Tuesday, November 28, 2017

लेह 3 :माने रिंग्मो, सिन्धु दर्शन , खर्दुंग-ला आ संगम



लेह 3 :माने रिंग्मो, सिन्धु दर्शन , खर्दुंग-ला आ संगम 
माने रिंग्मो
' ॐ माने पद्मे हुं ' तिब्बती बौद्ध लोकनिक हेतु बीज मंत्र थिक. चाहे बौद्ध लोकनिक हाथमें घूमैत धर्म-चक्र ( prayer wheel ) हो वा बौद्ध मन्दिर सबहक परिसरमें स्थापित छोट-पैघ-विशाल धर्मचक्र हो ई प्रभावी मंत्र सब ठाम लिखल भेटत. एहि मंत्रक ध्वनि सबठाम कान में पड़त. आस्था एहन छैक जे बौद्ध इलाकामें छोट-पैघ पाथरपर एहि मंत्र कें अंकित कय स्तूप आकारक एक बीत सं ल कय मर्द भरिक ऊँच, पाथरक ढेर सब भेटत. अभिषिक्त पाथरक ढेर सं बनल एहि आकृति सब कें छोरतेन कहल जाइछ. मुदा, एहने अभिषिक्त पाथरक ढेर जं छोट-पैघ देवालक आकार ल लियअ तं ओकरा माने-देवाल (mani-wall)  कहल जाइछ. बहुतो ठाम बस्तीक बाहर एहन माने-देवाल भेटत. किन्तु, लम्बाई में किलोमीटर सं बेसी, चौड़ाईमें करीब 12-15 फुट आ ऊँचाईमें चारि फुट सं बेसी लेह केर माने- रिंग्मो हमरा जनैत सबसँ पैघ माने-देवाल थिक. स्पष्ट छैक देवाल उपर आ एकर फलक पर ' ॐ माने पद्मे हुं ' लिखल अजस्र पाथर देखबैक. परम्परा सं बाटे-बाट चलैत पथिक जाइत-अबैत माने-देवाल कें अपन दहिने राखि चलैत छथि. आधुनिक युगक अनुसन्धानक मानब छैक, कदाचित ई माने-देवालसब  बाढ़िक पानिक बहावकें रोकबाक बान्ह जकां बनाओल गेल हो.
शहीद स्मारक आ हौल ऑफ़ फेम
राष्ट्र जखन युद्ध लड़ैछ, सीमा प्रदेशकें अनिवार्यतः युद्धमें  भागीदार होबय पडैत छैक. किन्तु, सैनिकक जन्म कतहु होइक ओकरा जतहिं युद्ध हेतैक गेनहिं प्रकार. युद्धमें भागीदारीए  सैनिक-जीवन सार्थकता  थिकैक : हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गः, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम ! 
तथापि युद्धमें मारल गेलापर स्वर्ग होइत छैक, कि नहिं , के कहत. किन्तु, लड़ैत सैनिककें युद्धमें स्वर्गहुक कामना नहिं होइछ, से हमरा सं सुनू . हमरा-सन वा आन कोनो सैनिक ले स्वर्ग अपन  देशे थिक . लड़िकय अपन भूमिक रक्षा केलहुं, तं अपनहिं अपनाले स्वर्ग बचा लेलहुं. बस. आब एहि भूमि पर रही वा एहि भूमिक तर में, से गौण थिक. हमर मृत शरीरकें लेह भेटैक वा लोहित नदीक कछेर, कोनो अंतर नहिं. लेह मिलिटरी जनरल हॉस्पिटल लगक स्मारक 1962 केर युद्धमें शहीद किछु एहने अनामा वीर लोकनिक समाधि थिक. ई समाधि  सैनिक अस्पतालक सोंझा सड़कक कातहिं में देखबामें आओत- शान्त, विस्मृत, आडम्बरहीन. जेना सैनिक सबतरि होइछ.  कारण, जीवित सैनिककें  शासक लोकनिक आभूषण बूझैत छथि. मृत सैनिक स्मारकमें एकाकी विस्मृत भेल पड़ल रहैछ ! एखनुक भारतक इएह विडम्वना अछि. तथापि, लेह अबैत जं कहियो एहि बाटें जाइ, एहि स्मारक पर फूल भले जुनि चढ़ाबी, एक क्षण एतय अवश्य बिलमी आ एहि शहीद लोकनिकें श्रद्धाक भागी अवश्य बुझियनि. हम तं इएह सोचैत छी:
अपन भूमि आ अप्पन देह, निश्यय दुनू हेतइ एक 
धन्य थिकै युद्धक संयोग,आओर ने कोनो चाही भोग !
मिलिटरी अस्पतालक समीपक स्मारक केर अतिरिक्त लेहमें एयर-फ़ोर्सक हवाई-पट्टी क लगहिं सड़कक कातहिं एकटा आओर सैनिक स्मारक दर्शनीय अछि. ई थिक 'हॉल ऑफ़ फेम'. 'हॉल ऑफ़ फेम' में कारगिल युद्धमें दुश्मनसं छीनल बहुत रास अस्त्र-शस्त्र, माल-असबाब देखबामें आओत.
खर्दुंग-ला पास 
भूमि पर पयर आ आकाशमें माथ जं कतहु चरितार्थ होइछ तं केवल पर्वतक माथहिं पर. ताहिमें उत्तरमें नुब्रा उपत्यका आ दक्षिणमें लेहक बीचक गगनचुम्बी लद्दाख़ पर्वतश्रृंखलाकें पार करबाक सबसं सुलभ स्थान थिक खर्दुंग-ला पास. लेहसं करीब 45 किलोमीटर उत्तरमें 18387 फीटक  ऊँचाई पर स्थित खर्दुंग-ला पास हेबनि धरि देसक सब सं ऊँच मोटरबुल पास छल. आब पूर्वी लद्दाख़हिं में एहि सं ऊँच पास बनि गेने खर्दुंग-ला पास नंबर दू पर भ गेले. तथापि ई लेह सं ततेक लग अछि जे, भोर में जलखइ लेह में करू, मोटर कार -टैक्सीमें चढ़ू, दू घंटाक पछाति चाह खर्दुंग-ला पासपर पीबू आ आपस भ दुपहरियाक भोजन पुनः लेह में करू. बीच में खर्दुंग-ला पासपर घिचाओल फोटोके गाम ल जाऊ, गौरवान्वित होउ !
मैगनेटिक हिल

लेह सं करीब 25 किलोमीटर पश्चिम गुरुद्वारा पत्थर साहेबक समीपहिं, मैगनेटिक हिल एकटा एहन पर्यटन स्थल थिक जतय सत्य वा भ्रमकेर बीचक रेखा मेटा जाइछ  आ पर्यटक आश्चर्य में माथ हंसोथय लागैथ छथि. मैगनेटिक हिलक समतल सड़कक एहि खण्डपर अपन मोटर गाड़ीक इंजनकें चलैत राखि गाड़ीकें  न्यूट्रल में छोडि दियौक आ देखू तमाशा.  गाड़ी ढलानकेर विपरीत दिशामें अपनहिं चलब शुरू क देत. ई सत्य थिक वा भ्रम हम एहि विवाद सं दूर छी. किन्तु, पर्यटन ले आयल छी, मजा उठाउ.
जान्सकार आ सिन्धुक संगम    
संगम
छोट नदीक पानि पैघ नदीमें आ नदी सबहक पानि अंततः समुद्रमें खसैछ. ई स्वाभाविक थिक. किन्तु, दू नदीक संगम कें किएक पावन मानल जाइछ हमरा नहिं बूझल अछि. तथापि जं संगमके केवल सुन्दरताक दृष्टि सं देखल जाय तं लेह सं करीब 40 किलोमीटर पश्चिम जान्सकार आ सिन्धु नदीक संगम अपूर्व अछि. एतय जान्सकारक नीलम-सन स्वच्छ पानि आ सिन्धुकेर घोर-मट्ठापानिमें  मिझडाक एकाकार भ जाइछ. जेना, अभिजात्य आ अति साधारण अपन स्वरुप बदलि एक भ गेल हो. लगक ऊँच सड़क पर ठाढ़ होउ, आ संगमम सुषमाक आनंद लिअय.
एहि सबहक अतिरिक्त लेहक चारू कात पर्यटन स्थलक कमी नहिं. किन्तु. से सब लेह जायब तं देखब वा नहिं देखब. कारण लेह में सबसं कीमती वस्तु थिक समय. एतय आयब, रहब, आ जलवायुके सहब तीनू कठिन. किन्तु, स्वस्थ होई आ रूचि हो तं एकबेर सिन्धु दर्शन अवश्य करी.

Wednesday, November 8, 2017

लेह-लद्दाख़-2

 माथो बौद्ध विहार आ लद्दाख़क वार्षिक भविष्यवाणी 
 
भारत जतेक हमरा देखल अछि, ताहिमें जं धार्मिक स्थल आ जनसंख्या अनुपात देखियैक तं लद्दाख़ प्रायः नम्बर एक पर आबि जायत. लद्दाख़में जतय कतहु गाम छैक ओतय मंदिर अवश्य भेटत. सबसँ ऊंच भूमि, सब सं ऊँच भवन, आ प्रायः आस-पासमें सबसँ बेसी उपजाउ भूमि बौद्ध-विहारेक होइछ . किछु पूजा-स्थल (विहार) कोनो विशेष गुरु लोकनिक अनुयायी सेहो अछि. मुदा, तिब्बती बौद्ध समुदाय में मूलतः दूइए टाका सम्प्रदाय छैक- पीयर टोपी पहिरैबला, दलाई लामाक अनुयायी गेलुक्पा, बौद्ध धर्मक तान्त्रिक परम्पराक अनुयायी लाल टोपीबला  शक्या-पा. आई लेह केर समीप माथो गामक शाक्य-पा बौद्ध बिहारक गप्प कहैत छी. ई बौद्ध विहार सम्पूर्ण लद्दाख़में वार्षिक भविष्यवाणी ले प्रसिद्द अछि. आइ तकरे गप्प कनेक विस्तार सं.

सत्यतः, भविष्यवक्ता, ओझा-गुणी, ज्योतिषी, साधु  आ साधक तं सब ठाम होइत अयलाहे. जकरा विश्वास होइत छनि, हाथ देखबैत छथि, टिप्पणि देखबैत छथि, ग्रह-शान्ति करबैत छथि आ भूत-प्रेत झड़बैत छथि. हमरा एकर सबहक गप्प सुनल बेसी, देखल कम, आ विश्वास एकदम नहिं अछि. तथापि 2004 में कौतूहलवश हम माथो विहारक वार्षिक भविष्यवक्ताक करतब देखय गेलहु. अवसर कोनो होइक डाक्टरी  हमर जीवने थिक. एहि वार्षिक मेलाक अवसरपर विहारकेर लगहिं में हमरा लोकनि सेहो मेडिकल कैंप लगाओल माथो-विहार घुमैत गेलहुं. सुखठिक बणिज आ पशुपतिक दर्शन !
जेना कहल, माथो-विहार बौद्ध धर्मक तान्त्रिक सम्प्रदायक विहार थिकैक. पहिनहु सुनल अछि, तिब्बत-लद्दाख़ आ सम्पूर्ण पूर्वोत्तर भारतमें तन्त्र-मन्त्र-रहस्य आ एकान्त साधनाक परिपाटी सदा सं चलैत आबि रहल छैक. इतिहास विदित अछि, बौद्ध धर्मक उदय सनातन धर्मक सुधारक रूपमें भारतमें भेल रहैक, जाहि में जीवन पद्धतिक निश्चित अनुशासनकें धर्म जकां परिभाषित कयल गेल छलैक. तें, पारंपरिक बौद्ध आ तन्त्र-मन्त्र-रहस्य, उड़ैत लामा आ गुफ़ाक गर्भमें स्वनिर्वासित  साधक लोकनिक गप्पपर आश्चर्य उचिते. मुदा, तर्क दोसर छैक. सारांश ई, जे बौद्ध धर्म जखन भारतसं तिब्बत गेल छल, ओतय एकटा स्थानीय 'मोन' धर्मक परम्परा छलैक, जाहि में बहुतो किछु बौद्ध धर्म सं भिन्न रहैक . अस्तु, आयातित नव  धर्मकें स्वीकार्य बनयबाले नव आ पुरान मान्यताक संश्लेषणक होइत गेलैक.  स्थापित मान्यता, जलवायु आ भौगोलिक स्थितिक कारण खान-पानक बाध्यता तं रहबे करैक. अस्तु, स्थानीय मान्यता  बौद्ध धर्ममें क्रमशः तेना मिझड होइत चल गेल जे ओकर स्वरुप बौद्ध धर्मक अनेक मौलिक  मान्यता सं पूर्णतः भिन्न भ गेलैक. अनुभवो कहैत अछि, नोन-मरचाइ-मशालाक योग सं कांचे कब-कब ओल स्वादिष्ट व्यंजन बनि जाइछ. तहिना, व्यवहार में शुष्क, आ अनुशानमें कठिन बौद्ध धर्म तन्त्र-मन्त्र साधक आ मांसाहारी तिब्बती समुदायक धर्म भ गेल आ बुद्ध ईश्वर भ गेलाह. हँ, आइ बुद्ध जीबैत रहितथि तं ओ हँसितथि वा मौन भ जैतथि से के कहत !

आब पुनः माथो महोत्सव पर आबी. माथो महोत्सव लद्दाख़ में अपना-सन अपने टा अछि. एकरा मिथिलांचलक भगताक भाओ बूझि सकैत छी. ओहिना जेना सलहेसक पूजाक अवसर पर राजा सलहेसक गहवरमें होइत रहैक. किन्तु, कनेक अंतर छैक. प्रत्येक चारि वर्षपर होमयबला एतुका भगताक चुनावक प्रक्रिया जटिल छैक. चुनल भगता वा भक्त साल भरि साधना करैत छथि. बीचमें पूजा-अर्चना-पाठकेर जटिल कर्मकाण्डकें पार करैत मार्च महिनाक मध्यमें पर्वक समय भगतपर देवता सवार भ जाइत छथिन. वएह देवता माथो महोत्सव दिन छिलल कपार, काषाय वस्त्र, आ भयानक भंगिमामें, भगताक रूपमें हाथमें भरिगर तरुआरि नेने सम्पूर्ण चारिमंजिला विहारमें में एकत्रित जं समूहक बीच, परिसर-प्रांगण तं सहजहिं, चौमंजिला विहारक मुड़ेड धरि पर आँखिमें पट्टी बान्हि दौगैत छथि. ई दृश्य हम अपना आँखिक सं देखने छी. लोक साष्टांग दंडवत में भूमिपर पेटकुनिया द दैछ. भगताकें  वस्त्र पहिरबैत छनि, अपन प्रश्न पूछैत छनि. भगताक ओहि भयानक भंगिमामें जकरा मनोनुकूल उत्तर भेटलैक, धन्य भ गेल. जकरा उत्तर नहिं भेटलैक, माथ नबौलक आ सन्तोष केलक.


किन्तु, जाहि हेतु लोक भरि वर्ष भविष्यवक्ताक ( Oracle) बाटा-बाटी तकैछ ओ थिक सामूहिक भविष्यवाणी . माथो महोत्सव पर भगता अगिला वर्षक हेतु लद्दाख़क जलवायु आ प्राकृतिक विपदाक भविष्यवाणी करैत छथि. ई एहि महोत्सवक सबसँ पैघ प्रासंगिकता थिकैक जकरा आजुक परिप्रेक्ष्य नहिं, ओहि कालक परिप्रेक्ष्यमें देखबाक चाही जहिया लद्दाख़ भौगोलिक आ आर्थिक दृष्टिए अलगे टा नहिं, मौसमक दृष्टिए सेहो अत्यधिक कठिन भूखण्ड छल. आब परिस्थिति बदललैए. किन्तु परम्परा आ आस्थाक जडि माटिमें बहुत  दूर धरि जाइछ छैक . तें, आइओ लोक माथो महोत्सवक   बाट तकैत अछि आ भविष्यहु में प्रायः बहुत दिन धरि एकर बाट तकैत रहत .      

Tuesday, November 7, 2017

लद्दाख़ :लेह



लेह
1
लेह लद्दाख़क गप्प सैनिक लोकनि सं करबनि तं बहुतो गेल हेताह सुनल तं बहुतो के हेतनि. मुदा वएह गप्प दस वर्ष पूर्व पढ़लो लिखल सं करितिऐक तं कहितथि, जम्मू-कश्मीर राज्यक हिस्सा थिकैक. ततबे. आइ-काल्हि टीवी देखनिहार बहुतो कें फोटो देखल होइनि . मुदा, केओ लेह गेल छथि, से पुछबैक तं जनसाधारणमें प्रायः अभावृत्तिए भेटताह. दूरी, दुर्गम बाट, प्रतिकूल वातावरण, खर्च, आ प्राथमिकता. ताहिपर गंगोत्री-यमुनोत्तरी, बद्रीनाथ, केदारनाथ-सन कोनो तीर्थ जं लद्दाख़ में रहितैक तं लोक तीर्थाटन ले लद्दाख़ जेबो करैत. मुदा, लद्दाख़में ओ सब किछु नहिं. ततबे नहिं, सिन्धु जं गंगा-जकां पापोद्धारिणी  होइतथि तं लोक सिन्धुमे डुबो लगबइले लद्दाख धरि जाइत, मरबाकाल गंगाजल आ 'आब-ए-जमजम' जकां सिन्धुक जल सेहो मनुखक जीह पर देल जइतैक. मुदा, तकरो परम्परा नहिं छैक. ई सर्वविदित अछि जे भारतक उत्तरी आ उत्तर-पूर्वी सीमा प्रदेशकें छोड़ि आन सब ठाम अपन देशमें बौद्ध-धर्म विलुप्ते अछि. अस्तु, लद्दाख़में बौद्ध गामे-गाम अनेको पूजा-स्थलक बावजूद देशक समतल भूमिसं केओ बौद्ध तीर्थाटनक दृष्टिए लद्दाख़ जाइत होथि से हमरा देखल-सुनल नहिं अछि. सारांश ई जे भारतक वृहत्तर जनमानसमें लद्दाख भारतकेर एक टा सुदूर भू भाग धरि थिक आ एकर रक्षा हेबाक चाही. ततबे. किन्तु, लद्दाख़ केहन अछि तकर जिज्ञाशा कतेक लोक कें हेतैक से कहब असंभव. तें एहि लेखमें आई लद्दाख़क मुख्यालय लेहक किछु मुख्य-मुख्य स्थलक गप्प करी. सत्यतः, आब जं गूगल सं परिचय हो तं बहुतो स्थानक किछु-ने-किछु चर्चा भेटि जायत. तें हम एहन स्थान सबहक चर्चा करब जे पर्यटनक आम पड़ाव सब में नहिं गनल जाइछ.
लेह लद्दाख़क मुख्यालय थिक. एक युगमें एतय स्थानीय राजाक निवास छलनि. तें राज-प्रासाद, पूजास्थल, बाज़ार, आ सेवक लोकनिक बस्ती सबटा हयब उचितो आ आवश्यको. किन्तु, कबीर कहैत छथिन:
            चांदो मरहिं सूरजो मरिहैं मरिहैं धरनि अकासा
            चौदह भुवन चौधरी मरिहैं का की करिहैं आसा
अस्तु, आब ने लेहमें राजा छथि आ ने हुनकर प्रजा. शासन सरकारक छैक. बांकी सब नागरिक थिक. किन्तु, राजप्रासाद तं छैहे. आ लेह पहुंचब तं कतहु रही, सब सं ऊँच पहाड़पर लेह-पैलेस देखबे करबै.
 पैलेसकेर भीतर बौद्ध पूजा-स्थल (गुम्बा) छैहे. लेहके पराक्रमी राजा सिंगे नामग्यालकेर माता इस्लाम धर्मक अनुयायी छलथिन. अस्तु, बाज़ारमें पैघ मस्जिद सेहो देखबैक. एखनुक युगमें बनाओल नव शान्ति स्तूप तं आब लेहकेर प्रतीक चिन्ह-जकां छैक. ई सब ठाम सं देखबामें आओत. किन्तु, आस-पास एहन अनेक स्थल छैक जे ऐतिहासिक तं छैक किन्तु, पर्यटनक हेतु विशिष्ट नहिं मानल जाइछ. तेसुरु स्तूप एकटा एहने स्थल थिक.
जं पर्यटनकेर प्रमाणिक श्रोत, लोनली प्लेनेट (lonely planet) कें मानी, तं लद्दाख़क सब सं पैघ आ कच्चा इंटा आ माटिक बनल तेसुरु स्तूपक निर्माण में भूत-प्रेतकें नियंत्रित करबाले भेल छैक. जनश्रुति छैक, पीयर रंगक एकटा विशाल पाथरक पिण्डमें भूत प्रेतक निवास छलैक. लोकक कहब छैक जे एहि पाथर पिण्डकें देखैत तत्कालीन रानी अस्वस्थ भ गेल रहथि. अस्तु, एहि स्तूप कें निर्माण भेल आ ओहि पाथर-पिण्डकें एहि स्तूपमें बान्हल गेल. सहजहिं, जतय भूत प्रेतक डेरा हेतैक लोक ओतय किएक सटय जायत. अस्तु, लद्दाख सबसँ पैघ स्तूप, ढहैत-ढनमनाइत भूमिसात हेबाक परिस्थित में पहुंचि गेल. किछु वर्ष पूर्व स्थानीय लोकक नजरि ओम्हर गलैक आ सबहक सह्योगें जीर्णोद्धार सं तिस्सुरु स्तूप भूमिसात हेबा सं बंचि गेल.


जोरावर किला
जोरावर किला
ज़ोरावर सिंह कहलुरिया जम्मूक तत्कालीन राजा गुलाब सिंहक 'वजीर' आ सेनापति छलाह जे 1834 ई. में किश्तवार इलाकासं चलि लद्दाख़पर एकाधिक बेर आक्रमण केने रहथि. अपन अंतिम लद्दाखी अभियानक क्रम में ओ लेहमें एहि किलाक निर्माण केने छलाह, जे जोरावर फोर्टक नाम सं जानल जाइछ. ई किला लेह सैनिक जनरल अस्पतालक लगहिं अछि. सत्यतः, सदातनिसं ई किला लद्दाखी लोकनिक हेतु पराजयक प्रतीक छल. तें, लद्दाखी लोकनि एकरा पर्यटन स्थल मानथि तकर आशा करब असम्भव. दस वर्ष पूर्व लद्दाखी लोकनि सएह कहने रहथि. किन्तु, हाल में लद्दाखी मूलक, भारतीय सेनाक एकटा भूतपूर्व सैनिक अफसरसं गप्प भेल. ओ कहलनि, 'असल में, जोरावर सिंहक आक्रमण लद्दाख़ले वरदान छल. अन्यथा लद्दाख़ आइ तिब्बत आ चीनक हिस्सा होइत ! एहि किला में भगवतीक मंदिर आ पेय जलक श्रोत छैक. आब लेह ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउन्सिल जोरावर फोर्ट में पर्यटनक सीजनमें सांझुक पहर नियमतः लाइट एंड साउंड कार्यक्रमक आयोजन करैछ.                                       
दातून-साहब आ गुरुद्वारा पत्थर साहेब
अवतारी पुरुष लोकनिक जीवन हमरा सतत प्रेरित करैत अछि. बुद्ध- महावीर सं ल कय गुरु नानक देव आ अदि शंकर केर जिनगी में एकटा समानता छनि; ई सब गोटे यायावर छलाह. तें दूरी, जलवायु आ शारीरिक कष्ट हुनका लोकनि यात्रामें कोनो बाधा नहिं भ सकल. दक्षिण सं उत्तर , पश्चिम सं पूब, शंकराचार्य कतय नहिं गेलाह. गुरु नानक देवक यात्राक इतिहास सेहो आश्चर्यनक छनि. मानल जाइछ, गुरु नानक देव लद्दाख सेहो आयल छलाह. यद्यपि एकर ऐतिहासिक प्रमाण ताकब कठिन. सिक्ख भक्त लोकनिक धारणा छनि, गुरु नानक देवक लद्दाख यात्राक समय गुरुक चमत्कार ओतुका पीड़ित नागरिक सबहक हेतु वरदान साबित भेल छलैक.                                  
गुरुद्वारा श्री पत्थर साहेब
लेह-कारगिल मार्गपर लेह सं करीब 25 किलोमीटर पश्चिम मुख्य मार्गक एक कातपर गुरुद्वारा श्री पत्थर साहेब एकटा प्रमुख धार्मिक स्थल थिक. भक्त लोकनिक अनुसार गुरुनानक देवकेर लद्दाख़ यात्राक युगमें बाटक कातक एकटा ऊँचका टीलापर एकटा दुष्ट दानव रहैत छल. ओ दुष्ट  उपरसं पाथर ओंघडबैत छल आ जाइत यात्री लोकनिक हेतु आतंकक कारण भ गेल छल. एक दिन यात्राक बीच गुरुनानक देव ओतहि, बाटक कातमें ध्यानस्थ छलाह. दानव हिनको साधारण मनुक्ख बूझि  हिनको संग दुष्टतासं  बाज नहिं आयल आ  पहाड़परसं  एकटा पैघ पाथर गुरुक दिस  ओंघडौलक. गुरु ध्यानस्थ छलाह. किन्तु, अपन योग-बलसं दुष्ट राक्षसक योजना हुनका बुझबामें भांगठ नहिं भेलनि. फलतः पाथरक जे भाग ध्यानस्थ गुरुक पीठसं टकरायल ओ पिघलिकय स्वतः मोम भ कय बिला गेल. गुरुक स्पर्श सं अंशतः पघिलल ओ पाथर आइ गुरुद्वारा श्री पत्थर साहेबक मुख्य स्मारक थिक. किछु स्थानीय लोकक कहब छनि 50 वर्ष एतय किछु नहिं रहैक. किन्तु, आस्था आस्था थिकैक. एहि गुरुद्वाराक देख-रेखक भार लेह स्थित मिलिटरी यूनिटसब बेरा-बेरी सहर्ष अपना उपर लैत अछि, आ सैनिक लोकनि मनोयोगसं यात्री सबहक सेवा करैत छथि. लद्दाख़क हाड़ हिलबैबला जाड़ होइक वा गर्मीक दिन गुरुद्वारा श्री पत्थर साहेबक परिसरमें चौबीसों घंटा, जाइत-अबैत यात्री-फौज़ी-पर्यटक क्षणभरि ले अवश्य सुस्ताइत छथि, मत्था टेकैत छथि, गर्म चाह पिबैत छथि, आ लंगरमें गुरुक प्रसाद पबैत छथि. मोन राखी, गरम चाहसं स्वागतक मोल तखने नीक-जकां बुझबैक जखन लद्दाख़-सन शीत प्रदेशमें यात्रा करब. एहि गुरुद्वारामें वर्ष भरि समय-समयपर धार्मिक अनुष्ठान होइते रहैछ. घरसं दूर आ फौज़सं चुनौतीपूर्ण व्यवसायले ईश्वरक ओंगठन बड कारगर होइछ. अतः 'जो बोले सो निहाल , सत श्री अकाल '.

दातून साहेब : लेह बाज़ारमें सड़क सं उत्तर मस्जिद कतबहिं में एकटा गली में एकटा पुरान मिसवाकक गाछक विशाल सुखायल, निष्प्राण गाछ देखबैक. बाबा बटेसर नाथ-जकां हिनकहु जड़ी सं एकटा गाछ फेर पनुगी लेलक आ जवान भ गेल. एहि बुढ़ा जरद्गव आ जवान वृक्षक नाम थिक दातून साहेब जकरा स्थानीय सिक्ख लोकनि अपन पूजा स्थल दातून साहेब कहैत छथिन. सुनैत छी आब एकर उपर एकटा भव्य गुरुद्वारा दातून साहेबक निर्माण भेल अछि. मुदा, स्थानीय लद्दाखी एहि वृक्षक ऐतिहासिकतासं सहमत नहिं. मुदा, वृक्ष भले ऐतिहासिक हो वा नहिं, भक्त लोकनि एतय आबि गुरुक स्मरण तं करैत छथि. सत्यतः, ईश्वरक स्मरणले केवल मन चाही. किन्तु, मन चंचल होइछ, तें मनुक्ख प्रतीक ताकि लैछ. इएह प्रतीक कतहु गाछ, कतहु मूर्ति, कतहु नदी-समुद्र वा केवल ध्वनि ईश्वरक रूप ल लैछ. आ क्रमशः स्थान गुरुद्वारा श्री पत्थर साहेब, दातून साहेब, रीठा साहेब, रिवालसर झील वा रमबाबाक मन्दिर बनि जाइछ.
किन्तु, प्रतीककेर सन्दर्भ अयलैक तं स्वामी विवेकानन्दक जीवन यात्राक बिना ई प्रसंग पूर्ण नहिं हयत. ई प्रसंग विवेकानंदक जीवनी में भेटत. गप्प किछु एना छैक. स्वामीजी भारत-यात्राक क्रममें राजस्थान पहुँचल छलाह. संयोग सं ओतुका दीवान जे मुसलमान रहथि स्वामीजी कें अपना ओतय निमंत्रित केलखिन. संयोग सं  ओहि दिन दीवानक संग मूर्ति पूजा पर चर्चा शुरू भ गेलैक आ दीवान साहेब स्वामीजीकें मूर्ति पूजापर प्रश्न पूछय लगलखिन. स्वामीजी कहलखिन, मूर्ति प्रतीक थिकैक जाहि सं हिन्दू अपन इष्टक समीप पहुंचि जाइत छथि. दीवान कहलथिन, किन्तु, प्रतीक में देवता तं नहिं होइत छलनि. स्वामीजी तेज्श्विता आ प्रत्युत्पन्नमतित्व तं जग विख्यात अछि. हुनका की फुरलनि ओ अपन स्थान पर सं उठलाह देवालपर टांगल ओतुका राजाक पेंटिंग उतारि दीवान सोझा राखि, कहलखिन, एहि पर थूकि दियौक. दीवान तरंगि उठलाह. कहलखिन, ई की कहैत छी. राजाक चित्र आ एहि पर हम थूक फेकू. स्वामीजी निर्विकार भावें कहलखिन, ई चित्र थिकैक राजा नहिं थिकाह ! कहल जाइछ, मूर्ति पूजापर ओहि दिनुका बहस ओत्तहि समाप्त भ गेल .  
रम बाबाक मन्दिर  रम बाबाक मन्दिर आम पर्यटकक रूचिक ने स्थान थिक आ ने आन पर्यटक ओतय जा सकैछ. तथापि प्रसंग आबि गेलैक तं सुनु रम बाबाक खिसा. कथा बड्ड पुरान नहिं छैक. रम  बाबा लोकनि लेह केर स्थानीय सिगनल रेजिमेंटकेर दू टा सैनिक रहथि जनिका ड्यूटी पर रम  पीबाक दण्डमें ओहि जाड़क राति लगक पहाड़ीपर ड्यूटी देबाक आदेश भेलनि. दुनू मित्र ड्यूटी पर जेबाकाल जाड़क ओंगठन ले संगमें रम केर बोतल राखि लेलनि आ पहाड़पर पहुंचि नीक जकां रम पीबि जाड़  भगेबाक उपाय केलनि. किन्तु, खोराक बेसी भेने दुनू गोटे ओहि राति ओत्तहि पाथर भ गेलाह . ओएह स्मारक भ गेल रम बाबाक मन्दिर जकर देखभाल सिगनल रेजिमेंट करैत अछि .  


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