सेना चिकित्सा कोरमे : दानापुर, लखनऊ, चकराता, आ दूमदूमा,असम
दानापुर
05 जनवरी 1983. सेना चिकित्सा कोरमे योगदान करबाक हेतु मिलिटरी अस्पताल,
दानापुर पहुँचलहुँ आ डाक्टर कीर्ति नाथ झासँ कप्तान कीर्ति नाथ झा भए गेलहुँ. ई
हमर परिवारक हेतु एकटा कीर्तिमान छल. ओना तँ परिवारमे डाक्टरो हम पहिले रही, मुदा,
सेनामे तँ दूर-दूर धरि कोनो संबंधी नहि गेल रहथि. तें, सेनाक संस्कृतिसँ हम एकदम
अपरिचित रही; सब किछु नवे छल. मुदा, कोशिशसँ किछुओ सिखल जा सकैछ.
तहिया, मिलिटरी अस्पताल दानापुरक गिनती
200 सँ कम बेडवाला सैनिक अस्पतालमे रहैक. तथापि, गोड़ पन्द्रहेक डाक्टर रहथि;
नीक-बेजाय-सहृदय-कुटिल, सब. जेना समाजमे होइत छैक. ओहि समय हमरालोकनि चारि गोट
मेडिकल ऑफिसर- हम, रबीन्द्र कुमार जायसवाल, पी एन जायसवाल आ कमल कुमार नाहर- किछुए
दिनक भीतर ओतय ज्वाइन केने रही. सब समाजक विभिन्न तबका आ सँ, तें, मानसिकता सेहो
भिन्न-भिन्न.
जनवरीक मास आ जबरदस्त शीतलहरी. बेसी काल धोन लागल रहैत छलैक. दादाक बरखी अगहन
मास मे होइत छलनि. तें, केश अस्तुरासँ छिलल छल. नव परिवेश, आ विपरीत मौसम. फलतः, अनेक
दुश्चिंता शीतलहरीएक धोन सन मोन विकल कयने रहैत छल. हमरा नौकरीक जल्दी छल आ सबसँ
पहिने जे हाथ आयल, पकड़ि
लेल. ककरोसँ हठे खुलि नहि पाबी. ग्रामीण संस्कृतिक असरि संस्कारपर हाबी छल. शहरी
चमक-दमक, लल्लो-चप्पो, छल-छद्मक ट्रेनिंगक अभाव छल. ओतय पंजाबी लोकनिक संख्या बेसी रहनि. हमर रहन-सहन सादा छल. लोक
बिहारीकें ओहुना साधारण बुझैक; केओ खुलिओ कए उपहास करैक, आ केओ संकेतसँ. तें, सबसँ
नीक-जकाँ घुलि-मिलि नहि पाबी.
आर्मी मेडिकल कोर (AMC) मे डाक्टरक प्रवेशक एखनो दू बाट छैक. एक, सशस्त्र सेना चिकित्सा महाविद्यालय (AFMC), पुणेक
माध्यमसँ आ दोसर, सिविलियन मेडिकल ऑफिसरक सीधा कमीशनसँ. AFMC
बाटें आयल मेडिकल ऑफिसर वा स्पेशलिस्ट सैनिक जीवनक तौर-तरीकासँ परिचित रहैत
छथि. हमरा सब-सन बाहरसँ आयल मेडिकल ऑफिसर ओहि अनुशासन आ संस्कृतिसँ सर्वथा
अपरिचित, ताहिमे एहन जकरा पहिने सेनासँ कोनो संपर्क नहि भेल होइक. संयोगसँ, ओहि समयमे
सेना मुख्यालय ऑफिसरक चुनाव करैक आ बिना कोनो सैन्य प्रशिक्षणकें चयनित ऑफिसरकेँ सोझे समीपक मिलिटरी अस्पताल वा आन युनिटमे पठा दैक. युनिटमे पहुँचलाक तुरत बाद,
हमरालोकनिकेँ ओतुका कार्य-प्रणालीक संबंधमे किछुओ ब्रीफिंग नहि भेल. अर्थात् ,
आस-पासमे कोना-की होइत छैक, देखू आ डाक्टरी
काज करू. मिलिटरी अस्पताल दानापुर पहुँचि
किछु आवश्यक कागजी कार्रवाई भेल, डाक्टरी जाँच कमरा (Medical
Inspection room) मे काज करबाक जगह
देखा देल गेल. रहबाक हेतु ऑफिसर मेसमे रहबाक हेतु एक कमरा भेटल आ आदेश भेल जे
पन्द्रह दिनुक भीतर यूनिफार्म तैयार करबा ली.
संगमे किछु टाका ल’ कए गेल रही. काज चलि गेल. दरभंगा डेरा परसँ साईकिल
दानापुर पहुँचि गेल छल. एहिसँ मेससँ अस्पताल एवं छावनीमे आन ठाम कतहु जयबाक लेल
यातायातक समस्याक समाधान भए गेल; अस्पताल, ऑफिसर मेस, बिहार रेजिमेंटल सेंटर आ
नजदीकक बाज़ार आ सिनेमा घर सब किछु एक डेढ़ किलोमीटरक परिधिमे रहैक.
आर्मी मेडिकल कोर (AMC) मे
नौकरी तहिया डाक्टरक हेतु करियरक सर्वोत्तम विकल्प नहि माल जाइत रहैक. कारण,
दूरस्थ पोस्टिंग, सैनिक जीवनक बंदिश आ दरमाहाक अतिरिक्त पर्याप्त टाका कमयबाक
अवसरक अभाव. सेना चिकित्सा महाविद्यालय (AFMC) क बाटें अबैत
डाक्टरकेँ तँ योगदान करबाक बाध्यता रहनि. मुदा, जे सिविलियन डाक्टर बाहरसँ आबि
ज्वाइन करथि, तनिका अधिकारीलोकनि आश्चर्यक दृष्टिसँ देखथिन; होइनि जे ई कोन बाध्यतासँ एहन नौकरी चुनलनि. ई ऑफिसर
वर्गमे अपन करियरसँ असंतोषक परिचायक छल. कारण, अपन बुद्धि आ अनकर धन सबकेँ बेसी
बूझि पड़ैत छैक. डाक्टरलोकनिमे ई भ्रान्ति छलैक जे सेनाक नौकरीमे दायित्व बेसी आ
आमदनी कम छैक. ई किछु हद तक सत्य सेहो, मुदा, अर्द्धसत्य सेहो. वस्तुतः, सैन्य
जीवनसँ बाहरो कानूनक ओहने बंधन छैक. हमर अपन अनुभव कहैछ, जे सैनिक गतिविधिक
अतिरिक्त सेना आ सिविलियन क्षेत्रमे अंग्रेजक बनाओल क़ानून लगभग एके रहैक. मुदा,
नागरिक जीवनमे कानूनक बंधन ततेक ढील छैक, जे जकरा जे इच्छा होइत छैक करैत अछि,
जाहिसँ सैन्य जीवन चुनने किछु व्यक्तिकेँ स्वतंत्रता आ शक्तिक दुरूपयोगक स्पृहा
होइत छैक. अस्तु, ज्वाइन करबाक लेल जाइते, हॉस्पिटलक रजिस्ट्रार, ले कर्नल ए के दास ई नहि
कहलनि जे ‘ ए एम सी मे स्वागत अछि, वरन ई पुछने रहथि, ‘ क्यों ज्वाइन किया?’ माने,
(नौकरी/ जीविकाक) आओर कोनो उपाय नहि छल? वा एहन भूल करबाक हेतु के प्रेरित केलक?
एहने प्रश्न अओरो अनेक अफसर पुछने रहथि. एक दू गोटे तँ एतेक धरि सुझओलनि जे एखनो
आपस जा सकैत छी. नया बहाल ऑफिसर पर एहन प्रश्नक केहन असरि होइत छल हेतैक, तकर
अनुमान करब कठिन नहि. हमरा हेतु तकर कारणो छल; हमर ज्वाइन केलाक मास दिनुक भीतरे
बिहारक स्नात्तकोत्तर मेडिकल एडमिशनक रिजल्ट बहरयलैक. हमर नाम सफल प्रत्याशीक
सूचीमे ऊपरे दिस छल. अस्तु, तुरत आगू पढ़बाक पहिल अवसर हाथसँ छूटि गेल. मुदा, पारिवारिक
दायित्वक सोझाँ नौकरी अभावमे हम कोनो अनिश्चितताक हेतु तैयार नहि रही. नव परिचित
आन ऑफिसर सबकें हमरासँ सहानुभूति होइक. एकटा सहकर्मी, कप्तान एस के सभरवाल, जे
मेडिकल स्पेशलिस्ट रहथि, तँ एतेक धरि कहलनि, ‘ मुझे ही एक थप्पड़ मार दो, और यहाँ से भाग लो!’ मुदा, हम तँ भगबा लेल
गेल नहि रही. तथापि, ई सब सुनि, सेनाक भाषामे मनोबल तँ अवश्य तरबामे- morale in the boots- पहुँचि जाइत छल. किन्तु, हम मन बना कए
गेल रही; हितोपदेशमे कहैत छैक:
यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवाणिनिसेवते ।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवाणि नष्टमेव हि ।।
मोटामोटी एतबे जे महत्वाकांक्षा तँ थोड़ छले, कोनो खतरा उठयबाक हिम्मत सेहो नहि
छल. संयोगसँ जीवन भरि इएह मनोभाव हमर व्यवहारक मूल प्रेरणा बनि हमर जीवन ओतबे धरि
लए गेल, जतय हम गेलहुँ. तहिया, नेना छोट छलि. पत्नी पढ़ैत रहथि. परिवारक आओरो
दायित्व तँ छले, यदा-कदा खगल परिवारक सदस्य लोकनिकें आवश्यकता होइते रहनि आ सहायताक
करिते छलियनि. फलतः, मनोरथक विरुद्ध, रोजगारक पहिल अवसर, सेनाक नौकरीकें हम जोंक-जकाँ पकड़ि लेलहुँ.
किन्तु, सेनामे बजाहटि अबिते हम बिनु कोनो आन नौकरी प्रतीक्षा कयने सोझे
सेनामे किएक चलि गेलहुँ तकर पाछूक मानसिकताकेँ नुका कए राखब सत्य नुकायब हएत.
तेँ, ओहि परिस्थितिक कनेक चर्चा एतय अप्रासंगिक नहि होयत. एहि चर्चाक प्रासंगिकता
मेडिकल ग्रेजुएटक हेतु बिहारमे रोजगारक अवसरसँ छैक. मुदा, कनेक इतिहासमे जाइ. 1931 ई. प्रकाशित हस्तलिखित पत्रिका 'मैथिली
सुधाकर'मे यात्री जी कविताक निम्न पाँति आधा शताब्दीक पछाति 1981 ओ मे प्रासंगिक
छल:
सदिखन जतय वकीले कानथि, बी.ए. बैसि सातु गुड़ सानथि ।
मैट्रिक तत फँकै छथि भूजा, सस्ते गहुमे घर-घर पूजा ।।
भऽ आचार्य बनथि फुलतोड़ा, तीर्थ बनाबथि तेकुसा मोड़ा ।
मध्यमकेँ भेटनि नहि भूजा, सस्ते गहुमे घर-घर पूजा ।।
सारांश ई जे जखनो बिहार (आ देशमे) आवश्यकतासँ थोड़ डाक्टर पास होइत रहथि,
सरकारी विभाग लग सबकेँ तँ दूर आधाकेँ सेहो
रोजगार देबाक ने अवसर रहैक आ ने उपलब्ध रिक्तिक हेतु डाक्टरक नियोजन हेतु कोनो
नियमितता रहैक. बुझबा योग्य भाषामे एतबे जे चारि-पाँच छौ वर्ष पर दवाबमे वा सरकारी
आवश्यकताक अनुकूल अकस्मात् दू-चारि-पाँच सौ डाक्टरक तदर्थ ( Ad hock) भर्तीक
विज्ञापन बहराइक. रिक्तिक अनुसार किछु व्यक्तिक छौ मासक हेतु भर्ती होइक, जकर सेवा
अवधि समय-समय पर बढ़ाओल जाइक. एहन परिस्थितिमे वेतनक नियमितता, करियरक योजना आ
पारिवारिक स्थिरताक कल्पना करब कठिन. तेँ, जकरा ककरो नौकरी भेटैक, ज्वाइन कतहु
केलक, प्रैक्टिस कतहु करय. प्रैक्टिस पर गुजर करू आ ओही टाकासँ बिहार सरकारक
स्वास्थ्य विभागक चक्कर लगबैत, चढ़ावा चढ़बैत करियरक सीढ़ी चढ़ू वा ओंघड़ाकए खसि पडू. ई
सर्वविदित अछि, जे यद्यपि, तहिया बिहार सरकारक पटना सचिवालयक भ्रष्ट सरकारी विभाग
सबमे तहियो प्रथम पद केर हेतु तीब्र स्पर्द्धा रहैक, तथापि, स्वास्थ्य विभाग सबमे
अव्वल छल. एकर अनेको प्रमाण छैक. मुदा, सबसँ दारुण प्रमाण ई जे प्राइवेट
प्रैक्टिसक अवसरक अभावमे, दूर-दराज एवं
गरीब क्षेत्रमे पदस्थापित स्वास्थ्य विभागक प्रताड़नासँ हताश कएक मेडिकल ऑफिसर, सचिवालयक परिसरहि मे
आत्महत्या कय नेने रहथि! हमर मानसिकता भिन्न छल. नौकरीक आवश्यकताओ छल, आ
घूस-चोरिसँ घृणा सेहो छल. नौकरी करितिऐक, तँ लोक बाँहि मचोड़ि भ्रष्टाचार ले वाध्य
करैत; हमर जेठ भाई कर्मचारी राज्य बीमा विभागमे काज करैत रहथि. ओतय कर्मचारीसँ
टाका लए मेडिकल लीव देबाक स्थयी परिपाटी रहैक. हम गपक क्रममे भाईकेँ कहलियनि, ‘ हम
टाका ल’ कए छुट्टी नहि देबैक.’ ओ कहलनि, ‘ तखन मारत!’
अस्तु, हमरा अपनामे कतहु दृढ़ विश्वास भए गेल छल, हम बिहारक सरकारी स्वास्थ्य
सेवाक नौकरी करी वा नहि, हम मानसिक रूपे ओहि सेवाक हेतु अयोग्य छी! एहन
परिस्थितिमे भारतीय सेनाक नौकरी हमर मनोनुकूल छल: नियम केर अनुसार काज. समय पर
वेतन आ छुट्टी. ने अनुचित करबाक कोनो दवाब, ने कोनो वाध्यता. तखन, प्रत्येक सेवामे
अन्तर्निहित गुण-अवगुण रहिते छैक, सेवामे प्रवेश करबा काल तकरा बीछि कए फेकब
असंभव.
तथापि, आगू किछु दिन धरि, सैन्य जीवनक बाध्यता आ अपन सन्निकट समाजक सेवा करबाक
अवसरसँ वंचित भए जेबाक कचोट तँ होइते छल, मुदा, आइ लगैत अछि, सेना चिकित्सा कोरक
सेवा हमरा हेतु नीके अवसर छल. ई कोनो कचोटक कारण नहि. सेनाक सेवा स्वच्छ जीवनक
अतिरिक्त, हमर परिवारकेँ एकटा सुरक्षित वातावरण देलक. ई सेवा हमर धिया-पुताक
मानसिक क्षितिजक जाहि प्रकारक विस्तारक अवसर देलकनि, से प्रायः कोनो संकीर्ण
वातावरणमे कदापि संभव नहि होइत. तेँ, अपन प्रतिभा आ परिश्रमक बल पर ओ लोकनि आइ जतय
धरि पहुँचल छथि, ताहिमे सैनिक वातावरणमे लालन-पालनक बड़का योगदान छैक; हमरा एकरा
सैन्य जीवनक देने मानैत छी.
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1982 ई. मे गंगा नदी पर महात्मा गाँधी सेतुक निर्माण पटना आ दरभंगाक बीचक दूरी
थोड़ भए गेलैक. फलतः, दानापुर आ दरभंगाक बीच आयब-जायब हमरा लेल सुलभ भए गेल. अस्तु,
हम दानापुरक किछु मासक प्रवासमे समय भेटने
दरभंगा आबि जाइ. करीब वर्ष भरिक सुष्मिता गप करय लागल रहथि; आ गप की करथि, हुनका
मुँहसँ बोल मकैक लाबा-जकाँ फुटनि. बच्चाक
बोल हमरा अभिभूत कए दिअय. हुनका लेल सनेसमे नव-नव वस्तुओ अबनि. तेँ, हुनक ख़ुशी
फूटे. ऊपरसँ बेरोजगारीमे विवाह भेने, पत्नी जाहि आर्थिक कठिनाई आ मानसिक
दुश्चिंताक शिकार भेल रहथि, तकर समाधान भेने ओहो प्रसन्न रहथि; मुदा, दानापुरक हमर पोस्टिंग रेगुलर पोस्टिंग
नहि छल. ओ एकटा रिपोर्टिंग स्टेशन आ पड़ाव रहैक जतय नव बहाल मेडिकल ऑफिसरलोकनि
ट्रेनिंगक बेसिक कोर्स – Medical Officers Basic Course (MOBC)-क नवका बैच आरंभ हेबाक प्रतीक्षामे पठाओल गेल
रहथि.
ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल, लखनऊ
प्रायः 1983क अप्रैल मासक दोसर हफ्ता.
हमरालोकनि – हम आ कप्तान रबीन्द्र कुमार जायसवाल- सशस्त्र सेना चिकित्सा सेवा
केन्द्र एवं स्कूल ( Army Medical Corps Centre & School ), लखनऊ पहुँचलहुँ. असलमे सेनामे नव कमीशंड ऑफिसरक जीवनसँ इएह हमर सबहक
प्रथम परिचय छल. एतय, ई कहब उचिते हएत जे सेनामे चिकित्सा सेवा कोर एक प्रकारे
अपवाद थिक जतय मेडिकल एवं डेंटल ऑफिसरकेँ पहिने सशस्त्र सेनामे कमीशन भेटैत छनि, आ पछाति ओलोकिन ट्रेनिंग करैत छथि. सेनाक बाँकी सब विभागमे अफसर
पहिने ट्रेनिंग करैत छथि, कमीशन पछाति भेटैत छनि.
MOBC कोर्स मेडिकल एवं डेंटल ऑफिसर लोकनिक हेतु आधारभूत ट्रेनिंग थिक, जाहिमे
युद्धक दौरान मेडिकल एवं डेंटल ऑफिसरकेँ सेनाक संग चलैत, सैनिकक स्वास्थ्यक देखभाल
करबाक, आकस्मिक चिकित्सा, एवं सेनाक वृहत् समुदायक जनस्वास्थ्य संबंधी पहलूक
देख-रेखक आधारभूत प्रशिक्षण तँ देले जाइत
छनि, संगहि एहि ट्रेनिंगमे सेनाक संरचना, सैन्य जीवनक दिन-प्रतिदिनक गतिविधि, सैनिक
शिक्षा, युद्ध केर अनुशासन, व्यक्तिगत हथियारक प्रयोग, सैनिक पड़ावक जनस्वास्थ्य
संबंधी पहलू, सेनामे मेडिकल यूनिट केर सामान्य प्रशानिक पहलूक अतिरिक्त, युद्धक
दौरान घायल सैनिकक चिकित्सा पद्धतिक प्रशिक्षण सेहो भेटैत छनि.
तहिया, दस हफ्ताक MOBC क अवधि अत्यंत व्यस्त आ कठोर प्रशिक्षणक
समय होइत रहैक. दिनक आरंभ साढ़े पाँच बजे भोरे भोरुका व्यायाम – PT (physical training)-सँ. तकर
बाद स्नान, नाश्ता आ ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल (OTS) मे
निर्धारित रूटीनक अनुसार, ड्रिल, लेक्चर,
प्रदर्शन (demonstration), सैन्य क्षेत्रक मूर्त नक्शा (sand model) पर
युद्धक दौरान घायलक उपचारक व्यवस्था एवं युद्धक मोर्चासँ घायल सैनिककेँ अस्पताल धरि
पहुँचयबाक विभिन्न विधि पर मंथन आ तकर सामूहिक अभ्यास होइक. प्रायः दू घंटाक लंच
ब्रेक केर बाद एहन अनिवार्य खेल-कूद जाहिमे अफसर आ जवान एक संग भाग लए सकथि. एतय ई
कहब आवश्यक जे ट्रेनिंगक दौरान टेनिस,
बैडमिन्टन, क्रिकेट, स्क्वाश, टेबुल टेनिसक गणना
खेलमे नहि होइछ. कहियो काल सांझुक
पहर सेहो ट्रेनिंगक अतिरिक्त, पार्टी, डिनर नाईट, एवं आउटडोर कैम्पिंग एवं फायरिंग सेहो होइक.
बीच-बीचमे समीपक यूनिट सबमे सेहो विभिन्न प्रकारक अस्त्र-शस्त्रक प्रदर्शन आ आन
भिन्न गतिविधिक प्रदर्शन होइक. ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूलमे एक संग अनेक स्तरक अनेक
कोर्स संग-संग चलैत रहैत छैक. अस्तु, ओहि
समयमे चलैत सीनियर ऑफिसर लोकनिक कोर्स केर बीच आयोजित लेक्चर सुनबाक अवसर, एवं
बाहरसँ सेनाक भिन्न सहायक सेवाक अधिकारी लोकनिक भाषण सुनबाक कार्यक्रम सेहो होइक.
एहि सभक बीच निरंतर परीक्षा /असेसमेंट. आ अंतमे समीपक मध्य कमान अस्पतालक गतिविधि
देखबाक हेतु ओतय पन्द्रह दिनुका अटैचमेंट.
कोर्स समाप्त हयबासँ पूर्व रिजल्ट अबैक. प्रत्येक अफसरक सम्पूर्ण उपलब्धिक आधार पर
अफसर लोकनिक ग्रेडिंग प्रकाशित होइक, आ कोर्स केर अंतिम दिन सब गोटे सेना मुख्यालय
द्वारा निर्गत पोस्टिंग आर्डरक अनुकूल अपन-अपन यूनिट विदा भेलाह.
हमरालोकनि चारि कप्तान मेडिकल ऑफिसर- कीर्तिनाथ झा, राजेन्द्र कुमार, पवन
कुमार आर्य एवं जगदम्बा प्रसाद नैथानी- एस्टाब्लिश्मेंट नंबर 22 (Est no. 22 )क मुख्यालय
चकराता जेबाक हेतु दून एक्सप्रेससँ देहरादून विदा भेल रही.
चकराता
चकराता उत्तराखंड (पहिने उत्तर प्रदेश) राज्यक एक छोट एवं दूरस्थ शहर थिक, जे
ब्रिटिश शासनक पुरान पुरान कैंटोनमेंट रहितो तहिया अपन पुरान सुन्दरताकेँ अक्षुण
रखने छल. चकराता तहिया बाहरी शैलानी आ
विदेशी लोकनिक हेतु प्रतिबंधित छल. संगहि, चकराता बाट संकीर्ण पहाड़ी सड़कक बाट
रहैक, एक बेरमे एके दिशामे गाड़ी सभ जा सकैत छल, तेँ, कालसी नामक स्थानक गेट परसँ चकरातासँ
देहरादून एवं देहरादूनसँ चकराताक दिस जाइत मोटर वाहनक संचालन होइत रहैक.
हेडक्वार्टर्स एस्टाब्लिश्मेंट 22 एवं
भारत सरकारक स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स (SFF)क मुख्यालय एवं सेंटर केर अतिरिक्त चकरातामे एकटा मिलिटरी अस्पताल सेहो
रहैक. इएह मिलिटरी अस्पताल हमरालोकनिक गंतव्य छल. बाहरी दुनियामे लगभग अपरिचित
चकरातासँ हम परिचित रही. कारण: लेखक श्री राम शर्माक पुस्तक ‘शिकार’ जे हाई
स्कूलमे हमरालोकनिक पाठ्यक्रममे निर्धारित छल, एवं इलाचंद्र जोशीक उपन्यास मे
अजुका उत्तराखंडक आन शहर सबहक बीच चकराताक नामम चर्चा रहैक. ततबे नहि, दिल्लीक
राममनोहर लोहिया अस्पतालमे काज करैत हमरा लोकनिक एक सहकर्मी सेहो चकराताक रहथि, से
बिसरल नहि छल.
एतावता, चकराताक करीब मास भरिक प्रवास हमरा हेतु एक नव अनुभव छल; एहिसँ पहिने
हम कहियो पहाड़ पर रहल कि, लगसँ पहाड़ देखनहुँ नहि रही. मुदा, अतिशयोक्तिकेँ जँ कात
कए दितिऐक तँ चकराता आबि कवि नागार्जुनक कविता- ‘बादल को घिरते देखा’क अंशक स्मरण
अतिशयोक्ति नहि होइतैक:
नभ-चुंबी कैलाश शीर्ष पर,
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा
है।
शत-शत निर्झर-निर्झरणी कल
मुखरित देवदारु-कानन में,
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रंग-बिरंगे और सुगंधित
फूलों से कुंतल को साजे,
इंद्रनील की माला डाले
शंख-सरीखे सुघड़ गलों में,
कानों में कुवलय लटकाए,
शतदल लाल कमल वेणी में,
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उन्मद किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अँगुलियों को
वंशी पर फिरते देखा है,
बादल को घिरते देखा
है।
हं, चकराता किन्नरीक भूमि तँ किन्नहु
नहि. किन्तु, पर्वतकन्याक भूमि तँ अवश्य रहैक. हँ, ओतय संस्कृत पण्डित कविक
कल्पनाक एतेक एतेक सजल-धजल पार्वती दर्शन तँ नहि भेल, किन्तु, जेम्हरे देखतियैक, ऊँच-ऊँच,
पुरान एवं बलिष्ठ देवदारुक वृक्ष समूहक, सघन
हरियर कचोर जंगल पर दृष्टि पड़ैत. शीतल बसात जखनहि तेज होइक, देवदारुक
सूई-सदृश सघन पात बाटें बहैत वायुसँ समीपमे कल-कल बहैत नदीक आभास होइक. हमरा
लोकनिक आवास पूब मुँहेक बैरकनुमा- गोम्पा क्वार्टर्समे छल. देवदारुक गाछक बीचसँ भोरे
रौद आबि जाइक. थोड़बे कालमे रौद अपना संगहि तूरक फाहा-सन मेघकें नोति आनय. आ मेघ
आयल तँ ओकरा जतय बाट भेटलैक, अगराइत नेना-जकाँ हुलि देलक. पहाड़क ऊँचाई पर आवास, आ
खूजल केबाड़-खिड़की बाटें कोठलीक भीतर अबैत मेघ देखबाक पहिल अनुभव हमरा चकित करय; ई
हमरा लेल कोनो हिल-स्टेशनक हॉलिडेसँ कनिओ कम नहि छल! आस-पास सेव आ आड़ूक गाछ,
जेरेनियम, हाईड्रान्जिया, डैलिया आ आओर अनेक प्रकारक फूलक अतिरिक्त बाटें-बाटें
प्रचुर वनफूल आ वनौषधिक सुगंधि.
हमरालोकनिक अस्पताल छोट छल. गोड़ दसेक डाक्टर. पच्चीस-तीस नर्स. किछु प्रशानिक
अफसर आ तिब्बती शरणार्थी ‘पिंजा’- संबंधी/पड़ोसी- महिला एवं पुरुष सैनिक, एवं भारतीय
सेना चिकित्सा कोर केर सैनिक. रोगीक संख्या थोड़- मोटामोटी स्थानीय छावनीक तिब्बती
शरणार्थी सैनिक, भारतीय अफसर एवं सैनिक तथा तिब्बती शरणार्थीक परिवारजन; चकराता
भारतीय सेनाक हेतु non-family station रहैक.
चकरातामे तिब्बती लोकनिसँ प्रथम परिचय एकटा नव अनुभव छल; तिब्बती नागरिकक रंग, चेहरा-मोहरा,
भेष-भूषा, भोजन, भाषा, सामाजिक व्यवस्था सब किछु भिन्न. यद्यपि, पड़ोसी हेबाक
कारणें सैकड़ों सालसँ तिब्बती लोकनि भारत अबैत जाइत रहलाह अछि. मुदा, ओ आयब-जायब
बौद्ध आस्था तथा व्यापारक हेतु रहैक. बोद्ध भिक्षुक आबाजाहीक क्रममे प्रचुर बौद्ध
साहित्य तिब्बत गेल आ अनेक ग्रन्थ रचना भेल जाहिमे एक अछि, तारानाथक भारतमे बौद्ध
धर्मक इतिहास. रोचक थिक, तारानाथ कहिओ भारत नहि आयल रहथि, मुदा, ओहिना ‘भारतमे
बौद्ध धर्मक इतिहास’ लिखि गेलाह, जेना, जेम्स मिल नामक स्कॉटिश विद्वान The History of British India सन दीर्घकाय पुस्तक लिखि गेलाह. जे किछु,
एतुका तिब्बती सैनिक स्वदेशमे चीनी दमनसँ पीड़ित भए परम पावन दलाई लामाक संग भागि
कए 1959 मे भारत आयल रहथि, आ दलाई लामाक नेतृत्वमे अमेरिकी सहायता तथा भारतक सहयोगसँ चीनक विरुद्ध गुरिल्ला संगठनक
निर्माण कयने रहथि. संकल्प एके टा, चीनकें पराजित कए स्वदेश वापसी. ज्ञातव्य थिक,
दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्मक गेलुक्पा- पियर टोपीधारी- संप्रदायक मुखिया एवं
तिब्बतक धर्मगुरु एवं राष्ट्राध्यक्षहि टा नहि, तिब्बती अस्मिताक प्रतीक एवं चीनी
अतिक्रमणक विरुद्ध विश्वव्यापी प्रतिरोधक शीर्ष नेता छथि. किन्तु, स्वदेशसँ लगभग
सात दशक केर दीर्घ निर्वासनक पछातियो स्वदेश आपस हेबामे असफल तिब्बती नागरिक भारतहिमे तिब्बती राष्ट्रक परिकल्पनामे विदेशमे तिब्बती
शासन (Government in exile) क लोकतान्त्रिक सरकार चलबैछ, जकर मुख्यालय धर्मशाला, हिमाचल प्रदेशमे
छैक.
चकरातामे हमरा तिब्बती बौद्ध परंपरा आ भारतीय सनातन धर्मक बीचक किछु समान
सूत्र आ नितांत भिन्नता दुनू देखबामे आयल. जेना, तिब्बती लोकनिक सामिष आहार आ
मदिरा (छांग)पान, पूजामे पाठ केर प्रधानता, आराधनामे फूलकेर सर्वथा अभाव, मालाक
स्थानपर पातर जलफांफी मफलर-सन उज्जर वा रेशमी वस्त्र- खादाक प्रयोग. अक्षतक स्थान
पर जौ केर चिकस केर प्रयोग आ भोजनमे जौ केर सातु, मक्खन, नोनगर चाह एवं मांसक
प्रधानता. सार्वजानिक जीवनमे बहुपति (polyandry) सामाजिक संरचना एवं सामान्य जीवनमे जीवरक्षाक प्रति मोह. मुदा, सभक
बीचमे भारतक प्रति अटूट आस्था. तिब्बती समाजमे पर्दा प्रथा नहि छैक. स्त्री एवं
पुरुषक बीच कोनो श्रम विभाजन नहि, तेँ समाजमे स्त्री एवं पुरुषक बीच निर्बाध
मेलजोल. पूजा स्थलमे सेहो पुरुष एवं नारीक समान सहभागिता.
हम करीब तीन वर्षसँ बेसी दिन धरि
तिब्बती शरणार्थी लोकनिक बीच रहलहुँ. मुदा, भाषा नीक-जकाँ सिखि नहि सकलहुँ.
तिब्बती भाषा केवल भारतीय उत्तरी एवं
उत्तरपूर्वी सीमान्त प्रदेशक भाषा लद्दाखी एवं अरुणाचलक भाषासँ किछु-किछु मिलैत छैक.
लिपिमे बंगलासँ किछु समानता. किन्तु, संज्ञा एवं क्रियामे जनसंख्या-बहुल उत्तर
भारतीय भाषा सबसँ सर्वथा भिन्न. हम तिब्बती लोकनिक बीच काम-काजक हेतु किछु किछु तिब्बती
शब्द, जेना, सप्ताहक सात दिनक नाम, एकसँ दस केर गिनती, तथा रोगीसँ प्रश्नोत्तरक
किछु तिब्बती वाक्यक अतिरिक्त किछु बेसी नहि सिखि सकलहुँ. यदयपि, हमरा जीवनमे अनेक
भाषासँ संपर्क भेल. बहुतो सिखल. मुदा, नौकरीक आरंभमे अपन करियर आ चिकित्सा शास्त्र
सिखबाक लक्ष्यक केन्द्रमे छल. अस्तु, जतेक तिब्बती भाषा तीन वर्षमे सिखि सकैत रही,
से संभव नहि भए सकल. मुदा, ओहि अवधिमे तिब्बत संबंधी अनेक ऐतिहासिक एवं
विचारोत्तेजक पुस्तक पढ़बाक अवसर भेटल. ओहि सबमे तिब्बतमे चीनी अतिक्रमणक आरंभिक
इतिहास पर प्रमाणिक पोथी, दावा नोर्बूक Red Star Over Tibet तथा Lt Col Francis Younghusband केर India and Tibet (1910) सेहो छल. India and Tibet मे भारतमे ईस्ट इंडिया कंपनीक शासनकेर आरंभसँ
ल’ कए 1910 ई. धरिक भारत-तिब्बत संपर्कक इतिहासक अतिरिक्त फ्रांसिस यंगहस्बैंड केर
ल्हासा यात्राक वर्णन सेहो अछि. ज्ञातव्य थिक, ओहि युगमे ल्हासामे कोनो विदेशीक प्रवेश
सर्वथा वर्जित रहैक. आब ई सब पुस्तक archive.org पर पढ़बा
लेल निःशुल्क उपलब्ध अछि.
चकराता पोस्टिंगक दू मासक भीतरे हमर पोस्टिंग सीधा दूमदूमा टाउन, असम आयल. सेनामे
नव-नव कमीशन. गाम-घर पत्नी-परिवारसँ दूर. बीचमे सघन ट्रेनिंग. गाम जयबाक हेतु मन
उबियाइत छल. सेनामे छुट्टीक अभाव नहि. चकरातासँ असम जेबाक बाट मे दू मासक वार्षिक
अवकाश भेटि गेल. प्रायः 31 जुलाई 1983क दिन हम पहिल वार्षिक अवकाशमे दरभंगा पहुँचल
रही. हमर पत्नी अस्पतालमे भर्ती रहथि; सन्तान होनिहारी रहनि.
हमरालोकनिक शिक्षक डाक्टर राजेन्द्र
प्रसाद सिन्हा, प्रसूति विज्ञान आ चिकित्सा पढ़बैत काल बहुधा कहथि: गर्भधारण रोग
नहि, सामान्य शारीरिक प्रक्रिया थिकैक (Pregnancy is physiology, it’s not pathology). 1983 वर्षक जुलाई-अगस्तमे ओही physiology क हेतु
हमरालोकनिक आस लगौने रही किन्तु, गर्भ (pregnancy) आ प्रसव (parturition) भले रोग नहि होउक, ई प्रक्रिया
शारीरिक कष्टसँ मुक्त तँ नहिए छैक. आ रूपमकें एहि बेर बहुत शारीरिक कष्ट रहनि.
हम 31 जुलाईक दरभंगा पहुँचहुँ आ 05 अगस्तक हमरालोकनिक बालक, अमियक जन्म भेलनि.
माने, चकराता आ दूमदूमाक यात्राक बीचक हर्ष आ सनेस भेटि गेल; बहिन, सुष्मिताकेँ भाई, आ नवजात भाईकेँ बहिनि भेटि गेलखिन, आ हमरा सभक परिवार पूरा भए गेल. अस्तु, सेनाक
नौकरीक पहिल वार्षिक अवकाशक दू मास दुनू बच्चा, पत्नी आ परिवारक संग तहिना बीतल
जेना जहलसँ भागल कैदी घर आबि गेल हो. छुट्टी समाप्त भेला पर सोझे दूमदूमा टाउनमे
जा कए योगदान कयल आ SFF केर संग तीन वर्षक शेष लंबा सेवा हम ओतहि
असम अरुणाचल बॉर्डर टाउनमे चाय बगानक बीचेमे बिताओल.
दूमदूमा,असममे रेजिमेंटल मेडिकल ऑफिसर (RMO)
सैन्य जीवनक पहिल वार्षिक अवकाश समाप्त कए सितम्बर, 1983मे आसामक दूमदूमा
टाउनमे योगदान कयल. 1980क दशकमे दरभंगासँ दूमदूमाक यात्रा दुरूह तँ नहि, मुदा,
लंबा रहैक. कारण, बरौनीमे भोरे छौ बजे आसाम मेल पकड़बाक हेतु रातिए दरभंगासँ चलू. माने, दरभंगा-बरौनीक बीच
100 किलोमीटरक दूरी तय करबामे भरि राति भरि लागि जाइक. मीटर गेजक ट्रेन, ढकर-ढकर
चलैक. बरौनीसँ विदा भेलाक चौबीस घंटाक बाद फकीराग्राम; ओतय नीक चाह भेटैक, तेँ, स्टेशनक नाम स्मरण अछि. दोसर दिन, ब्रह्मपुत्र
पार करैत गुवाहाटी. तकर बाद मीटर गेजक दोसर ट्रेन आ अठारह घंटाक रेल यात्राक बाद
तिनसुकिया. तिनसुकियासँ दूमदूमाक हेतु युनिटक मोटर गाड़ी आबए वा ट्रेन-यात्रा.
मुदा, देखबामे ई तँ बड्ड सोझ लगैछ. मुदा, असल समस्या दोसर रहैक. सत्तरि आ अस्सीक
दशकमे असममे विदेशी आप्रवासीक विरुद्ध आसू (All Assam Student Union) तथा असम गण
संग्राम परिषद (AAGSP)क आन्दोलन चलैत रहैक. आन्दोलनक कारण, ट्रेन
कखन कतय आ कतेक काल रुकि जायत, किछु ठेकान नहि. एक आध बेर तँ गाड़ी चौबीस घंटासँ
बेसिओ लेट तिनसुकिया पहुँचल रहैक! तेँ, ट्रेनमे चढ़ि जाइ तँ आश्वस्त होइछ. मुदा,
अधिक काल ई नहि सोचियैक, ट्रेन कतय थम्हलैक, फेर कखन विदा भेलैक.
दूमदूमा टाउन अपर आसामक एक सीमान्त एवं छोट शहर थिक, जे अरुणाचल प्रदेशक सीमाक
समीपे पड़ैछ. ओहि समयमे दूमदूमा टाउन
डिब्रूगढ़ जिलामे पड़ैत छलैक. आब ई तिनसुकिया जिलामे अछि. एहि इलाकाक डिगबोइ तहियो
खनिज तेलक हेतु प्रसिद्ध छल.
पोस्टऑफिस, रेलवे स्टेशन, दू गोट सिनेमा हॉल आ बाज़ारक अतिरिक्त दूमदूमामे शहर
कहयबाक हेतु आओर किछु नहि रहैक, तथापि एतुका टाउन समिति अविभाजित लखीमपुर जिलाक
सबसँ पुरान टाउन कमिटी थिक. तथापि, दूमदूमामे पहिनहुँ मुख्यतया चाह एवं लकड़ीक व्यापार रहैक. चाह बगान
आ चाह उत्पादनक अनेक कंपनी आ मिल एखनो छैक. एकर अतिरिक्त केन्द्र सरकारक अनेक
विभागक कार्यालय ओतय रहैक. मुदा, से छलैक, द्वितीय विश्वयुद्धक युगक एक परित्यक्त
हवाई अड्डाक प्रतिबंधित क्षेत्रक परिसरमे. गोपनीयताक कारण ओ क्षेत्र मोटा-मोटी
शहरसँ एकदम अलग-थलग.
आस-पासक चाह बगान आ कारखानासँ दूर, दूर-दूर धरि धनखेती. किछु दूर हटि कए एक टा बड़का
बाध रहैक लखी पथार. सुनल, पछाति लखी पथारक क्षेत्र आतंकवादी संगठन उल्फा (ULFA)क गतिविधिक कारण चर्चामे आयल. मुदा,
तहिया केओ ULFAक नामो नहि सुनने रहैक.
स्वतंत्रतापूर्व ई संपूर्ण इलाका जँगल-जकाँ
रहैक. तेँ दूमदूमा लकड़ीक व्यापारक केन्द्र सेहो रहैक. इएह
दूमदुमा टाउन एक अर्थमे हमर पत्नीक मात्रिक रहनि. सुनल अछि, द्वितीय विश्वयुद्धसँ
पूर्व हमर पत्नीक मातामह, राम बचन ठाकुर, चकौती गामसँ भागि, जीविकाक तलाशमे अनेक
ठाम बौआइत अंततः तिनसुकिया आयल रहथि. आ ओतयसँ दूमदूमा अयलाह. आर्थिक रूपें विपन्न
आ लगभग निरक्षर- प्रायः अपन नामे टा लिखबय अबैत रहनि- राम बचन ठाकुरक भाग्य एही जंगली
क्षेत्रमे खुजलनि एवं काल-क्रमे एतय ओ लकड़ीक तेहन बड़का व्यवसाय स्थापित कयने
रहथिन, जे सुनैत छी, ओहि समयमे ओ डिब्रूगढ़ जिलाक सबसँ पैघ आ सफल व्यापारीए टा नहि
रहथि, ओ अपन गामक संपूर्ण कुनबा एवं सैकड़ो स्थानीय, बिहारी एवं पुरबिया मज़दूरक
आश्रय आ रोजगार सेहो देने रहथिन. एहन औपन्यासिक चरित्र जे अत्यंत विपरीत
परिस्थितिमे कठिन उद्यमसँ जन्मभूमिसँ एतेक दूर आबि अपन भाग्य-रेखा अपनहि लिखने
रहथि, ताहि श्रमशील नायकक कथा कहबाक हेतु
एकटा स्वतंत्र उपन्यास चाही. तेँ, ओ कथा आन ठाम फेर कहिओ.
दूमदूमामे हमरा लोकनिक युनिट एकटा इन्फेंट्री (पैदल सेनाक) बटालियन-जकाँ छल,
जकर मुख्यालय एकटा पुरान हवाई पट्टीक एक कछेर पर रहय. अगल-बगलमे चाय बगान, चाहक कारखाना
आ मज़दूर लोकनिक गाँओ. सब किछु शहरसँ लगहि, रेलवे स्टेशनसँ सेहो दूर नहि. रेल लाइन किछुए
दूर आगू ब्रह्मपुत्रक कछेर पर सैखुआ घाट धरि जा कए समाप्त भए जाइत रहैक.
ब्रह्मपुत्र पार कए परशुराम कुंड जयबाक बाट रहैक. आब ओतय डाक्टर भूपेन हजारिका
सेतु छैक जे असमकेँ अरुणाचलसँ जोड़ैछ. मुदा, ओहि समयमे एम्हर अरुणाचल जयबाक सड़क नहि
रहैक. बहुतो ठाम नाओ चलैक. मुदा, हमरा लोकनि जतय कतहु गेलहुँ, केवल हवाई जहाजसँ.
तेँ, ई सब इलाका देखबाक अवसर नहि भेटल.
हमर सबहक डेराक चारू कात विभिन्न प्रकारक गाछ-वृक्ष, आ सड़क छोड़ि सब ठाम घास-फूस-
लत्तीक सघन जँगल. सेहो तेहन जे कहबी रहैक, ओतय ‘एक दिनमे एक सेंटीमीटर घास बढ़ैत
छैक’. ख़ास कए बरसातमे सैनिक सब घास कटैत-कटैत थाकि जाय आ घास बढ़िते चल जाइक.
जँगलमे अजस्र कीड़ा-मकोड़ा आ छोट-छोट वन्य जीव-जन्तु. आम कटहरक अजस्र गाछ वृक्ष
आ खूब फल. किन्तु, अत्यधिक नमीक कारण पकबासँ पहिनहि आममे पिलु फड़ि जाइक. स्थानीय
जनता कटहर खाइक नहि. केराक घैड़ बानर रहय नहि दैक. माने, हमरा सभक हेतु सब किछु
रहितो, किछुओ नहि.
कार्यालय आ आवासक हेतु किछु पक्का आ
बाँकी फूस केर बैरक सब रहैक.यद्यपि अफसर लोकनिक रहबाक हेतु पक्का आवासक कमी नहि,
मुदा, कप्तान लोकनिकेँ रहबा लेल फूसक बैरक डेरा भेटनि जाहिमे सेमेंटक फर्शक
अतिरिक्त अटैच्ड बाथरूम आ रनिंग वाटरक सुविधा छलैक. हमरालोकनिक कमांडिंग ऑफिसर, गोर्खा
रेजिमेंटक अफसर कर्नल विरेन जैन, प्रशिक्षणक विषयमे अत्यंत सख्त रहथि. अफसर वा जवानक प्रशिक्षणमे हुनका
कोनो ढिलाई पसिन्न नहि. हम तँ ताहिमे सोझे नागरिक जीवनसँ आयल रही, तेँ, हमर
ट्रेनिंग केर भारा ओ सेकंड-इन-कमांड मेजर तूरकेँ देने रहथिन. ओहुना यूनिटमे सैनिक
खुफिया जानकारी, ट्रेनिंग एवं सैन्य ऑपरेशन सेकंड-इन-कमांडक दायित्व होइछ. मेजर
तूर अपन दायित्वमे कोनो कोर-कसरि नहि छोड़थि. एहिसँ हमरा ऊपर कठिन नियंत्रण रहैत
छल, मुदा, सख्त ट्रेनिंग उचिते छल.
इन्फेंट्री बटालियन सेनाक रेजिमेंटमे मुख्य वा आधारभूत लड़ाकू यूनिट थिक.
जाहिमे सैनिकक संख्या एक हज़ार धरि होइछ. कमांडिंग अफसर(CO) बटालियनक मुखिया भेलाह, जे
सेकेंड-इन-कमांड (2IC), क्वार्टर मास्टर (QM), कम्पनी कमांडर, एडजुटेंट(दण्डाधिकारी), रेजिमेंटल मेडिकल ऑफिसर (RMO)एवं सूबेदार मेजर (SM)क माध्यमसँ शांति कालमे
बटालियनक तेना नेतृत्व करैत छथि, जे यूनिट युद्धक सदा सक्षम टा नहि रहय, बल्कि देल
अभियानमे सदा विजयी प्रमाणित होअय. शांतिकालमे सेनाक निरन्तर ट्रेनिंगक इएह
उद्देश्य होइछ.
रेजिमेंटल मेडिकल ऑफिसर (RMO)
शैक्षणिक योग्यतामे बटालियनमे लगभग सबसँ प्रथम, रेजिमेंटल मेडिकल ऑफिसर, युद्ध
एवं शांति कालमे सैनिकक स्वास्थ्य एवं जनस्वास्थ्यक विषयमे कमांडिंग ऑफिसरक
सलाहकार एवं एकमात्र चिकित्सक सेहो भेलाह, जे प्रत्येक अभियानमे बटालियनक संग चलि सेनाक
देखभाल आ ओकर मनोबलक रक्षा करैत छथि. तेँ बटालियनमे RMOक स्थान
सम्माननीय एवं अत्यावश्यक मानल जाइछ. तकर कारणो छैक; सैन्य जीवनमे खतरा
संगबहिना थिक. युद्ध एवं शान्ति कालमे सैनिक कार्रवाई वा ट्रेनिंगमे दुर्घटना
होइते रहैत छैक. ऊपरसँ कठिन काज एवं दूरस्थ
प्रदेशक भूमि एवं विपरीत जलवायुसँ सैनिकक स्वास्थ्य प्रभावित होइते रहैक छैक. तेँ, निरंतर मुस्तैद
अपन यूनिटक डाक्टरक उपस्थितिसँ सैनिकक
मनोबल, सुरक्षाक भाव एवंआत्मविश्वास बढ़ैत छैक. मुदा, एतय इहो कहि दी, जहिना बटालियनमे आर एम ओ
क स्थान महत्वपूर्ण होइछ तहिना आर एम ओ क जीवनहुमे सेहो सैनिकक समीप रहि सेना
गतिविधि सहभागिताक अनुभवक अभूतपूर्वे होइछ. संयोगसँ हमरा दू बेर ई अवसर भेटल.
बटालियनक दिनचर्या: युद्ध वा शांति बटालियनक दिनचर्या निर्धारिते रितिएँ चलैत रहैछ. शांतिकालमे दिनक आरंभ पी टीसँ होइछ जकर समय, स्थान आ जलवायुक अनुसार स्थानीय प्रशासन निर्धारित करैछ. असम अरुणाचलक क्षेत्रमे गर्मीक मासमे भोरुका साढ़े चारिए बजे सूर्योदय भए जाइछ. तें, पी टी केर समय ओही हिसाबें दिन उठलासँ पहिनहि.
ज्ञातव्य थिक, सेनामे बिलम्ब अक्षम्य थिक. ऊपरसँ, On time is late. संगहि, लेट / बिलंब दण्डनीय अपराध थिकैक. तेँ, बिलंब
असंभव. तथापि, समय पर पहुँचब, लेट थिक, से सुनि, आश्चर्य भेल ने ? मुदा, ठीके
सुनलियैक: अर्थात् जँ कोनो काज चारि बजे शुरू हेबाक छैक, तखन जँ अहाँ चारि बजे
पहुँचबे करबैक, तँ चारि बजे काज शुरू कोना हेतैक! तेँ, जतय समयक मोल छैक, ओतय
कार्यक्रम आरंभ हयबासँ पहिनहि पहुँचब अनिवार्य होइछ, जाहिसँ निर्धारित समय पर काज
आरंभ भए जाइक. तेँ, कोन ओहदाक सैनिक निर्धारित समयसँ कतेक पहिने पहुँचताह से
अलिखित परंपरा आ अनुशासनक अनुकूल चलैत
रहैछ.
नियमित पी टीक समयमे अस्वस्थ सैनिक अलग
पतियानीमे ठाढ़ होइत छथि. पी टी आरंभ भेलाक बाद, अस्वस्थ सैनिक सोझे डाक्टरी जाँच
कक्ष (MI room) मे जाइत छथि,
जतय मामूली रोगक हेतु नर्सिंग असिस्टेंट
उपचार पर्याप्त होइछ. आर एम ओ बाँकी सैनिकक जाँच करैत छथि आ अवश्यकताक अनुसार
चिकित्सा, आ आरामक आदेश दैत छथिन. एकर रिकॉर्ड, रोगी रिपोर्ट बुक (sick report book)-प्रतिदिन कमांडिंग ऑफिसर लग प्रस्तुत होइछ, जाहिसँ कमांडिंग
अफसर सैनिकक स्वास्थ्यसँ निरंतर अवगत रहित छथि. ज्ञातव्य थिक, युद्धक हेतु सैनिककें
स्वस्थ राखब कमान अधिकार दायित्व थिक. युनिटमे अस्वस्थ सैनिकक बेसी संख्या
‘कमांड’क अक्षमता थिक.
रोचक थिक, कदाचित् बहानावाजी केनिहार सैनिककें RMO
द्वारा Medicine
& Duty (M & D)क अनुशंसा एक प्रकारक दण्ड थिक. बहानेवाज सैनिककें बटालियनमे ‘मकरा’ वा
बहानेवाज कहि उपहास कयल जाइछ आ आओर सख्त ड्यूटी भेटैत छैक; यद्यपि, आम सैनिकक हेतु
सख्त ड्यूटी आ शारीरिक दण्ड सोहाग-भाग थिकैक.
स्थान आ मौसमक अनुकूल भोर आठ बजेसँ दिनक दू बजे धरि ऑफिसक समय भेल. दुपहरियाक भोजनक
बाद किछु अवकाशक बाद खेलकूद (organized games) सैनिकक मानसिक एवं शारीरिक विकासक हेतु
अनिवार्य थिक. खेल-कूदसँ अफसर एवं सैनिक,
तथा सैनिकक बीच संबंध प्रगाढ़ होइत छैक. खेल-कूद ओहदाक कारण सैनिक लोकनिक बीचक
खाधिकें सेहो भरैत छैक आ एहिसँ सैनिककें एक दोसराकें लगसँ चिन्हबाक अवसर सेहो भेटैछ.
अफसरक हेतु खेल केर अओरो उपादेयता छैक. खेल-कूदसँ नेतृत्वक गुणक विकास होइछ. फलतः, दुमदुमामे हम
अनेक खेल - जेना बास्केट बॉल आ वॉलीबॉल खेलायब आरंभ कयल. पहिने एहि सबसँ हमरा कोनो
परिचय नहि छल. एहि सब गेम्सकें men’s games, अर्थात् एहन खेल जे
आम सैनिक खेलाइछ, कहल जाइछ. टेनिस, बैडमिंटन, स्क्वाश, बिलियर्ड, स्नूकर एवं गोल्फ
अफसरक गेम्स भेल. एहि सबमे सैनिकक सहभागिता नहि होइछ. तें, organized games सैनिकक ड्यूटी भेल. आ ओहिमे उपस्थिति
अनिवार्य होइछ. खेल-कूदमे उत्कृष्ट
सैनिककेँ संस्थागत सुविधा आ प्रोत्साहन भेटैछ जाहिसँ अनेको सैनिक अपन योग्यताक
बलें सशस्त्र सेना दिससँ खेलाइत
राष्ट्रीय, एवं अंतर्राष्ट्रीय तथा ओलिम्पिक स्तर धरिमे सशस्त्र सेना आ देशक प्रतिनिधित्व करैत छथि. हाल-सालमे सूबेदार
नीरज चोपड़ा एकर प्रत्यक्ष उदाहरण थिकाह.
बुझबाक थिक, सैनिक अभियानक सफलताक सैनिक एवं अफसरक बीचक विश्वास पर आधारित
होइछ. तेँ, अफसर एवं सरदारक आदेश पर सैनिक प्राण उत्सर्ग करबामे एको रत्ती
धकचुकाइत नहि अछि. हमरा जनैत, सेनाक इएह
संस्कृति जनमानसमे सेनाक प्रति प्रगाढ़ निष्ठाक आधार थिकैक. एकर अतिरिक्त संस्थागत
स्तर पर सशस्त्र सेनामे विभिन्न स्तर पर कार्मिक एवं संस्थाक बीच पारिवारिक संबंध
एवं मेल-जोलक अनेक औपचारिक एवं अनौपचारिक
संस्थागत व्यवस्था एहि संबंधकेँ निरंतर दृढ़ कयने रहैछ, जाहिसँ सेवाक अवधि एवं तकर
पछातियो पलटन तथा सैनिकक तथा सैनिक एवं अफसरक बीचक अविभाज्य संपर्क कायम रहैछ. हं,
सशस्त्र सेनामे अग्निवीरक रूपमे सैनिकक भर्ती एवं सेवामुक्तिक नव प्रणाली ओहि
परंपराकें कोना अक्षुण राखत तकर उत्तर एखन देब कठिन.
समान्यतया, साँझुक छौ-सात बजेक बीचक समय सैनिकक रातुक भोजनक समय थिक. भोजनक
बाद रौल-कालक दौरान सैनिकक हाजिरी होइछ
एवं अगिला दिनक ड्यूटीक आदेश देल जाइछ. तेँ, रौल-काल समाप्त होइते जकर जतय ड्यूटी
भेलैक तैनात भए जाइछ. शेष व्यक्ति निर्धारित समयक बीच आराम करैछ. अफसरक दिनचर्या
गेम्स धरि समाप्त भए जाइछ.
यद्यपि, दायित्वक अनुकूल आम सैनिक आ अफसरक दिनचर्यामे पर्याप्त भिन्नता होइछ. मुदा,
सैनिकहि जकाँ अफसर सेहो चौबीस घंटा ड्यूटीक हेतु उपलब्ध रहैत छथि. सेनाक काज नौसँ पाँच बजेक ‘डेस्क जॉब’ नहि थिक !
दूमदूमामे हमर पोस्टिंग फील्ड/ युद्ध क्षेत्रक पोस्टिंग छल. तथापि, ओतय तीन वर्षक
प्रवासक बीच हमरा किछु दिन परिवारक संग रहबाक अवसर भेटल. पहिल बेर जखन हमर पत्नी आ
दुनू बच्चा ओतय पहुँचल रहथि, हमर कन्या, सुष्मिता-रुकी करीब तीन बरखक रहथि. बालक, अमिय-
बुलु किछुए मासक रहथि.. हमरालोकनि दुनू
भाई बहिनिकेँ डेराक आगू फुलबारीमे घास पर
ग्राउंड-शीट बिछाकए खेलयबा लेल छोड़ि दियनि. ताधरि बुलुकेँ जाहि वस्तुमे रूचि होइनि हाथसँ पकड़ि मुँहमे देबय
आबि गेल रहनि. अमियकेँ रंग-बिरंगक कीड़ा मकोड़ा खूब आकृष्ट करनि. बस, जखने हुनका
मौका लगनि, कीड़ा-मकोड़ा जे किछु देखथिन आ हाथमे अबनि, पकड़ि कए मुँहमे लए लेथि. रुकी,
ठेकनगर, आ गपमे पकठोसलि रहथि. खूब गप करथि,आ अमियकें ओगरितो रहथिन.
ओतुका अगिला यात्रामे जखन दोसर ठाम पैघ डेरा भेटल, तँ, बुलु बरखसँ बेसीक भए
चुकल रहथि. माने, कृष्णजन्मक रचयिता कवि मनबोधक शब्दमे ‘ हथगर- गोड़गर’ आ ‘से कोन
ठाम जतय नहि जाथि’ भए चुकल रहथि. डेराक पछुआड़हिमे लतामक गाछ छलैक. ओकर फलसँ लदल
डारि ततेक लबल रहैक, जे ओ सुटसँ बहराथि आ
भरि पेट लताम खा आबथि. तलामक अतिरिक्त ओतय बाड़ीमे अनानास सेहो खूब रहैक. मुदा,
ततेक जँगलक बीच जे हमहूँ सब नहि जाइ. सांप-कीड़ाक भय. आसपासक किछु सेवाकर्मी ओतय
अजगरो मारने छल. तेँ, हमरालोकनि डराइ. आ मौका देखि, समय-कुसमय अमियक डेरासँ ससरि
जायब हमरा सबहक चिंताक कारण भए जाय; अमियक आकर्षण दू टा रहनि- एकदम समीपक
हवाईपट्टी पर समय-समय पर उतरैत विभिन्न प्रकारक हवाई जहाज आ रुकीक स्कूल;
सुष्मिता-रुकी पहिले-पहिल ओतहि स्कूल जायब आरंभ केलनि, आ पहिले बेर मैथिलीसँ भिन्न
आन कोनो भाषा बाजब शुरू केलनि. तेँ, सब मिलाकय सैन्यजीवनमे पहिल बेर परिवारक संग
हमरा हेतु नव अनुभव छल.
हमरा लोकनिक बटालियनक आओर चारि गोट कंपनी अरुणाचल प्रदेशक भिन्न-भिन्न
सीमावर्ती क्षेत्रमे रहैक. दूमदूमाक पांचम कम्पनी मुख्यालय छलैक; हमर ड्यूटी ओतहि
छल. कोनो आफत-आसमानी भेने कंपनी लोकेशन पर सेहो जाय पड़ैत छल. सब यातायात
हेलीकाप्टरसँ. हम तँ पहिले पहिल ओतहि हवाई यात्रा कयल. ओतहि देखलिऐक, तिब्बतसँ
भारतमे प्रवेश करैत ब्रह्मपुत्र नदीक विहंगम दृश्य आ आ अनेक ठाम मिलैत
ब्रह्मपुत्रक अनेक सहायक नदी, जे समतल भूमिमे एकर दाहिना आ बामा कछेर दिससँ आबि
एहिमे मिलैत चल जाइछ. ज्ञातव्य थिक, पूबसँ पश्चिम दिशामे असमक संपूर्ण लंबाईमे
बहैत ब्रह्मपुत्र अंततः बांग्ला देशमे प्रवेश करैछ.
असममे हमर ई पोस्टिंग अनेक अर्थमे महत्वपूर्ण छल, तकर चर्चा उपर भेले अछि;
जेना, तिब्बती भाषा, समुदाय, बौद्ध धर्मसँ परिचय, सैनिक जीवनसँ क्रमशः एकीकरण आ
पूर्वोत्तर भारतक सीमान्त क्षेत्रक दर्शन. जखन नागरिक अपन गाम-नगर-शहरमे जीवन बिता
दैछ, ओकरा अपन देशक भौगोलिक, सांप्रदायिक, भाषाई आ सांस्कृतिक, जीवन पद्धतिक आ
भोजनरूचिक विविधताक अनुमान नहि होइछ.
मुदा, घरसँ दूर गेनहि ई प्रतीत होइछ जे हमरा लोकनि कतेक विविध छी, सभक आवश्यकता
कतेक भिन्न-भिन्न छैक. एतय ई कहब अतिशयोक्ति नहि होएत जे तहिया अरुणाचल प्रदेशमे,
लगभग नोनसँ सूई आ दियासलाई धरि-सन सब उपभोक्ता सामग्री हवाई जहाज द्वारा ओतय
पहुँचाओल जाइत छलैक. भारत-तिब्बत सीमा पर तैनात सेना सेहो पूर्णतः सब किछुक
आपूर्तिक हेतु वायुसेना पर निर्भर छल. हमरा मन पड़ैत अछि, एक बेर हम सीमा पर तैनात
कंपनीक सैनिक सबहक वेतनक हेतु टाका ल’ कए असमसँ वायुसेनाक जहाजसँ अरुणाचल गेल रही. ओहि युगक अनेक अभूतपूर्व स्मरण
हमर अनेक लेख आ कथामे आनो ठाम छपैत आयल अछि.
दूमदूमामे हमर यूनिटमे मेडिकल जाँच घरक हेतु अनेक कमराक एक भव्य भवन रहैक.
आगाँ ऐल-फैल फुलबारी. एकटा हवलदार नर्सिंग असिस्टेंट- हवलदार पशुपति नाथ शर्मा, आ
एक जेनरल ड्यूटी सिपाही- दावा नोर्बू.
दुनू मिलि कए चौबीस घंटा सैनिकक सेवा करैत छल. स्थानीय एयरफोर्सक अधिकारी, एयरमेन,
हुनका लोकनिक परिवार आ अनेक असैनिक सेवाकर्मी लोकनिक चिकित्साक भार हमरे ऊपर छल.
मुदा, उत्तम सेवाक कारण हमरालोकनिकें सबहक आदर आ सम्मान भेटैत छल.
हमर ई दुनू सहायक हेडक्वार्टरक अतिरिक्त प्रत्येक प्रशिक्षणक अवसर (Training) एवं अभियान (Exercise) मे संग रहैत छलाह. एकबेर एक
प्रशिक्षणक बीच ग्रेनेड फेकबाक प्रैक्टिसमे अनेक सैनिक घायल भए गेलैक. मुदा, तुरत
उपचार एवं घायल सैनिककें हेलीकाप्टर द्वारा हमरालोकनि ततेक तत्परतासँ समीपक
मिलिट्रीअस्पतालमे पहुँचओलहुँ जे किछुए दिनमे सब स्वस्थ भए यूनिट आपस भेल. एक
सैनिक जकर आँखिमे चोट लागल रहैक, ओकरो आँखिमे काज जोकर दृष्टि आपस अयलैक, ताहिसँ हमरालोकनिक काजक प्रशंसा भेल.
संयोगसँ ओहि पोस्टिंगक बाद हमरा अपन एहि दुनू सहायकसँ फेर कहियो भेट नहि भेल.
ई सैनिक जीवनक सत्य थिकैक जे, जे सैनिक अहाँक संग अनेक वर्ष धरि चौबीसों घंटा
तैनात रहि सेवा करताह, पोस्टिंग भेलाक बाद संभव अछि जीवनमे फेर कहियो हुनकालोकनिसँ भेट नहि हो. मुदा, नीक-बेजाय तँ स्मरण
रहिते छैक. इएह थिक सैनिक जीवनक सत्य.
बटालियनक जीवनमे डाक्टरक काज सीमित रहैत छैक. स्वस्थ सैनिक. रोग कदचिते होइत
छैक. प्रशिक्षण वा सैनिक अभियानमे दुर्घटना भेने सैनिकक घायल हएब सामान्य
थिकैक. हँ, बटालियनमे आन अफसर-जकाँ
आवश्यकताक अनुकूल डाक्टरकें सेहो किछु प्रशासनिक काज करय पड़ैत छैक. तथापि,
पढ़बा-लिखबाक हेतु एवं अपन रूचि आ हॉबीक हेतु समयक अभाव नहि. तें दूमदूमाक यूनिटक
लाइब्रेरीमे हमरा पर्याप्त पोथी पढ़बाक
अवसर भेटल. संगहि. अपन शास्त्र सेहो खूब पढ़लहुँ.
आउटडोर कैंप, रूट मार्च, जँगली क्षेत्रमे युद्ध अभ्यास आ कैम्पिंगक आनंद तं
लेबे कयल. संगहि, एही पोस्टिंगमे पाराट्रूपिंगमे हमर रूचि जागल. आ ओतहि एकर
प्रशिक्षण सेहो लेल. एकर अवसर सबकें नहि भेटैत छैक. पाराट्रूपिंगक अनुभव हम एक
अन्य लेखमे विस्तारसँ लिखने छी. पाराट्रूपिंगक प्रशिक्षण ओतय ऐच्छिक रहैक. मुदा,
एहि निर्णयक पाछू हमर सैनिक मानसिकता छल. सेनामे अफसरक सदा सैनिकक आगू-आगू चलैत
नेतृत्व करैत छथि. ई सेनाक संस्कृति थिकैक.
विशिष्ट सीमान्त बलक सेवामे हम एही हेतु पाराट्रूपर बनबाक निर्णय लेल.
दूमदूमाक सेवा अवधिमे हमरालोकनिक सैनिक जाहि क्षेत्रक सेवा-सुरक्षा करैत छल से
पहिने NEFA (North East Frontier Agency)क नामे परिचित छल. ई ओएह इलाका थिक जे 1962क भारत-चीन सीमा विवादक समय
चीनी सेनाक द्वारा आहत भेल छल. अस्तु, एहि अवधिमे ओ अनेको क्षेत्र देखबाक अवसर भेल
जे भारतीय वीर लोकनिक शोणितसँ लाल भेल छल.
ओहि क्षेत्रक यात्रामे हम ओहि भूमिक माटि माथमे लगाओल जाहि भूमिक रक्षा करैत अनामा
शहीद लोकनि अपन बलिदान देने रहथि. संगहि
एहि अवधिमे हम सियांग, लोहित, सुबंसिरी एवं ब्रह्मपुत्र-सदृश अनेक पवित्र नदीक जलक स्पर्श
कयल, अनेक भासक गीत सुनल, अनेक भोज्य पदार्थक संग मडुआ, जौ-गहूमक पेय-छांग-क
आस्वाद तं कयबे कयल, ओहि पर्वतीय प्रदेशक पवित्र प्राणवायुकें सेहो भारिपोख अपन
फेफड़ामे भरि ओहि अपूर्व जीवंतातक अनुभव कयल जे शहरी जीवनमे कदापि नहि भेटैत. ततबे
नहि, एहि क्षेत्रक हवाई यात्रामे तिब्बती पठारसँ पर्वत शिखरक बीच-बीचक दराड़ि होइत
महान जीवनदायिनी आ भयानक विध्वंशकारी नदी ब्रह्मपुत्रक भारतभूमिमे अवतरण सद्यः
देखलहुँ.
दूमदूमाक प्रवास अओरो अनके कारणसँ स्मरणीय अछि. हमर पोथी ‘टूटल पाँखि’ हमर ओहि
अवधिक अध्ययन आ लेखनक स्थायी परिणाम थिक. एकर रोचक पृष्ठभूमि छल; दूमदूमामे हमर तत्कालीन
कमांडिंग अफसर कर्नल जैन पढ़बाक शौक़ीन रहथि. हमरा माध्यमसँ ओ लाइब्रेरीक हेतु बहुत
रास हिन्दीक पोथिओ पटनासँ मंगबओलनि. ओएह हमरा खलील जिब्रानक पोथी सबसँ परिचय
करबओलनि. संयोगसँ हुनके देल खलील जिब्रानक
पहिले पोथी Broken Wings हमरा ततेक अभिभूत कए देलक जे
हमर ओतहि रहैत ओहि पुस्तकक मैथिली अनुवाद केलहुँ. अगिला छुट्टीमे ओहि अनुवादक किछु
अंश जखन किरणजीकेँ जखन सुनओलियनि तँ ओ अनुवादक प्रशंसा करैत, अत्यंत प्रसन्नता व्यक्त
केलनि. संयोगसँ ओ अनुवाद अनको नीक लगलनि आ
किछुए दिनक भीतर ई अनुवाद ‘माटि- पानि’ नामक पत्रिकामे धारावाहिक रूपें
प्रकाशित होबय लागल. दुर्भाग्यवश, ‘माटि- पानि’ किछुए दिनक बाद पत्रिका बन्न भए
गेलैक आ ‘ टूटल पाँखि’ कतेक वर्ष धरि हमरा
लग बंद पड़ल रहल. अंततः, ई पोथी 2016मे ई पुस्तकाकार प्रकाशित भेल. मुदा, कचोट रहि
गेल जे, किरणजीसँ आशीर्वादक दुईओ शब्द लिखा नहि सकलहुँ. जँ हम एखन एतुका विवेच्य
विषयसँ कनेक दूर भटकी तं हम कहए चाहब जे एखन धरि, हम अपन पोथी सभक भूमिका अपनहि
लिखैत आयल छी. कारण, एक, हमर पोथीक दोषकें हमरासँ बेसी नीक-जकाँ आन के बुझत! दोसर,
संभव छैक, भूमिका लिखबाकाल भूमिका-लेखककें हमर प्रशंसा लिखबाक दवाब अनुभव होइनि; अत्यधिक प्रशंसा हमरा अपनहि लजा दैत अछि. एहन
दुविधामे हम ककरो कष्ट किएक दियनि, से उचित हेतैक? ऊपरसँ केओ पाठक भूमिका देखि
पोथी किनैत छथि, ताहिमे हमरा संदेह अछि. तखन, भूमिका वा भूमिका लिखेबाक उपयोगिता?
तथापि, हम दू बेर भिन्न-भिन्न व्यक्तिकें भिन्न-भिन्न पोथीक भूमिका लिखबाक आग्रह केने छियनि. मुदा, प्रत्यक्ष वा परोक्ष रूपें
हमर आग्रह अस्वीकार भए गेल. ओहि म सँ पहिल किरणेजी थिकाह. ओ अस्वीकार तँ नहि
केलनि. मुदा, लिखबो नहि केलनि. दोसरक, अवसर आब बीति गेल. तेसर अवसर? देवो न जानाति
कुतो मनुष्यः!
आब पुनः विषय पर आपस आबी. पूर्वोत्तर भारतक हमर प्रवासक अनुभव केवल हमरे टा
प्रभावित नहि केलक. बल्कि, ओतुका अनुभव हमर नेना लोकनिक मनोक्षितिजक विस्तारमे सेहो
सहाय भेलनि. हमरा तं ओहि भूमिसँ आइओ जुड़ावक अनुभव होइछ.
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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.