कुरल केर मैथिली भावानुवादक संदर्भ
डाकटरी लोक-संपर्कक व्यवसाय थिकैक.
सेनाक नौकरी यायावरी वृत्ति थिकैक. दुनू जं मिलि जाय तं लोकसंपर्क आ
देश-कोस देखबाक अवसर दुनू अनायासे भेटि
जाइत छैक. हमरा संगे सएह भेल. कश्मीर सं कन्याकुमारी आ असम-अरुणाचल सं ओखा
बंदरगाह धरि , कतहु नहिं छूटल. एकर लाभ हानि दुनू छैक. सब ठामक वायु
फेफड़ा में भरू,, भोजन आ जल चीखू. मुदा जीवन तं यायावरी भइए जाइत छैक. केओ
कहता, एहन जीवन में मनुख कतहु जडि नहिं जमा पबैछ. मुदा हमरा तकर कचोट नहिं.
हम सांप जहां एकठाम चकरी नहिं मारय चाहैत छी. बल्कि, पक्षी जहां शीतल
निर्मल वायु, अंधड-बिहाडि-बरखा-बाढि सब में विश्वभरिक भूमिक गंधक अनुभव करय
चाहैत छी, विस्तृत आकाश क आयाम कें अपन अनुभव क तराजू पर भजारय चाहैत छी.
मुदा एहिमें दोष तं नहिं, एकटा चुनौती छैक. जतेक ठाम ततेक प्रकार क लोक
,ओतबे प्रकारक भाषा. ई चुनौती हमरा वरदान बूझि पडैए. कतेक नीक होइत जतहि
जैतहुं कोनोे मायावी शक्तिसं ओतुके भाषा बाजय लगितहुं. मुदा से संभव नहिं.
आब असली गप कहैत छी. नौकरी क अवधि में हमरा जाहि नव भाषा से पहिल परिचय भेल
छल ओ छल तिब्बती भाषा. सुनै छी, यात्रीजी तिब्बत गेल छलाह. (ओकर संकेत '
बादल को घिरते देखा है' में भेटत.) मुदा हमरा ले तिब्बत हमरहि लग आबि गेल
छल. वर्ष 1983 . ओहि वर्ष जनवरी में हम दानापुर सेना अस्पताल में योगदान
केने रही. अप्रैल मास में बेसिक ट्रेनिंग ले लखनउ गेल रही. जुलाईक अंत में
चकराता, उ.प., में पदस्थापित भेल रही. ओतहि तिब्बती भाषा से पहिल परिचय भेल
छल. कहि सकैत छी, तिब्बती भाषा क पचीस-पचास वाक्य हमरा आइओ अबैत अछि. लिपि
तं मिथिलाक्षर से मिलिते छैक.तकर पछाति अनेक वर्ष क बाद बंगलोर में कन्नड आ तमिल सं परिचय भेल. बंगलोर में कन्नड सं परिचय तं स्वाभाविक. किन्तु, कुरल आ तमिल सं परिचय संयोगे कहि सकैत छी. हमरा नहिं बुझल छल ई परिचय प्रेम में बदलि जायत, आ तमिल दक्षिण भारत में हमर मातृभाषा भ जायत.
2. ले. कर्नल हरिदेव काटकर शास्त्री 13 कुमांउ रेजिमेंट केर भूतपूर्व अधिकारी छलाह. 13 कुमांउ रेजिमेंट भारतीय सेनाक वएह बटालियन थिक जे 1962 भारत चीन युद्ध में शौर्य केर अद्वितीय इतिहास रचने छल. हमरा जहिया कर्नल शास्त्री से भेंट भेल छल हुनक वयस 70 वर्ष से उपरे छल हेतनि. तें सैनिक अधिकारीक रूप में ओ केहन छलाह से कहब असंभव किन्तु ओ संस्कृत केर निविष्ट विद्वान छलाह. हुनका मोतियाबिंदु रहनि आ हुनक दुनू आंखिक मोतियाबिंदु क अौपरेशन कय हमहीं लेंस लगओने रहियनि. दृष्टिमें आशानुकूल सुधार सं ओ संतुष्ट छलाह. डाकटर कें आओर की चाहियैक ? हमरालेल हुनक संतुष्टिए पुरस्कार छल. किन्तु औपरेशनक किछु दिन पछाति ओ उपहार स्वरूप स्वर्गीय राजा जी लिखल कुरल केर अंग्रेजी अनुवाद हमरा देने गेलाह.
कुरल मे एकटा पद छैक:
कुरल 948
நோய்நாடி நோய்முதல் நாடி அதுதணிக்கும்
வாய்நாடி வாய்ப்பச் செயல்.
- मैथिली अनुवाद सुनू :
ताकी कारण करी निदान
उचित चिकित्साकेर संधान
कुरल से इएह हमर परिचय छल जे क्रमशः प्रेम में परिवर्तित भ गेल.
3
हितोपदेश पढू वा नीतिशास्त्र, जीवन पद्धति, अर्थ वा लोक व्यवहारक सूक्ति सब ठाम भेटत. किन्तु, चिकित्साशास्त्रक गूढ गप डाकटर वैद्यक अतिरिक्त आओर के कहत ? की तिरुवललुवर वैद्य छलाह ? संभव छैक. पहिलुका युग में गुणी लोकनि एकाधिक व्यवसाय में निपुण होइत छलाह. ई परंपरा तं बीसम शताब्दी धरि हमरा लोकनि देखने छी. जं सुदूर अतीत में जाइ तं किछु लोकक मानब छनि जे महात्मा बुद्धे सुश्रुत छलाह. ई तं सर्वविदित अछि, वैद्य लोकनि कविराजक पद से विभूषित होइत छलाह. एकर पाछू की तर्क वा परंपरा छलैक से हमरा बूझल नहिं अछि. किन्तु, भले वैद्य नहिं होथु ,मुदा तिरुवलुवरकें चिकित्साक अनुभव अवश्य छल हेतनि. अगिला कुरल सुन, आ उदाहरण देखूु. ई कुरल तं हमरा एतेक नीक लागल जे एकरा हम अपन consultation room में अपन कुर्सीक पाछू लिखबौने रही:
உற்றவன் தீர்ப்பான் மருந்துழைச் செல்வானென்று
அப்பால் நாற்கூற்றே மருந்து.
हमर शब्दमें ई कुरल सुनू:
रोगी , वैद्य , सेवक, उपचार
चारि खाम्हपर रोग-विचार
डाक्टरीक पढ़ाई एहि सं बेसी नीक अनुदेश आओर की भेटत !
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