Tuesday, April 1, 2014



समैया बसात
अपने बोली,अपने भाखा, लगैए अजगुत 
अपने स्वर लगैए अनचिन्हार 
गामक  सुनल पुरान  गीत लगैए नव 
अपने पुरान  बानि लगैए अनसोहांत । 


चिन्हल रिआय लगैए दडकल 
चिन्हले लोकक व्यवहार देखै छी बदलल 
घोदामाली भेल परिजन सुतै छल निस्संक  निर्विकार
आब, ख़ुशफैल शान्त आवास में, लोक बरमहल अछि  अनिद्राक शिकार ।


नीक लोकक आन करितै प्रशंसा 
अनटोटल व्यवहारक होइतै उपहास 
स्वेच्छा स लोक चुनैत मुखिया 
प्रचारक कोन  दरकार


एखनि विपटा बनल अछि विशिष्ट 
सबतरि उधियाइए  प्रचार 
मुंह कोनो  खतियान छै !
 ठकि   आउ संसार  ! !




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