पुस्तक समीक्षा: उद्देश्य,प्रक्रिया आ गुणवत्ता
पुस्तक समीक्षा रचनात्मक गतिविधि थिक. प्रतिष्ठित पत्रिकामे प्रकाशित समीक्षासँ जं एक दिस कृतिक
प्रतिष्ठा होइछ, कृतिक बिक्री बढ़ैछ, तं दोसर दिस पाठक ओहि दिस आकर्षित होइत छथि, हुनका
लोकनिकें अपन रुचिक उत्कृष्ट पोथीक चुनावमे सहायता भेटैत छनि. अस्तु, आवश्यक अछि
समीक्षा उत्तम हो. एकरे ध्यान रखैत, एहि संक्षिप्त लेखमे पुस्तक-समीक्षाक
उद्देश्य, प्रक्रिया, उपादेयता, आ गुणवत्ताक निर्वाह पर विचार करब हमर अभीष्ट अछि.
ISBN आँकड़ा पर आधारित, विकिपीडियाक
एक रिपोर्टक1 अनुसार वर्ष
२०१३ मे भारतमे विभिन्न भाषाक नब्बे हज़ार पोथी प्रकाशित भेल छल. स्पष्ट छैक, ने सब
पोथी बिकाइछ, ने पढ़ल जाइछ. सब पोथीक समीक्षाओ किएक छपतैक. समीक्षाक
दृष्टिए अंतर्राष्ट्रीय भाषाक स्थिति सेहो बहुत भिन्न नहि छैक. एक पुरान, विश्वस्त
आँकड़ाक अनुसार वर्ष २००१ मे अमेरिका मे लगभग चालीस हज़ार पोथी छपल छल.2 ओहि
वर्ष दैनिक न्यू यॉर्क टाइम्समे एहिमे केवल चारि सौ पोथीक समीक्षा छपल! अर्थात् न्यू
यॉर्क टाइम्स कुल प्रकाशित पुस्तकक केवल १% पुस्तकक समीक्षा प्रकाशित केलक. ओकर बाइस
वर्ष बाद आइ इन्टरनेट पर मुफ्त उपलब्ध पढ़बाक सामग्रीक कारण पत्र-पत्रिकाक
लोकप्रियता आ बिक्री घटलैक-ए. फलतः, अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त अनेको दैनिक स्वतंत्र
बुक-सेक्शनक प्रकाशन करीब दस वर्ष पूर्वहि बंद भए चुकल अछि. अर्थात् पहिने जतबो समीक्षा छपैत छल, आइ ओतबो नहि छपैत
अछि. एहन स्थितिमे आम पाठक अपन रुचिक पोथीक चुनाव कोना करथि ? तें, आवश्यक अछि,
प्रकाशित समीक्षा सामान्य पाठकक आ विद्वानक अपेक्षा पर खरा उतरय. ई अत्यंत कठिन
अछि.
समीक्षाक उपादेयता
शुद्धताक प्रमाणक ठप्पा ( hallmark) जेवर किननिहार ग्राहककें धातुक शुद्धताक गारंटीक विश्वास दिअबैछ. पोथीकें जं सोना बुझिऐक तं ओकरा कसौटी पर जांचहि पड़त. वस्तुतः, निष्पक्ष समीक्षासँ पाठककें पोथीक चुनावमें ओहिना सहायता होइछ जेना हॉलमार्कसँ सोनाक आभूषणक चुनावमे. अर्थात् उच्च कोटिक समीक्षा प्रकाशक आ पाठक दुनूकें पोथीक गुणवत्ताक विश्वास दिअएबैत छनि. समीक्षा लेखकक प्रतिष्ठा, आ पुस्तक तथा लेखक भविष्य बना वा बिगाड़ि सकैछ. कारण, प्रतिष्ठित प्रकाशन प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशनक हेतु पुस्तकक चुनाव, वा संस्था सब द्वारा पुरस्कारक हेतु पुस्तकक चयन, मूलतः एकाधिक समीक्षा पर निर्भर करैछ. तें, समीक्षाक उपादेयता स्वयंसिद्ध अछि.
पुस्तक समीक्षाक प्रक्रिया
पुस्तक समीक्षा कोनो रिसर्च पेपर, रिसर्च वा थीसिस केर प्रस्ताव, रिसर्च
ग्रांट केर आवेदन वा थीसिस केर मूल्यांकनसँ भिन्न नहि. रिसर्च पेपर, रिसर्च वा थीसिस
केर प्रस्ताव, रिसर्च ग्रांट केर आवेदन वा थीसिसक प्रस्तावमे विषयक पृष्ठभूमि, मौलिकता,
(प्रस्तावित विषयक) अध्ययनक औचित्य, उपलब्ध सामग्रीक सिंहावलोकन, अनुसंधानक विधि,
परिणाम आ ओकर उपादेयता मूल्यांकनक मुख्य-मुख्य विन्दु थिक. किएक तं सर्जनात्मक कृतिक
उद्देश्य आ स्वरुप रिसर्च पेपर, रिसर्च वा थीसिस केर प्रस्ताव, रिसर्च ग्रांट केर
आवेदनक स्वरुपसँ भिन्न होइछ, तें ओहि सबहक समीक्षा आ सर्जनात्मक साहित्यक समीक्षामे
मौलिक अंतर छैक. ततबे नहि, समीक्षा आ समालोचनामे सेहो भिन्न-भिन्न विधा थिक, यद्यपि,
समीक्षामे समालोचनाक किछु बिंदुक समावेश अवश्य होइछ. वस्तुतः, समालोचना कलाक विस्तृत
नीर-क्षीर विवेचना थिक. पुस्तक-समीक्षा पुस्तकक परिचयक संग ओकर गुण-दोष पर समीक्षकक
अपेक्षाकृत संक्षिप्त विचार थिक, जे मूलतः आम पाठक पर केन्द्रित होइछ. समालोचना विशेषज्ञ
पाठक पर केन्द्रित होइछ. समीक्षामे विषय वस्तुक प्रतिपादन, भाषा, आ कृतिक पठनीयता
समीक्षाक अहम बिंदु थिक. एहि सब विचारणीय बिंदु पर सम्यक विचार प्रस्तुत करबाक
हेतु ई आवश्यक थिक जे समीक्षक विषय वस्तुसँ नीक जकाँ परिचित होथि, कृतिकें मनोयोगपूर्वक
पढ़थि, आ कृतिक प्रत्येक फलक पर निरपेक्षता आ गंभीरतासँ विचार कए स्पष्ट शब्दमे ओकर
गुण-दोषकें पाठकक समक्ष राखथि. समीक्षकक स्पष्ट विचार आ गुणक अतिरिक्त पोथीक दोषक
चर्चा उत्तम कोटिक समीक्षाक अनिवार्य अवयव थिक.
एकर अतिरिक्त पोथी मनोरंजक छैक वा नहि ताहिमे पाठकक रुचि स्वाभाविक थिक. जं कविता,
उपन्यास, वृत्तांत, नाटकक पोथीकें एक बैसाड़मे समाप्त कयल जा सकैछ, तं मनोरंजन आ पठनीयताक
स्केल पर ओ पोथी १०/१० अवश्य भेल. पठनीयतामे भाषाक सरलताक आ कथाभूमिक रोचकताक
योगदान मूलभूत थिक. समीक्षामे एहि सब विन्दुक समावेश आवश्यक थिक. एकटा गप आओर. जेना
बिना मनोयोग आ परिश्रमक नीक पकवान नहि बनैत छैक, तहिना दक्ष संपादनक विना त्रुटिविहीन
पोथी प्रकाशन असंभव छैक. अर्थात् सरल भाषामे लिखल रोचक पोथीओमे मुद्रणक दोष, सुस्वादु
पकवानमे आँकड़ पाथर जकाँ प्रतीत होइछ. अस्तु,
सजग समीक्षकक दृष्टि ओम्हरो जायब आवश्यक.
समीक्षा आ समीक्षक
Perspective on History नामक पत्रमे The Art
of Reviewing लेखक ब्रूस मजलिश लिखैत छथि, ‘समीक्षक जतबे
पोथीक समीक्षा करैत छथि, समीक्षा सेहो समीक्षकक ओतबे समीक्षा करैछ.’ 2 अर्थात् समीक्षाक गुणवत्ता स्वयं समीक्षकक अवगति आ दक्षताक प्रमाण थिक. निष्पक्ष
आ संतुलित समीक्षा समीक्षकक प्रतिष्ठा बढ़बैछ; पक्षपातपूर्ण प्रशंसा वा निंदासँ पाठक
तं सहमत नहिए होइत छथि, ओहन समीक्षासँ कदाचित् समीक्षकक प्रतिष्ठाक हानिए होइत छनि. ततबे नहि, त्रुटिपूर्ण
समीक्षासँ लेखक, पाठक वा समीक्षक ककरो लाभ नहि. तहिना, अनोन (lukewarm) समीक्षा
जाहिमे समीक्षक अहम बिंदु पर स्पष्ट विचार देबासँ बचैत छथि, ओहूसँ ककरो लाभ नहि. एहन
समीक्षा पक्षपातपूर्ण समीक्षा जकाँ अकार्यक थिक.
उत्तम समीक्षाक आवश्यक शर्त
- समीक्षासँ पूर्व समीक्षक विषयक अधययन करथि. अपरिचित विषयक पोथीक समीक्षासँ
बचल जाय. विषयसँ अपरिचय वा अध्ययनक अभावमे समीक्षा करब घातक थिक.
- पोथीककें बिनु पढ़ने, केवल भूमिका, ब्लर्ब(blurb) वा अनकर समीक्षा पढ़ि कए
समीक्षा नहि लिखल जाय. विद्वान लोकनि एहन आग्रहसँ बचैत छथि. एहि विषय पर एकटा रोचक
कथा सुनल अछि. ई कथा एकटा लेखक आ राजनेता- आर. आर. दिवाकर आ भारतक विभूति स्वर्गीय
डॉ अमरनाथ झासँ संबंधित अछि. ई कथा हम स्वयं एक प्रत्यक्षदर्शी प्रतिष्ठित विद्वानक
मुँहे सुनने छी. एहि घटनाक विवरण पर
अविश्वासक कोनो कारण नहि बूझि पड़ैछ, तें, एतय ओकर चर्चा करबाक विचार भेल. घटना
निम्नवत् अछि: एक दिन बिहारक तत्कालीन राज्यपाल आर. आर. दिवाकर अपन कोनो पोथीक
भूमिका लिखयबा लेल डॉ अमरनाथ झाक पटना आवास पर उपस्थित भेलाह. मुदा, डॉ अमरनाथ झा
केवल ई कहि जे ‘मैं बिना पुस्तक पढ़े सम्मति नहीं लिखता’ राज्यपाल आर. आर. दिवाकरकें
विदा कए देलखिन!
-जाहि पुस्तक वा लेखमे समीक्षकक आर्थिक वा अन्य रूपें सहभागिता होइनि, ओ ओहि
पुस्तकक समीक्षासँ बचथि. पक्षपातक आरोपसँ बचावक हेतु ई अनिवार्य थिक.
सारांशमे समीक्षा प्रबुद्ध पाठकक अध्ययनक रचनात्मक परिणाम थिक. ई श्रमसाध्य
काज अध्ययन,प्रतिबद्धता, मनोयोग आ निष्पक्षताक सार्थक फल थिक जाहिसँ लेखक पाठक आ
साहित्य लाभान्वित होइछ.
सन्दर्भ:
1. Wikipedia: Books
published per country per year
https://en.wikipedia.org/wiki/Books_published_per_country_per_year. Accessed 17
June 2023.
2.
Bruce Mazlish. The Art of Reviewing. Perspectives on History Feb
1, 2001 https://www.historians.org/research-and-publications/perspectives-on-history/february-2001/the-art-of-reviewing
accessed 17 June 2023.
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