Wednesday, November 1, 2023

नव भाषासँ संपर्क आ संवादक समस्याक आधुनिक समाधान

 

नव भाषासँ संपर्क आ संवादक समस्याक आधुनिक समाधान

संवाद प्राणी मात्रक आवशयकता थिक. जलमे दहाइत असंख्य सूक्ष्म जीवक बीच, मनुष्य वा आन प्राणीक शरीरक भीतर अनगणित कोशिकाक बीच, मनुष्यसँ मनुष्यक बीच, तथा भिन्न-भिन्न प्राणीक बीच संवाद चलिते रहैत छैक. संवादक भाषा आ व्याकरण भिन्न-भिन्न होइत छैक. विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रमे मनुष्यो भिन्न-भिन्न भाषा बजैछ. तें जखन दू वा ओहिसँ बेसी भाषाभाषी, जे एक दोसराक भाषा नहि बूझैछ, एक ठाम जमा होइत छथि तं संवाद असंभव भए जाइछ, आ लोक अशक्तताक अनुभव करैछ.

हम अपने अनेक नव भाषाक संपर्कमे अयलहुँ. मुदा, भारतक भीतर सबठाम कोनो-ने-कोनो दुभाषियाक सहायता भेटिए जाइत छल. काज चलिए जाइत छल. मुदा, सबठाम केवल ‘काज चलब’ पर्याप्त नहि.

सर्वविदित अछि, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवामे स्वास्थ्यकर्मी एवं रोगी तथा परिचारकक बीच अनायास संवाद सफल चिकित्साक मूल थिक. भाषाक समस्या भेने ने चिकित्साकर्मी  रोगीसँ आवश्यक सूचना पाबि सकैत छथि, आ ने ओलोकनि नीक-जकाँ रोगीकें आवश्यक निर्देशे दए पबैत छथिन. एहना स्थितिमे रोगीक परिचर्या ले रोगी आ परिचारकक पूर्ण सहयोगक आशा करब असंभव. फलतः, चिकित्साक लक्ष्य पाएब सेहो कठिन भए जाइछ. भिन्न-भिन्न भाषाभाषीक बीच चिकित्सकक रूपमे हमर अपन अनुभव एहि लेखक आधार थिक.

सबसँ पहिने हम जाहि नव भाषाक संपर्कमे आयल छलहुँ ओ छल तिब्बती भाषा. वर्ष छल 1983 ई. तिब्बती भाषासँ संस्कृत सहित आन भारतीय भाषासँ सर्वथा भिन्न. लद्दाखी आ अरुणाचल प्रदेशक दूर-दराजक क्षेत्रक भाषा आ तिब्बती भाषामे किछु समानता छैक. मुदा, हमरा तँ लद्दाखी वा अरुणाचल प्रदेशक भाषाओसँ कोनो परिचय नहि छल.

सर्वविदित अछि ई तिब्बती शरणार्थी लोकनि 1959मे पूज्य दलाई लामाक संग भारत आयल छलाह. 1983 ई. धरि तिब्बती शरणार्थी लोकनिकें भारत अएना करीब तेइस-चौबीस वर्ष भए गेल रहनि. बहुतो किशोर-किशोरी भारतहिमे जनमल रहथि, एतहि पढ़ने रहथि. तें, अधिकतर तिब्बती शरणार्थीलोकनि , भारतक जाहि प्रदेशमे घर आँगन बसओने रहथि, ओतुके भाषा- लद्दाखी, हिमाचली, ओड़िया, कन्नड़- क अतिरिक्त हिन्दी सेहो बाजिए लैत छलाह. भारतीय भाषा बजनिहार इएह तिब्बती लोकनि हमरा अतिरिक्त आन अनेक भारतीय सैनिक लोकनिक हेतु दुभाषियाक काज करथि. हम जखन पहिल पोस्टिंग पर रेजिमेंटल मेडिकल ऑफिसर(RMO) क रूपमे असम पहुँचल रही तँ ‘दावा नोर्बू’ नामक नर्सिंग असिस्टेंट एवं अनेक हिन्दी भाषी तिब्बती शरणार्थी दुभाषिया-जकाँ हमर सहायता करथि. फलतः, तिब्बती शरणार्थी लोकनिक संग पदस्थापनाक तीन वर्ष सफलता पूर्वक तँ कटिए गेल, ओतय हम जे किछु-किछु बोल-चालक तिब्बती भाषा सिखल, आइओ स्मरण अछि. मुदा, ओ तीन वर्ष ने तिब्बती भाषा सिखबाक हेतु पर्याप्त छल, ने ओहि समयमे नव भाषा सिखब ओ हमर प्राथमिकता छल.

आरंभिक सेवाक तीन वर्षक जे अवधि तिब्बती शरणार्थी लोकनिक संग बीतल तकर पछाति करीब तेरह वर्ष धरि उत्तर भारतमे बीतल. ओहि तेरह वर्षमे हम डोगरी, पंजाबी, हिमाचली, हरियाणवी प्रभृतिक अनेक भाषाक संपर्कमे अयलहुँ. मुदा, हिन्दीसँ एहि भाषा सबहक शब्दभंडार, वाक्य-विन्यास, आ ध्वन्यात्मक समानताक कारण जे किछु सीखि सकलहुँ, सिखैत गेलहुँ. मुदा, ताहि बेसी सिखबाक ने आवश्यकता भेल आ ने इच्छा.  हँ, 1991 ई. मे किछु दिन कश्मीर गेलहुँ. ओतुका भषा सर्वथा नवीन बूझि पड़ल. कश्मीरीक प्रति जिज्ञासा नहि जागल, से नहि. मुदा, ओ काल कश्मीरमे आतंकवादक बिहाड़िक काल रहैक. पंजाबी आ डोगरीक विपरीत कश्मीरी भाषाक हिन्दी-मैथिली-बांग्लासँ कोनो समानता नहि. संस्कृत शब्दक अभाव तथा वाक्य-विन्यास एवं ध्वनिक असमानताक कारण हम कश्मीरी भाषाक किछुओ नहि सीखि सकलहुँ.

बहुत दिनक बाद, वर्ष 1999 मे हम पोस्टिंग पर बंगलोर पहुँचहुँ. कर्णाटकक भाषा कन्नड़ थिक. मुदा, दैनिक काजमे हमरा कन्नड़ सिखबाक कोनो काज नहि भेल. भारतीय सैनिक कोनो भाषाभाषी होथु, हिन्दी बजिते छथि. अस्तु, रोगीसँ संवादमे कोनो समस्या नहि. किन्तु, ओतय ‘कुरल’सँ परिचय एकटा एहन घटना छल जे हमरा सोझे तमिल भाषा सिखबाक हेतु प्रेरित कयलक. मुदा, अपनहुँ प्रयासे तमिल सिखबाक अभियानमे अओरो तेरह वर्ष लागि गेल. ओ अवधि, पहिने लेह आ लखनऊ, आ पछाति पोखरा (नेपाल) मे बीतल. तें, तमिल सिखब तखन आरंभ भेल जखन हम 2012 ई. अंतमे पांडिचेरी पहुँचहुँ. ओतय हमरा पहिल बेर अनुभव भेल जे तमिलनाडु-पांडिचेरीमे सफल चिकित्सक हयबा लेल तमिल बाजब अनिवार्य थिक. मातृभाषाक प्रति एतेक लगाओ हमरा आन कोनो प्रदेशक नागरिकमे देखबामे नहि आयल. तमिल लोकनि मातृभाषा-प्रेमक दृष्टिसँ बंगालीओसँ बहुत आगाँ छथि. फलतः, आइ हमरा जतबो किछु तमिलक ज्ञान अछि, पांडिचेरीएक देन थिक. ओतुका करीब नौ वर्षक प्रवास पढ़बा-लिखबाक दृष्टिसँ सेहो अत्यंत उर्वर प्रमाणित भेल, से निर्विवाद.  

पांडिचेरी छोड़लाक पछाति, नव भाषाक संग हमर परिचयक एक अध्याय एखनो बाँकीए छल. कर्णाटकमे सैन्य-सेवा अवधिक उन्नैस वर्षक बाद- मार्च 2021 मे हम पुनः बंगलोर अयलहुँ . एतुका ग्रामीण नागरिकलोकनिक  एकमात्र भाषा कन्नड़ थिक. यद्यपि बंगलोरमे तमिल आ तेलुगु भाषीक अतिरिक्त हिन्दीभाषीक संख्या थोड़ नहि. तथापि, श्री सत्यसाईं जनरल हॉस्पिटलमे, जतय हम एखन निःशुल्क सेवा दैत छिऐक, जे स्थानीय ग्रामीण रोगी अबैत छथि, से अधिकतर कन्नड़ वा तेलुगु बजैत छथि. माने, हम हिनका लोकनिक सामने पुनः बौक-बहिर छी. तमिलक ज्ञान किछु-किछु सहायता अवश्य करैछ, मुदा, किछुए. मुदा, वर्ष 1919 आ 2023 क बीच बड़का अंतरालमे अनेक बड़का परिवर्तन भए चुकल छैक. सर्वज्ञ बाबा गूगलक अवतार महात्मा बुद्ध वा महावीरक अवतारसँ कम नहि. एहन कोनो प्रश्न नहि, हिनका जकर उत्तर नहि बूझल छनि. एहन कोनो भाषा नहि जे हिनका बौक-बहिर बना सकैत अछि. फलतः, आवश्यकता पड़ने हमहूँ मोबाइल फोन पर Google translate खोलैत छी. मूल भाषामे अंग्रेजी दए, अनुवादक भाषा कन्नड़ वा तेलुगु सेट करैत छी. माइक ऑन करैत छी, आ अपन प्रश्न पूछैत अंग्रेजीमे पुछैत छिऐक. क्षण भरिक विरामक पछाति, रोगी हमर प्रश्न सोझे कन्नड़ वा तेलुगुमे सुनिते नहि छथि, ओ मोबाइल फोन पर अपन भाषामे ओएह प्रश्न पढ़िओ लैत छथि. अर्थात् बाबा कन्नड़ वा तेलुगुमे प्रश्न पुछैत छथिन आ रोगीएक भाषामे उपचार सेहो बुझबैत छथिन. अस्तु, बाबाक जय हो !

हं, बीचमे हमरा एक बेर रोबर्ट काडवेल केर A Comparative Grammar of the Dravidian or South-Indian Family of Languages क पुनः परायणक विचार सेहो भेल छल. उद्देश्य ई जे एहि व्याकरणसँ हम तमिलकें सुधारबाक अतिरिक्त, कन्नड़ आ तेलुगु सेहो सीखि ली. किन्तु, ई निर्विवाद जे बोलचालक भाषा सिखबाक हेतु व्याकरण नहि, भाषा सुनय आ बाजय पड़ैत छैक. इएह कारण थिक अद्यावधि  भारतक जे छात्र-शिक्षक अंग्रेजी सिखबाक लोभें व्याकरण पढ़ैत जिनगी बिता देलनि, अधिकतर अंग्रेजीमे संवादक हेतु दक्ष नहि भए सकलाह. अस्तु, Robert Caldwell  एखन कात जाथु, Google शरणम् गच्छामि !

हँ, गूगल बाबाक कारण दुभाषियालोकनिक आ अनुवादक माध्यमसँ जीविका उपार्जन कयनिहार विद्वान लोकनिक की हेतनि, से लाख टाकाक प्रश्न थिक. तखन, कहितो छैक, जे जन्म लैछ, कहुना जीविका ताकिए लैछ!                     

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