Tuesday, August 27, 2024

Rape and Murder in Kolkata

 

Rape and Murder of a Doctor in Kolkata


Rule-based society takes cognizance of crime as a routine; swift punishment proves deterrent. Crime against women, children, and marginalized deserve not only swift action but also exemplary punishment. These fall in the realm of ideal.

Lethargy of law enforcement agencies is legendry in India. Add to that political interference, and you have lawless state where criminals run amok. Recent rape and murder of a young doctor in Kolkata jolted the medical community and shook the conscience of the Nation. Although the nature of crime left no one in doubt everyone was not on the same page. The Supreme Court of India had to step in suo moto to insure justice.

Medical Professional have to work in a demanding environment. Nature of job, and commitment to duties often force them to neglect their own safety and comfort that, ironically, remain the last thing on the mind of administrators and the governments. Regulatory bodies do not go beyond the documentary compliance as for as the facilities in the hospitals and colleges go. Thus the crimes against medical professionals continue and enforcement agencies are never held accountable in spite of the customary hue and cry in which the political parties take stand based on their own sectarian agenda. The state Governments defend the police and the institutions where crimes occur. This hasn't served the government of the day in the instant case; the government is accountable. To make matters worse the ruling party workers stepped in . They went so as far as vandalizing peaceful demonstrations by doctors. It was shameful to say the least.

We as a society we need to reflect. Crimes against women reflect societal attitude. Rape of a minor in ‘illegal NCC Camp’ in Tamil Nadu, gang-rape of a women by the crews of a State Road Transport Corporation-run bus Dehradun-bound bus, and rape and murder of a minor Dalit girl in a far-off village in Muzaffarpur, Bihar are some examples.

Attitude of the society toward women needs to change. Romanticizing eve-teasing, like in the movies, need to stop. Mothers need to stops provoking their sons to ‘take care’ of sisters who marry outside the cast. Mother-in-laws have to stand by daughter-in-laws when they rightfully question the authority of their husbands. Employers need to stop gender-based profiling of workers, and need to ensure safe working environment for women. Law enforcement agencies have their work cut-out too. They need to enforce law without fear or favour in a time-bound manner whenever laws are violated.       

     

Tuesday, August 20, 2024

डिजिटल संस्करण आ डिजिटल मार्केटिंग प्लैटफॉर्मक सहायतासँ पोथीक पहुँच बढ़ाबी

 

डिजिटल संस्करण आ डिजिटल मार्केटिंग प्लैटफॉर्मक सहायतासँ पोथीक पहुँच बढ़ाबी 

एहि बीच हमर रुचिक अनेक मैथिली पोथी छपल. हम किनबाक नेआरो करैत रही. मुदा, डिजिटल प्लेटफार्म पर पोथीक अनुपलब्धता वा प्लैटफॉर्म पर डिजिटल संस्करणक अभावक कारण ‘दूर रहैत’ पोथी किनि नहि सकलहुँ. अस्तु, एहि संक्षिप्त लेखमे हम मैथिली पोथीक  डिजिटल संस्करणक अभाव एवं  डिजिटल मार्केटिंग प्लैटफॉर्म ओकर अभावक विषय पर विचार करय चाहैत छी.

सर्वविदित अछि, इन्टरनेट आविष्कार आ मोबाइल फ़ोन टेक्नोलॉजीक सहायतासँ पढ़ब आ लिखब दुनू सुलभ भेलैए. के नहि जनैछ, विश्वभरिक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय आ अनेक अन्य संस्थाक पुस्तकालयक द्वारि घर बैसल, ओहि सब पाठकक हेतु खूजल छनि, जे इन्टरनेटक प्रयोग करब जनैत छथि. ई वरदान थिक. एहि सब ‘वेब साइट’ पर पोथी, पाण्डुलिपि, इंटरव्यू, फिल्म, सब किछु भेटत. संयोगवश, एहि किछु ‘वेब साइट’ पर मैथिलिओक किछु पोथी उपलब्ध अछि. मुदा, बहुत नहि. श्री गजेन्द्र ठाकुर ‘विदेह ई पाक्षिकक’ पत्रिकाक माध्यमसँ मैथिलीक अनेक पुस्तक आ छात्रोपयोगी सामग्री http://www.videha.co.in/archive.htm पर पाठकक हेतु संकलित कयने छथि. किछु लेखक लोकनि सेहो यदा-कदा https://archive.org/ एवं अन्य साइट पर अपन पोथी देने छथिन. तथापि, हमरा जनैत, संम्पूर्ण मैथिली साहित्यिक सम्पदाकें ध्यानमे रखैत ई पर्याप्त नहि. आ नव पोथी मुफ्त बिलहबाक तं प्रश्ने नहि उठैछ.
तथापि, एक दिस जं मैथिलीमे पोथी नहि बिकयबाक समस्या छैक, तं दोसर दिस पोथी-पत्रिकाक पाठक धरि नहि पहुँचबाक समस्या सेहो छैक.  एहि विषयक चर्चा  हम आइसँ करीब पाँच वर्ष पूर्व पहिने अपन ब्लॉग (‘
बेचबाले पोथीकें किनबा जोग बनाउ, पाठक धरि पहुँचाउ’) (https://kirtinath.blogspot.com/2019/08/blog-post.html) मे कयने रही, जे आइओ प्रासंगिक अछि. कारण, आइओ पुस्तक वितरण आ विपणनमे बहुत परिवर्तन नहि भेलैए. फलतः, ‘पोथी नहि बिकाइए’क चिंता जहिना तहिया रहैक, तहिना आइओ छैक.
एहि अवधिमे नव पीढ़ीक रचनाकारक नीक संख्या सोझाँ आयल छथि. स्थापित रचनाकार तं छथिए. तथापि, ग्रामीण क्षेत्रमे एवं डिजिटल मार्केटिंग प्लैटफॉर्म पर सब नव-पुरान पोथी भेटबो नहि करत. भेटबो करत तं पोथीक  इलेक्ट्रॉनिक संस्करण (
kindle edition) भेटत कि नहि, कहब असंभव.
अस्तु, आइ मैथिलीमे जे कोनो पोथी छपैत अछि, सबहक डिजिटल एडिशन बनाबी आ सबहक डिजिटल वर्शन डिजिटल मार्केटिंग प्लैटफॉर्म पर पाठकक हेतु किनबा लेल उपलब्ध हो. जाहि सबसँ पाठक कतहु होथि पोथी किनि सकथि. जे ‘हार्ड कॉपी किनय चाहथि, ओ तं किनिए सकैत छथि.

एतय ई कहब अतिशयोक्ति नहि हएत जे, कारण, एखनि पोथीक प्रकाशनमे कंप्यूटरक प्रयोग अनिवार्य अछि, आ पोथीक डिजिटल संस्करणमे ततेक थोड़ श्रम लगैछ जे एकरा ‘दालि-भातक कओर’ बूझि सकैत छी. अस्तु, मुद्रक-प्रकाशकक संग पोथी आ पत्रिकाक प्रकाशनक करारमे पोथी-पत्रिकाक डिजिटल कॉपीक प्रकाशन आ डिजिटल प्लैटफॉर्म पर मार्केटिंगक हेतु लिस्ट करबाक करार सेहो अवश्य सम्मिलित कराबी. एहिसँ पोथी-पत्रिका आ मैथिली साहित्यक पहुँच संपूर्ण विश्व धरि तं पसरिए जायत, हमरालोकनिकें दूर देशमे बैसल मैथिलीक पाठकक सहयोग सेहो अनायास भेटत. मातृभाषा-पिपासु पाठक लोकनिक संतुष्टिक तं गपे नहि हो.      

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

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