[ एहि लेखमे रचनाक सुधारक हेतु किछु सुपरिचित आ किछु अनुभूत विन्दुक चर्चा अछि। मुदा, ई लेख सिद्धहस्त रचनाकारक हेतु नहि थिक। तथापि, जँ ई लेख उपयोगी भेल तँ, एहि चर्चाकेँ आगाँ बढ़ाऑल जा सकैछ। .]
साहित्य सृजनक उद्देश्य जे हो, विधा कोनो हो, विषयक उपादेयता, कथ्यक नवीनता, विश्वसनीयता,आ तर्कसंगत प्रस्तुतिसँ कृतिक आदर होइछ; उपादेयता आ गुणवत्ता पाठककेँ आकृष्ट करैछ। पाठक अपन रुचिक अनुकूल विषय चुनैत छथि, पढ़ैत छथि. कठिन भाषा, अस्पष्ट भाव आ दोषपूर्ण वर्तनीसँ पढ़ब कठिन होइछ। तखन, सफल लेखनक गुण-धर्म की थिक जे पाठककेँ आकृष्ट करैछ। लेखनक अवगुण की थिकैक? एही सब विन्दु पर विस्तारसँ विचार करब एहि लेखक उद्देश्य थिक।
संगहि, लेखनक गुणवत्ता कोना सुनिश्चित करी, ताहि विषय पर सेहो एतय संक्षिप्त विचार प्रस्तुत अछि। आलेखक आकार सीमित रखबाक ध्येयसँ प्रत्येक विन्दुक उदाहरण एतय संभव नहि भेल.
सबसँ पहिने सफल लेखनक गुण पर विचार करी.
विषयक उपादेयता
सब विषय सबहक हेतु उपादेय नहि होइछ. मनोरंजनक उद्देश्यसँ लिखल साहित्य आ छात्रोपयोगी लेखनक उपादेयता भिन्न होइछ. यद्यपि, मनोरंजनक हेतु लिखल साहित्य (कथा, कविता, आ नाटक) पाठ्य पुस्तकमे संकलित होइछ। आलोचनात्मक लेख सेहो पाठ्य पुस्तकक हेतु लिखल जाइछ।
समसामयिक लेखनमे प्रासंगिकता आ लोकरुचि उपादेयता निर्धारित करैछ। एकर विपरीत, विषय विशेष पर केंद्रित पत्र-पत्रिका वा जर्नल अपन आवश्यकताक अनुकूल लेख छपैछ आ आलेखक भाषा, आकार, संरचना, वर्तनी आ शैलीक स्पष्ट निर्देश प्रकाशित करैछ।
एहि आलेखक विवेचना सृजनात्मक लेखन तथा आलोचना धरि सीमित अछि. एहि दुनू विधामे लेखक स्वयं विषय, आकार, आ शैली निर्धारित करैत छथि. तथापि, कृति पाठककेँ आकृष्ट करैक, से उद्देश्य तँ रहिते छैक.
कथ्यक नवीनता
जहिना टटका भोजन रुचिगर लगैत छैक, नव विषय पाठककेँ आकृष्ट करैछ। सारगर्भित आ आकर्षक शीर्षक पर पाठकक आँखि सोझे बैसि जाइछ।
बासि भोजन, आ ‘गओले गीत’ बेरस लगैछ। केओ बासि भोजन किएक खायत। ‘गओले गीत’ लोक किएक सुनत। अकार्यक सामग्री के पढ़त? श्रम आ सृजनक सार्थकता बीच निकट संबंध छैक। विषयक चुनावक श्रम, नव विषय आ सामग्री ताकि निकालबाक द्वार खोलैछ। ई सृजनात्मक लेख, वैज्ञानिक विधा, एवं समसामयिक प्रसंग, सब पर लागू होइछ।
नव वस्तु तकबामे आ लिखबामे श्रम लगैछ। मुदा, पुरानो विषय पर गंभीर चिंतन, नव दृष्टि आ नव विश्लेषण पाठककेँ आकृष्ट करैछ, सामग्रीकेँ पाठकक हेतु उपादेय बना दैछ।
परिचित विषय पर लेखन सुलभ भले हो, मुदा, ओहूमे कहबाक हेतु जखन किछु नव रहतैक, तखने ओ उपयोगी हेतैक, पाठककेँ आकृष्ट करतैक। जखन विषय वा कथ्यमे किछु नव रहबे नहि करतैक, तँ लोक पढ़त किएक?
तेँ, विषयक चुनाव आ अनुसंधानमे शिक्षकक प्रेरणा आ मार्गदर्शनक योगदान अमूल्य थिक, मुदा, छात्रक श्रम मूल थिक. परिश्रमसँ नव तथ्यक उद्घाटन होइछ; नव सत्यक सोझाँ अबैत अछि, से स्मरण रखबाक थिक।
भाषा, प्रस्तुति एवं संप्रेषणीयता
भाषा संवादक माध्यम थिकैक। जहिना ‘भेष देखि भीख भेटैत छैक’ तहिना, शीर्षक आ विषयक आगाँ, भाषा पाठककेँ सबसँ पहिने आकृष्ट करैछ। सरल, बुझबा योग्य भाषाक विकल्प नहि। भाषा सरल भेने, भाव सोझे पाठक धरि पहुँचि जाइछ. छोट-छोट सरल वाक्य आ प्रचलित शब्दक प्रयोगसँ पढ़ब सुगम होइछ। ओझरायल भाषा (jargon) पढबा-बुझबामे बाधक होइछ।
सरल आ सुबोध भाषाक कारण कतेको लेखकक पुरान कृति आइओ लोकप्रिय अछि। आखिर हुनकालोकनिक भाषामे एहन कौन तत्व छैक, जे सब किछु स्वच्छ आ पारदर्शी लगैछ ? एकर थाह विभिन्न लेखकक साहित्यक सूक्ष्मतासँ पढ़नहि लागि सकैछ। तेँ, सफल लेखकक कृतिक सारे टा नहि, ओकर स्वरुपक अध्ययन सेहो लेखकक हेतु सहायक होइछ. कारण, लेखन राजनीतिक विचारक प्रचारक हेतु हो, कोनो वस्तु बेचबाक हेतु हो, वा वैज्ञानिक सिद्धान्त बुझयबाक हेतु, पाठक धरि अपन भाव पहुँचायब लेखनक मूल लक्ष्य थिक. सार्थक शब्द, प्रभावी वाक्य संरचना, तर्कक तारतम्य आ प्रभावकारी प्रस्तुति पाठककेँ सोझे छूबि लैछ. एकर विपरीत परिस्थिति संवादकेँ प्रभावहीन बना दैछ. अभ्याससँ सब किछु सिखल जा सकैछ।
वर्तनी आ व्याकरण
शब्द भाषाक मूल उपादान थिकैक. वर्तनी आ व्याकरण मानक भाषाक प्राण थिक. मानक वर्तनी विकसित भाषाक अनिवार्य गुण थिकैक. उपयुक्त शब्द, शुद्ध वर्तनी आ व्याकरणक अनुशासन उत्तम लेखनक अनिवार्यता आ लक्षण थिक, जे कथ्यकेँ सबल बनबैछ, कृतिकेँ साहित्यमे प्रतिष्ठित करैछ।
व्याकरण आ वर्तनीक अनुशासनक अवहेलना भाषामे निरंकुशताक जन्म दैछ, जाहिसँ अंततः भाषाक अहित होइछ। व्याकरणक दोष संप्रेषणीयतामे सेहो बाधक होइछ; वर्तनीक दोष अर्थकेँ अनर्थ कए दैछ; दिन आ दीन, तथा परीक्षा आ परिक्षाक अर्थ तकबाक आवश्यकता नहि।
मैथिलीमे मानक वर्तनीक अभावकेँ विद्वान लोकनि बहुत दिनसँ रेखांकित करैत आयल छथि. एहि विषय पर आचार्य रमानाथ झाक कथन आइओ प्रासंगिक अछि: 2
" हमर दृढ़ विश्वास अछि जे मैथिलीकेँ यदि वर्तमान भारतीय भाषा सबहिक समाजमे प्रतिष्ठित करएबाक अछि तँ ओकर स्वरूप स्थिर करए पड़त । एकहि पदकेँ अनेक प्रकारसँ लिखबाक चालि देखि ई कहब जे हमरो भाषा पुरान साहित्यिक ओ व्यवस्थित अछि, कोना होएत? एखन मैथिली लिखबाक जे अव्यवस्था अछि, से हमरा प्रायः कहए नहि पड़त । जए गोट लेखक तए रूप भाषा। अधिकतया तँ एकहु लेखमे एकहि ध्वनिक लेल भिन्न भिन्न वर्ण । क्षोभ होइत अछि, तखन जखन सुनैत छी नेतालोकनिक मुहसँ जे एखन जे जहिना लिखैत छथि, लिखए दिऔन्ह, कालक्रमे भाषाक स्वरूप स्वयं स्थिर भए जाएत । की एकर अर्थ नहि होइत अछि जे हमरालोकनि एखन लिखब सिखहि लगलहुँ अछि, पूर्वक लिखबाक परम्परा हमरा लोकनि केँ नहि अछि? की हमर नेतालोकनि एहि नीतिक घातक परिणामकेँ विचारल अछि? एहि नीतिक दुष्परिणाम स्वरूप लिखबाक दिन-दिन बढ़ैत अव्यवस्थाकेँ की ओ लोकनि नहि देखैत छथि?"
आचार्य रमानाथ झाक उपरोक्त उक्तिमे दू गोट विन्दु विचारणीय अछि; एक, भाषाक स्वरुपक निर्धारण; दोसर, एकहु लेखमे एकहि ध्वनिक लेल भिन्न-भिन्न वर्णक प्रयोगक दोष ।
लेखककेँ एहि विषय पर विचार करब आवश्यक। पाठ्यक्रम आ परीक्षामे भाषाक वर्तनी, व्याकरण आ शब्दक अनुशासने शुद्ध - अशुद्ध निर्धारित करैछ। तहिना, वर्तनी लेखनक एकरूपताक सेहो सुनिश्चित करैछ.
वाक्य संरचना
वाक्य विचार वा वाक्य संरचना व्याकरणक एक प्रमुख खण्ड थिक। मुदा, मातृभाषामे बजबाक हेतु, वा मातृभाषामे लिखबाक हेतु (लेखककेँ) वाक्य संरचना सिखय नहि पड़ैत छनि ।तथापि, भाषाक मानक स्वरूपक विवादकेँ तत्काल जँ कात राखी तँ, सुगम एवं प्रभावी संवादक हेतु भाषाक मानक स्वरूपक ज्ञान आवश्यक होइछ।
ततबे नहि, कम सँ कम शब्दमे सोझ अभिव्यक्ति, सफल गद्य आ उत्तम रचनाक गुण थिक. एहिमे शब्द आ वाक्य संरचना दुनूक सामान योगदान होइछ। तेँ, सफल गद्यकारक कृतिक आशय सोझे बुझबामे आबि जाइछ।
सरल गद्यक विपरीत, गोलमटोल, लंबा वाक्य, आ शब्दक जालसँ कथ्य अस्पष्ट होइछ, बूझब कठिन होइछ। तेँ, जखन पाठक लिखल गप बुझबे नहि केलक, तँ लिखबाक उद्देश्य?
दोषपूर्ण भाषा शिक्षणमे बाधक होइछ। कारण, छात्र आ जिज्ञासु लेखक प्रकाशित कृतिएक अनुकरण करैत छथि.
अशुद्धि आ एकरूपताक अभावक नव कारण : कम्प्यूटर वा एंड्राइड डिवाइसक सुझाव (autosuggestion)
कलमसँ कागज़ पर लिखब हेबनि धरि सामान्य छल. आइ-काल्हि कागज कलमक अतिरिक्त फ़ोन, टेबलेट, आ कम्प्यूटरक प्रयोग आम थिक। कम्प्यूटर वा एंड्राइड डिवाइस - मोबाइल फोन वा टेबलेट (mobile phone वा tablet) - पर उपलब्ध भाषाक विकल्प चुनलासँ, टाइपिंगमे एक शब्दक अनेक विकल्प / सुझाओ (suggestion) अबैत रहैछ। जँ सतर्क नहि रही, तँ, कतेक बेर कम्प्यूटरक सुझाव अनर्थ कए दैछ; ‘कतेक’, ‘कटक’ भए जायत, आ ‘भए’, ‘भी’ वा ‘भाई’ वा ‘बहे’ भए जायत। कम्प्यूटर वा एंड्राइड डिवाइसक कारण नहि, टाइपिंगमे असावधानीसँ लेखनमे गुणात्मक ह्रास भेलैए वा नहि, से कहब ततबे कठिन, जतेक कठिन, शिक्षाक स्तरमे ह्रासकेँ लेखनक गुणात्मक स्तरक ह्रासक हेतु जिम्मेवार मानब. तेँ, लेखक स्वयं सोचथु, विद्वानलोकनि एहि विषय पर मंथन करथु। छात्र अनुसंधान करथु, निष्कर्ष बहार करथु। मुदा, मोबाइल फोन एवं टेबलेट पर टाइपिंग करैत अनायास अशुद्धिक प्रति साकांछ अवश्य रही.
ओना, एखन बहुतो सामग्री पत्र-पत्रिकामे प्रकाशनसँ पूर्व सोशल मीडिया (फेसबुक वा व्हाट्सप्प ) पर प्रकाशित होइछ, वा ओही हेतु लिखलो जाइछ। अस्तु, झट लिखि, पट प्रकाशित करबाक बाध्यताक कारण कतेक लिखित सामग्रीक दोबारा पढ़ब आ सुधार करब संभव नहि होइछ। फलतः, अशुद्ध वर्त्तनी आ अकार्यक लेखक भरमार भेटत। एहिसँ ने साहित्य समृद्ध होइछ आ ने लेखकक प्रतिष्ठा बढ़ैछ।
तथापि, 'लिखबाक उत्साह होयब, सेहो की मामूली बात थिकै ? प्रशंसनीय तँ ओहो थिकैके।' कहैत छथि, प्रोफेसर भीमनाथ झा ।
ठीके, लेखकक सृजनक उत्साहसँ के असहमत हयत. अस्तु, प्रेरणा आ परिश्रम सहयोगसँ सफलता भेटि सकैछ।
ड्राफ्ट आ फाइनल कॉपी
पढ़ब आ सुधारब लेखन प्रक्रियाक अभिन्न अंग थिकैक। आने सब कला-जकाँ, सृजन क्षमताक विकास सेहो क्रमशः होइछ। प्रतिभा आ क्षमताक योगदान तँ होइते छैक।यात्री वा राजकमल एकहि दिनमे दक्ष नहि भए गेल हेताह। साहित्यमे प्रेरक प्रसंगक अभाव नहि। कला सिखल जाइछ, अध्ययन आ अभ्याससँ माँजल जाइछ। से चाहे लिखब हो वा नाच- गान-फोटोग्राफी। सत्याश्रमायां सकलार्थसिद्धिः। परिश्रमक बिना साधारण आ उत्तमक बीचक दूरी पार करब असंभव. ई नव, पुरान, सिद्धहस्त , सभक लेल लागू हौइछ। तेँ , लिखबा काल साकांछ रही. लिखू, पढ़ू आ सुधारू। अपन कृतिक संपादन मात्सर्यसँ नहि, निर्ममतासँ काटि-छाँटि कए करू. शब्दकोष आ thesaurus लगमे राखू ; कम्यूटरक पर लिखबा काल ई सब सहायता चुटकी बजबैत, इंटरनेटहि पर भेटि जायत।
बेर-बेर सुधार कृतिकेँ चमकबैछ; कनिएक गुड़क बगिया नहि बनैत छैक!
लिखल वस्तुक बेर-बेर सुधारक विषयमे पी सी एलेग्जेंडर अपन संस्मरणमे लिखैत छथि,’ इन्दिरा गाँधी compulsive editor रहथि। कोनो वक्तव्यक ड्राफ्टकेँ इन्दिरा अंत-अंत धरि कटैत, छँटैत, सुधारैत रहथि ।’2
राजनेताक एहि अभ्यासक पाछाँ एके टा उद्देश्य बूझि पड़ैछ: जे किछु बाजी से सशक्त हो, सारगर्भित हो, श्रोता धरि सोझे पहुँचि जाए। जँ से भेल, तँ, संवाद सार्थक भेल।
सुधारक हेतु सबसँ पहिने अनावश्यक अंश आ पुनरावृत्तिकेँ हंटाबी। यद्यपि, कतेक बेर वाक्यमे आवश्यकतासँ अतिरिक्त शब्द, अलंकारक रूपमे अबैछ। मुदा, एहन शब्द जकरा छाँटि देने कथ्य प्रभावित नहि होइक वा भाषाक लालित्यक ह्रास नहि होइक,अनावश्यक थिक। विशेषतः जँ कोनो शब्द हँटओने वाक्य आओर चुश्त आ दुरुश्त लगैक, कथ्य सशक्त होइक, तँ ओकरा हंटायबे उचित।
तहिना, आलेखक ओ अंश जकरा हँटओने कथ्य प्रभावित नहि होइछ, ओ अंश अनावश्यक थिक, ओकरा फसिलक बीचक मोथा बूझि उखाड़बे उचित। कारण, जहिना शरीरक अनावश्यक चर्बी कम भेने काया स्वस्थ लगैत छैक, मोथा उखाड़ने फसिलक वृद्धि होइछ, तहिना अनावश्यक शब्द वा अंश छँटने लेखन प्रभावी होइछ. इएह तर्क वा उक्तिक पुनरावृत्ति पर सेहो लागू होइछ; तर्क वा उक्तिक पुनरावृत्ति लेखकेँ दुर्बल करैछ। तेँ, ओकरो सबकेँ छाँटबे उचित। एकटा विन्दु आओर; अत्यधिक विशेषण कथ्यकेँ दुर्बल करैछ।
विचार, भाषा, भावक चोरि आ नकल (Plagiarism)
भूमण्डलीकरणक युगमे विचार, भाषा वा भावक नकल (Plagiarism) सुलभ भए गेलैए। ई रोग ज्ञान-विज्ञान आ मानविकीसँ ल’ कए सृजनात्मक लेखन धरि पसरि चुकल अछि. जेना वायु श्वास द्वारा प्रसारित रोगक संवाहक थिक, तहिना कतेको गोटे इंटरनेट आ कंप्यूटरक उपयोग चोरिक सहोदर-जकाँ करैत छथि।
एखन इंटरनेट आ Plagiarism checking tool क उपयोगसँ नक़ल पकड़ब (Plagiarism check) सुलभ अछि। तथापि, कतेको बेर तुरत प्रसिद्धि आ पुरस्कारक लोभ अप्रतिष्ठा आ दण्डक भय पर भारी पड़ैछ। कदाचित्, केओ अपन काज सुतारिओ लैछ। मुदा, नीक-बेजायक विचार व्यक्तिगत निर्णय थिक। मुदा, उद्धृत सामग्रीक श्रोत आ लेखकक चर्चा यथास्थान अवश्य हो।
सर्वविदित अछि, प्रतिष्ठित अनुसंधानमूलक पत्र-पत्रिका प्रकाशनसँ पूर्व मौलिक आलेखकेँ चोरिक (Plagiarism क) निकती पर तौलैछ, विशेषज्ञक सहायतासँ मौलिकताक जाँच-पड़ताल करबैछ। मुदा, मैथिली साहित्यमे एकर चलन छैक वा नहि, कहब कठिन। तथापि, नकल पकड़ब आब सुलभ छैक, तकर ज्ञान लेखकक हेतु हितकारी थिक.
आलोचनाक प्रति सजगता, तर्कबुद्धिसँ आलोचनाक परीक्षा
‘निन्दक नियरे राखिए आंगन कुटी छबाय’ सुपरिचित सूक्ति थिक. मुदा, आलोचना/ समालोचना सबकेँ नहि रुचैत छैक। हालहिमे एक साहित्यकार बंधु कहलनि, जे प्रकाशनक हेतु प्रस्तुत आलेखमे सुधारक सुझाव दैत छिऐक, तँ लेखकलोकनिकेँ नीक नहि लगैत छनि। कतेक गोटे, ‘ फल्लाँ, ‘नेगेटिव’ छथि’ कहि मुँह फुला लैत छथि।’
हमरा जनैत निरपेक्ष आलोचना रचनाकारक आगाँक अयना थिकैक। आब, अयना देखि, बढ़ल दाढ़ी काटब, वा चेहराक मसुवृद्धिक चिकित्सा करायब, वा अयनाकेँ पटकि कए फोड़ि देबैक, से अपन विवेक। एतद्धि। मुदा, लेखनक प्रक्रियामे गुनब, सुनब, आ सुधारक प्रासंगिकता निर्विवाद छैक।
सहयोगी एवं सहकर्मी-समानधर्माक अनौपचारिक सलाह (Informal Peer review)
जेना पहिने चर्चा भेले, वैज्ञानिक विधामे कृतिक नीर-क्षीर परीक्षाक हेतु विधाक विशेषज्ञसँ गोपनीय अभ्युक्ति (comment) माङल जाइछ। सृजनात्मक रचनाक हेतु से ने आवश्यक, आ ने संभव। ओहुना रचनाकार अपन कृति, अपन सहकर्मी, मित्र वा परिवारजनकेँ अनौपचारिक रूपेँ सुनबिते छथिन; ‘श्रुति’ कृति साझा करबाक आदिम माध्यम छल। तहिना, सहकर्मी-समानधर्माक सुझाव रचनाकारक हेतु बड़का सहायता थिक. जँ कोनो वरिष्ठ साहित्यकारक सम्मति-सुझाओ भेटय, तँ, सोनामे सोहागा।
उपसंहार
लेखन व्यवसाय आ रूचि दुनू थिक, जाहिमे प्रतिभा आ परिश्रम दुनूक योगदान होइछ। सरल भाषामे उपयोगी विषयक संक्षिप्त, किन्तु, पारदर्शी प्रतिपादन सफल लेखनक गुण थिक. अनावश्यक सामग्री, वर्तनीक अशुद्धि, एकरूपताक अभाव, पुनरावृत्ति, आ आन ठामसँ उठाओल सामग्रीक संयोजन लेखनकेँ दुर्बल करैछ। सहयोगी एवं सहकर्मी-सहधर्मीक सुझावक संयोजनसँ लेखन परिमार्जित होइछ।
सहायक सामग्री
Quiller-Couch, Aurther Sir. On The Art of Writing. New York: G P Putnam’s,1916.
https://www.gutenberg.org/ebooks/17470 accessed 12 Dec 2024.
झा, पं. गोविन्द कल्याणी कोष, 1999, महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन, दरभंगा।
https://archive.org/details/dli.language.2334 accessed 12 Dec 2024.
3. Balan S. Off The Shelf : On Books, People and Places. 2019, Speaking Tiger Books LLP.
संदर्भ
1 . झा, रमानाथ झा. मधुबनीक छात्रसँ, विविध प्रबंध, पृष्ठ संख्या 86.
2. Alexander P C. My Years With Indira Gandhi. Vision Books 1991.