कुँवर सिंह महाविद्यालय, एवं दरभंगा मेडिकल कालेज, लहेरिया सरायक अध्याय
१९७१ वर्षमे हमरालोकनिक इलाकामे केवल दुइए टा कालेज रहैक- झंझारपुर जनता कालेज
आ सरिसब कालेज. सायंसक पढ़ाई दुनूमे कोनोमे
नहि रहैक. हमरा डाक्टर बनबाक धुनि सवार छल. ताहिसँ कम वा बेसी, कथूक कल्पनाओ
नहि छल. लगसँ आओर कोनो व्यवसाय देखनहुँ नहि रहिऐक. छोट वयसमे हमरा रोगो खूब भेल.
चिकित्सा लेल दरभंगा जाइ. डाक्टर लोकनिक ताम-झाम, यंत्र-उपकरण आ चमक-दमक मोहि
लियअ, डाक्टरलोकनिक छवि आकृष्ट करय. रोड पर जतेक गाड़ी देखिऐक, अधिकतर डाक्टरे
लोकनिक रहनि. ऊपरसँ डाक्टर बनबाक विचारक पाछू एकटा आओर प्रेरणा रहथि: स्व. किरणजी.
यद्यपि हुनका हम कहिओ वैदागरी करैत देखने नहि रहियनि, मुदा, ओ वैद्य रहथि,.
एतावता मैट्रिक पास केलाक पछाति, गाममे पढ़बाक इच्छा नहि छल. मुदा, परिवारक साधन
सीमित छलैक. दादा हमर उपलब्धिसँ गौरवान्वित होथि, मुदा, हाथ छुच्छ रहनि. जमीन्दारी
उन्मूलनक संगहि ओ बेरोजगार भए गेल रहथि. हुनकर नौकरीमे कोनो प्रोविडेंट फण्ड,
पेंशन वा ग्रैच्युटी तं रहबे नहि करनि. ऊपरसँ जहिया सेवानिवृत्त भेलाह, किछु मासक
वेतन संबंधी जमीन्दारक ओतय बांकीए रहि गेल छलनि. तथापि, हुनका पाछू घूरि तकबाक
प्रवृत्ति नहि रहनि, असंतोषक गप मुँहसँ नहि बहराइनि. तथापि, सुनैत छी, कहिओ काल कहथिन:
‘सब दिन तं नौकरी संबंधीएक लोकनिक केलहुँ, मुदा, एखनहुँ ओएह लोकनि बंकिऔता रखने
छथि!’
फलतः, मैट्रिकक परीक्षामे अप्रत्याशित सफलताक अछैतो, आगू नहि पढ़ि सकब कि नहि, ताहिमे
हमरा संदेह होमए लागल छल. मुदा, अंततः हमर संदेह निराधार प्रमाणित भेल, आ हमर जेठ
भाई उदयनाथ झा प्रसिद्ध ऊधोजीक प्रयासें हमर पित्ती उमेश बाबूक ओतय हमर रहबाक
व्यवस्था भेल आ हम नवजात कुँवर सिंह कालेजमे नाम
लिखाओल.
कुँवर सिंह कालेजक स्थापना ओही वर्ष (१९७१ ई.) मे भेल रहैक. संस्थापक लोकनिमे
डाक्टर ब्रह्मानन्द सिंह अगुआ रहथि. कालेज डाक्टर ब्रह्मानन्द सिंहक सहायक, परमेश्वर
प्रसादक निजी भवनमे चलैत रहैक. स्थानीय सी एम कालेजक अर्थशास्त्र विभागक लेक्चरर,
रामविनोद सिंह, प्राचार्य रहथि. अधिकतर शिक्षक सद्यः उत्तीर्ण युवक आ दाता लोकनिक
परिवारक सदस्य आ संबंधी लोकनि रहथिन.
शिक्षक लोकनिमे राघवेन्द्र प्रसाद अग्रवाल स्मरण अबैत छथि. डाक्टर अग्रवाल
पढ़बा-लिखबामे निष्णात, अनुभवी आ परिपक्व रहथि. ओहि समयमे हुनका-सन योग्य आओर कोनो
शिक्षक नहि रहथि. पछाति, ओ वनस्पति विज्ञानक अनेक पुस्तको लिखलनि आ यशस्वी,
किन्तु, अल्पायु भेलाह. विज्ञान संकायमे जीव विज्ञानं विभागक केशव कुमार सिंह एवं रसायन शास्त्र विभागक विश्वेश्वर सिंह मन
पड़ैत छथि. दुर्भाग्यवश, इहो दुनू गोटे अल्पायु भेलाह; युवक केशव कुमार सिंहकें
काला अजार लए गेलनि, आ विश्वेश्वर सिंह कैंसरक शिकार भेलाह. तहिया काला अजारक
कारगर औषधि नहि भेटैक. औषधिक अनुपलब्धताक कारण केशव कुमार सिंहक निधन हमरा बहुत
दिन धरि विचलित केने रहल. किन्तु, दुःखद थिक, एतेक दिनक पछातिओ बिहारसँ काला अजारक
काल निर्मूल नहि भेले.
श्याम वर्ण, गठीला शरीर आ औसत कद. केशव कुमार सिंह मृदु भाषी, मुदा, विचारें
आग्रही रहथि. हमरा ओ खूब मानथि. तें, हुनका प्रति हमरो एकटा भक्ति भाव भए गेल छल.
संयोगसँ जहिया ओ कला अजारसँ पीड़ित भेलाह, हम दरभंगा मेडिकल कालेजक छात्र भए गेल
रही. तें, जखन ओ दरभंगा मेडिकल कालेजक मेडिकल वार्डमे भर्ती रहथि, करीब मास दिन
भरि हम हुनका ओगरि, हुनक बेडक कातमे राति बितौने हएब. मुदा, ओ बंचि नहि सकलाह.
दुःखक विषय जे जखन डाक्टर सी पी ठाकुर-सन यशस्वी चिकित्सक भारतक स्वास्थ्य मन्त्री
भेलाह तकर पछातिओ बिहारसँ काला अजारक उन्मूलन नहि भए सकल.
सत्तरिक दशकक आरंभ धरि बिहारक शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त भए चुकल रहैक.ताधरि
कालेजक संख्या ततेक नहि रहैक, किन्तु, परीक्षा प्रणाली अत्यंत दूषित भए गेल रहैक;
विश्वविद्यालयक परीक्षामे किताबक नकल आम रहैक. कुँवर सिंह कालेज नवे टा नहि रहैक.
शिक्षक लोकनिक उत्साहक अछैतो हुनका लोकनिक अनुभवक अभावक पढ़ाईक मांग पूरा नहि कए
पबैक. संयोगसँ , १९७३क वार्षिक परीक्षासँ किछुए दिन पूर्व विश्वविद्यालयक कमान,
नागमणि,आइ ए एसक हाथमे आबी गेल रहनि. नागमणि अनुभवी प्रशासक आ शिक्षा व्यवस्थामे
सुधारक प्रति कटिबद्ध आइ ए एस अफसर रहथि. ओ परीक्षामे सख्ती कए देलखिन. जर्जर
शिक्षा व्यवस्था आ अचानक सख्त परीक्षाक फल ई भेलैक जे आइ एस-सीक वार्षिक परीक्षामे
लगभग ९५ प्रतिशत विद्यार्थी असफल भए गेलाह
दरभंगा मेडिकल कालेज
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1973
ई. मे हमर मनोरथ पूर भेल. 13 नवंबर 1973 क दिन दरभंगा मेडिकल
कालेजमे नाम लिखल गेल. शरीरमे नव उर्जाक अनुभूति स्वाभाविके छल, आ जीवनक धार सेहो
एकटा नव गति आ दिशा पकड़लक. इहो संयोगे जे ठीक तीन वर्ष पूर्व, 1970 ई. मे मेडिकल
कालेजमे एडमिशनक हेतु संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा आरंभ भेल रहैक. एहिसँ हमरा-सन
अनेको छात्रक हित भेल रहैक; प्रतियोगिता परीक्षाक बलें खेतिहर, किसान, पोस्टमास्टर
आ किरानीक सक्षम सन्तानक हेतु मेडिकल कालेजक द्वारि एकाएक खुजि गेल रहैक. ई हमरा-सन
सक्षम, किन्तु नवजात कालेजसँ आयल, छात्रक हेतु एक क्रांति छल. लहेरियासरायमे
हमरालोकनिक आवास आ मेडिकल कालेजक गेटक बीच मोसकिलसँ 100 मीटरक दूरी छल हेतैक.
कुँवर सिंह कालेज आ दरभंगा मेडिकल कालेजक
बीच केवल एकटा सड़क रहैक. अस्तु, व्यवहारिक दृष्टिऐ हम सड़कक एक कातक एक कालेजसँ
बहरा सड़कक दोसर कातक दोसर कालेजमे जायब शुरू केलहुँ. मुदा, पहिले प्रयासमे हमरा
भविष्यक हेतु ई बड़का छरपान (giant leap)
छल.
ओहि युगमे दरभंगा-सन शहरमे मेडिकल कालेजक पढ़ाई अभिभावक हेतु बड़का बोझ नहि रहैक.
प्रत्येक चारि मास पर मात्र पचास टाका कालेजक ट्यूशन फी लगैक. होस्टलमे एकटा सीटक
हेतु मात्र बाईस टाका किराया. हमरा तं प्रतिमाह सवा सौ टाका राष्ट्रीय योग्यता
छात्रवृत्ति (National Merit Scholarship) सेहो भेटिते छल. चारि साँझ भोजनक व्यवस्था छले. पोथीओ ततेक महग नहि,
सेहो सीनियर लोकिनसँ भेटिए जाइक. ओहुना मेडिकल कालेजक पढ़ाईओ एहन रहैक जाहिमे
विद्यार्थी, शिक्षक आ सीनियर-जूनियरक बीच लंबा आ सघन सहयोगक अवसरो रहैक आ आवश्यकता
सेहो. तें, अपरिचित वातावरणमे अबितो अपरिचयक बाधा बेसी दिन धरि नहि टिकि पबैक. ई
मेडिकल कालेजक ओहि युगक शिक्षा आ संस्कृति बड़का गुण रहैक.
तथापि, कालेज सब आ खास कए मेडिकल आ इन्जिनीरिंग कालेज सबमे रैंगिंग वा सीनियर
द्वारा नव छात्रकें सामूहिक रूपें हुथबाक वा रेबाड़क परंपरा एकटा एहन रोग रहैक जे
कानूनी वर्जनाक अछैतो छात्र पर भारी पड़ैक. संयोगवश, रैगिंग आइओ छात्र समुदायक
अशान्ति एवं जानलेवा कारणक रूपें प्रचलिते अछि. हम मोटामोटी रैगिंगसँ बंचि गेलहुँ,
तकर संतोष अछि.
ओहि युगमे मेडिकल शिक्षाक चारू कात एकटा आभामंडल रहैक. संगहि, शिक्षक आ छात्रक बीच
बड़का खाधि रहैक. किछु शिक्षक लोकनिक मनमे प्रतिष्ठाक एहन भाव रहनि, जे छात्रक छोटो
भूल-चूक प्रतिशोध आ अनौपचारिक दण्डक कारण भए जाइक. दोसर दिस, विद्यार्थी लोकनि
सेहो निर्दोष नहि रहथि. जातीय परिचय आ अस्मिताक प्रति छात्र सब सजग रहथि. बहुधा
छात्र लोकनि जाति आ phylum
ताकि कए रूम-मेट आ मित्र बनबथि. झगड़ा-झंझट भेलापर जातीय नेतालोकनि द्वन्दक नेतृत्व
अपना हाथमे लए तिलकें ताड़ धरि बना देथिन; कखनो काल किछु शिक्षक लोकनि सेहो एहि
राजनीतिमे रूचि लेथि. मुदा, बहुतो छात्र एहि रोगसँ मुक्त रहथि. हमरा लोकनिक फर्स्ट
इयरक रूम-मेट- कीर्तिनाथ झा, सैयद मुसर्रत हुसैन, सतीश कुमार दास आ विजय कुमार
सिन्हा- चारि विभिन्न जाति आ दू भिन्न-भिन्न संप्रदायक इन्द्रधनुषी ग्रुप रही.
स्वजातीय छात्र लोकनिक संगोरक आह्वान नहि भेल छल, से नहि. मुदा, हमरालोकनि अपन
स्वतंत्र उदारवादी विचारधाराक प्रति प्रतिबद्ध रही, आ एखनो छी, तकर गौरव अछि. हमरा
सबकें गौरव छल जे अपने बुत्ता पर कालेजमे प्रवेश केने छी, आ अपनहि बुत्ता पर पास
कए बहरायब. ओना मेडिकल कालेजक वातावरण
हमरा लेल सर्वथा नव छल. संगहि, नव व्यवसायमे प्रवेशक एहि डेगसँ हम अभूतपूर्व आनंद
आ उत्साहक अनुभव करी.
पढ़ाईक आरंभ शरीर रचना, शरीर-क्रिया तथा जीव रसायनक मूलभूत पाठ आ प्रयोगसँ भेल
रहैक. ई एकटा अभूतपूर्व अनुभव छल. मानव
शरीरक आतंरिक संरचनाक देखब रोमांचक लागय. भोरमे एकटा लेक्चर क्लासक बाद दिनचर्या
शरीर छेदन (dissection)सँ आरंभ होइक. हमरा ओहिमे बड्ड मन
लागय.
सम्पूर्ण बैच एकहि संग डिसेक्शन हॉलमे एकत्र होइक. पाँच गोट भिन्न-भिन्न
ग्रुप. आगूमे बीससँ तीस गोट मार्बल-टॉप
टेबुल. ताहि पर मानव शरीर. 5-10 छात्र लोकनिक ग्रुप निर्धारित अवधिमे शरीरक
निर्धारित आ निर्दिष्ट अंगक डिसेक्शन करथि. शरीरक एक अंशक डिसेक्शनक अवधि पूरा
भेला पर मौखिक परीक्षा होइक जाहिसँ ग्रुपमे निरंतर प्रतियोगिताक वातावरण बनल रहैक.
बेरुक पहर ट्युटोरियल क्लास एवं शारीर-क्रिया तथा जीव रसायनक प्रायोगिक क्लास
होइक. अर्थात् भोर आठ बजेसँ बेरुक पहर करीब चारि बजे धरि लगातार कालेजक पढ़ाई.
सर्वविदित अछि, दरभंगा मेडिकल कालेजक स्थापना दरभंगा राज एवं महाराज
रमेश्वर सिंहक विपुल दानसँ भेल छल. मेडिकल कालेज एवं अस्पतालक विशाल परिसरक लगभग
सवा दू सौ एकड़क क्षेत्र महाराजहिक देन थिकनि. प्रशासनक ढिलाई एवं भूमाफियाक आक्रमणक
कारण कालेज एवं अस्पतालक भूमिक पैघ क्षेत्रक अतिक्रमण भेल छैक. एहिसँ कालेज एवं
अस्पतालक परिसर दिनानुदिन सिकुड़ैत गेलैए. मुदा, प्रशासनक लेल धनि-सन.
एहि परिसरक पुबारि भागमे बुनियादी विज्ञान- शरीर रचना, शरीर-क्रिया विज्ञान एवं
जीव रसायन विभागक अतिरिक्त छात्रावास एवं शिक्षक लोकनिक आवास रहनि. पश्चिम भागक
क्षेत्रमे अस्पतालक विभिन्न विभाग एवं कालेज तथा अस्पतालक प्रशासनिक खंड रहैक. कालेज एवं अस्पतालक भूगोल एखनहु ओहने
छैक.
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दरभंगा मेडिकल स्कूल, एवं पछाति कालेजक आरंभिक काल कहन रहैक, से कहब मोसकिल.
मुदा, सत्तरिक दशकमे कालेज आ अस्पतालक हाल स्वतंत्र भारतक अर्थव्यवस्थाए-जकाँ
जर्ज्जर रहैक.
सर्वविदित अछि, भारतक स्वतंत्रताक पछाति जाहि आर्थिक व्यवस्थाक स्थापना भेल ताहिमे
गरीबीएकें महिमामंडित कएल गेलैक. सादगी-अपरिग्रह-त्याग-तपस्या अनुकरणीय थिक; निजी
उद्यम आ अत्यधिक संपत्तिक उपार्जनकें हेय दृष्टिसँ देखबाक दर्शनकें बल भेटलैक.
कल-कारखानामे कोन वस्तुक कतेक उत्पादन हेतैक तकर निर्धारण मांग आ आपूर्तिक नहि,
सरकारक कोटा-परमिट करैत छल. कोटा-परमिट राजक एही नीतिक कारण सरकार आमदनीक गति
बूँद-बूँदसँ भरैत घैल-सन रहैक. एहना स्थितिमे विकासक लेल टाका ओतेक कतयसँ? एतबे
नहि, उद्योग-धंधासँ लए कए शिक्षा धरि सरकारेक एकाधिकार. मुदा, सरकारक हाथ तं छुच्छ
रहैक. तें, सरकार बजटमे कर्मचारीक वेतनक
अतिरिक्त केवल दिन-प्रतिदिनक खर्चाक प्रावधान होइत छलैक. एहना स्थितिमे संस्थाक
विकासक हेतु अर्थ कतयसँ अबितैक. तें, जतय जे पुरान वस्तु रहैक, ताहीसँ काज चलबय
पड़ैक. हमरालोकनिक शिक्षक प्रोफ़ेसर डी. एन. शर्मा कहथिन,’ हमरालोकनिक प्रयोगशाला
पुरातत्व विभागक म्यूजियम थिक.’ लेबोरेटरी इन्वेस्टीगेशन, मशीन आ उपकरणक अत्यंत
कमी, एतेक धरि जे कार्डियोलॉजी विभागमे ई
सी जी मशीन धरि नहि रहैक. कालेज
लाइब्रेरीमे पोथीक अभाव. छात्रक हेतु एक्स्ट्राकरीकुलर (extracurricular) गतिविधिक कोनो व्यवस्था
नहि. एक्स्ट्राम्यूरल लेक्चर (Extramural lecture), सेमिनार, सी एम ई (Continuing Medical Education) सन कोनो गतिविधि नहि. कालेजमे क्लिनिकल
मीटिंग आ सम्मलेन कहियो होइत नहि देखलिऐक. होस्टल सबमे केवल सुतबाक व्यवस्था रहैक.
मेस विद्यार्थी लोकनि स्वयं चलबाबथि. बेसी काल बिजली गुल, हमरा लोकनि किरोसीन
लैंपक इजोतमे पढ़ि एम बी बी एस पास केलहुँ.
किरासिन तेल आ चीनीक लेल हमरा सबकें राशन कार्ड अवश्य भेटल छल. व्यवस्थाक नाम पर
एतबे. ऊपरसँ प्रशासन एकदम लचर. हाउससर्जन लोकनिक हॉस्टलमे कमराक अनाधिकार दखल आम
रहैक. एहि सबसँ द्वन्द आ मारि-पीट सेहो होइक. 1975 ई. मे ईस्ट होस्टलमे एक बम
काण्डमे किछु छात्र मारलो गेल रहथि. किछु कालेज छोड़ि भागिओ गेल रहथि. गुण एतबे रहैक जे नियमतः क्लास होइत छलैक.
शिक्षक लोकनि दक्ष रहथि आ तत्पर रहैत छलाह. क्लिनिकल टीचिंगक स्तर नीक रहैक. रोगीक
संख्या आ विविधताक पर्याप्त रहैक. परीक्षा सख्तीसँ होइक. यद्यपि, 1971-72 ई. क बीच
मेडिकल कालेजक यूनिवर्सिटी परीक्षामे ओपन बुक सिस्टम सेहो भेल रहैक; मुदा, से
अपवाद भेल. किन्तु, सबसँ बड़का दोष रहैक जे कोनो अकेडेमिक कैलेन्डरक पालन नहि भेने,
बैच सब अनेरे विलंबसँ पास भए कए बहराइत रहैक, जकर असरि छात्रक जीविका आ कैरियर पर
पड़ैक. मुदा, लगैत नहि अछि संस्थागत स्तर पर अधिकारी लोकनिक चेतनामे छात्रक भविष्यक
प्रति कोनो चिंता रहनि. तें, अकेडेमिक कैलेन्डरक अनुपालन वा करिकुलर फ्रेमवर्कक
निर्धारण आ पालनक चर्चा कहिओ ककरो मुँहे नहि सुनियैक. प्रत्येक विभाग स्वतंत्र
रूपें छात्रक कोर्स पूरा करबैत छल वा अपूर्णे छोड़ि दैक. हमरा जनैत, प्राइवेट
प्रैक्टिसक अवसरक अभावक कारण प्रीक्लिनिकल एवं पाराक्लिनिकल विभाग पढ़ाई आ कोर्स
पूरा करबामे क्लिनिकल विभाग सबसँ अवश्य बेसी तत्पर छल.
दरभंगा-लहेरियासराय शहरमे बिजली, जल आपूर्ति एवं सफाई-सन नागरिक सुविधा एवं
जनस्वास्थ्यक तं गपे नहि हो. कालेज एवं अस्पताल परिसर पर सेहो एहि सबह्क
दुष्प्रभाव पड़ैक; तेज बरखा भेने कालेज, अस्पताल, होस्टल, फुटबॉल फील्ड समेत
सम्पूर्ण परिसर जलमग्न भए जाइक. डाक्टर, छात्र, स्टाफ, रोगी आ रोगीक परिजन सब
एहिसँ प्रभावित होथि, कष्ट सहथि. ऊपरसँ बिजली नहि तं पानिक आपूर्ति नहि. छात्र
लोकनि सड़कक कातमे हैण्डपम्प लग नहाथि. पुरान लोग जे मेडिकल कालेजक नीक काल देखने
रहथि, तनिका ई आश्चर्यजनक लगनि. मुदा, प्रशासन ले धनि सन . ओ लोकनि अशक्त वा
उदासीन रहथि. तथापि, एहि दुर्दशाक
भुक्तभोगी तं ओहो लोकनि रहबे करथि.
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सत्तरिक दशक दशक लेल उथल-पुथलक दशक छल. 1971 मे भारत पाकिस्तान युद्ध भेलैक, बांग्लादेशक उदय
भेलैक. अगिला आम चुनावमे इंदिरा गांधीक अभूतपूर्व विजय भेलनि. ऐतिहासिक विजय आ
आत्मविश्वासक अछैतो आम नागरिकक जीवनमे सकारात्मक परिवर्तन तं नहिए भेलैक, बल्कि 1975
धरि जनाक्रोशक अगड़ाही एहन रूप लेलक जे जयप्रकाश नारायणकें संपूर्ण क्रान्तिक
आह्वानक संग सड़क पर उतरय पड़लनि. सरकारकें कबाछु लागि गेलैक, आ आरंभ भए गेलिक
क्रिया-प्रतिक्रियाक दौर, इमरजेंसी आ
नागरिक अधिकारक हरण आ दमन.
सामाजिक उथल-पुथलक एहि दौरमे बिहार अगुआ भेल. छात्रलोकनिक सहभागिता आन्दोलनकें
बल देलकैक. लालू प्रसाद, सुशील मोदी,
नितीश कुमार आदि एही जनांदोलनक प्रयोगशालाक प्रोडक्ट थिकाह. मेडिकल कालेजक छात्र
लोकनि सेहो एहि आन्दोलनमे जोशसँ सहभागी
भेलाह. कतेक बेर कालेज बंद भेल. कतेको गोटे जेल गेलाह. अंततः, 1977 क आम
चुनावमे इंदिरा हारलीह. किन्तु, एहि सभक बीच हमरा लोकनिक बैच जे जुलाई 1978 मे पास
करैत से जनवरी 1980 मे पास भेल; हमरा
लोकनिक संपूर्ण बैच डेढ़ वर्ष पाछू भए गेल.
सत्यतः, एहि पराभवसँ केवल मेडिकल शिक्षा प्रभावित नहि भेल. शिक्षाशास्त्री आ
राजनेता लोकनिक मिली भगतसँ छठम दशकक उत्तरार्द्ध आ सातम दशकक बीच बिहारक शिक्षा
व्यवस्था तेहन घोर-मट्ठा भए गेल रहैक जे तकर दुष्परिणाम बिहारक छात्र वर्ग अनेक
दशक तक तं भोगिते रहल, बिहार शिक्षा व्यवस्थाक एहि अवनतिसँ आइओ धरि उबरि नहि सकल
अछि. आ आइओ कालेज आ विश्वविद्यालय राजनेता आ शिक्षक वर्ग चरौंत बनि कए रहि गेल
अछि.