Tuesday, December 24, 2024

क्रिसमस 2024 पर विशेष : क्रिसमस आ भगवानक स्थान

 माताक स्मृति : क्रिसमस आ भगवानक स्थान 

हम 1993-96 क बीच बरेली छावनी, उत्तर प्रदेशमे पोस्टेड रही। छावनी सबमे अनेक पुरान चर्च भेटत। क्रिसमसक अवसर पर  सबठाम  सजावट होइछ। सेनामे सर्वधर्म समभावक वातावरण। सब केओ सब पर्वमे उत्साहपूर्वक शामिल होइछ। हमरोलोकनि सपरिवार चर्च सबहक सजावट देखए जाइ। दोस्त-मित्रक ओतय उत्सव मे भाग ली।

ओहि वर्ष माता संग छलीह। सजावट देखए सब गोटे बहरायल रही। बटलर प्लाजा चौराहा लग सड़कक दोसर पार एकटा पुरान चर्च छैक। ओकर परिसरमे 'नेटिभीटी' दृश्यक भव्य सजावट रहैक। गाड़ीसँ उतरि सब गोटे चर्चक परिसर दिस विदा भेलहुँ। माताक विषयमे हमरा शंका छल, जेथिन कि नहि। हम संकोचहिसँ  माताकेँ पुछियनि,' चलबिही?'

ओ बिना कोनो शंका-समाधानकेँ सोझे कहलनि, 'चलू । की हेतै? भगवानक जगह थिकै।' 

हमरा अपन शंका आ दुविधाक समाधान भेटि चुकल छल। ओहि बेर माता सेहो हमरा सभक संग चर्च परिसरक सजावट देखलनि।

Thursday, December 12, 2024

सफल रचनाक हेतु ध्यान देबा योग्य किछु विन्दु

 सफल रचनाक हेतु ध्यान देबा योग्य किछु विन्दु 

[ एहि लेखमे रचनाक सुधारक हेतु किछु सुपरिचित आ किछु अनुभूत विन्दुक चर्चा अछि। मुदा, ई लेख सिद्धहस्त रचनाकारक हेतु नहि थिक।  तथापि, जँ ई  लेख उपयोगी भेल तँ, एहि चर्चाकेँ आगाँ बढ़ाऑल जा सकैछ। .]

साहित्य सृजनक उद्देश्य जे हो, विधा कोनो हो, विषयक उपादेयता, कथ्यक नवीनता, विश्वसनीयता,आ तर्कसंगत प्रस्तुतिसँ कृतिक आदर होइछ; उपादेयता आ  गुणवत्ता पाठककेँ आकृष्ट करैछ। पाठक अपन रुचिक अनुकूल  विषय चुनैत छथि, पढ़ैत छथि. कठिन भाषा, अस्पष्ट भाव आ दोषपूर्ण वर्तनीसँ पढ़ब कठिन होइछ। तखन, सफल लेखनक गुण-धर्म की थिक जे पाठककेँ आकृष्ट करैछ। लेखनक अवगुण की थिकैक? एही सब विन्दु पर विस्तारसँ  विचार करब एहि लेखक उद्देश्य थिक। 

संगहि, लेखनक गुणवत्ता कोना सुनिश्चित करी, ताहि विषय पर सेहो एतय संक्षिप्त विचार प्रस्तुत अछि।  आलेखक आकार सीमित रखबाक ध्येयसँ प्रत्येक विन्दुक उदाहरण एतय संभव नहि भेल.
सबसँ पहिने सफल लेखनक गुण पर विचार करी.


विषयक उपादेयता 

सब विषय  सबहक हेतु उपादेय नहि होइछ. मनोरंजनक उद्देश्यसँ लिखल साहित्य आ छात्रोपयोगी लेखनक उपादेयता  भिन्न होइछ. यद्यपि, मनोरंजनक हेतु लिखल साहित्य (कथा, कविता, आ  नाटक) पाठ्य पुस्तकमे संकलित होइछ। आलोचनात्मक लेख सेहो पाठ्य पुस्तकक हेतु लिखल जाइछ। 

समसामयिक लेखनमे प्रासंगिकता आ लोकरुचि उपादेयता  निर्धारित करैछ। एकर विपरीत, विषय विशेष पर केंद्रित पत्र-पत्रिका वा जर्नल अपन आवश्यकताक अनुकूल लेख छपैछ आ  आलेखक भाषा, आकार, संरचना, वर्तनी आ शैलीक स्पष्ट  निर्देश प्रकाशित करैछ।  

एहि आलेखक विवेचना सृजनात्मक लेखन तथा आलोचना धरि सीमित अछि. एहि दुनू विधामे लेखक स्वयं विषय, आकार, आ शैली निर्धारित करैत छथि. तथापि, कृति पाठककेँ आकृष्ट करैक, से उद्देश्य तँ रहिते छैक.

    

कथ्यक नवीनता 

जहिना टटका भोजन रुचिगर लगैत छैक, नव विषय पाठककेँ आकृष्ट करैछ। सारगर्भित आ आकर्षक शीर्षक पर पाठकक आँखि सोझे बैसि जाइछ। 

बासि भोजन, आ ‘गओले गीत’ बेरस लगैछ। केओ बासि भोजन किएक खायत।  ‘गओले गीत’ लोक किएक सुनत। अकार्यक सामग्री के पढ़त? श्रम आ सृजनक सार्थकता बीच निकट संबंध छैक। विषयक चुनावक श्रम, नव विषय आ सामग्री ताकि निकालबाक द्वार खोलैछ। ई सृजनात्मक लेख, वैज्ञानिक विधा, एवं समसामयिक प्रसंग, सब पर लागू होइछ।

नव वस्तु तकबामे आ लिखबामे श्रम लगैछ।  मुदा, पुरानो विषय पर गंभीर चिंतन, नव दृष्टि आ नव विश्लेषण पाठककेँ आकृष्ट करैछ, सामग्रीकेँ पाठकक हेतु उपादेय बना दैछ।
परिचित विषय पर  लेखन सुलभ भले हो, मुदा, ओहूमे कहबाक हेतु जखन किछु नव रहतैक, तखने ओ उपयोगी हेतैक, पाठककेँ आकृष्ट करतैक।  जखन विषय वा कथ्यमे किछु नव रहबे नहि करतैक, तँ लोक पढ़त किएक?

तेँ, विषयक चुनाव आ अनुसंधानमे शिक्षकक प्रेरणा आ मार्गदर्शनक योगदान अमूल्य थिक, मुदा, छात्रक श्रम मूल थिक. परिश्रमसँ नव तथ्यक उद्घाटन होइछ; नव सत्यक सोझाँ अबैत अछि, से स्मरण रखबाक थिक। 

भाषा, प्रस्तुति एवं संप्रेषणीयता 

भाषा संवादक माध्यम थिकैक। जहिना ‘भेष देखि भीख भेटैत छैक’ तहिना, शीर्षक आ विषयक आगाँ, भाषा पाठककेँ सबसँ पहिने आकृष्ट करैछ। सरल, बुझबा योग्य भाषाक विकल्प नहि। भाषा सरल भेने,  भाव सोझे  पाठक धरि पहुँचि जाइछ. छोट-छोट  सरल वाक्य आ प्रचलित शब्दक प्रयोगसँ पढ़ब सुगम होइछ। ओझरायल भाषा (jargon) पढबा-बुझबामे बाधक होइछ। 

सरल आ सुबोध भाषाक कारण कतेको लेखकक पुरान कृति आइओ लोकप्रिय अछि। आखिर हुनकालोकनिक भाषामे एहन कौन तत्व छैक, जे सब किछु स्वच्छ आ पारदर्शी लगैछ ? एकर थाह विभिन्न लेखकक साहित्यक सूक्ष्मतासँ पढ़नहि लागि सकैछ।  तेँ, सफल लेखकक कृतिक सारे टा नहि, ओकर स्वरुपक अध्ययन सेहो लेखकक हेतु सहायक होइछ. कारण, लेखन राजनीतिक विचारक प्रचारक हेतु हो, कोनो वस्तु बेचबाक हेतु हो, वा वैज्ञानिक सिद्धान्त  बुझयबाक हेतु,  पाठक धरि अपन भाव पहुँचायब लेखनक मूल लक्ष्य थिक. सार्थक शब्द, प्रभावी वाक्य संरचना, तर्कक तारतम्य आ प्रभावकारी प्रस्तुति पाठककेँ सोझे छूबि लैछ. एकर विपरीत परिस्थिति संवादकेँ प्रभावहीन बना दैछ. अभ्याससँ सब किछु सिखल जा सकैछ। 


वर्तनी आ व्याकरण  

शब्द भाषाक मूल उपादान थिकैक. वर्तनी आ व्याकरण  मानक भाषाक प्राण थिक. मानक वर्तनी विकसित भाषाक अनिवार्य गुण थिकैक. उपयुक्त शब्द, शुद्ध वर्तनी आ व्याकरणक अनुशासन उत्तम लेखनक अनिवार्यता आ लक्षण थिक, जे कथ्यकेँ सबल बनबैछ, कृतिकेँ साहित्यमे प्रतिष्ठित करैछ।  

व्याकरण आ वर्तनीक अनुशासनक अवहेलना भाषामे निरंकुशताक जन्म दैछ, जाहिसँ  अंततः भाषाक अहित होइछ। व्याकरणक दोष संप्रेषणीयतामे सेहो बाधक होइछ; वर्तनीक दोष अर्थकेँ अनर्थ कए दैछ; दिन आ  दीन, तथा परीक्षा आ परिक्षाक अर्थ तकबाक आवश्यकता नहि। 
मैथिलीमे मानक वर्तनीक अभावकेँ विद्वान लोकनि बहुत दिनसँ रेखांकित करैत आयल छथि. एहि विषय पर आचार्य रमानाथ झाक कथन आइओ प्रासंगिक अछि: 2  

" हमर दृढ़ विश्वास अछि जे मैथिलीकेँ  यदि वर्तमान भारतीय भाषा सबहिक समाजमे प्रतिष्ठित करएबाक अछि तँ ओकर स्वरूप स्थिर करए पड़त । एकहि पदकेँ अनेक प्रकारसँ लिखबाक चालि देखि ई कहब जे हमरो भाषा पुरान साहित्यिक ओ व्यवस्थित अछि, कोना होएत? एखन मैथिली लिखबाक जे अव्यवस्था अछि, से हमरा प्रायः कहए नहि पड़त । जए गोट लेखक तए रूप भाषा। अधिकतया तँ एकहु लेखमे एकहि ध्वनिक लेल भिन्न भिन्न वर्ण । क्षोभ होइत अछि, तखन जखन सुनैत छी नेतालोकनिक मुहसँ जे एखन जे जहिना लिखैत छथि, लिखए दिऔन्ह, कालक्रमे भाषाक स्वरूप स्वयं स्थिर भए जाएत । की एकर अर्थ नहि होइत अछि जे हमरालोकनि एखन लिखब सिखहि लगलहुँ अछि, पूर्वक लिखबाक परम्परा हमरा लोकनि केँ नहि अछि? की हमर नेतालोकनि एहि नीतिक घातक परिणामकेँ विचारल अछि? एहि नीतिक दुष्परिणाम स्वरूप लिखबाक दिन-दिन बढ़ैत अव्यवस्थाकेँ की ओ लोकनि नहि देखैत छथि?"

आचार्य रमानाथ झाक उपरोक्त उक्तिमे दू गोट विन्दु विचारणीय अछि; एक, भाषाक स्वरुपक निर्धारण; दोसर, एकहु लेखमे एकहि ध्वनिक लेल भिन्न-भिन्न वर्णक प्रयोगक दोष ।
लेखककेँ एहि विषय पर विचार करब आवश्यक। पाठ्यक्रम आ परीक्षामे भाषाक वर्तनी, व्याकरण आ शब्दक अनुशासने शुद्ध - अशुद्ध निर्धारित करैछ। तहिना, वर्तनी लेखनक एकरूपताक सेहो सुनिश्चित करैछ.

 

वाक्य संरचना   

वाक्य विचार वा वाक्य संरचना व्याकरणक एक प्रमुख खण्ड थिक। मुदा, मातृभाषामे बजबाक हेतु, वा मातृभाषामे लिखबाक हेतु (लेखककेँ) वाक्य संरचना सिखय नहि पड़ैत छनि ।तथापि, भाषाक मानक स्वरूपक विवादकेँ तत्काल जँ कात राखी तँ, सुगम एवं प्रभावी संवादक हेतु भाषाक मानक स्वरूपक ज्ञान आवश्यक होइछ। 

ततबे नहि, कम सँ कम शब्दमे सोझ अभिव्यक्ति, सफल गद्य आ उत्तम रचनाक गुण थिक. एहिमे शब्द आ वाक्य संरचना दुनूक सामान योगदान होइछ। तेँ, सफल गद्यकारक कृतिक आशय सोझे बुझबामे आबि जाइछ।  
सरल गद्यक विपरीत,  गोलमटोल, लंबा वाक्य, आ शब्दक जालसँ कथ्य अस्पष्ट होइछ, बूझब कठिन होइछ।  तेँ, जखन पाठक लिखल गप बुझबे नहि केलक, तँ  लिखबाक उद्देश्य?

 दोषपूर्ण भाषा शिक्षणमे बाधक होइछ। कारण, छात्र आ जिज्ञासु लेखक प्रकाशित कृतिएक अनुकरण करैत छथि.


अशुद्धि आ एकरूपताक अभावक नव कारण :  कम्प्यूटर वा एंड्राइड डिवाइसक सुझाव (autosuggestion)    

 कलमसँ कागज़ पर लिखब हेबनि धरि सामान्य छल. आइ-काल्हि कागज कलमक अतिरिक्त फ़ोन, टेबलेट, आ कम्प्यूटरक प्रयोग आम थिक।  कम्प्यूटर वा एंड्राइड डिवाइस - मोबाइल फोन वा टेबलेट (mobile phone वा tablet) - पर उपलब्ध भाषाक विकल्प चुनलासँ, टाइपिंगमे एक शब्दक अनेक विकल्प / सुझाओ (suggestion) अबैत रहैछ। जँ सतर्क नहि रही, तँ, कतेक बेर कम्प्यूटरक सुझाव अनर्थ कए दैछ; ‘कतेक’, ‘कटक’ भए जायत, आ ‘भए’, ‘भी’ वा ‘भाई’ वा ‘बहे’ भए जायत। कम्प्यूटर वा एंड्राइड डिवाइसक कारण नहि, टाइपिंगमे असावधानीसँ लेखनमे गुणात्मक ह्रास भेलैए वा नहि, से कहब ततबे कठिन, जतेक कठिन, शिक्षाक स्तरमे ह्रासकेँ लेखनक गुणात्मक स्तरक ह्रासक हेतु जिम्मेवार मानब. तेँ, लेखक स्वयं सोचथु, विद्वानलोकनि एहि विषय पर मंथन करथु। छात्र अनुसंधान करथु, निष्कर्ष बहार करथु। मुदा, मोबाइल फोन एवं टेबलेट पर टाइपिंग करैत अनायास अशुद्धिक प्रति साकांछ अवश्य रही.

ओना, एखन बहुतो सामग्री पत्र-पत्रिकामे प्रकाशनसँ पूर्व सोशल मीडिया (फेसबुक वा व्हाट्सप्प ) पर प्रकाशित होइछ, वा ओही हेतु लिखलो जाइछ। अस्तु, झट लिखि, पट प्रकाशित करबाक बाध्यताक कारण  कतेक लिखित सामग्रीक दोबारा पढ़ब आ  सुधार करब संभव नहि होइछ। फलतः, अशुद्ध वर्त्तनी आ अकार्यक लेखक भरमार भेटत। एहिसँ ने साहित्य समृद्ध होइछ आ ने लेखकक प्रतिष्ठा बढ़ैछ।

तथापि, 'लिखबाक उत्साह होयब, सेहो की मामूली बात थिकै ? प्रशंसनीय तँ ओहो थिकैके।' कहैत छथि, प्रोफेसर भीमनाथ झा ।

ठीके, लेखकक सृजनक उत्साहसँ के असहमत हयत. अस्तु, प्रेरणा आ परिश्रम सहयोगसँ सफलता भेटि सकैछ।


ड्राफ्ट आ फाइनल कॉपी  

पढ़ब आ सुधारब लेखन प्रक्रियाक अभिन्न अंग थिकैक। आने सब कला-जकाँ, सृजन क्षमताक विकास सेहो क्रमशः होइछ। प्रतिभा आ क्षमताक योगदान तँ  होइते छैक।यात्री वा राजकमल एकहि दिनमे दक्ष नहि भए गेल हेताह। साहित्यमे प्रेरक प्रसंगक अभाव नहि।  कला सिखल जाइछ, अध्ययन आ अभ्याससँ माँजल जाइछ। से चाहे लिखब हो वा नाच- गान-फोटोग्राफी।  सत्याश्रमायां सकलार्थसिद्धिः। परिश्रमक बिना साधारण आ उत्तमक बीचक दूरी पार करब असंभव. ई नव, पुरान, सिद्धहस्त , सभक लेल लागू हौइछ। तेँ , लिखबा काल साकांछ रही. लिखू, पढ़ू आ  सुधारू। अपन कृतिक संपादन मात्सर्यसँ नहि, निर्ममतासँ काटि-छाँटि कए करू. शब्दकोष आ thesaurus लगमे राखू ;  कम्यूटरक पर लिखबा काल ई  सब सहायता चुटकी बजबैत, इंटरनेटहि पर भेटि जायत। 

बेर-बेर सुधार कृतिकेँ चमकबैछ; कनिएक गुड़क बगिया नहि बनैत छैक!  

लिखल वस्तुक बेर-बेर सुधारक विषयमे पी सी एलेग्जेंडर अपन संस्मरणमे लिखैत छथि,’ इन्दिरा गाँधी compulsive editor रहथि। कोनो  वक्तव्यक ड्राफ्टकेँ इन्दिरा अंत-अंत धरि कटैत, छँटैत, सुधारैत रहथि ।’2
राजनेताक एहि अभ्यासक पाछाँ एके टा उद्देश्य बूझि पड़ैछ: जे किछु बाजी से सशक्त हो, सारगर्भित हो, श्रोता धरि सोझे पहुँचि जाए। जँ से भेल, तँ, संवाद सार्थक भेल।  

सुधारक हेतु  सबसँ पहिने अनावश्यक अंश आ पुनरावृत्तिकेँ हंटाबी। यद्यपि, कतेक बेर वाक्यमे आवश्यकतासँ अतिरिक्त शब्द, अलंकारक रूपमे अबैछ। मुदा, एहन शब्द जकरा छाँटि देने कथ्य प्रभावित नहि होइक वा  भाषाक लालित्यक ह्रास नहि होइक,अनावश्यक थिक। विशेषतः जँ कोनो शब्द हँटओने वाक्य आओर चुश्त आ दुरुश्त लगैक, कथ्य सशक्त होइक, तँ ओकरा हंटायबे उचित।  

तहिना, आलेखक ओ अंश जकरा हँटओने कथ्य प्रभावित नहि होइछ, ओ अंश अनावश्यक थिक, ओकरा फसिलक बीचक मोथा बूझि उखाड़बे उचित। कारण, जहिना शरीरक अनावश्यक चर्बी कम भेने काया स्वस्थ लगैत छैक, मोथा उखाड़ने फसिलक वृद्धि होइछ, तहिना अनावश्यक शब्द वा अंश छँटने लेखन प्रभावी होइछ. इएह तर्क वा उक्तिक पुनरावृत्ति पर सेहो लागू होइछ; तर्क वा उक्तिक पुनरावृत्ति लेखकेँ दुर्बल करैछ। तेँ, ओकरो सबकेँ छाँटबे उचित। एकटा विन्दु आओर; अत्यधिक विशेषण कथ्यकेँ दुर्बल करैछ। 


विचार, भाषा, भावक चोरि आ नकल (Plagiarism)

भूमण्डलीकरणक युगमे विचार, भाषा वा भावक नकल (Plagiarism) सुलभ भए गेलैए। ई रोग ज्ञान-विज्ञान आ मानविकीसँ ल’ कए सृजनात्मक लेखन धरि पसरि चुकल अछि. जेना वायु श्वास द्वारा प्रसारित रोगक संवाहक थिक, तहिना कतेको गोटे इंटरनेट आ कंप्यूटरक उपयोग चोरिक सहोदर-जकाँ करैत छथि।     

एखन इंटरनेट आ Plagiarism checking tool क उपयोगसँ नक़ल पकड़ब (Plagiarism check) सुलभ अछि। तथापि, कतेको बेर तुरत प्रसिद्धि आ पुरस्कारक लोभ अप्रतिष्ठा आ दण्डक भय पर भारी पड़ैछ। कदाचित्, केओ अपन काज सुतारिओ लैछ। मुदा, नीक-बेजायक विचार व्यक्तिगत निर्णय थिक। मुदा, उद्धृत सामग्रीक श्रोत आ लेखकक चर्चा यथास्थान अवश्य हो।
सर्वविदित अछि, प्रतिष्ठित अनुसंधानमूलक पत्र-पत्रिका प्रकाशनसँ पूर्व मौलिक आलेखकेँ चोरिक (Plagiarism क) निकती पर तौलैछ, विशेषज्ञक सहायतासँ मौलिकताक  जाँच-पड़ताल करबैछ। मुदा, मैथिली साहित्यमे एकर चलन छैक वा नहि, कहब कठिन। तथापि, नकल पकड़ब आब सुलभ छैक, तकर ज्ञान लेखकक हेतु  हितकारी थिक. 


आलोचनाक प्रति सजगता, तर्कबुद्धिसँ आलोचनाक परीक्षा 

‘निन्दक नियरे राखिए आंगन कुटी छबाय’ सुपरिचित सूक्ति थिक. मुदा, आलोचना/ समालोचना सबकेँ नहि रुचैत छैक। हालहिमे एक साहित्यकार बंधु कहलनि, जे प्रकाशनक हेतु प्रस्तुत आलेखमे सुधारक सुझाव दैत छिऐक, तँ लेखकलोकनिकेँ नीक नहि लगैत छनि। कतेक गोटे, ‘ फल्लाँ, ‘नेगेटिव’ छथि’ कहि मुँह फुला लैत छथि।’

हमरा जनैत निरपेक्ष आलोचना रचनाकारक आगाँक अयना थिकैक। आब, अयना देखि, बढ़ल दाढ़ी काटब, वा  चेहराक मसुवृद्धिक चिकित्सा करायब, वा अयनाकेँ पटकि कए फोड़ि देबैक, से अपन विवेक। एतद्धि। मुदा, लेखनक प्रक्रियामे गुनब, सुनब, आ सुधारक  प्रासंगिकता  निर्विवाद छैक।       


सहयोगी एवं सहकर्मी-समानधर्माक अनौपचारिक सलाह (Informal Peer review)

जेना पहिने चर्चा भेले, वैज्ञानिक विधामे कृतिक नीर-क्षीर परीक्षाक हेतु विधाक विशेषज्ञसँ  गोपनीय अभ्युक्ति (comment) माङल जाइछ। सृजनात्मक रचनाक हेतु से ने आवश्यक, आ ने संभव। ओहुना रचनाकार अपन कृति, अपन सहकर्मी, मित्र वा परिवारजनकेँ अनौपचारिक रूपेँ सुनबिते छथिन; ‘श्रुति’ कृति साझा करबाक आदिम माध्यम छल। तहिना, सहकर्मी-समानधर्माक सुझाव रचनाकारक हेतु बड़का सहायता थिक. जँ कोनो वरिष्ठ साहित्यकारक सम्मति-सुझाओ भेटय, तँ, सोनामे सोहागा।

उपसंहार 

लेखन व्यवसाय आ रूचि दुनू थिक, जाहिमे प्रतिभा आ परिश्रम दुनूक योगदान होइछ। सरल भाषामे उपयोगी विषयक संक्षिप्त, किन्तु, पारदर्शी प्रतिपादन सफल लेखनक गुण थिक. अनावश्यक सामग्री, वर्तनीक अशुद्धि, एकरूपताक अभाव, पुनरावृत्ति, आ आन ठामसँ उठाओल सामग्रीक संयोजन लेखनकेँ दुर्बल करैछ। सहयोगी एवं सहकर्मी-सहधर्मीक सुझावक संयोजनसँ लेखन परिमार्जित होइछ।


सहायक सामग्री

  1. Quiller-Couch, Aurther Sir. On The Art of Writing. New York: G P Putnam’s,1916. 

https://www.gutenberg.org/ebooks/17470 accessed 12 Dec 2024.     

  1. झा, पं. गोविन्द कल्याणी कोष, 1999, महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन,  दरभंगा।

https://archive.org/details/dli.language.2334 accessed 12 Dec 2024.

3. Balan S. Off The Shelf : On Books, People and Places. 2019, Speaking Tiger Books LLP.  

संदर्भ 

      1 . झा, रमानाथ झा. मधुबनीक छात्रसँ, विविध प्रबंध, पृष्ठ संख्या 86. 

      2. Alexander P C. My Years With Indira Gandhi. Vision Books 1991. 


         


Saturday, November 30, 2024

किरणजीक ‘पराशर’ पर विमर्श बाँकी अछि

 

किरणजीक ‘पराशर’1 पर विमर्श बाँकी अछि

कालजयी कृति ओकर कृतीमे एकटा मौलिक अंतर होइछ: कृती नश्वर होइछ, आ कृति अमर.
भर्तृहरिक नीतिशतक रससिद्ध कवि लोकनिक एहने कालजयी कृतिकेँ  हुनकालोकनिक ‘ जरा भय मुक्त सुयश शरीर’ क संज्ञा देने छथिन.
जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धाः कवीश्वराः।

नास्ति येषां यशःकाये जरामरणजं भयं।।

                        (भर्तृहरिः, नीतिशतक, २४)         

तथापि, कवि रससिद्ध छथि वा नहि, कृति क्षणभंगुर थिक वा कालजयी सिद्ध हएत तकर निर्णय पाठक करथु, वा ‘निरवधि’ काल करत.
एतय हम किरणजीक ‘पराशर’क चर्चा करैत छी; एहि लेखमे कृतीसँ फराक, कृति पर संक्षिप्त चर्चा अछि.

‘पराशर’क आरंभ वन्दनासँ होइछ; मंगलाचरण, ईश-वन्दना आ शुभकामना काव्य-ग्रन्थ आरंभ करबाक पारंपरिक विधि थिक. किन्तु, ‘पराशर’क आरंभ ‘जननी माता- परमेश पिता’क वन्दनासँ - ‘जनिकर मानवीय मधुर इच्छेँ भेल हमर उत्पत्ति’, एवं मानव जीवन केर ‘आधार प्राण धरती,अनिल-सलिल-सूर्य-चान-आसमान’ तथा ‘हिमगिरि’- जनिक देहक कण-कणसँ  अछि बनल हमर सभक ई देश- क ‘ तीरभुक्तिक ब्रह्मा-विष्णु-महेश- जकाँ प्रशस्ति सर्वथा नवीन थिक.

‘पराशर’ अतुकान्त- तुकान्त, मुक्तवृत्त कवितामे लोक भाषाक रचना थिक. एकर शैलीक तुलना  ‘आल्हा-उदल’  गाथाक महराईसँ कए सकैत छी, जकर पाठ कविता-जकाँ,वा मोन होअए तँ गद्य-जकाँ करबाक छूट छैक. मुदा, तेँ ‘पराशर’क स्वरुप वा कथ्यमे ओहिसँ कोनो समानता नहि. कारण, ‘आल्हा- उदल’ लोक-कण्ठमे रचल-बसल शौर्य आ प्रशस्ति-गाथा थिक; ‘पराशर’ लीक छोड़ि चलनिहार प्राचीन ऋषिक प्रगतिवादी विचार आ व्यवहारक प्रशस्तिक संग कविक चिन्तनक परिणाम थिक.
सरल ठेंठ भाषाक  कारण ‘पराशर’क अर्थ सुगम-सरल छैक. पढ़बा-बुझबा लेल कोनो शब्दकोषक सहायता नहि. संयोगवश, किरणजीक सोझ भाषा पर सबसँ पहिने  आचार्य रमानाथ झाक नजरि पड़ल रहनि. मुदा, ध्यान देबाक थिक, ‘पराशर’ मैथिलीक  हड़ाएल-भुतियायल शब्द, उड़रल-उपटल गाछ-वृक्ष, विलुप्त जड़ी बूटी, कीड़ा-मकोड़ा, आ पक्षी-जीव-जंतुक लधु कोष थिक. ओहिमे वर्णित कतेको गाछ-वृक्ष आ भैषज्य आ भेटबो नहि करत. तेँ, ‘पराशर’ चर्चित गाछ-वृक्ष आ वनौषधि सबहक परिचय लेल एकटा स्वतंत्र लेख चाही. 
            ‘पराशर’क कथाक श्रोत महाभारत थिक. मुदा, किरणजीक ‘पराशर’मे ऋषि पराशर आ सत्यवती (गाङो) क केन्द्रमे रहितो, प्रशंगवश एहि पोथीमे अयोध्यासँ सीताक निर्वासनक चर्चा भेल अछि. रामायणक एही प्रकरणक जे विश्लेषण ‘पराशर’ मे कवि केने छथि, से सर्वथा नव अछि. तेँ, कथा आ उपकथाक पौराणिक श्रोतक अछैतो, ‘पराशर’ मे किरणजीक अपन चिंतन, घटनाक नवीन विश्लेषण सबठाम देखबामे आओत. तेँ, ‘पराशर’ घटना प्रधान वा विवरण-प्रधान नहि, ई चिंतन प्रधान ग्रन्थ थिक. तेँ ‘पराशर’कें ओही दृष्टिए पढ़ल जेबाक चाही.
संयोगसँ ‘पराशर’क कथ्य पर जेहन विमर्शक उचित छल, पाठ्यपुस्तकक रटन्त-घोखन्त संस्कृति आ पुरस्कार- प्रशस्तिक परंपराक हूलि-मालिमे मैथिली साहित्य तत्काल ताहिसँ चुकि गेल. आ ‘पराशर’केँ मैथिली पाठकलोकनि मोटा-मोटी बिसरि गेलाह. किन्तु, किरणजीक जीवन कालहुमे स्थिति ओहिसँ भिन्न नहि रहैक, से किरण जीक अनन्य मित्र, सुमन जी ‘पराशर’क भूमिकाक एक वाक्यांश-’भले हिनका समीक्षात्मक उपेक्षा भेटल होइनि’ 2– मे व्यक्त कयने छथि. ( एतय सुमन जीक एहि वाक्यांशक रेखांकन लेखकक थिकनि)
आब ‘पराशर’सँ  चुनल किछु कथ्य पर अबैत छी.  आरंभ शिक्षाक अर्थ-उद्देश्यसँ  करी:

पढ़बाक अर्थे थिक सत्यक अन्वेषण-उन्मेषण ( पृष्ठ ५ )  

आगाँ अबैछ, ‘बुझय स्वजन मानवकेँ मानव’क केन्द्रीय दर्शन आ श्रम आ सुरक्षा पर आधारित जीवन पद्धतिक विषयमे किरण जीक उक्ति; ई दर्शन एहि ग्रन्थक प्राण थिक:
 कलम, कोदारि, कुड़हरि, कचिया
ओ तीर-धनुष तरुआरि

सबकेँ बना सहोदर पोसी

बसमे राखि सम्हारि ।

मान प्राण रक्षक हेतु टा

मानव पर अस्त्र चलाबी

बुझय स्वजन मानवकेँ मानव

से जन–जनकेँ पाठ पढ़ाबी।

मुदा, शिक्षाक अर्थ केवल पढ़ब आ घोँटब नहि,  आ ने एक व्यक्तिक अनुभव समाजक हेतु पाथर पर लिखल नीति थिक. एक दोसरासँ अनुभवक आदान-प्रदान आ संशोधन ज्ञानक विकासक मूल थिक, से निम्नलिखित अंशमे स्पष्ट होइछ:

चिन्तन अनुभूतिकेँ लिखि राखब थिक आवश्यक

केओ ओकरा पढ़त करत मनन

अपन चिन्तन अनुभूतिक संग करत मिलान

संशोधन परिवर्तनक  देत संकेत

एहिसँ ज्ञानक  हैत विकास।   ( पृष्ठ ६ )

मुदा, चिन्तन-अनुभूतिक एहि मिलान आ आदान-प्रदानमे एतबा अवश्य स्मरण रहय किरणजीक उक्ति:
उचित सत्य कहबाक चेतना साहस
बनल रहय जीवन भरि, चल जाय वरु सरवस

स्वाभिमान रक्षार्थ सन्नद्ध रहय मन सदिखन,

पबितहुँ कष्ट अपार, बौआइत वन-वन ।  ( पृष्ठ ८ )

किरणजी ई उक्ति ‘ न ब्रूयात् सत्यमप्रियं’क विपरीत थिक. कारण, एहिसँ ‘उचित सत्य कहबाक चेतना साहस ’ अवरुद्ध होइछ.

‘ऋचा पाठ’क अंतिम ऋचा, जाहिमे रामक राज्याभिषेकक अवसर पर सीताक निर्वासन आ हुनक जंगल  जयबाक प्रकरणक विश्लेषण अछि, एहि अध्यायक एहन रोचक प्रसंग थिक, जाहिमे मृत्युक एतेक दिन पछातियो किरणजीकेँ हुनक जीवन कालहि-जकाँ विवादास्पद आ आक्रमणक लक्ष्य बनयबाक प्रबल संभावना निहित छैक. कारण, कविक दृष्टिमे रामक अश्वमेधक योजनाक प्रति सीताक प्रतिवादे सीताक निर्वासनक मूलमे तँ छल. तेँ, एहि ठाम सीता आ रामक बीच संवादक समय रामकेँ मर्यादा पुरषोत्तम- जकाँ नहि, ह्रदयहीन पाथर-जकाँ जड़वत् – सन प्रस्तुत कयल गेल अछि. यद्यपि, धीरोद्दात ‘मानवीय’ नायकहुक चरित्रक अनेक पक्ष होइछ; किछु उदात्त, तँ किछु साधारण मनुखक समान. ई मनुखक जीवनक सत्य थिक. कारण, चरित्रक भिन्न-भिन्न पक्षक अनेकताए मनुष्यकेँ मनुष्य बनबैछ. आ राम सेहो मनुष्य रहथि. मुदा, इएह सत्य एखनुको राजनीतिक-सामाजिक जीवन सत्य थिक, से मोन रखबाक थिक. तथापि, किरण जीक निम्न उक्तिमे दोष निकालब संभव नहि:
.. गतिशील ओ जड़वादी विचार मे,
सह अस्तित्वक संधिक कल्पने थिक मूर्खता । ( पृष्ठ  १५ )

आगू ‘वनक बाट’ नामक अध्यायक आरंभहिमे कविक निम्न उक्ति आकृष्ट करैछ:

‘लक्ष्य पर पहुँचब थिक इष्ट
मोछक लड़ाई मे शक्ति गमैब थिक
अनुचित अज्ञता’ ( पृष्ठ १६ )

एकर ठीक बाद जहिना जंगलक विविध गाछ-वृक्ष आ चिडै-चुनमुनीक वर्णन अछि, तहिना अछि ओहिमे धिया-पुताक गमैया खेल-धुपक वर्णन ( पृष्ठ १८) अछि जे आब विलुप्त नहिओ भेल हो तैओ मोबाईल फ़ोन आ कम्प्यूटर युग मे गामक नेना-भुटका ई सब खेल आब खेलाइत अछि वा नहि, कहब कठिन.  

‘पराशरक नव अनुभूति’ नामक अध्यायमे दुष्ट मित्र - दुष्ट मित्र छइ घसकि जाइत बेर पर – क अवगुणक तुलना तिरुवल्लुवरक असली मित्रक गुण – ससरय वस्त्र सम्हारय हाथ, विपरीत काल मित्र केर साथ 3- सँचमत्कृत करैछ. दुनू उपमा दू भिन्न प्रकारक मित्रक संबंधमे देल दू कविक उक्ति थिक.

तहिना एही अध्यायमे मेनका आ विश्वामित्रक प्रकरणमे ‘अपन साहित्यसँ विश्वामित्रकेँ  बुझैत छलहुँ हुंड, मोचंड, उनटे बंसुरी बजोनिहार, कामी, क्रोधी’ (पृष्ठ २७). किन्तु, मलाह लोकनिक विवेचनामे ओ छलाह ‘प्रगतिशील मानव’ आ  ‘आब ओकरे (मलाह लोकनिक) साहित्य बूझि पड़ैछ सत्य यथार्थ’ (पृष्ठ २७) क अभिव्यक्ति ऋषि विश्वामित्रक संबंधमे समाजमे प्रचलित आम धारणाकेँ ध्वस्त कए हुनक नव छविक स्थापना करैछ.
‘जीवछक जीवन’ खढ़क घरक वर्णन गरीबक सामान्य फुसघरक वर्णन थिक. आब ओहि शब्दक क्रमशः अर्थ सेहो विलुप्त भए रहल छैक. एतय मछहरमे उपयुक्त अनेक उपकरणक वर्णन छैक. मुदा, मछहरक ओहि उपकरणक तुलना कवि रनक खेतमे पल्टन अस्त्र-शस्त्रसँ करैत छथि. दोसर दिस जतय समाज श्रमिकेँ सबसँ दुर्बल बूझैछ, तकरा संबंधमे, ‘श्रमिकक जीवन थिक, सदिखन रहब लड़ैत’ ( पृष्ठ २९ ) कहि किरणजी श्रमिक आ सैनिककेँ एक समान आदरक अधिकारी बना देलनि.
ततबे नहि ओ श्रमिकक संगिनीकेँ ‘ओहि समर खेत केर  सहयोगी’ कहैत छथिन:

जे दिन राति काज करै अछि
तकर रसक आलम्बन
अपन पत्नीओ, समर खेत केर
सहयोगी सङबे बनि जाइत ।
वंशवृद्धि केर पाशव प्रवृत्ति टा रहै अछि जीवित । ( पृष्ठ ३१ )   
तथापि, खेदक विषय जे ‘पेटबोनिया लोकक जीवनकेँ, केओ ने आइ धरि चिन्हलक’ ( पृष्ठ ३१ ) तेँ, अगिला उक्ति छैक, ‘तोँ जनी जाति जँ करह जोर, तँ नरकी जिनगी केर भ’ सकत ओर’ । ( पृष्ठ ३२ )
मुदा, पराशरक संग बेटी सत्यवती (गाङो)क विवाहक प्रस्ताव पर जीबछ अपन विचार तँ दैछ, मुदा,  स्वेच्छासँ निर्णय लेबाक ओकर स्वतंत्रताक हनन नहि करैछ :
जँ मनुख तोरा पसिन्न
तकरो जँ तोँ भ’ जाही पसिन्न
तँ क’ ले बिआह
बिआहक छिअइ इहे सबसँ उत्तम विधान

ई सब निर्विवाद सामाजिक विधान नहि, कविक दृष्टि थिक.
एहिसँ  आगाँ ‘व्यासक उत्पत्ति’ आकृष्ट करैछ। ई अध्याय अनेक अर्थमे उत्कृष्ट अछि. उषाकालक वर्णन (पृष्ठ ४९) क प्रतीक आ बिंबमे निर्विवाद नवीनता छैक:
नदीक कलकल कोबर गीत
विवाहक सुन्दर नवल रीति-नीति
.........................................
द्विजराज चन्द्रमाकेँ लगलनि अनसोहाँत
द्विजक श्रेष्ठता खतरा मे पड़ल मानि
जनि भ’ गेलाह कान्तिहीन ।
तरेगन सब चुप्पे ससरि गेल
जेना राजाकेँ मरितहि सैनिक छल पड़ा जाइत ।
किछु अजगुत अभिनव हर्षक अछि बाट भेल

से मानि उषा उड़बय लागल जनि लाल रंग
खग मुख सँ देलक नारा “इन्किलाब”।
यथास्थितिक पक्षधृ दिनकर तामसें तम तम करैत
बढ़लाह उपर।
किन्तु अगणित मानवक उल्लास हास
कुहेसकेँ जनि कए देलक सघन
रहि गेलाह पँकिल पानि मे दहाति

पितड़िया थर जकाँ कान्तिहीन निस्तेज ।  

मुदा, ‘व्यासक पैत्रिक गमन’ अबैत-अबैत, भामती-भारतीक वंशज, नारिक स्वतंत्रताक पक्षधर किरणजी क्षण भरि लेल नितान्त परंपरावादी भए जाइत छथि:
“पत्नी पोथी थिक शत्रु ,
रहि न सकय एकठाम ।
ह्रदय सटलि पत्नी रहति, छोड़ू पढ़बाक नाम ।“
ततबे नहि, पुत्रक जन्मक पछाति अपन पयर झाड़ि, पत्नीकेँ दोसर विवाहक हेतु मुक्त कए देबाक व्यवहार पर  अबैत पराशरक भक्त किरण जी, हुनकर व्यवहार पर कोनो प्रश्न नहि उठबैत छथिन. अस्तु, एहि ठाम आबि पराशरक स्वार्थ हुनक महत्ताकेँ चुनौती दैत अवश्य प्रतीत होइछ. मुदा, पौराणिक कथा योजना शांतनुक संग सत्यवतीक संयोग आ अछूत सत्यवतीक राजवंशक जननी बनबाक घटनाकेँ अछूतक जीवनक उद्धारक रूपेँ प्रस्तुत करैछ. पौराणिक कथाक परिदृश्यमे पराशरक व्यवहारक ई विन्दु विचारणीय थिक वा नहि, तकर विचार सत्यवती माता-पिता तँ करबे केलनि, पाठक सेहो एहि पर मंथन करथु ।

‘शान्तनुक विरह’ नामक अध्याय (पृष्ठ ६७) मे राजतंत्र आ भाग्यवादी समाज दैवी प्रकोपकेँ  प्रजाक सब रोग-विपत्ति लेल दोषी ठहरा, कोना राजाकेँ सब दोषसँ मुक्त रखैछ, भीष्मक मुँहे तकर प्रतिपादन रोचक छैक। संक्षेपमे, नगरिकक सबटा विपत्ति कपारेक दोष थिक; दाही-जरती-महामारी दैवी-अगिलगी दैवी प्रकोप थिक । तखन, शासकक कोन दायित्व ! शांतनु चिंता किएक करथु. की मिथिलामे प्रशासन प्रति विरोध-विद्रोहक सर्वथा अभाव हमरा लोकनिक भाग्यवादी स्वभाव आ धर्मप्राण वा धर्मभीरुताएक फल थिक?

 ‘बूढ़ा मन्त्री ओ भीष्म’ नामक अध्यायमे विवाहक उद्देश्यक रोचक प्रतिपादन अछि; ई पढ़बा योग्य अछि । केओ कविक दृष्टिसँ असहमतो भए सकैत छथि ।   एही अध्यायमे पाककलाकेँ, ‘काव्य रसक ब्रह्मानन्द सहोदर कहनिहार पण्डितक चानि पर मूसर’क संज्ञा, पाककलाक विशेषताक प्रति सहज आदर थिक. ओहुना किरणजी कहनहु रहथिन,  ‘मरबाकाल मुँहमे गंगाजलक एक बूँदक स्थान एक चम्मच माछक झोर पड़य; कोन ठेकान ओकर पोषक तत्वसँ किछु क्षण आओर जिबि जाइ! 
यद्यपि, कतहु इहो कहल गेल अछि जे ‘आजुक कवि (अर्थात् किरणक समकालीन) हुनक (किरणक) ह्रदयमे कोनो विशेष आदरक अधिकारी नहि रहथि’,4  तथापि, ‘पराशर’मे कवि संगतिकेँ ओ ‘अज्ञात पुण्यक फल’ कहैत छथि. राजाक प्रति प्रजाक अनुराग-विराग तथा शासन समाजमे व्यवस्था परिवर्तनक इच्छाक ज्ञानक श्रोत ओ कविक ‘ निर्लिप्त, निर्लोभ, निर्भीक’ वाणीएकेँ मानैत छथि. ततबे नहि ओ आगू कहैत छथि
जे समाज भ’ जाइत अछि साहित्यसँ  दूर
तकर दिमाग भ’ जाइत छै डबरा
सड़ल, पीलु केर जन्मस्थल   
स्पष्ट अछि, कविक एहि उक्तिमे राजा द्वारा पोषित, आ राजतंत्रसँ भयभीत वा राजाक अनुकंपा पयबाक अभिलाषी, प्रशस्तिपाठ कयनिहार कविक स्थान नहि.

एही अध्यायमे कविलोकनिक उक्ति ( पृष्ठ ७५-७६ ) किरणजीक समता एवं मानवतावादी उदार विचारधाराक उदघोष थिक. एकरा स्वतंत्ररूपेँ पढ़ल जयबाक चाही.
एतहि पण्डितक परिभाषा – मानव हित मे जे अरपय जान ... से थिक पंडित, सैह महान- केर संग समाजमे समतामूलक संस्कृति, ‘थीक मानव सब सहोदर भाय समान’क दर्शन विस्तार अगिला दस पाँतिमे कयल अछि. मुदा, ओकर आगू जे किछु अछि से अजुका समाजक लेल अत्यंत प्रासंगिक अछि:

मानव समाजकेँ खंडित करय जे
त्याज्य थिक से वेद, धर्मशास्त्र, पुराण ।
‘गाङोक हस्तिनापुर गमन’क अध्यायक प्रत्येक पाँति मार्मिक अछि, प्रत्येक पाँति सूक्ति अछि. ताहूमे,
नेना-भुटका संग रखिहे सिनेह

तै बेर मे तकिहइ नूआ-फट्ठा, मूँह-कान,
मायक नजरि मे सब सन्तान
थिक एक रंग , एक समान’

जेहने मार्मिक अछि, तेहने दर्शन अछि ।
‘सिंहासन पर सत्यवती’ मे राम द्वारा शम्बूकक हत्या आ तकर विपरीत देवव्रत द्वारा ओही ‘शम्बूकक स्वजन गोढ़नी’ सत्यवतीकेँ हस्तिनापुरक सिंहासन पर बैसायबकेँ पराशर मुनि स्तुत्य कहैत छथिन, कवि ‘गतिशील विचार’क संज्ञा दैत छथिन. एतहि उपसंहारक रूपमे अबैछ राज्य आ राजधर्म पर किरणजीक दृष्टि, किछु शास्त्र-सम्मत, किछु कविक अपन. एकर एक अंश जे अजुको परिप्रेक्ष्यमे पस्न्गिक अछि, से द्रष्टव्य थिक:
धनबलसँ चालित व्यवस्थाक जन
भ’ जाइत अछि कुकुर समान
जे दैत अछि अहगर खीर
तकरे दिस गेल घूरि
...........................
स्नेह सद्भावनाक बल होइत अछि सबसँ
मजगूत संगहि मधुर।  

आकारमे छोट, कथ्यमे सोझ, भाषामे सरल, लोकगाथाक शैलीमे रचित ‘पराशर’ किरण जीक अंतिम कृति तँ थिके, ई  किरणजीक सबसँ महत्वपूर्ण कृति सेहो थिक. एहि पर सार्थक विमर्श हएब एखन बाँकी अछि. बिततैक समयक संग समाजमे  ‘पराशर’ पर विचार होइत रहैक, एकर प्रतिष्ठा बढ़तैक, आ किरणजीकेँ ओ सम्मान भेटतनि जे हुनक जीवन कालमे हुनकासँ चोरा-नुक्की खेलाइत रहल ।

सन्दर्भ:

       झा, काञ्चीनाथ ‘किरण’ : पराशर, चिनगी प्रकाशन १९८८, दरभंगा.

       झा, सुरेन्द्र ’सुमन’: पराशर ओ किरण : कृति ओ कृती, पराशर, चिनगी प्रकाशन १९८८, दरभंगा, पृष्ठ क-च .

       झा, कीर्तिनाथ. कुरल मैथिली भावानुवाद २०१७,पाण्डिचेरी, पृष्ठ ९५.

       झा, भीमनाथ. के बताह कवि......, अर्पण, दरभंगा ५३-५६.
 

   
     

 

 
 

 
  

 

  

Sunday, November 3, 2024

राजनीतिक परंपराक भूमंडलीकरण

राजनीतिक परंपराक भूमंडलीकरण

सुनैत छी, अमेरिकाक उपराष्ट्रपति कमला हैरिस सेहो

जीविकाक लेल बेलने रहथि पापड़ 

आ छनने रहथि आलू

मैकडोनाल्डक भनसाघरमे !

मुदा, आलू छानि, आ बेचिकए चाह

जँ केओ भए सकैत अछि उपराष्ट्रपति

वा प्रधानमंत्री

तँ पूर्व राष्ट्रपतिओ एही नुस्खासँ

 पुनः जीति सकैत छथि चुनाओ !

एही गुरकेँ मानि गुरुमंत्र

भाई ट्रम्प एहि बेर शुभ मुहूर्तमे 

मैकडोनाल्डक भनसाघरमे पूरा केलनि

 आलू छनबाक अभियान!

ततबे नहि,

सुनैत छी, ट्रम्पक एवजमे बैसल छल,

मैट्रिक/ ‘सैट’ परीक्षामे

 केओ फर्जी विद्यार्थीओ.

ऊपरसँ ट्रम्पक छनि माथ पर कुल

चौंतीसे टा अपराधक केस-

बलात्कार, हत्या, आर्थिक अपराध आ देशद्रोह,

किछुओ नहि शेष !

तथापि, थिकाह भूतपूर्व राष्ट्रपति

आ छथिए पुनः एहि बेर चुनावमे ठाढ़!

माने, वएह सबटा योग्यता आ गुण

छैक अमेरिकहुमे भेल जा रहल छैक अपरिहार्य,

जे जितबाक हेतु चुनाव

छैक भारतमे मोटा-मोटी

आवश्यक-अनिवार्य! 

भेलैक ने ई असली

राजनीतिक परंपराक भूमंडलीकरण !

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो