जहिया सँ भेली मैथिली सरकारी नव कनियाँ ,
आ पावय लगली मुँह देखाई,
तहिये सँ कतेको सोचलनि ,
येह थिकी लगहरि गाई !
बस, की छलैक ,
बंगौरे के कतेक गोटे बनवय लागल पीर ,
आ जोलही खंडुकी के कहय लागल पटोर !
भांटहुं भ गेलाह भाष्यकार !
पुरस्कारे भ गेल साहित्य सँ भरिगर !
आ, किएक नहिं ?
मधुवाता ऋतायते , मधुक्षरन्ति सिन्धवः ...............
( मादक मधुर बसात सिहकैये , सर- सरिता - समुद्र में मधुए बहैये !)
....अन्हरा के गाई बिअयलै, चालनि ल कय दौगई जो !
०८.९. २००८
कीर्तिनाथक आत्मालाप, आत्ममंथनक क्षणमें हमर मनक दर्पण थिक. 'Kirtinathak aatmalap' mirrors my mind in moments of reflection.
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