दिल्ली
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान आ सफदरजंग अस्पतालक विस्तृत, अड्वाल परिसर,
पुरनका चौराहा कें चीरैत दूर धरि पसरल फ्लाई- ओवर ,
सड़कपर दौगैत डीटीसीक बस , मर्सिडीस ,बी एम् डव्लू, होंडा, आ ह्युन्दाई !
आ, चाकर- चौरस सड़कक कातमें फुटपाथ पर बैसलि,
नान्हि टा रीता , गीता , सरिता , सबिता वा आन कोनो अनामा छौड़ी !
संपूर्ण शहर आ दुनिया कें तौलैत !
नान्हि- नान्हि टा तरहत्थी पर चारि टा कैंचा !
खोंछि में एक मुट्ठी मकैक लावा ,
आगू में किताब- कापी - सिलेट -पेंसिल नहिं , मनुक्ख कें जोखैवाला छोट-सन , वेइंग-मशीन !
मुदा किएक नहिं ककरो देखबा में अबैत छै नान्हिटा फूल,
आ कतहु दूर में मखरैत, वा गन्हैत, चकेठ्बा मूल,
जे दूर सँ रखने रहइए सबटा आमद पर दृष्टि ?
किएक , तं, रीता , गीता , सरिता , सबिता वा आन कोनो अनामा छौड़ी छिएक तं ओकरे सृष्टि !
हमहूँ जाइत छी, प्रतिदिन , ओम्हरे बाटें, झटकारने,
माने,
कदाचित ! पैर नहिं ठेकि जाय ओहि छौडिक तराजुमें !
खसि ने पड़ी धडाम !
मुदा, ऊपर दिस सतत गतिमान हमरा लोकनि ,
जे प्रतिवर्ष करैत छी संविधान में संशोधन ,
जाहि सँ बनि सकय सुदृढ़ समाजक आधार,
किएक नहिं तकैत छी -
नेना- भुटका, छौड़ी -मौगीक पयर तर सँ सतत ससरैत भूमि,
जे ने ओकरा होमय दैत छै गतिमान ,
आ ने समाज कें द पबैत छै सुदृढ़ आधार ?
कीर्तिनाथक आत्मालाप, आत्ममंथनक क्षणमें हमर मनक दर्पण थिक. 'Kirtinathak aatmalap' mirrors my mind in moments of reflection.
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