प्रतिदिन भोरहिं ,
(जखनि हम उठैत छी )
शुरू होअय एकटा नव जिनगी, नव जीवन !
विगत रातिक घूर- धुआं आ भकसी में
बिला जाय कल्हुका संताप आ संघर्ष !
अपूर मनोरथके , करी पूर उषाक लाली सँ,
मिझाबी पिपासाक आगि इजोरिआक सिनेह सँ !
जीवन पद्धति , नित-दिन , ( अपनाकें ) ढारय युगधर्मक सांच में,
जबकल ,जड़-अतीत , कालक दौड़ में पछुआयल रीति-नीति,
जरओ युगक आंचमें !
तें,
जा धरि छी हम गतिमान वर्तमानक संग ,
बहैत अछि जीवनक राग ,
हमर मोन-मेरु, आ माथमें ,
ताबते छी हम जीवित !
जहिए डेग भेल पाछू ,
आ प्रगतिक भेलहुँ हम बाधक ,
बढ़ओ सब समयक गतिक संग आगाँ ,
भले , हम पड़ल रही एसगर आ विस्मृत !
पोखरा ,नेपाल .
२२ मार्च २००८
कीर्तिनाथक आत्मालाप, आत्ममंथनक क्षणमें हमर मनक दर्पण थिक. 'Kirtinathak aatmalap' mirrors my mind in moments of reflection.
Thursday, September 16, 2010
Saturday, September 4, 2010
मधुवाता ऋतायते ..........
जहिया सँ भेली मैथिली सरकारी नव कनियाँ ,
आ पावय लगली मुँह देखाई,
तहिये सँ कतेको सोचलनि ,
येह थिकी लगहरि गाई !
बस, की छलैक ,
बंगौरे के कतेक गोटे बनवय लागल पीर ,
आ जोलही खंडुकी के कहय लागल पटोर !
भांटहुं भ गेलाह भाष्यकार !
पुरस्कारे भ गेल साहित्य सँ भरिगर !
आ, किएक नहिं ?
मधुवाता ऋतायते , मधुक्षरन्ति सिन्धवः ...............
( मादक मधुर बसात सिहकैये , सर- सरिता - समुद्र में मधुए बहैये !)
....अन्हरा के गाई बिअयलै, चालनि ल कय दौगई जो !
०८.९. २००८
आ पावय लगली मुँह देखाई,
तहिये सँ कतेको सोचलनि ,
येह थिकी लगहरि गाई !
बस, की छलैक ,
बंगौरे के कतेक गोटे बनवय लागल पीर ,
आ जोलही खंडुकी के कहय लागल पटोर !
भांटहुं भ गेलाह भाष्यकार !
पुरस्कारे भ गेल साहित्य सँ भरिगर !
आ, किएक नहिं ?
मधुवाता ऋतायते , मधुक्षरन्ति सिन्धवः ...............
( मादक मधुर बसात सिहकैये , सर- सरिता - समुद्र में मधुए बहैये !)
....अन्हरा के गाई बिअयलै, चालनि ल कय दौगई जो !
०८.९. २००८
Friday, September 3, 2010
दूटा महानगर , दूटा अनुभूति : दिल्ली आ काठमांडू
काठमांडू
काठमांडूक कारी सड़कपर,
टिनही , डब्बानुमा , तिनपहिया वाहन हंकैत ,
हे! बहिनी ,
तोंही थिकह एहि युगक नायिका !
तोंही थिकह एहि युगक नायिका !
तोंही थिकह एहि युगक नायिका,
जकर वक्ष केर ऊष्मा करैछ सबतरि सिनेहक सिंचन ,
पयर हंकैत छैक गाडी ,
आ दुनु हाथ,
अपन बलें,
सतत
उठओने रहैए ,
घर-परिवारक चार
आ गिरहस्तीक चौखम्बा आधार !
काठमांडू
१६.५.२००८
काठमांडूक कारी सड़कपर,
टिनही , डब्बानुमा , तिनपहिया वाहन हंकैत ,
हे! बहिनी ,
तोंही थिकह एहि युगक नायिका !
तोंही थिकह एहि युगक नायिका !
तोंही थिकह एहि युगक नायिका,
जकर वक्ष केर ऊष्मा करैछ सबतरि सिनेहक सिंचन ,
पयर हंकैत छैक गाडी ,
आ दुनु हाथ,
अपन बलें,
सतत
उठओने रहैए ,
घर-परिवारक चार
आ गिरहस्तीक चौखम्बा आधार !
काठमांडू
१६.५.२००८
दूटा महागर , दूटा अनुभूति : दिल्ली आ काठमांडू
दिल्ली
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान आ सफदरजंग अस्पतालक विस्तृत, अड्वाल परिसर,
पुरनका चौराहा कें चीरैत दूर धरि पसरल फ्लाई- ओवर ,
सड़कपर दौगैत डीटीसीक बस , मर्सिडीस ,बी एम् डव्लू, होंडा, आ ह्युन्दाई !
आ, चाकर- चौरस सड़कक कातमें फुटपाथ पर बैसलि,
नान्हि टा रीता , गीता , सरिता , सबिता वा आन कोनो अनामा छौड़ी !
संपूर्ण शहर आ दुनिया कें तौलैत !
नान्हि- नान्हि टा तरहत्थी पर चारि टा कैंचा !
खोंछि में एक मुट्ठी मकैक लावा ,
आगू में किताब- कापी - सिलेट -पेंसिल नहिं , मनुक्ख कें जोखैवाला छोट-सन , वेइंग-मशीन !
मुदा किएक नहिं ककरो देखबा में अबैत छै नान्हिटा फूल,
आ कतहु दूर में मखरैत, वा गन्हैत, चकेठ्बा मूल,
जे दूर सँ रखने रहइए सबटा आमद पर दृष्टि ?
किएक , तं, रीता , गीता , सरिता , सबिता वा आन कोनो अनामा छौड़ी छिएक तं ओकरे सृष्टि !
हमहूँ जाइत छी, प्रतिदिन , ओम्हरे बाटें, झटकारने,
माने,
कदाचित ! पैर नहिं ठेकि जाय ओहि छौडिक तराजुमें !
खसि ने पड़ी धडाम !
मुदा, ऊपर दिस सतत गतिमान हमरा लोकनि ,
जे प्रतिवर्ष करैत छी संविधान में संशोधन ,
जाहि सँ बनि सकय सुदृढ़ समाजक आधार,
किएक नहिं तकैत छी -
नेना- भुटका, छौड़ी -मौगीक पयर तर सँ सतत ससरैत भूमि,
जे ने ओकरा होमय दैत छै गतिमान ,
आ ने समाज कें द पबैत छै सुदृढ़ आधार ?
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान आ सफदरजंग अस्पतालक विस्तृत, अड्वाल परिसर,
पुरनका चौराहा कें चीरैत दूर धरि पसरल फ्लाई- ओवर ,
सड़कपर दौगैत डीटीसीक बस , मर्सिडीस ,बी एम् डव्लू, होंडा, आ ह्युन्दाई !
आ, चाकर- चौरस सड़कक कातमें फुटपाथ पर बैसलि,
नान्हि टा रीता , गीता , सरिता , सबिता वा आन कोनो अनामा छौड़ी !
संपूर्ण शहर आ दुनिया कें तौलैत !
नान्हि- नान्हि टा तरहत्थी पर चारि टा कैंचा !
खोंछि में एक मुट्ठी मकैक लावा ,
आगू में किताब- कापी - सिलेट -पेंसिल नहिं , मनुक्ख कें जोखैवाला छोट-सन , वेइंग-मशीन !
मुदा किएक नहिं ककरो देखबा में अबैत छै नान्हिटा फूल,
आ कतहु दूर में मखरैत, वा गन्हैत, चकेठ्बा मूल,
जे दूर सँ रखने रहइए सबटा आमद पर दृष्टि ?
किएक , तं, रीता , गीता , सरिता , सबिता वा आन कोनो अनामा छौड़ी छिएक तं ओकरे सृष्टि !
हमहूँ जाइत छी, प्रतिदिन , ओम्हरे बाटें, झटकारने,
माने,
कदाचित ! पैर नहिं ठेकि जाय ओहि छौडिक तराजुमें !
खसि ने पड़ी धडाम !
मुदा, ऊपर दिस सतत गतिमान हमरा लोकनि ,
जे प्रतिवर्ष करैत छी संविधान में संशोधन ,
जाहि सँ बनि सकय सुदृढ़ समाजक आधार,
किएक नहिं तकैत छी -
नेना- भुटका, छौड़ी -मौगीक पयर तर सँ सतत ससरैत भूमि,
जे ने ओकरा होमय दैत छै गतिमान ,
आ ने समाज कें द पबैत छै सुदृढ़ आधार ?
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