गुरुवर स्व. जीव नारायण दास
सनातन काल सं गुरूक महिमामें बहुत किछु कहल गेल छैक . सारांश जे मनुष्यकें आँखि स्वतः भेटैत छैक , किन्तु दृष्टि गुरु दैत छथिन . हमरा लोकनिक बाल्यकालमें जखन शिक्षा बेच-बिकिनक वस्तु नहिं रहैक , समाजमे कुशल गुरुक बड सम्मान होइनि . हमरा लोकनिक दलानपर कोनो शिक्षकक डेरा नहिं रहनि आ ट्यूशन पढ़बाक ने उपाय छल आ ने ट्यूशन पढ़बके नीक बूझल जाइत छलैक . तें हमरा लोकनि पूर्णतया स्कूलक शिक्षकपर निर्भर रहैत छलहु . तें , जे किछु सीखल , जे किछु गुनल सबटा गुरुएक देन थिक . स्कूली शिक्षाक एगारह वर्षमें कतेको शिक्षक भेटलाह . सबसं किछु ने किछु सिखलहु . किन्तु , कांच वयस आ जिज्ञासु मनःस्थिति में जे शिक्षक विद्यार्थीमें जिज्ञासा जगेबामें सफल होइत छथि छथि आ विद्यार्थिक जिज्ञासाक समाधान करैत छथि ओएह शिक्षक छात्रक आदरक पात्र होइत छथि. एहन शिक्षककें छात्र कोना बिसरि सकत . गुरुवर जीव नारायण दास एकटा एहने व्यक्तित्व छलाह .
१९६७ ईसवीमें जहिया हम महादेव-पूरण टिबरेवाल उच्च माध्यमिक विद्यालय , झंझारपुरमें आठवां वर्गमें नाम लिखओने रही, सिमरा निवासी स्व . जीव नारायण दास ओतय प्रधानाध्यापक रहथि .कद आ बान्हमें मध्यम ,रंगमें पिण्डश्याम,व्यवहारमें अनुशासित आ मृदुभाषी; हेड-मास्टर साहेब सबहक प्रिय रहथि .विद्यार्थी सबकें नेना जकां बुझथिन आ पढ़यबामें सबहक सुधि रहनि . अंग्रेजी साहित्यक गहन अध्ययन रहनि आ मैथिली लिखबाक रूचि रहनि . रामनारायण शास्त्रीकेर लिखल पुस्तक 'भक्त आओर भगवान' केर .हुनकर (जीव नारायण दासक ) मैथिल अनुवाद हमरा लग एखनहु अछि. पछाति आओर किछु प्रकाशित भेलनि कि नहिं, से बूझल नहिं. मुदा, हेड-मास्टर साहेब हमरा लोकनि कें अंग्रेजी आ मैथिली साहित्य पढ़ाबथि . साहित्य पढ़बैत -पढ़बैत ओ अनायास बाइबिल आ शेक्सपियरक धरि पहुंचि जाथि . देहातक स्कूल में तहिया कुशल शिक्षक भेटब कठिन रहैक . मुदा हमरा लोकनिक स्कूल ओहि मामलामे भाग्यशाली छल . जीव नारायण दासक संग पंडित बनखंडी मिश्र , मदनेश्वर ठाकुर आ महेश्वर सिंह सन कुशल शिक्षक लोकनि रहथि . हुनके लोकनिक छत्र-छायामें टिबरेवाल स्कूल शिक्षाक क्षेत्रमें सम्पूर्ण इलाकामे सुपरिचित छल .
मुदा, हमरा जीव नारायण दास किएक मन पड़ैत छथि ? हमरा जनैत ओकर एके टा कारण छैक : मास्टर -साहेबक जीवने हमरा लोकनि ले आदर्श जीवन पद्धति उदहारण छल . जे सिखाबथि , सेह करथि . कहब आ करबमें कनेको भेद नहिं . मास्टर साहेबक इएह गुण स्कूल छोडलाक चौवालीस वर्ष बाद हमर स्मृति मास्टर साहेबकें अमर बनौने छनि. हाल में हमर एकटा कश्मीरी सहकर्मी एकटा दोहा सुनौलनि :
गुरु कुम्हार सिख कुम्भ है , गड़-गद काढ़े खोट ,अंतर हाथ सहार दे , बाहर बाहे चोट .
हमर हेडमास्टर साहेब, गुरुवर जीव नारायण दासजी, एहने कुम्हार छलाह . सादर नमन .
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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.