Tuesday, November 7, 2017

लद्दाख़ :लेह



लेह
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लेह लद्दाख़क गप्प सैनिक लोकनि सं करबनि तं बहुतो गेल हेताह सुनल तं बहुतो के हेतनि. मुदा वएह गप्प दस वर्ष पूर्व पढ़लो लिखल सं करितिऐक तं कहितथि, जम्मू-कश्मीर राज्यक हिस्सा थिकैक. ततबे. आइ-काल्हि टीवी देखनिहार बहुतो कें फोटो देखल होइनि . मुदा, केओ लेह गेल छथि, से पुछबैक तं जनसाधारणमें प्रायः अभावृत्तिए भेटताह. दूरी, दुर्गम बाट, प्रतिकूल वातावरण, खर्च, आ प्राथमिकता. ताहिपर गंगोत्री-यमुनोत्तरी, बद्रीनाथ, केदारनाथ-सन कोनो तीर्थ जं लद्दाख़ में रहितैक तं लोक तीर्थाटन ले लद्दाख़ जेबो करैत. मुदा, लद्दाख़में ओ सब किछु नहिं. ततबे नहिं, सिन्धु जं गंगा-जकां पापोद्धारिणी  होइतथि तं लोक सिन्धुमे डुबो लगबइले लद्दाख धरि जाइत, मरबाकाल गंगाजल आ 'आब-ए-जमजम' जकां सिन्धुक जल सेहो मनुखक जीह पर देल जइतैक. मुदा, तकरो परम्परा नहिं छैक. ई सर्वविदित अछि जे भारतक उत्तरी आ उत्तर-पूर्वी सीमा प्रदेशकें छोड़ि आन सब ठाम अपन देशमें बौद्ध-धर्म विलुप्ते अछि. अस्तु, लद्दाख़में बौद्ध गामे-गाम अनेको पूजा-स्थलक बावजूद देशक समतल भूमिसं केओ बौद्ध तीर्थाटनक दृष्टिए लद्दाख़ जाइत होथि से हमरा देखल-सुनल नहिं अछि. सारांश ई जे भारतक वृहत्तर जनमानसमें लद्दाख भारतकेर एक टा सुदूर भू भाग धरि थिक आ एकर रक्षा हेबाक चाही. ततबे. किन्तु, लद्दाख़ केहन अछि तकर जिज्ञाशा कतेक लोक कें हेतैक से कहब असंभव. तें एहि लेखमें आई लद्दाख़क मुख्यालय लेहक किछु मुख्य-मुख्य स्थलक गप्प करी. सत्यतः, आब जं गूगल सं परिचय हो तं बहुतो स्थानक किछु-ने-किछु चर्चा भेटि जायत. तें हम एहन स्थान सबहक चर्चा करब जे पर्यटनक आम पड़ाव सब में नहिं गनल जाइछ.
लेह लद्दाख़क मुख्यालय थिक. एक युगमें एतय स्थानीय राजाक निवास छलनि. तें राज-प्रासाद, पूजास्थल, बाज़ार, आ सेवक लोकनिक बस्ती सबटा हयब उचितो आ आवश्यको. किन्तु, कबीर कहैत छथिन:
            चांदो मरहिं सूरजो मरिहैं मरिहैं धरनि अकासा
            चौदह भुवन चौधरी मरिहैं का की करिहैं आसा
अस्तु, आब ने लेहमें राजा छथि आ ने हुनकर प्रजा. शासन सरकारक छैक. बांकी सब नागरिक थिक. किन्तु, राजप्रासाद तं छैहे. आ लेह पहुंचब तं कतहु रही, सब सं ऊँच पहाड़पर लेह-पैलेस देखबे करबै.
 पैलेसकेर भीतर बौद्ध पूजा-स्थल (गुम्बा) छैहे. लेहके पराक्रमी राजा सिंगे नामग्यालकेर माता इस्लाम धर्मक अनुयायी छलथिन. अस्तु, बाज़ारमें पैघ मस्जिद सेहो देखबैक. एखनुक युगमें बनाओल नव शान्ति स्तूप तं आब लेहकेर प्रतीक चिन्ह-जकां छैक. ई सब ठाम सं देखबामें आओत. किन्तु, आस-पास एहन अनेक स्थल छैक जे ऐतिहासिक तं छैक किन्तु, पर्यटनक हेतु विशिष्ट नहिं मानल जाइछ. तेसुरु स्तूप एकटा एहने स्थल थिक.
जं पर्यटनकेर प्रमाणिक श्रोत, लोनली प्लेनेट (lonely planet) कें मानी, तं लद्दाख़क सब सं पैघ आ कच्चा इंटा आ माटिक बनल तेसुरु स्तूपक निर्माण में भूत-प्रेतकें नियंत्रित करबाले भेल छैक. जनश्रुति छैक, पीयर रंगक एकटा विशाल पाथरक पिण्डमें भूत प्रेतक निवास छलैक. लोकक कहब छैक जे एहि पाथर पिण्डकें देखैत तत्कालीन रानी अस्वस्थ भ गेल रहथि. अस्तु, एहि स्तूप कें निर्माण भेल आ ओहि पाथर-पिण्डकें एहि स्तूपमें बान्हल गेल. सहजहिं, जतय भूत प्रेतक डेरा हेतैक लोक ओतय किएक सटय जायत. अस्तु, लद्दाख सबसँ पैघ स्तूप, ढहैत-ढनमनाइत भूमिसात हेबाक परिस्थित में पहुंचि गेल. किछु वर्ष पूर्व स्थानीय लोकक नजरि ओम्हर गलैक आ सबहक सह्योगें जीर्णोद्धार सं तिस्सुरु स्तूप भूमिसात हेबा सं बंचि गेल.


जोरावर किला
जोरावर किला
ज़ोरावर सिंह कहलुरिया जम्मूक तत्कालीन राजा गुलाब सिंहक 'वजीर' आ सेनापति छलाह जे 1834 ई. में किश्तवार इलाकासं चलि लद्दाख़पर एकाधिक बेर आक्रमण केने रहथि. अपन अंतिम लद्दाखी अभियानक क्रम में ओ लेहमें एहि किलाक निर्माण केने छलाह, जे जोरावर फोर्टक नाम सं जानल जाइछ. ई किला लेह सैनिक जनरल अस्पतालक लगहिं अछि. सत्यतः, सदातनिसं ई किला लद्दाखी लोकनिक हेतु पराजयक प्रतीक छल. तें, लद्दाखी लोकनि एकरा पर्यटन स्थल मानथि तकर आशा करब असम्भव. दस वर्ष पूर्व लद्दाखी लोकनि सएह कहने रहथि. किन्तु, हाल में लद्दाखी मूलक, भारतीय सेनाक एकटा भूतपूर्व सैनिक अफसरसं गप्प भेल. ओ कहलनि, 'असल में, जोरावर सिंहक आक्रमण लद्दाख़ले वरदान छल. अन्यथा लद्दाख़ आइ तिब्बत आ चीनक हिस्सा होइत ! एहि किला में भगवतीक मंदिर आ पेय जलक श्रोत छैक. आब लेह ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउन्सिल जोरावर फोर्ट में पर्यटनक सीजनमें सांझुक पहर नियमतः लाइट एंड साउंड कार्यक्रमक आयोजन करैछ.                                       
दातून-साहब आ गुरुद्वारा पत्थर साहेब
अवतारी पुरुष लोकनिक जीवन हमरा सतत प्रेरित करैत अछि. बुद्ध- महावीर सं ल कय गुरु नानक देव आ अदि शंकर केर जिनगी में एकटा समानता छनि; ई सब गोटे यायावर छलाह. तें दूरी, जलवायु आ शारीरिक कष्ट हुनका लोकनि यात्रामें कोनो बाधा नहिं भ सकल. दक्षिण सं उत्तर , पश्चिम सं पूब, शंकराचार्य कतय नहिं गेलाह. गुरु नानक देवक यात्राक इतिहास सेहो आश्चर्यनक छनि. मानल जाइछ, गुरु नानक देव लद्दाख सेहो आयल छलाह. यद्यपि एकर ऐतिहासिक प्रमाण ताकब कठिन. सिक्ख भक्त लोकनिक धारणा छनि, गुरु नानक देवक लद्दाख यात्राक समय गुरुक चमत्कार ओतुका पीड़ित नागरिक सबहक हेतु वरदान साबित भेल छलैक.                                  
गुरुद्वारा श्री पत्थर साहेब
लेह-कारगिल मार्गपर लेह सं करीब 25 किलोमीटर पश्चिम मुख्य मार्गक एक कातपर गुरुद्वारा श्री पत्थर साहेब एकटा प्रमुख धार्मिक स्थल थिक. भक्त लोकनिक अनुसार गुरुनानक देवकेर लद्दाख़ यात्राक युगमें बाटक कातक एकटा ऊँचका टीलापर एकटा दुष्ट दानव रहैत छल. ओ दुष्ट  उपरसं पाथर ओंघडबैत छल आ जाइत यात्री लोकनिक हेतु आतंकक कारण भ गेल छल. एक दिन यात्राक बीच गुरुनानक देव ओतहि, बाटक कातमें ध्यानस्थ छलाह. दानव हिनको साधारण मनुक्ख बूझि  हिनको संग दुष्टतासं  बाज नहिं आयल आ  पहाड़परसं  एकटा पैघ पाथर गुरुक दिस  ओंघडौलक. गुरु ध्यानस्थ छलाह. किन्तु, अपन योग-बलसं दुष्ट राक्षसक योजना हुनका बुझबामें भांगठ नहिं भेलनि. फलतः पाथरक जे भाग ध्यानस्थ गुरुक पीठसं टकरायल ओ पिघलिकय स्वतः मोम भ कय बिला गेल. गुरुक स्पर्श सं अंशतः पघिलल ओ पाथर आइ गुरुद्वारा श्री पत्थर साहेबक मुख्य स्मारक थिक. किछु स्थानीय लोकक कहब छनि 50 वर्ष एतय किछु नहिं रहैक. किन्तु, आस्था आस्था थिकैक. एहि गुरुद्वाराक देख-रेखक भार लेह स्थित मिलिटरी यूनिटसब बेरा-बेरी सहर्ष अपना उपर लैत अछि, आ सैनिक लोकनि मनोयोगसं यात्री सबहक सेवा करैत छथि. लद्दाख़क हाड़ हिलबैबला जाड़ होइक वा गर्मीक दिन गुरुद्वारा श्री पत्थर साहेबक परिसरमें चौबीसों घंटा, जाइत-अबैत यात्री-फौज़ी-पर्यटक क्षणभरि ले अवश्य सुस्ताइत छथि, मत्था टेकैत छथि, गर्म चाह पिबैत छथि, आ लंगरमें गुरुक प्रसाद पबैत छथि. मोन राखी, गरम चाहसं स्वागतक मोल तखने नीक-जकां बुझबैक जखन लद्दाख़-सन शीत प्रदेशमें यात्रा करब. एहि गुरुद्वारामें वर्ष भरि समय-समयपर धार्मिक अनुष्ठान होइते रहैछ. घरसं दूर आ फौज़सं चुनौतीपूर्ण व्यवसायले ईश्वरक ओंगठन बड कारगर होइछ. अतः 'जो बोले सो निहाल , सत श्री अकाल '.

दातून साहेब : लेह बाज़ारमें सड़क सं उत्तर मस्जिद कतबहिं में एकटा गली में एकटा पुरान मिसवाकक गाछक विशाल सुखायल, निष्प्राण गाछ देखबैक. बाबा बटेसर नाथ-जकां हिनकहु जड़ी सं एकटा गाछ फेर पनुगी लेलक आ जवान भ गेल. एहि बुढ़ा जरद्गव आ जवान वृक्षक नाम थिक दातून साहेब जकरा स्थानीय सिक्ख लोकनि अपन पूजा स्थल दातून साहेब कहैत छथिन. सुनैत छी आब एकर उपर एकटा भव्य गुरुद्वारा दातून साहेबक निर्माण भेल अछि. मुदा, स्थानीय लद्दाखी एहि वृक्षक ऐतिहासिकतासं सहमत नहिं. मुदा, वृक्ष भले ऐतिहासिक हो वा नहिं, भक्त लोकनि एतय आबि गुरुक स्मरण तं करैत छथि. सत्यतः, ईश्वरक स्मरणले केवल मन चाही. किन्तु, मन चंचल होइछ, तें मनुक्ख प्रतीक ताकि लैछ. इएह प्रतीक कतहु गाछ, कतहु मूर्ति, कतहु नदी-समुद्र वा केवल ध्वनि ईश्वरक रूप ल लैछ. आ क्रमशः स्थान गुरुद्वारा श्री पत्थर साहेब, दातून साहेब, रीठा साहेब, रिवालसर झील वा रमबाबाक मन्दिर बनि जाइछ.
किन्तु, प्रतीककेर सन्दर्भ अयलैक तं स्वामी विवेकानन्दक जीवन यात्राक बिना ई प्रसंग पूर्ण नहिं हयत. ई प्रसंग विवेकानंदक जीवनी में भेटत. गप्प किछु एना छैक. स्वामीजी भारत-यात्राक क्रममें राजस्थान पहुँचल छलाह. संयोग सं ओतुका दीवान जे मुसलमान रहथि स्वामीजी कें अपना ओतय निमंत्रित केलखिन. संयोग सं  ओहि दिन दीवानक संग मूर्ति पूजा पर चर्चा शुरू भ गेलैक आ दीवान साहेब स्वामीजीकें मूर्ति पूजापर प्रश्न पूछय लगलखिन. स्वामीजी कहलखिन, मूर्ति प्रतीक थिकैक जाहि सं हिन्दू अपन इष्टक समीप पहुंचि जाइत छथि. दीवान कहलथिन, किन्तु, प्रतीक में देवता तं नहिं होइत छलनि. स्वामीजी तेज्श्विता आ प्रत्युत्पन्नमतित्व तं जग विख्यात अछि. हुनका की फुरलनि ओ अपन स्थान पर सं उठलाह देवालपर टांगल ओतुका राजाक पेंटिंग उतारि दीवान सोझा राखि, कहलखिन, एहि पर थूकि दियौक. दीवान तरंगि उठलाह. कहलखिन, ई की कहैत छी. राजाक चित्र आ एहि पर हम थूक फेकू. स्वामीजी निर्विकार भावें कहलखिन, ई चित्र थिकैक राजा नहिं थिकाह ! कहल जाइछ, मूर्ति पूजापर ओहि दिनुका बहस ओत्तहि समाप्त भ गेल .  
रम बाबाक मन्दिर  रम बाबाक मन्दिर आम पर्यटकक रूचिक ने स्थान थिक आ ने आन पर्यटक ओतय जा सकैछ. तथापि प्रसंग आबि गेलैक तं सुनु रम बाबाक खिसा. कथा बड्ड पुरान नहिं छैक. रम  बाबा लोकनि लेह केर स्थानीय सिगनल रेजिमेंटकेर दू टा सैनिक रहथि जनिका ड्यूटी पर रम  पीबाक दण्डमें ओहि जाड़क राति लगक पहाड़ीपर ड्यूटी देबाक आदेश भेलनि. दुनू मित्र ड्यूटी पर जेबाकाल जाड़क ओंगठन ले संगमें रम केर बोतल राखि लेलनि आ पहाड़पर पहुंचि नीक जकां रम पीबि जाड़  भगेबाक उपाय केलनि. किन्तु, खोराक बेसी भेने दुनू गोटे ओहि राति ओत्तहि पाथर भ गेलाह . ओएह स्मारक भ गेल रम बाबाक मन्दिर जकर देखभाल सिगनल रेजिमेंट करैत अछि .  


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