आदर्श वा नीक चिकित्सक ककरा कही
रोग सबसँ बड़का दुःख थिक. आरोग्य
सबसँ बड़का सुख.1 किन्तु, रोग ततबे स्वाभाविक थिक जतेक जीवन. बहुतो रोग
स्वयं दूर भए जाइछ. बहुतो रोग चिकित्साक पर्यन्तहु शरीरकें घर बना लैछ. किन्तु, रोगक
उचित चिकित्सा कोना हो ताहि पर चरक संहिताक उक्ति ततेक सटीक छैक जे तिरुवल्लुवर धरि ओकरा यथावत् दोहरा देलनि:
रोगी
वैद्य सेवक उपचार
चारि
खाम्ह पर रोग-विचार
कुरल, 950
उपरोक्त स्पष्ट
उक्तिक टीका अनावश्यक थिक. किन्तु, एहि चारू स्तंभमे सबसँ प्रधान ‘भिषक्’ अर्थात् वैद्य थिकाह, से चरक संहिता स्पष्ट कहैछ. तेँ चिकित्सक ‘नीक’ होथि तकर अपेक्षा सबकें होइछ. चरक संहितामे वैद्यकेर
गुण तं निर्दिष्ट छैके 2, ओहिमे तं एतेक धरि कहल गेल छैक जे ‘ मूढ़
वैद्य चिकित्सा करथि ताहिसँ नीक जे आत्महत्या कए ली. कारण, आन्हर जेना हाथसँ टोईया-टापर
कए भयभीत भए चलैछ, जेना वायुक वेगसँ दहाइत नाओ कतहुसँ कतहु चल जाइछ, तहिना मूढ़
वैद्य चिकित्सा-कर्ममे प्रवृत्त होइत छथि.3
अस्तु, आदर्श चिकित्सकक
ककरा कही एतय एही विन्दु पर विचार करैत छी. मुदा, एहि विन्दु पर विचार करबासँ
पूर्व देखिऐक जे चिकित्सकसँ रोगीकें की अपेक्षा होइछ. ताहिसँ उत्तर स्वयं स्पष्ट
भए जायत.
मृदुभाषी, प्रसन्नचित्त, आ रोगीक गप्प सुननिहार ओ चिकित्सक जे मनोनुकूल चिकित्सा करथि-
जे रोगीकें भावय, से वैद फरमाबय- तेहन चिकित्सक सब तकैछ. तथापि, शास्त्र-सम्मत
चिकित्सासँ जे चिकित्सक शीघ्र आरोग्य सुनिश्चित करथि, से आदर्श चिकित्सक थिकाह.
एहिमे दू मत नहि हेबाक चाही. अस्तु, एही
सब विन्दु पर कनेक विस्तारसँ चर्चा हो.
रोगीसँ संवाद आ समुचित
व्यवहार
पीड़ाग्रस्त रोगी आर्त होइछ. रोग आ
रोगीक प्रकृति रोगीक मानसिक परिस्थितिकें कमोबेश प्रभावित करिते छैक. से बिसरबाक नहि थिक. तथापि, एखन धरि भारतमे मेडिकल ग्रेजुएटक एम.बी.बी.एस.क
पाठ्यक्रममे रोगीक मनोविज्ञान, रोगीसँ संवाद आ व्यवहारक विधिक समावेश नहि छैक. पढ़ाई आ प्रशिक्षणक अवधिमे अनौपचारिक
रूपें रोगीक संग समुचित व्यवहारकें बेर-बेर रेखांकित अवश्य कयल जाइछ. अस्तु, चिकित्सकसँ सहृदयता आ नम्रताक अपेक्षा अवश्य कयल जाइछ. एहि सबकें देखैत, जं
रोगी चिकित्सकक व्यवहारसँ संतुष्ट भए आपस
भेलाह, तं चिकित्सक ‘रोगीक संग व्यवहार’क दृष्टिसँ सफल भेलाह’; सफलताक श्रेणी उतंम,
मध्यम वा साधारण भए सकैछ. चिकित्सकक व्यवहारसँ अप्रसन्न रोगी चिकित्सककें व्यवहारक
दृष्टिसँ असफल घोषित केलनि. रोगी आ चिकित्सकक बीच समुचित व्यवहारक रीतिक इएह निकती/
तराजू थिक.
रोगीक असंतोषक कारण
रोग-समन आ रोग-निवारणमे असफलता तथा
समुचित व्यवहारक अभाव चिकित्सकसँ रोगीक असंतोषक दू प्रमुख कारण थिक. किन्तु, सफल
चिकित्सा आ नीक व्यवहारक अतिरिक्त रोगीक असंतोषक आओरो अनेक कारण होइछ. एहिमे ‘डाक्टर गप्प नहि सुनैत छथिन’, ‘बड्ड जाँच करबैत छथिन’, ‘ बहुत दवाई
लिखैत छथिन’ आम शिकाइत थिक. यद्यपि, ‘डाक्टर दवाईए नहि लिखैत छथिन’ तेहनो शिकाइत कखनो काल
सुनबामे अबैछ. मुदा, ‘बिगड़ैत छथिन’ ई शिकाइतक अति थिक. एहन
व्यवहार अवांछनीय थिक.
चिकित्साक प्रत्येक विकल्पक विषयमे सूचनाक अभाव रोगीक हेतु चिकित्साक सुलभ आ सस्त विकल्प चुनबामे बड़का बाधा थिक. ई चिकित्सकक कर्तव्य आ रोगीक अधिकार थिकनि जे रोगक प्रकृति, जाँच-पड़ताल, आ चिकित्साक प्रत्येक विकल्प रोगीकें बुझाओल जाय, जाहिसँ रोगी आ परिचारक रोगीक हितमे सुलभ आ कारगर चिकित्साक विकल्प चुनि सकथि. अजुका चिकित्सा प्रणालीक ई कमजोरी थिक जे बहुधा रोगीकें सम्पूर्ण सूचना नहि भेटैत छैक, वा आधा-छिधा सूचना भेटैत छैक. एकरा पाठक लोकनि, उचिते, 'अन्हरजाली' कहैत छथि. जुनि बिसरि जे चिकित्सा व्यवस्था उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 क अधीन अछि.4 फलतः, अधिनियम अंतर्गत उपभोक्ता संरक्षणक कानूनक अनुपालन नीक चिकित्सक आ उत्तम स्वास्थ्य संस्थाक कर्त्तव्य थिक; नियमक उल्लंघन दण्डनीय थिक.
आब उपरोक्त प्रत्येक विन्दु पर विस्तारसँ
विचार करी.
‘डाक्टर गप्प नहि सुनैत छथिन’
रोग निदानक लेल रोगक इतिहास, आ चिकित्साक इतिहास बूझब आवश्यक होइछ. तें, चिकित्सा विज्ञानक पढ़ाईक पहिल चरणमे शरीर-संरचना (Anatomy), शरीर-क्रिया (Physiology) आ जीव-रसायन (Biochemistry)क आधारभूत शिक्षाक पछाति, दोसर चरणमे, रोगक चिकित्साक इतिहासक संकलन (history-taking) आ शरीर-परीक्षाक कला (Art of Physical Examination) पढ़ाओल जाइछ. यद्यपि, अनुभवी चिकित्सककें, आम बीमारीक रोगीकें देखि, रोगीक स्वरुप आ शरीर पर रोगक प्रभावक कारण, रोगक निदान (diagnosis) करब कठिन नहि, तथापि चिकित्साक सलाह देबासँ पूर्व रोगक इतिहास पुछब आ शरीर परीक्षाक प्रक्रिया अनिवार्य थिक. किन्तु, से जं नहि भेल, तं रोगीकें हताशा होइत छैक, उचितो छैक. गप्प सुनबाक सीमा एतबे धरि सीमित नहि छैक. जेना ऊपर कहल गेले, रोग, जांच एवं चिकित्साक प्रत्येक बिंदुकें बूझक रोगीक अधिकार थिकैक. रोगीकें सब बातकें बूझि अपन हितमे निर्णय करबाक स्वतंत्रता छैक. हुनका ई अवसर भेटब अनिवार्य थिक.
उपरोक्त रोगक इतिहास आ शरीर परीक्षाक
अतिरिक्त, आवश्यक भेने, लेबोरेटरी जाँच-पड़ताल आ स्कैनिंग-इमेजिंग (scan and imaging)
सामान्य थिक. ओना विगत किछु वर्षमे चिकित्साक पारंपरिक रीतिमे अनेक परिवर्तन भेलैए.
मेडिकल निदान संबंधी उपकरण (Medical diagnostic equipment) आ जाँच-पड़ताल विज्ञानक अभूतपूर्व विकास बहुत सीमा
धरि रोगक इतिहासक अनुसन्धान आ शरीर-परीक्षाकें गौण केने जा रहल अछि. एतेक धरि जे आब
कतेक चिकित्सकक सलाह-कक्ष (consultation
room) मे रोगीक जाँच करबाक-बिछाओन ( examination couch) सेहो नहि भेटत. अल्ट्रासाउंड
आ ह्रदयक इकोग्राफी (ultrasound and echocardiography) machine क उपलब्धताक कारण, डाक्टरक
पहिचान, stethoscope, सेहो लगभग अनावश्यक आभूषणक रूप धेने जा रहल अछि.
रोगक निदानक विधिमे परिवर्तन आ ओकर कारणकें एक उदाहरणसँ स्पष्ट कयल जा सकैछ. पेटक दर्द/ पीड़ा अति सामान्य रोग थिक. एकरे उदहारण ली. पेटक दर्दक कारणक निदान हेतु पहिने रोगक इतिहासक विस्तृत पूछताछ आ सघन शरीर परीक्षा ( detailed physical examination) आवश्यक होइत रहैक. आइ अनेक प्रश्नक उत्तर लगभग पेटक अल्ट्रासाउंड (Ultrasound scan)सँ भेटि जाइछ. तखन मौखिक अनुसंधान आ शरीर-परीक्षा कोन आवश्यकता? किन्तु, ओतबासँ ओहि रोगीकें कोना संतोष हेतैक, जकर नव अनुभव अपन पुरान अनुभवसँ मेल नहि खाइत छैक. ऊपरसँ आवश्यकता भेने CT-scan, MRI-scan, PET-scan, प्रयोगशाला विज्ञान (laboratory science)क विभिन्न प्रकारक आटोमेटिक उपकरण (autoanalyzer) चिकित्सककें रोग संबंधी एहन सब सूचना उपलब्ध करा दैछ, जे सूचना आन सामान्य जाँच-पड़तालसँ नहि भेटि पबैछ. ततबे नहि, जाँच-पड़तालक नव-नव विधिसँ रोगक निदानक अतिरिक्त, आगू चलि कए रोग पर चिकित्साक प्रभावक संग-संग रोगमे सुधार वा वृद्धिक प्रमाण सेहो भेटि जाइछ. एहि सबसँ केवल निदाने (diagnosis) टा नहि सुलभ भेलैए, बल्कि समयक बचतसँ चिकित्सा-व्यवस्थामे दक्षता (efficiency) आ उत्पादकता (productivity) सेहो बढ़लैए. हं, जाँच-पड़तालमे आधुनिक उपकरणक अत्यधिक उपयोगसँ चिकित्साक खर्च बढ़लैए. बढ़ैत खर्चक मारिसँ बहुतो रोगी चिकित्सा नहि करा पबैछ. अस्तु, रोग-निदानक पांपरिक पद्धति आ अत्यावश्यक आधुनिक जांच-पड़तालसँ सर्वसाधारण धरि चिकित्सा सुविधा कोना पहुँचाओल जाय, आइ से एकटा चुनौती थिक. किन्तु से एतय विवेचनाक विषय नहि. तथापि, आधुनिक प्रगति चिकित्सा-विज्ञान, चिकित्सा पद्धति आ ताहिमे चिकित्सकक भूमिका कोना प्रभावित करत तकर परिणाम आब विकसित समाजमे देखबामे आबि रहल अछि. अत्याधुनिक चिकित्सा पद्धतिक प्रभाव भारतहुमे देखल जा सकैछ.5 मोबाइल फ़ोन, इन्टरनेटक माध्यमसँ डाक्टरी सलाह आ चिकित्सा आ गूगलक माध्यमसँ रोगक स्वयं निदान एकर उदाहरण थिक. Covid-19 क महामारीक समय दूर-दूर धरि इन्टरनेट केर माध्यमसँ चिकित्सा-सुविधाक प्रसार एकर उदारण थिक. अस्तु, ई व्यवस्था आब आनो रोगक चिकित्साक हेतु कारगर अस्त्र बनि प्रमाणित भए रहल अछि.
आब एकटा दोसर विषय: चिकित्सा पर बढ़ैत
व्यय. एहिमे कोनो दू मत नहि जे आधुनिकतम उपकरणक आ चिकित्सासँ अनेको कॉर्पोरेट स्वास्थ्य संस्थानक आय आ मुनाफामे
निरंतर वृद्धि होइछ. चिकित्सा सेवामे बढ़ैत खर्चसँ जं एक दिस मध्यम वर्ग मेडिकल
इंश्योरेंसक ऊपर जेबसँ टाका खर्च वहन करैछ, तं दोसर दिस, असंख्य निर्धन रोगी आधुनिक
चिकित्साक सुविधा नहि उठा पबैत छथि. व्यवसायमे वृद्धि (growth) बाजारक मांग थिक. मुदा,
बढ़ैत मेडिकल खर्चसँ केओ नहि बचैछ. एहन वातावरणमे जनसामान्यक शिकाइत- ‘ डाक्टर गप्प
नहि सुनैत छथिन’, ‘ बड्ड जाँच करबैत छथिन’, ‘ बहुत दवाई लिखैत छथिन’ - अनर्गल नहि.
एकर समाधानक हेतु समाज आ सरकार तथा निजी चिकित्सा व्यवस्था कोनो मध्यम मार्ग ताकए,
से वांछनीय थिक. प्राथमिक, रेफरल आ उच्चस्तरीय चिकित्साक सरकारी व्यवस्थाक लाभ सब
धरि पहुँचय, से तं सरकार सुनिश्चित कइए सकैछ. ई आवश्यको थिक. मुदा, देशक प्रत्येक भागमे
एहि दिशामे एक रंग सफलताक प्रमाण नहि भेटैछ.
चिकित्सा प्रक्रियाक प्रति रोगीक धारणा
आ संतुष्टि
चिकित्सकक संपर्कमे अबैत प्रत्येक ‘रोगी’क
हेतु औषधि आवश्यक नहि होइछ. किन्तु ई सबकें
बुझायब संभव नहि. व्यक्तिक रोग, व्यक्तित्व, धारणा, शिक्षा, व्यक्तिक विचार आ व्यवहारकें
प्रभावित करैछ. सर्व
विदित थिक, परहेज आ जीवन-पद्धतिमे परिवर्तन (life-style modification)
सँ बहुतो रोगमे सुधार एवं निराकरण संभव
छैक. किन्तु, एहू हेतु सबकें सहमत करब संभव नहि, विशेषतः
एहन रोगीकें जनिका प्रत्येक लक्षण- जेना, पेट दर्द, गैस, जलन, अतिसार- कब्जी, मन्दाग्नि
वा अत्यधिक भूख, मथदुक्खी, चक्कर, इत्यादिक- लेल एक-एक टा फूट-फूट औषधिक अपेक्षा
होइत छनि. एहन रोगीकें थोड़ औषधि वा औषधिक बिना संतुष्ट करब कठिन. चिकित्सा सेवामें
हमर अपन दीर्घ अनुभव कहैछ, कतेकोकें व्यक्तिकें अस्पतालसँ बिनु औषधिक आपस आयब, मंदिरसँ बिनु प्रसादहि घूरि
आयब सन प्रतीत होइत छनि! अस्तु, चिकित्सकक कहब जे ‘रोग नहि, तं औषधि किएक?’ क प्रश्न
वा सुझाव निरर्थक होइछ. यद्यपि, न्यूनतम आ केवल आवश्यक औषधि देब रोगीक हित थिक.
दोसर दिस, मधुमेह, अधिक रक्तचाप-सन
रोग, आरंभमे जकर कोनो लक्षणे नहि होइछ, तकर
चिकित्सा लेल रोगीकें सहमत करब आ चिकित्सामे निरंतरता रखबा लेल प्रेरित करब कतेको
बेर बड़का चुनौती प्रमाणित होइछ. जीवन पद्धतिमे परिवर्तन (life-style modification)
सँ रोगकें सुधारबाक सुझावसँ रोगीकें सहमत करब आओर बड़का चुनौती थिक. मधुमेह (Diabetes), हृदयक धमनीक रोग (Coronary Artery Disease), मोटापा (obesity), रक्तमे
वसा केर अधिकता (hyperlipidemia) प्रभृतिक रोग एहन रोग सब थिक जकरा हेतु जीवन
पद्धतिमे परिवर्तन- थोड़ भोजन आ भोजनक अवयवमे परिवर्तन, भोजनमे नोनक मात्र घटायब, टहलब
आ व्यायाम, धूम्रपानक त्याग- इत्यादि अनिवार्य
बूझल जाइछ. किन्तु, एहनो रोग सबहक सब रोगीकें सहमत करब आ चिकित्साक लक्ष्य
प्राप्त करब सुलभ नहि. एहि सबहक हेतु शिक्षा, समाजिक हस्तक्षेप, आ चिकित्सकक
निरंतर प्रेरणा सहायक भए सकैछ. विगत किछु वर्षमे योगाशन एवं व्यायामक प्रति समाजमें
जागरूकता बढ़लैए. ई परिवर्तन उत्साहवर्धक थिक. तथापि, बिना औषधिक चिकित्सा वा जीवन
पद्धतिमे परिवर्तनक सुझाव जं रोगीकें नहि रुचलनि तं संभव अछि चिकित्सकक ऊपर ‘बेकार
डाक्टर’क लेबुल साटल जाइनि, वा रोगी चिकित्सक बदलि लेथि.
ततबे नहि, अनेक सामजिक-सांस्कृतिक धारणाक
विपरीत चिकित्सकीय सलाह सेहो रोगीकें सोझे ग्राह्य नहि होइछ. तहिना, कतेक बेर मेडिकल
प्रैक्टिसनर लोकनि द्वारा पसारल भ्रान्ति सेहो तेहन बद्धमूल धारणा बनि जाइछ, जकरा
उखाड़ब बाँसक ओधि उखाड़बा जकाँ कठिन थिक. एंटीबायोटिकक प्रत्येक कोर्सक संग ‘विटामिन’क
गोलीक प्रयोग एहने एक गोट अवैज्ञानिक धारणा थिक, जकर बीजारोपण औषधि-उत्पादक लोकनि चिकित्सक
समुदायकक सहायतासँ दीर्घ काल धरि करैत आयल छथि. आब एहन धारण कतेक ठाम बद्धमूल भए गेल
अछि. समाजमे एहन आओर अनेक अवैज्ञानिक धारणा प्रचलित अछि. तथापि, जाहि पारंपरिक जीवन
पद्धतिसँ केओ दीर्घायु, जीवन भरि निरोग रहल होथि, कोनो विशेष परिस्थितिमें
तनिक जीवन पद्धतिमे परिवर्तन प्रथम दृष्टया भले शास्त्र-सम्मत बूझि पड़य, किन्तु, अनावश्यक
थिक.
सारांश
सफल लोकप्रिय चिकित्सकक हेतु जतबे
आवश्यक अधीतशास्त्र-शास्त्रमे निपुण- हएब थिक, ओतबे आवश्यक थिक व्यवहार कुशल हएब. जुनि
बिसरी, रोगीक गप्प सुनब सेहो चिकित्सा थिकैक. शास्त्र-संगत सुपथ चिकित्सा कयनिहार,
व्यवहार कुशल चिकित्सक, आदर्श चिकित्सक थिकाह. व्यवहार कुशल हएब आवश्यक तं थिके, ई
शास्त्रमे निपुण चिकित्सकक हेतु सोना पर सोहागा थिक. जखन शास्त्र- सम्मत चिकित्सा, चिकित्सकक सहृदयता आ कुशल व्यवहार, तथा रोगीक अपेक्षा
चिकित्साक तराजूक दुनू पलड़ाकें संतुलित करैछ, तखन आदर्श चिकित्साक लक्ष्य स्वतः
पूर्ण भए जाइछ. कारण, रोगमुक्त संतुष्ट रोगी चिकित्सकक हेतु सबसँ बड़का तगमा थिक. आब अन्तर्राष्ट्रीय
स्तर पर चिकित्सा-व्यवस्थाक बदलैत स्वरुप आ रोगीक आकांक्षा भविष्यमे कोन स्वरुप
लेत भविष्ये कहत. भारतमे राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोगक निरंतर हस्तक्षेपक परिणाम सेहो
भविष्येक गर्भमे अछि. हं, ई जुनि बिसरी जे डाक्टर-वैद्य रोगक विश्वकोश नहि थिकाह.
सन्दर्भ
1. चरक संहिता, भाग-1(1948) कविराज
अत्रिदेव गुप्त, भार्गव पुस्तकालय, बनारस. अध्याय 9, श्लोक,4
2.श्रुते पर्यवदातत्वं बहुशो
दृष्टिकर्मता ।
दाक्ष्यं शौचमिति ज्ञेयं वैद्ये गुणचतुष्टयम् ।।
चरक संहिता, भाग 1, अध्याय 9, श्लोक 6 ;
3. सति पादत्रये ज्ञाज्ञौ
भिषजावत्रकारणम् ।
वरमात्मा हतोऽज्ञेन न चिकित्सा प्रवर्तिता।।
चरक संहिता, भाग 1, अध्याय 9, श्लोक
15
4. https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/15256/1/a2019-35.pdf accessed 28 Oct 2023
5 . Eric Topol. The patient will see you now (The future of medicine is in your hands. New York: New York 2015.
6 . https://kirtinath.blogspot.com/2018/12/blog-post.html accessed 27 Oct 2023.
जाहि तरहें विश्लेषित कयल गेल अछि,ताहिमे आवश्यक अछि जे चिकित्सक आदर्श होथि,से सयमे पांच प्रतिशत होइत छथि।दोसर रोगी पढल लिखल नहि,ओकरा चिकित्सा क्षेत्र मे बहुत रास अन्हड़जाली सभक सामना करय पड़ैत छैक। अनावश्यक जांचक शिकार होबय पड़ैत छैक। बहुत रास मनोवैज्ञानिक दबाव,भ्रांति सेहो ओकरा बाधित करैत छैक।मनुष्यताक लोप चिकित्सक समाजमे छैक,आब एकरा प्रमाणक आवश्यकता नहि छैक।काश, चिकित्सक अहांसन होथि त बात बनि सकैत अछि।इत्यलम।
ReplyDeleteविचारणीय। धन्यवाद।
ReplyDeleteउपरोक्त मन्तव्यमे व्यक्त विचार सार्थक थिक. अस्तु, सूचनाक अभावमे रोगी आ परिचारक जाहि 'अन्हरजाली'सँ सामना करैत छथि, तकरा फाड़ब आवश्यक अछि. से तखने संभव अछि जकहं स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था रोग, जाँच-पड़ताल आ चिकित्साक प्रत्येक विकल्पकें रोगीक संग साझा करथि, आ रोगी स्वतंत्रता पूर्वक चिकित्सक आ चिकित्सा चुनि सकथि. ई सुनिश्चित करब कठिन भले हो, अनिवार्य थिक. हम एहि विन्दुकें 'सधन्यवाद' हम ब्लॉगमें जोड़ि देले.
ReplyDeleteप्रो. भीमनाथ झा लिखैत छथि:
ReplyDeleteडाक्टरकेँ रोगीक मनोविज्ञानोकेँ बूझब तथा रोगीकेँ डाक्टरक इलाजपर विश्वास करब--ईहो प्राय: अपेक्षित । अपने जे बात सभ कहलिऐक अछि, से सभ समीचीन लागल अछि । ई निबन्ध दुनू पक्षक हेतु नितान्त उपयोगी थिक ।
अपने पढ़लहुँ, एवं मंतव्य देल। अनेकानेक धन्यवाद।
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