Monday, April 28, 2014

जे किछु फुरल

1
वृद्ध केर ह्रदय होइछ नेने जकां 
नेनोक मोन होइछ बूढ़ 
बुझबा ले मनुक्खक ह्रदय चाही 
से बुझथि  नहिं  मूढ़ 

2
कडलूर क साँझ , पांडिचेरी क सूर्योदय 
अवाम केर घास परहक ओस 
लद्दाख क रौदक दुलार 
उत्तरांचलक फुलबारी क सिंगार
मोन में जगबइ अछि एके भाव; 
जं सबतरि  के बूझी अप्पन, 
तं कथुक नहिं अभाव !

3
दृष्टिक सीमाक पार 
दूर दूर धरि पसरल
 चंचल सागरक  पसार 
दूर दूर धरि समयक असीम पसार में 
बौआईत मोन 
एकहि संग देखबैत अछि 
स्मरण नन्दन काननक 
आ नरकक दारुण दृश्य 
जेना 
नागफनीक जंगल सं  छनि कय अबैत सूर्योदय क स्वर्णिम किरण 
थिक जीवनक सत्यक प्रतिरूप

चुनाव २०१४


चुनाव देखैत 42 वर्ष भ गेल .बहुत किछु बदलल . बहुत किछु नहिं बदलल. बदलल माने , लोक बदलि गेल. समय बदलि गेल . समाज बदलि गेल . प्रचारक तरीका बदलि गेल. नहिं बदलल, त बैमानी नहिं बदलल . छल स जितबाक प्रपंच नहिं बदलल . प्रलोभन देबाक चालि नहिं बदलल . लोक के ठकबाक बानि नहिं बदलल .
हमरा लोकनिक सांसद चुनाव में सफल होइत छथि . दिल्ली जाइ छथि आ  घूरि क पांच बरखक पछातिये , पुनः चुनाव में निर्लज्ज जकां ,भोट मंगबा लेल अबै छथि . वैह खुरपेरिया बाट  , वैह खाधि - खोड़ा . मोटर के धक्का लगा कय गौआ सब खाधि पार कय  दइ  छनि . टाका क बलें  चुनाव जिता दैत छनि . आ फेर हमर प्रतिनिधि पांच सालक दिल्लीबास पर बिदा भ जाइत  छथि . मुदा , देखी २०१४ केर चुनाव कोन गुल खिलबैत अछि !

Wednesday, April 2, 2014

कने सोचियउ त 


बगडा भ गेल निपत्ता,
मुदा गिद्ध भ गेल संरक्षित  !
माने, चाही , अफरात चरी ,
चारूभर सुरक्षा चक्र,
आ भयमुक्त विचरण !
तें तं ,सुरक्षा चक्र में गिद्ध निस्संक लगा रहल छथि  बगडा क भोग !
आ असहाय चिडइ -चुनमुनी मना  रहल अछि मनहि -मन  शोक !!

2
एकटा कोठली तीन टा  लोक ,
बाजा-ने-भुकी , मेल-ने-जोल 
पड़ोसियाक घर में लागल छै आगि ,
मचल छै अनघोल ,
धत्तोरिके ! बुझलियइ कहाँ ,
हमरा सबहक कान में लागल छल फोन !

बाबा, केहन होई छै , बम्मई आम ?
बड होइए सेहन्ता, कने बुझितियइ स्वाद  !
की करू बाउ, कोना बुझाऊ , अद्भुत अछि सवाल  ,
मुदा, पुछियनु पितामह गूगुल के ,
कदाचित् , हुनका लग होइन कोनो बराबरीक स्वाद  !
 



Tuesday, April 1, 2014



समैया बसात
अपने बोली,अपने भाखा, लगैए अजगुत 
अपने स्वर लगैए अनचिन्हार 
गामक  सुनल पुरान  गीत लगैए नव 
अपने पुरान  बानि लगैए अनसोहांत । 


चिन्हल रिआय लगैए दडकल 
चिन्हले लोकक व्यवहार देखै छी बदलल 
घोदामाली भेल परिजन सुतै छल निस्संक  निर्विकार
आब, ख़ुशफैल शान्त आवास में, लोक बरमहल अछि  अनिद्राक शिकार ।


नीक लोकक आन करितै प्रशंसा 
अनटोटल व्यवहारक होइतै उपहास 
स्वेच्छा स लोक चुनैत मुखिया 
प्रचारक कोन  दरकार


एखनि विपटा बनल अछि विशिष्ट 
सबतरि उधियाइए  प्रचार 
मुंह कोनो  खतियान छै !
 ठकि   आउ संसार  ! !




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