Friday, December 23, 2016

रजांग-ला केर बाट पर-2

पेंगोंग-सो झीलक बाट पर
कीर्तिनाथ झा
रजांग-ला शहीद स्मारककेर दर्शनक पछाति ओहि दिन आ राति चुशूलमें विश्राम भेलैक. समुद्र तल सं 14300 फुट सं बेसीक ऊंचाई. पूब-पश्चिम दुनू दिस ऊँच-ऊँच पर्वतमालाक बीच सपाट मैदान. सितम्बरक मास. राति में जाड़ तं छलैके. मुदा, ओढ़ना-बिछाओनक अभाव नहिं. तथापि हाई-एलटीच्युडक इलाकामें अनिद्रा, अभूख, आ चिंताक शिकायत आम थिकैक. परिश्रम एहि सब रोगक अचूक औषधि थिक. सैनिकक जीवनमें तकरो  अभाव नहिं. मुदा, व्यक्तित्व आ मनोबलक असरि तं स्वास्थ्य पर पड़ते छैक. संयोगसं हमरा लद्दाख़क अढ़ाइ वर्षक प्रवासक बीच हाई-एलटीच्युडक  कोनो दुष्प्रभाव सामना नहिं करय पड़ल.                                                             आइ तांगसे गाम स्थित फील्ड-एम्बुलेंस (युद्ध क्षेत्रक  स्वास्थ्य-सेवा प्रतिष्ठान ) में स्कूली नेना सबहक आँखिक जांच करबाक अछि. सुदूर क्षेत्रमें स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करायब भारतीय सेनाक पुरान संस्कृति थिकैक. तें, भोरहि हमरा लोकनि तांगसे ले विदा भेलहुँ. ताधरि चुशूल उपत्यकामें सबतरि भोरुका रौद पसरि आयल रहैक. बाट काते-कात गौंआ सब उठि गाय-गोरु आ माल मवेशी में लागल छलाह.
बकरीक बाड़ा: चुशूल
पहाड़ी इलाकामें लोक सबेर उठैत अछि आ सुतितो अछि सांझे राति. नेपाल में, उपहासमें, लोक कहैक, सूर्य अस्त- नेपाल मस्त. आइ सं पचास वर्ष पूर्व मिथिलांचलहु में इएह हाल रहैक. सूर्योदय सं पहिने उठब, आ पहिले सांझ भोजन-भात सं निश्चिंत भ गाम तेना निशब्द भ जाइक जे रातिक नौ बजे धरि लोक एक नीन मारि लैत छल. प्रायः,  दिन रहैत सूर्यक रोशनी में काज निबटेबाक (daylight-saving) ई साविक व्यवस्था रहैक. मुदा, लद्दाख़में तहियाक मिथिलांचलक बाध्यता नहिं छैक. एतय बिजुली
आ सड़क सबतरि छैक. दूर-दराजहुमें  शिक्षा व्यवस्था छैक. तें, देशक केंद्रसं  लद्दाख़ दूर भले हो, सरकारी व्यवस्था एतय आन ठाम सं बीसे छैक, उन्नैस नहिं. एतय माल-जालले मालकघर-गोठुलाक- जगह  लोक पाथरक बाड़ा बना लैछ. बकरी-भेंडीकें भीतर केलक आ फाटक लगा देलक. मच्छर- मांछी-डांसकेर प्रकोप नहिं. तें, घूड़-धुंआंक परिपाटी नहिं; जाड़ एतेक जे घुड़ लग बाहर बैसब असम्भव. ततबे नहिं. गाछ-वृक्ष कतहु छैक नहिं,जारनि कतय पाबी. गोबर-करसी तं चुल्हामें जरि जाइछ. सुखायल घास-पात मवेशीक चारा भ जाइछ; जाड़ मासमें तं माल-जाल सुखायले घासपर गुजर करैछ. तें, भरि गर्मी किसान लोकनि घरक छातपर घास पात जमा करैत छथि , जे जाड़ मास कहुना कटि जाय. जाड़ मासमें हरियर घासले माल-जाल एतेक लल्ल भ जाइछ, जे देखलियैक, भेंडी-बकरी सब जीबैत गाछक छालकें दांत सं छीलि खा लैछ. तें, लेह केर इलाकामें सड़कक कातक गाछक निचला 2-3 फीट हिस्सा पर टिन ठोकल देखलियैक. ई कनेक विषयांतर भेल. मुदा, एहि सं ई अवश्य बुझबामें आओत जे हाई-एलटीच्युडक इलाकामें प्राणिमात्र कोना गुजर करैछ. करीब 1 घंटा यात्राक बाद पेंगोंग-सो झीलक दर्शन भेल.
पेंगोंग-सो झील
ई दर्शन साधारण नहिं तें कनेक धैर्य करू. कहैत छी. सड़क किछु दूर झीलक कछेरे-कछेरे चलैछ. हम एहि सं पूर्व प्रायः तीन बेर एतय आयल छी. मुदा, चुशूल बाटें ई पाहिले यात्रा थिक. तें, एहि बेर झील केर दोसर आ वृहत फलक केर दर्शन भेले. ई सब अवसर सेनाक नौकरीक अमूल्य बोनस थिक.  आब कनेक  पेंगोंग-सो झीलक गप्प करी . सत्यतः आब अनेको
फिल्ममें एहि झीलकेर आस पासक इलाका आबि चुकल अछि. तें , सम्भव अछि बहुतो लोक पेंगोंग-सो झीलक चित्र देखने होथि. जिज्ञासु ले विकिपेडिया पर कोन वस्तु परिचय नहिं छैक ! तथापि एतबा अवश्य कहब, मौका हो तं एकबेर पेंगोंग-सो झीलक कछेर पर आउ अपना आँखिए देखू आ अनुभव करू जे संसारक परिचित आश्चर्यसं आगुओ आओर कतेक आश्चर्य जहां-तहां छिडियायल छैक ! 120 कि. मी. लम्बा पेंगोंग-सो झील कतेको अर्थ में अजगुत अछि. आसमान छूबैत उन्नत हिमालयक शिखरसं पघिलैत बर्फ़क स्वच्छ आ निर्मल जलसं पूरित एहि झीलक नोनगर पानि मनुखक हेतु पीबा जोग नहिं. झीलकेर पानि एतेक स्वच्छ आ पारदर्शी छैक जे जतय झील कम गहिंड छैक, झीलक सतह परक बालु आ पाथर अयना जकां झलकैछ. तथापि, झीलमें जीव-जंतु नदारद. तथापि एहि झीलक नीलम-सन पानिक रंग अवर्णनीय छैक. हाई-एलटीच्युडक इलाकाक निर्मल आकाश, विरल वायु, आ चमकैत रौदमें नील पानिक प्रतिपल बदलैत दर्जनों रंगकें ने कैमरा पकडि सकैछ, ने एल इ डी मोनिटर ओकरा देखा सकैछ; एहि झीलक सुन्दरता केवल मनुखक आँखिक अनुभवक वस्तु थिक, जे देखि सकैत छी, जकरा सं चकित भ सकैत छी. तें, यात्री सब झीलक  कछेर पर किछु काल बैसथि, झील केर रंग-रूपक आनंद लेथि आ एहि अपरुप सौन्दर्यकें स्मरणक पौती  में जोगाबथि. पेंगोंग-सो झीलक उत्तर पश्चिम कोन पर सेनाक इंजिनीरिंग कोर केर एकटा दल रहैछ. इएह लोकनि हमरा लोकनिकें ले नौका विहारक व्यवस्था केलनि. सामान्य पर्यटकक लेल ई सुविधा उपलब्ध नहिं. कारण, ई झील भारत-चीनक बीचक विवादित क्षेत्रक बीचमें पड़ैछ ; झीलक उत्तर -दक्षिणक  करीब 40 कि. मी. लम्बाई पर भारतक अधिकार छैक आ पूब-पश्चिम अंशक करीब 80 कि. मी. लम्बाई पर चीन अधिकार जमौने अछि. झीलकेर पुबरिया कछेर धरि चीन जबर्दस्ती सड़क सेहो बनौने अछि. 1962 केर युद्धसं पूर्व झीलक पुबारि पारक किछु इलाका पर भारतीय सेनाक अधिकार रहैक. किन्तु, युद्ध काल में झीलकें पार करैत भारतीय चौकी धरि माल-असबाब पहुँचायब आ ओकर  सुरक्षाक करब ततेक कठिन साबित भेलैक जे झीलक पुबारि पारक चौकी पर तैनात कतेक सैनिक लोकनि अंततः अपन  प्राणक आहुति देलनि . पेंगोंग-सो झीलक उत्तर पश्चिम कोन पर सेनाक इंजिनीरिंग कोरक विश्राम-स्थलक लगहिं, पछबारि कात जे पहाड़ छैक तकरा लोक गार्नेट हिल कहैत छैक. यत्र-तत्र पसरल पाथरक ढेप सब में गार्नेट पाथरक कनी सब देखबामें अवश्य आओत. दू-चारि ढेप हमहूँ उठाओल, की पता किछु भेटय. किन्तु, किछु भेटल नहिं. एहि सैनिक विश्राम-स्थल सं पच्छिम मुहें सड़क, लुकुंग गाओं दिस जाइछ. लुकुंग गाओं लग दुनू कातक पहाड़ एक दोसराक लग सहटि अबैछ आ चुशूल उपत्यकाक चाकर-चौरस भूमिक  बनिस्बत ई भूमि संकीर्ण दर्रा जकां भ जाइछ. इएह बाट तांसे-दुर्बुख, आ चांग-ला पास (17350 फुट) पार करैत होइत लेह धरि जाइछ. स्पष्ट छैक, 1962 भारत-चीन युद्धक समय सैनिक सुरक्षाक दृष्टिए ई बाट अत्यंत महत्वपूर्ण रहैक. तें, सड़क सं उत्तरक समतल भूमि कटैया तार सं घेड़ल-बेढ़ल छैक. पुछला सं पता चलल, ई क्षेत्र बारूदी सुरंगक क्षेत्र थिक जे युद्धकाल में भारतीय सेना सड़कक सुरक्षाले बिछओने छल. युद्ध समाप्त भेल. आधा शताब्दी सं लम्बा अवधि बीतल. मुदा, माइन-फील्ड जीविते अछि - मारुख आ निर्दय. जहां ओतय पयर पड़ल कि, धमाका ! विनाश आ हाहाकार . सुनैत छियैक, युद्ध आ गृहयुद्धमें, युद्ध भूमिमें प्रतिद्वन्दी सब जे माइन-फील्ड बिछ्बैछ, से पीढ़ी-दर-पीढ़ी मनुखक हत्या आ विकलांगताक कारण बनैछ. बुझबाक थिक, माइन-फील्ड बिछायब आ साफ़ करब दुनू खतरनाक आ श्रमसाध्य काज थिक. तें, युद्धक समय जे माइन-फील्ड बिछाओल गेल तकरा साफ़ के करत ? पछाति कतेक ठाम माइन-फील्ड पर जंगल-झाड़ जनमि जाइछ, आ मारुख इलाका अनचिन्हार भ जाइछ.  बाढ़ि-पानि, भू-स्खलन, आ माटिक जोत-कोड सं बारूदी सुरंग सब अपन स्थान सं ससरि दूर-दूर धरि पसरि जाइछ, नदी-नाला-समुद्र धरि बहि जाइछ. तें,एखन धरि, द्वितीय विश्व युद्धक सुरंग सब भेटितो छैक आ फटितो छैक. अस्तु, 1962 क युद्धमें चीनी सेना झील सं पश्चिम दिस तं नहिं आबि सकल, किन्तु, ई माइन-फील्ड एखनो मुंह बिचकौने, नागफनी-जकां बाटक कातमें  अछूत-सन  पड़ल अछि आ भयभीत यात्री एहि मारुख भूमि कें दूरहिं सं गोड लगैछ आ काते-कात आगू बढ़ि जाइछ. आब मानव-विध्वंशक माइन (anti-personnel mine)  केर विरुद्ध अनेक अंतर्राष्ट्रीय सन्धि भेल अछि, किन्तु, लगैत नहिं अछि, विश्व भरि में निरंतर बढ़इत द्वन्दक युगमेें अमर-कन नागफनी हठे उकन्नन हयत. हमरा लोकनि करीब 10 बजे तांगसे फील्ड एम्बुलेंस पहुँचलहुं. संगबे महिला लोकनि विश्रामले अफसर मेस दिस गेलीह आ हम फील्ड एम्बुलेंस में स्कूली-बच्चा लोकनिक आँखि जांच में लागि गेलहुं. 
तांगसे में स्कूली नेना सबहक संग
तेसर दिन. लेह ले विदा. बाटक दाहिना कात दुर्बुख गाम छैक, किछु दूर में शयोक गाम अबैत छैक. ओही बाटें पहिने, उत्तरमुँहे, एकटा खुरबटिया दौलतबेग ओल्डी इलाका होइत कराकोरम पास आ कासगार(चीन) धरि जाइत छलैक. ई बाट ऐतिहासिक सिल्क-रूट केर फीडर छल. बाट दुर्गम आ भूमि बंजर छैक. 1962 क जाड़में भारतीय सेना ओहू इलाकामें बलिदान देने छल. अकसाई-चिन ओएह भूमि थिकैक जकरा सम्बन्ध में नेहरु कहने रहथिन, ' एहि भूमि में एकटा दूबिओ नहिं जनमैछ '. एखन तं भारतीय वायु-सेना क बड़का मालवाही जहाज़ हर्कुलिस सेहो ओतय उतरैत अछि. जे किछु. दुर्बुख सं पश्चिम मुंहक सड़क क्रमशः चांग-ला क ऊंचाई धरि चढ़इछ. बाटमें ठाम-ठाम हरियरी आ चारागाह सेहो छैक. एतय भेंडी-बकरीक तं कम, मुदा याक (चंवरी गाइक) पालन बेसी होइछ. पानिक श्रोत लग गलैचा जकां पसरल अजस्र घास याक खूब चरैत अछि. जाड़क मासमें इएह घास रौदमें सुखायल, छिलल घास आ पोआर -सन भ जाइछ. पुनः, गर्मीमें जमल बर्फ़ जखन पानि बनि पोषक तत्व बहबय लगैछ तं  भूमि पर पोआर-सन  सुखायल-स, दूबि जे पहिन कतहु-कतहु हुलकी दैछ, सेह किछुए दिन में , चतरि हरियर गलीचा बनि जाइछ.  माल-मवेशी एतुका अर्थ-व्यवस्थाक एहन अभिन्न अंग थिक. एतय याक-भेंडी-बकरीक शरीरक सकल उत्पाद  दूध-घी-छेना-मासु,गोंत-गोबर सब प्रयोग में आबि जाइछ. हाड़-सींग-केश धरि दूरि नहिं जाइछ. एकबेर पेंगोंग-सो झीलसं लेह केर यात्रामें अहिना स्थानीय जन-जातिक आवास धरि गेल रही. याक केर केश सं बनल तम्बू. ओही तम्बूमें जीवन-यापनक सब उपादान. भानस-भात, बच्चा-बुतरू, अन्न-पानि, बैसक, बिछाओन. याकक केशक तम्बू  देखिते हमर मनक यायावर जागि उठल छल . द्वारि पर पहुँचलहु तं घरवारीकें हाक देबाक कोनो काज नहिं. एतुका आवासमें ने अंगना छैक, ने दालान . ने खरिहान , डीह-डाबर. जतहि धड़, ततहि घर. तम्बू भेल घरवारीक संसार. लगक पानि श्रोत भेल पोखरि-इनार. घासक अनन्त विस्तारमें, नीचा सं ल कय  पहाड़क शिखर धरि, ताकि-ताकि कय माल-जाल घास चरैछ. जतय जगह भेटय, नेना-भुटका खेलाइछ. माल-जाल कें दुहबाक बेर किसान कें कतेक समय लगतनि तकर कोन ठेकान. कहल जाइछ, जहां-तहां बौआइत याक कें एकठाम जमा करब ततेक कठिन छैक जे 1962 क युद्ध में भारतीय सेना भार-वाहनमें ई बड़का बाधा साबित भेल छलैक; ओहि समय में एहि इलाका में पीच रोड तं रहैक नहिं. सब किछु, घोड़ा-खच्चर-याकहिं पर लादल जइतैक. एतय किछु दूर पर नुब्रा उपत्यकामें तं ऊंटपर सेहो भारवाही होइत छलैक. ओतय एखनहु ऊंट भेटत. मुदा, पहाड़ में यत्र-तत्र बौआइत याक अस्तबल में बान्हल घोड़ा नहिं थिक जे खुट्टा पर सं खोलि आनू आ कसू सवारी. प्रवृत्तिए याक जंगली सांढ़ थिक, जकर नियंत्रण ले कल-कौशल आ अनुभव दुनू चाही. आ जखन काज हो, ओकरा ताकू , आनू आ दुहू, सवारी करू. खुट्टा पर बान्हल ओकरा चैन नहिं . जे किछु. ओहि बेरुक यात्रा में अपन आवास लग हमरा सब कें देखि, गृहपति पारंपरिक 'जूले' ( नमस्ते-स्वागत-शुभकामना) सं स्वागत केलनि ; सैनिक लोकनिक एम्हर अद्भुत आदर छैक. गृहपति बैसक अनलनि आ  गृहणी तुरत नोनगर चाह बनौलनि; नोनगर चाह एतुका अमृत थिकैक. एतेक सरलता आ एतेक आदर. हम चाह पीबि गेलहुं . 
याक केर केश सं बनल आवास
दूरस्थ प्रदेशक एहेन आवास देखबाक कौतूहल सं हमर कन्या आ पत्नी कनेक काल तम्बू में बैसलीह तं अवश्य, किन्तु, शिघ्रे किछु अजीब बेचैनीक  अनुभवक कारण तुरत टेन्ट सं बहरा गेलीह. लेह-लद्दाख़-तिब्बत केर रहस्य-रोमांच-तन्त्र- आ हवा केर तरगं पर उड़इत लामाक अनेक कथा पढ़ने आ सुनने छी. किन्तु, अपना कोनो प्रत्यक्ष अनुभव नहिं. तें, एहि लद्दाखी दम्पतिक तम्बू में कोन पराभौतिक शक्तिक प्रभाव छल हेतैक जकर अनुभव, एके समयमें, एके ठाम  भिन्न-भिन्न लोक कें भिन्न-भिन्न रूपें भेल हेतैक, कहि नहिं सकैत छी. एहि बेर हमरा एहि सब ले समय नहिं तें आगू बढ़लहु. दुर्बुख सं चांग-लाक यात्रा में करीब 2 घंटा लागल हयत. आन  सब कोनो पहाड़ी पास जकां एतहु बाबाक मन्दिर , मिलिटरी पुलिस केर चेक-पोस्ट, आ चाह-पकौड़ीक स्वागत.
चांग-ला पास
हम एहि बाटें कतेक बेर यात्रा केने छी . तें एहि बेर फोटो-विडियो नहिं . हमर संगबे पर्यटक लोकनि फोटो घिचबौलनि. आ शिघ्रे जिंगराल-शक्ति गाओं-कारू होइत लेह केर बाट धयल . कोन ठेकान झटमें रूसनिहारि नारि जकां चांग-लाक मौसमक कखन मूड बदलि जाइक. बरखा-बर्फ़ शुरू भ जाइ, भू-स्खलन भ जाइ, चांग-ला बन्न भ जाय आ हमरा लोकनि ने एम्हरुक , आ ने ओम्हरक भ जाइ. एहि बाटें अबैत जाइत सब यात्री एहि पहाड़ सब कें भय-मिश्रित आदर सं देखैछ, सावधानी पूर्वक आगू बढ़ि जाइछ. कारण कनिए असावधानीक कारण प्राकृतिक विपदा , मारुख सड़क वा ऑक्सीजनक कमी कखन जान ल लेत, कोन ठेकान !                      



Friday, November 18, 2016

रजांग-ला केर बाट पर

18 नवम्बर पर विशेष 
अविस्मरणीय शौर्यक भूमि चुशूल में
कीर्तिनाथ झा
शहीदोंके मज़ारोंपर लगेंगे हर बरस मेले
वतनपे मरनेवालोंका यही बांकी निशां होगा !
शहीद अशफाक़उल्ला खां केर एहि उक्तिमें सत्य आ बिडंवना दूनू छैक. शहीद लोकनिक स्मारकपर माल्यार्पण सेहो होइछ, श्रद्धांजलिओ देल जाइछ, आ शहीदलोकनिकें लोक बिसरियो जाइछ. कतेक बेर तं एहनो होइछ, जाहि वीरकें सैन्य-इतिहासमे उदात्त-चरित मानल जाइछ, जनसामान्यमें ओ लोकनि पूर्णतः अपरिचित रहैत छथि. ततबे नहिं, अधिकतर युद्ध सीमा क्षेत्रक दुर्गम भूमिमें आ विषम परिस्थितिमें लडल जाइछ. तें, जनसाधारण देशक भीतरक युद्ध स्मारक तं देखैत छथि, मुदा ओ भूमि आ परिस्थिति जतय सैनिक अपन प्राणक आहूति दैछ, सामान्य नागरिक लोकनिक चेतना धरि नहिं पहुंचि पबैछ. चलू, अजुका यात्रामें एहने तीर्थ-पूर्वी लद्दाख़क रजांग-ला स्मारक, चुशूल चली. सत्यतः, पर्यटनक दृष्टिए लद्दाख़में रजांग-ला स्मारक वा चुशूल दर्शनीय स्थल सबहक सूची में नहिं गनल जाइछ.तें,केओ भारतीय टूरिस्ट ई  स्मारक देखबाले लद्दाख़ जेताह से सन्देहक विषय !  हम सेहो ड्यूटीक क्रममें चुसूल होइत दुर्बुख गाम विदा भेल छी. रास्ता लेह सं पूब मुँहे सिन्धु नदीक कछेरे-कछेरे सिन्धुक उद्गम- मानसरोवर- दिस जाइछ. आब भारत-चीन सीमा विवादक कारणें मानसरोवर जयबाक ई सोझ बाट बन्न छैक ; भारतक स्वतंत्रताक पूर्व लद्दाख़क व्यापारी लोकनि एहि बाटें तिब्बत जाइते छलाह. एखन ई बाट ओहि पर्यटक लोकनिक हेतु उपयुक्त थिक जे पूर्वी लद्दाख़क सीमा क्षेत्र 'चांगथांग' पठारक भूगोल, जलवायु, जनजीवन, आ वन्य-सम्पदाक  प्रत्यक्ष अनुभव करय चाहैत छथि. 'चांगथांग' इलाका तिब्बती पठार क समान अछि ; समतल-सन, पाथर आ बालु सं पाटल बंजर पहाड़ी मरुभूमि, अत्यन्त शुष्क वातावरण आ अचानक उठैत बिहाडि-सन बसात, भयानक ठण्ड. गाछ-वृक्ष नदारद. जीव-जन्तुक नामपर वनगदहा- कियांग , आ विलुप्त होइत तिब्बती हरिण-चिरु. चिड़इक नाम पर विभिन्न रंगक खंजन, आ सारस- ब्लैक नेक्ड क्रेन. आबादीक नाम पर घासक खोजमें सतत चलंत तिब्बत  आ लद्दाखक यायावर चंस्पा.  एहि बाटमें सिन्धुक संग रहबे करत किन्तु, भूमि आ नदी जेना एक दोसरा सं निरपेक्ष भ कय चलैछ, नदीक कछेरमें खेती-बाड़ी भरिसके भेटत. जे नदी ठाम-ठाम संकीर्ण स्थानमे तेज आ भयावह छैक सएह चाकर-चौरस इलाकामें झील-जकां  शान्त आ स्थिर भ जाइछ. तथापि जतहु नदी उत्थर छैक भीषण ठंढा जलक कारण सोझे नदी पार करब ने उचित ने आवश्यक.   पहाड़क शिखर सं बहैत पानि जाहि ठाम छोट-छोट नाला आ धारा बाटें आबि सिन्धु में खसैछ, जल बहावक वएह क्षेत्र भेल उर्बरा भूमि. ओतहि जन-जीवन आ मनुक्ख, हरियरी आ खेत-खरिहान भेटत. हँ, जाहि इलाकामें नीचा बहैत पानिकें निकास नहिं छैक ओतय अनेको झील भेटत. एहि झील सब में प्रमुख अछि, 120 कि.मी. लम्बा झील पेंगोंग-सो, सोमोरीरी, आ नोनक पारंपरिक श्रोत, सो-खार झील. पहिलुक जमानामें   सो-खार झीलसं स्थानीय लोक सब नोन उगाही करैत छल. तिब्बती व्यापारी सब लेह लग शक्ति गाओंमें झुण्डक-झुण्ड भेंडी ल कय अबैत छलाह आ ओत्तहि भेंडी सबहक केश आ नोनक अदला-बदली होइत छलैक आ बलिष्ठ तिब्बती भेंडी- चांग्लुक-नोन लादि कय तिब्बत आपस जाइत छल. एतुका ऊँच पहाड़ में जतय समतल भूमिक बासिन्दाले अपनो देह भारी बूझि पड़ैत छैक, एक-एकटा चांग्लुक पंद्रह किलो धरिक वजन उठबैत छल. भार उघबाले भेंडीक प्रयोगक ई प्रायः विरले उदाहरण छल. भारत- तिब्बत सीमा पर जहिया सं आवागमन आ व्यापार बन्न भ गेलैक तहिया सं लद्दाख आ तिब्बतक बीच ई अदला-बदलीक व्यापार इतिहास भ गेल.                                                                               लेह बस्ती पार केलाक बाद पहिल गाओं थिक थिक्से. तकर बाद शे नामक गाओं. शे गाओं में बाटक कातहि, जतय सड़क मोड़ लैछ, छोट-सन पहाड़ीक सड़क दिसक पक्खापर खोधल बुद्ध केर रेखा चित्र स्वतः आकृष्ट करत. बुद्ध तं अमर छथिए. मुदा, बुद्धक रेखाचित्र बनओनिहार अनामा कलाकार एहि पाथरपर अमर भ गेल छथि. लद्दाख़ में अहिना जहिं-तहिं इतिहास छिडियायल भेटल. थोड़ आबादी, बरखाक अभाव आ बंजर भूमि. एतय इतिहास हठे बिलाइत नहिं छैक. तें कतेको वर्ष पूर्व मृत पर्वतारोहीक आ जीव-जन्तुक  शव, माटिक भीतक  महल , अन्न-पानि सब कथूकें प्रकृति जोगाकय रखने रहैछ. एतय सड़क सं कनेक हंटि क, पहाड़ क ऊँचाई पर, शे गामक प्रासाद आ मन्दिर सेहो छैक, मुदा, तकरा देखबा ले बेसी समय चाही. एतयसं किछुए आगू सड़कक बामा कात खूब चाकर आ लम्बा क्षेत्र देखबैक. सुदूर भूत में ई कहियो जल बहावक क्षेत्र छल हेतैक. आब तं सब किछु सुखायल छैक. उबड़-खाबड़ भूमि, विभिन्न आकारक छोट-पैघ पाथरक अजस्र पिण्ड, छोट-पैघ स्तूप- छोरतेन जहां-तहां पसरल छैक. बौद्ध परम्परामें शुभ वा अशुभ सब सामाजिक अवसर पर स्तूपक स्थापना होइत छैक. ई स्तूप सब तकरे सबहक स्मारकक थिक. किछु आओर आगू गेलापर दाहिना दिस, सड़कसं कनेक हंटि कय बालुक चौरस मैदानक बीचमें छोट पहाड़ी पर स्ताकना विहार आकृष्ट करत. एखन दूर जेबाक अछि, तें, आगू चली. एतय सं आगू, लेह सं करीब 40 कि. मी. पूब, पहिल पैघ बस्ती कारू नामक सैनिक अड्डा थिक. कारूमें  सिन्धु सड़कक एकदम लग आबि गेल छैक. नदीपर  पूल पार कय हेमिस गाओंक  प्रसिद्द हेमिस बौद्ध विहारक बाट छैक. हेमिस बौद्ध विहारक गणना  लद्दाख़ सर्वाधिक संपत्तिशाली विहार सब म सं होइछ. विहार एतय सं दूर नहिं, किन्तु, सड़कक लग सं ने हेमिस गाम देखबैक आ ने बौद्ध विहार ! इएह थिकैक एहि हेमिस विहारक सुरक्षाक रहस्य. एखन हेमिस विहारक एतबे चर्चा. कारण, हेमिस विहारक गप्प कहबाले एकटा फूट लेख चाही.                                                                           कारू सैनिक अड्डाक आगू सड़क दू दिस भ जाइछ. बामाकातक सड़क शक्ति-जिंगराल आ चांगला पास होइत दुर्बुख आ तांगसे सैनिक अड्डा होइत पेंगोंग-सो झील धरि जाइछ. दाहिना कातक सड़कसं  एकटा बाट हिमाचल दिस फूटइछ आ सीधा सड़क किआरी-चुमाथांग-माहे होइत भारत चीन सीमाक अंतिम गाओं देमचोकक धरि जाइछ. देमचोक सं पहिने एही सड़क सं  सोमोरीरी झील, हानले आ चुशूल आ पेंगोंग-सो झील धरिक बाट फूटइत छैक. मुदा, पेंगोंग-सो झील जेबाले, ई बाट घुमान भेल. मुदा , हिमपातक कारण जखन सोझ बाट बन्न भ जाइत छैक ई बाट तखनो खूजल रहैछ. इएह थिकैक एहि सड़कक महत्व.                                                        हमरा लोकनिक जेना-जेना पूब दिस बढ़ि रहल छी पहाड़ी ऊँचाई क्रमशः बढ़ि रहल छैक आ तापमान स्वतः घटि रहल छैक. तथापि, एखन गर्मिक मास छैक तें जा धरि तेज बसात नहिं बहौक वा अचानक हिमपात नहिं होइक दिनमें उनी कपड़ाक काज नहिं. मुदा रातिमें ? रातिमें तं गर्मी चाहबे करी. रौद खसिते आ छाहरि होइते लद्दाख़ हाड़ हिलबयवला जाड़ ले नामी अछि; एतय रौद आ छाहरिक बीच तापमान अंतर 30 डिग्री सेंटीग्रेड धरि भ सकैछ !
बाटें-बाट जाइत-जाइत सड़कक काते-कात कतहु-कतहु पांच-दस घरक गाओं, चारि-छौ बच्चाक स्कूल सेहो नजरि पड़ल. तथापि, दूइए-चारि टा चटिया ने शिक्षकक मनोबलके तोड़इछ, आने  चारिए- छौ नेनाक स्कूल  विद्यार्थीए सब कें हताश करैछ.
हमरा लोकनि चुमाथांग में कनेक काल रुकलहु. एतय सं आगू माहे सं सोमोरीरी झील केर सड़क फूटइत छैक. दिहिना कात फूटइत कच्चा सड़कक बीचमें बैरियर देखलियैक; सोमोरीरी जेबा ले पहिने परमिट लेबय पड़ैत छलैक; आब तकर जरूरत नहिं. लद्दाख एबावला सामान्य पर्यटक सोमोरीरी झील नहिं जाइत छथि. भूगर्भ वैज्ञानिक, जीव-वैज्ञानिक, पर्यावरण आ वन्य-जीवनक गहन अध्येता, आ दुर्गम इलाका में स्वयं मोटर आ मोटर साइकिल चालकय घुमंतू roady लोकनिले ई झील विशेष आकर्षणक केंद्र थिक. सत्यतः, जं जनशून्य सं डेराइत नहिं होइ, लम्बा सड़क-यात्रा, रहस्य-रोमांच नीक लगैत हो आ शरीर स्वस्थ हो तं लद्दाखक परिदृश्य तं निर्विवाद अजूबा आ आकर्षक तं छैके ! एकटा गप्प आओर, मरुभूमितं राजस्थानहु में छैक. किन्तु, ऊँचाई आ जलवायुक कारण दुनू में कोनो समानता नहिं . 
             
                                                              चुमाथांग आ माहेक आगू सिन्धु घाटी बेस चाकर भ जाइछ. चांगथांगमें भूमि जतय चाकर आ फैल छैक, गहिंड स्थानमें पघिलैत बर्फ़क  जमाव स्वतः झील बना दैछ. एतहु दहिना कात छोट-सन आ झील में गोड बीसेक सिल्ली पक्षी हेलैत देखलियैक. पक्षीसबकें देखबाले कनेक ठमकलहु तं  दूर, पहाड़क काते -कात चरैत लद्दाख़क वनगदहा, कियांग, सबपर नज़रि पड़ल. एनमेन एहने वनगदहा गुजरातक कच्छ इलाका में सेहो पाओल जाइछ. हजारों मीलक दूरी आ एकदम विपरीत जलवायुक मरुभूमि में एके प्रकारक जंतु कोना पलैछ ? प्रकृतिक एहन आश्चर्यंनक खेलक उत्तर प्रायः जीव-वैग्यानिके द सकथि . लद्दाखी वनगदहा सब झुण्ड में चलैछ आ मनुक्खक बस्ती आ मनुखसं दूरे-दूर रहैछ. तें, एतुका लोक ले कियांग  कोनो काजक नहिं. सुनैत छी, सीमाक पार, तिब्बत-चीनमें लोक वनगदहा शिकार करैछ. तें, ई वनगदहा सब यदा कदा भागि कय भारत दिस आबि जाइछ. सत्य की, से के कहत.
आस-पासक मैदानमें भेंडी-बकरीक विशाल झुण्ड ताकि-ताकि कय घास चरैत छल आ चंस्पा चरबाहसब  रौद तपैत अपन-अपन काजमें लागल छल. एतय दिन-देखार माल मवेशी के जंगली जानवर खतरा नहिं. चोरि तं होइते नहिं छैक मुदा, रातिमें लद्दाखक हुडाड (wolf)-शंखो-सं माल मवेशीकें बंचबय पड़ैत छैक.
किछु दूर आगू न्योमा गाओंमें, एकटा सैनिक यूनिट में हमरा लोकनि चाह-पानी कयल. एहि जनशून्य भूमिमें आगन्तुककें देखि कय सैनिकोसबकें नीक लगैत छनि. तें, लद्दाख़में अधिक ठाम बाट-घाटपर  सैनिक लोकनि गरम चाह सं पर्यटक लोकनिक स्वागत करैत छथि. कतेक ठाम  ऊँच-ऊँच पास (दर्रा) पर सैनिक धार्मिक-स्थलक सेहो देखबैक. घर परिवार सं दूर, जनशून्य स्थानमें प्रकृतिक प्रकोप आ दुश्मन दुनूसं सतत लड़ैत सैनिककें अपना लगक धार्मिक स्थल अनमना होइत छैक ; धार्मिक काज  सुरक्षाक भाव तं दैते  छैक. एहि मंदिर सबपर आवभगत में गर्म चाहक संग प्रसादकमें गर्म हलुआ आ कनेक मधुर भेटय तं आश्चर्य नहिं. हमरा लोकनिक आव-भगत तं सेनाक ड्यूटी थिकैक. तें, ओकर गप्प नहिं हो. 
न्योमाक आगू लोमा नामक स्थानमें सिन्धुकें पार करैत सड़क हानले दिस जाइछ. हानले भारत-तिब्बत सीमापर एकटा छोट गाओं थिक. मुदा, हाल-सालमें एकटा विशाल वेधशाला (Indian Astronomical Observatory) क निर्माणक कारण हानले अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर उभरि आयल अछि. शुष्क विरल वायु, वर्षा आ मेघक अभावें सालो भरि निर्मल आकाश, समुद्र तलसं 12000 फुट सं बेसी क ऊँचाई, आ प्राकृतिक अवरोधक अभावक कारण ई स्थान observatory ले विशेषतः उपयुक्त अछि. एहि observatoryक दूरस्थ नियंत्रणक  बैंगलोरक इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ एस्ट्रोफिजिक्स केर हाथमें छैक. जें कि  हानले भारत-चीन सीमाक अत्यंत समीप अछि  तें, एहि स्थान  सामरिक आ सैनिक महत्वतं छैके. 
हमरा लोकनि कें चुशूल होइत दुर्बुख जेबाक अछि. तें लोमामें मुख्य सड़क छोडि उत्तर दिसक कच्चा सड़क पर उतरलहु. दुनू कात ऊँच-ऊँच पहाड़क बीच करीब 40 कि. मी. लम्बा आ 5-6 कि. मी. चौड़ा चुशूल उपत्यका सपाट-सन मैदान-सन छैक. पुवारिकातक पहाड़, 1962 ई क घमासान युद्धक भूमि थिक. पुबरिया पहाड़क पूबक क्षेत्र चीन नियंत्रित इलाका थिक. 62 ई. में चीनी सेना एही सड़क आ चुशूलक हवाई पट्टीपर नियंत्रण कय भारतीय सेनाक आवागमनकें रोकय चाहैत छल. एखन एहि कच्चा सड़कपर  ठाम-ठीम खोंड़ा- खच्चा आ पानिक जमाव छैक.  ड्राईवर गाड़ी सं उतरि पानिकें थाहैत छथि आ सुरक्षित बाट चुनै छथि. एतुका पानिमें थाल कादोक दरस नहिं. तें, गाड़ी लसकबाक डर नहिं. मुदा, रोड़ा-पाथर टायर कें नुकसान क सकैत छैक. भंगठी भेल तं परम समस्या ; ड्राईवर अपनहिं ठीक करथु. तें, एहि इलाका में एबाले दुरुस्त गाड़ी, पर्याप्त इंधन, आ कुशल ड्राईवर भेनहिं कुशल. गाड़ीकें कोनो नोकसान नहिं हो सेहो आवश्यक. हमरा लोकनिक अगिला पड़ाव चुशूल थिक.
    चुशूल, भारत-चीन सीमापर पूर्वी लद्दाख़क एकटा दूरस्थ गाओं थिक. एखुनका सर्वग्य गूगल वा पर्यटन सलाहकार, ट्रिप-एडवाइजर, कें जं पुछबनि तं ओहो भरिसके एहि सं बेसी किछुए कहताह. हँ, एतबा अवश्य जे लद्दाख़क मुख्य आकर्षण पेंगोंग-सो झील आब हिंदी सिनेमाक प्रसादें आब प्रसिद्द भ गेल अछि. ई चुशूलक लगहिं अछि. मुदा, लेह सं पेंगोंग-सो झील जयबाक ई सोझ बाट नहिं थिकैक, से तं कहनहिं छी. भारतीय पर्यटकक आवागमनले परमिटक  झंझट सेहो समाप्त भ गेलैये, तें, भ सकैत अछि किछु लोक एम्हरो बाटें पेंगोंग-सो झील जाइत होथि . जाड़कलामें हिमपात भेलापर जखन चांगला पास  बन्न भ जाइछ तं पेंगोंग-सो झील, वा तांगसे आ दुर्बुखक सैनिक अड्डा धरि जेबाले मात्र इएह टा  बाट खूजल रहेछ. स्मरणीय थिक, 1962 ई. क भारत-चीन युद्धक समय में चुशूल जेबाक इएह टा एकटा रास्ता रहैक. ताहिया लेह सं चांगला पासकेर रास्ता खुरबटिया छलैक. सामरिक महत्वक एहि हवाईपट्टी आ चुशूल-दुंगती-लेह मार्गपर भारतीय सेना अंत धरि अपन नियंत्रण धरि बनौने रहल जाहिसं भारतीय सेनाक आवागमन तं चालू रहबे केलैक, चीनी सेनाक लेह दिस बढ़बाक सम्भावना सेहो समाप्त भ गेलैक. साधन सम्पन्न, संख्यामें कतेक गुणा अधिक आ हाई एलटीच्युड एरियामें ट्रेंड  विशाल चीनी सेनाक सामने ई कठिन काज भारतीय सेना  कोना केलक से कनेक रहि कय.
कच्ची सड़क बाटें बालु-पानि-पाथरकें पार करैत जखन हमरा लोकनि चुशूल पँहुचल रही तं अपराह्न भ गेल रहैक. लम्बा चौड़ा समतल भूमि. दुनू कात ऊँच पहाड़. चुशूलगाम आ चीन नियंत्रित भूमिक बीच करीब पांच किलोमीटरकेर लो-लैंड आ दलदल छैक. हवाई पट्टी आ दाहिना कातक एहि दलदलक पूबक पर्वत श्रृखलाक  बीचोबीच करीब दू किलोमीटर केर समतल भूमिक गैप छैक, इएह थिकैक स्पैंगुर गैप जाहि बाटें तिब्बती पठारसं चीनी सेना सोझे चुशूल आबि सकैत छल. चीनी सेनाक चुशूल पहुँचबाक दोसर बाट रजांग-ला पास भ सकैत छलैक, जकर चर्चा आगू हयत. स्पैंगुर गैपमें एकटा बैरकनुमा भवन देखलियैक. भारत-चीन सीमा पर तैनात दुनू देशक सैनिक अधिकारी लोकनि सम्मेलन हेतु  एहि भवनक  उपयोग करैत छथि.  स्पैंगुर गैपमें आ समतल भूमिक बीचक दल-दल में विलुप्त होइत प्रजातिक पक्षी ब्लैक नेक्ड क्रेन (कारी गरदनिवला सारस) कीड़ा-फतिंगा चुनैत छल. समतल भूमिक इलाका perforated steel sheet सं पाटल छैक. इएह थिक चुशूल हवाई पट्टी जकर निर्माण 1962 ई में भारतीय सेनाक इंजीनियरिंग कोर केने छल; एहि हवाई पट्टीपर तहिया AN-12 आ पैकेट नामक  जहाजसब उतरि सेनाक साज-सामन अनैत छल.
                                               दाहिना कातक पर्वत-श्रेणीक गुरुंग हिल, स्पैन्गुर गैप, मगर हिल आ रजांग-ला पास चुशूल सेक्टरमें भारतीय सेनाक बलिदान-भूमि थिकैक. चुशूल हवाई पट्टी आ पुबरिया पर्वत श्रृंखलाक बीच किछुओ नहिं तं 5 किलोमीटरक दूरी तं अवश्य हेतैक ; रजांग-ला पास एहि श्रृंखलामें  सबसँ दूर, हवाई पट्टी सं करीब 11 किमी दक्षिण पूर्वमें  छैक. हवाई पट्टिक पश्चिम रजांग-लाक युद्ध स्मारक छैक. लगइए आइए केओ वरिष्ठ सैनिक अधिकारी एतय आयल छलाह. अर्पित  श्रद्धा-सुमन- wreath- स्मारकक आगां यथा-स्थान ओहिना राखल छैक. एतय हमरो लोकनि वीर शहीद लोकनिक नमन कयल. मुदा, हुनका लोकनिक उदात्त बलिदानक जखन स्मरण कयल, तं, मोन जेना इतिहासक पन्ना में भुतिया गेल. तें, चली कनेक इतिहासक पन्नामें बौआइ.
1962 ई. क  भारत-चीन युद्ध हमरा लोकनिक पीढ़ीमें  सर्वविदित अछि. युद्धमें पराजयक ग्लानिसं उबरबामें हमरा लोकनिके बहुत समय लागल छल. तथापि एहि चीनी आक्रमणक एहि दुखद अध्यायमें रजांग-लाक युद्ध सम्पूर्ण संघर्षकेर एकमात्र गौरवमय प्रकरण थिक. तें, एहि ठाम रजांग-लाक युद्धक निरपेक्ष चर्चा करी. मुदा, युद्धक संदर्भक चर्चाक बिना गप्प बुझबामें नहिं आओत. तें, पहिने भारत-चीन युद्धक पृष्ठभूमिमें चली.
भारत चीन-सीमा  उत्तर-पश्चिममें जम्मू कश्मीर सं ल कय पूबमें अरुणाचल प्रदेश  धरि पसरल अछि. बीचमें नेपालक इलाकामें भारत चीन एक दोसरा सं दूर अछि. भूटानक-चीन सीमाक सुरक्षाक भार भारतहिं पर छैक. तें, भूटान-चीन सीमा सेहो व्यवहारमें भारत-चीन सीमा भेल. जे किछु. तथापि, सदातनि सं करीब चारि हज़ार किलोमीटर लम्बा भारत-चीन सीमा मूलतः भारत-तिब्बत सीमा छल. तिब्बतकें भारत सं पारम्परिक सम्बन्ध छैक; बौद्ध धर्म आ महात्मा बुद्द केर जन्मभूमि भारतकें  तिब्बती समुदाय एखनहु गुरु मानैत अछि.  तें, भारत-चीन अन्तर्राष्ट्रीय सीमा अद्यावधि परम्परा, परस्पर सम्पर्क आ सन्धि द्वारा निर्धारित छल. संगहिं भारतपर अंग्रेजक शासनकेर युगमे अंग्रेजक शक्तिक योग तं छलैके. तथापि, अंग्रेजी भारतक स्वतंत्रताक पूर्वहु दुनू देशक बीच सीमा विवाद नहिं छलैक, से नहिं. तथापि, युद्धक परिस्थिति कहियो नहिं आयल छलैक. चीनमें कम्युनिस्ट सरकारक उदय आ तिब्बतकें बलपूर्वक चीनमें विलय केर पछाति चीनी नेतृत्व लद्दाख़ आ अरुणाचल प्रदेशक  (तहियाक NEFA क )  विवादित भूमिक क्रमशः अतिक्रमण आरंभ क देलक. विवादक निराकरणक हेतु दुनू देशक बीच अनेक पत्राचार, आ दुनू देशक शीर्षस्थ नेताक सबहक बीच अनेक सम्मलेन भेल. किन्तु, कोनो सहमति नहिं भ सकलैक. चीनकेर आक्रामक नेतृव आ विशाल सेनासं भारत आओर की अपेक्षा करैत. बीचमें चीन बराबरि दूर-दराजक निर्जन विवादित इलाकाक  दखल करैत गेल. भारत एहि पर बराबरि नजरि रखने छल. मुदा, कतेक दिन धरि भारत कोनो औपचारिक विरोध नहिं प्रकट केलक. क्रमशः स्थिति चिंताजनक होइत गेलैक. एहना स्थितिमें भारत ने भूमिक अतिक्रमण सहि सकैत छल आ ने बल पूर्वक विवादित इलाकाकें दखल क सकैत छल. तें, भारत सरकार जाहि क्षेत्रकें  अपन क्षेत्र बूझैत छल ओतय जहां-तहां सेनाक छोट-छोट टुकड़ी तैनात करय लागल. सीमा क्षेत्रक विवादित क्षेत्र पर क्रमशः अपन नियंत्रण  बढ़यबाक एहि नीतिक नाम  भारत सरकार Forward policy देलक . व्यवहारिकतामें Forward policy सीमाक्षेत्रक  अत्यन्त दूर दराज इलाकामें सैनिकक थोड़-थोड़ तैनाती भेल ; युद्ध लड़बाक हेतु ई तैनाती नितांत अपर्याप्त छल. तें, युद्धतं दूर, एहि सब इलाकामे सेनाक अस्तित्व सेहो कठिन छल. लद्दाख क्षेत्रमें तं किछु एहनो चौकीसब छल जतय रुख-सुख समयमें, पांव-पैदल पहुँचबामें 10-15 दिन लागि जाइत छलैक. प्रतिकूल मौसमकेर तं गप्पे नहिं हो. आपात कालमें लगपासक चौकीसं सहायताक कोनो भरोस नहिं. एहि Forward policy क अन्तर्गत नव-नव चौकीक स्थापनासं भारतीय आ चीनी सेनाक बीच कतेक ठाम तना-तनीक स्थिति भ जाइक. कूटनीतिक विवादक तं छलैके. तथापि, भारतीय नेतृत्वकें भ्रम रहैक जे चीन भारतपर आक्रमण नहिं करत. देशकें स्वतंत्र भेना बस 15 वर्ष भेल रहैक. एहि बीच चीनक विपरीत भारत ने  सैनिक शक्ति बढ़यबाक प्रयास केलक आ ने भारत लग आर्थिक साधन रहैक. तें, सत्यतः, भारतीय सेना युद्ध लड़बाक स्थितिमें कदापि नहिं छल. भारतीय सीमा क्षेत्रमें यातायातक सुविधा नगण्य रहैक. चीन अपना क्षेत्रमें सीमा धरि सड़कक जाल बिछा नेने छल. माने, भारत सामरिक दृष्टिए दुर्बल छल आ राजनैतिक दृष्टिए भ्रममें छल. तें, पछाति किछु विशेषज्ञ 1962 ई. क  भारतीय कूटनीतिक आ सामरिक अभियानकें भयंकर भूल वा 'हिमालयन ब्लंडर' केर संज्ञा देलनि. जे किछु.  सैनिक दुर्बलता आ कूटनीतिक भ्रमकेर एहने परिस्थितिमें  अक्टूबर 1962 ई. में चीन एकाएक सम्पूर्ण भारतीय सीमापर आक्रमण क देलक. भारतके जोरगर धक्का तं अवश्य लगलैक; भारत एहि ले तैयार नहिं छल . मुदा, उपाय की ? भारत अपना भरि जोर लगओलक. किन्तु, चीनी सेनाक सामरिक शक्तिक आगां भारतकें पूर्वी आ पश्चिमी क्षेत्रमें अनेक ठाम पराजय आ जान-मालक नोकसान उठाबय पड़लैक. तथापि, जतय, जाधरि सम्भव भेलैक सेना मोर्चा धेने रहल. चीनी आक्रमणक ई दौर जे अक्टूबर 1962 में अरुणाचल आ लद्दाख़में आरम्भ भेल छल से नवम्बर 1962 में चुशूलक युद्धक पछाति चीन द्वारा एकतरफा युद्ध विराम सं समाप्त भेल. किन्तु, युद्धक पृष्ठभूमिमें जतेक राजनैतिक आ कूटनीतिक गतिविधि भेल होइक, आम सैनिककें जाहि पराभवक सामना करय पड़ल रहैक तकरा लार्ड अल्फ्रेड टेनीन्सन, एकटा भिन्न परिप्रेक्ष्यमें, अपन कविता 'The charge of the light brigade' में बड सुन्दरतासं व्यक्त केने छथि. क्रिमीआक युद्धक सन्दर्भमें अंग्रेजी सेनाक पराभवक पृष्ठभूमिमें लिखल गेल ई कविता अनेको सैनिक अभियान पर सटीक बैसत. देखियौ :

 'No tho' the soldiers knew
someone has blunder'd
There's not to make reply
There's not to reason why
Theirs but to do and die'
सारांश एतबे ,
            'सैनिकक लोकनि नीक जकां बूझैत छलाह, ( सेनानायक वा राजनेता ) ककरो सं बड़का चूक भेलैये. किन्तु, सैनिकक धर्म सवाल-जवाब नहिं, केवल करब आ मरब थिक'. सरिपहुं, सैनिकक जीवनक इएह विधान थिकैक.                                                   सैन्य जीवनक एहि आदर्शक अनुकूल,  विपरीत परिस्थितिमें चुशूल आ रजांग-ला में भारतीय सेना केहन इतिहास रचलक तकर संक्षिप्त कथा आब सुनू.
1962 ई. क भारत-चीन युद्धक सम्पूर्ण दुःखद प्रकरण में रजांग-लाक संग्राम एकमात्र गौरवमय अध्याय थिक. एहि युद्धमें 13 कुमाऊँ रेजिमेंटक 'C' कंपनीक  सैनिक लोकनि जाहि वीरतासं दुश्मन मनोरथके माटिमें मिला देलनि, सैन्य इतिहास तकर दोसर उदाहरण भेटव असंभव. गप्प  1962 ई. के 18  नवंबरक थिकैक. हरियाणाक ई अहीर सैनिक लोकनि भारत पाकिस्तानक पश्चिमी सीमाक समतल भूमि सं किछुए दिन पूर्व लद्दाख़ आयल रहथि. सेनालग ने  लाद्दखक भीषण जाड़क हेतु पर्याप्त कपड़ा रहैक, ने पहाड़ी भूमि में मोर्चाबंदीले कोनो औजार. 13 कुमाऊँ केर  'C' कम्पनी केर जवान लोकनि मेजर शैतान सिंहक कमानमें रजांग-ला केर  2 कि.मी. लंबा मोर्चा पर तैनात रहथि. उत्तर दिसुक पहाड़पर एही 13 कुमांऊ रेजिमेंटक दोसर कम्पनी सब, आ 1/8 रेजिमेंटकेर गोरखा सैनिक सब तैनात छल. पहाड़क चोटीपर गत राति तेज बिहाडिक संग हिमपातक भ रहल छलैक. लगैक जाड़सं जेना छातीक  शोणित जमिक पाथर जायत. तखने, करीब दू बजे भोरे अचानक फायरिंगके आवाज भेलैक. जासूसी दल करीब 400 चीनी सैनिकक अपना दिस एबाक सूचना अनलक. खबर भेटिते, सब सावधान भ गेल आ अपन-अपन मोर्चे पर जूमि गेल. किछुए कालमें दुश्मनक आक्रमण भेलैक. कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंहक नेतृत्व में जवान लोकनि डटिकय मुकाबला केलनि जाहिमें सैकड़ों चीनी आक्रमणकारी मारल गेल. ओहि पहिल मुकाबलाक पछाति रजांग-ला पूबभरक नाला, जाहि बाटें दुश्मन सब ऊपर चढ़ि रहल छल, दुश्मन सबहक लाशसबसँ नीक जकां पाटि गेल छल. फलतः, बंचल- खुचल दुश्मन जान ल कय भागल. मगर ओहि दिन ई रजांग-ला पर चीनीसेनाक आखिरी हमला नहिं छल; कनिए कालमें  चीनी सेना रजांग-लापर तेज बमबारी शुरू कर देलक. बमबारीक कारण बटालियन मुख्यालय आ 'C' कंपनीक बीच टेलिफोन आ रेडियो संपर्क टूटि गेलैक. रजांग-ला पहाड़क उंचाईक कारण भारतीय सेनाक तोपखाना रजांग-ला सेनाक कोनो सहायता नहिं क सकल. उत्तरमें  मगर हिल, स्पेंगुर गैप, आ गुरुंग हिल पर गोरखा सैनिकसब फूटे चीनी आक्रमणक सामना क रहल छल. माने, सबसं  अलग-थलग रजांग-ला कंपनीकें पडोसी कंपनी वा बटालियन मुख्यालय सहायताक कोनो आस नहिं. बुझबाक थिक, लद्दाखक ऊँच पहाड़ी क्षेत्रमें  दुश्मनक अतिरिक्त  ऑक्सीजनक कमी, आ भीषण जाड़ मनुष्यक दोसर घातक शत्रु थिक. जाड़क अनुमान एना करू जे शून्य सं 30 डिग्री सेंटीग्रेड नीचा तापमानमें हाथक घड़ी वा अश्त्र-शस्त्रजं अपन चाममें भीडि गेल तं चाम जरि जायत. एहन विषम परिस्थितिमें दुश्मनक सेनाक चौतरफा प्रहार निरंतर जारी छल. तथापि, केओ हतोत्साहित नहिं भेल आ कुमाऊँनी सेना आखिरी गोली, अंतिम जवान तक लड़बाक संकल्प केलक. स्वयं मेजर शैतान सिंह कखनहु मशीनगन सम्हारथि, कखनो बंकर सबहक बीच दौगैत-भगैत जवानसब कें निर्देश देथि, मनोबल बढ़बथि. एहि बीच हुनका अपना कतेक गोली लगलनि तकर हुनका कोन परवाहि छलनि. बहुत सीमित संसाधन आ शत्रुक निरन्तर प्रहारक फलस्वरूप जखन  गोला-बारूद निंघटय लगलैक तं जवानसब बेयोनेट फाइटिंग आ  हाथपायीक सहारा लेलक. कहल जाइछ कतेक  दुश्मन कें तं जवानसब पाथरपर पटकि यमराजक द्वारि धरि अडियाति आयल. मुदा, बेहतर साजोसामान आ दुश्मनक असीमित संख्याक मुकाबलामें महज़ शौर्य  कतेक काल टिकैत. कहल जाइछ, 18  नवम्बर 1962 क भोर जे फायरिंग आरम्भ भेल छल से ओहि दिन रातिक दस बजेक बाद जखन थम्हलैक तं सम्पूर्ण कंपनी अपन प्राणक बलि तं द चुकल छल  मुदा, एहि असंतुलित संग्राममें आखरी श्वासधरि धरि लड़ैत-लड़ैत सैनिक लोकनि चुशूलक हवाई पट्टी तथा चुशूल-लेह सड़कपर शत्रु पयर नहिं पड़य देलक. हमरा विश्वास अछि, रजांग-लामें वीरगति प्राप्त सैनिक लोकनिक अतुलनीय शौर्य आ  बलिदानक  ई उदात्त गाथा अनन्त काल धरि देशवासीक हेतु प्रेरणापुंज बनल रहत.
युद्ध समाप्तिक कतेक दिनक पछाति 96 गोट कुमाऊँनी सैनिकक पार्थिव शरीरकें चुशूल आनल जा सकल. युद्धमें शत्रुले पाथर-सन कठोर सैनिक सत्यतः बर्फ में जमिकय  पाथर भ गेलाह छलाह. दू टा बड़का पाथरक बीच मोर्चा  सम्हारने मृत मेजर शैतान सिंहक हाथमे तखनो कारबाइन मौजूद छलनि. हुनकर शरीरमें कुल नौ टा गोली लागल छलनि.  दाह-संस्कारक हेतु  मेजर शैतान सिंह क पार्थिव शरीरकें  राजस्थान में जोधपुर आनल गेलनि. मरणोपरांत मेजर शैतान सिंहकें देश सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्रसं राष्ट्र समानित केलक. बांकी शहीद लोकनिक सामूहिक संस्कार पूर्ण सैनिक सम्मानक संग चुशूल हवाई पट्टी लगमें भेल. ओहि पावन भूमिमें एखन रजांग-ला युद्ध स्मारक अछि. दर्जनों गोरखा वीर शहीद  लोकनिक स्मारक सेहो लगहिंमें छनि. हमरा गौरवक बोध होइत अछि आइ  हम  चुशूलक युद्ध स्मारक लग छी आ  मातृभूमिपर अपन प्राणक  बलि देनिहार वीरलोकनिकें  सादर श्रद्धा सुमन अर्पित केलहुं-ए. 13 कुमाऊँ रेजिमेंट क पुनर्गठित 'C' कंपनी  नाम आब रजांग-ला कंपनी  थिक आ ई कम्पनी आब तेरह कुमांऊक सीनियर मोस्ट कम्पनी थिक. आब जखन लद्दाखमें पर्यटन बढ़ि रहल अछि, नित दिन दूर-दूरसं भारतीय लोकनि एतय अओताह आ अपन गाम-नगर-शहरमें विस्मृत योद्धा लोकनिक शौर्यक गाथा देशक भरिक नेना-भुटका आ नागरिक लोकनिकें सुनओथिन. स्मरण राखी, युद्धमें शौर्यले जतेक सैनिकक सम्मान होइत छैक ताहि सं कतेक बेसी अनामा वीर इतिहासमें विस्मृत रहि जाइत अछि; भारत-चीन युद्धमें अनुमानतः  3000 सैनिक अपन प्राणक बलि देने छलाह. तें, उचित तं ई जे राष्ट्र प्रत्येक अनामा सैनिकक स्मरण करय आ  श्रद्धाक तर्पण अर्पण करय.
अंतमें एकटा प्रसिद्द सेना नायक कार्ल वोन क्लौसवित्ज़ केर कथनकेर उद्धरण उचित हयत.
"Woe to the Govt , which relying on half-hearted politics and a shackled military policy meets a foe, who like the untamed mighty forces of nature, knows no law other than his own power"

(ओहि सरकारकें विप्पतिक भोग होउ, जे राजनितिक लाभ आ पूर्वाग्रहग्रस्त सैनिकनीतिक कारण अपन सेनाकें एहन शत्रु , जे प्रकृतिक विभीषिका जकां अपन शक्ति अतिरिक्त आओर कथूक परवाहि नहिं करैछ, केर सामनाक लेल युद्धमें  झोंकैत अछि).
ई कथन हम १९६२ ई. क भारत-चीन युद्धक (भारत सरकारक) आधिकारिक इतिहासक उसंहार सं उद्धृत केने छी. हमरा जनैत आजुक राजनेतासबकें एहि उक्तिसं सीख लेबाक चाहियनि.

Saturday, May 7, 2016

साधारण लोक , असाधारण विचार


                स्व. तारानाथ झा,(1909-1981); ग्राम-अवाम, पोस्ट-झंझारपुर , जिला -दरभंगा 

जनसाधारणक जीवनी नहिं लिखल जाइछ . लिखल जेतैक तं पढ़तैक के? मुदा, साधारणों लोकमें असाधारण गुण आ विचार हयब  आश्चर्य नहिं .एहन गुण आ विचार कतेक बेर अपनहु परिवारमें देखबैक . मुदा, तकरा के लिखत , के कान-बात देतैक. ओनातं  अपन परिवारमें संगे-संग रहैत, लोक कें बेसी काल परिवारजनमें गुण सं बेसी अवगुण  देखबामें अबैत छैक ; खासक लोक जेना-जेना वयसाहु- बूढ़ होमय लगैछ, अनकर नजरिमे ओकर दोषक संख्या ओहिना बढ़य लगैछ, जेना, पुरान गाछक  सीलक गिरह  आ धोधरि बेसी जगजियार होमय लगैछ. तखन इहो सत्य जे  अपन परिवारक प्रशंसामें आत्मप्रशंसाक गंधतं  आबिए  जाइत छैक आ प्रशंसामें अतिशयोक्तिक भय सेहो रहैत छैक. माने, ओ वस्तुनिष्ठनहिं भेल. तथापि.
आइ हम अपन पिताक चर्चा करय चाहैत छी . एहि वर्ष हुनक मृत्युक ओतबे वर्ष जतबा दिन हमरा डाक्टर बनना भेले - 35 वर्ष .
ई गप्प हमर मेडिकल कालेज जीवनक अवधिक थिक . हमरा लोकनि 1973 ईसवीमें दरभंगा मेडिकल कॉलेजमें भर्ती भेल रही . ओही वर्ष हम कॉलेजक ओल्ड हॉस्टलमें डेरा लेल . प्रायः 20 x 20  फुट केर कमरा . चारिटा कौट, चारिटा टेबुल- रैक कॉम्बो, चारिटा खिड़की , एकटा दरवाजा, आ चारिटा विद्यार्थी - कीर्तिनाथ झा , विजय कुमार सिन्हा , सैयद मुसर्रत हुसैन , आ सतीश कुमार दास . ओहि युगमें, जहिया मेडिकल कालेजहुमें लोक जिला-जवारी आ जाति ताकि-ताकिकय विद्यार्थीसब  रूममेट केर मिलान करैत छल , तहिया ई व्यवहार क्रांतिकारी नहिं तं आधुनिक अवश्य छलैक . जे किछु .
हम जखन हॉस्टलमें रहय लगलहु, छठि - चौड़चनमें गामसँ सनेस ल कय दादा जखन दरभंगा आबथि तं होस्टलो आबथि . अपन युगमे व्यवसायें दादा जमींदारक तहसीलदार अर्थात revenue clerk रहथि . माने, अपना युगक सामान्य शिक्षित , तथापि प्रतिष्ठित.  औपचारिक शिक्षातं कमें छल हेतनि . विचार-व्यवहार आ नेम-नियम सेहो अपन युगक अनुकूल रहनि. नेनपनमें हमरा लोकनि दादासं डेराइत अवश्य रही, मुदा, हुनक स्वभाव सरल रहनि; क्रोधले नामी छलखिन अवश्य. तें नेनपनमें हमरा लोकनि दादाक संग बैसिकय गप्प करितहुं तकर ने लोककें पलखति रहै, ने घरमें तकर परिपाटी रहैक . तथापि , मेडिकल कॉलेज  अबैत -अबैत हमरा दादासं धाख कनेक छूटय लागल छल . मुदा, तकर पछाति दादा रहबे कहाँ केलाह ; इंटर्नशिप समाप्त भेले छल कि दादा तेहन रोग-ग्रस्त भेलाह जे तीन मासक भीतरे चलि गेलाह . 
आब गप्प पर आबी . एकबेर एहने पाबनि-तिहारक पछातिक कोनो अवसर पर दादा ओल्ड - हॉस्टल आयल छलाह . हम पुछलियनि , हमर कोठलीमें एकटा मुसलमानों छथि. (ओहि युगमें गाम-घरमें मुसलमान लोकनि गाम पर आबथि अवश्य  मुदा, ओसारापर वा इनारक चबूतरापर चढ़बाक परिपाटी नहिं रहैक). दादा कहलनि , कोनो बात  नहिं . हमरा कनेक हिम्मत बढ़ल . हम कहलियनि , दादा , कहियोकाल हमरा लोकनि एके थारीमें खाइयो लैत छियैक . दादा कहलनि , की हेतैक . अहाँक दोस्त थिकाह ने !
आइ सोचैत छियैक , तं आँखिमें नोर आबि जाइत अछि .समाजक साधारण मनुक्ख, दादाक, केहन असाधारण विचार रहनि !

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