Sunday, October 13, 2019

निनानबेक पूर वयसमें ‘ शब्द-संधान’ लिखबाक योजना करैत गोविन्द झा


निनानबेक पूर वयसमें ‘ शब्द-संधान’ लिखबाक योजना करैत गोविन्द झा 
(पटना,10.10.2019, श्री गोविन्द झा सं गप्प-सप्प)
आइ गोविन्द बाबू 100म वर्षमें प्रवेश कयलनि, से सुनल. पटना में रही. गोविन्द बाबूक सुपुत्र आ मैथिलीक सुपरिचित साहित्यकार अक्कू जी सं गप्प भेल. कहलनि,  ‘आउ’. श्री गोविन्द बाबू सं सेहो गप्प भेल.  विगत बारह वर्ष सं पटना जाइत-अबैत गोविन्द बाबूसं भेंट करैत छियनि. करीब चारि बजे अपराह्न गोविन्द बाबूक डेरा जाइत छी. अक्कू जी सोझे गोविन्द बाबूक कोठली में ल गेलाह. सामने साहित्यकार रमानंद झा ‘रमण’ जी बैसल रहथि. लगमें अक्कू जीक दौहित्र- शौर्य खेलओनाक साईकिल पर चक्कर लगा रहल छथि. 
गोविन्द झाक संग लेखक ( साभार: रमानन्द झा 'रमण' )
पछिला बेर गोविन्द बाबू सं भेंट भेल छल तं ओ ओहि सं किछुए दिन पूर्व  ओ आइ सी यू सं बहराकय डेरा आयल रहथि. सुनबा में कष्ट रहनि आ शरीर तं अस्वस्थ छलनिए. एहि बेर गोविन्द बाबू स्वस्थ छथि. हाले में आँखिक ऑपरेशन भेल छनि. चेहरापर मुसुकी छलनि. शरीरसं स्वस्थ प्रतीत भेलाह. हम कहलियनि, ‘ अपने एहि बेर प्रसन्न छी आ स्वस्थ लगैत छी.’ गोविन्द बाबू  मुसुकाइत छथि. हम कहलियनि, ‘ऑपरेशन करा लेल, नीक कयल. हम तं कतेक वर्ष सं ऑपरेशन करा लेबाक हेतु कहैत रही.’                                                        
गोविन्द बाबू कोठलीमें सामनेक  देबालकें देखबैत कहैत छथि, ‘ओतय धरि देखैत छियैक. लगमें एखन साफ़ नहिं.’ हम हुनका बुझबैत छियनि, ‘आंखिमें लेंस लगओलाक पछाति दूर देखबाले चश्मा भले आवश्यक नहिं हो, किन्तु, पढ़बाक हेतु चश्मा लगबहिं पडत; डाक्टर नंबर देताह . तखन पढ़ियो सकब. आब दोसरो आंखिक ऑपरेशन करा लेल जाओ. अपने ’पश्येत् वर्ष शरद् शतम्’ कें चरितार्थ कयल.’ अक्कू जी हमर समर्थन करैत छथि. ‘आंखिक ऑपरेशनक बाद बहुत अंतर आयल छनि. आंखिक रोशनीक कारण डिप्रेशन में चल गेल रहथि.’                 
हमरा अपना एहन वृद्ध लोकनिक आंखिक ऑपरेशन करबाक दीर्घकालीन अनुभव अछि. हम कहलियनि, ‘जीवनक अवधि पर दृष्टिक बड़का प्रभाव होइछ , से शास्त्र सम्मत अछि. हम तं लद्दाख़में एकटा वयोबृद्धक दुनू आंखिक ऑपरेशन एके बैसाड में क देने रहियनि. ’ गोविन्द बाबू चुपचाप हमर सलाह सुनैत छथि.
रमणजी हमरा सं पहिनहिं आयल रहथि. ओ गोविन्द बाबूसं आज्ञा ल कय जाइत छथि. आइ श्री गोविन्द बाबूक जन्म दिन थिकनि. गोविन्द बाबू अपनहिं मधुरक डिब्बा खोलि एकटा बर्फी मुँहमें लैत स्वादि कय खाइत छथि. कहैत छथि, ‘ नीक तं लगैत अछि, किन्तु, अहू में मनाही छैक.’
हम कहलियनि, अपनेक स्वस्थ आ प्रसन्न देखि बहुत हर्ष होइत अछि.’ कहलनि, ‘स्वस्थ छी, किन्तु, स्मरण ठीक नहिं. तथापि, भूत सबटा स्पष्ट देखबामें अबैछ. भविष्य अन्धकार लगइए.’ हम एकर अर्थ पूछि हुनका मस्तिष्कपर आओर जोर नहिं देबय चाहैत छियनि. गोविन्द बाबू आगू कहैत छथि, ‘बहुतो गप्प मन पड़ैत अछि. मुदा, लिखबा काल नाम सब स्मरण नहिं अबैत अछि. लिखय बैसैत छी, तं, परिचितों व्यक्तिक नाम मन नहिं पड़ैत अछि. बहुत कालक पछाति कोनो-कोनो नाम मन पड़त.लिखैत-लिखैत बीचो में विस्मरण होबय लगैछ. लिखलो नहिं होइछ. कतेक रास वस्तु लिखबाक विचार होइछ, किन्तु, भ नहिं पबैछ.’ हमरा आश्चर्य होइत अछि, आ प्रेरितो होइत छी. एखनो हुनकर एक कातमें एकटा पेपर क्लिप में थोड़ेक फुलस्केप सादा कागज आ तकर पहिल पेज पर करीब आधा पेजपर किछु लिखल राखल छनि. हिनकर सुन्दर लिपि देखबा जोग होइछ. हम सोचैत छी, गोविन्द बाबू जतेक विधा में आ जतेक परिमाण में लिखने छथि से ककरो हेतु स्पर्धाक विषय भ सकैछ. किन्तु, ई एखनो लिखबाक सोचैत छथि. किन्तु, भगवान-भगवतीक इच्छा चर्चा नहिं करैत छथि. स्व. निरद चौधरी पंचानबे वर्षमें लिखैत रहथि तं ओ तहियाक कीर्तिमान छल.  किन्तु, जे गोविन्द बाबूकें जे जनैत छथिन, तनिका ले ई आश्चर्य नहिं. गोविन्द बाबू लिखबाक अपन अगिला योजनाक गप्प करैत कहैत छथि. ‘‘ जर्मन विद्वान लोकनि भाषाक विकासक diachronic  सिद्धान्तक प्रतिपादन केलनि. किन्तु, हुनका लोकनिक कार्य एकठाम आबि ठमकि  गेल. ओकर बाद भाषाक एककालिक  अध्ययन आरम्भ भ गेल. भाषा विज्ञानक माध्यम सं इतिहासक chronology क अध्ययन सम्भव छैक. भाषा विज्ञान में इतिहासक chronology स्थापित करबाक सामर्थ्य छैक; historical linguistics ई कय सकैत अछि.  ई भाषाक पारंपरिक अध्ययन सं सम्भव नहिं. कारण, इतिहासक अनेक श्रोत जेना, लोकगाथा, कथा, आ आन साहित्य जे बाहरी जगत केर वर्णन करैछ, ताहि में कल्पना आ असत्य सेहो मिझड भ जाइत छैक. तें, हम ‘शब्द-संधान’ लिखय  चाहैत छी. हम कहैत छियनि, अपने लिखय चाहैत छी, आ लीखि नहिं पबैत छी, तकरो उपाय छैक. अपने अपन विचार रखिऔक, तकरा voice recording सं संकलित कयल जा सकैछ. पछाति आनो एहि विषय पर काज कय सकैत छथि.’ हमरा मन पड़ैत अछि, लेखक शिवशंकर श्रीनिवास स्व.किरणजीक मुंहे कथा सुनि ओकरा लीपिबद्ध केने रहथि.
गप्प कनेक बदलैत छैक. हमर ‘कुरल मैथिली भावानुवाद'  केर चर्चाक संग हम कहैत छियनि, 'हम तमिल सिखल'. गोविन्द बाबू विषयकें आगू बढ़बैत छथि. ओ कहैत छथि, बहुतो गोटे अनुवाद करैत छथि. मुदा, ओ लोकनि भाषाक तात्कालिक अध्ययन करैत छथि, भाषाक विकासक अध्ययन नहिं करैत छथि. सुभद्र झा मैथिलीक अध्ययन कयलनि. मैथिली आ संथालीक बीच बहुतो समानता छैक. किन्तु, सुभद्र बाबूकें संथालीक ज्ञान नहिं रहनि. तें, मैथिली आ संथाली भाषाक बीचक सम्बन्ध अध्ययन नहिं भ सकल.’ गोविन्द बाबू अपन निर्देशन में सम्पूर्ण भेल मैथिली आ असमियाक तुलनात्मक अध्ययनक चर्चा करैत, लगक ताख पर सं प्रकाशित पोथीकें निकालि हमरा देखबैत छथि. कहैत छथि, 'एहि सम्पूर्ण पोथीमें phonetic notations निर्दिष्ट छैक. तमिल आ मैथिलीक बीच समानताक सेहो अध्ययन हेबाक चाही.’ हमरा ई गप्प ओ पहिनहु कहने रहथि, जहिया हुनका हम अपन ‘कुरल मैथिली भावानुवाद’ क प्रति देने रहियन.
गप्पक बीच हम तत्काल तमिल- आ मैथिलीक किछु श्रुतिसम-समानार्थक शब्दक उदाहरण दैत छियनि; यथा, माड- माल, ताय- दाई / माय, संकिली-सिकड़ी, किन्र- इनार, एच्चम-ऐंठ, नरी-नढ़िया, आदि.      
ओ कहैत छथि, ‘ ई तात्कालिक भेल. एकर chronology क संग अध्ययन हयबाक चाही. हम 1000-2000 वर्ष पुरान, तिरुवल्लुवर केर कुरलकेर तमिल शब्दाबली, आ 1855 में प्रकाशित Rev G U  Pope केर A Tamil Handbook महक तमिल- अंग्रेजी शब्दकोषकेर चर्चा करैत छी. ओहि सं ओ संतुष्ट होइत छथि आ हमरा ‘तमिल आ मैथिली’क बीचक समान शब्द सब तकबाले कहैत छथि.
अक्कू जी किछु तमिल- मैथिली शब्द सबहक बीच समानतासं चकित होइत छथि आ हमरा एहि विषय पर एकटा लेख लिखबा ले आग्रह करैत छथि. 
गप्प-सप्पक बदलैत दिशामें  संयोगसं हमर कथा “ अब्बास अली बताह छथि ?’ नामक कथाक चर्चा होइत छैक. गोविन्द बाबू कहने रहथि, ‘ हम एहन कथा आन कतहु नहिं पढ़ने छी.’  एहि विषय पर आइ ओ पुनः कहैत छथि, ‘मैथिली कथामें मिथिला सं बाहरकेर कथानक अयबाक चाही.’ अक्कू जी सेहो सहमति व्यक्त करैत छथि. हमर अपन जीवन-यात्राक दू तिहाई मिथिला सं बाहरेक अछि. तें, हमरा ले  मिथिलाक भीतर आ बाहरक अनुभवकें फुटकायब सहज नहिं. तें, हम तं हुनकर विचार सं सर्वथा सहमत छी.
हम घड़ी पर नजरि दैत छी आ गोविन्द बाबूसं हुनका सं आज्ञा लैत छी. ‘शरद् शतम्’ कें स्पर्श करैत, गोविन्द बाबू क ‘शब्द-संधान’ लिखबाक योजना सं प्रेरित होइत छी, चकित नहिं. कारण, कोन ठेकान, अगिला समयमें गोविन्द बाबू एहू सं पैघ कोनो आओर आश्चर्यनक प्रतिमान स्थापित क बैसथि ! खेल अभी आगे बांकी है, भाई !  

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