Sunday, November 26, 2023

छठि: साठिक दशकक मिथिलाक गाममे

 

छठि पूजा: साठिक दशकक मिथिलाक गाममे

छठि पूजा बाल्यकालक सबसँ पुरान स्मृति म सँ  एक अछि। स्मरणीय जे छठि पूजा आन अनेक पर्वसँ भिन्न होइक। मुदा, तहियाक पूजा अजुका पूजाक विपरीत शान्ति आ सादगीक वातावरण मे मनाओल जाइत रहैक। केहन होइक तहियाक छठि पूजा। की विशेषता रहैक। अजुका पूजासँ की भिन्नता रहैक। चलू अजुका हाईवेक द्रुत गति जीवनसँ  दूर स्मरणक खुरपेरिया पर; हरियर आरि-धूर आ बाध-बोनक छाहरिमे थोड़ेक दूर हमरा संग चलू। जतहि नीक नहि लागय, हाईवे पकड़ि लेब। हमहू नबका फोर-लेन पर आपस भए जायब।

छठि पूजा वैदिक पूजा नहि थिक। सूर्य नवग्रहमे प्रथम थिकाह। छठि माई सूर्य ‘भगवान’क माता थिकीह। किन्तु, छठि माईक शास्त्रीय आधार ताकब कठिन। मुदा, लोक स्मृति आ लोक आस्थामे छठि पूजा कहिआसँ बसल अछि, कहब कठिन। एतबा अवश्य जे छठि पर्व समाजक सब वर्गमे तँ मनाओले जाइत अछि, इहो सुनल अछि जे सत्तरि-अस्सी वर्ष पहिने किछु मुसलमान परिवार सब सेहो हिन्दू  पड़ोसीकें टाका दए अपना दिससँ छठिमे अर्घ्यक हेतु सूप-कोनिया आ ढाकनमे प्रसादक व्यवस्था करबैत रहथि, से हमर स्वर्गीय पिता कहने रहथि।

छठिमे बहुत नियम-निष्ठा। उपवास बहुत लम्बा। धारणा रहैक जे छठि परमेसरीक पूजा-पाठ प्रसादक निष्ठामे त्रुटि भेलासँ ओ तुरत तमसा जाइत रहथिन। लोककें अनिष्ट भए जाइक। तें, हाथ उठबासँ पूर्व धियापुता गलतीओसँ प्रसाद म सँ किछु मुँहमे नहि दियए। से पितामही- स्वर्गीया गंगावती देवी- सेहो कहथि। मुदा, छठि परमेश्वरीक कृपा पर लोककेँ ततेक आस्था रहैक जे किछु गोटे धीयापुताकेँ इहो कबुला कए देथिन जे 'पाँच बरख पाँच घर भीख मांगि छठिक डाली हाथ उठायब'। आ तेँ ओ नेना सब हाथमे सूप नेने घरे- घर सांकेतिक भीख मांगथि आ भीखमे अपन विभवसँ जे जुरनि मिला कए माए छठिक प्रसाद बनबथिन आ हाथ उठबथिन वा उठबबथिन।

छठि पूजाक संबंधमे पुरान आस्थाक एक अधुनातन विचार अमेरिका निवासी डाक्टर मनोज कुमार चौधरीक मुँहे सुनल। चौधरीजी कहैत छथि: 'उर्जा स्रोत सूर्य देव के आभार ज्ञापनक ई पाबनि सबहक पाबनि अछि। लोक उत्सव अछि। मनुष्य- प्रकृति संबंध के मजबूत करैत अछि। छठि 'वामपंथी' पाबनि अछि। अहि में पंडा- पुरोहित के काज नहिं। वेद मंत्र आ  बहुत विन्यास के आवश्यकता नहिं। सूर्य देव के उर्जा आ पृथ्वीक उर्वरताक धन्यवाद ज्ञापनक महापर्व अछि।

मुदा, नियम-निष्ठाक बाधा आ लंबा उपासक कारण सब केओ हठे छठि नहि ठानथि। हमर गाम छोट। गामक तीन टोलमे प्रायः प्रत्येक टोलमे एक-एक महिला छठि उपास (उपवास) करथि। ओएह लोकनि अपन टोलक निर्धारित पोखरिमे हाथ उठयबा ले’ ठाढ़ होथि। साँझुक आ भोरुका अर्घ्य दिन प्रत्येक परिवारसँ सबल युवक युवती लोकनि लोकनि छिट्टा-पथियामे प्रसाद बान्हि माथ पर उठा घाट धरि लए जाथि। घाट पर सब अपन-अपन जगह ‘छापय’ माने जे जतेक जल्दी पहुँचल से ततेक नीक स्थान चुनलक। ककरो बहुत पसार होइक। केओ एके टा ढाकन वा कोनियासँ संतोष करय।

गामक सबसँ बड़का पोखरि-पुरनी पोखरिक घाट पक्का रहैक। ओतय प्रसाद पसारि रखबामे सुविधा होइक। हमरा सबहक घरसँ लग।  सब जल्दीसँ जल्दी पहुँचबाक प्रयास करय। भोरुका अर्घ्य  लेल तँ हमरा लोकनि अहल भोर पहुँचि जाइ। हम तँ सबसँ छोट रही। अधरतियामे उठिकए जायबे बड़का गप्प छल। भोरुका अर्घ्यक हाथ तँ सूर्योदयक बादे उठैक। किछु कलकत्ता कमयनिहार लोकनि फटाका आ फुलझड़ी सेहो आनथि आ घाट पर छोड़थि। तेज आवाजवला फटाकाकें ‘ रवाइश’ कहल जाइक। हमरालोकनि सेहो छोट-मोट छुरछुरी आ ‘भूमि-पटाका’ ल’ जाइ।

अजुका शहरी पूजाक विपरीत तहिया गाममे लाउडस्पीकर आ  रिकार्डेड गीत-नाद एकदम नहि होइक। महिला लोकनि थोड़-बहुत गीत गाबथि कि नहि से स्मरण नहि अछि। कतहु कोनो सजावट नहि। नहाय-खाय शब्दो नहि सुनने रहिऐक। जे महिला हमरा लोकनिक अर्घ्यक हाथ उठबथि से खरना प्रसाद- गुड़खीर- केराक पातमे लपेटि घरे-घर पहुँचा देथिन। खरनाक प्रसाद खेबाक हेतु प्रीतिभोजक तँ गप्पे नहि हो। एहि वर्ष बंगलोर मे खरनाक खीरक संग एक पड़ोसीक घरमे शाकाहारी दिव्य भोजनक निमंत्रण छल।

व्रती लोकनि, आ जनिका पानिमे ठाढ़ हेबाक कबुला रहनि, हाथ उठयबाक अवधिमे सूर्य दिस मुँह कए हाथ जोड़ि पानिमे ठाढ़ होथि। लोक बेरा-बेरी अपन-अपन कोनिया-ढकना- सूप उठा- उठाकय व्रतीक हाथमे देथिन आ ओ अर्घ्य चढ़बथि। कोनिया-ढाकन- सूपमे ठकुआ-भुसबाक अतिरिक्त केरा-कुसियारक टोनी- हरदिक ढेकी इत्यादि होइक। घाट पर नैवेद्यक अतिरिक्त केओ केओ, जकर कबुला-पाती होइक कुम्हारक बनाओल माटिक हाथी आ ओहि पर कुडवार (माटिक घैलक एक प्रकार) घाट पर सजबथि। दीप जरबथि। कतहु-कतहु पुरोहित लोकनि सेहो आबि कय छठि कथा कहथिन। यद्यपि, छठिक अर्घ्य- हाथ उठयबा- लेल पुरोहितक आवश्यकता नहि होइक। व्रती लोकनि सोझे अपने ‘हाथ उठबथि’।      

साँझुक पर्व दिन तँ धिया-पुता ‘ काल्हि ठकुआ-भुसबा-केरा भेटत’ केवल ताही आश्वासन पर कहुना संतोष करय। ठकुआ माने साँच पर ठोकल गुड़पूरी। भुसबा माने, अरबा चाउर चिक्कस (आटा)क आ चीनीक मधुर लड्डू (rice balls)। लोभ तँ बड होइक। मुदा, चेतनलोकनि धिया-पुताकें बोल-भरोस दए सम्हारथि।

भोरुका अर्घ्यक हाथ उठओलाक पछाति व्रती छठि माता आ सूर्य भगवानक कथा कहथिन:

सूर्य भगवानक माय पोखरि पर दाउर (काठ) पर घाट  कारी कंबल खिचैत रहथिन। ओम्हरसँ जाइत केओ दाई-माई पुछलखिन: की खिचै छी ?

सूर्य भगवानक माय खौंझा कए कहलखिन: सूर्यक कोंढ़-करेज!

तावते दोसर दिससँ सूर्य अबैत रहथिन। ओ खसि पड़लाह। माय खिचब छोड़ि, दौड़लीह; बाउ की भेल?

सूर्य भगवान हँसय लगलखिन। माए सूर्य भगवानक हँसी बूझि गेलखिन। कहलखिन, ‘मायक सराप (गारि-श्राप) दाँते  (ऊपरे-ऊपर) होइत छैक, आँते (मनसँ) नहि !’

एहि कथामे सन्तानक हेतु माईक मात्सर्यक प्रदर्शन छैक। ई प्रायः छठि परमेश्वरीसँ  कृपा पयबाक भावनासँ प्रेरित हो, से संभव।

छठिक घाट पर कोनो दोसर बूढ़-पुरानक मुँहसँ कथा हमर जेठि बहिन - श्रीमती लीला देवी- कहलनि:

कोनो गाममे एक किसान परिवारमे दू सासु-पुतहु रहथि। ओ लोकनि बेरा-बेरी खेत पर जा अपन जजात ओगरथि। हुनका लोकनि खेतमे एक कोलामे मटर केर खेती रहैक दोसर कोलामे कुसियारक। एक दिन छठि परमेश्वरी हिनका लोकनिक परीक्षा लेबाक विचार केलनि। अस्तु, पहिल दिन आबि ओ सासुसँ मटर केर छिम्मड़िक याचना केलखिन। बूढ़ी मटर छिम्मड़ि देब अस्वीकार कए देलखिन। ओही काल मे कतहुसँ किछु चिड़ै आयल आ मटर केर छिम्मड़ि तोड़ि उड़ि गेल। बूढ़ीकें तामस भेलनि। कहलखिन, लए जाह, छिम्मड़िमे केवल पिलुआ भेटतह !

दोसर दिन छठि परमेश्वरी पुनः अइलीह। ओहि दिन पुतहुक रखबारिक पार रहनि। छठि परमेश्वरी हुनकासँ कुसियारक याचना केलखिन। रखबारि पुतहु कहलखिन जतेक मन हो लए जाउ। छठि परमेश्वरी प्रसन्न भए चलि गेलीह। पछाति जखन ओ दुनू सासु पुतहुकें वरदान देबाक नेयार कयलनि तो फेर अइलीह। ओ सासुसँ पुछलखिन अहाँकें केहन रंग चाही ? कहलखिन : उज्जर। हुनका सौंसे देह चर्क ( सफ़ेद दाग ) फूटि गेलनि। पुतहु कहलखिन: पीयर। हुनकर वस्त्र पीताम्बरी भए गेलनि। देह सोने-सोनामय भए गेलनि। काले क्रमे हुनका लोकनि अपन चरित्रक फल पाछुओ संग नहि छोड़लकनि जकर फल वा अभिशाप ओ लोकनि अगिलो जन्ममे भोगलनि। कथाक आगु सेहो छैक।

शिक्षा ई जे केओ किछु याचना करय देब तँ अस्वीकार नहि करिऐक।                

घाट पर उपस्थित दाई-माई लोकनि ई कथा भक्तिपूर्वक सुनथि, प्रणाम करथि। बाँकी गोटे प्रसादक पथिया-चङेरा  उठबथि आ घूरि आबथि। भोरुका अर्घ्य दिन प्रसाद खेबाक प्रतीक्षा आओर पैघ परीक्षा।  मुदा, अनुशासन तँ रहैक ।

पछाति गाममे जखन परिवारक आकार छोट होइत गेलैक, प्रसाद उठाकए दूर घाट धरि लए गेनिहारक अभाव भए गेलैक तँ हमर माता अपनहि छठि करब आरंभ केलनि। पोखरि दरबज्जे पर छल। पहिने तँ कहै जाथिन एहि पोखरिक यज्ञ नहि भेल छैक, शुद्ध नहि छैक। मुदा, पछाति लोक तकरा बिसरि गेल।

हमर माताक लेल  कोनो उपास लेल कठिन नहि। चाहे ओ दुर्गाक उपास हो, जितिया हो, हरिवासर हो वा छठिक। एकादशी-चतुर्दशी-सोमवारी-मंगलवारी आ सालमे छौ मास रवि दिन क’ एक संध्याक तँ कोनो कथे नहि। मुदा, छठि ओ बेसी दिन नहि केलनि। पछाति हमहूँ दूर-दूर रहय लगहुँ। सब छूटि गेल। पहिने किछु वर्ष छठि- चौरचनक बद्धी आ अनंत चिट्ठीक संग लिफाफमे आबय पछाति सेहो बन्न भेल। सब पाबनिक संग छठि सेहो छूटल; जे पूत परदेसी भेल, देव पितर सबसँ गेल !  

बंगलोरमे छठि, नवंवर २०२३ 
एहि बेर बंगलोरमे छठि देखि गाम मोन पड़ि आयल। पूर्ण निष्ठा। कोलाहल नहि। पटना-जकाँ  माथ फटबावला गीत नहि। घाट परक मेला-ठेला आ घमगज्जर नहि। तें, एहि बेर बहुत दिनक बाद गामक शान्त वातावरणमें पूर्ण आस्थासँ होइत पवित्र छठिक  स्मरण भाव-विह्वल कए देलक।              

1 comment:

  1. मित्र डा. श्रीमती ऋता मिश्र लिखैत छथि:
    🙏🙏
    समय बदलैत गेल, अहाँ पहिने के छठिक विधान और अर्घ्य केर वर्णन/चित्रण बहुत उत्कृष्ट केने छी। सुर्यदेवक कृपा-दंड ,पबनैतिनक आस्था -समर्पण, बच्चा सब क प्रसाद क उत्सुकता और रतिजग्गा सब मोन पड़ल, आँखिक आगूआबि गेल।
    एकटा दंड-प्रणाम सेहो भगवान सूर्यदेव कए अर्पित कयल जाइत छैन जकरा देखि अखनो हम रोमांचित भ जाइत छी,ताहि समय बेसी लोक करथि,विशेष क पुरूष।
    आब त घाट पर सूप नेने पहिने पबनैतिन क फोटो पश्चात सूर्यदेव क अर्घ्य।
    सजावट घाट और लोक ,दुनूक बढल, तैयो आस्था में कमी नहि,पबनैतिनक संख्या बढ़िते जाइत छैक।
    छठ एक ब्रत, उल्लास समर्पण आस्थाक पावनि अवश्य अछि🙏🙏

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