Friday, October 11, 2024

नियाग्रा जल प्रपात (Niagra Falls, New York)

 नियाग्रा जल प्रपात (Niagra Falls, New York)


ब्रह्माण्डमे पृथ्वीक अस्तित्व घूल कणसँ बेसी नहि. तें खगोलीय पिण्ड केर रूपमे पृथ्वीकें कोन शक्ति कोन रूपें प्रभावित करैछ, तकर अनुमान विज्ञानकें छैक. मुदा, पृथ्वी पर खगोलीय शक्तिक दीर्घकालीन प्रभाव मनुष्यक दिन प्रतिदिनक चेतनासँ बाहरक विषय थिक. तें, अंधड़- बिहाड़ि, ऋतु-परिवर्तन, आ पर्यावरणक परिवर्तनक अनुभव हमरालोकनि करैत छी, अकस्मात् बदलैत नदीक धाराक विभीषिकाक अनुभव हमरा लोकनि करैत छी, मुदा, भूमि पर रहितो भूगर्भक दीर्घकालीन परिवर्तनक तात्कालिक प्रभावक अनुभव हमरा लोकनिकें नहि होइछ. मुदा, एही दीर्घकालिक परिवर्तनक प्रभाव जखन हजारों वर्ष धरि प्राकृतिक सौन्दर्य जकाँ आँखिक सोझा ‘स्थायी-जकाँ देखबामे’ अबैछ तं भूगर्भीय परिवर्तन कतेको शताब्दी धरि आश्चर्य एवं मनोरंजनक स्थायी केंद्र बनल रहि जाइछ. नियाग्रा जलप्रपात एवं दुनिया भरि मे पसरल अनेको आश्चर्य- जल प्रपात, झील, नदी, सुखायल नदीक अवशेष, शिवालिक एवं अन्य पर्वतमाला तथा  माउंट एवेरेस्ट सन पर्वतश्रृंखला जकाँ - भूगर्भहिक आन्दोलनक परिणाम थिक, जकर निर्माणक विस्तृत विवेचना एतय संभव नहि.
हमरालोकनि  एहि अमेरिका यात्रामे नियाग्रा जल प्रपात( Niagra falls) देखबाक प्रोगाम बनलैक. स्विट्ज़रलैंडमे राइन जलप्रपात (Rhine falls) देखल अछि. राँचीक समीप हुंडरू प्रपात एवं एतेक दिनुक यात्रामे नेपाल एवं नीलगिरि सहित अनेको पर्वतीय क्षेत्रमे अनेक जल प्रपात  देखल अछि. मुदा, नियाग्रा जल प्रपात देखबाक अवसर एखन धरि नहि भेटल छल.
शनि दिन. नीक मौसम. नियाग्रा वेस्टलेक ओहायोसँ सीधा पूब-जकाँ. करीब साढ़े तीन सौ किलोमीटर; कारसँ करीब साढ़े तीन घंटाक यात्रा. हमरालोकनि ड्राइव करैत नियाग्रा फाल्स  धरि जायब आ साँझ धरि घूरि कए आपस भए जायब. सोझ सड़क, थोड़ ट्रैफिक आ दिन देखार समय. बंगलोरमे जं ट्रैफिक बेसी भेलैक तं भए सकैत अछि, पचीस-पचास किलोमीटर जयबामे एतबा समय लागि जाय. अमेरिकामे कारसँ दूर-दूर धरिक यात्रा आम थिक. बस-ट्रेनक ओतेक सुविधा नहि. तखन जतय रोडसँ  जा सकैत छी, लोक हवाई यात्राक झमेलामे किएक पड़त!
नियाग्रा फाल्स संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडाक बीच, दुनू देशक सीमा क्षेत्रमे पड़ैछ. तें दुनू देशक निवासी आ शैलानी दुनू कातसँ प्रपात देखबाक आनंद लैत छथि, आ दुनू देशक साझा प्राकृतिक संपदा, नियाग्रा नदीमें नौकायनक निर्बाध आनंद उठबैत छथि.  लेक इरीक प्रवाह नियाग्रा प्रपातक जल श्रोत थिक. अमेरिकाक मध्य पश्चिमी क्षेत्र (Midwest) एवं अमेरिकाक उत्तरमे स्थित कनाडा देशक समीप, जे तीन चारि टा विशाल झील सब पड़ैत छैक, इरी झील ताहिमे एक थिक. एतय अन्तर्राष्ट्रीय सीमा अमेरिकाक न्यूयॉर्क एवं कनाडाक ऑनटारियो प्रान्तकें विभक्त करैछ. यात्राक सुविधा समीपक न्यूयॉर्क एवं कनाडाक टोरंटो शहर धरि अबैत शैलानीक अपने-अपन देशक ऑब्जरवेशन डेकसँ  नियाग्रा प्रपात देखैत छथि. तथापि, जे कनाडा दिससँ नियाग्रा फाल्स देखने छथि, हुनका लोकनिक अनुसारें कनाडा दिससँ ई प्रपात बेसी सुन्दर लगैछ. मुदा, कनाडा जेबा लेल फूट वीसा चाही.

विश्वप्रसिद्ध पर्यटन स्थलक रूपें नियाग्रा प्रपात विगत दू सौ वर्षसँ सुपरिचित अछि. यद्यपि, प्रपातक ऊँचाईक दृष्टिसँ विश्वमे करीब ५०० सौ एहन प्रपात छैक जतय जल नियाग्रा प्रपातसँ अधिक ऊँचाई नीचा खसैछ. मुदा, निरंतर बहैत जलक परिमाणक दृष्टिसँ  नियाग्रा अवश्य विशिष्ट अछि. उपलब्ध आंकड़ाक अनुसार एहि प्रपातसँ प्रति मिनट करीब साठि लाख घन फुट पानि बहैत अछि, सेहो जखनि पनिबिजली एवं पीबाक जलक हेतु आवश्यक जलकें दोसर दिस प्रवाहित कए एहि प्रपातक बाटें बहैत जलक मात्राकें तेना सीमित कयल गेल अछि, जाहिसँ प्रपातक ई विशेषता आ सुन्दरता अनेको पीढ़ी धरिक हेतु सुनिश्चित कयल जा सकय.

आब किछु आँखिक देखलक गप्प. नियाग्रा फाल्स सत्ये छैक तं अद्भुत. एक दिस अमेरिकाक नियाग्रा शहर. नदीक दोसर पार कनाडाक फोर्ट इरी.  ऊपर नील-नीरद स्वच्छ आकाश आ नीचा कल-कल बहैत फेनिल हरियर कचोर चंचल नियाग्रा नदी. उच्छल, तरंगित उत्थर, आ चौड़ा नदीसँ अबैत पानि, दूर-दूर धरि अनेक भागमें विभक्त स्वच्छ जलक अजस्र धारक आगाँ प्रस्तरक खड़ा फलक पर पसरल दू गोट विशाल धवल- सुन्दर, निरंतर गतिमान आवरण आ ताहिसँ उठैत वारि विन्दुक मेघ. दूर एवं पहिलो दोसरसँ पैघ, तेसर, जलधारक अर्द्ध चन्द्राकार प्रपातक  यवनिका, ‘हॉर्स शू फाल्स’. नदी कनाडावला ई भाग, अर्द्ध वृत्ताकार हेबाक कारणे ‘हॉर्स शू फाल्स’ कहल जाइछ. अधिक ऊँचाई आ जलक अधिक मात्राक कारण सुन्दरतामे एकरा विशेष माल जाइछ.  सब किछु अपने आँखिए देखू, विस्मित होउ आ आँखि जुड़ाउ. कारण, जकर नाम बहुत दिनसँ सुनने होइ, जकर केवल कल्पना केने होइ, से साक्षात् देखलासँ जे आनंद होइछ, से अनुभवक विषय थिक, वर्णनक नहि.

हमरा लोकनिक टिकट कटाओल छल. नियाग्रा पहुँचि पार्किंगक हेतु जगह तकबामे किछु समय अवश्य लागल, मुदा, बहुत नहि. ऑब्जरवेशन डेक धरि जयबाक लेल लाइन लम्बा रहैक, किन्तु, बेसी प्रतीक्षा नहि करय पड़ल. अमेरिकाक ऑब्जरवेशन डेकसँ पूब आ पश्चिम धरि पसरल नियाग्रा नदीक पाट, नदीक उत्तर कनाडाक ओनटारियो राज्यक फोर्ट इरी नगर, नियाग्रा फाल्स, तथा अमेरिका एवं कनाडाक बीचक, समीपहि स्थित रेनबो ब्रिजक विहंगम दृश्य देखबामे अबैछ. देखबामे दृश्य एहन मनोरम जे हएत देखिते रही; एतेक सुन्दर जे कतबो फोटो झिकब संतोष नहि हएत.

ऑब्जरवेशन डेक- Prospect Point Observation Tower सँ लिफ्ट द्वारा करीब ८२ मीटर नीचा उतरि नदी पर नौका-घाट एवं सीढ़ी बनल छैक.  ओतहि प्रति खेप करीब छौ सौ एकबेर पर्यटक नाओ पर चढ़ैत-उतरैत अछि. प्रायः एहने व्यवस्था कनाडा दिस सेहो छैक. दुनू देशक सीमा नदीक बीचोबीच. फलतः दुनू देशक शैलानीकें ल’ कए अबैत-जाइत जहाज अगल-बगल चलैत रहैछ. केवल रंगमे अंतर; अमेरिकाक जहाज नील रंगक. कनाडाक नाओ आ पर्यटकक रेनकोट( पोंचो) क रंग लाल, देशक झंडा पर बनल मेपल वृक्षक पातक रंग जकाँ.

करीब बीस मिनट केर नियाग्रा नदी पर नौकायनमे देह पर पानिक ततेक फुहार पड़ैछ, जे सब पर्यटक अनिवार्यतः माथसँ घुट्ठीक लंबा रेनकोट पहिरैत छथि. नौका-विहार एवं रेनकोटक दाम टिकटमे जोड़ल रहैछ. हमरा सब गर्मी मासमें आयल छी. बड़ आनंद एलैक. यात्राक पछाति लोक पोंचो सौगात जकाँ अपना संग लेने जाइछ. हमरोलोकनि तीनू पोंचो मोड़ि कए संग राखि लेल.
जलप्रपातक भ्रमणक पछाति भोजनक बेर भए गेल रहैक. हमरालोकनि एकटा भारतीय रुचिक भोजनक रेस्टोरेंट ताकल. लगहिमे रहैक. रोम हो वा लन्दन, वेस्टलेक हो वा न्यूयॉर्क आब भारतीय भोजन सबठाम भेटैत छैक. लोक रहय कतहु, भोजन अपने रुचिक तकैछ. पर्यटन स्थलमे तं अवश्ये. कारणो छैक. एहि इलाकामे भारतीय छात्रक नागरिक संख्या थोड़ नहि. भारतीयमे उद्यमी, पर्यटक, नोकरिहा तथा छात्र सब भेटत. पहिने लोक व्यंग करैक ‘आलू और सरदार सब जगह मिलता है’. पछाति सएह हाल बिहारी मज़दूरक भेलैक; कोलकातासँ केरल, आ क़तर धरि, असमसँ अंडमान आ लद्दाख आ सूरत धरि बिहारी सब ठाम भेटताह. तहिना विदेशमे भारतीय. आब विश्वक विरले कोनो देश हएत जतय थोड़बो भारतीय नहि छथि. पहिने लोक युद्धसँ डराइत छल. आब जीविका लेल भारतीय लोकनि युद्धग्रस्त यूक्रेन, रूस एवं इजराइल धरि पहुँचि गेल छथि; पेट जतय ने ल’ जाय. तखन जतय भारतीय पहुँचलाह, भारतक एक टुकड़ा अवश्य भेटत. नियाग्रामे रेस्तौरांक नाम हिमालयन रेस्तौरां. स्वामी एवं सेवक नेपाली नागरिक. भोजन पवित्र आ स्वादिष्ट. भोजन कयल. लगहिक स्टोरमे किछु सनेस आ यादगार सेहो किनल. संयोगसँ ऑब्जरवेशन डेक पर फोटो घिचबैत काल हमर टोपी कोना छूटि से बुझबा योग्य नहि भेल. खसबाक-उड़बाक संभावना नगण्य रहैक. जखन स्मरण भेल, घूरि कए गेलहुँ. दसो मिनट नहि भेल छलैक. भीड़ सेहो ततेक नहि. तथापि, टोपी निपत्ता. स्टोरमे नव टोपी पर नियाग्रा फाल्स केर स्मृति चिन्ह नीक लागल. किनलहुँ. मुदा, पचीस डॉलरक व्यय. माने भारत हो वा अमेरिका, पर्यटन स्थल पर हाथसँ वस्तु छूटल, तं ककरो दोसर हाथ लागि गेल. भेटत कतय ! वस्तु तं शोर नहि करत.                      


Wednesday, October 2, 2024

' कीर्तिनाथक आत्मालाप'क कीर्तिमान

 कीर्तिनाथक आत्मालाप : एहि ब्लॉगक पेजकें उनटबैत, 'पेज भ्यू' (Page views) केर संख्या आइ 100000( एक लाख) पार भए गेल!

'कीर्तिनाथक आत्मालाप' नामक ब्लॉग हम 2010 मे आरंभ केने रही; प्रेरक हमर कन्या प्रोफेसर( डा.) सुष्मिता थिकी। एहि अनियतकालीन पृष्ठ पर मूलतः मैथिलीक, मुदा, किछु हिन्दी एवं अंगरेजीओक विभिन्न प्रकारक (कविता, कथा, समसामयिक विषय, पुस्तक समीक्षा, साहित्यिक आलेख, स्वास्थ्य संबंधी आलेख इत्यादि) ब्लॉग प्रकाशित करैत रहल अछि, जकर कुल संख्या आइ 243 धरि पहुँचि गेल। आरंभमे प्रकाशनक गति मंथर रहैक; कोनो वर्षमे केवल तीन,चारि, वा पांच गोट कविता, डायरीक पन्ना, वा लेख। मुदा, कोरोना महामारीक वर्ष 2020 मे एके वर्षमे एहि पृष्ठ पर हमर ब्लॉगक कुल संख्या चौवालीस धरि पहुँचल। 

हमर ब्लॉग सबकें ताकि पढ़निहारक (followingक) संख्या एखनो थोड़ अछि। तथापि, हमर आग्रह वा अपन प्रेरणासँ बहुतो गोटे पढ़ितो छथि, जहाँ-तहाँ पत्र-पत्रिका, समाचार पत्रमे पुछिओ कय, वा बिनु पुछनहुँ छपितो छथि। पाठकक सम्मति एवं सुझाओ सेहो अबैत अछि। 

पाठक सबमे डाक्टर योगेन्द्र पाठक वियोगी, श्री रबीन्द्र नारायण मिश्र,दिल्ली, डाक्टर मिथिलेश कुमार झा, UK, प्रोफेसर भीमनाथ झा, केदार कानन, डाक्टर मनोज कुमार चौधरी, USA, एवं अनेक अनामा पाठक एवं मित्र लोकनिक निरंतर प्रोत्साहन भेटैत रहल अछि। सब पाठक एवं सुझाव-सम्मति देनिहार शुभचिंतक लोकनिक प्रति हम आभार प्रकट करैत छी।

पाठक लोकनिक प्रोत्साहन हमरा लिखबाक हेतु प्रेरिते टा नहि करैछ, बल्कि, एहि उत्साहवर्द्धनसँ प्रेरित भए ब्लॉगक किछु लेख हम अपन पोथी ' लोहना रोडसँ लास वेगस' एवं ' 'देखल-परेखल'मे  सेहो संकलित कयल। 

एहि सबहक बीच हमर ब्लॉग आइ एक सीमा पार केलक; क्रमशः पाठकलोकनिक द्वारा हमर ब्लॉगक पेजकें उनटबैत, आइ Page view क संख्या 100000 (एक लाख) पार भए गेल। ई कीर्तिमान थिक वा नहि, से कहब कठिन । किन्तु, हमरा हेतु ई प्रेरक क्षण अवश्य थिक। आइ हमर ई विश्वास दृढ़ भए गेल जे लोक मैथिलीओ पढ़ैत अछि, आ भारतसँ बाहरोक पाठक मैथिली पढ़ैत छथि। कारण, भारत नेपालक अतिरिक्त हमर ब्लॉगक पृष्ठ उनटओनिहारक सभसँ बेसी पाठक अमेरिकाक तँ छथिए, UK एवं सिंगापुरक किछु पाठक सेहो हमर ब्लॉग पढ़ैत छथि। ई मैथिलीक हेतु आशा तँ जगबिते अछि, लेखक- प्रकाशक लोकनिक हेतु स्पष्ट संकेत थिक जे लेखन प्रकाशनमे ओ आप्रवासी भारतीय पाठककें नहि बिसरथि ।

सब पाठककें अशेष धन्यवाद। अहाँलोकनिकसँ निरंतर सहयोग-उत्साहवर्द्धनक अपेक्षा अछिए।

Tuesday, October 1, 2024

न्यूयॉर्क टाइम्स स्क्वायर, अगस्त २०२४

 

न्यूयॉर्क टाइम्स स्क्वायर

 ‘०९ सितम्बर २००१ केर भयानक त्रासदी अमरीकी नागरिकक जीवनकें बदलि देलक; ई परिवर्तन स्थायी थिक.’  ई कथन थिक ‘गैलप’ नामक अमरीकी संस्थाक वरिष्ठ संपादक जेफ्री एम जोन्स केर, जे ओ सितम्बर २०२१क एक आलेखमे व्यक्त कयने छलाह. ओहि सर्वेक अनुसार लोककें हवाई यात्रामे पहिनेसँ बेसी भय होमय लगलैक, नागरिकक सुरक्षा निर्बाह करबाक सरकारक योग्यता पर विश्वासमे ह्रास भेलैक , एवं लोक गगनचुम्बी भवन एवं भीड़- भड़क्कामे जयबासँ परहेज करय लागल. मुदा, कतबो किछु होउक जखन जीवन सामान्य नहि रहतैक, तखन लोक जीबे किएक करत ! तें, कहनो बड़का सामाजिक वा प्राकृतिक भूचाल किएक ने होउक, समाजक भय सेहो सहाज जोग भइए जाइत छैक.  
हमरालोकनिक पहिलुको अमेरिका यात्रा सब २००१क पछातिए भेल छल. तें वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर हवाई हमलासँ पहिलुक अमेरिका आ पछातिक अंतर करब कठिन. तथापि, एहि बेर करीब साढ़े छौ वर्षक अवधिक पछातिक एहि यात्रामे अमेरिका आ अमरीकी जीवनक ओहि फलक सबकें देखय चाहैत छी, जे पहिने नहि देखने होइ, वा देखलो पर जाहि पर दृष्टि नहि पड़ल हो.
            आइ शुक्रक दिन थिकैक. करीब १५ घंटाक यात्राक पछाति दिल्लीसँ एतय पहुँचल छी. साफ़ दिन. भोरुका मृदुल रौद. हमरा लोकनिक फ्लाइट करीब छौ बजे भोरे JFK एयरपोर्ट छल. दू दिन पूर्व क्लीवलैंडमें भयानक चक्रवात आयल छलैक. अस्तु, हमर बालक अमियक फ्लाइट कनेक बिलंबसँ पहुँचलनि अवश्य. मुदा, हमरा लोकनिकें हुनका लेल बेसी प्रतीक्षा नहि करय पड़ल. आब JFK एयरपोर्ट रेहल खेहल बूझि पड़ैछ. दिल्ली, बंगलोर आ भारतक आन हवाई अड्डा सेहो विश्व स्तर छैक. बल्कि, एतय दिल्ली-जकाँ टैक्सी-गाड़ीक कोनो अफरा तफरी नहि. जहिना ओला-ऊबर भारतहुमे भेटैछ, एतहु एकटा टैक्सी मंगाओल. ड्राइवर रूसी मूलक महिला. मृदुभाषी आ तत्पर. हमरा लोकनिक होटल एतयसँ किछु दूर- करीब बीस मील आ घंटा भरिक यात्रा - किन्तु, नीके. भोरुका वायुक सेवन करैत गेलहुँ. लंबा हवाई यात्राक संकीर्ण आ वातानुकूलित परिवेशसँ  सड़क यात्रासॅ सर्वथा भिन्न. विगत रातिमे हमर पत्नीक मन सेहो कनेक ख़राब भेल रहनि. किन्तु, हवाई यात्रामे हमरा हेतु कोनो ई नव अनुभव नहि. हवाई जहाज वा कतहु आन ठाम, तर्कबुद्धिक उपयोग आ अनुभूत उपचारक व्यवहार आकस्मिकतासँ निबटबाक सबसँ सुलभ विधि थिक. सएह केलहुँ  आ सब ठीके रहल. सेवाकर्मीओ तत्पर रहथि, सहयोग केलनि, आ अपने सब सबटा सम्हारि लेल.

 न्यूयॉर्क पहुँचि हमरालोकनि तीन दिन एतहि बिताओल. डेरा न्यूयॉर्कक बिजनेस डिस्ट्रिक्ट, मैनहैटन इलाकामे क्लब क्वार्टर होटलमे डेरा देल. होटलक कमराक पारदर्शी देवालक कारण वन वर्ल्ड सेंटर टावर आँखिक सोझे छल. अस्तु एतयसँ ध्वस्त वर्ल्ड ट्रेड सेंटरक स्मारक एवं संग्रहालय (
9/11 Memorial & Museum) सोझे देखबामे अबैछ. २००१ ई. पछाति ई न्यूयॉर्कक सबसँ बड़का आकर्षण थिक, जतय लोक स्मारक देखबाक हेतु एवं शोक प्रदर्शन दुनूक हेतु अबैछ; मानवीय त्रासदी सहृदय मनुष्यकें विश्व भरिमे एके रंग उद्वेलित करैछ. कारण वा प्रासंगिकता जे होइक, मन पड़ैछ, जापानी विद्वान हारुकी मुराकामीक शब्द: “.... संसारमे एहन कोनो युद्ध नहि जे बाँकी सब युद्धकें समाप्त कए देत”.

                                                                                *

एतय न्यूयॉर्कमे दिल्ली वा मुंबईए जकाँ देखबाक स्थान आ वस्तुक कोनो कमी नहि छैक. अस्तु, हमरालोकनिक घुमबा-फिरबाक कार्यक्रमक हमर बालक स्वयं अपनहि बनौने छथि.
आइ दिन भरि विश्रामक कयल। साँझुक पहर टैक्सी लेल आ टाइम्स स्क्वायर गेलहुँ. एखन गर्मीक ऋतु छैक. मौसम खूब अनुकूल.
न्यूयॉर्कक टाइम्स स्क्वायर एतुका प्रमुख व्यापारिक केन्द्र तथा थिएटर, संगीत भवन एवं होटल सबहक केंद्र थिक. प्रतिवर्ष करीब पाँच करोड़, आ प्रतिदिन साढ़े तीन लाखसँ बेसी शैलानी टाइम्स स्क्वायर अबैत छथि. तकर कारणो छैक: टाइम्स स्क्वायर चमक-दमक आ शैलानीक भीड़क बीच एतय भिखारिओ भेटत, मौका-बेमौका निवस्त्र देहकें विभिन्न कलाकारीसँ रंगने महिलाओ भेटतीह. चौक पर गीत गबैत, कलाबाजी देखबैत युवक-युवतिओ समूह देखबैक. राजनीतिक कार्यकर्त्ताक प्रदर्शन सेहो देखबैक. जँ सिनेमा, रंगकर्म, आ कार्टून करैक्टर्स तथा विडियो गेम्ससँ परिचय हो तँ बहुत ठाम जे किछु चित्रमे देखने हेबैक से एतय साक्षात् बहुमंजिली भवनक विशाल फलक पर एल सी डी स्क्रीन पर देखबैक. 

ततबे नहि, एतेक दिनमे एतहु बहुत परिवर्तन भेलैए. आब एतहु प्रतिवर्ष Mind over Madness-क नामसँ  सामूहिक योगासनक आयोजन आयोजन होइछ, सार्वजनिक स्थलमे सिगरेट-बीड़ी-धूम्रपान पर प्रतिबन्ध छैक. बाजारमे Tesla electric taxi आबि गेलैए। सस्ता पेट्रोलक कारण अमेरिकामे बहुत दिन छोट आ fuel-efficient कार दिस जनताक ध्यान नहि गेल छलैक। मुदा, fossil-fuel पर चलैत गाड़ीक संबंध प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तनसँ सेहो छैक, से आब एतुको नागरिक लोकनि बूझय लागल छथि। एतय हमरालोकनिक Tesla taxi घुमबाक आनंद लेल। एतय Tesla car क ओहन क्रेज नहि छैक, जेहन भारतमे छैक। मुदा, से सब दूर जाओ. हमरा लोकनि टाइम्स स्क्वायर पर टहलहुँ, घुमलहुँ, फोटो-विडियो घिचल, स्ट्रीट परफॉरमेंस देखल आ अंततः ओलिव गार्डन इटालियन रेस्तौराँमे मनो उमडल पेय आ दिव्य भोजनक आनंद उठा होटल आपस भेलहुँ.
हँ, एतबा अवश्य जे बहुतो ठाम जे किछु पहिल यात्रामे अजगुत लगैत छैक, से दोसर-तेसर बेर होइत-होइत सामान्य लागए लगैत छैक. संभव तें आइ एतय किछु अजगुत नहि लागल. चौक पर एक दू गोट स्ट्रीट परफॉरमेंस होइत छलैक, कलाकार लोकनि जीविकाक लेल अपन कला देखबैत रहथि. से देखल, तकर विडियो अवश्य बनाओल. एकटा शॉर्ट विडियो एतय प्रस्तुत अछि।



Friday, September 27, 2024

बिहनि कथा : नार - पुड़इनि

 बिहनि कथा : नार - पुड़इनि

जाधरि मोबाइल फोन केर चलंसारि नहि भेल रहैक,लोक चैनसँ रहैत छल . मुदा जहियासँ मोबाइल फ़ोन , आ एस एम एस  केर चलंसारि भेलैये, लोक केर देहमे उरकुस्सी लागि गेलैये. ने दिनमे निन्न, आ ने रातिमे चैन. पहिने तँ लोककेँ बड़ दिब लगलैक, छगुन्ता लगलैक - जत्तहि जाउ, फोन संगहि . मुदा, आब फोन बलाय लागय लगलइए . आ किएक  नहि? पहिने कमाउ लोकनि गामसँ बाहर जाथि तँ माय-बाप-परिवारजन  कहथिन -' बाऊ , पहुँचिते चिट्ठी लिखि देब. मोन लागल रहत.' जँ बाऊकेँ मोन रहलनि, पलखति भेटलनि, आ बाऊ चिठ्ठी लिखलनि तँ चिठ्ठी अबैत-अबैत पख बीति जाइ, मास लागि जाइ . आ जाबत चिट्ठी आओत लोक मोनकेँ मनाबय - 'एखने तँ गेबे केलाहे, चिट्ठी अबैमे तँ समय लगतै.' मुदा, आब बाऊ लोकनि नेना-भुटका पर्यन्तकेँ मोबाइल कीनि-कीनि देबय लगलथिन . कि तँ, धिया-पुता काबूमे रहत. अपहरण-अवघात हेतैक तँ चटसँ बूझि जेबै. मुदा, आब फोने  बलाय भ’ गेलनि. क्षणे- क्षण फोन आ पले-पल मेसेज. आ जँ कदाचित, नेना फोनेकेँ बैगमे राखि, खेलयबा लेल भागि गेल , बाथरूम -पैखाना चलि  गेल, आ फ़ोन  नहि उठौलक, तँ माय-बापकेँ तुरते दाँती लागय लगैत छनि ! आ जँ क्लास छोड़ि, बाज़ारमे बौआइत नेना, फुसफुसाइत माय-बापकेँ दमसौलकनि - 'एखनि फोन राखू. हम क्लासमे छी ' तँ जान-मे-जान अबैत छनि . कहैत छथिन,-'जाह- जाह , पढ़ह . हम नहि बुझलियैक क्लासमे एतेक काल लागि गेलैक. ' 

डाक्टर सिद्दीकीकेँ तकरे परि भेलनि. दू टा बेटी . सुन्नरि, गोरि-नारि आ सुशील. अपने  धर्मप्राण, आ पत्नी कुशल गृहणी .1978 इसवीमे एम बी बी एस पास भेलाह तँ बिहार सरकार लग डाक्टरक कमी रहै, मुदा, सरकारकेँ रोजगार देबाक वैभव  नहि रहैक. डाक्टर लोकनि कॉलेजसँ बहराइते नौकरीक जोगाड़मे जहत्तर-पहत्तर भागथि. केओ दिल्ली, केओ गुजरात , केओ सेना-बी एस एफ, तँ केओ ईरान -सऊदी अरबिया , लीबिया धरि छानि मारथि .डाक्टर सिद्दीकी तँ एम बी बी एस पास हेबामे दू बेर ओंघरायल रहथि . मुदा, पास भ’ कए कॉलेजसँ बहरयलाह तँ नौकरी भेटबामे समय  नहि लगलनि, सरोकारी सब ईरान-तेहरानमे         रहथिन, हिनको झीकि लेलखिन. पछाति बियाह-दान भेलनि, धिया-पुता भेलनि . तथापि ,जखन दुनू बेटी पढ़बाजोग भेलनि तँ अपने देश मोन पड़लनि. की करितथि , देश घूरि अयलाह . टाका-पैसा जमा छलनि . बेटी सबकेँ पढ़ओलनि. मुदा, समय बदलि चुकल छलैक, से पछाति बुझबाजोग भेलनि; जाहि कम्पटीशनक बलें  अपना  मेडिकल कॉलेजमे मुफ्त सीट भेटल रहनि आब प्राइवेट कालेज सबमे ताहि सीट सबहक बोली लगैत छलैक आ नीलामी शुरू भ’ चुकल छलैक.  जे छात्र नेता लोकनि राष्ट्रीय इमेरजेंसीक दौरान  मिसा(MISA) आ डी आई आर(DIR) क क़ानूनक तहत जेल कटने छलाह ओ लोकनि मंत्री-मुख्यमंत्री आ स्वतंत्रता-सेनानी  भ’ चुकल छलाह ! आ समाजक नवनेता लोकनिक  धिया-पुता लोकनि सबतरि डाक्टरी-इंजीनियरिंगक फ्री-सीटपर  कब्ज़ा क’ चुकल छलाह. तथापि मनोरथ छलनि; आ टाका-पैसा सेहो जमा छलनि.  अंततः दुनू बेटी ले’ एकटा प्राइवेट  मेडिकल कालेजमे दूटा सीट किनलनि. सोचलनि, आब तँ दुनू बहिनकेँ डाक्टर भेनहि कुशल. बेटी लोकनिकेँ हॉस्टल पठयबाकाल एकटा मोबाइल फ़ोन किनलनि आ जेठकी बेटी, आफरीनक हाथमे फ़ोन दैत दुनू बहिनकेँ लक्ष्य कय कहलथिन- 'आब तोरा सबकेँ फ़ोन दैत छियह, सब दिन साँझमे फ़ोन करिहह, मोन लागल रहत . छोटकीकेँ ई गप्प पसिन्न नहि पड़लैक. कहलकनि- 'फ़ोन तँ दीदीए टा करत. मोन तँ ओकरे ले लागल रहत. फ़ोन तँ ओकरे देलियैक ने. दुलारि ,बेटी !'    

डाक्टर सिद्दीकीकेँ हँसी लागि गेलनि . कहलखिन - 'दुलारि के छै , से एखनि की बुझबहक ? अपन धिया-पुता होइत जेतह तखन गप्प बुझबामे अओतह .'

'अनेरे . हमरा नहि काज अछि धिया-पुताक. झुठे हेडेक !'

डाक्टर सिद्दीकीकेँ गप्पक सूत्र भेटलनि .कहलखिन- 'ठीके. तेँ आब निन्नसँ सूतब. कतेक लड़ैत जाइत छलह दुनू बहिन. आ हेडेक , से तँ, तों थिकहे, फिरदौस.' आ डाक्टर सिद्दीककेँ मुसुकी छूटि गेलनि.

-' तेँ तँ फ़ोन हमरा नहि देलहुँ ने .' फिरदौस उलहन देलकनि .

डाक्टर सिद्दीकी सोचलनि - ' धुर , कहै छैक , जें एतेक ऋण तँ घोड़ो किन.' आ एकटा आओर फ़ोन कीनि कय फिरदौसकेँ सेहो द’  देलखिन .

मुदा, शीघ्रे डाक्टर साहेबकेँ बुझबामे आबय लगलनि जे फ़ोन समस्याक समाधान नहि, कदाचित्, समस्याक जड़िए ने हो. सोचथि, कोना पटनासँ दिल्ली-तेहरान- आ ईरानक सुदूर प्रान्त, फरात नदीक घाटीमे जाइत छलाह . आ कोना मास-क-मासक पछाति हथचिट्ठीएसँ  घर-परिवारसँ संपर्क करथि . आ आब ? बाप-रे-बाप . साँझ-भिनसर जँ छौंड़ी सबहक फोन नहि अबैत अछि तँ बैचेन भ’ जाइत छी .

एक दिन पत्नीकेँ कहलथिन- 'अनेरे ई दुनू बहिनसँ  एतेक दुलारि बनौलिऐक. घूरि कय फोने धरि नहि करैए. हम आब नियम केलहुँ, आब एकरा सबसँ दूरे रहब .'

पत्नीकेँ हँसी लागि गेलनि. कहलथिन बड़ बेस . देखै छी , जखन दुनू बहिन छुट्टीमे आओत तँ देखब कोना कनगुरिया आंगुर पर नचबैये .'

'अनेरे !'

मुदा समस्या कोनो एक दिनुक रहै . कहियो कोनो खबरि, कहियो कोनो दुर्घटना. आ कहियो कोनो प्राकृतिक विपदा. सिद्दीकीक मोन विह्वल भ’ उठनि.

एकदिन गप्पहि-गप्पमे, ई गप्प अप्पन संगतुरिया डाक्टर  राम इक़बालक संग उठौलनि . डाक्टर राम इक़बाल, डाक्टर सिद्दीकीक सहपाठी,संगतुरिया, आ सहकर्मी सब रहथिन. राम इक़बाल कहलकनि -'देखह , तोहर गप्प तँ नहि कहबह, मुदा, अप्पन गप्प कहैत छियह . हम अपने माता-पिताक आठ सन्तानमे         सबसँ छोट, आ मायक दुलारू . बाबूसँ डर होइत छल तेँ मायक लग आओर सन्हियायल रहैत छलहुँ. मुदा, गामक स्कूलक  पढ़ाइ जखन ख़तम भेल , पटना आबि गेलहुँ. आब अनुमान करैत छी, हम जखन गाम छोड़ि पटना आयल छलहु मायक आँगन सुन्न भ’ गेल छल हेतनि . मुदा, हुनका तहिया की अनुभव भेल हेतनि से ने ओ कहलनि, आ ने हमरा तहिया ओहि दिस ध्याने गेल . पटना- सन पैघ शहर, कालेजक नव समाज, नव-नव संगी-साथी, प्रतिदिन नव-नव आकर्षण, आ जीवनक जेट-सेट गति. ने पाछू घूरि देखबाक सुधि आयल, ने माय-बापकेँ हमराले सुन्न लगैत हेतनि ताहि दिस कहियो ध्याने गेल . मुदा, आब जखन हमरो घर आँगनसँ धिया-पुता बहरा गेले तँ अनुभव होइत अछि तहिया हमर माता-पिताकेँ, बिनु धिया-पुताक  घर-अंगना  केहन सुन्न लगैत छल हेतनि . 

डाक्टर राम इक़बालक गप्पसँ डाक्टर सिद्दीकीक मोन कनेक हल्लुक अवश्य भेलनि . लगलननि राम इकबाल कोन बेजाय कहै छथि .  कहलखिन- 'हम तँ एना कहियो सोचनहुँ नहि रही. मुदा, तहिया एतेक साधनो तँ नहि रहैक .'

'साधन  नहि रहैक , मुदा, मोनमे एहन सोचो धरि आयल छलह ? उत्तरमे डाक्टर सिद्दीकीक मुँहसँ  अनायास 'नहि' बहरयलनि . राम इकबाल मित्रवत डाक्टर सिद्दीकीक बाँहि पकड़ि, देह झमारैत कहलखिन - 'सएह !'

'एतेक बड़का गप्प आ एतेक दिन हमरा लोकनिक ध्यान ओहि दिस  नहि गेल.  हौ, एकटा गप्प आओर कहैत छियह . नेनाक जनमिते, मिडवाइफ ओकर नाड़- पुड़इनिकेँ काटि, नेनाकेँ मायक शरीरसँ फूट कए दैत छैक. मुदा, नेना जाधरि उड़ात  नहि भ’ जाइत अछि , असल अर्थमे माय-बापसँ ओकर नाड़- पुड़इनि कहाँ कटि पबैत छैक. मुदा, जखन धिया-पुता उड़ात भ’ कय माय-बापक परिधिसँ दूर भ’ कय अपनाकेँ नव-नव परिधिसँ जोड़य लगैत अछि तँ क्रमशः पुरान जोड़ सब कमजोर पड़य लगैत छैक आ कल-क्रमे, कखनो काल, कखनो काल - राम इकबाल अंतिम दू शब्द पर जोर दैत कहलखिन - 'पुरान जोड़ अंतड़ीक अपेंडिक्स-जकाँ कतबहिमे पड़ल अनावश्यक अंग-जकाँ प्रतीत होमय लगैत छैक . मुदा, ई  अद्भुत गप्प छै , जीवन उत्तरार्द्धमे नाड़- पुड़इनिक ई जोड़ माता-पिताकेँ बेसी झिकैत छै. आ वएह थिकैक माया, आ कष्टक कारण .  तें कहैत छियह , ग्रो-अप ! काटह अपनो नाड़ पुड़इनिकेँ!!'                                                             डाक्टर सिद्दीकीक, जे एखनि धरि बेटी सबहक फ़ोन-कॉल नहि एबाक चिंतामे आतुर छलाह, जेना एकाएक भक्क टुटलनि. कहलखिन -'हँ ,हँ.'

Monday, September 16, 2024

पाठकीय प्रतिक्रिया : प्रियवर

 

पाठकीय प्रतिक्रिया                                             

प्रियवर
(पं. रामकृष्ण झा ‘किसुन’ क पत्राचारक संकलन )

संपादक: केदार कानन एवं रमण कुमार सिंह

प्रकाशक: किसुन संकल्प लोक, सुपौल

मूल्य : ३०० रूपैया

प्रकाशक: किसुन संकल्प लोक, किसुन कुटीर, गुदरी बजार, सुपौल-८५२१३१
 मोबाईल : ७५४२०४३९९१ / ७००४९१७५११

वितरक: मैत्रेयी प्रकाशन नई दिल्ली ११००८४
 
e-mail : maitreyipublication@gmail.com

चिट्ठी-पत्री लिखब लोक कहिया आरंभ केलक तकर ठीक-ठीक अनुमान करब कठिन. मुदा, पचास-साठि वर्ष, पूर्व थोड़बो दूरी पर लोक हथचिट्ठीसँ  वा डाक द्वारा चिट्ठीसँ एक दोसरासँ संपर्क रखैत छल. कालक्रमे चिट्ठी लिखब एकटाक कलाक रूप सेहो लनेने छल. मुदा, देखिते-देखैत पछिला किछु वर्षमे चिट्ठी इतिहास भए गेल. एहिसँ साहित्यक हानि भेलैए. कारण, साहित्यकार लोकनिक बीचक पत्राचारमे कुशल समाचारक अतिरिक्त बहुतो एहन किछु रहैत छलैक, जकर ऐतिहासिक महत्व होइक. खांटी पारिवारिक आ  सामाजिक-साहित्यिक संबंधक सुगन्धिक अतिरिक्त साहित्यकार लोकनिक  पत्राचारमे साहित्यक इतिहासक नेओ, निर्माणक  भव्य स्वरुप तथा अनेक साहित्यकारक जीवनक यथार्थ सेहो रहैत छलैक. ओहिमे नव रचनाक योजना, प्रकाशन, पाठकीय प्रतिक्रिया, साहित्यक राजनीति, जीवनक मर्म, आ एक दोसराक संग व्यक्तिगत संबंधक झलक सेहो रहैक छलैक.
एतय चर्चा विषय थिक
, किसुन संकल्प लोक, सुपौलसँ प्रकाशित टटका पोथी, ‘प्रियवर’. ई पोथी पं. रामकृष्ण झाकिसुनजीक पत्रक संकलन थिक. संकलनक अपन-अपन भूमिकामे केदार कानन एवं रमण कुमार सिंह ‘प्रियवर’क  प्रकाशन आ प्रासंगिकता पर अभिमत स्पष्ट कयने छथि.
 एहि लेखमे ‘प्रियवर’मे संकलित सामग्रीक विशिष्ट विन्दुकें संक्षेपमे पाठकक सोझाँ प्रस्तुत करबाक प्रयास करैत, पत्र-साहित्यक संरक्षण, संकलन, प्रकाशनमे सूचना प्रोद्योगिकी तथा मोबाइल फ़ोन एवं कंप्यूटरक उपयोगक उपादेयता पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत करय चाहैत छी.

प्रियवरतीन भाग, एवं परिशिष्टमे विभक्त अछि. भाग एक, दू एवं तीनमे क्रमशःकिसुन जीक पत्र लेखकक नाम’, ‘लेखक लोकनिक पत्र किसुन जीक नाम’, एवं हिन्दीक पत्र संकलित अछि. तीन खण्डमे विभक्त परिशिष्टमे किसुनजीक लिखल संपादकीय, पुस्तक-परिचय, लेख, कविता एवं यात्रा-संस्मरणक अतिरिक्त मैथिलीएवं हिन्दीक किछु समाचार तथा किसुन जीक निधनक पछातिक शोक-संदेश संकलित अछि. एहि लेखमे परिशिष्टक सार-संक्षेप नहि भेटत.
ई कहब अतिशयोक्ति नहि हएत, हिन्दी-मैथिलीक साहित्यकार बीच किसुन जीक पत्राचारक परिधि बहुत पैघ रहनि. तें ‘प्रियवर’मे  प्रायः बहुसंख्यक प्रतिष्ठित साहित्यकारक अतिरिक्त, हिन्दी-मैथिली अनेक अल्पपरिचित एवं नवोदित साहित्यकारक पत्र भेटत. स्मरण रखबाक थिक, प्रकाशित पत्र किसुनजीक कुल पत्र नहि थिक. तथापि, विषय-वस्तुक महत्व आ साहित्यमे कृतीक स्थान एवं  पत्रमे विश्लेषित वा वर्णित विषयक प्रासंगिकताकें ध्यानमे रखैत, बानगीक रूपमे किछु पत्रक सीमित अंश एतय प्रस्तुत करैत छी, जाहिसँ पोथीक उपादेयता पर प्रकाश देल जा सकय. एतय हम स्पष्ट कए दी जे एहि विधामे हमरा कोनो दक्षता नहि अछि. अस्तु, एहि पुस्तकमे निहित संपदाक अनुमानक हेतुप्रियवरपढ़ब आवश्यक.
एतय प्रस्तुत अछि साहित्यकार लोकनिक नामे किसुन जीक प्रत्रसँ चुनल किछु प्रसंग, उक्ति, आ हुनक जीवनक अनुभूत सत्य.
(‘टापूक निवासी’) किसुन जीक पहिल पत्र अमर नामे जीक थिक. पत्राचारमे हिन्दी वा मैथिलीक प्रयोग हो, किसुनजीक ताहि दुविधाक संग, एहिमे दुनू भाषाक हितक प्रति किसुनजीक चिंताक संकेत सेहो भेटैछ. पत्र सबमे किसुन जीक पेटक रोगक चर्चा सेहो अछि जे १९४७ हि मे आरंभ भेल आ अंततः किसुन जीकें संगहि नेने चल गेलनि. 

आगूक पत्रमें किसुन जी १९४९ हि इसवीसँ विलियम्स स्कूल, सुपौलमे पाक्षिक कविता पाठक आयोजनक सूचना दैत छथिन. संगहि अछि, किसुन जीक कृतिइन्द्रधनुषप्रकाशित हेबाक सूचना. संगहि भेटैत अछि मैथिली पत्र पत्रिकासँ किसुन जीक मोहभंगक संकेत; ओ लिखैत छथि, ‘ मैथिलीक कोनो मासिक वा पाक्षिक कोनो तरहक  पत्रिका पर निष्ठा नहि रहल’. किएक से अनुमानक विषय थिक. २७.३. ५० क ओही पत्रमे किसुनजी इहो लिखैत छथि जेहमरा लोकनिकें (मैथिलीक हेतु )  एक क्रांति करक आवश्यकता अछि’.  ई तहियाक गप थिक जहिया दरभंगासँ साँझ पाँच बजे चलि कए तीन-चारि ठाम ट्रेन बदलि, सोलह घंटाक यात्राक पछाति, दोसर दिन नौ बजे लोक सुपौल पहुँचैत छल!
 १७.७.५८क हुनक पत्रसँ इहो बुझबामे अबैछ जे तहिया (१९५८) इसवीमे जखन लोक साधनहीन छल, तहियो (मित्रहुसँ) लोक किताब कीनि कए पढ़ैत छल!

मुदा
, जीवकांतक नामे किसुन जीक पत्र सोझे मठाधीश लोकनिक प्रति आक्रोशसँ आरंभ होइछ, जाहिमे किसुनजी  ‘पुरानक पिचायल, मूइल, सड़ल लहासकेंधूबनाकए नाम ऊँच कयनिहार, डाक्टरेट लेनिहार दलपतिलोकनिककाटसँ उद्वेलित भए एक कविता लिखबाक चर्चा करैत छथि. मुदा, जीवकांतहिक नामक पत्रमे नव कविताक पूर्ण व्याख्या, स्वीकार, तकर विश्लेषण,आ संस्थापन-मूल्यांकनक गप उठैत अछि. एही पत्रमे ओ वैश्विक समस्याकें कवितामे अनबाक अनिवार्यताक गप सेहो करैत छथि, यद्यपि तहियो ओ (रोगग्रस्त भए)ओछैन धेनहि’  छथि! १९ .१.६७ क किसुनजीक पत्रमे नव कविता पर निबंध संग्रहक रूप-रेखा आ लेखक लोकनिक नाम प्रस्तावित छैक. मुदा, जीवकांतक नाम हिनक अन्य पत्रमे एक ठाम किसुनजीक तेवरसँ हठात् साक्षात्कार होइछ जाहिमेप्रेम न बाड़ी उपजै...’  लिखनिहार कबीरकें गारि पढ़ैत किसुनजी लुच्चाकहि कबीरक उपहास करैत छथिन, आ प्रतिवादमे नव दृष्टिए अपन उक्ति सुनबैत छथिन. तथापि, किसुन जी ओहि कविताकें, प्रकाशित कएव्यर्थक चर्चानहि बढ़बय चाहैत छथि! मुदा, बंचब संभव नहि. कारण, अगिले पत्रमे ओ दुर्गानाथ झा श्रीशक ओहि आलेखक गप करैत छथि, जे पत्र श्रीश  नव कवि सबके गरियबैतलिखि कए पठौने  रहथिन.

मुदा, चिट्ठीक सबहक बीच, अमरजीक चिठ्ठीसँ हुनक उक्तिअसलमे पूछह तँ आब तँ कखनहुँ  वितृष्णा होइत अछि. एहि मैथिली-मैथिलीमे जीवन भरि लागल रहलहुँ, अपन भविष्यक हत्या तँ भेवे कयल, धियोपुताक भविष्यकें चौपट्ट कए देलिऐकसेहो उद्धृत अछि. अंततः ई उक्ति केवल समयसँ पूर्व अमरजीक उत्ताप प्रमाणित भेल.
 एक अन्य पत्र ( २.८.६८) मे दरभंगाबला सबहक द्वारा सहरसा जिलाक उपेक्षाक गप सेहो अभरल. ई सत्य नहि थिक, से के कहत? संगहि, जाहि अंतरंगतासँ जीवकांतक संग किसुनजी  पत्राचार होइत छलनि ताहीमे एक ठाम एहनो सत्य सेहो अभिव्यक्त होइछ जे, ‘ पत्र हीन नग्न गाछ  ‘दू पत्रकें नहि , यात्री जी आ व्यास जी कें ( कृति नहि व्यक्ति कें ) अकादेमी पुरस्कृत कयलक अछि. यैह मैथिली साहित्यक स्थिति-मापन थिक.एकर चर्चा मोहन भरद्वाजक नामें ७.३.७० कलिखल एक अन्य पत्रमे सेहो भेल अछि, जतय मैथिलीक जंगलमेपुरना गलित नखदंत होइतहु मारान्तक सिंहसबहक चर्चा अछि. पछाति ’प्रियवर’मे अन्यत्र संकलित एक पत्रमे मोहन भारद्वाज सेहो एहि विषय पर दुविधाक संकेत व्यक्त कयने छथि.

 मुदा, चिट्ठी सबमे सबसँ मार्मिक लागल, किसुन जीक उक्तिहोइए अर्थ सबसँ बेसी जरूरी थिक, व्यर्थ थिक शब्दक खेती’. किसुन जीक ई शब्द आइओ कतेक प्रासंगिक अछि, से ओएह बुझैत छथि, जे मसिजीवी भए गुजर करबाक अव्यवहारिक मनोरथ पालैत पराजित भए जाइत छथि. कारण, मैथिली मे लेखन बैसाड़ीक अनमना भए सकैछ, जीविकाक साधन नहि.       
              ११.६.७० क दिन कुर्जी अस्पताल पटनासँ कविता-जकाँ लिखल किसुनजीक पत्र, एहि संकलनमे जीवकांतक नामे किसुन जीक अंतिम पत्र थिक, जाहिमे ओ रोग, जीवन, आ मृत्युकें निरपेक्ष भावें देखैत, ओ गीताक एक श्लोक ( हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं ) कें उद्धृत करैत ऑपरेशनक सफलता आ विफलताकें तराजूके दू पलड़ा पर राखि, रोगमुक्ति आ मृत्यु, दुनू परिणामकें समान रूपें लाभकारी-जकाँ प्रस्तुत करैत छथि. ई प्रायः रोगसँ थाकल युवकक विवशता थिक, मृत्युकें वरण करबाक गृहस्थक मनोरथ वा वैराग्य नहि, से १२.६.७० क परिवारजनलोकनिक  (वीसो, सुशील, मन्नू आदिकें ) नामें अस्पतालक वार्डसँ पेटक ऑपरेशनससँ पहिने लिखल हिनक पत्रसँ स्पष्ट होइछ, जाहिमे किसुन जीभगवती सब नीके करतीहक विश्वास व्यक्त करैत छथि.

‘प्रियवर’क  दोसर खण्ड-लेखक लोकनिक पत्र किसुन जीक नाम- सुमन जीक पत्रसँ आरंभ होइछ. एहि सबमे पहिले पत्रमे सुमन जीक उक्ति, ‘मातृभाषा द्वारा शिक्षाक प्रसारमे सांस्कृतिक अभ्युदयक संग आर्थिको लाभक दृष्टि छैकमैथिलीक माध्यमसँ  शिक्षा प्रसारक आर्थिक पक्षक संबंधमे हुनक चिंतनकें फरिच्छ करैछ.
आगू अबैत छथि किरणजी. २०.४. ५६ क, सरिसबसँ किसुन जीक नामे लिखल किरण जीक पत्र, एहि संकलनमे हुनक पहिले पत्र थिक. एहि पत्रमे किरणजी किसुन जीक स्वास्थ्य पर चिंता व्यक्त करैत, ध्यानपूर्वक स्वास्थ्यक रक्षा करबाक सलाह दैत किरण जी कहैत छथिन, ‘अहाँक स्वास्थ्य अपने टा हेतु नहि, मिथिलाओ हेतु अमूल्य अछि. अस्तु, वयसक अंतरक अछैतो, दुनू व्यक्तिक बीच आत्मीय आ परस्पर आदरक संबंध रहनि, से किरण जीक  दोसरो पत्रसँ बूझि पड़ैछ ; किरणजी एक पत्र मैथिली आन्दोलनसँ अपन मोहभंग एवं पीड़ा स्पष्ट करैत मैथिली भाषाक राजनितिक एक दारुण पक्ष उद्घाटित करैत लिखैत छथिन:
 ‘...... मैथिलीक क्षेत्र मे आतंरिक संघर्षमे हमरा क्षति भेल, वैयक्तिक. संघर्ष मे विजय भेटल. सरिसब उजानक भाषाकें स्टैण्डर्ड माननिहार सहरसाकें मैथिलीक केंद्र घोषित कयलक से कि अनेरे ?
 मुदा, जत भगत सुभाष कें मारि नेहरु वर्ग कें स्वर दय भारत मित्र अंगरेज बनल आ नेहरुलोकनि ओकरा मित्र मानि लेल, तेहने नीति ओ सब अपनौलनि. हमरा हत्या अपना मने क कय उदार बनि जाइत गेलाह. आ मैथिलीक सहित्यकार – जनिका निमित्त हमर संघर्ष छल – से सभ हुनक आरती करय लगलाह- एहि बातक चोट हमरा हृदय पर बड़ अछि मुदा तें आस्था नहि छोड़ब. हमर हत्या पर आन साहित्यकार फुलओ, भेल कोन थोड़ ?’

एहि चिट्ठी सबहक बीच किसुन  जी द्वारा मैथिली पुस्तकालयक उद्घाटन, सुधांशुशेखरचौधरीकमिथिलापत्रक प्रकाशनक आरंभ, मिथिला मिहिरक संपादकक रूपें हुनकधर्मयुगसाप्ताहिक हिन्दुस्तानकें ध्यानमे रखैतमिथिला मिहिरकें बिहारक सर्वश्रेष्ठ साप्ताहिक सिद्ध करबाक हेतुसोंगर बनबाक निवेदन सहित १९६० ई. पत्र अछि.

‘प्रियवर’मे किसुनजीक नाम  शिष्य सकेतानन्दक अनेक पत्र संकलित अछि. एहिमे सकेतानन्दक एक पैघ पत्र (२६.११.६४ क )मे मैथिलीमे वर्तनीक विभिन्नता, व्याकरणक अभाव, लेखनक स्तरहीनता, संस्कृतनिष्ठ  भाषाक प्रभाव, आ गुटबाजीक अतिरिक्त साहित्य अकादेमी द्वारा भाषाक रूपमे मैथिलीक स्वीकृतिक अतिरिक्त मैथिलीमे लोकप्रियरुचिक पत्रिकाक प्रकाशनक आवश्यकताकें रेखंकित कयने छथि. ओही पत्रमे प्रभास कुमार चौधरीक लेखनसँ मैथिलीक हित, तथा  मैथिलीमेमहावीर प्रसाद द्विवेदी’- सन व्यक्तिक अभावक चर्चा सेहो अछि. ई सब विषय  साठि बरखक बादहु आइओ प्रासंगिक बूझि पड़ैछ.

एहि संकलनमे धूमकेतुक केवल तीन गोट पत्र छनि. मुदा, विषय एवं निहित संवाद हमरा अत्यंत गंभीर लागल. एहिमे कथाक परिभाषा पर हुनक दृष्टि सर्वथा मौलिक बूझि पड़ल. तीन पैराग्राफक पहिल पत्रमे  धूमकेतु कहैत छथि, ‘श्रेष्ठ कथा वैह थिक जाहिमे घटनाक अंतसमे प्रभावित क्षणिक द्वन्दके पकड़बाक दृष्टि आ ओकर तीब्रताकें भोगबाक सामर्थ्य आ धैर्य व्यक्त भेल होइक. ......हमर खिस्साकें अही पृष्ठभूमि पर आँकल जाय.
 हम स्वयं धूमकेतुकें मैथिलीक अद्वितीय कथाकार मानैत छियनि. हुनक कथाक मूल्यांकन हएब एखन बाँकीए अछि. मुदा, धूमकेतुक चिठ्ठीमे  एकटा एहन आओर गप अछि जाहिसँ मैथिलीक माध्यमे गुजर कयनिहार लोकनि धरि आइओ सर्वथा निरपेक्ष छथि. अपन चिठ्ठीमे धूमकेतु, आम चुनावसँ पहिने एक सार्वजानिक आयोजनमेराधानन्दन झा एवं ललित (नारायण मिश्र ) बाबूक संग प्रमुख मैथिली साहित्यकारक सोझाँ मैथिलीक संवैधानिक मान्यता, सदनमे मैथिलीक हेतु एवं मैथिलीमे बजनिहार राजनेताक चुनाव, तथा उत्तर बिहारमे रेडियो स्टेशनक स्थापनाकें चुनावी मुद्दा बना कांग्रेस पार्टीकें धमकी देबाक, एवं मैथिली एवं उर्दूक मुद्दाक चर्चा कयने छथि.

पत्र सबहक बीच आगाँ एक नाम अबैछ उपेन्द्रक. तहियाक ई युवक किसुनजीक संग समताक आधार पर संवाद करैत छथि.आत्मनेपदकिसुनजी पूर्णतःरिप्रेजेंटनहि करैत छनि’  वाएहि संग्रह (आत्मनेपद)कें केओ खिच्चड़ि सेहो कहि सकैछकिसुनजीकें से धरि कहबाक धृष्टता तं उपेन्द्र करिते छथि, ओ हुनका  प्रकाशनक लेल पठाओल अपन कथाकेंपुश-अपनहि करबाक हेतु निवेदन सेहो करैत छथिन. मुदा, ओहूसँ बेबाक अछि उपेन्द्रक १७.९.६९ क चिट्ठी जाहिमे रेडिओ प्रसारण पर किसुन जीक कविता सुनि आओर मुखर भए उठल छथि. लगैत अछि, मैथिली साहित्यमेस्तुतिक परंपराक विपरीत, ई कवि आलोचनाकें निन्दा नहि बूझि निर्भीकतासँ अपन पक्ष रखबाक अभ्यस्त रहथि. पछाति उपेन्द्र पुरान पीढ़ीक मैथिलीक कविकेंभोजखौकाकहैत ‘सड़ि मरि जयबाक’ कामना करैत छथि, आ मैथिलीमे रचनाक सम्यक मूल्यांकनक अभाव एवं ‘(मिथिला) मिहिर’सँ नहि पटबाक कारण लेखनसँ सन्यास लेबाक निर्णयक सूचना सेहो किसुन जीकें दैत छथिन. रोचक थिक, यात्री-नागार्जुन अपन पत्रमे किसुन जीकआत्मनेपदकेंविलक्षण एवं स्फूर्तिमयक संज्ञा दैत छथिन.
 उपेन्द्रहिक जोड़ीदार गंगानाथ गंगेश अपन पत्र सबमेसंकल्पपत्रिकामे प्रकाशनक हेतु एक कथा पठबैत पत्रिकाक स्तरीयताक निर्बाहक हेतु अनेक सुझाव दैत, पत्रिकाक सदस्यताक हेतु व्यक्तिक दिससँ सदस्यता शुल्क पठयबाक सूचना सेहो दैत छथिन.  पछाति ओ उपेन्द्रक संग एक कविता संग्रहक रचनाक प्रकाशनक योजनाक सूचना दैत, ओहो मैथिली पत्रिका सबसँ अपन उदासीनताक चर्चा सेहो कहैत छथिन.

एहि पत्र सबमे आओर अनेक साहित्यकार ( रामदेव झा, वीरेंद्र मल्लिक, आर. के. रमण, भद्रनाथ, हितेन्द्र नारायण चौधरी इत्यादि ) अपन पत्रमे भिन्न-भिन्न विषयक - प्रकाशन योजना, रचना पठयबाक सूचना, जिला साहित्यकार सम्मेलनमे सहभागिता, वा सहभागी नहि भए सकबाक खेद, साहित्यिक आयोजनक हेतु हकार/निमंत्रणक - अतिरिक्त अन्य विविध विषयक चर्चा करैत छथि.  एहि सबहक बीच अछि, हंसराज (२.६.६८ क) एक आत्मीय पत्र जाहिमे किसुन जीक रोग पर हुनक दार्शनिक दृष्टि निक्षेप अजगुत लागल.
एक पत्रमे रमानाथ झा अभिनन्दन ग्रंथ समितिक मंत्रीक रूपे दुर्गानाथ झा श्रीशक १९६८ ई, एक पत्रमे  ‘सहरसा ओ तकर परिसरक मैथिली साहित्य सेवापर आलेखक आग्रह सेहो अछि. पछाति ओही पत्रमेजे देबय चाहथितनिकासँ सहयोगक चर्चा सेहो अछि: सर्वविदित अछि, किसुन जी अध्यापनक अतिरिक्त साहित्यिक प्रकाशन, भाषाक प्रचार -प्रसार, साहित्यिक-सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन, एवं पत्रकारिताक माध्यमसँ सबहक सहायता करथि, अनेक स्थानक यात्रा करथि, समारोहमे सहभागी होथि.
            ‘प्रियवर
मे मैथिलीक जुझारू सेनानी बाबू साहेब चौधरीक अनेको पत्र सेहो अछि. स्वतः विषय-वस्तु मैथिलीक हेतु आन्दोलन, भिन्न-भिन्न साहित्यिक आयोजन एवं प्रकाशनसँ संबंधित अछि.
 पत्र सबहक एही बंडलमे आगू भेटल मायानाथ मिश्रक एक पैघ पत्र जे मैथिली साहित्यमे प्रकाशनक व्यवसायक एक एहन  अन्हार पक्षकें उजागर करैछ, जाहि पर तहिया हठें पाठकक दृष्टि नहि पड़ैत छलनि. यद्यपि थिक तं इहो इतिहासे, मुदा,एकपक्षीय बयानकें सत्य मानि बैसब पूर्वाग्रहसँ कम नहि. अस्तु, जे अछि, से अछि. ततबे.

किसुनजीक नाम यात्री-नागार्जुनक पत्रमे अनेक विषयक चर्चा भेटत. एक बेर (१७.६.७० क पत्रमे) ओ मैथिली साहित्यमेप्रखर वामपंथी साहित्यक आवश्यकता पर जोर दैत कहैत छथि, ‘भाषाक समस्या जाधरि भूमिहीन वर्ग-अछोप समाज-शोषित समाजक दैनिंदिन संघर्ष सँ समन्वित नहि हेतइ ताधरि उपरे उपर एहिना दहाइत भसिआइत रहती मैथिली....’ . ई आइओ प्रासंगिक अछि.

पत्रक श्रृंखलामे किसुन जीक नाम जीवकांतक अनेक पैघ-छोट पत्र  संकलित अछि. ई कहब पुनरुक्ति हएत जे जीवकांत पत्राचारमे कीर्तिमान स्थापित कयनिहार एहन साहित्यकार छलाह जे अपन पत्र सबमे अनेक विषय पर विस्तृत विवेचना आ विश्लेषणक अभ्यासी रहथि. अस्तु, जीवकांतक पत्र मैथिली साहित्यमे अनेक अनुसंधानक स्वतंत्र संपदा थिक, जे क्रमशः सोझाँ आओत से आशा करैत छी.

पत्रकारिता इतिहासक प्रथम ड्राफ्ट मानल जाइछ. पत्र सेहो मनुष्य आ समाजक जीवनक इतिहासकफर्स्ट ड्राफ्टथिक. तहिना, साहित्यकार लोकनिक बीचक पत्राचार जं साहित्यक इतिहास हेतु एक प्रकारक कच्चा माल थिक, अनुसंधेताक हेतु पूँजी थिक, तं ‘प्रियवर’-सन संकलित सामग्री थारीमे सांठल दिव्य भोजन. कठिन परिश्रमसँ, किसुनजी पत्राचारक सम्पूर्ण उपलब्ध संपदाक एक ठाम संकलन मैथिली साहित्यक हेतु संपादकद्वय, केदार कानन एवं रमण कुमार सिंह,क बड़का उपहार थिक.एहि हेतु ई लोकनि साधुवादक पात्र थिकाह. एहि संकलनमे प्रायः हिन्दी-मैथिलीक, किसुन जीक कोनो समकालीन प्रायः छूटल  नहि छथि. मुदा, ई लोकनि ‘प्रियवर’ क शीर्षकक संग, पं. रामकृष्ण झा ‘किसुन’ क पत्राचारक संकलन- सदृश कोनो उपनाम किएक नहि देलखिन से आश्चर्य. उपनाम देने पुस्तकालयमे सूचीकरण (indexing) में सुविधा होइतैक, आ पाठककें पोथी ताकब सुलभ होइतैक.
 स्मरणीय थिक, पत्रक संकलन-संपादन आ प्रकाशन श्रमसाध्य कार्य थिक. एहि हेतु श्रम, अर्थ एवं समय चाही. मुदा, सूचना प्रोद्योगिकीक उपकरणक प्रयोगसँ, केवल मोबाइल फोनसँ पत्र एवं अन्य पाण्डुलिपिकें स्कैन कए पत्रकें कम्प्यूटरमे संकलित कय नष्ट हेबासँ  बचाओल जा सकैछ, सामग्री दूर-दूर धरि पाठककें उपलब्ध कराओल जा सकैछ. ई सामग्रीक संरक्षणक हेतु सुलभ विधि थिक. अनेको व्यक्तिक एहन प्रयास एकक बोझकें दसक लाठी बना, साहित्यक संपदाकें परवर्ती पीढ़ीक हेतु सुरक्षित कयल जा सकैछ. केवल एतबा प्रयाससँ साहित्यक सामग्रीकें सुरक्षित राखल जा सकैछ.

Tuesday, September 10, 2024

संस्मरणक सार्थकता

 

संस्मरणक सार्थकता

संस्मरण की थिक ? किछु इतिहास आ किछु लेखा जोखा . मनुक्खसँ  समाज बनैछ. समाजक इतिहास, देश-दुनियाक इतिहास होइछ. तें मनुक्खक इतिहास, वृहत् इतिहासक आधारशिला होइछ. मनुक्ख के छलाह, ओ समाजले की-की केलनि, ई  सब प्रश्न व्यक्तिक जीवनकें सामाजिक सार्थकता प्रदान करैत छैक . मुदा जं कोनो मनुख्यक जीवन सार्वजनिक हितक नहिओ होइक , सार्वजानिक जीवनक हिस्सा नहिओ होइक, तथापि 'मानुस जनम अनूप' तं थिकैक. तें अदनो मनुक्खक जीवन समाजक निरंतर गतिमान धाराक जल तं थिके. भले एक बुन्न जल, वा एकटा जिनगी क कोनो अपन स्वतंत्र अस्तित्व नहि होइक. मुदा, बूंदे- बूंदेसँ  तं समुद्र बनैछ .अस्तु, हमर संस्मरण भले समुद्रक बून्दे थिक, आइ हम अपन अनुभवकें मोन पाड़बामे प्रवृत भेलहुँ-ए.

भारतक स्वतन्त्रता प्राप्तिक किछुए वर्ष पछाति हमरा लोकनिक जन्म भेल छल . देशमे नव स्फूर्ति आ आशा जागल छलैक. क्रमशः की भेलैक आ भ’ रहल छैक से सर्वविदित अछि. फलतः, आब स्वतंत्रताक ७७  वर्षक पछाति, लोकक मनमे आशाक संग निराशा आ अविश्वास सेहो जड़ि जमा चुकल छैक . एतबे दिनमे आशाक संग निराशा मिज्झर भए गेलैक ? मनुष्यमे एहन कोन परिवर्तन भेलैये जे लोकके समाज आ संविधान परसँ  विश्वास उठि गेलैये. एहि  देशकेर ओहि  वर्ग, जकरा पर पहिने ककरो अविश्वास नहि छलैक ओकर विरुद्ध  अविश्वासक बीआ रोपबाक प्रयास भ’ रहल अछि. एहि सब अभियानसँ  समाजपर कोन आ केहन  असरि पड़तैक से सोचबाक विषय थिक . तथापि, हम भारतेंदु हरिश्चंदकेर ओहि उक्तिसँ  सहमत नहि छी जाहिमे शताब्दी पूर्व ओ कहने रहथिन:

सब भांति देव प्रतिकूल एहि नाशा, 

अब तजहु वीरवर भारत की सब आशा

एखनहु पूर्ण आशा अछि. हमरालोकनि निरंतर प्रगतिक दिस अग्रसर छी; हमरा लोकनि सफल हयब.                     हमर अपन जीवन यात्रा मिथिलाक विशुद्ध देहातसँ  आरम्भ भेल छल . पढ़लहुँ  चिकित्सा शाश्त्र आ अंततः सेना चिकित्सा कोर केर सेवाक प्रसादें चरितार्थ भेल भेल, 'अग्रतः सकलं शास्त्रं, पृष्ठतः सशरं धनुः'. भारतीय  सेनाक नौकरी, आ पछाति असैनिक सेवाक प्रतापें  सम्पूर्ण देशकें लगसँ  देखबाक अवसर भेटल. अनुभव कहैत अछि , किछु-किछु तं  सम्पूर्ण भारतमे एके रंग छैक मुदा किछु-किछु सर्वथा भिन्न . भाषा सब ठाम भिन्न-भिन्न छै , मुदा, गरीब-गुरुबाक  स्वरुप एके रंग . आधारभूत संरचना आ प्रशासनमे भिन्नता छैक, मुदा, राजनेता आ भ्रष्टाचार  एके रंग. हवा -पानिमे भिन्नता छै, देवी देवताक स्वरुप भिन्न-भिन्न छनि, मुदा, विश्वास आ  धर्मभीरुता एके रंग . मुदा एकटा रोग सब ठाम एके रंग पसरि  रहलैए : सार्वजानिक चिकित्सा व्यवस्थामे सरकारक घटैत भागीदारी आ प्राइवेट स्वास्थ्य सेवाक प्रसारक संग बढ़ैत बेईमानी . ई परिवर्तन आम आदमीक जीवनकें दुस्कर तं बनाइये रहलैके, लोककें आब वकीले- मुख़्तार-जकाँ डाक्टरसँ  भय होमय लगलैए. मुदा करत की ? थिकाह तं  'वैद्यो नारायणो हरिः' ! मुदा, लगैत अछि, कनिएक दिनमे वैद्य आ बनियाँ, डाक्टर आ डकैत एके पांतीमे बैसाओल जयताह, से असम्भव नहि . पहिनहुँ   तं केओ कहनहि  छथिन:


वैद्यराज नमस्तुभ्यं यमराजसहोदर ।

यमः हरति प्राणाः , वैद्यो प्राणाः धनानि च !

अस्तु,  अहाँ वैद्यकें बूझी नारायण-हरि वा यम,  आब हमर (सैनिक-वैद्यक) जीवनक अनुभवक प्रतीक्षा करू. हमर अनुभव जतय अहाँक अनुभवक संग पूरैत अछि , ओ समाजक सामान्य अनुभव भेल . जतय हमर आ अहाँक अनुभव फूट -फूट बाट धेने आगू बढ़इत अछि, कहबाले हमरा लग किछु नव अवश्य अछि. आ सएह थिक एहि संस्मरणक नवीनता वा सार्थकता.

डायरीक एक पन्ना : पांडिचेरीसँ बंगलोर

 

पांडिचेरीसँ बंगलोर

2007 में भारतीय सेनासँ ऐच्छिक सेवानिवृत्ति सोचल विचारल निर्णय छल. ओकर आगाँ पोखरा, नेपालक  साढ़े पांच वर्षक प्रवास वरदान-जकाँ छल ; अन्नपूर्णा पर्वतमालाक सोझाँ सेती नदीक कछेर पर पोखराक मृदु आ स्वास्थ्यवर्धक जलवायुमे वास. किन्तु, 2012 मे पोखरासँ पांडिचेरी जयबाक नेयारक निर्णय स्वाभाविके छल – स्वदेश वापसी आ आर्थिक लाभ दुनू. मुदा, एहि बेर पांडिचेरीसँ बंगलोरक यात्रा पोखरासँ  पांडिचेरीक यात्रासँ भिन्न छल. मेडिकल फील्डमें लगातार करीब एकतालीस  वर्षक सेवाक पछाति पहिल बेर हम स्वेच्छासँ त्यागपत्र दए, पूर्णतः सेवानिवृत्त-जकाँ बंगलोर बिदा भेल रही. किन्तु, एहि लेल हमरा ने कोनो पश्चाताप छल, आ ने कोनो दुःख. चिकित्सकक रूप में लम्बा अवधि धरि सेना आ सेनासँ बाहर सम्पूर्ण देश आ विदेशमें सेवा कयल. सबठाम लोकक आदर आ प्रेम भेटल, चाहे लद्दाख हो वा लखनऊ. मेडिकल कालेजमे सेहो लगातार तेरह वर्षसँ  अधिक प्रोफेसरक पद पर काज कयल आ   नेत्र-चिकित्सा पढ़यबाक मनोरथ सेहो पूर भए गेल छल.

सत्यतः, जं सेनासँ ऐच्छिक सेवानिवृत्तिकें सेहो जोड़ि दी, तं, महात्मा गाँधी मेडिकल कालेज, पांडिचेरी लगा कय ई हमर तेसर त्यागपत्र थिक. किन्तु, एहि बेरुक त्यागपत्रक परिस्थिति आ मनोभाव आन बेरसँ सर्वथा भिन्न छल; विगत एक वर्षक कोरोना-कालमे प्राण तं बंचि गेल, किन्तु, परिवारजनक ह्रदयमे कोरोनाक  निरंतर भय अवघात नहि केलक से कोना कहब. यद्यपि, कोरोना कालमे सत्यतः हमरा अपना कहिओ प्राणक भय नहि भेल.    जे किछु.पांडिचेरी छोड़बाक निर्णय भेलैक. पांडिचेरीसँ बंगलोर जयबाक हमर ई निर्णय हमर सहकर्मी लोकनिकें अचानक-जकाँ बूझि पड़लनि. आ महात्मा गांधी मेडिकल  कालेजमे हमर ई  निर्णय सत्यतः,सबकें चकित केलकनि. विभागाध्यक्ष तं कहलनि, ‘ I am shocked !’ किन्तु, हमर त्यागपत्र अचानक छल नहि. हं, पांडिचेर कें त्यागि, बंगलोर अयबाक निर्णय 9/07/2020 क राति, एक विपरीत परिस्थितिमे, अचानक अवश्य भेल छल. तथापि, निर्णयक आकस्मिकतासँ ने हम क्षुब्ध रही, आ ने चकित. एहि निर्णय ले हमरा कोनो पश्चाताप सेहो, ने तहिया छल, आ ने आइ अछि. कतेको आकस्मिक घटनामे अनेक नीक अवसर नुकायल रहैत छैक, से के नहि मानत. ताहि परसँ हमर निरंतर आशावादी प्रवृत्ति हमर कल्पनाकें हठे कोनो आसन्न विप्पत्तिक दिस किन्नहु नहि जाय दैत अछि. हमर इएह सोच हमर संजीवनी थिक !   सर्वविदित अछि, कोरोना कालमे जखन अनायास करोड़ों लोकक जीविका चल गेलैये, तखन स्वेच्छासँ जीविका छोड़ब विरोधाभास-सन  प्रतीत होइछ. किन्तु, उचित-अनुचित केर कोनो एकटा मापदंड नहि. प्रत्येक निर्णय आ विचारकें परिस्थितिक परिप्रेक्ष्यमें देखबाक थिक. किन्तु, से आन कोना देखत. तथापि, हमर सहकर्मी, अस्पतालक मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट, आ विश्वविद्यालयक उच्चतम प्रशासनिक अधिकारी लोकनि हमरा निर्णय बदलबाक हेतु आग्रह अवश्य केलनि. विशेषतः एहि हेतु जे हमरा मेडिकल टीचिंगमे एखनो पांच वर्षक अवधि बांकी अछि. कतेक गोटे तं सत्तरि पार भेलहुँ  पर आमदनी व अनमना लेल कालेज नहि छोड़य चाहैत छथि. हमर अपन सबसँ आप्त सहकर्मी लोकनि तं अंत धरि कहैत रहि गेलीह, ‘ हमरा सबकें होइत छल, अंतहुमें कोनो चमत्कार हेतैक आ अहाँ एतहि रहि जायब’. हम कहलियनि, ‘ आब तकर सम्भावना नहि.  हमरा मन में पहिनहुसँ  कोनो दुविधा नहि छल. हम कृतसंकल्प रही. तें, हुनका लोकनिक आशाक कारण, केवल हमर प्रति हुनका लोकनिक स्नेह आ श्रद्धा छलनि. हुनका लोकनिक स्नेह आ श्रद्धासँ हमरा बल अवश्य भेटैत छल. हम शरीरें स्वस्थ छी, पढ़ायब आ चिकित्सा करब हमर चुनल आ प्रिय अनमना थिक.  किन्तु, सहकर्मी लोकनिक स्नेह आ श्रद्धाकें हम सदा निरपेक्ष भाव सँ देखैत रहलहहुँ  आ ओहिसँ अपन निर्णयकें कहियो प्रभावित नहि होमय देलिऐक.

बामासँ दाहिना: प्रो.राजलक्ष्मी, लेखक, विभागाध्यक्ष प्रो. श्रीकान्त, प्रो. स्वाति  

कहैत छैक, सेना मनुष्यकें बदलि दैत छैक. से कोनो बेजाय नहि. हमर निनानबे प्रतिशत व्यवहार, हमरा,अपन  सैनिक जीवनक अनुशासनसँ प्रेरित बूझि पड़ैत  अछि. तें, अनुशासनक प्रति हमर दृढ़ताक कारण  कखनो काल हमर छात्र लोकनिक, हमरा प्रति अप्रसन्नताक आशा सेहो रहैत छल. कतेको छात्रकें हम, शर्ट केर खूजल बटन, हवाई चप्पल, बिनु काटल दाढ़ी, वा बिनु पॉलिश कयल जूता लेल टोकने हेबनि. बिलम्बसँ क्लास वा काज पर अयबाक तं प्रश्ने नहि. तथापि, जखन हमर अयबाक बेर भेल तं छात्र आ सहकर्मीक आदर-स्नेह हमर धारणाकें निर्मूल तं कइए देलक, बल्कि, हमर बिदाईक भोज आ सहकर्मी आ छात्र लोकनिक आदर-सत्कार हमरा अभिभूत कय देलक. सत्यतः, पोखरा, नेपालमे मणिपाल मेडिकल कालेजसँ  सेहो जखन निवृत्त भेल रही, विदाई ओतहु उत्तम भेल छल. आ किएक नहि ; हमरा सबतरि छात्र आ सहकर्मी लोकनिक आदर आ स्नेह-सम्मान भेटल. मुदा, पांडिचेरीक विदाई अविस्मरणीय छल. एहि विदाई विशेषता ई छलैक, जे विभागमे रहितो सहकर्मी लोकनि हमरा विदाईक  तैयारीक किछुओ अनुमान नहि होबय देलनि. विभागाध्यक्ष एहि सबहक सूत्रधार तं छलाहे, बांकी शिक्षक लोकनि, स्नातकोत्तर छात्रलोकनि, एहि विदाईक पूरा भार अपना उपर उठौने रहथि. सब स्तरक स्टाफ लोकनिक सहभागिता सेहो रहैक. संयोग एहन रहैक जे हम अपन कार्यावधिक अंतिम पन्द्रह दिनमे किछु छुट्टी नेने रही, आ किछु दिनक छुट्टीओ रहैक. तें, हमर बिदाईक  सब तैयारी प्रायः हमर अनुपस्थितिएमे भेलैक.  आ हमर छुट्टीएक अवधिमे विभागाध्यक्ष डाक्टर श्रीकान्त, डाक्टर राजलक्ष्मी आ डाक्टर स्वाति हमर डेरा आबि कय 27 मार्च, शनि दिनक दुपहरियाक भोजनक नोत देलनि. प्रोफ़ेसर राजलक्ष्मी तं पछिला आठ वर्षसँ हमरे यूनिटमें छलीह, जतय ओ सहायक प्रोफेसरसँ  प्रोफेसर धरिक पद धरि पहुँचलीह. प्रोफेसर स्वाति सेहो एखन हमरे यूनिटमें छलीह. हमरा लोकनिकें ई सौजन्य नीक लागल. मुदा, ई सौजन्यक आरम्भ छल. नोतक दिन, शनि, अस्पतालमें छुट्टी रहैक. हम अपने भोजमे  जयबाक तैयारीमे रही. किन्तु, राजलक्ष्मी आ स्वाति स्वयं आबि हमरा आ हमर पत्नीकें  होटल धरि लए गेलीह. ओतय विभागाध्यक्षक संग डिपार्टमेंटक सम्पूर्ण छात्र, स्टाफ, नेत्र-विभागक वार्ड सबहक सिस्टर लोकनि, ऑपरेशन थिएटरक सिस्टर लोकनि, सब मौजूद रहथि. दिव्य भोजन, हार्दिक सौजन्यक अतिरिक्त विद्यार्थी लोकनि मनोरंजनक किछु आइटम सब सेहो तैयार केने रहथि. एकटा बंगाली स्नातकोत्तर छात्र, डाक्टर अनुजीत पाल वायलिन पर रवीन्द्र संगीत बजओलनि. ई अद्भुत अनुभव छल. स्नातकोत्तर छात्रा लोकनि समवेत स्वरमे हिन्दीक अनेक ह्रदयस्पर्शी गीत गओलनि. पछाति,  स्नातकोत्तर वर्गक प्रत्येक वर्षक छात्र-छात्रा सँ प्रतिनिधि-जकां भिन्न-भिन्न विद्यार्थी लोकनि हमर प्रशस्तिमें संक्षिप्त भाषण सेहो देलनि ; सबमें हमर जयबाक कारण हुनका लोकनिक दुःख, आ हमर प्रशंसा रहैक. स्टाफ-सिस्टर-क्लर्क लोकनि ततेक भाव विह्वल भय जाइत गेलीह जे कतेककें किछु कहैत-कहैत कोंढ़ फाटय लगलनि. विदाईक रूप में विभाग दिससँ हमर आठ वर्षसँ बेसीक लगभग प्रत्येक स्मरणीय गतिविधिक फोटो सबहक फ्रेम्ड कोलाज भेंट कयल गेल. भेंटमे फोटो सबहक प्रिंटेड कॉपीक एकटा अलबम सेहो छल. डिपार्टमेंटक टेक्निकल असिस्टेंट कार्तिक हमर एकटा पैघ पोर्ट्रेट भेंट केलनि. ऑपरेशन थिएटरक नर्स लोकनि स्वामी रामकृष्ण परमहंसक जीवनी आ स्वामी परमहंस योगानंदक आत्मकथाक तमिल अनुवाद भेंट केर रूपमें देलनि. ओतय सबकें बूझल छलैक जे हम तमिल पढ़ैत  छी; विभागाध्यक्ष डाक्टर श्रीकांतक कुर्सीक पाछाँ तं हमर  ‘कुरल मैथिली भावानुवाद’क प्रति पिछला तीन वर्षसँ तेना रखने छथि जे हुनक कमरामे प्रवेश करिते सबहक दृष्टि ओहि पर पड़ैत छैक  अछि. एकर अतिरिक्त, वार्ड केर सिस्टर लोकनि हमरा ले अलगसँ  उपहार अनने छलीह. ई अभूतपूर्व छल. एतेक सौजन्यसँ  हमरा लोकनिक अभिभूत हएब उचिते छल. हमरा नहि बूझल छल जे  विभागमें सब गोटे हमरा एतेक मानैत छल !

अंतमें हम संक्षेप भाषणमें सबकें धन्यवाद देलिअनि. हमरा मोन छल महात्मा गाँधी मेडिकल कालेजमें योगदानक हफ्ता भरिक भीतरे हमरा डेंगू ज्वर भय गेल छल. ओहि वर्ष 2012 मे तमिलनाडुक केवल मदुरै शहरमें डेंगू सँ करीब दू सौ व्यक्तिक जान गेल रहैक. तखन हमरा विभागमे लोक नीक-जकाँ जनितो नहि छल. तथापि, वर्त्तमान विभागाध्यक्ष डाक्टर श्रीकान्त, हमराले सिद्ध चिकित्साक प्रणालीक, डेंगूक हेतु गुणकारी औषधि-‘ नीलबेम्बू कुडिनीर’- नामक ( चिरैताक ) काढ़ाक एक बोतल, अपने मोने हमरा लेल कीनि कय अनने रहथि. हुनक ई गुण हम से कोना बिसरितियनि. ‘हुनक एहि सौजन्यसँ  हमरा तहिया भान भेल छल जे हम अपन परिवारक बीचे आबि गेलहुँ-ए’. हमर एहि स्मरणक चर्चासँ डाक्टर श्रीकांतक आँखिमसँ  नोर खसय  लगलनि, आ ओ आँखि पोछय लागल रहथि, से पछाति हमर पत्नी कहलनि. हम जखन छात्र लोकनिकें संबोधित करैत ई कहलिऐक जे शिक्षक वस्तुतः कहिओ मरैत नहि छथि. ओ लोकनि सर्वदा छात्र लोकनिक भीतर वर्तमान रहैत छथि, तं, कतेको छात्र लोकनिक आँखि नोरा गेलनि, से हम अपनो देखलिऐक.

पछाति, डाक्टर राजलक्ष्मी आ स्वाति हमरा डेरा धरि पहुँचा  गेलीह. सामानक बान्ह-छानक कारण अस्त-व्यस्त घरहुमे ओ लोकनि हमरा सबहक संगे किछु काल छलीह. वयसें तं ई लोकनि हमर कन्याक वयसक छथि आ हिनका लोकनिसँ लम्बा अवधिक संग अछि. हमरा आँखिक सोझाँमें शिक्षकक विभिन्न स्तरकें पार करैत ई लोकनि आब प्रोफेसर छथि. मुदा, हमरा संग हिनका लोकनिक भाव परस्पर आदरक छनि, आ हम हिनका लोकनिक योग्यता आ अनुभवक सदा आदर करैत छियनि. ई लोकनि छथियो दक्ष आ कार्य कुशल. हमर दिन-प्रतिदिनक काजकें  ई लोकनि निरंतर बल दैत छलीह. ताहिसँ हम प्रसन्न रहैत छलहुँ  आ हम आश्वस्त सेहो रहैत छलहुँ , जे ई लोकनि कोनो प्रकारक समस्याकें सम्हारि लेतीह. विभागाध्यक्ष संगे हिनका लोकनिक तादात्म दोसर छलनि. फलतः, ई लोकनि हमरा लग आबि अपन अनेक समस्या कहैत छलीह. आब हमरा गेने तकर कमीक अनुभव हेतनि, से हमरा प्रतीत होइछ. कहैत गेलीह, ‘ अहाँक गेला उत्तर सेहो हमरा लोकनि गाहे-बगाहे अहाँकें फोन करबे करब’. हम भविष्यहुमे सम्पर्क-सहयोग आ मार्गदर्शनक हेतु आश्वस्त केलिअनि.  किन्तु, जीवनमे की स्थायी होइत छैक ! अन्ततः, लोककें माता-पिताक छाया सेहो उठिए जाइछ. सएह गप्प. हमरो हेतु हिनका लोकनिक साहचर्य एक सुखद अनुभव छल. कोरोना कालमे एवं ओहिसँ पहिनहु ई लोकनि एतबा खयाल रखैत छलीह जे हमरा पर काजक बेसी भार नहि पड़य. हम सेहो हिनका लोकनिके प्रोफेशनल स्वतंत्रता, आ प्रचुर अवसर दैत रहलिअनि. अस्तु, हम हिनका लोकनिक व्यक्तिगत आ प्रोफेशनल दक्षता तरासबामे जतबो किछु योगदान विगत आठ वर्षमे केलिअनि से जीवन पर्यन्त हिनका लोकनिक संग रहतनि. संगहि, पांडिचेरी जं किछु तमिल सिखल तं ताहिमें हमर एतुका सहकर्मी लोकनिक योगदान अवश्य छनि. राजलक्ष्मीकें तं कतेक बेर हम तमिल भाषाक ‘फॉर्मल टीचिंग’ देबा ले सेहो कहियनि . आइ काल्हि तमिल भाषीओ लोकनिक बीच तमिलमें दक्ष व्यक्ति भेटब सुलभ नहि. राजलक्ष्मी ओहि दृष्टिऍ अपवाद छथि. ताहिसँ हम निरंतर लाभ उठाओल. श्रीकान्त सेहो यदा-कदा सहायता करैत छलाह. हम अपन रुचिए एतय रहैत प्रसिद्द तमिल ग्रन्थ  ‘कुरल’क भावानुवाद प्रकाशित कयल सेहो एकटा संयोगे छल; ओना ई पोथी तं पन्द्रह वर्ष धरि हमरा संग कतय-कतय ने घूमल. ‘कुरल’क भावानुवादक कारण एतय हम ओहुना बहुतो गोटेक श्रद्धाक पात्र भए गेल रही. हमरा अछैत, हमर आप्त सहकर्मी  लोकनिकें सेहो मिथिला आ मैथिलीक किछु अनुभव भेलनि. एहि स्मरणकें स्थायित्व देबा ले हम डाक्टर श्रीकांत, राजलक्ष्मी, स्वाति आ एक आओर भूतपूर्व सहकर्मी डाक्टर अशोककें ‘मधुबनी पेंटिंग’क नामसँ  प्रसिद्ध मिथिला चित्रकलाक एक-एक प्रति उपहार स्वरुप देलिअनि जाहिसँ  ओ लोकनि अपन घर सजाबथि, आ मिथिला-मैथिलीक संग हमरो नहि बिसरथि.

हँ, संयोगसँ  पेंटिंगक गप्प भेलैक तं हमरा एम. एस. नेत्र चिकित्साक अंतिम वर्षक हमर छात्रा डाक्टर स्टेफनी सेबेस्टियनकें बिसरब असंभव. ई मृदुभाषी, मेधावी, मलयाली छात्रा जेहने पढ़बामें नीक छथि, तेहने गुणवती; अमेज़न इंडिया पर हिनक अंग्रेजी उपन्यास ‘ Love to Death’ स्वतः आकृष्ट करत. मुदा, गप्प से नहि. ई छात्रा महात्मा गाँधी अस्पतालमे हमर काजक अंतिम दिन फाइनल इयर केर आन छात्र-छात्रा लोकनिक संग हमरा लग अयलीह आ फाइनल इयरक छात्र लोकनिक दिससँ, अपन हाथें कागज पर पेंसिलसँ बनाओल हमर स्केचकें फ्रेम करा हमरा ले उपहारमें देने गेलीह. 


नेत्र-चिकित्सक डा.स्टेफनी सेबस्टियनक बनाओल हमर रेखाचित्र  

एहि चित्र केर नीचा हिंदी कवितामें हमर प्रशंसाक तीन पाँतिक अतिरिक्त अंग्रेजीमें हमर प्रति कृतज्ञता
 सेहो छल. लिखल पाँतिक नीचा फाइनल इयरक पांचो डाक्टर- श्राव्या, जूही, कौशिक, महालक्ष्मी आ स्टेफनीक नाम लिखल छैक. हमरा एखन धरि ई नहि बूझल छल जे ई डाक्टर-लेखिका-उदीयमान नेत्र चिकित्सक  एतेक नीक चित्रकार सेहो छथि. वस्तुतः हमरा सहित अधिकांश  शिक्षक मेडिकल कालेजक छात्रक व्यवसायिक दक्षताक अतिरिक्त छात्र लोकनिक व्यक्तित्वक आन पक्षकें कदचिते देखि पबैत छथिन. तकर कारणो छैक; हमरा लोकनिकें छात्र लोकनि सबसँ सामाजिक स्तर पर मेलजोलक अवसर कदाचिते भेटैछ. पेंसिल स्केच केर अतिरिक्त डाक्टर स्टेफनी हमरा ले फूटसँ अपना हाथें लिखल एक पेजक एकटा चिट्ठी सेहो अनने छलि जकरा पढ़िकय आइओ हमर आँखि नोरा गेले. हमरा लगैत अछि, शिक्षकक रूपें ई चिट्ठी हमरा हेतु एकटा तगमा थिक !

आब बंगलोर अयना करीब तीन हफ्तासँ  बेसी भए गेल. कोरोनाक संकट छोड़ि ककरो चेतनामे एखन आओर किछु नहि अबैत छैक. किन्तु, जं-जं दिन बिततैक हमरा नहि लगैत अछि, पांडिचेरीक प्रवास आ ओतुका, छात्र आ सहकर्मी लोकनि हमरा कहियो बिसरताह. हुनका लोकनिकें हमहूँ  कोना बिसरबनि.

हमर नाम डा. स्टेफनी सेबेस्टियनक पत्र 

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

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