Thursday, October 3, 2019

सस्ता फोन आ डाक व्यवस्थामें ह्रास सं चिठ्ठी इतिहास भ गेल

दुर्गापूजाक अवसर पर दू हप्ताक छुट्टी पर पटना में छी. पांडिचेरी क दिनचर्या सं मुक्त छी. आन किछु करबाक समय आ इच्छा  दुनू अछि.
आइ जोगाकय राखल पुरना चिठ्ठी सबहक एकटा फाइल खोलल. जेना-जेना पन्ना उनटबैत गेलहुँ एक-एक टा विभूति क आखर-लेख सोझाँ आबय लागल: लिली रे, गोविन्द झा, स्व. शंकर कुमार झा, अमर जी, स्व. जीवकांत, भीमनाथ झा, स्व. मोहन भारद्वाज, श्रीश चौधरी, गौरीनाथ, केदार कानन, नवीन चौधरी, राजनंदन लाल दास, रामलोचन ठाकुर, प्रेम शंकर सिंह, नचिकेता, मिहिर कुमार झा, मंत्रेश्वर झा, तारानंद झा 'तरुण' क अतिरिक्त अनेको नव-पुरान साहित्यकार आ परिवारजनक चिठ्ठी अमूल्य धरोहर-जकां प्रतीत भेल. संयोग सं ई सब टा चिट्ठी 2007 सं पूर्वक अछि. किन्तु, दुःखक गप्प ई जे चिट्ठी लिखबाक परंपराक जहिना कहियो आरंभ भेल हेतैक, तहिना आब ई समाप्त प्राय अछि. चिठ्ठी कोना लिखी ताहि हेतु आचार्य रामलोचन शरण सदृश विद्वान ('हिन्दी व्याकरण चंद्रोदय'-सन प्रामाणिक ग्रंथक संग) 'पत्र- चंद्रिका'  सेहो लिखने रहथि. ततबे नहिं, पोथी-पतरा सं दूर पत्र अपनहिं एकटा साहित्यिक विधा छल. आ से एतेक दूर धरि जे साहित्यिकार लोकनि पत्रक रूपमें कथा आ उपन्यास धरि लिखि गेलाह आ पुरस्कृत भेलाह. स्व. उपेन्द्रनाथ झा 'व्यास'क 'दू पत्र' आ स्व.डा. सुभद्र झा क 'नातिक पत्रक उत्तर' तकर उदाहरण थिक. हिन्दीमें 'चंद हसीनो के ख़तूत ' सेहो पढ़ल अछि.
एक समयमें हमरा लोकनि-सन प्रवासी ले चिट्ठी संजीवनी छल. निरक्षर नारि लोकनिक कलकतिया ( कलकत्ता में रहैत नोकरिहा) पति आ पुत्रले चिट्ठी लिखैत हमर माता कतेको वर्ष घरि कतेको दुपहरिया बितौने हेतीह. पछाति, हमहूँ एहन चिट्ठी लिखबाक काजमें हुनकर मदति केलहुँ. दुःख अछि, पति-पुत्र आ पिता सं दूर परिवार, आ परिवार सं दूर काज करैत श्रमिक केर वेदनाक ओ दस्तावेज  मनुखक स्मरण सं दूर आब कतय भेटत, जाहि में खर्च बेगरता क अलावा ज़र-जजात, माल-महिस, रिनिया-महाजनक संग अधिक काल 'लिखल कम बूझब बेसी'-सन सारगर्भित उक्ति सेहो रहैत छलैक.
हमरा लोकनिक हेतु चिट्ठी में फूल-विभूत आ छठि केर बद्धी आ अनन्त-सन अनेक वस्तुक अलावा पैघ होइत नेनाक हाथ-पयरक छाप आ बच्चा-बुच्ची क हाथें टेढ़-मेढ़ अक्षर आ अखर कट्टू भाखामें लिखल चिट्ठी-सन अमूल्य वस्तुक स्मरण जुड़ल अछि. कतेक बेर हमहूँ पत्रमें अपन कन्या आ बालकक लेल अनेक कथा आ नेनाक हेतु गेय कविता लीखि पठौने हेबनि. किन्तु, समयक गति आ टेक्नोलॉजी जहिना जीवनकें आसान करैत गेल, मंथर गतिक जीवनक ओ सब सौन्दर्य क्रमशः ओहिना बिलाइत चल गेले, जेना, फोर-लेन, सिक्स-लेन हाइवे पुरान सड़क सबहक काते-कात रोपल सैकड़ों साल पुरान बड़,पीपर, पाकड़ि, आम-जामुनकें उखाड़ैत पहिलुका सड़कक शोभा-सुन्दर आ छाहरि कें चाटि गेल.
चिट्ठीक आवश्यकताकें पहिने फोन, पुनः मोबाइल, फेर एन्ड्रॉयड आ तखन आब व्हाट्सएप कम करैत चल गेल. फल ई जे लोक बाट चलैत, मोटर साइकिल पर भगैत आ गाड़ीमें सफर करैत फोन पर लिखैत तं हरदमें रहैत अछि, किन्तु, सबटा पानिक बुलबुला समान. ने निचेनसं चिट्ठी लिखबाक भाव, आ ने फेर घूरि कय पढ़बाक संभावना. साहित्य कें एहि सं कोनो हानि हेतैक, कि नहिं से समये कहत.
संयोग एहन जे डाक-व्यवस्था में आयल परिवर्तनसं पोस्टमास्टर आ डाकिया-डाकपिउनक जे समाज में स्थान रहैक सेहो नहिं रहलैक. हालमें हम कूर्ग(कर्नाटक) निवासी एकटा अपन मित्र कें रजिस्ट्री पत्र लिखलिअनि. जवाब तं नहिंए आयल, चिट्ठिओ आपस नहिं भेल. एहि विषय में जखन ओही इलाकाक अपन छात्रा सं पुछलिऐक तं पता लागल जे आब चिठ्ठी अनबाले लोक स्वयं पोस्ट आफिस जाइछ, डाकिया घरे-घर चिट्ठी नहिं पहुंचबैत छथि ! संभव अछि, तें, हमर मित्रकें चिट्ठी नहिं पहुंचल होइनि. सत्यतः, आब चिट्ठीक काजो नहिं. तें, हमरो लोकनि टेक्नोलॉजी कें अपनाबी आ आगू बढ़ी. इतिहास, इतिहास रहओ, आ समय पयर झाड़ि आगू बढ़ओ !

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