प्रतिदिन भोरहिं ,
(जखनि हम उठैत छी )
शुरू होअय एकटा नव जिनगी, नव जीवन !
विगत रातिक घूर- धुआं आ भकसी में
बिला जाय कल्हुका संताप आ संघर्ष !
अपूर मनोरथके , करी पूर उषाक लाली सँ,
मिझाबी पिपासाक आगि इजोरिआक सिनेह सँ !
जीवन पद्धति , नित-दिन , ( अपनाकें ) ढारय युगधर्मक सांच में,
जबकल ,जड़-अतीत , कालक दौड़ में पछुआयल रीति-नीति,
जरओ युगक आंचमें !
तें,
जा धरि छी हम गतिमान वर्तमानक संग ,
बहैत अछि जीवनक राग ,
हमर मोन-मेरु, आ माथमें ,
ताबते छी हम जीवित !
जहिए डेग भेल पाछू ,
आ प्रगतिक भेलहुँ हम बाधक ,
बढ़ओ सब समयक गतिक संग आगाँ ,
भले , हम पड़ल रही एसगर आ विस्मृत !
पोखरा ,नेपाल .
२२ मार्च २००८
कीर्तिनाथक आत्मालाप, आत्ममंथनक क्षणमें हमर मनक दर्पण थिक. 'Kirtinathak aatmalap' mirrors my mind in moments of reflection.
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