Saturday, March 26, 2022

अवाम गामक भोरुकबासँ भेंट

 

अवाम गामक भोरुकबासँ भेंट

अवाम, 20 मार्च 2022

अहल भोरे टहलबा ले विदा भेलहुँ तं बहुत दिनक बाद अवामक भोरुकबासँ भेंट भेल.

हम सन 1971 मे गाम छोड़ल. मुदा, गाम आयब नहिं छोड़ने छी. मुदा, अवामक ई बिसरल भोरुकबा बहुत दिन बाद भेटलाहे. आइ बहुतो गप्प मोन पड़ैत अछि. वर्ष 1971 सँ पूर्व सूर्योदयसँ दू तीन घंटा पहिनहिं उठि कए पढ़ब आरंभ करी. कोनिया ओसाराक एक कात चौकी पर दादा सूतथि. दोसर कातक चौकी पर जीतन सूतथि. हमर चौकी बीच में रहैत छल. हमरा उठयबा ले हिनका दुनूक अतिरिक्त हमर माता सेहो तत्पर रहथि. दादा कें सूर्योदयक बाद उठैत हम कहियो नहिं देखलियनि. ओहि युग में परिवारक मुखिया लोकनिक इएह नियम रहनि. जीतनक हेतु भोर हेबाक सूचना भोरुकबे दैत रहनि. कहियो काल हमरा अलसाइत देखि कहथि, ‘बौआ उठू, ओएह भोरुकबा उगि गेलैक !’

गाम में भोरुकबाक देखब भोर हेबाक एलार्म रहैक. महिसबार सब ओहिसँ पहिनहिं पसर चरबै ले महिस के लए  कए निकलि जाइत छल.

आइ अपन दरबज्जा परसँ  निकलि पहिने शीबू भाई कें संग करी. शीबू भाई समयक पक्का छथि. बिलंब भेल तं निकलि जेताह. हमरो लोकनि तं तेहने अनुशासन में पलल छी. अजुका नेयार 5 बजे भोरक छैक. माने हम शीबू भाईक ओतय 5 सँ  पाँच मिनट पहिने पहुँची. तखने ने पाँच बजे टहलान ले विदा हयब. अन्यथा On time is late ! माने, निर्धारित समय पर तं नेयारल काज आरंभ भए जेबाक चाही !! भारतीय सेना में सएह अनुशासन छैक. हम अपन पन्द्रह वर्ष लंबा अध्यापनक अवधि में छात्र लोकनि कें इएह सिखौलियनि. एहिना करैत रहलहुँ. हमरा लोकनिक शिक्षक स्व. डाक्टर हरिनन्दन द्विवेदी दुपहरियाक दू बजेक लेक्चर ले क्लास में पौने दू बजे आबि बैसि जाथि. मुदा, आब अनुशासन बदलि गेलैए. अपना ओतय समयक पाबंदी प्राथमिकताक सूची में सबसँ नीचा. पांडिचेरी में जखन हम एकबेर तत्कालीन डीन डाक्टर कृष्णन कें विद्यार्थीक क्लास में बिलंबसँ अयबाक शिकायत केलियनि तं ओ कहलनि, ‘ पन्द्रह मिनट धरिक छूट दिऔक.’ हम कहलियनि,’ असंभव!’ विद्यार्थी कें समय पालन सिखाएब हमरा लोकनिक काज थिक!’ आ सत्यतः  हमरा संग सदा विद्यार्थी सब सहयोग करैत रहल.

आइ शीबू भाई संग भेलाह आ हमरा लोकनि विदा भेलहुँ. टोल परक कुकुर सब अलसायल भोरुका निन्न मारि रहल छल. बनिया टोल पर कोनो कुकुर कें अपरिचित गंध लगलैक. एक दू बेर भूकल. मुदा, हमरा लोकनि आगू बढ़ि गेलहुँ. आइ हमर जयबा काल बेसी गौआं लोकनि सुतले छथि. ग्राम देवता लक्ष्मीनारायण सेहो शेषनाग पर निभेर निन्न छथि. पुजारी कें हुनका उठयबा में एखन बिलंब छनि. हं, लक्ष्मीनारायणक दक्षिण भारतीय प्रतिनिधि, वेंकटेशक स्तुति तं कतेक काल पहिने आरंभ भए गेल हेतनि. अमृतसरक स्वर्णमन्दिर में सेहो भक्त लोकनिक पतियानी लागल हएत. अवामक लक्ष्मीनारायण गौआं लोकनिक परिवारक सदस्य थिकाह. वा पुरान युगक आदर्श राजा थिकाह जनिका समक्ष केओ, कखनो फ़रियाद लए सोझे उपस्थित भए सकैछ.ने कोनो पतिआनी, ने कोनो प्रतीक्षा.

तें, एखन हमरो लोकनि लक्ष्मीनारायण के सूतले छोड़ि सोझे (अवाम आ पोखरभिंडा गामक बीचक) बाध में आबि गेलहुँ. एतय अबिते भोरुकबा आ पूर्ण चन्द्रमा दुनू मुहांमुही ठाढ़ भेटलाह. भोरुकबा पुबरिया आकाश में आ चन्द्रमा पश्चिम दिस. आकाश एखन साफ़ अछि. वातावरण निर्वात, किन्तु सुखद. जेना, हेमंत ऋतु होइक. भोरुका झलफल में खेतक जजात तं नीक जकाँ नहिं देखबा में नहिं अबैछ, किन्तु, एखन रब्बी-राईक समय छैक.

क्रमशः पौ फाटि गेलैए. बाध दिस लोक आब भेटब शुरू भेले. एतय सड़कक एक कात पत्रहीन पीपर ठाढ़ छथि आ दोसर दिस आमक कलम आ गाछी में मज्जरसँ भरल आमक गाछक समूह. लगैत अछि, एहि बेर खूब आम फड़तैक. किन्तु, आमक मज्जर आ आमक फसलक बीच अनेक संभावना छैक. अगिला किछु मास में मौसम केर मिजाज़ सबसँ बड़का निर्णायक थिक.

किछु आओर आगू बढ़ला पर किछु परिचित गौआं लोकनि अभरलाह आ हमरा लोकनिक संग भए गेलाह. सड़कक कातक खेत में मसुरी उखाड़ि कए गोलियाओल छैक. एकटा ग्रामीण कहैत छथि, ‘ पहिनेक समय रहितैक तं उखाड़ल मसुरी कहिया ने पार भए गेल रहितैक ! आब पन्द्रहो दिन एतय रहतैक तं केओ छूबो नहिं करतैक.’ ई सूनि नीक लागल.

हमरा लोकनि पोखरिभिंडा गाम धरि गेलहुँ. आपस होइत रही तं पूर्वक क्षितिज पर सूर्यक लाल चक्का सेहो उपस्थित भेलाह. महानगर सब में चान-सूर्य-तारा देखबाक सेहन्ता होइछ. गाम घर में एखन धरि ई लोकनि नागा नहिं करैत छथि. धूल-धुआं, धोन, आ मेघ तं सबठाम स्पर्धा करैछ.

आपसी में लक्ष्मीनारायण केन सेहो सुगबुगाइत देखलियनि. हुनक मन्दिरक सामनेक विशाल पीपरक गाछ, हमर बोधि-वृक्ष, एखनहु एहि परिसर कें छाया दैत ठाढ़ छथि. संयोगसँ हिनका शरीर पर पातक आभाव नहिं, ई पत्रहीन नहिं छथि. नहिं जानि, सड़कक पुबारि कातक पीपरक देह एखन नांगट किएक छनि. छथि तं ओएह पोखरिक बेसी लग. मुदा, मोन बिखिन्न छनि. हुनका जड़ि में प्रायः फूल-बेलपात नहिं चढ़ैत छनि. श्मसानक लग छथि. कदाचित भयभीत होथि! चिता सबहक धाहसँ काया कवलित भेल होइनि.  

ई सब सोचिते रही कि, तावते हमर गौआं, विनोद, भजन गबैत बाटे-बाट जाइत भेटलाह. हम प्रत्येक बेर हुनका अपना घर में पितामहक अमल केर कबीरपंथी साहित्यक खोज पुछारि करैत छियनि. मुदा, लोकक रूचि केवल बाप-पितामहक छोड़ल संपत्ति-सोना-बास डीह आ गाछी कलम में होइत छैक. घरक सफाई में सबसँ पहिने पोथीए-पतरा बाहर फेकल जाइछ. दिबाड़ सेहो पहिने पोथीएक संहार करैछ. तखन बाबाक युगक किताब कतय भेटत !  

संयोगसँ एहि बेर गाम में भोरे पढ़ैत केओ नेना देखबा में नहिं आयल. लगैए, कोरोना कालक प्रभाव एखनो छैक. मुदा, गाम में एखन कोरोनाक भए देखबा में नहिं आयल.भरि गाम में एको गोटे मास्क लगौने नहिं भेटल. अंततः हम अपनों मास्क उतारि बैग में राखल.

एहि बेर हम भौजीक निधनक कारण गाम आयल छी. आइ आ काल्हि बहुत गोटे भेटताह. तखन गाम में आओरो  बहुत किछु देखबा में आओत.                            

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