Tuesday, May 26, 2015

एहि बेरुक पटना यात्रा : दू टा विन्दु , दू टा विचार



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‘पेपरक छपाइ एतेक मेंही होइत छैक जे वृद्धले पढ़ब असम्भव ' - पंडित गोविन्द झा ’

पटना जाइत छी तं सुप्रसिद्ध साहित्यकार  पंडित  गोविन्द झाकें यदा-कदा भेंट करैत छियनि. एहि बेर हुनका सं भेंट करय गेलहु, तं, हुनका लाठी हाथें चलैत देखलियनि. हुनकहिं शब्द में , ‘ आँखि झलफल, हाथ थर-थर , पयर लट-पट .... ‘. सब किछु वृद्धावस्थाक दोष . तथापि गोविन्दबाबूक स्मरण ओहिना स्पष्ट छनि, तर्क-शक्तिक धार एखनहु नव पिजाओल चक्कू सं तेज छनि, आ वाणी सुस्पष्ट छनि. हम अपना संग अपन लिखल किछु कथा सब ल गेल रही. हमरा गौरव अछि , गोविन्द बाबू हमर कथा संग्रह ‘ किछु नव गप्प, किछु पुरान  गप्प‘ केर समीक्षा लिखने रहथि आ ओहि संग्रहक कथा ‘ किछु नव गप्प, किछु पुरान  गप्प‘ केर विशेषतः प्रशंसा केने रहथि . एहू बेर कथाक पांडुलिपि हमरा संगमे छल. पुछलियनि, अपने कही तं ई ( पाण्डुलिपि ) अपने लग छोड़ने जाइ .’ गोविन्द बाबू कहलनि, झलफल आँखिक दुआरे पढ़ब कम भ गेले. इन्टरनेट पर पढ़ि लैत छी . हम कथाक पाण्डुलिपिक सॉफ्ट-कॉपी हुनकर लैप-टॉपमें लोड क देलियनि. गोविन्द बाबू गप्पक क्रममे कहलनि, ‘दुनू आँखिकमें बाम आँखि कनेक बेसी ख़राब अछि, दाहिना सं काज चलैत अछि. एखनधरि मोतियाविन्दुक ऑपरेशन नहिं  भेले. डाक्टर कहैत छथि, एखन जतबा सूझैत अछि , ऑपरेशन सं ताहि सं बेसी नहीं सूझत. पहिने पेपर – समाचारपत्र में समय बीति जाइत  छल . मुदा, पेपरक छपाइ एतेक मेंही होइत छैक जे पढ़ब असम्भव. यद्यपि, पेपर–समाचारपत्र पढ़निहारमें बेसी संख्या  बूढ़-बूढ़ानुसेक  छनि तथापि पेपर छपाइकाल  पेपर –समाचारपत्रक प्रकाशक पेपर पढ़निहारक एहि पैघ वर्गकें बिसरि जाइत छथि.’
सत्ये. अमेरिकामें देखने रहियैक, ‘रीडर्स डाइजेस्ट’ पत्रिका मोट छपाइबाला संस्करण सेहो प्रकाशित करैत अछि . कमजोर आँखिक लोककें ताहि सं पढ़बामे सुविधा होइत छैक . मुदा, हमरा लोकनि  वृद्ध लोकनिक प्रति  किएक उदासीन छी ! जीवनक अवधि बढ़तैक तं देखब–सुनब कम हयब स्वाभाविक छैक. समाजकें ई नहिं  बिसरबाक थिक . सोचैत छी, बच्चा, बूढ़, वयस्क , नारि , विकलांग केर खियाल जं  अपन समाज नहिं रखतैक तं अओर कोन उपाय छैक .  

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‘नहीं भी लिखने आता है, सर सबको पास कर देते हैं ’

कतबो कानून बनौ समाजमे परिवर्तन तखने औतैक जं समाज परिवर्तनले दृढ़संकल्प हो. अन्यथा, कानून, कानूनक किताबे धरि सीमित रहत. एहने किछु अनुभव हमरा एहि बेरुक पटना यात्रा में भेल. प्रसन्नताक विषय थिक,एखनुक युग में  सर्वशिक्षाक अभियान जोर पकड़ने छैक. मुदा, ई अभियान लक्ष्य  प्राप्तिमें कतेक धरि सफल भ रहल अछि से बड़का प्रश्न थिक . राज्य सरकारलोकनि  बढ़ि-चढ़िकय अपन-अपन उपलब्धिक गाल बजेबा में तत्पर छथि . मुदा  चुनावक समयक  बड़का-बड़का पोस्टर, सरकारी आंकड़ा आ समाजक उपलब्धिक बीचक खाधिकें पाटि नहिं  पबैछ . सरकारी प्रचार आ पोस्टरक खर्चा तं  जनता  बहन करिते  अछि. सरकारकें आंकड़ाले बेसी किछु करय नहिं पड़ैत छैक. स्कूलक एडमिशन, पढ़ाइ, परीक्षा, आ सरकारक उपलब्धिक आंकड़ा  सबटा कागजहिं पर बनैत छैक. जहां-तहां ई गप्प सुनैत तं छियैक . मुदा, पटनाक हालक यात्रामें सरकारी दाबाकें पुनः ध्वस्त होइत देखलहुं . पटनामें घरमें काज केनिहारि खबासनी प्रतिदिन अपन बेटीकें संगे आनि काजमे लगा दैत छलैक, से देखियैक . हमरा बड कोनादन लागय . हम कतेक बेर कहलियैक , एना बच्चाक पढ़ाइ कोना चलतैक, एकरा स्कूल जाय दियौक . मुदा, ओ किएक सुनतिह . खबासनीके बेटीसं जेठ अओर बेटालोकनि  छथिन.  मुदा, झाड़ू-बुहारू काज बेचारी बेटिये करथु . जे किछु . एक दिन ओही बच्चाकें, सीता-गीता-कमला-विमला, नाम जे किछु होउक, हम अपना लग सोर  केलियैक .  कहलियैक, चिट्ठी लिखय अबैत छह ? छौडी मुसिकी देबय लागल . हम कहलियैक, बैसह . छौडी लगमे बैसि गेल . हम रुलदार कागजकेर एकटा पन्ना आ पेन्सिल अनलहु आ बच्चाकें दैत कहलियैक, ‘तोहरा कापी किनबाले पचास टाकाक काज छह . मायक नामे चिट्ठी लिखह , पचास रुपैया कापी किनबा ले चाही .’बच्चा तुरत एक पांती में चिट्ठी समाप्तकय हमरा हाथमे पकड़ा देलक ; सारांश में लिखल छलइ ,
      ‘ममी , कापी खरीदने के लिए पचास रुपया दो ‘
हिज्जेक अशुद्धि तं छोडिए  दियअ . हम पुछलियैक चिट्ठी नहिं लिखय अबैत छह ? बच्चा फेर हंसय लागलि . हम बच्चा कें लग में बैसा चिट्ठी लिखबय लगलहु. पत्रकेर डिक्टेशन  सात-सं-दस पंक्तिमें समाप्त भ गेलैक . मुदा, अनगनित अशुद्धि. सतमा वर्गक छात्रा. पत्र धरि लिखय नहिं अबैत छैक. हम हताश भ गेलहुं . हमरा लोकनिकें पांचम वर्गमें आचार्य रामलोचन शरणकेर ‘पत्र-चन्द्रिका’क  माध्यमे चिट्ठी लिखब सिखाओल गेल छल . ओहि युग में प्राथमिक विद्यालय में सातवां पास- ‘ मिडिल ट्रेंड’- शिक्षक लोकनि रहथि . ओ लोकनि कम-सं –कम भाषा आ गणित में अवश्ये दक्ष होथि. आइ धरि बी ए , एम ए- शिक्षा-मित्र सं ल कय स्थायी शिक्षक धरि – मडुआक दोबड उपलब्ध छथि .  मुदा, ई सातम वर्गक कन्या अपन मायक नामे पत्र धरि नहिं  लिखि सकल. स्वाइत सबतरि सब सर्टिफिकेट आ परिचय पत्र अशुद्ध छपैत छैक.  हम बच्चाकें पुछलियैक, ‘पढ़ैत नहिं छहक ? सातम वर्ग में छह !’ छौडी फेर हंसय लागलि, लजाइत बाजलि ,नहीं भी लिखने आता है न , सर सबको पास कर देते हैं !’
हमरा सरकारक आंकड़ा आ  सर्वशिक्षा अभियानक सफलता,  दुनूक, सत्यता बुझबा योग्य भ गेल . नहिं  जानि 100 प्रतिशत  स्कूल एनरोलमेंट आ शत-प्रतिशत साक्षरताक आंकड़ा कहिया धरि शत-प्रतिशत शिक्षित नागरिकक लक्ष पूर्ण कय सकत .       

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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

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