Tuesday, June 7, 2022

उजान मिड्ल स्कूलक अनुभव : वर्ष १९६५-६६

 

उजान मिड्ल स्कूलक  अनुभव : वर्ष १९६५-६६

प्राथमिक विद्यालयसँ पांचमा पाससँ भए  मिड्ल स्कूलमे जयबाक अनुभव अनेक अर्थमे स्मरणीय छल; मिड्ल स्कूलमे छठम आ सातम वर्गक पढ़ाई होइत रहैक. पहिल, गामक स्कूलसँ बहराइते जेठि बहिन, शीला दाईक संग छूटि गेल. शीला दाई स्कूल जा कए पढ़निहारि हमरा सबहक परिवारक पहिल कन्या रहथि. उजान आन गाम भेल. ओतय हमरालोकनिक अनेक कुटमैती छल. ओहुना, ताधरि अवामक केओ कन्या गामसँ बाहर जा कए नहिं पढ़ैत रहथि. जायब-आयब सेहो पयरे रहैक, पर्दा प्रथाक असरि समाप्त नहिं भेल रहैक. तें, अपना गाममे मिड्ल स्कूल नहि हेबाक सबसँ पहिल हानि हमर बहिनेकें भेलनि, आ ओ पाँचसँ  आगू नहि पढ़ि सकलीह. ऊपरसँ ताधरि विवाहक योग्य सेहो भए गेल रहथि; तेरह वर्ष होइत-होइत तहिया कन्या अजग्ग मान जाथि ! स्कूलमे पढ़ैत हुनक सब संगतुरिआक - जाहिमे केवल ब्राह्मण आ कायस्थक कन्या लोकनि रहथिन- विवाह पहिनहि भए चुकल रहनि. ओहुना कन्या लोकनिकें चिट्ठी-पत्री लिखब-पढ़ब आबि गेलनि, रामायण-महाभारत, खीसा-पिहानी पढ़ि लेतीह, तहिया सएह पर्याप्त छलैक.

उजान मिड्ल स्कूल हमरा घरसँ करीब आध कोस (१ माइल) पच्छिम छल. चटिया (विद्यार्थी) सब पयरे स्कूल जाथि. अवामक पछवारि टोल आ उजान स्कूलक बीच एकटा बाध पड़ैत रहैक. बाटमे गाछी-कलम, नासी (नदीक छाड़न) आ बाँध( बैलगाड़ी जयबा योग्य कच्ची सड़क) सेहो रहैक. मुदा, खेतक आरि पर देने  आ खुरबटिया बाटें गेला पर दूरी कम भए जाइक. तें, हमरा लोकनि छोट बाट धए जाइ-आबी.  

खेतक कोला(भूखण्ड) सबहक बीचक आरि-धूर पर निरंतर अवर्यातक कारण बाट देखार रहैक आ ककरो सोझ बाट तकबामे मोसकिल नहिं होइक. ओ खेत सब एखनो ओहिना अछि, मुदा, ओ बाट कतय पाबी. प्रगतिसँ लोक खुरबटिया बिसरि चुकल अछि आ मनुखक पयर आ भूमिक बीचक संबंध समाप्त भए गेलैक. वाहनक तेज गतिक कारण गाम-घरक बाध-बोनक सौन्दर्य आब लोकक दृष्टिपथ पर अबैत छैक, ओकर क्षणिक छवि आँखि पर जहिना अबैत छैक, तहिना बिला जाइत छैक. ओहि सौन्दर्यक अनुभूति चेतना धरि नहि भिजैत छैक. लोक प्रकृति देखबाले  टाका खर्च कए दूर-दूर जाइत अछि, किन्तु, हड़बड़ीमे किछुओ कहाँ भेटैत छैक.

आइ-काल्हि जखन हम गाम जाइत छी, अपन परिचित खुरबटियाकें तकबाक प्रयास करैत छी. तखन लगैत अछि, ओ सब प्रायः एहन स्वप्न छल जकरा अजुका यथार्थसँ  कोनो संबंध नहिं. किन्तु, एहिमे कोनो दुःख नहिं. मानव सभ्यताक विकास सबठाम इतिहासकें नीपैत चलैछ, आ नीपल सपाट भूमि पर वर्तमानक भव्य-भवनक निर्माण होइछ. ओ भव्य भवनमे ककरा केहन लगैत छनि ताहिमे भिन्नता छैक. हं, जखन लोकके भूमि पर इतिहास नहिं भेटैत छैक तं पातालसँ इतिहासकें खोधि निकालबामे बसल नगर आ शहरके सेहो मटियामेट कए दैछ. 

आब पुनः उजान स्कूलक बाट पर आबी. तहिया बाधमे ऋतुक अनुकूल धान-गहूम-बदाम (चना)-तीसी-खेसारी आ कुसियारक खेती होइत छलैक;  पहिने मिथिला कुसियार आ चीनीक मिल ले प्रसिद्द छल. स्कूलसँ आपसीमे भुखाएल विद्यार्थीकें मन भेलैक तं कहियो दू बुट्टी बदाम उखाड़ि लेलक आ छिम्मड़ि सोहि कए खेलक. केओ नहिं देखलकैक तं बेस. केओ देखि लेलकैक, आ मास्टरकें शिकाइत भेलनि, तं विद्यार्थी लठिआओल गेलाह. मुदा, से तं सोहाग-भाग भेलैक. लोकक खेतसँ बदाम उजाड़बै, कुसियारक छर तोड़बैक तं ओ शिकाइत नहिं करत ! आ शिकाइत करत तं दण्ड नहिं लागत !! लगतैक तं, लगतैक !!! देखल जयतैक ! एतेक आगू सोचि सोचि पबितहुँ तं विद्यार्थी नहि, गार्जियने रहितहुँ.

हमरा ई सब प्रवृत्ति नहिं छल. चोरि अधलाह थिकैक. हमर शिकाइत हयत, आ मास्टर हमरा दण्ड देताह! किन्नहु नहिं. हमही गामक सबसँ नीक विद्यार्थी छी. हमर अग्रज, ऊधोजी( स्व. उदयनाथ झा ) क नाम तहियो गाममे चर्चित छलनि.  आह ! ऊधोजी सन विद्यार्थी होअए ! सबतरि फस्ट ! माए कहथि: मोनसँ पढ़ह. देखैत छहुन माम लोकनिकें, विद्यहिंसँ सब उपार्जन केलनि-हें. परिवारक कमजोर आर्थिक स्थिति आ माएक निरंतर प्रेरणा मनमे सबसँ नीक बनबाक धुनिसँ भरि देअय. गाममे सब प्रशंसा करैत छल. आ हमर मन सिक्का चढ़ि जाइत छल.

उजान मिड्ल स्कूलमे वातावरण एकदम ग्रामीण रहैक. शिक्षक आ छात्र लोकनि आसे पासक गाँओक रहथि. शक्तिनाथ ठाकुर उर्फ हरिबाबू (सर्वसीमा), बलभद्र झा (कनकपुर),पं. बुद्धिनाथ मिश्र(उजान), रामबहादुर मिश्र(नडुआर), कुल चारि गोटे शिक्षक रहथि. अनुशासन सख्त रहैक. शिक्षक लोकनि  दक्ष रहथि. स्व. शक्तिनाथ ठाकुर अंग्रेजी व्याकरण पढ़बैत छलाह. अंग्रेजीक पढ़ाई मातृभाषा, राष्ट्रभाषा आ संस्कृतक अतिरिक्त चारिम भाषाक रूपमे हिन्दीक माध्यमसँ- माने, हिज्जेक संग – होइत रहैक. तें, शहरी परिवेशमे सुपरिचित, किन्तु ग्रामीण परिवेशमे अनभोआर कतेक सामान्य प्रयोगक वस्तु- जेना कप-सौसर – केर अर्थ सेहो विद्यार्थी शब्दकोषमे ताकथि. वाक्यक संरचना प्रयोगसँ  नहि, व्याकरणक माध्यमसँ  सिखाओल जाइत छलैक. ततबे नहिं, पोथीमे पढ़ल पाठकें सामान्य जीवनमे प्रयोगक ने प्रेरणा देल जाइक, ने उदहारण. विज्ञानक पोथीमे स्वास्थ्य शिक्षाक स्थान पर मानव शरीरक रचना आ फूल-पत्तीक वर्णन रहैक. सफाई आ स्वास्थ्यक गप्प स्कूलमे नहिं होइक.

हमरा लोकनि वर्ग छौ आ सातमे हिन्दी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञानक अतिरिक्त इतिहास-भूगोल आ मैथिली सेहो पढ़ने रही. हाई स्कूलमे विज्ञान-शाखामे गेलाक बाद, पाठ्यक्रममे इतिहास आ भूगोल  पढ़बाक अवसर हमरा पुनः कहियो नहिं भेल. कारण, तहिया बिहारमे बिहार बोर्डक कोर्स चलैत रहैक. हमरा लोकनि CBSE शब्द सुननहु नहि रहियैक.   

स्कूलमे सब तरहक छात्र रहथि. मुदा, समाजक सब वर्गक नहि. छात्र सबमे सबसँ बेसी संख्या ब्राह्मण लोकनिक. किछु बनिया, कायस्थ, किओट-धानुक-अमात. मुदा, अनुसूचित जाति आ मुसलमानसँ एकोटा नहि. आइ ई आश्चर्यजनक लगैछ. मुदा, तहिया तं ओ समाजक रीति रहैक. कारण, उजान आ लगक गाम सबमे मुसलमानक टोल रहबे करैक, अनुसूचित जातिक लोक तं रहबे करथि. परिवार आ समुदायक भीतर वा राजनीतिक दल दिससँ बच्चाकें पढ़यबाक कोनो मुहिम केर अभाव एकर प्रमुख कारण छल. मिथिलांचल में सार्वजानिक शिक्षाक अभावमे  छुआछूतक योगदान सेहो रहैक. ओना के नहिं जनैत अछि, गरीब समुदायमे सबसँ बड़का प्राथमिकता भूखसँ लड़ैत प्राण बचयबाक रहैत छैक. तहिया सर्व शिक्षा (अभियान)क तं लोक नामो नहि सुनने छल. एतय कहैत चली जे, रूसमे निरक्षरता उन्मूलनक अभियान वर्ष 1920 मे आरम्भ भेल छल. ओहि अभियानमे ‘स्थानीयकरण’ वा मातृभाषाक प्रयोग पर बल रहैक. किन्तु, जे स्वतंत्र भारत विकासक अनेक प्रेरणा सोवियत रूससँ नेने छल, ओ स्वतंत्रताक आरंभिक दशकमे साक्षरता आ साक्षरता अभियानमे मातृभाषाक प्रयोग पर कनेको ध्यान नहि देलक. कारण केवल आर्थिक छलैक कि नहिं, ताहि पर मतभेद संभव. हमरा जनैत, साक्षरता तहियाक सरकारक प्राथमिकता नहि रहैक. असलमे हमरो लोकनिक प्राइवेट मिड्ल आ हाई स्कूलमे पढ़लहुँ.  शिक्षकक वेतन छात्रक फीसेसँ  अबनि. मिड्ल स्कूलक भूमिमे उपजल अन्न सेहो शिक्षक लोकनि अपना में पारिश्रमिक जकाँ बाँट-बखरा करथि ! हमरा जनैत स्वतंत्र भारतक ई पहिल बड़का चूक छल.

उजान मिड्ल स्कूलक अधिकतर छात्र अपन परिवारक पहिले पढ़ुआ रहथि. तें, घर परिवारमे पढ़ओनिहारक अभाव रहैक. गामहुमे शिक्षितक अभाव रहैक. पिछड़ा वर्गमे कदाचिते केओ साक्षर भेटिते. तें, गाम पर बहुत कमे विद्यार्थीके पढ़बयबला भेटनि. गाम पर शिक्षकक अभाव, ताहू पर गणित पढ़ओनिहारक अभावक अनुभव हमरो होइत छल.

अनुशासनक नाम पर स्कूलमे भयक वातावरण रहैक. क्लासमे विद्यार्थीकें भरि मुँह बाजल नहि होइक. शिक्षकसँ शंका-समाधानक वा पूछताछक साहस नहि होइक. फलतः, कमजोर विद्यार्थी आओर कमजोर होइत जाइत छल. ताहि पर आर्थिक विपन्नता. फीस नहिं जुरैक. तें जे छात्र फेल भेल, स्कूल छोड़ि दैत छल.

मास्टर लोकनिमे बलभद्र झा आ पण्डित बुद्धिनाथ मिश्र स्वभावसँ सहृदय रहथि. ओ लोकनि विद्यार्थीक शंका सुनबो करथिन.कने मने गप्पो कए लेथिन. हमरा लोकनि हुनकासँ  किछु समाधान पाबि ली. मुदा, कमजोर विद्यार्थीकें भय होइक; जं किछु पुछलिऐक आ उलटे जवाब देबय पड़ल तं परम पहपटि ! हेडमास्टर शक्तिनाथ ठाकुर (हरिबाबू) दण्ड देबामे इलाकामे नामी रहथि.यद्यपि, ओ ओतेक दण्ड देथिन नहि जतेक हुनक दण्डसँ  छात्रकें भय होइक. हं, अनुशासनमे ओ सख्त अवश्य रहथिन. हुनकासँ ककरो किछु पुछबाक साहस कदाचिते होइक. मुदा, हुनकर पढ़ाईसँ अंग्रेजीक वाक्यमे कर्ता आ कालक अनुसार क्रियाक दोषरहित प्रयोग तं हम सीखिए गेलहुँ. किन्तु, अधिकतर विद्यार्थी जेना-तेना अपन शंका अपनहि दूर करय आ अपने भरोसे आगू बढ़ैत छल.

पछिला पचास वर्षमे शिक्षा व्यवस्थामे निरंतर सरकारी ‘प्रयोग’  बहुतो ले पैघ अभिशाप सिद्ध भेलैक. 1965 ई.मे जखन हम छठम वर्गमे पहुँचहुँ बिहार सरकार सातवाँ वर्गमे बोर्ड परीक्षा आरंभ केलक. बिहार विद्यालय परीक्षा समिति एहि परीक्षाक आयोजन करैत छल. स्कूल सब बोर्ड परीक्षाक पूर्व टेस्ट परीक्षा लैत रहैक. अधिकतर कमजोर विद्यार्थी टेस्ट परीक्षामे फेल भए जाइत छल. टेस्ट परीक्षामे फेल भेलहुँ तं बोर्ड परीक्षामे सम्मिलित हेबाक प्रश्ने नहि. तें मिड्ल बोर्ड परीक्षाक पूर्वक टेस्ट परीक्षा बहुतो विद्यार्थीक हेतु ई स्कूली शिक्षाक अंत साबित भेल. कारण, बूझब कठिन नहिं. बहुतो परिवार ले स्कूल फीस भारी छलैक. तखन जे फेल भेल ओकरा आगू के पढ़ाओत ! मुदा, जं ई विद्यार्थी लोकनि टेस्ट-परीक्षाक परिणामक आधार पर नहि रोकल जैतथि तं अवश्ये बहुतो हाई स्कूल धरि पहुँचिए जैतथि. कारण, बोर्ड परीक्षामे तहियो चोरि होइते रहैक.

पछाति, जे  विद्यार्थी बोर्ड परीक्षामे फेल भेलाह ओहो लोकनि पढ़ाई छोड़ि खेती-किसानी, पारिवारिक धंधा वा मज़दूरीमे लागि गेलाह. अस्तु, मिड्ल स्कूलक बोर्ड परीक्षा छात्रक भविष्यमे बड़का रोड़ा साबित भेल. हमरा नहि लगैए हमर सातवाँ क्लासक गोड़ पचासेक छात्र म सँ दसटासँ बेसी विद्यार्थी हाई स्कूल पहुँचल हेताह.

उजान स्कूल एकटा बैरकनुमा भवनमे रहैक. स्कूलक आगू छोट-सन अंगनै. खेलयबाक फील्ड नहि. मास्टर लोकनि टिफिन ब्रेकमे स्टाफ रूम- ऑफिसक कोठलीकें भीतरसँ बन्द कए ताश खेलाइत रहथि. विद्यार्थी सब जहिं-तंहि टॉआइत रहैत छलाह. स्कूलमे बाथरूम-टॉयलेट नहि रहैक. निवृत्ति हेबा ले विद्यार्थी आ शिक्षक ‘नदी दिस’ , ‘पोखरि दिस’ जाइत रहथि. स्कूलक पछुआड़ोमे पोखरि रहैक.  प्रत्येक वर्गमे कुल दू-तीन टा छात्रा छलीह. आब अनुभव होइए, कन्या सबकें कतेक असुविधा होइत छल हेतनि. मुदा, एतबा अवश्य जे जन्मसँ ‘नदी दिस’ , ‘पोखरि दिस’ जयबाक परंपराक कारणें ककरो ई कदाचिते अनुभव होइत रहैक जे जहिं-तंहि लघी-नदीसँ वातावरण आ जनस्वास्थ्य कतेक अहित होइत छलैक. आश्चर्य होइछ, इंग्लॅण्डमे शिक्षित, वकील-डाक्टर-इन्जिनीयर राजनेता लोकनि आ स्वतंत्र भारतक निर्माता लोकनि अनिवार्य शिक्षा आ जनस्वास्थ्यक सरल सुलभ आ सस्त तरीका तकबालए कोनो अनुसन्धानक प्रेरक किएक नहि बनलाह. जनताक उन्नतिक लेल आवश्यक एहि आधारभूत आवश्यकताके ओ लोकनि सामाजिक उन्नतिक लेल प्रस्थान भूमि किएक नहि बनओलनि.

आइओ जखन समाजमे रोग, हिंसा, गरीबी, धार्मिक असहिष्णुता, जनसंख्याक असीमित प्रसार देखैत छियैक तं सभक जड़िमे एकेटा विकृति-अशिक्षा-देखि पबैत छी; समाधान गुणात्मक शिक्षाक प्रसारे बूझि पड़ैछ. किन्तु, से सुलभ कहाँ !             

 

9 comments:

  1. बहुत नीक लागल पढिके सर।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद।

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    2. प• बुद्धिनाथझा झा रहथि

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  2. ताहि कालक विद्यालय, विद्यार्थी ,शिक्षक, समाज और लोकक मनोवृत्ति, सबहक बड्ड नीक चित्रण कएने छी

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  3. ताहि कालक विद्यालय, विद्यार्थी ,शिक्षक, समाज और लोकक मनोवृत्ति, सबहक बड्ड नीक चित्रण कएने छी

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    1. बहुत- बहुत धन्यवाद।

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  4. नारायण जी झाDecember 30, 2022 at 5:18 PM

    धन्यवाद दोस्त

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