बिहनि कथा : नार - पुड़इनि
जाधरि मोबाइल फोन केर चलंसारि नहि भेल रहैक,लोक चैनसँ रहैत छल . मुदा जहियासँ मोबाइल फ़ोन , आ एस एम एस केर चलंसारि भेलैये, लोक केर देहमे उरकुस्सी लागि गेलैये. ने दिनमे निन्न, आ ने रातिमे चैन. पहिने तँ लोककेँ बड़ दिब लगलैक, छगुन्ता लगलैक - जत्तहि जाउ, फोन संगहि . मुदा, आब फोन बलाय लागय लगलइए . आ किएक नहि? पहिने कमाउ लोकनि गामसँ बाहर जाथि तँ माय-बाप-परिवारजन कहथिन -' बाऊ , पहुँचिते चिट्ठी लिखि देब. मोन लागल रहत.' जँ बाऊकेँ मोन रहलनि, पलखति भेटलनि, आ बाऊ चिठ्ठी लिखलनि तँ चिठ्ठी अबैत-अबैत पख बीति जाइ, मास लागि जाइ . आ जाबत चिट्ठी आओत लोक मोनकेँ मनाबय - 'एखने तँ गेबे केलाहे, चिट्ठी अबैमे तँ समय लगतै.' मुदा, आब बाऊ लोकनि नेना-भुटका पर्यन्तकेँ मोबाइल कीनि-कीनि देबय लगलथिन . कि तँ, धिया-पुता काबूमे रहत. अपहरण-अवघात हेतैक तँ चटसँ बूझि जेबै. मुदा, आब फोने बलाय भ’ गेलनि. क्षणे- क्षण फोन आ पले-पल मेसेज. आ जँ कदाचित, नेना फोनेकेँ बैगमे राखि, खेलयबा लेल भागि गेल , बाथरूम -पैखाना चलि गेल, आ फ़ोन नहि उठौलक, तँ माय-बापकेँ तुरते दाँती लागय लगैत छनि ! आ जँ क्लास छोड़ि, बाज़ारमे बौआइत नेना, फुसफुसाइत माय-बापकेँ दमसौलकनि - 'एखनि फोन राखू. हम क्लासमे छी ' तँ जान-मे-जान अबैत छनि . कहैत छथिन,-'जाह- जाह , पढ़ह . हम नहि बुझलियैक क्लासमे एतेक काल लागि गेलैक. '
डाक्टर सिद्दीकीकेँ तकरे परि भेलनि. दू टा बेटी . सुन्नरि, गोरि-नारि आ सुशील. अपने धर्मप्राण, आ पत्नी कुशल गृहणी .1978 इसवीमे एम बी बी एस पास भेलाह तँ बिहार सरकार लग डाक्टरक कमी रहै, मुदा, सरकारकेँ रोजगार देबाक वैभव नहि रहैक. डाक्टर लोकनि कॉलेजसँ बहराइते नौकरीक जोगाड़मे जहत्तर-पहत्तर भागथि. केओ दिल्ली, केओ गुजरात , केओ सेना-बी एस एफ, तँ केओ ईरान -सऊदी अरबिया , लीबिया धरि छानि मारथि .डाक्टर सिद्दीकी तँ एम बी बी एस पास हेबामे दू बेर ओंघरायल रहथि . मुदा, पास भ’ कए कॉलेजसँ बहरयलाह तँ नौकरी भेटबामे समय नहि लगलनि, सरोकारी सब ईरान-तेहरानमे रहथिन, हिनको झीकि लेलखिन. पछाति बियाह-दान भेलनि, धिया-पुता भेलनि . तथापि ,जखन दुनू बेटी पढ़बाजोग भेलनि तँ अपने देश मोन पड़लनि. की करितथि , देश घूरि अयलाह . टाका-पैसा जमा छलनि . बेटी सबकेँ पढ़ओलनि. मुदा, समय बदलि चुकल छलैक, से पछाति बुझबाजोग भेलनि; जाहि कम्पटीशनक बलें अपना मेडिकल कॉलेजमे मुफ्त सीट भेटल रहनि आब प्राइवेट कालेज सबमे ताहि सीट सबहक बोली लगैत छलैक आ नीलामी शुरू भ’ चुकल छलैक. जे छात्र नेता लोकनि राष्ट्रीय इमेरजेंसीक दौरान मिसा(MISA) आ डी आई आर(DIR) क क़ानूनक तहत जेल कटने छलाह ओ लोकनि मंत्री-मुख्यमंत्री आ स्वतंत्रता-सेनानी भ’ चुकल छलाह ! आ समाजक नवनेता लोकनिक धिया-पुता लोकनि सबतरि डाक्टरी-इंजीनियरिंगक फ्री-सीटपर कब्ज़ा क’ चुकल छलाह. तथापि मनोरथ छलनि; आ टाका-पैसा सेहो जमा छलनि. अंततः दुनू बेटी ले’ एकटा प्राइवेट मेडिकल कालेजमे दूटा सीट किनलनि. सोचलनि, आब तँ दुनू बहिनकेँ डाक्टर भेनहि कुशल. बेटी लोकनिकेँ हॉस्टल पठयबाकाल एकटा मोबाइल फ़ोन किनलनि आ जेठकी बेटी, आफरीनक हाथमे फ़ोन दैत दुनू बहिनकेँ लक्ष्य कय कहलथिन- 'आब तोरा सबकेँ फ़ोन दैत छियह, सब दिन साँझमे फ़ोन करिहह, मोन लागल रहत . छोटकीकेँ ई गप्प पसिन्न नहि पड़लैक. कहलकनि- 'फ़ोन तँ दीदीए टा करत. मोन तँ ओकरे ले लागल रहत. फ़ोन तँ ओकरे देलियैक ने. दुलारि ,बेटी !'
डाक्टर सिद्दीकीकेँ हँसी लागि गेलनि . कहलखिन - 'दुलारि के छै , से एखनि की बुझबहक ? अपन धिया-पुता होइत जेतह तखन गप्प बुझबामे अओतह .'
'अनेरे . हमरा नहि काज अछि धिया-पुताक. झुठे हेडेक !'
डाक्टर सिद्दीकीकेँ गप्पक सूत्र भेटलनि .कहलखिन- 'ठीके. तेँ आब निन्नसँ सूतब. कतेक लड़ैत जाइत छलह दुनू बहिन. आ हेडेक , से तँ, तों थिकहे, फिरदौस.' आ डाक्टर सिद्दीककेँ मुसुकी छूटि गेलनि.
-' तेँ तँ फ़ोन हमरा नहि देलहुँ ने .' फिरदौस उलहन देलकनि .
डाक्टर सिद्दीकी सोचलनि - ' धुर , कहै छैक , जें एतेक ऋण तँ घोड़ो किन.' आ एकटा आओर फ़ोन कीनि कय फिरदौसकेँ सेहो द’ देलखिन .
मुदा, शीघ्रे डाक्टर साहेबकेँ बुझबामे आबय लगलनि जे फ़ोन समस्याक समाधान नहि, कदाचित्, समस्याक जड़िए ने हो. सोचथि, कोना पटनासँ दिल्ली-तेहरान- आ ईरानक सुदूर प्रान्त, फरात नदीक घाटीमे जाइत छलाह . आ कोना मास-क-मासक पछाति हथचिट्ठीएसँ घर-परिवारसँ संपर्क करथि . आ आब ? बाप-रे-बाप . साँझ-भिनसर जँ छौंड़ी सबहक फोन नहि अबैत अछि तँ बैचेन भ’ जाइत छी .
एक दिन पत्नीकेँ कहलथिन- 'अनेरे ई दुनू बहिनसँ एतेक दुलारि बनौलिऐक. घूरि कय फोने धरि नहि करैए. हम आब नियम केलहुँ, आब एकरा सबसँ दूरे रहब .'
पत्नीकेँ हँसी लागि गेलनि. कहलथिन बड़ बेस . देखै छी , जखन दुनू बहिन छुट्टीमे आओत तँ देखब कोना कनगुरिया आंगुर पर नचबैये .'
'अनेरे !'
मुदा समस्या कोनो एक दिनुक रहै . कहियो कोनो खबरि, कहियो कोनो दुर्घटना. आ कहियो कोनो प्राकृतिक विपदा. सिद्दीकीक मोन विह्वल भ’ उठनि.
एकदिन गप्पहि-गप्पमे, ई गप्प अप्पन संगतुरिया डाक्टर राम इक़बालक संग उठौलनि . डाक्टर राम इक़बाल, डाक्टर सिद्दीकीक सहपाठी,संगतुरिया, आ सहकर्मी सब रहथिन. राम इक़बाल कहलकनि -'देखह , तोहर गप्प तँ नहि कहबह, मुदा, अप्पन गप्प कहैत छियह . हम अपने माता-पिताक आठ सन्तानमे सबसँ छोट, आ मायक दुलारू . बाबूसँ डर होइत छल तेँ मायक लग आओर सन्हियायल रहैत छलहुँ. मुदा, गामक स्कूलक पढ़ाइ जखन ख़तम भेल , पटना आबि गेलहुँ. आब अनुमान करैत छी, हम जखन गाम छोड़ि पटना आयल छलहु मायक आँगन सुन्न भ’ गेल छल हेतनि . मुदा, हुनका तहिया की अनुभव भेल हेतनि से ने ओ कहलनि, आ ने हमरा तहिया ओहि दिस ध्याने गेल . पटना- सन पैघ शहर, कालेजक नव समाज, नव-नव संगी-साथी, प्रतिदिन नव-नव आकर्षण, आ जीवनक जेट-सेट गति. ने पाछू घूरि देखबाक सुधि आयल, ने माय-बापकेँ हमराले सुन्न लगैत हेतनि ताहि दिस कहियो ध्याने गेल . मुदा, आब जखन हमरो घर आँगनसँ धिया-पुता बहरा गेले तँ अनुभव होइत अछि तहिया हमर माता-पिताकेँ, बिनु धिया-पुताक घर-अंगना केहन सुन्न लगैत छल हेतनि .
डाक्टर राम इक़बालक गप्पसँ डाक्टर सिद्दीकीक मोन कनेक हल्लुक अवश्य भेलनि . लगलननि राम इकबाल कोन बेजाय कहै छथि . कहलखिन- 'हम तँ एना कहियो सोचनहुँ नहि रही. मुदा, तहिया एतेक साधनो तँ नहि रहैक .'
'साधन नहि रहैक , मुदा, मोनमे एहन सोचो धरि आयल छलह ? उत्तरमे डाक्टर सिद्दीकीक मुँहसँ अनायास 'नहि' बहरयलनि . राम इकबाल मित्रवत डाक्टर सिद्दीकीक बाँहि पकड़ि, देह झमारैत कहलखिन - 'सएह !'
'एतेक बड़का गप्प आ एतेक दिन हमरा लोकनिक ध्यान ओहि दिस नहि गेल. हौ, एकटा गप्प आओर कहैत छियह . नेनाक जनमिते, मिडवाइफ ओकर नाड़- पुड़इनिकेँ काटि, नेनाकेँ मायक शरीरसँ फूट कए दैत छैक. मुदा, नेना जाधरि उड़ात नहि भ’ जाइत अछि , असल अर्थमे माय-बापसँ ओकर नाड़- पुड़इनि कहाँ कटि पबैत छैक. मुदा, जखन धिया-पुता उड़ात भ’ कय माय-बापक परिधिसँ दूर भ’ कय अपनाकेँ नव-नव परिधिसँ जोड़य लगैत अछि तँ क्रमशः पुरान जोड़ सब कमजोर पड़य लगैत छैक आ कल-क्रमे, कखनो काल, कखनो काल - राम इकबाल अंतिम दू शब्द पर जोर दैत कहलखिन - 'पुरान जोड़ अंतड़ीक अपेंडिक्स-जकाँ कतबहिमे पड़ल अनावश्यक अंग-जकाँ प्रतीत होमय लगैत छैक . मुदा, ई अद्भुत गप्प छै , जीवन उत्तरार्द्धमे नाड़- पुड़इनिक ई जोड़ माता-पिताकेँ बेसी झिकैत छै. आ वएह थिकैक माया, आ कष्टक कारण . तें कहैत छियह , ग्रो-अप ! काटह अपनो नाड़ पुड़इनिकेँ!!' डाक्टर सिद्दीकीक, जे एखनि धरि बेटी सबहक फ़ोन-कॉल नहि एबाक चिंतामे आतुर छलाह, जेना एकाएक भक्क टुटलनि. कहलखिन -'हँ ,हँ.'