Monday, January 24, 2022

मैथिली साहित्यक विरल विभूति : लिली रे

 

मैथिली साहित्यक विरल विभूति : लिली रे *

श्रीमती लिली रे मैथिली भाषाक विरल विभूति छथि. ई बीसम शताब्दीक मध्यहिंसँ  अपन कथा, आ पछाति उपन्याससँ, मैथिलीक भंडार भरलनि. मुदा, विडंबना एहन जे मैथिली साहित्यक दृष्टि हिनका पर बिलम्बसँ  पड़लैक. परिचित होइतो ई बहुत दिन धरि अपरिचिते-जकाँ रहलीह. 1981 में मैथिली अकादमी, पटना जखन लिली रे क उपन्यास ‘मरीचिका’ प्रकाशित कयलक तं मैथिली अकादेमीक तत्कालीन सचिव, श्रीकान्त ठाकुर एहि बातकें स्वीकार करैत प्रकाशकीय में लिखैत छथि:                                                                                                  

‘श्रीमती लिली रे मैथिली जगत में बहुत दिन धरि अज्ञात जकाँ रहलीह, मुदा आब के नहिं जनैत छनि.’ 1      

1982 में लिखल ओहि प्रकाशकीय केर करीब चारि दशकक पछातिओ आइ जं Google पर ‘Lily Ray, the Maithili writer ’ ताकी तं साहित्य अकादेमीसँ मैथिली पुरस्कृत लेखक लोकनिक सूची में नामक अतिरिक्त लिली रे क संबंध में आओर किछु नहिं भेटत. एहना स्थिति में आवश्यक थिक, मैथिलीक नव पीढ़ी हुनक रचना-संसारसँ  परिचित होअए, लिली रे क रचना-संसारक सम्यक एवं निरपेक्ष मूल्यांकन हो. 

प्रश्न उठैछ, श्रीमती लिली रे सन विभूतिक उपस्थितिकें अकानबा में मैथिली साहित्य बिलम्ब किएक केलक ? मैथिली साहित्यक एहन  विभूति  एतेक दिन धरि साहित्यकार लोकनिक ‘ blind-spot’ पर किएक रहलीह ? जाहि वर्जित सामाजिक मुद्दाकें लेखनक केंद्र विन्दु में अनबाक कारण मैथिलीक किछु साहित्यकारलोकनि  क्रांतिकारी मानल गेलाह, ओहने प्रश्न जखन ‘एक नारी लेखक’ द्वारा उठाओल गेल, तं, ओकर ताक-हेर  किएक नहिं भेल ? यदयपि, ओहि समयक चर्चित हस्ती लोकनि हिनक ओहि  ‘चर्चित कथा’क  स्वागत केने रहथिन. तें, उपरोक्त प्रश्नक उत्तर देब आवश्यक तं अछिए, पछाति, इहो देखल जयबाक चाही जे लिली रे एतेक दिन मैथिली साहित्यक मुख्यधारासँ बाहर किएक रहलीह, ‘मरीचिका’ प्रकाशनक चालीस वर्ष पछातियो मैथिली साहित्य हिनक दृष्टिकें नव प्रयोगक सूत्रधारक  रूप में किएक नहिं रेखांकित करैछ ? तें आवश्यकता अछि, जे एहि संक्षिप्त लेखमें हम एही सब विन्दु पर विचार करैत छी. संगहि, लिली रे क रचना-संसार पर विहंगम दृष्टि दैत, मैथिलीक हेतु हुनक महत्व कें रेखांकितक करबाक प्रयास करैत छी.

लिली रे क जड़ि मिथिला में छनि, किन्तु, लिली रे सदा मिथिलासँ दूर रहलीह. तें, की मिथिलाक ‘पंचकोसी’सँ हुनक दूरी हुनका मैथिली साहित्यक मुख्य धारासँ दूर रखबाक कारण सिद्ध भेल ? श्रीमती लिली रे क  मैथिली साहित्य-समाजसँ  सोझ सम्पर्कक अभावक एक रोचक कथा श्री भीमनाथ झा कहलनि. गप्प वर्ष 1982 क थिकैक. ओहि वर्ष श्रीमती लिली रे कें ‘मरीचिका’ नामक उपन्यास पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार भेटल रहनि. संयोगसँ ओहि वर्ष जाहि दिन दिल्ली में साहित्य अकादेमीक पुरस्कार वितरण समारोह रहैक ओहिसँ ठीक एक दिन पूर्व बिहारक मैथिली अकादेमी, पटना में श्रीमती लिली रे कें  सम्मानित करबाक आयोजन केने छल. मुदा, पटनाक आयोजनक दिन धरि लिली रे कें  साहित्य अकादेमी, दिल्लीक  पुरस्कार वितरण समारोह दए बूझल नहिं रहनि. जखन मैथिली अकादेमी, पटनाक समारोह में भीमनाथ झा अपन वक्तव्य में कहलखिन जे, ‘ ई कतेक गौरवक विषय थिक जे काल्हि श्रीमती लिली रे साहित्य अकादेमीसँ  पुरस्कार ग्रहण करतीह आ आइ ई हमरा लोकनि बीच छथि’ तं श्रीमती लिली रे स्वयं चकित भए गेलीह. पछाति, ओही सूचनाक आधार पर ओ पुरस्कार ग्रहण करबाक हेतु अगिला दिन दिल्ली पहुँचलीह !

श्री भीमनाथ कहैत छथि, जे लिली रे क बहुचर्चित कथा ‘ रंगीन परदा’ क चर्चा मैथिली में पहिनहुँ  खूब भेल रहैक’. मुदा, छद्मनामक लेखिका ‘कल्पना शरण’क कारण तेना भ’ कए ओ चिन्हार नहिं भए सकलीह. ओ आगू कहैत छथि, जे जखन 1979 में ‘मिथिला मिहिर’ में लिली रे क उपन्यास ‘ पटाक्षेप’क धारावाहिक प्रकाशन भेल तं सर्वप्रथम ई ‘प्रकाश में आयल ’ भेल जे ‘कल्पना शरण’ वस्तुतः लिली रे थिकीह !

मैथिल समाज सनातनी आ परिवर्तनक प्रति उदासीन अछि, से सर्वविदित अछि. परिवर्तनक स्वर मिथिलामें बड्ड  बिलम्बसँ  प्रतिध्वनित होइछ. संगहि, ‘उच्च जमींदार परिवार आ  प्राचीन सनातन परम्परा’क प्रतिनिधि होइतो लिली रे केर  जीवनधारा ‘अधुनातन’ छनि, आचार विचार ‘उदारतम’ छनि एवं ओ ‘विप्लवी युगधर्मक प्रत्यक्ष दर्शन-स्पर्शनसँ बनल एक अनुपम व्यक्तित्व’ थिकी.2. अर्थात्, मैथिल- समाजक उपज, लिली रे अपन जीवन पद्धति आ मानसिकता में समकालीन मैथिल समाजसँ किछु अर्थ में समानता रखितो, जीवन पद्धति आ विचार में ओहिसँ सर्वथा भिन्न छथि. कल्पना शरणक छद्मनामसँ ‘वैदेही’ में 1956 में प्रकाशित हुनक मैथिली  कथा ‘रंगीन परदा’, एकर प्रमाण थिक. विचार में ई कथा लीकसँ प्रायः ओतबे हंटल छल, जतबा ‘यात्री’क पारो रहनि, वा आन परम्परा-भंजक चर्चित  लेखन सब छल. तथापि, किएक ‘पारो’  वा आन समकालीन ‘पुरुष’ लेखक लोकनिक लेखन क्रांतिकारी मानल गेल आ ‘रंगीन परदा’क लेखककें तेना भ’ कए तकबाक प्रायः कोनो प्रयासो नहिं भेल ? की ई नव स्वर, नव धाराक प्रति मैथिली साहित्यक उदासीनताक लक्षण थिक ? वा, ई साहित्यमें लिंग-भेदक उदहारण थिक जखन कि ‘रंगीन परदा’कें स्व. ललित ‘ मैथिली कथाक माइलस्टोन’ क संज्ञा देने रहथिन.

 

साहित्य में लिंग-भेद  आ मैथिली

साहित्य में लिंग-भेद पर प्रकाश दैत लीसल गेकर नामक लेखिका लिखैत छथि, ‘1900 सँ 2008 धरिक प्रकाशित  पैंतीस लाख अंग्रेजी पुस्तक सबहक एकटा विश्लेषण एहि धारणा कें पुष्ट करैत अछि जे साहित्य में लिंग भेदक जड़ि दूर धरि छैक !’2  वर्ष 2018 में ‘स्क्रॉल’ नामक पत्रिका में लिखैत जेनी भट्ट नामक लेखिका कहैत छथि, ‘ यद्यपि, भारतीय भाषा में  लिंग-भेद पर आंकड़ाक अभाव छैक, तथापि, एहि में दू मत नहिं जे प्रकाशन-उद्योग पुरुष लोकनिकें केवल प्रधानताए टा नहिं दैछ , प्रत्युत, पुरुष लोकनिक विचारधाराक समर्थनो करैछ.4   तें, की एहि धारणाक कोनो आधार अछि जे मैथिली साहित्यो में आन नारी लेखक सबहक संग लिली रे सन साहित्यकार सेहो लिंग-भेद  शिकार छथि ?  मैथिलीक वरिष्ठ कथाकार नीरजा रेणुक कहैत छथि, ‘मैथिली में महिला साहित्यकार लोकनिकें दोयम दर्जाक साहित्यकार जकाँ  बूझल जाइत छनि, आ सभा-सम्मलेन में ओ  लोकनि ‘ अवांछित तत्व’ जकाँ बूझल जाइत छथि.’ मुदा, ओ मानैत छथि, ‘परिस्थिति बदलि रहलैए’. श्रीमती लिली रे क संबंध में हुनक कहब छनि जे ‘लिली रे  क ‘रचना पाठकक हाथ में देरी अएलैक’.

प्रतिष्ठित साहित्यकार केदार कानन साहित्यमें लिंग-भेदसँ  सहमति व्यक्त करैत कहैत छथि, ‘ई 80 % सत्य थिक जे मैथिली मुख्यधारा नारी लेखनक प्रति उदासीन अछि’. ओ इहो कहैत छथि जे, ‘ई मैथिली साहित्यक विसंगति थिक जे लिली रे क मैथिली में जाहि प्रकारक योगदान छनि हुनका ततबा श्रेय नहिं भेटलनि.’ नारि-लेखनक प्रति ‘मैथिली साहित्यक मुख्यधारा उदासीन अछि’ से कथाकार-कवि सुस्मिता पाठक सेहो मानैत छथि. हुनकर कहब छनि जे हुनकर लेखन पर ‘कदाचिते कोनो प्रतिक्रिया अबैत छनि. आ अबितो छनि तं सोझ नहिं, हुनक पतिक माध्यमसँ !’

लिली रे क रचना

लिली रे छोटे वयससँ कथा लिखय लागल रहथि; हिंदी आ मैथिली दुनू में. ‘रोगिणी’ नामक कथा मैथिली में प्रायः हिनक पहिल प्रकाशित कथा थिकनि. एकर प्रकाशन वर्ष 1955 थिक. ई कथा एकटा मरणासन्न बाल विधवा, एक टा डाक्टर, आ एकटा बरख दसेक बालकक चरित्र पर आधारित छोट-सन कथा थिक. एहि में निर्धन बाल-विधवाक जीवन आ विवशताक चित्रणक संग  एकटा पैघ सामाजिक सत्य सेहो सन्निहित छैक. तहिया ई कथा पाठककें आकृष्ट केलकनि कि नहिं से कहब कठिन. मुदा, कथाक शैली सधल छैक, कथ्य सोझ छैक. ई कथा पढ़ि हमरा हमरा लेखिका एम. एम. केय केर प्रसिद्ध उपन्यास The Far Pavilions क एकटा संदर्भ मन पड़ैछ. ओहि पोथीमे एकटा नारि पात्र कथा-नायकसँ  कहैत छथिन:

                                    “.... पुरुष जाति बीजक प्रति लापरवाह होइछ. हुनकालोकनि कें वेश्या वा दुश्चरित्र नारि संग सम्भोग में कोनो दुविधा नहिं होइत छनि. (मुदा) कहियो ई नहिं फुरैत छनि, जे एहि संयोगक की परिणाम हेतैक..... ततबे नहिं, पुरुषलोकनि अपन इच्छाक अनुकूल संतानकें चुनबाक अधिकारकें सुरक्षित रखैत छथि. मुदा, जं हम अहाँक संग अजुका सहवाससँ गर्भवती भ’ जाइ तं हमरा तकर भान पछातियो होइत रहत. लम्बा अवधि धरि हम ओकरा (भ्रूणकें ) अपन शरीर में राखब, ओकर कष्ट सहब, अपन जान पर जोखिम उठायब, आ  ओहि नेनाकें जन्म  देबाक हेतु पीड़ा सहब.” 4

लिली रे नारिक जीवनक एहि यथार्थकें एक छोट कथा में आइसँ पैसठि वर्ष पूर्व ठांहिं-पठांहिं रखने छलीह, जहिया मैथिली साहित्य में ई चर्चाक विषय नहिं छल. ई अद्भुत छल.

 ‘रंगीन परदा’ नामक कथा लिली रे बहुचर्चित कथा थिक, जकर चर्चा उपरो भेल अछि. ई कथा 1956 में ‘वैदेही’क कथा-अंक में छपल छल. ‘रंगीन परदा’क कथाक केंद्र में छथि, पहिनेसँ एक दोसरासँ  परिचित कुमरजी (मोहनजी) आ मालती. जहिया मालती कुमारिए मे अपन पिउसिक ओतय गेल रहथि, कुमरजी (मोहनजी)क  संग अनायास भेंट मे दुनूक बीच परिचय आ आकर्षण भेल रहनि. संयोगसँ, वएह कुमर जी पछाति मालतीक जमाए बनि जाइत छथिन. कतेक वर्ष पछातिक भेंट, मालती आ कुमरजी संबंधकें शारीरिको बना  दैत अछि, आ ओकर ‘रंगीन परदा’ सेहो बनि जाइछ. मुदा, जखन मालतीक पति, आ कुमरजीक श्वसुर महाकान्त, एकाएक हुनका लोकनिकें बतर ‘रंगल हाथ’ पकड़ि लैत छथिन, तं कुमर जी श्वसुरक (महाकान्तक) हत्याकए , साँपक काटब कें अपन श्वसुरक मृत्युक कारण घोषित कए, बेदाग़ बंचि जाइत छथि. मुदा, कुमरजीक पत्नी आ  मालती-महाकान्तक बेटी मरैत-मरैत माएकें ‘पतित’ घोषित तं कए दैत छथिन. तथापि, समाजक नजरि में  ‘परदा’ यथावत् बंचल रहि जाइछ. एहि कथाक चर्चित होइतो तहिया लिली रे तहिया ओतेक प्रसिद्ध नहिं भेलीह, जकर ई हकदार छलीह. किएक ? से सोचबाक थिक.

साहित्यसँ लम्बा अनुपस्थितिक पछाति ई जे रचना ल कए पुनः अएलीह, ओहि दीर्घ कथाक  नामहु छल, ‘अंतराल’.  पछाति उपन्यास ‘ पटाक्षेप’ धारावाहिक रूपें 1979 में ‘मिथिला मिहिर’ में प्रकाशित भेल. ई लोककें आकृष्ट केलकैक.  ‘पटाक्षेप’ उपन्यासक पृष्ठभूमि थिक सत्तरिक दशकमें नक्सलबाड़ी आन्दोलन. शहरी सुशिक्षित अभिजात्य युवक आ सर्वहारा, सब एहिसँ जुड़ल छल. लिली रे के शब्द में ‘आधुनिक युगमे वामपंथी विचारधाराबलाकें बुद्धिजीवीक दर्ज़ा भेटैत छैक.’ 5 संयोगसँ,  नक्सलबाड़ी आन्दोलन लेखकक जीवनकें ‘बड्ड लगसँ स्पर्श कयने रहनि. विषय नव रहैक. लोककें नीक लगलैक. मैथिली नारी लेखन में वर्ग-संघर्ष ताधरि आयलो नहिं छल. फलतः, ‘पटाक्षेप’क कथ्यक नवीनताक कारणें लिली रे अकस्मात् पुनः चर्चित भए गेलीह.

सर्वविदित अछि, पछाति अनेक सामाजिक आ तात्कालिक राजनैतिक परिस्थितिक कारण नक्सलबाड़ी आन्दोलनसँ आन्दोलनकारी लोकनिक मोहभंग  भए गेलनि आ आन्दोलन अन्ततः विफल भेल. ताधरि किछु क्रांतिकारी मारलो गेल छलाह. किछु घरो वापस भेलाह. ओहि घर वापस नक्सली लोकनिमें श्रीमती लिली रे क पुत्र सेहो रहथिन ! अस्तु,’ पटाक्षेप’  व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित ओहि युगक यथार्थ सामाजिक दस्तावेज थिक.

‘पटाक्षेप’क पीठे पर ‘मरीचिका’ आयल. वृहत्  कैनवास पर चित्रित दू खण्ड में विभाजित ‘मरीचिका’ लिली रे क’ magnum opus’ थिक; ई हुनक सबसँ पैघ, सबसँ चर्चित कृति, आ लेखकक रूपमें हुनक दक्षताक प्रमाण थिक.

सत्यतः, ‘मरीचिका’ एक टा  युगीन उपन्यास थिक, जकर एक खण्ड एक राजपरिवार आन्तरिक जीवनकें  चित्रित  केने अछि, तं, दोसर खण्ड, राजाक परश्रयसँ स्वतंत्र, दूर चल गेलि एक  नारिक संघर्ष आ सफलताक गाथा. लिली रे क आनो रचना जकाँ, ‘मरीचिका’ में स्त्री पात्र लोकनि कथाक केंद्र-विन्दु में छथि. पुरुष-पात्र लोकनि अबैत छथि आ चल जाइत छथि. ‘मरीचिका’क पूर्वार्द्धक पारिवारिक ताना-बाना में जं नारि लोकनि परम्परा द्वारा निर्धारित सीमा रेखासँ बन्हलो छथि, तं  ओहू मे आरम्भहिंसँ  नारिक बदलैत आकांक्षाक स्वर सेहो सुनबामें अवश्य अबैछ जखन ओहि उपन्यासक केन्द्रीय पात्र, हीरा, पूछैत छथिन, ‘ विज्ञान नारि कें पुरुष बना सकैछ ?’ रोचक थिक, जमींदारक परिवारक भीतर, नारि समाजक अत्यंत पारम्परिक वातावरण में पलल बढ़ल, दरबारक  हिसाब-किताब रखनिहारि, हीरा, अवसर अयला पर सामंतक सोझाँ सोझी अपन स्वतंत्रताक अभिव्यक्ति करैत छथि आ अपन बाट अपनहिं चुनैत, स्वतंत्र उद्यमी बनि  सफल होइत छथि ! तें, हीराक उद्यम पितृ सत्तात्मक व्यवस्था पर चोटे टा नहिं, नारिक स्वतंत्रताक उद्घोष आ नारि सशक्तीकरणक उदात्त उदहारण थिक. एकरा नारीवाद बूझी तं कोनो अनर्गल नहिं. ई सबटा श्रीमती लिली रे सुगम सरल भाषा में कहि जाइत छथि. एहि हेतु ने ओ संस्कृतनिष्ठ कठिन भाषाक प्रयोग करैत छथि, आ ने वर्तनीक विवादसँ प्रभावित होइत छथि. तखन, कतहु हुनक लेखन मे कदाचित्  एहनो शब्द भेटत जे, हुनकहिं शब्द में कहैत छी: ‘शब्दकोषहु में नहिं भेटत’.6

‘मरीचिका’ अंग्रेजक शासन कालसँ ल कय, द्वितीय विश्वयुद्ध, स्वतंत्रता संग्राम आ स्वातंत्र्योत्तर कालखण्डहु  कें स्पर्श करैत अछि. किन्तु, जखन देश स्वतंत्र भए जाइछ तखनो गाओं में अस्पताल आ उद्यम ज़मींदारहिं परिवार खोलैत छथि. ई सामाजिक सत्य वा लेखकीय दृष्टि दुनू भए सकैछ. संयोगवशात् ‘मरीचिका’क अन्त नाटकीय नहियो होइत, नाटकीय भए जाइछ, जखन हीराक डाक्टर पुत्रक विवाह ओही राजाक बेटीक संग भए जाइत छनि जे राजा लोकलज्जाक भयसँ  एक युग पहिने हीराकें पत्नी बनयबासँ पयर पाछू कए नेने छलाह. मुदा, ई सब तखन संभव भेल, जखन पुरान पीढ़ीक रोष आ पूर्वाग्रहक आगि मिझा कए छाउर भए गेल रहैक छैक आ सन्तति लोकनिक नव पीढ़ी समानताक धरातल पर नव संबंध बनओलक.

 लिली रे क कथा

दीर्घ रचनाकालक अछैतो लिली रे कुल संकलित कथाक संख्या पचाससँ कम ( कथा: 43 ; बाल कथा:6 ) छनि.  डाक्टर रमानन्द झा ‘रमण’ अनेक ठाम छिड़ियायल एहि रचना सबहक संकलन-संपादन-समीक्षा कयलनिए.  सरिसब-पाहीक ‘साहित्यिकी’ संस्था 2014 सँ 2017 क बीच  लिली रे क आत्मकथा सहित हिनक कुल संकलित रचनाकें सात खण्ड में- रंगीन परदा, लाली गुराँस (दुनू कथा संग्रह), पटाक्षेप (उपन्यास), विशाखन (कथा-संग्रह), समयकें धङैत (आत्मकथा), उपसंहार एवं एकटा बड्ड पुरान गप्प (उपन्यास), आ नीक लोक (दीर्घकथा) -  प्रकाशित कयलक अछि. एहि संकलनक प्रकाशनसँ  अध्येता कें लिली रे क सम्पूर्ण साहित्य सुलभ भए गेलनिए; ई महत्वपूर्ण काज थिक.

लिली रे अनेक कथा, जेना, ‘अंतराल’ आ ‘विशाखन’ आकार मे पैघ अछि. अधिकतर कथाक केंद्र में नारिए छथि; कतहु निर्धन- बालविधवा, कतहु ग्रामीण समाज मे रमल-बसल माए, कतहु आधुनिक शहरी आप्रवासी दम्पति, वा नौकरी-पेशा नारि. हुनका लोकनिक चिन्ता हुनक मानसिकता आ रणनीति निर्धारित करैत अछि. एहि सबहक बीच समयक बदलैत स्वर सब ठाम सुनबा में अबैछ. ‘विशाखन’ नामक दीर्घ कथामें  दू परिवेश आ दू पीढ़ीक नारिलोकनिक दुविधाक चित्रण बड़ नीक-जकाँ भेल अछि. एक दिस, अमितक माता सीमित साधन, आ समाजक बलें, गामक जिनगी मे संतुष्ट छथि. तं, दोसर दिस, अमित आ हुनक पत्नी, मधु, उच्च पद, आ मध्यवर्गीय साधनक अछैतो परिवारिकें छिन्न-भिन्न हयबासँ नहिं बंचा पबैत छथि !  ‘अंतराल’ में  बाल-विधवा ‘कृष्णा’ कें बहिन बेर-कुबेर में काज ले बजा लैत छथिन. मुदा, कृष्णाकें ककरोसँ किछु अपेक्षा नहिं छनि. जीवन साध्वी-जकाँ छनि. तथापि, सत्यकें बूझितो ओ रोष-मुक्त छथि. एहि सबहक एकेटा संकेत आ संदेश थिक ; परिस्थिति केहनो होइक नारि अपनाकें परिस्थितिक अनुकूल ढारि लैत छथि. कतहु लीक पर चलि कए, कतहु नदीक धारक संग बहैत. मुदा, लिली रे क नारि लोकनि उद्यम करैत छथि, परिस्थितिसँ लड़ैत छथि. ओ ने साहस छोड़ैत छथि, ने भाग्य के दोष दैत छथि. मुदा,परिस्थिति केहनो हो ओ लोकनि( मालती: रंगीन परदा,रेनू: रोगिणी, हीरा: मरीचिका, अपर्णा: उपसंहार, अमितक माए: विशाखन, वा ललिता: एकटा बड्ड पुरान गप्प ) अपन आत्म-सम्मानकें कतहु ठेस नहिं लागय दैत छथिन. 

लिली रे  नेना-भुटकाक हेतु सेहो किछु कथा लिखने छथि. बाल-कथा सब अनेक ‘कथा-संग्रह’क अंत में संकलित अछि. केदार कानन कहैत छथि, ‘ हुनक नामक लिली रे क चिठ्ठी सब में कोनो-कोनो में बिलाड़ि, आ चिड़ै, इत्यादिक चित्र सेहो रहैत छलनि. ईहो साहित्यकार लिली रे व्यक्तित्वक एक पक्ष थिक. हमर नामे लिली रे किछु चिट्ठी हमरो लग अछि, मुदा, ओहि में चित्र नहिं छैक.

शैलीक दृष्टिसँ  लिली रे क साहित्यकें यथार्थवादी कहब उचित हयत. जे जेना छैक, तकर चित्र ओहने भेटत. ओहि में कल्पनाक योग छैक, मुदा, ओहि में कोनो वाद वा सैद्धान्तिक धाराक अनुगमन नहिं छैक. कोनो परिस्थितिमें समाज जेहन होइछ, ओहन परिस्थिति में समाजक जाहि वर्गक प्रतिक्रिया जेहन होइत छैक, चित्रण तेहने भेटत. जेना पहिने चर्चा भेल अछि, एहिमें नारि सब ठाम केंद्र में छथि. मुदा, तें, ई पुरुष पात्र पर आधारित कथा नहिं लिखने छथि, से नहिं. ‘बिल टेलर केर डायरी’ नामक कथा एकर केवल एकटा उदाहरण थिक. हँ, हिनक नारि पात्र- ‘मरीचिका’क हीरा होथु, लाली-गुराँसक चुनी, ‘विशाखन’ केर अमितक माय, वा ‘अंतराल’क कृष्णा-  सब नारि अपन विधाता अपनहिं छथि, सम्मानक संग,  समयक संग डेग मिलबैत चलैत छथि. तें, हिनक अनेक नारि पात्र स्वतंत्र ( यथा,ललिता: एकटा गप्प बड्ड पुरान गप्प), आ  परिवर्तनक  सूत्रधार (यथा,गीता: एकटा गप्प बड्ड पुरान गप्प) प्रतीत होइत छथि. ई लेखकक दृष्टि आ जीवन-दर्शनक विशेषता थिकनि. एकर श्रेय प्रोफ़ेसर शंकर कुमार झा  हिनक लालन पालनक परिवेश, आ पाश्चात्य मिसनरी शिक्षाक  प्रभावक फल मानैत छथि.7  एकटा गप्प आओर: लिली रे क  कथाक परिधि मिथिलाए धरि सीमित नहिं अछि ; विषय-वस्तुओ में पर्याप्त विविधता भेटत. अस्तु, विस्तृत भौगोलिक परिधि आ जीवनक विविध फलक केर समावेश हिनक साहित्यक वैशिष्ट्य थिक.

रचनाकारक रूप मे लिली रे

आब लिली रे क रचना कर्मक चर्चा. लिली रे क अनुभवक परिधि विस्तृत छनि. पिता, आ पतिक नौकरी-पेशा हयबाक कारण श्रीमती लिली रे के अनेक स्थान पर रहबाक अवसर भेलनि. विभिन्न ठामक प्रवासमें  भिन्न-भिन्न परिस्थिति मे हुनका मनुखक जीवनक भिन्न-भिन्न फलक देखबाक अवसर भेटलनि. तें, हुनक अनुभव में सामन्त, नौकरशाह-डाक्टर, निर्धन-नारि-पुरुष-सर्वहारा, आ ग्रामीण-नगरीय, सबहक जीवनक समावेश छनि. मुदा, दृष्टि सब ठाम अपन छनि; प्रगतिशील, उदारवादी, स्वतंत्र, समयसँ आगाँ. लिली रे क  व्यक्तित्व पर प्रोफेसर शंकर कुमार झाक परिचयात्मक लेख हिनक व्यक्तित्वक संतुलित विवेचना थिक.7  

लिली रे अपन रचना प्रक्रियाक संबंध में कहैत छथि, जे  ‘ओ  जे देखथि ‘ओकरे प्लाट बना लेथि.... मुदा लिखैत काल अल्ल-बल्ल हींगसँ हरदि तक जे फुरैत अछि, हम लिखैत रहैत छी. ई हमर बसमे नहिं अछि.’ 8 से वर्णननक  विस्तार बहुतो ठाम (  यथा:‘मरीचिका’, एकटा बड्ड पुरान गप्प) प्रतीत होइछ.

पारिवारिक ओझरौठक एक टा दीर्घ कालखण्ड ( 1960-78 ई. ) में प्रायः लिली रे क कोनो रचना प्रकाशित नहिं भेलनि. मुदा, एहि अंतरालक बाद जखन पुनः ओ मैथिली साहित्यक क्षितिज पर अएलीह, तं, ई साबित भए गेल जे ओ लोकक आँखिसँ दूर अवश्य रहथि, किन्तु, हुनकर रचनाकार पूर्ववत जीवित रहनि.    

श्रीमती लिली रे अपन ‘लिखबाक कारण-श्रोत अपन दुनू बेटा कें मानैत’ छथि.8 ओहि में ओ  परिस्थितिवश ‘अनिद्रा’क योगकें सेहो स्वीकारैत छथि.8 ओना सबसँ रोचक ई लगैत अछि जखन ओ लिखैत छथि, ‘ एक तरहसँ ‘रंगीन परदा’ लिखबाक ‘प्रेरणाश्रोत चारि टा जिनियाक पौधा आ ताहि मे फुलायल-सुखायल फूल सब छल’.     ‘जिनिया फूलक थिरकबाक दृश्यकें लिखलाक बाद तकरा कोनो कथामे रखबाक इच्छा बलवती होअए लागल. हम सोचय लगलहुँ. बहुत पहिने मुकुल( छोटि बहिन)क वियाहमे जे लोकक जुटान भेल छल, ताहिमे एक सासु आ जमायकें लएकें काफी चर्चा छल. सासुक वयस जमायक वयससँ कम छलनि. सासु जमायसँ बजैत छली. से समाजमें प्रचलित नहिं छलै.  .......सम्भावनाक अंत नहिं छल. ..... खिस्सा लिखा गेल.’ 8 

हमरा जनैत, लेखकक जीवन मे प्रेरणा अबिते रहैत छैक, आवश्यकता होइछ ओकरा पकड़बाक. अस्तु, हुनका जखन जे प्रेरणा एलनि ओकरे ल’ कए हुनक  लेखनी, स्वाभाविक आ निर्बाध रूपें चलल. ओ एहि  व्यसनक उपयोग पूर्ण मनोयोगसँ कयनि. हुनक भाषाक सहजता, लेखनक प्रवाह आ हुनक लेखन मे छोटसँ छोट विषयक सूक्ष्मसँ सूक्ष्म वर्णन एकर प्रमाण थिक. एहन सूक्ष्म वर्णनक हेतु परिवेशकें देखबाले जेहने गहन दृष्टि चाही तेहने शब्द सामर्थ्य, लिखबाक धैर्य, आ शिल्प. एक माटिसँ प्रत्येक कुम्हार एके रंगक कमनीय मूर्ति नहिं गढ़ि सकैछ. ओहि हेतु कला-कौशल, तन्मयता आ दृष्टिक सूक्ष्मता, सब किछु चाहियैक. से, दृष्टि, भाषा, आ शिल्प लिली रे क ‘हॉल मार्क ( hall-mark)’- सुच्चा हेबाक निशानी- थिकनि. किन्तु, सर्वोपरि, सत्यकें यथावत् आ निर्भीक भए प्रस्तुत करबाक हुनक शैली, हुनका साहित्यकार लोकनिक बीच विरल विभूति संज्ञाक अधिकारी बनबैत अछि. एतबा भारतीय साहित्यमें लिली रे क स्थान सुरक्षित करबा ले पर्याप्त थिक. मैथिली कथा-साहित्य में सृजनक जे बाट ओ बनओलनि से नव बाट मैथिली लेखनक नव धाराक संवाहक नहिं बनि सकल ताहि में दोष लिली रे क नहिं.  

संदर्भ:

1. श्रीकान्त ठाकुर. प्रकाशकीय: मरीचिका उपन्यास (प्रथम खण्ड), लेखक, लिली रे, पटना: मैथिली अकादमी, , प्रथम संस्करण, 1981.

2. Goecker L. According to 3.5 Million Books, Women are beautiful and men are rational: The Swaddle; Sep 9, 2019.

3. Bhatt J. MeToo: How can literature (and publishers) respond to the problems of gender and power? : Scroll.in; Nov 25, 2018.

4. Kaye MM: The Far Pavilions. Toronto, NewYork, London: Bantam Books,1978. pp 435-36.

5. लिली रे: पटाक्षेप. सरिसब-पाही; साहित्यिकी प्रकाशन 2015pp 78 

6. लिली रे: उपसंहार एवं एकटा बड्ड पुरान गप्प. सरिसब-पाही; साहित्यिकी प्रकाशन, 2017pp106

7. शंकर कुमार झा: लिली रे. रंगीन परदा (कथा-संग्रह); सरिसब-पाही; साहित्यिकी प्रकाशन, 2014

8. लिली रे: समयकें धङैत (आत्मकथा). सरिसब-पाही; साहित्यिकी प्रकाशन, 2015. pp 28 एवं 42

आभार:

1. प्रोफ़ेसर भीमनाथ झा, श्रीमती नीरजा रेणु, श्री केदार कानन, श्रीमती सुस्मिता पाठक

2. श्रीमती रूपम झा, जनिक critical inputs एहि लेखकें परिमार्जित करबा में सहायक भेल.

 

 

Glossary:

Blind-spot: आँखिक परदा, रेटिना, क बीच ओ इलाका, जाहि बाटें आँखिक स्नायु( optic nerve ) मस्तिष्क दिस जयबा ले आँखिक डिम्हासँ बहराइछ. एहि बिंदु पर पड़ल प्रतिबिम्ब मनुष्यक चेतना धरि नहिं पहुँचैछ, मनुष्यकें बुझबा में नहिं अबैछ.

Hall-mark: आभूषण पर सोनाक गुणवत्ता प्रमाणक ठप्पा.

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*मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल 2021 क फेस्टिवल बुक ‘ अरिपन’ में प्रकाशित  

 

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