हरे-भरे अरण्य में अगर कभी निवास हो
हरीतिमा की सेज और आवरण आकाश हो
प्रवाहिनी की लोरियां, कोकिला का गान हो,
भूमि ही तो स्वर्ग है, प्रकृति माँ समान हो!
कीर्तिनाथक आत्मालाप, आत्ममंथनक क्षणमें हमर मनक दर्पण थिक. 'Kirtinathak aatmalap' mirrors my mind in moments of reflection.
कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म लेख मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...
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