. परीक्षा सख्तीसँ होइक. यद्यपि, 1971-72 ई. क बीच मेडिकल कालेजक यूनिवर्सिटी परीक्षामे ओपन बुक सिस्टम सेहो भेल रहैक; मुदा, से अपवाद भेल. किन्तु, सबसँ बड़का दोष रहैक जे कोनो अकेडेमिक कैलेन्डरक पालन नहि भेने, बैच सब अनेरे विलंबसँ पास भए कए बहराइत रहैक, जकर असरि छात्रक जीविका आ कैरियर पर पड़ैक. मुदा, लगैत नहि अछि संस्थागत स्तर पर अधिकारी लोकनिक चेतनामे छात्रक भविष्यक प्रति कोनो चिंता रहनि. तें, अकेडेमिक कैलेन्डरक अनुपालन वा करिकुलर फ्रेमवर्कक निर्धारण आ पालनक चर्चा कहिओ ककरो मुँहे नहि सुनियैक. प्रत्येक विभाग स्वतंत्र रूपें छात्रक कोर्स पूरा करबैत छल वा अपूर्णे छोड़ि दैक. हमरा जनैत, प्राइवेट प्रैक्टिसक अवसरक अभावक कारण प्रीक्लिनिकल एवं पाराक्लिनिकल विभाग पढ़ाई आ कोर्स पूरा करबामे क्लिनिकल विभाग सबसँ अवश्य बेसी तत्पर छल.

दरभंगा-लहेरियासराय शहरमे बिजली, जल आपूर्ति एवं सफाई-सन नागरिक सुविधा एवं जनस्वास्थ्यक तं गपे नहि हो. कालेज एवं अस्पताल परिसर पर सेहो एहि सबह्क दुष्प्रभाव पड़ैक; तेज बरखा भेने कालेज, अस्पताल, होस्टल, फुटबॉल फील्ड समेत सम्पूर्ण परिसर जलमग्न भए जाइक. डाक्टर, छात्र, स्टाफ, रोगी आ रोगीक परिजन सब एहिसँ प्रभावित होथि, कष्ट सहथि. ऊपरसँ बिजली नहि तं पानिक आपूर्ति नहि. छात्र लोकनि सड़कक कातमे हैण्डपम्प लग नहाथि. पुरान लोग जे मेडिकल कालेजक नीक काल देखने रहथि, तनिका ई आश्चर्यजनक लगनि. मुदा, प्रशासन ले धनि सन . ओ लोकनि अशक्त वा उदासीन रहथि.  तथापि, एहि दुर्दशाक भुक्तभोगी तं ओहो लोकनि रहबे करथि.

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सत्तरिक दशक दशक लेल उथल-पुथलक दशक छल. 1971 मे  भारत पाकिस्तान युद्ध भेलैक, बांग्लादेशक उदय भेलैक. अगिला आम चुनावमे इंदिरा गांधीक अभूतपूर्व विजय भेलनि. ऐतिहासिक विजय आ आत्मविश्वासक अछैतो आम नागरिकक जीवनमे सकारात्मक परिवर्तन तं नहिए भेलैक, बल्कि 1975 धरि जनाक्रोशक अगड़ाही एहन रूप लेलक जे जयप्रकाश नारायणकें संपूर्ण क्रान्तिक आह्वानक संग सड़क पर उतरय पड़लनि. सरकारकें कबाछु लागि गेलैक, आ आरंभ भए गेलिक क्रिया-प्रतिक्रियाक दौर,  इमरजेंसी आ नागरिक अधिकारक हरण आ दमन.

सामाजिक उथल-पुथलक एहि दौरमे बिहार अगुआ भेल. छात्रलोकनिक सहभागिता आन्दोलनकें बल देलकैक.  लालू प्रसाद, सुशील मोदी, नितीश कुमार आदि एही जनांदोलनक प्रयोगशालाक प्रोडक्ट थिकाह. मेडिकल कालेजक छात्र लोकनि सेहो एहि आन्दोलनमे जोशसँ सहभागी  भेलाह. कतेक बेर कालेज बंद भेल. कतेको गोटे जेल गेलाह. अंततः, 1977 क आम चुनावमे इंदिरा हारलीह. किन्तु, एहि सभक बीच हमरा लोकनिक बैच जे जुलाई 1978 मे पास करैत से जनवरी 1980  मे पास भेल; हमरा लोकनिक संपूर्ण बैच डेढ़ वर्ष पाछू भए गेल.
सत्यतः, एहि पराभवसँ केवल मेडिकल शिक्षा प्रभावित नहि भेल. शिक्षाशास्त्री आ राजनेता लोकनिक मिली भगतसँ छठम दशकक उत्तरार्द्ध आ सातम दशकक बीच बिहारक शिक्षा व्यवस्था तेहन घोर-मट्ठा भए गेल रहैक जे तकर दुष्परिणाम बिहारक छात्र वर्ग अनेक दशक तक तं भोगिते रहल, बिहार शिक्षा व्यवस्थाक एहि अवनतिसँ आइओ धरि उबरि नहि सकल अछि. आ आइओ कालेज आ विश्वविद्यालय राजनेता आ शिक्षक वर्ग चरौंत बनि कए रहि गेल अछि.      

    

   

      

 

Thursday, March 6, 2025

ईश्वर आ शराब

 हालमे नेपालमे दरभंगा मेडिकल कालेजक हमर बैचक सम्मेलन रहैक। आपसीमे जे कार ड्राइवर संग रहथि, से एकटा अद्भुत गप कहलनि: 'बिहारमे शराब आइ ईश्वर  थिक।' हम चौकलहुँ। पुछलियनि, 'कोना?' बहुत सोझ गप,' ईश्वर सब ठाम छथि, मुदा, देखबनि नहि। स्मरण करबनि, भक्त लग तुरत प्रकट भए जेताह। शराबोक इएह गति। देखबैक नहि, मुदा, उपलब्ध अछि सबठाम। मंगाउ, तँ, कतहु पहुँचि जायत। ड्राइवरक एतेक सूक्ष्म विवेचना सुनि हमरा भेल जे ओहि दिव्यद्रष्टाक समक्ष हम नेना होइ।

Wednesday, January 8, 2025

गामक जीवनक बिसरल लोक

 हुसैन(मा), अङरेज(बा), लुल्हा-नङरा, कलरी; बौअन, अजब, आ यदुनंदन ठाकुर, आ गाम   


विगत शताब्दीक गामक जिनगीमे व्यक्तिक महत्व केवल समृद्धिए टा पर निर्भर नहि रहैक। कोनो अनपढ़ो गुणी मानल जाइत छल, हरबाह-चरबाह सेहो कमासुत होइत छल. ऊपरसँ ककरो झाड़-फूकक गुण रहैक, ककरो जड़ी-बूटीक ज्ञान रहैक। केओ गछचढ़ाक रूपमे नामी छल तँ केओ नीक बहलमान। गाममे काहिल, गंजेरी-भंगेड़ी, चोर आ छिनारक सेहो कोन कमी. तैओ जकरासँ जकर उपकार होइत छलैक, ओ ओकरा हेतु उपकारक बूझल जाइत छल. हँ, किछु लोक अपन व्यवसायक कारण समाजक हेतु अत्यावश्यके रहय।

एहि छोट संस्मरणमे एहने किछु व्यक्तिक चर्चा अछि, जे अपन गुण वा व्यवसायक कारण समाजमे अपन-अपन स्थान बनौने रहथि। आरंभ हुसैन(मा) आ अङरेज(बा)सँ करैत छी.

मुदा, पहिने एकटा दोसरे गप; एक जड़ प्रथाक चर्चा- नामकेँ अपमानजनक बनयबाक रियाए। ओहि युगमे ब्राह्मण-कायस्थ-राजपूतकेँ छोड़ि केओ ककरो सोझ नाम कहाँ लैक। जाधरि नाममे अनादरसूचक प्रत्यय- ‘आ’ शिवसँ शिबुआ , ‘बा’ अंग्रेजसँ अँगरेजबा, ‘ना’ मूसनसँ मुसना, ‘या’ बदरीसँ बदरिया, ‘हा’ जेना सड़लाहा, जरलाहा, ‘मा’ बनियाँसँ बनीमा, ‘रा’ तेतरसँ तेतरा - नहि जोड़ल जाइक सभ्य-सवर्णकेँ गरीब-दलितक प्रति प्रेम आ दुलार नहि, सत्यतः मनुखक -पिछड़ल-दलित हेबाक आभासे नहि होइक। हँ, जकर नाम कुतबा, लुल्हा आ लंगड़ा, कुरहेड़बा आ कुकरा रहैक, ओकरा अपना अपन नाम केहन लगैक से, केओ पुछितैक तखन ने. ऊपरसँ जखन मुँहपुरुक लोकनिककेँ लोक धिया-पुताक नाम रखबा लेल कहनि, तँ जेहने चालि, तेहने किरिया। एकटा खबासिनिक मुँहे सुनने रहियनि: हमर छौड़ाक केहन नाम राखि देलखिन। बौआकेँ पुछलियनि, छौड़ाकेँ की नाम रखियै? कहलखिन,’ की रखबीही? कुड़हरिए-सन तँ छौक. कुड़हेरबा राखि दही!’  तेँ हुसैन(मा),अङरेज(बा)क माय-बाप सेहो ओकरा सबकेँ हुसैन आ अंग्रेज नाम रखने हेतैक। मुदा, समाज अनेक सब-जकाँ हिनको लोकनिक नाम तेना दूरि कए देलकनि जे ठीके जँ केओ आदरपूर्वक सोर करितनि तँ अपने नाम अनचिन्हार लगितनि। मुदा, ई विषयान्तर भेल तेँ ई एखन दूर रहओ. तैओ हम हिनका लोकनिक नाम दूरि नहि होअए देबनि। 

तेँ, अवाम गाममे हुसैन आ अँगरेजक कोन महत्व रहैक, एखन तकरे गप.


हुसैन 

हमर छोट गाममे मुसलमानक दू टोल. एकमे गोड़ चारिएक घर. दोसर टोल पैघ. पैघ टोलमे मस्जिद सेहो रहैक। मुसलमानक समुदाय आने सब-जकाँ मेहनति-मजदूरी आ खेतक बटाईसँ गुजर करय. मुदा, अछूत हेबाक कारणे सवर्णक ओतय ओकरा सबकेँ सब जन-मजदूरीमे अढ़ाओल नहि जाइक।

हुसैन ने हमरा लोकनिक बटेदार छल आ ने पसारी. मुदा, ओ हमरा ओतय कहिओ काल आबि जाय. दाई कहथि, ‘अहाँक जान हुसैनमे बचओने अछि’। आ तेँ हमर माता जीवन भरि हुसैनक प्रति उपकृत छलीह। ओहि युगमे, जहिया रहरहाँ नवजात, प्रसूति, आ नेनाक मृत्यु भए जाइक, तहिया हमरा सब भाई-बहिनमे केओ कालकवलित नहि भेलहुँ, से माता-पिताक साधारण उपलब्धि नहि।  

ओहुना हुसैन अबितो छलाह तँ कथिक लेल?  आवश्यकताओ तेहन जे आब लोककेँ विश्वासो नहि हेतैक; कहिओ दू टा नेबोक, एकटा काँच पपीताक, वा कहिओ नेबोक निमकीक एक फाँकक काज। सब कथुक प्रयोजन रोगे-व्याधि लेल, बेर-कुबेरहिक हेतु। मुदा, दाई हुनका कहियो खाली हाथ नहि जाए देथिन। 

सुनैत छी, भूत-प्रेतकेँ भगयबामे हुसैन माहिर रहथि।  सत्य वा झूठ, गाम जानय.  माताक सर्टिफिकेट तँ भेटले रहनि। हमरा अपना ओहि घटनाक इतिहास बुझबाक ने कहिओ रूचि भेल आ ने माताकेँ पुछलियनि। ओना, छोट वयसमे कान पातर भेने अनायासहु बहुतो गप कानमे पड़िए जाइत छैक। मुदा, एतबा स्मरण अछि, जे हुसैनकेँ अनेक बेर झाड़-फूकक लेल टोल दिस जाइत देखियनि। झाड़-फूकमे आ दूध किनबामे तहियो  जाति-पाँति आ  छुआछुत बिला जाइक। दूध लोक खानाबदोश करोड़ियासँ सेहो किनैत छल. तेँ, समाजक मिथ्याचारक उपहास करैत किरणजी तँ ‘पराशर’मे लिखने छथिन, ‘रतिमे नहि लगैत छैक, छूति-तूति।’


हुसैन छौ फुट लंबा। गेहुँआ रंग।  चारखाना लुंगी। देह पर गमछा। पातर मोछ, आ मोछक कोर पर ताओ। जखन झाड़-फूक लेल टोल पर बजाहटि होइनि तँ बामा हाथमे मैल लत्तामे लपटाओल गोड़ दुइएक हड्डी- प्रायः कोनो नेनाक जांघक वा बाँहिक हड्डी छल रहैक - सेहो रहनि। इएह रहनि, हुसैनक काया-कलेवर आ भूत भगेबाक उपकरण। ओकरे भँजैत ओ किछु मंत्र पढ़थि, आ रोगीकेँ फुकथि. बाजब बहुत कम .
ओहुना बिनु काजे हिन्दूक टोल पर मुसलमान किएक आओत. कतहु जेबाक भेलैक, तँ टोल पर बाटें-बाट गेल. कओ टोकलकैक तँ बेस, नहि तँ  बाट धेने सोझे चल गेल.

गामक एहि यात्रामे शीबू भाई कहलनि, हुसैन ढोलक नीक बजबैत रहथि। एतेक धरि जे लक्ष्मीनारायण मंदिर पर सेहो ओ ढोलक बजबय जाथि।

किन्तु, एतबा अवश्य स्मरण अछि, जे हुनकर बेटालोकनि गामे-गाम सोनारक भट्ठीसँ  छाउर जमा करथि आ छाउरकेँ छानि कए सोना-चानी निकालबाक व्यापार कथि. तेँ, जखन कखनहुँ ओलोकनि टोल पर बाटें कतहु विदा होथि तँ पीठ पर कपड़ामे बान्हल छोट-पैघ अढ़ियाक एक गेंट होइनि. ताहिसँ बेसी किछु परिचय हमरा स्मरण नहि अछि। मुदा, आधा शताब्दीसँ बेसी भए गेलैक। मुदा, हुसैन स्मरण छथि।  

  

अङरेज

अङरेज(बा) एनिमल सर्जन रहथि. आ कसाई सेहो। छागरो कातथि, आ बाछाक बधिया सेहो करथि. मानव शरीरक छेदन आ शल्य चिकित्सा तँ हम पछाति सिखलहुँ, मुदा, अङरेज(बा)केँ सड़कक कातहिमे जेना हम बाछाक बधिया करैत हिया देखने रहियनि, तकर जँ आई मूल्यांकन करी तँ अङरेज(बा) सेहो बार्बर-सर्जन एवं एनिमल सर्जन लोकनिक ओही सुदीर्घ परंपराक अन्तिम वंशज रहथि, आधुनिक चिकित्सा जकर परवर्ती पीढ़ी थिक। कारण, हुनका जेना बधिया करैत देखने रहियैक ओहिमे एनेस्थीसिया आ पीड़ा निवारण भले नहि छल होइक, सड़कछाप शल्य चिकित्सकक दक्षता तँ अवश्ये रहैक। हुनका पर समाजक विश्वास तँ छलैके। ओहुना आइओ तँ गामे-गाम क्लिनिक खोलि सड़क छाप सर्जन टाका बटोरिए रहल छथि।  

जहिया हम अङरेजकेँ टोल पर बाछा बधिया करैत देखने रहियनि,  हमरा जीव-जन्तुक शरीर रचनाक कोनो ज्ञान नहि छल. मुदा, आइओ अंगरेज(बा)क हाथक ओ जटिल शल्यक्रियाक विधि, जकरा वेटिनरी सर्जनक लोकनि बड़का ऑपरेशन (major surgery) कहैत छथिन, एखनो आँखिक सोझाँ अयना-जकाँ झलकि रहल अछि. सिलसिलेबार, त्वरित आ शर्तिया। तेँ, जँ परीक्षक रहितियैक तँ बंध्याकरण ऑपरेशन लेल अङरेज(बा) केँ फर्स्ट क्लासक सर्टिफिकेट भेटितैक।

प्रशंगवश, एतय इहो कहि दी, जे ब्राह्मणक हेतु अपन दरबज्जा पर बाछाक बधिया करायब प्रायश्चित करबा योग्य पाप रहैक। मुदा, बिनु बधियाक बाछा हरमे जोतलो नहि जाय. तेँ ब्राह्मणलोकनि बुधिबधिया करबथि। माने, बधियाक हेतु किछु दिन लेल बाछा कतहु पोसिया पर दोसरक खुट्टा पर जाय. ओतहि बधिया होइक आ बाछा बड़द बनि अपन थरि  पर घूरि आबय. इएह भेल बुधिबधिया, माने काजो सुतरि गेल आ आ छार-भार अनके कपार ! 


लुल्हा-नङरा

सहोदर दू भाई, लुल्हा-नङरा जन्मजात दिव्याङ्ग  छल; लुल्हाकेँ एकेटा हाथ रहैक, नङराकेँ एकेटा पयर। बाँकी सब दुरश्त। तथापि, नङरा  तँ नहि, लुल्हा अवाम गामक अजूबा छल. अजुका युग रहितैक तँ लोक ओकर फिल्म बनबैत, ओकरा दुनूकेँ कतेक पुरस्कार भेटितैक। कारण, दिव्याङ्ग रहितो ओ दुनू भाई नचार नहि छल, ओकरालोकनिसँ कोनो काज छूटल नहि रहैक। लुल्हा गाछ चढ़ैत छल, कोदारि तमैत छल, एके हाथेँ कुड़हरि पाड़ैत छल, जारनि चिरैत छल. मुदा, एहि सबसँ बेसी आश्चर्यजनक रहैक जे ओ दाहिना हाथ आ बामा पयरक सहायतासँ भीड़ीक-भीड़ी साबेक जौड़ सेहो बाँटि लैत छल. जँ आजुका युग रहितैक तँ लुल्हाक जौड़ बँटबाक कलाक वीडियो कतय नहि जाइत।

कलरी

स्वतंत्रताक बादहु मिथिलांचलमे प्रसूति सेवाक सर्वथा अभाव रहैक। तें, प्रसव होइक वा कारण /अकारण गर्भपात, गामक एकमात्र चमैनि कलरी, मिडवाइफ तँ नहि, अमेरिकाक समाजक doulaǂ तथा स्त्रीगणलोकनिक बड़का बल छलीह। हुनकर काजे एहन रहनि जे, जातिगत अवहेलनाक अछैतो, बड़कासँ छोटका धरि एहन कोनो घर नहि छल, जतय दिन-दुपहरिया, राति-विराति, कलरीक बजाहटि नहि होइक, लोक ओकर बाट नहि तकैक, ओकर प्रवेश नहि रहैक।

भुट्ट-खांट, गोरि आ मृदु भाषी कलरी हमर माताक सेहो प्रिय रहनि, सबहक प्रिय छलि। आ किएक नहि।  हमरालोकनि सात भाई-बहिन। कोनो प्रसवमे ने माताक कोनो नेनाक हानि भेलनि, ने अपने प्राण गेलनि। सबमे  कलरी सहयोग आ अपन शरीरक गुण तथा सजगता। माता छोटि बहिनि-  हमर एक माउसि - तँ प्रथमे प्रसवमे दिवंगत भए गेल रहथिन।
बहुत दिन धरि दाईक लग मिहिसिक सींगक बेंटबला एकटा छूरी रहनि। कहथिन,कलरी अहाँ सातो भाई-बहिनिक नार एही छूरीसँ कटने रहय.  

जतेक स्मरण अछि, कलरी जखन कखनो घरसँ बहारथि तँ दाहिना हाथमे एकटा छोट-सन पितड़ियाक लोटा लेने। लोटामे मालिशक हेतु तेल रहैक, से सुनियैक।

भारत सरकारक जननी सुरक्षा योजनाक अंतर्गत प्रसूतिक सुरक्षाकेँ ध्यानमे रखैत सरकार अस्पतालमे प्रसवकेँ प्रोत्साहन दैछ. प्रसूतिक सुरक्षा पर एकर सकारात्मक प्रभाव भेलैए। तेँ, पुरान परंपरा अब इतिहास थिक। 

                

बौअन ठाकुर 

बौअन ठाकुर हमर गामक एकमात्र बरही छलाह। हुनक मृत्युक आ कृषिक बदलैत प्रणालीक संग पुरान ज़मानाक हर-फार आ कमरसारिक अंत भए गेल. ओही संग अंत भए गेल जूड़ि-शीतलक बाँसक फुचुक्काक, आ बाँस-बातीक पनिसालाक बनब। संगहि समाप्त भए गेल, भाथि आ निहाई आ कमरसारिमे गृहस्थलोकनिक भोरुका जमघटक। हिनकर परिवारक युवक सब भिन्न-भिन्न व्यवसाय धेलनि आ पारंपरिक ‘गिरहस्त’क पसारीक परंपराक अंत भेल  

लकड़ीक करोबारक अतिरिक्त, बौअन ठाकुर हारमोनियम सेहो बजबथि। प्रत्येक शनि आ मंगलक साँझ हुनका दरबज्जा पर सामूहिक कीर्तन होइत छल, जाहिमे जन-बनिहार वर्गक गबैया- बजनिया आ संग देनिहार भक्त लोकनि जमा होथि। आब ई सब किछु इतिहास भए गेल. ने ओ नगरी, ने ओ ठाम। गाम ठामहि अछि, समाजे बदलि गेल, शिक्षित आ किसान, दुनूक पलायनसँ गाम सुन्न भए गेल।  

 अजब ठाकुर सोनार

अजब ठाकुर सोनारक एकमात्र सोनार रहथि। गरीब गाममे दोसर सोनारक प्रायः काजो नहि रहैक. अवाम निम्न एवं मध्यम श्रेणीक खेतिहरक गाम छल. तथापि, कर्णबेध आ नाक छेदब होइते रहैक।  उपनयन- विवाह होइते रहैक! दुब्बर-पातर अजबक स्वभावो अजबे रहनि; मृदुभाषी आ ठोर पर मुसुकी छिटकैत। हमर गाम छूटि गेल।  अजब कहिया गत भए गेलाह, बुझबो नहि केलिऐक।   

यदुनंदन आ हित(बा)

यदुनंदन आ हित(बा) दू भाई रहथि हजाम-ठाकुर रहथि। हजाम ठाकुरो एके घर। एहि दुनू भाईमे नब्बे बरखकेँ धक्का दैत यदुनंदन एखनो तक टेक धेने छथि आ घर आँगन देने छथि. हमर पिछलो यात्रामे हमरासँ दवाई लिखबयबा लेल आयल रहथि। मुदा,अब पाकल आम थिकाह। एहि दुनू परिवारक धिया-पुता एखन धरि तँ गाम धेने छथिन, तथापि, समृद्ध छथि, से प्रसन्नताक विषय थिक. ओना आब गाममे जीविकाक अवसर आ अगिला पीढ़ीक आकांक्षा गामक भविष्यक स्थितिक निर्णय करत। कारण, अगिला पीढ़ीक शिक्षा सब वर्गक प्राथमिकता छैक. 

उपसंहार 

हमर पड़ोसिया करीब तीस बरखक युवक पिछला दस वर्षसँ बेसीसँ दिल्लीमे कोनो फार्मेसीमे काज करैत छथि. एखन गाममे नव डीह पर घर बना रहल छथि. हमहूँ अपन पुरान घर तोड़ि नव घर बनायब शुरू केने छी. पुछलनि, ‘ बाबा गाममे फेर घर बनबैत छियैक, रहबैक?’ 

हम पुछलियनि, 'बाउ घर तँ अहूँ बना रहल छी।  अहाँ रहबैक ? कहलनि, ‘बाबा, रहि जैतियैक। आब गामहुमे शहरबला रोजगारक अवसर छैक. मुदा, एखन पन्द्रह बरिस हमरा दिल्लीएमे रहय पड़त. एतय पढ़ाई-लिखाईक सुविधा नहि छैक!'   


Tuesday, December 24, 2024

क्रिसमस 2024 पर विशेष : क्रिसमस आ भगवानक स्थान

 माताक स्मृति : क्रिसमस आ भगवानक स्थान 

हम 1993-96 क बीच बरेली छावनी, उत्तर प्रदेशमे पोस्टेड रही। छावनी सबमे अनेक पुरान चर्च भेटत। क्रिसमसक अवसर पर  सबठाम  सजावट होइछ। सेनामे सर्वधर्म समभावक वातावरण। सब केओ सब पर्वमे उत्साहपूर्वक शामिल होइछ। हमरोलोकनि सपरिवार चर्च सबहक सजावट देखए जाइ। दोस्त-मित्रक ओतय उत्सव मे भाग ली।

ओहि वर्ष माता संग छलीह। सजावट देखए सब गोटे बहरायल रही। बटलर प्लाजा चौराहा लग सड़कक दोसर पार एकटा पुरान चर्च छैक। ओकर परिसरमे 'नेटिभीटी' दृश्यक भव्य सजावट रहैक। गाड़ीसँ उतरि सब गोटे चर्चक परिसर दिस विदा भेलहुँ। माताक विषयमे हमरा शंका छल, जेथिन कि नहि। हम संकोचहिसँ  माताकेँ पुछियनि,' चलबिही?'

ओ बिना कोनो शंका-समाधानकेँ सोझे कहलनि, 'चलू । की हेतै? भगवानक जगह थिकै।' 

हमरा अपन शंका आ दुविधाक समाधान भेटि चुकल छल। ओहि बेर माता सेहो हमरा सभक संग चर्च परिसरक सजावट देखलनि।

Thursday, December 12, 2024

सफल रचनाक हेतु ध्यान देबा योग्य किछु विन्दु

 सफल रचनाक हेतु ध्यान देबा योग्य किछु विन्दु 

[ एहि लेखमे रचनाक सुधारक हेतु किछु सुपरिचित आ किछु अनुभूत विन्दुक चर्चा अछि। मुदा, ई लेख सिद्धहस्त रचनाकारक हेतु नहि थिक।  तथापि, जँ ई  लेख उपयोगी भेल तँ, एहि चर्चाकेँ आगाँ बढ़ाऑल जा सकैछ। .]

साहित्य सृजनक उद्देश्य जे हो, विधा कोनो हो, विषयक उपादेयता, कथ्यक नवीनता, विश्वसनीयता,आ तर्कसंगत प्रस्तुतिसँ कृतिक आदर होइछ; उपादेयता आ  गुणवत्ता पाठककेँ आकृष्ट करैछ। पाठक अपन रुचिक अनुकूल  विषय चुनैत छथि, पढ़ैत छथि. कठिन भाषा, अस्पष्ट भाव आ दोषपूर्ण वर्तनीसँ पढ़ब कठिन होइछ। तखन, सफल लेखनक गुण-धर्म की थिक जे पाठककेँ आकृष्ट करैछ। लेखनक अवगुण की थिकैक? एही सब विन्दु पर विस्तारसँ  विचार करब एहि लेखक उद्देश्य थिक। 

संगहि, लेखनक गुणवत्ता कोना सुनिश्चित करी, ताहि विषय पर सेहो एतय संक्षिप्त विचार प्रस्तुत अछि।  आलेखक आकार सीमित रखबाक ध्येयसँ प्रत्येक विन्दुक उदाहरण एतय संभव नहि भेल.
सबसँ पहिने सफल लेखनक गुण पर विचार करी.


विषयक उपादेयता 

सब विषय  सबहक हेतु उपादेय नहि होइछ. मनोरंजनक उद्देश्यसँ लिखल साहित्य आ छात्रोपयोगी लेखनक उपादेयता  भिन्न होइछ. यद्यपि, मनोरंजनक हेतु लिखल साहित्य (कथा, कविता, आ  नाटक) पाठ्य पुस्तकमे संकलित होइछ। आलोचनात्मक लेख सेहो पाठ्य पुस्तकक हेतु लिखल जाइछ। 

समसामयिक लेखनमे प्रासंगिकता आ लोकरुचि उपादेयता  निर्धारित करैछ। एकर विपरीत, विषय विशेष पर केंद्रित पत्र-पत्रिका वा जर्नल अपन आवश्यकताक अनुकूल लेख छपैछ आ  आलेखक भाषा, आकार, संरचना, वर्तनी आ शैलीक स्पष्ट  निर्देश प्रकाशित करैछ।  

एहि आलेखक विवेचना सृजनात्मक लेखन तथा आलोचना धरि सीमित अछि. एहि दुनू विधामे लेखक स्वयं विषय, आकार, आ शैली निर्धारित करैत छथि. तथापि, कृति पाठककेँ आकृष्ट करैक, से उद्देश्य तँ रहिते छैक.

    

कथ्यक नवीनता 

जहिना टटका भोजन रुचिगर लगैत छैक, नव विषय पाठककेँ आकृष्ट करैछ। सारगर्भित आ आकर्षक शीर्षक पर पाठकक आँखि सोझे बैसि जाइछ। 

बासि भोजन, आ ‘गओले गीत’ बेरस लगैछ। केओ बासि भोजन किएक खायत।  ‘गओले गीत’ लोक किएक सुनत। अकार्यक सामग्री के पढ़त? श्रम आ सृजनक सार्थकता बीच निकट संबंध छैक। विषयक चुनावक श्रम, नव विषय आ सामग्री ताकि निकालबाक द्वार खोलैछ। ई सृजनात्मक लेख, वैज्ञानिक विधा, एवं समसामयिक प्रसंग, सब पर लागू होइछ।

नव वस्तु तकबामे आ लिखबामे श्रम लगैछ।  मुदा, पुरानो विषय पर गंभीर चिंतन, नव दृष्टि आ नव विश्लेषण पाठककेँ आकृष्ट करैछ, सामग्रीकेँ पाठकक हेतु उपादेय बना दैछ।
परिचित विषय पर  लेखन सुलभ भले हो, मुदा, ओहूमे कहबाक हेतु जखन किछु नव रहतैक, तखने ओ उपयोगी हेतैक, पाठककेँ आकृष्ट करतैक।  जखन विषय वा कथ्यमे किछु नव रहबे नहि करतैक, तँ लोक पढ़त किएक?

तेँ, विषयक चुनाव आ अनुसंधानमे शिक्षकक प्रेरणा आ मार्गदर्शनक योगदान अमूल्य थिक, मुदा, छात्रक श्रम मूल थिक. परिश्रमसँ नव तथ्यक उद्घाटन होइछ; नव सत्यक सोझाँ अबैत अछि, से स्मरण रखबाक थिक। 

भाषा, प्रस्तुति एवं संप्रेषणीयता 

भाषा संवादक माध्यम थिकैक। जहिना ‘भेष देखि भीख भेटैत छैक’ तहिना, शीर्षक आ विषयक आगाँ, भाषा पाठककेँ सबसँ पहिने आकृष्ट करैछ। सरल, बुझबा योग्य भाषाक विकल्प नहि। भाषा सरल भेने,  भाव सोझे  पाठक धरि पहुँचि जाइछ. छोट-छोट  सरल वाक्य आ प्रचलित शब्दक प्रयोगसँ पढ़ब सुगम होइछ। ओझरायल भाषा (jargon) पढबा-बुझबामे बाधक होइछ। 

सरल आ सुबोध भाषाक कारण कतेको लेखकक पुरान कृति आइओ लोकप्रिय अछि। आखिर हुनकालोकनिक भाषामे एहन कौन तत्व छैक, जे सब किछु स्वच्छ आ पारदर्शी लगैछ ? एकर थाह विभिन्न लेखकक साहित्यक सूक्ष्मतासँ पढ़नहि लागि सकैछ।  तेँ, सफल लेखकक कृतिक सारे टा नहि, ओकर स्वरुपक अध्ययन सेहो लेखकक हेतु सहायक होइछ. कारण, लेखन राजनीतिक विचारक प्रचारक हेतु हो, कोनो वस्तु बेचबाक हेतु हो, वा वैज्ञानिक सिद्धान्त  बुझयबाक हेतु,  पाठक धरि अपन भाव पहुँचायब लेखनक मूल लक्ष्य थिक. सार्थक शब्द, प्रभावी वाक्य संरचना, तर्कक तारतम्य आ प्रभावकारी प्रस्तुति पाठककेँ सोझे छूबि लैछ. एकर विपरीत परिस्थिति संवादकेँ प्रभावहीन बना दैछ. अभ्याससँ सब किछु सिखल जा सकैछ। 


वर्तनी आ व्याकरण  

शब्द भाषाक मूल उपादान थिकैक. वर्तनी आ व्याकरण  मानक भाषाक प्राण थिक. मानक वर्तनी विकसित भाषाक अनिवार्य गुण थिकैक. उपयुक्त शब्द, शुद्ध वर्तनी आ व्याकरणक अनुशासन उत्तम लेखनक अनिवार्यता आ लक्षण थिक, जे कथ्यकेँ सबल बनबैछ, कृतिकेँ साहित्यमे प्रतिष्ठित करैछ।  

व्याकरण आ वर्तनीक अनुशासनक अवहेलना भाषामे निरंकुशताक जन्म दैछ, जाहिसँ  अंततः भाषाक अहित होइछ। व्याकरणक दोष संप्रेषणीयतामे सेहो बाधक होइछ; वर्तनीक दोष अर्थकेँ अनर्थ कए दैछ; दिन आ  दीन, तथा परीक्षा आ परिक्षाक अर्थ तकबाक आवश्यकता नहि। 
मैथिलीमे मानक वर्तनीक अभावकेँ विद्वान लोकनि बहुत दिनसँ रेखांकित करैत आयल छथि. एहि विषय पर आचार्य रमानाथ झाक कथन आइओ प्रासंगिक अछि: 2  

" हमर दृढ़ विश्वास अछि जे मैथिलीकेँ  यदि वर्तमान भारतीय भाषा सबहिक समाजमे प्रतिष्ठित करएबाक अछि तँ ओकर स्वरूप स्थिर करए पड़त । एकहि पदकेँ अनेक प्रकारसँ लिखबाक चालि देखि ई कहब जे हमरो भाषा पुरान साहित्यिक ओ व्यवस्थित अछि, कोना होएत? एखन मैथिली लिखबाक जे अव्यवस्था अछि, से हमरा प्रायः कहए नहि पड़त । जए गोट लेखक तए रूप भाषा। अधिकतया तँ एकहु लेखमे एकहि ध्वनिक लेल भिन्न भिन्न वर्ण । क्षोभ होइत अछि, तखन जखन सुनैत छी नेतालोकनिक मुहसँ जे एखन जे जहिना लिखैत छथि, लिखए दिऔन्ह, कालक्रमे भाषाक स्वरूप स्वयं स्थिर भए जाएत । की एकर अर्थ नहि होइत अछि जे हमरालोकनि एखन लिखब सिखहि लगलहुँ अछि, पूर्वक लिखबाक परम्परा हमरा लोकनि केँ नहि अछि? की हमर नेतालोकनि एहि नीतिक घातक परिणामकेँ विचारल अछि? एहि नीतिक दुष्परिणाम स्वरूप लिखबाक दिन-दिन बढ़ैत अव्यवस्थाकेँ की ओ लोकनि नहि देखैत छथि?"

आचार्य रमानाथ झाक उपरोक्त उक्तिमे दू गोट विन्दु विचारणीय अछि; एक, भाषाक स्वरुपक निर्धारण; दोसर, एकहु लेखमे एकहि ध्वनिक लेल भिन्न-भिन्न वर्णक प्रयोगक दोष ।
लेखककेँ एहि विषय पर विचार करब आवश्यक। पाठ्यक्रम आ परीक्षामे भाषाक वर्तनी, व्याकरण आ शब्दक अनुशासने शुद्ध - अशुद्ध निर्धारित करैछ। तहिना, वर्तनी लेखनक एकरूपताक सेहो सुनिश्चित करैछ.

 

वाक्य संरचना   

वाक्य विचार वा वाक्य संरचना व्याकरणक एक प्रमुख खण्ड थिक। मुदा, मातृभाषामे बजबाक हेतु, वा मातृभाषामे लिखबाक हेतु (लेखककेँ) वाक्य संरचना सिखय नहि पड़ैत छनि ।तथापि, भाषाक मानक स्वरूपक विवादकेँ तत्काल जँ कात राखी तँ, सुगम एवं प्रभावी संवादक हेतु भाषाक मानक स्वरूपक ज्ञान आवश्यक होइछ। 

ततबे नहि, कम सँ कम शब्दमे सोझ अभिव्यक्ति, सफल गद्य आ उत्तम रचनाक गुण थिक. एहिमे शब्द आ वाक्य संरचना दुनूक सामान योगदान होइछ। तेँ, सफल गद्यकारक कृतिक आशय सोझे बुझबामे आबि जाइछ।  
सरल गद्यक विपरीत,  गोलमटोल, लंबा वाक्य, आ शब्दक जालसँ कथ्य अस्पष्ट होइछ, बूझब कठिन होइछ।  तेँ, जखन पाठक लिखल गप बुझबे नहि केलक, तँ  लिखबाक उद्देश्य?

 दोषपूर्ण भाषा शिक्षणमे बाधक होइछ। कारण, छात्र आ जिज्ञासु लेखक प्रकाशित कृतिएक अनुकरण करैत छथि.


अशुद्धि आ एकरूपताक अभावक नव कारण :  कम्प्यूटर वा एंड्राइड डिवाइसक सुझाव (autosuggestion)    

 कलमसँ कागज़ पर लिखब हेबनि धरि सामान्य छल. आइ-काल्हि कागज कलमक अतिरिक्त फ़ोन, टेबलेट, आ कम्प्यूटरक प्रयोग आम थिक।  कम्प्यूटर वा एंड्राइड डिवाइस - मोबाइल फोन वा टेबलेट (mobile phone वा tablet) - पर उपलब्ध भाषाक विकल्प चुनलासँ, टाइपिंगमे एक शब्दक अनेक विकल्प / सुझाओ (suggestion) अबैत रहैछ। जँ सतर्क नहि रही, तँ, कतेक बेर कम्प्यूटरक सुझाव अनर्थ कए दैछ; ‘कतेक’, ‘कटक’ भए जायत, आ ‘भए’, ‘भी’ वा ‘भाई’ वा ‘बहे’ भए जायत। कम्प्यूटर वा एंड्राइड डिवाइसक कारण नहि, टाइपिंगमे असावधानीसँ लेखनमे गुणात्मक ह्रास भेलैए वा नहि, से कहब ततबे कठिन, जतेक कठिन, शिक्षाक स्तरमे ह्रासकेँ लेखनक गुणात्मक स्तरक ह्रासक हेतु जिम्मेवार मानब. तेँ, लेखक स्वयं सोचथु, विद्वानलोकनि एहि विषय पर मंथन करथु। छात्र अनुसंधान करथु, निष्कर्ष बहार करथु। मुदा, मोबाइल फोन एवं टेबलेट पर टाइपिंग करैत अनायास अशुद्धिक प्रति साकांछ अवश्य रही.

ओना, एखन बहुतो सामग्री पत्र-पत्रिकामे प्रकाशनसँ पूर्व सोशल मीडिया (फेसबुक वा व्हाट्सप्प ) पर प्रकाशित होइछ, वा ओही हेतु लिखलो जाइछ। अस्तु, झट लिखि, पट प्रकाशित करबाक बाध्यताक कारण  कतेक लिखित सामग्रीक दोबारा पढ़ब आ  सुधार करब संभव नहि होइछ। फलतः, अशुद्ध वर्त्तनी आ अकार्यक लेखक भरमार भेटत। एहिसँ ने साहित्य समृद्ध होइछ आ ने लेखकक प्रतिष्ठा बढ़ैछ।

तथापि, 'लिखबाक उत्साह होयब, सेहो की मामूली बात थिकै ? प्रशंसनीय तँ ओहो थिकैके।' कहैत छथि, प्रोफेसर भीमनाथ झा ।

ठीके, लेखकक सृजनक उत्साहसँ के असहमत हयत. अस्तु, प्रेरणा आ परिश्रम सहयोगसँ सफलता भेटि सकैछ।


ड्राफ्ट आ फाइनल कॉपी  

पढ़ब आ सुधारब लेखन प्रक्रियाक अभिन्न अंग थिकैक। आने सब कला-जकाँ, सृजन क्षमताक विकास सेहो क्रमशः होइछ। प्रतिभा आ क्षमताक योगदान तँ  होइते छैक।यात्री वा राजकमल एकहि दिनमे दक्ष नहि भए गेल हेताह। साहित्यमे प्रेरक प्रसंगक अभाव नहि।  कला सिखल जाइछ, अध्ययन आ अभ्याससँ माँजल जाइछ। से चाहे लिखब हो वा नाच- गान-फोटोग्राफी।  सत्याश्रमायां सकलार्थसिद्धिः। परिश्रमक बिना साधारण आ उत्तमक बीचक दूरी पार करब असंभव. ई नव, पुरान, सिद्धहस्त , सभक लेल लागू हौइछ। तेँ , लिखबा काल साकांछ रही. लिखू, पढ़ू आ  सुधारू। अपन कृतिक संपादन मात्सर्यसँ नहि, निर्ममतासँ काटि-छाँटि कए करू. शब्दकोष आ thesaurus लगमे राखू ;  कम्यूटरक पर लिखबा काल ई  सब सहायता चुटकी बजबैत, इंटरनेटहि पर भेटि जायत। 

बेर-बेर सुधार कृतिकेँ चमकबैछ; कनिएक गुड़क बगिया नहि बनैत छैक!  

लिखल वस्तुक बेर-बेर सुधारक विषयमे पी सी एलेग्जेंडर अपन संस्मरणमे लिखैत छथि,’ इन्दिरा गाँधी compulsive editor रहथि। कोनो  वक्तव्यक ड्राफ्टकेँ इन्दिरा अंत-अंत धरि कटैत, छँटैत, सुधारैत रहथि ।’2
राजनेताक एहि अभ्यासक पाछाँ एके टा उद्देश्य बूझि पड़ैछ: जे किछु बाजी से सशक्त हो, सारगर्भित हो, श्रोता धरि सोझे पहुँचि जाए। जँ से भेल, तँ, संवाद सार्थक भेल।  

सुधारक हेतु  सबसँ पहिने अनावश्यक अंश आ पुनरावृत्तिकेँ हंटाबी। यद्यपि, कतेक बेर वाक्यमे आवश्यकतासँ अतिरिक्त शब्द, अलंकारक रूपमे अबैछ। मुदा, एहन शब्द जकरा छाँटि देने कथ्य प्रभावित नहि होइक वा  भाषाक लालित्यक ह्रास नहि होइक,अनावश्यक थिक। विशेषतः जँ कोनो शब्द हँटओने वाक्य आओर चुश्त आ दुरुश्त लगैक, कथ्य सशक्त होइक, तँ ओकरा हंटायबे उचित।  

तहिना, आलेखक ओ अंश जकरा हँटओने कथ्य प्रभावित नहि होइछ, ओ अंश अनावश्यक थिक, ओकरा फसिलक बीचक मोथा बूझि उखाड़बे उचित। कारण, जहिना शरीरक अनावश्यक चर्बी कम भेने काया स्वस्थ लगैत छैक, मोथा उखाड़ने फसिलक वृद्धि होइछ, तहिना अनावश्यक शब्द वा अंश छँटने लेखन प्रभावी होइछ. इएह तर्क वा उक्तिक पुनरावृत्ति पर सेहो लागू होइछ; तर्क वा उक्तिक पुनरावृत्ति लेखकेँ दुर्बल करैछ। तेँ, ओकरो सबकेँ छाँटबे उचित। एकटा विन्दु आओर; अत्यधिक विशेषण कथ्यकेँ दुर्बल करैछ। 


विचार, भाषा, भावक चोरि आ नकल (Plagiarism)

भूमण्डलीकरणक युगमे विचार, भाषा वा भावक नकल (Plagiarism) सुलभ भए गेलैए। ई रोग ज्ञान-विज्ञान आ मानविकीसँ ल’ कए सृजनात्मक लेखन धरि पसरि चुकल अछि. जेना वायु श्वास द्वारा प्रसारित रोगक संवाहक थिक, तहिना कतेको गोटे इंटरनेट आ कंप्यूटरक उपयोग चोरिक सहोदर-जकाँ करैत छथि।     

एखन इंटरनेट आ Plagiarism checking tool क उपयोगसँ नक़ल पकड़ब (Plagiarism check) सुलभ अछि। तथापि, कतेको बेर तुरत प्रसिद्धि आ पुरस्कारक लोभ अप्रतिष्ठा आ दण्डक भय पर भारी पड़ैछ। कदाचित्, केओ अपन काज सुतारिओ लैछ। मुदा, नीक-बेजायक विचार व्यक्तिगत निर्णय थिक। मुदा, उद्धृत सामग्रीक श्रोत आ लेखकक चर्चा यथास्थान अवश्य हो।
सर्वविदित अछि, प्रतिष्ठित अनुसंधानमूलक पत्र-पत्रिका प्रकाशनसँ पूर्व मौलिक आलेखकेँ चोरिक (Plagiarism क) निकती पर तौलैछ, विशेषज्ञक सहायतासँ मौलिकताक  जाँच-पड़ताल करबैछ। मुदा, मैथिली साहित्यमे एकर चलन छैक वा नहि, कहब कठिन। तथापि, नकल पकड़ब आब सुलभ छैक, तकर ज्ञान लेखकक हेतु  हितकारी थिक. 


आलोचनाक प्रति सजगता, तर्कबुद्धिसँ आलोचनाक परीक्षा 

‘निन्दक नियरे राखिए आंगन कुटी छबाय’ सुपरिचित सूक्ति थिक. मुदा, आलोचना/ समालोचना सबकेँ नहि रुचैत छैक। हालहिमे एक साहित्यकार बंधु कहलनि, जे प्रकाशनक हेतु प्रस्तुत आलेखमे सुधारक सुझाव दैत छिऐक, तँ लेखकलोकनिकेँ नीक नहि लगैत छनि। कतेक गोटे, ‘ फल्लाँ, ‘नेगेटिव’ छथि’ कहि मुँह फुला लैत छथि।’

हमरा जनैत निरपेक्ष आलोचना रचनाकारक आगाँक अयना थिकैक। आब, अयना देखि, बढ़ल दाढ़ी काटब, वा  चेहराक मसुवृद्धिक चिकित्सा करायब, वा अयनाकेँ पटकि कए फोड़ि देबैक, से अपन विवेक। एतद्धि। मुदा, लेखनक प्रक्रियामे गुनब, सुनब, आ सुधारक  प्रासंगिकता  निर्विवाद छैक।       


सहयोगी एवं सहकर्मी-समानधर्माक अनौपचारिक सलाह (Informal Peer review)

जेना पहिने चर्चा भेले, वैज्ञानिक विधामे कृतिक नीर-क्षीर परीक्षाक हेतु विधाक विशेषज्ञसँ  गोपनीय अभ्युक्ति (comment) माङल जाइछ। सृजनात्मक रचनाक हेतु से ने आवश्यक, आ ने संभव। ओहुना रचनाकार अपन कृति, अपन सहकर्मी, मित्र वा परिवारजनकेँ अनौपचारिक रूपेँ सुनबिते छथिन; ‘श्रुति’ कृति साझा करबाक आदिम माध्यम छल। तहिना, सहकर्मी-समानधर्माक सुझाव रचनाकारक हेतु बड़का सहायता थिक. जँ कोनो वरिष्ठ साहित्यकारक सम्मति-सुझाओ भेटय, तँ, सोनामे सोहागा।

उपसंहार 

लेखन व्यवसाय आ रूचि दुनू थिक, जाहिमे प्रतिभा आ परिश्रम दुनूक योगदान होइछ। सरल भाषामे उपयोगी विषयक संक्षिप्त, किन्तु, पारदर्शी प्रतिपादन सफल लेखनक गुण थिक. अनावश्यक सामग्री, वर्तनीक अशुद्धि, एकरूपताक अभाव, पुनरावृत्ति, आ आन ठामसँ उठाओल सामग्रीक संयोजन लेखनकेँ दुर्बल करैछ। सहयोगी एवं सहकर्मी-सहधर्मीक सुझावक संयोजनसँ लेखन परिमार्जित होइछ।


सहायक सामग्री

  1. Quiller-Couch, Aurther Sir. On The Art of Writing. New York: G P Putnam’s,1916. 

https://www.gutenberg.org/ebooks/17470 accessed 12 Dec 2024.     

  1. झा, पं. गोविन्द कल्याणी कोष, 1999, महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन,  दरभंगा।

https://archive.org/details/dli.language.2334 accessed 12 Dec 2024.

3. Balan S. Off The Shelf : On Books, People and Places. 2019, Speaking Tiger Books LLP.  

संदर्भ 

      1 . झा, रमानाथ झा. मधुबनीक छात्रसँ, विविध प्रबंध, पृष्ठ संख्या 86. 

      2. Alexander P C. My Years With Indira Gandhi. Vision Books 1991. 


         


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