Wednesday, July 3, 2024

गामक डायरी : गाछ पर आम लुबुधल अछि, मुदा तोड़त के !

 

गाछ पर आम लुबुधकल अछि, मुदा तोड़त के !

बंगलोर रहितो हम गाम अबैत रहैत छी; एही बेर तँ छौ मासमे तीन बेर आबि गेलहुँ. प्रत्येक बेर किछु परिवर्तन देखबामे अबैछ. एहि लेखमे एहि बेरुका अनुभव कहब.

जूनक अंत. एखन आमक मास छैक. आम फड़लो छैक. मुदा, दू गोट बड़का समस्या: बानरक उपद्रव आ गछचढ़ाक अभाव. फल ई जे जँ जकरा आम बेचबा योग्य गाछी-कलम छनि, से जँ गाछ पर लागल आम बेच नहि लेलनि तँ तोड़ि कए घर आनब असंभव. युवक सब गामसँ  बाहर अछि. गाछ पर चढ़त के? व्यापारी अपन आम तोड़िए लैछ. मुदा, अहाँ की करब. बानरक उपद्रव दोसर समस्या थिक, जे सब गाममे नहि छैक, मुदा, जतय छैक ओतय लोक परेशान अछि. बानर चिडैक विपरीत खाइत कम छैक, बर्बाद बेसी करैत छैक.
तथापि, गाममे खयबा योग्य उत्तम आम खूब भेटैत छैक. किन्तु, कार्बाइडक पाउडर दए आम पकेबाक रोग गामहु धरि पसरि गेले, तकर कोन उपाय? देखबामे ललितगर सपेता किनल. मुदा, खयबामे पनिसोह.

गर्मी असाध्य छैक. उमस खूब. बरखाक अभाव.  लगैतए एहि गर्मीमे ओसरा पर काँच अल्हुआ राखि देबैक तँ  अपनहि उसिनल भए जायत ! तैओ हिम्मत कए आइ टहलबा लेल बहरयलहुँए. चारि बजे फरिच्छ भए जाइछ. एखन साढ़े चारि बजैत छैक. तीन-चारि वर्ष पहिने माघ मासक अहल भोरे, सड़क पर टहलनिहार लोकनिक बड़का जुटान देखने रहिऐक. महिला, पुरुष सब. मुदा, एहि दू बेरसँ टहलनिहारक संख्या कम. हमरा जे केओ भेटैत अछि, हम टोकि दैत छियैक. केओ चिन्हियो जाइछ, ककरो परिचयो देबय पड़ैछ. हम टहलानमें बदलैत गामक नाड़ी परीक्षा सेहो करैत छी.

करीब बीस मिनट टहलैत, हम पड़ोसी गाम पोखरिभिंडा धरि चल आयल छी. सूर्योदयक समय बीति चुकल छैक. क्षितिज धरि दृष्टिक कोनो अवरोध नहि. मुदा, अलासयल सूर्य एखनो मेघक पातर आवरणक पाछाँ पड़ल छथि. नीके. सोझाँ अओताह, तँ ओहने प्रचण्ड. तें, नुकायले रहथु, यावत् धरि हम गाम पर पहुँचि ने जाइ.

एही बीच हम एक ग्रामीणकें बाटक कातसँ एकटा भाँटि/ भटवासक गाछ उखाड़ैत देखैत छियनि, दतमनि लेल.

                                                लक्ष्मीजी दतमनि लेल भाँटिक गाछ उखाड़ने 

दतमनि लेल कोन गाछ वा गाछक ठारिक उपयोग करी, ताहि लेल गाम घरक कहबी हमरा मन पड़ैछ:                  

                                                उत्तम चिरचिरी मध्यम भाँटि

                                                किछु-किछु साहड़ आओर सब झाँटि

 [ दतमनि ले प्रयुक्त भैषज्य : चिरचिरी: Achyranthes aspera भाँटि: Cleodendron infortunatum साहड़ Ficus virens]

चिरचिरी  आ भाँटि तँ सड़कक कातमे सबठाम भेटत. मुदा, गाम घरमे आब साहड़ अभावृत्तिए भेटय. हम ग्रामीण, लक्ष्मीजी,क हाथक भाँटिक गाछक फोटो लैत छी. बाटक कातमे भांग, अरिकोंछ, नेबोक गाछ, झिंगुनीक लत्ती, दनूफ़क फूल देखबामे अबैछ. हम सब किछुक फोटो घिचैत छी. आब शहरी लोकनिकें ई सब देखबाक संयोग कतय भेटतनि. दनूफक फूलक चर्चा तमिल महाकाव्य शिलापत्तिकारम् मे सेहो अभरल छल. उत्तरापथक अभियानमे विजयी भए  चेर सम्राट् सेंगुट्टवन जखन अपन राजधानी आपस होइत छथि तँ हुनक गलामे दनूफ़क फूलक माला छनि, तकर वर्णन छैक. ओना विष्णुक पूजामे मिथिलामे दनूफ़क फूल विशिष्ट मानल जाइछ.

                                                दनूफ़क फूल (Leucas aspera)

किछु आगू एलहुँ तँ सड़कक पूब युवक पीपरक गाछ भेटलाह. भेटैत तँ छथि ई बहुत दिनसँ. मुदा, एहि बेर हिनक स्वरूप दोसर रंग देखल; केओ गौआँ हिनक डांडमे गुलाबी रंगक कपड़ा लपेटि देलकनि. केओ थोड़ेक लाल-पियर ताग. जड़िक चारू कात सीमेंटसँ इंटा जोड़ि चबूतराक आकार सेहो देखलिऐक. माने, देखिते-देखित ई युवक अस्वत्थ वृक्षसँ  देवता बनि गेलाह. गीतामे भगवान कृष्ण तँ अपन पर्याय बनाइए देने छथिन (अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां,श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १०/२६).   आब ई कोनो पुजगिरीक गुजर-बसर केर सहारा सेहो बन लाहे. वृक्षसँ हालहिमे देव बनल एहि गौआँ अस्वत्थकें बधाई देलियनि, हुनक फोटो झिकल. आगू बढ़लहुँ तँ टेलीफ़ोनक तार पर बैसलि दू गोट कोइली भेटलीह. अंग्रेजीमे कहैत छैक: two for joy! तें हुनको फोटो झिकल. किछु आओर बटोही. केओ पैदल, केओ साईकिल पर, आ बेसी मोटर साईकिल पर. एक गोटे माथ परहक बोझा नीचा राखि ओहि पर बैसल रहथि. हमरा भेल. रोगी ने होथि. ओ हमरा आश्वस्त केलनि. भोरुका बसातमे टहलान देनिहार तँ सहजहि. एक दढ़ियल मौलवी साहेब पूब मुँहे योगक व्यायाम करैत रहथि.

दू गामक बीचक बाधसँ होइत जाइत ई सड़क गौआँ लोकनिक टहलबाक सुपरिचित आ प्रिय बाट थिक. खूब साफ़, चिक्कन आ नयनाभिराम.

आगू अयला पर धनखेतीमे एसगर बैसल कडांकुल (Greater Adjutant ) देखलिऐक.

                                                     कडांकुल (Greater Adjutant)

कनिए दूर पर ओकर जोड़ा रहैक. हम फोटो झिकल. पछाति कडांकुलकें भेलैक, मनुख थिक, कोन ठेकान जाने ने लए लिअय: चिडै-चुनमुनीक बीच हमरा लोकनिक एहने छवि भए गेले, उचिते. नहि जानि सुखायल धानक खेतमे एहि कडांकुलकें कोन भोजन भेटितैक. ई खाइत तं ओएह सब किछु अछि जे गिद्ध खाइछ. कतहु आन ठामसँ भोजन कएने हएत आ एतय भोरुका प्रकाशमे किछु आराम करैत हो, से संभव. मुदा, दुनू फोटो झिकओलक आ दुनू उड़ि गेल. हमरा सबहक बाल्यकालमे प्रतिवर्ष चौर आ नासीमे किछु दिन लेल कडांकुल आबि कए बैसिते छल. मुदा, आब एकर संख्या बहुत कम भेलैए.

विकिपीडिया कहैत अछिपहिने कडांकुल (Greater Adjutant ) पक्षीक पैघ समुदाय एशियामे रहैत छल. एकर मिलिटरी सैनिक जकाँ तनिकए, सोझे टांग उठा-उठा चलबाक कारण एकर नाम Adjutant stork राखल गेल छलैक.१९म शताब्दीमे कलकत्तामे एकर संख्या ततेक रहैक जे एक समयमे ई कलकत्ता शहरक निशानी छल आ कलकत्ता म्युनिसिपल कारपोरेशनकेर चिह्नमे एकर चित्र रहैक. मुदा, वर्ष २००८ मे  एहि प्रजातिक कुल संख्या हज़ारक करीब गनल गेल छल. कारणों छैक: एकर प्रजननक तिनिए टा स्थान- भागलपुर, असम आ कम्बोडिया- बचल छैक. भोजनक अभाव आ पर्यावरणक परिवर्तन आने पक्षी-जकाँ कडांकुलकें सेहो प्रभावित केलक अछि.

            चलैत-चलैत हम ग्राम देवता लक्ष्मीनारायणक मन्दिर लग पहुँचैत छी. मन्दिर दिस जाइत कच्चा बाटक बामा कात कनैल इत्यादि फूल गाछ आ दाहिना कात विशाल पीपरक गाछ, जकर छायामे हमरा लोकनिक बालवर्गक क्लास लगैत छल.

फूलक एक गाछसँ एकटा कन्या नान्हि-नान्हि उज्जर फूल तोड़ैत छथि. एक वृद्ध कनैलक गाछसँ फूल तोड़ि फुलडाली मे रखने जाइत छथि. हम नाम पुछैत छियनि तँ उलटे ओएह पूछि बैसैत छथि . ‘मोहनजी यौ ? हम कहैत छियनि, ‘बाबाजी ?’ माने हमरालोकनि एक दोसराक बाल सखा थिकहुँ से दुनू गोटेकें बुझबामे आबि गेल. हमरा भेल, एहि फूल तोड़निहारि कन्या आ वृद्ध-सन लगैत, लगभग हमरे वयसक बाबाजी, पीपरक गाछक अतिरिक्त आओर अनेक परिचित वृक्ष एतय अछि जे हमरा चिन्हैत अछि. मने, ओ सब कहि रहल अछि, हम तँ अहाँकें तहिएसँ चिन्हैत छी जहिया अहाँ सात-आठ वर्षक रही. हम सहमति व्यक्त करैत छी, तँ हमर आँखि नोराए लगैए. हम बिनु बिलमने लक्ष्मीनारायण मन्दिरक चबूतरा लग पहुँचि जूता खोलि, मन्दिरक बरामदा पर चढ़ैत छी. लक्ष्मीनारायणकें प्रणाम करैत छी, आ ओतय जे पाँच-सात गोटे तुलसीकृत रामायणक एक पदक सस्वर पाठ कए रहल छथि, हुनका लोकनिक संग, लक्ष्मीनारायण गर्भगृहक बाहर लक्ष्मीनारायणक सोझाँ ठाढ़ भए जाइत छी. कनिए कालमे ओतय ठाढ़ पुजगिरी हमरा ओतयसँ घुसकि जयबाक इशारा करैत छथि. कोनो भीड़ नहि. तथापि, हुनक सुझाव पर हम कनेक कात भए गेलहुँ. मुदा, ओ संतुष्ट नहि भेलाह. हमरा पुनः इशारा कयलनि. लगैत अछि, आइ काल्हि लक्ष्मीनारायणक सोझाँ पूब दिशामे ठाढ़ हएब वर्जित छैक. यद्यपि, संभव जे जहियासँ लक्ष्मीनारायण हमरा लोकनिक परिवारक सदस्य छथि, तहिया एहि पुजगिरीक पिताओक जन्म सेहो नहि भेल होइनि.

                                        अवामक विष्णुभुवन परिसर जतय हम घूरि-घूरि अबैत छी 

हमरा तमिल संत माता अव्वईक कथन मन पड़ैछ. किंवदंति छैक, एक दिन अव्वई कोनो मन्दिरमे पयर पसारने बैसल रहथि. केओ भक्त आबि हुनका कहलनि,’ अहाँकें लाज नहि होइछ, जे भगवान दिस टांग पसारने बैसल छी!’
अव्वई जनिक कविता तमिल साहित्यक मणि थिक, कहलखिन: ‘सरकार, कने हमरा बुझा दियअ, भगवान कोम्हर नहि छथिन, हम ओम्हरे पयर कए लेब !’
प्रायः, लक्ष्मीनारायणक सोझाँ ठाढ़ हेबासँ हमरा मना करबाक पुजगिरीक उद्देश्य सेहो एहिना किछु रहल हेतनि. मुदा, हम बिना कोनो तर्क-वितर्क केने, मूर्तिकें प्रणाम कयल आ बाट धेलहुँ.

बाटक कातमे आमक गाछ सब आमसँ लदल. ओतय बाटक कातहिमे एक गोटे कुर्सी पर बैसल रहथि. लगमे एकटा कुर्सी आओर राखल. हम बाटक पूब दिसक गाछ दिस लक्ष्य कए पुछलियनि,’ ई आम किनकर थिकनि ?’

                                                     आम अवाम गामक परिचय थिक 
‘मोदाइ मालिकक’
‘आ ई ?’ हम बाटक पछबारि कात, ओहि व्यक्ति लगक नव गछुली, जे आमक झाबा सबसँ लुधकल रहैक लक्ष्य करैत पुछलियनि.
‘नै मालिक. हम तँ किछु नहि छी. बुझू हम तँ सुगरक गूह थिकहुँ.’
ग्रामीणक एहन उक्ति पर हमर मोन विरक्त भए गेल. हम कहलिअनि,’एना जुनि कहिऔक’.
‘ ठीके कहल-ए.’
हम हुनका लग राखल कुर्सी पर बैसि गेलहुँ. कनेक काल परिचय पात भेल. नाम जाति दूर रहओ. हम पुछलियनि. ‘घर कोन ठाम अछि?’
ओ आंगुरसँ कनिएक दूर पर निर्माणाधीन पक्का मकान दिस संकेत केलनि.
हम कहलिअनि,’ अपन घर अछि. गुजर अपने करैत छी. तखन एना किएक कहैत छियैक ?’
जवाबमे ओ अनेक गप कहलनि. जाहिमे ग्रामीण जीवनमे होइत अनेक परिवर्तन जेना, ध्वस्त होइत पुरान, ऊँच घर-परिवारक धन संपत्तिक ह्रास आ ओही संपत्तिक बलें  नव स्वामी सबहक उदय, सरकारी सुविधाक सत्य आ माता-पिताक प्रति, शहर दिस जीविका लेल जाइत अनेक युवक लोकनिक उदासीनताक अनेक झलक भेटल.
आब भोरक करीब साढ़े पाँच बजैत छैक. हमरा गामक नाड़ीक स्पन्दनक अनुमान भए रहल अछि. अस्तु, अपना टोल दिस विदा भेलहुँ. आश्चर्य जे एतेक भोरे टहलान लेल बहरयहुँ, मुदा, शीबू भाई कतहु नहि भेटलाह. हुनकर घर बाटक कातहि छनि. ओतय पहुँचि जिज्ञासा कयल तँ सब किछु स्पष्ट भए गेल: ओ दरभंगामे एक प्राइवेट अस्पतालमे भर्ती छथि. पेटक ऑपरेशन भेल छनि. ठीक छथि. हम आश्वस्त भए गाम पर घुरैत छी, आ गरम ग्रीन-टी क एक कप लए बरामदा पर बैसि जाइत छी.                         

7 comments:

  1. एतेक जीवंतएव गामक चित्रण- पढइत हम गाम घूरि अयलौ,

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  2. गामक जीवंत दर्शन भेल । खूब नीक वर्णन !

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  3. अद्भुत। बहुत नीक लागल।जेना गाम पहुंचि गेल होइ।

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    1. अपनेक सम्मति हमर ऊर्जा बढ़बैछ. धन्यवाद.

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  4. प्रोफेसर केदार नाथ झा केर उक्ति: गामक एकटा समस्या आओर छैक- आम तोड़ायब तँ खायत के!

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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

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