किरणजीक मृत्युक 32 वर्षसँ बेसी भए गेलनि. हुनकर समकालीन, आ हुनकर सहकर्मीक अतिरिक्त मैथिलीक
प्रचार-प्रसारक आन्दोलन मे फाँड़ बान्हि हुनक संग चलनिहार म सं आब प्रायः किछुए बंचल
होथि. हमरा लोकनिक पीढ़ीक किछु गोटे अवश्य किरणजीक मैथिली अभियानक प्यादा वा foot-soldier
रहल हेताह. मुदा, हमरा सेहो गौरव प्राप्त नहिं अछि. तथापि, एक अर्थ मे हम किरणजीक समानधर्मा
अवश्य छी.मुदा, से पछाति. एखन उद्देश्य अछि, किरणजीक निकट रहि जे किछु देखल, वा
हुनका मुंहें जे सुनल, ताहि म सँ किछु किछु प्रेरक आ चमत्कृत करबा योग्य संदर्भक
चर्चा.
हम जहिया
ककहरा पढ़ब शुरू कयने हएब तहिया किरणजी ‘ किरणजी’ क रूपें प्रसिद्द भए चुकल छलाह. तें,
हुनकर छवि कें हमर दिवंगता माता हमरा समक्ष प्रेरणा-पुंज वा आदर्शक रूप
प्रतिष्ठापित कयने छलीह. तकर कारणों छलैक. हमर माताक दृष्टि मे किरणजी एहन योद्धा
छलाह जे स्थापित मान्यताक छहरदेवाली कें सहजहिं अपन बाटक अवरोध मानबा ले तैयार
नहिं होइत छलाह. एहि तथ्यक पक्ष मे अनेक प्रमाण सुनने छलहुँ. पहिल, सुनल जाइछ जे
किरणजी अपन पित्तीक भविष्यवाणी रहनि जे ‘ हिनका जं विद्या होइनि तं तरहत्थी मे केश
चरितार्थ हएत.’ मुदा, किरणजी अपन परिश्रमक बलें उच्च शिक्षा क कोन श्रेणी धरिक बटिखाराकें
भजारलनि से सर्वविदित अछि. एहि संदर्भ में किरणजीक मुँहें सुनल दू टा आओर गप्प मन
पड़ैछ. पहिल, किरणजीक शिक्षा-दीक्षाक युगमें अंग्रेजी शिक्षा ने सुलभ रहैक आ ने
सर्वग्राह्य. मुदा, ई अपन दू गोट जेठ भाई जकाँ, रजौर (अजुका बांग्लादेश) जा कए
राजा टंकनाथ चौधरीक संरक्षण में मैट्रिक पास केने रहथि. ओ कहथिन, ‘ 16 म वर्ष में ABCD सिखने रही. पहिने, संस्कृत
पढ़बाक-घोखबाक हिस्साक छल. रजौर गेला पर अहल भोर उठि जोर-जोरसँ पाठ घोखए लगैत छलहुँ. राजा टंकनाथ चौधरीक आवास
लगहिं में रहनि. मुदा, हमरालोकनिकें कोनो वर्जना नहिं. तथापि, एक दिन राजाक एकटा निकट
संबंधी कहलनि, ‘एतेक भोरे, एतेक जोर-जोरसँ पढ़इत छी. राजाकें निन्न में बाधा हेतनि
तं विदा कए देताह. बस. हमर जोर-जोरसँ पढ़ब बन्न भए गेल. दिन दुइएक पछाति राजाक नज़रि
हमरा पर पड़लनि. पुछलनि, ‘ नत्थू, आइ-काल्हि पढ़इत नहिं छह ? हमरा हुनकर संबंधी जे
हिदायत देने रहथि, से हम राजाकें सुना
देलियनि. राजा हँसय लगलाह. कहलनि, ‘ जाह, तों आओर जोर-जोरसँ पाठ पढ़ह.’
दोसर गप्प ओकर
बहुत दिनक पछातिक थिक: केओ हितैषी वा मित्र
किरणजी कें पुछलखिन, ‘ किरणजी, अहाँ कें M.A., Ph D. आदि परीक्षा देबाक कोन
प्रयोजन ! अर्थात्, अहाँक योग्यता सर्वविदित अछि. एहि पर किरणजी कहलथिन, ‘से जे
बूझैए तकरा ले ने. जे नहिं बूझैए तकरा ले भजारि देलिऐक-ए.’
किरणजीक
प्रकृतिसँ योद्धा हेबाक अओरो उदहारण छनि. सुनल अछि जे युवावस्था मे किरणजी कालाजारसँ
बहुत दिन धरि मरणासन्न भए पड़ल रहथि. तथापि,
परिवारजन भले हुनक जीवाक आस त्यागि देने होथुन, किरण जी अपन जिजीविषा आ आन्तरिक
उर्जाक बलें ओहि युग में मृत्यु पर विजय पओने छलाह जहिया प्रतिवर्ष मलेरिया, कालाजार आ
यक्ष्मासँ अजस्र लोक मरैत छल.
प्रारम्भिक
जीवन मे किरण जीक परिवार आर्थिक दृष्टिऍ झमारल छलनि. किन्तु, अपन बाहुबल आ मितव्ययी
स्वभावें ई एकटा शिक्षकक वेतन पर अपन आर्थिक परिस्थिति कें सुदृढ़ कयलनि. एहि
संदर्भ मे किरणजी निम्नलिखित किछु पाँति जेना हुनक अपने जीवनक कथा कहैछ:
की थिक भाग्य,
विधाता के अछि ?
सबसँ पौरुष
हमर प्रबल अछि .
कतेक दिनक
बाद, पृष्ठ 2
दाढ़ी मोंछ न
पुरुखक लच्छन
ढेपा, चेपा, कांकर,
पाथर, कांट-कूस ओ जंगल झाँखुड़
चूरि-चारि ओ
थूरि-थारि पथ, पुरुख बनाबय चिक्कन
विजेता
विद्यापति, पृष्ठ 37
सर्वविदित
अछि, आरम्भ में किरणजी व्यवसायें वैद्य छलाह. मुदा, अपन ज्ञान-प्राण में हमरालोकनि
हुनका वैदागरी करैत नहिं देखने रहियनि. संयोगसँ हम जखन दरभंगा मे पढ़इत रही तं
हुनकासँ नित्य भेंट होइते छल. ओहि समय मे बुझबा
में आयल जे किरणजीक चिकित्सा शास्त्रक ज्ञान आ अनुभव, दुनू गम्भीर छलनि.
परिस्थितिवश चिकित्सा व्यवसाय छूटि गेल रहनि. प्रायः तकर कचोट सेहो रहनि. तें, कदाचित्
बनारस हिन्दू विश्वद्यालय आ कलकत्ता विश्वविद्यालयक अपन जीवनक चर्चा सेहो करथिन. ओहि
में काशी विश्वविद्यालय में मैथिलीक मान्यताक हेतु कयल हुनक प्रयासक चर्चा सेहो
रहैत छल. ई प्रसंग आब सुपरिचित अछि, आ अनेक ठाम विस्तारसँ एकर चर्चा भेल अछि, तें
ओकर चर्चा एतय छोड़ि दी.
किरण जी एक दिन हमरा लोकनि कें अपन बैदागरीक जीवनक आरम्भिक कालक एकटा रोचक प्रसंग कहलनि: ‘बैदागरी पढ़िकए गाम आयल रही. अपने दरबज्जा पर .....( एक गोटे ) भेटलाह. कहलनि, ‘बैदागरी पढ़लहुँ-ए.’ आ से कहैत अपन गट्टा आगू बढ़बैत कहलनि, ‘ कहू तं हमरा कोन रोग अछि.’
हम कहलियनि, ‘
हम पशु चिकित्सा नहिं पढ़ने छी. पुछनिहार अपरतिब भए गेलाह.’
मुदा, एतबा
अवश्य जे किरणजी कें चिकित्सा व्यवसायक प्रति लगाव छलनि. 1973 मे जखन दरभंगा
मेडिकल कालेज में हमर नाम एम बी बी एस कोर्स में लिखल गेल तं कहने रहथि, ‘ दरभंगा
मेडिकल स्कूल में नाम लिखेबाक लेल हमर चुनाव भेल छल. मुदा, पचास रुपैया नहिं छल. तें,
नाम लिखबितहुँ से नहिं भए सकल. आइ ( दरभंगा मेडिकल कालेज में ) अहाँक नाम लिखल
गेल, तं ओ मनोरथ पूर्ण भए गेल.
मुदा, हमरा
हरदमे ई प्रश्न खिहारैत छल जे एहन तीक्ष्ण बुद्धि आ चिकित्सा शास्त्रक एहन विलक्षण
ज्ञानक धनी चिकित्सक व्यवसायसँ विमुख किएक
भए गेलाह. एक बेर पुछलियनि: अहाँ चिकित्सा व्यवसाय किएक छोड़ि देलिऐक ? तं ओ कहलनि,’
की करितिऐक. एहि इलाका में तहिया अत्यंन्त गरीबी रहैक. जतय चिकित्सा करय जाइत
छलहुँ, औषधिक मूल्य आ वैद्यक फीस देबाक हेतु लोककें रोगी / नेनाक काड़ा-माठा, वा
खुट्टा पर बान्हल माले-गाए बेचब वृत्ति होइत छलैक. घर मे औषधि किनबाक मूल्य नहिं, पथ्य
ले अन्न नहिं. चिकित्सा की करितिऐक !
फलस्वरूप, किरणजी
चिकित्सा व्यवसाय छोड़ि शिक्षक बनि गेलाह. किरण जी शिक्षकक रूप में केहन रहथि, से
तं ओएह सब कहताह जे हुनकासँ पढ़ने छथि. हमरा से सौभाग्य नहिं भेल. किन्तु, हुनक दृष्टि एतेक
स्पष्ट रहनि जे कोनो विषय पर ओ एहन
उपलक्षण दितथि जे हुनक उक्ति अएना जकाँ झलकि उठैत. एकर एकटा प्रसंग एतय कहब
अप्रासंगिक नहिं हएत.
किरणजी चंद्रधारी
मिथिला महाविद्यालयक अपन सेवाक अवधि मे रहमगंज, लहेरियासराय में डेरा रखने रहथि. दरभंगा
प्रवासक ओहि अवधि में ओ प्रायः प्रतिदिने सांझ कए
हॉस्पिटल रोड स्थित हमरा सबहक डेरा आबथि. एक दिन हमरा लोकनि हुनकासँ गप्प
करैत रही. किछु हंटि के एकटा नेना सेहो ओतहि पढ़इत रहथि. पढ़बासँ नेनाक ध्यान हंटि
जाइनि. पढ़बासँ ध्यान हंटिते, ओही परिवारक एक
गोटे बेर बेर कहथिन, ‘अहाँ पढ़ू’, तं किरणजी कहलथिन, ‘ पोथी-किताब घास नहिं थिकैक, जे
मालक आगू फेकि दिऔक आ खा लेतैक. पढ़ाएब
आवश्यक छैक.’ किरणजीक संग बिताओल समयक एकटा आओर प्रेरक प्रसंग मन
पड़ैत अछि.
हमरा लोकनिक
डेरा परहक साँझुक एहने एक बैसाड़क पछाति एक
दिन किरणजी अपन डेरा ले बिदा भेल रहथि. राति करीब दस बाजि गेल रहैक. मेडिकल कालेजक
गेट लग हुनका रिक्शा लेबाक विचार भेलनि. एकटा रिक्शावाला कें पुछलखिन, ‘ रहमगंज चलबह
?
-‘नैं’
हमरा लोकनि कालेजक
छात्र रही. कहलिऐक, ‘ किएक नहिं ? आ हमरा लोकनि दू गोटे छरपि कए ओकर रिक्शा पर
बैसि गेलहुँ. कहलिऐक- चलह !
किरणजी कहलनि,
‘ छोड़ि दिऔक.’
‘किएक नहिं
जेतैक ?’ हमरा लोकनि प्रतिवाद केलियनि, ‘ एकरा सबहक हिस्सके एहने छैक !’
‘नहिं. नहिं
जेतैक, तं नहिं जाउक. ओकरो अपन स्वतंत्रताक एतबा अनुभूति तं होबय दिऔक.’ कहैत किरणजी
डेरा दिस आगू बढ़ि गेलाह.
आइओ कहैत छी,
व्यक्तिगत स्वतंत्रताक प्रति हुनक एहन आदर हमरा लोकनि कें चमत्कृत अवश्य कयलक.
तहिना छलनि किरण जीक अपन माटि-पानि-देश-भूमि-पर्वत-नदी
सबसँ प्रेम जे धर्म-पुण्यक अवधारणासँ दूर आत्मवत् अनुभूतिसँ अनुप्राणित छलनि. मन पड़ैत अछि, एक बेर
हमर माता स्व. बिन्देश्वरी देवी ( स्व. किरणजीक छोटि बहिन) गंगा-स्नान ले सिमरिया
घाट विदा भेल छलीह. हमरालोकनि ( किरणजीक धर्मपुर गामक वाससँ किछुए दूर) लोहना रोड
स्टेशन पर ट्रेनक प्रतीक्षा मे बैसल रही. किरणजी हमर माताक भेंट करय स्टेशन पर आएल
छलाह. गप्प कए वापस गाम पर जेबाकाल ओ हमर माए कें कहलथिन, ‘ अच्छा, गंगा मे हमरो
ले एक डूब द’ देब.’
किरणजीक
कट्टर नास्तिक रहथि. अस्तु, तहिया हुनक ई गप्प हमरालोकनि कें आश्चर्यनक लागल छल. मुदा,
पछाति, किरणजीक मरणोपरांत जखन हुनक काव्य-कृति ‘पराशर’ प्रकाशित भेलनि तं ओहि में
पढ़लहुँ:
जय जय धरती
मानव जीवन केर आधार
प्राण
जय जय अनिल, सलिल,
जय सूर्य-चान
जय आसमान .
जय जय पर्वत
राज हिमालय,तोहरे देहक
कण-कण सँ अछि
बनल हमर सबहक ई देश .
कोशी, कनकइ, कमला,
गंडक, गंगा
द्वारा सनेस
जकाँ पठा माटि
एकरा छह
पुष्ट करैत
अपन शरीरक
घाम सदृश हिमजल सँ
छह पटबैत
पुनि कहिओ-कहिओ
तमसैल
जकाँ भूकम्प
मचा ध्वंसो छह
क’ दैत,
तें
तीरभुक्ति मिथिलाक थिकह तों
ब्रह्मा-विष्णु-महेश.
एहि सब पाँति
पढ़ि कए हमर भ्रांति दूर भए गेल !
( मैथिली
अकादेमी पत्रिका, पटना, अंक 9, 2006 में प्रकाशित लेख केर संपादित, अद्यतन स्वरुप )
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