माथो बौद्ध विहार आ लद्दाख़क वार्षिक भविष्यवाणी
भारत जतेक हमरा देखल अछि,
ताहिमें जं धार्मिक स्थल आ जनसंख्या अनुपात देखियैक तं लद्दाख़ प्रायः
नम्बर एक पर आबि जायत. लद्दाख़में जतय कतहु गाम छैक ओतय मंदिर अवश्य भेटत. सबसँ ऊंच भूमि, सब सं ऊँच भवन, आ प्रायः आस-पासमें
सबसँ बेसी उपजाउ भूमि बौद्ध-विहारेक होइछ . किछु पूजा-स्थल (विहार) कोनो विशेष गुरु लोकनिक
अनुयायी सेहो अछि. मुदा, तिब्बती बौद्ध समुदाय में मूलतः दूइए टाका सम्प्रदाय छैक-
पीयर टोपी पहिरैबला, दलाई लामाक अनुयायी गेलुक्पा, बौद्ध धर्मक तान्त्रिक परम्पराक
अनुयायी लाल टोपीबला शक्या-पा. आई लेह केर
समीप माथो गामक शाक्य-पा बौद्ध बिहारक गप्प कहैत छी. ई बौद्ध विहार सम्पूर्ण
लद्दाख़में वार्षिक भविष्यवाणी ले प्रसिद्द अछि. आइ तकरे गप्प कनेक विस्तार सं.
सत्यतः, भविष्यवक्ता,
ओझा-गुणी, ज्योतिषी, साधु आ साधक तं सब
ठाम होइत अयलाहे. जकरा विश्वास होइत छनि, हाथ देखबैत छथि, टिप्पणि देखबैत छथि,
ग्रह-शान्ति करबैत छथि आ भूत-प्रेत झड़बैत छथि. हमरा एकर सबहक गप्प सुनल बेसी, देखल
कम, आ विश्वास एकदम नहिं अछि. तथापि 2004 में कौतूहलवश हम माथो विहारक वार्षिक
भविष्यवक्ताक करतब देखय गेलहु. अवसर कोनो होइक डाक्टरी हमर जीवने थिक. एहि वार्षिक मेलाक अवसरपर विहारकेर लगहिं
में हमरा लोकनि सेहो मेडिकल कैंप लगाओल माथो-विहार घुमैत गेलहुं. सुखठिक बणिज आ
पशुपतिक दर्शन !
जेना कहल, माथो-विहार बौद्ध
धर्मक तान्त्रिक सम्प्रदायक विहार थिकैक. पहिनहु सुनल अछि, तिब्बत-लद्दाख़ आ
सम्पूर्ण पूर्वोत्तर भारतमें तन्त्र-मन्त्र-रहस्य आ एकान्त साधनाक परिपाटी सदा सं
चलैत आबि रहल छैक. इतिहास विदित अछि, बौद्ध धर्मक उदय सनातन धर्मक सुधारक रूपमें
भारतमें भेल रहैक, जाहि में जीवन पद्धतिक निश्चित अनुशासनकें धर्म जकां परिभाषित
कयल गेल छलैक. तें, पारंपरिक बौद्ध आ तन्त्र-मन्त्र-रहस्य, उड़ैत लामा आ गुफ़ाक
गर्भमें स्वनिर्वासित साधक लोकनिक गप्पपर
आश्चर्य उचिते. मुदा, तर्क दोसर छैक. सारांश ई, जे बौद्ध धर्म जखन भारतसं तिब्बत
गेल छल, ओतय एकटा स्थानीय 'मोन' धर्मक परम्परा छलैक, जाहि में बहुतो किछु बौद्ध
धर्म सं भिन्न रहैक . अस्तु, आयातित नव धर्मकें स्वीकार्य बनयबाले नव आ पुरान मान्यताक
संश्लेषणक होइत गेलैक. स्थापित मान्यता,
जलवायु आ भौगोलिक स्थितिक कारण खान-पानक बाध्यता तं रहबे करैक. अस्तु, स्थानीय
मान्यता बौद्ध धर्ममें क्रमशः तेना मिझड
होइत चल गेल जे ओकर स्वरुप बौद्ध धर्मक अनेक मौलिक मान्यता सं पूर्णतः भिन्न भ गेलैक. अनुभवो कहैत
अछि, नोन-मरचाइ-मशालाक योग सं कांचे कब-कब ओल स्वादिष्ट व्यंजन बनि जाइछ. तहिना,
व्यवहार में शुष्क, आ अनुशानमें कठिन बौद्ध धर्म तन्त्र-मन्त्र साधक आ मांसाहारी तिब्बती
समुदायक धर्म भ गेल आ बुद्ध ईश्वर भ गेलाह. हँ, आइ बुद्ध जीबैत रहितथि तं ओ
हँसितथि वा मौन भ जैतथि से के कहत !
आब
पुनः माथो महोत्सव पर आबी. माथो महोत्सव लद्दाख़ में अपना-सन अपने टा अछि. एकरा
मिथिलांचलक भगताक भाओ बूझि सकैत छी. ओहिना जेना सलहेसक पूजाक अवसर पर राजा सलहेसक गहवरमें होइत रहैक. किन्तु, कनेक अंतर छैक. प्रत्येक चारि
वर्षपर होमयबला एतुका भगताक चुनावक प्रक्रिया जटिल छैक. चुनल भगता वा भक्त साल भरि
साधना करैत छथि. बीचमें पूजा-अर्चना-पाठकेर जटिल कर्मकाण्डकें पार करैत मार्च
महिनाक मध्यमें पर्वक समय भगतपर देवता सवार भ जाइत छथिन. वएह देवता माथो महोत्सव
दिन छिलल कपार, काषाय वस्त्र, आ भयानक भंगिमामें, भगताक रूपमें हाथमें भरिगर तरुआरि
नेने सम्पूर्ण चारिमंजिला विहारमें में एकत्रित जं समूहक बीच, परिसर-प्रांगण तं
सहजहिं, चौमंजिला विहारक मुड़ेड धरि पर आँखिमें पट्टी बान्हि दौगैत छथि. ई दृश्य हम
अपना आँखिक सं देखने छी. लोक साष्टांग दंडवत में भूमिपर पेटकुनिया द दैछ. भगताकें वस्त्र पहिरबैत छनि, अपन प्रश्न पूछैत छनि. भगताक ओहि भयानक भंगिमामें
जकरा मनोनुकूल उत्तर भेटलैक, धन्य भ गेल. जकरा उत्तर नहिं भेटलैक, माथ नबौलक आ
सन्तोष केलक.
किन्तु, जाहि हेतु लोक भरि वर्ष भविष्यवक्ताक ( Oracle) बाटा-बाटी तकैछ ओ थिक सामूहिक भविष्यवाणी . माथो महोत्सव पर भगता अगिला वर्षक हेतु लद्दाख़क जलवायु आ प्राकृतिक विपदाक भविष्यवाणी करैत छथि. ई एहि महोत्सवक सबसँ पैघ प्रासंगिकता थिकैक जकरा आजुक परिप्रेक्ष्य नहिं, ओहि कालक परिप्रेक्ष्यमें देखबाक चाही जहिया लद्दाख़ भौगोलिक आ आर्थिक दृष्टिए अलगे टा नहिं, मौसमक दृष्टिए सेहो अत्यधिक कठिन भूखण्ड छल. आब परिस्थिति बदललैए. किन्तु परम्परा आ आस्थाक जडि माटिमें बहुत दूर धरि जाइछ छैक . तें, आइओ लोक माथो महोत्सवक बाट तकैत अछि आ भविष्यहु में प्रायः बहुत दिन धरि एकर बाट तकैत रहत .
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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.