Friday, August 14, 2020

भूमिका लिखबाक दिन

 

                                                        भूमिका लिखबाक दिन

जे नित्य प्रति किछु लिखैत छथि, हमरा जनैत, ओ लिखबाले दिन-बेरागन/ मुहूर्त नहिं तकैत छथि. किन्तु, जं प्रकाशित पोथी सबहक भूमिका देखबैक तं लागत लेखक लोकनि सब भूमिका कोनो-ने-कोनो नीके दिन ताकि कय लिखलनि-ए; हेमंती पूर्णिमा, विजयादशमी, गंगा दशहरा, आदि. ई हमरा रोचक लगैत अछि. तें, हमरा मन में प्रश्न उठय लागल, की नीक दिन ताकि भूमिका लिखबाक कोनो स्थापित परिपाटी छैक आ कि केवल भूमिका लिखबाक दिन कें एकटा सार्थकता वा विशिष्टता देबा ले लेखक लोकनि ओकरा स्मरणीय दिन सं जोड़ैत आयल छथि. हम व्यवसायें मूलतः लेखकक श्रेणीमें नहिं छी.किन्तु, व्यवसायतः लेखक लोकनि, भूमिका लिखबा ले नीक दिन तकैत छथि, वा नहिं, वा नीके दिन  किएक तकैत छथि ? चलू आइ एकरे कारण ताकी.

प्रोफेसर भीमनाथ झा कहलनि, ‘पहिने भूमिकाक परिपाटी नहिं रहैक’. से हमरा अपनो देखबामें आयल. हमरा लग जे पोथी सब अछि ओहि म सं बहुतो पुरान पोथी में तं भूमिका छैहे नहिं. जेना, म.म. बालकृष्ण मिश्रक विद्यापति पदावली (१९३७), प्रोफेसर तंत्रनाथ झाक कीचक बध. ततबे नहिं, किछु पोथी जाहि में भूमिका छैको ताहू में भूमिका लिखबाक दिन आ मुहूर्त में एकरूपता नहिं भेटल. महावैयाकरण दीनबंधु झाक ‘मिथिला भाषा विद्योतन’ एकर प्रमाण थिक. जतय महावैयाकरण अपन भूमिकामें दिन वा स्थानक चर्चा नहिं केने छथि, ओही ‘मिथिला भाषा विद्योतन’क प्रथम खंड- व्याकरण- क प्रकाशकीय वक्तव्यक दिन आचार्य रमानाथ झा जं वसन्त पंचमी १९५३ लिखैत छथि, तं दोसर खंड- धातु-पाठ-क प्रकाशकीय लिखबाक दिन कें कांचीनाथ झा ‘किरण’ जी जानकी नवमी, १३५७ साल अंकित करैत छथि.   प्रश्न उठैछ नीक दिनमें भूमिका लिखबाकक परिपाटी कोना आरम्भ भेलैक. प्रोफेसर भीमनाथ झाक कहब छनि, ‘समाजमें  शुभ कार्य नीक दिनमें करबाक परम्परा छैक. अस्तु, भूमिका लिखबाले सेहो लोक दिन नियारैत छल’. किन्तु, हमरा तं लगैत अछि, लिखबाक हेतु ओ मुहूर्त सबसँ शुभ थिक जखन लिखबाले किछु फुरैत हो ! आ तकरा दिन आ मुहूर्तसं कोन सरोकार !! तथापि, चली आ देखियैक मैथिलीक शीर्ष, आ सामान्य, पुरातन आ अधुनातन, वैज्ञानिक, आ नास्तिक लेखक लोकनि भूमिका लिखबाक कोन- कोन दिन चुनलनि-ए. ओहि म सं जे साहित्यकार जे जीवित छथि, ओ भूमिका लिखबाक दिनक चुनाव पर प्रकाश द’ सकैत छथि. दिवंगत साहित्यकार लोकनिक सम्बन्धमें केवल अनुमान सम्भव अछि.

आचार्य सुमन जी आधुनिक मैथिली  युगक सर्वप्रसिद्ध साहित्यकार म सं एक छथि. तें आरम्भ हुनके सं करी. सुमन जीक ‘ साओन भादव’ काव्य में कुमार गंगानन्द सिंह क लिखल आमुख छनि, दिन थिकैक श्रावणी, फजली १३५६ साल (माने १९४६-४७). कहि ने, श्रावणी कोनो पर्व थिकैक वा नहिं. किन्तु, कतेक वर्षक पछाति १९७१ में प्रकाशित सुमन जीक ‘पयस्विनी’ में कविक अपन लिखल भूमिका- ‘भाव-भूमि’- लिखबाक दिन थिक, ‘अषाढ़स्य प्रथम दिवसे, १९७१, जे नियारल नहिं, संयोगवश बूझि पड़ैछ. वएह सुमनजी अपन संस्मरण ‘ मन पड़ैत अछि’ क भूमिका लिखैत ‘स्मृति-विस्मृतिक गति-यति’ लिखबाक दिन चैत्र प्रतिपदा २००० वर्ष देने छथिन, जाहि में तिथि जं संयोगवश अछि, तं साल अंग्रेजी. १९७० में प्रकाशित हुनके ‘अंतर्नाद’ कविता संग्रहक भूमिका ‘बिंदु-विसर्ग’ लिखबाक दिन, सुमनजीक अपन सुपरिचित राजनेताक प्रयाण दिवस- उपाध्याय  बलिदान दिवस, ११ जनवरी १९७० थिक. स्पष्टतः, एहि तिथिसं कविक भावनात्मक जुड़ाव छनि, किन्तु, जनसामान्यमें ने ई अवकाशक दिन थिकैक, ने सुपरिचित ऐतिहासिक दिन. तखन सम्भव अछि, सुमन जी अपन श्रद्धेयक मृत्युकें स्मरणीय बनयबाक भवना सं ओहि दिन कें ‘उपाध्याय  बलिदान दिवस’ क नाम देने होथिन. तथापि, करीब अठारह वर्ष बाद वएह सुमन जी , किरण जीक ‘पराशर’ क भूमिकाक दिन आश्विन शुक्ल पंचमी, १९८८ लिखैत छथि. ई भूमिका लिखबाक दिनक आकस्मिकताक द्योतक थिक.  पुनः, स्व. बबुआ जी झा ‘अज्ञात’क खंड-काव्य ‘प्रतिज्ञा पाण्डव’क भूमिका- ‘अभिज्ञप्ति: कवि ओ काव्य’क भूमिका लिखैत, महाकवि सुमन ओहि दिनकें ‘संस्कृत दिवस’ दिन लिखैत छथि, जे  हमरा जनैत, महज संयोग वा  संस्कृतक प्रति सुमन जी ममत्वे सं प्रेरित बूझि पड़ैछ. कारण, भूमिका लिखबा ले सुमन जी ‘संस्कृत दिवस’क प्रतीक्षा कयने हेताह, से असंगत लगैछ. रोचक थिक, ओही ‘प्रतिज्ञा पाण्डव’क में कवि अज्ञात ‘ हमर जीवन यात्रा’ नामक लेख २१.४ .९१- सन कोनो तेहने दिन लिखने छथि जहिया ओ पलखति में रहल होथि. ई तिथि दिन ताकि नीक दिनमें लेख लिखबाक संकेत नहिं दैछ.

एकर विपरीत गोविन्द झा भाषाशास्त्र प्रवेशिकाक प्राक्कथन लिखबाक दिन १३ मई २०११ लिखैत छथि.दोसर दिस जं एकदम भिन्न आ क्रांतिकारी लेखक केर गप्प करी तं १९५७ ई. में प्रकाशित शेक्सपियरक As You Like It क ‘राजमणि’ क नाम सं प्रकाशित अनुवादमें अनुवादक राजेन्द्र झा ‘स्वतन्त्र’ स्थान आ दिन क चर्चा केनहिं नहिं छथि. रोचक थिक, सुमने जीक शिष्यक परिपाटीमें अमर जी अपन काव्य संकलन ‘ऋतु-प्रिया’ क भूमिका ‘ प्रस्तुत संकलन तथा .....’ क लिखबाक दिन सुमने जीक जन्म दिन, ‘श्री सुमन जयंती’ १९६३ लिखैत छथि, जाहि सं सोझे तिथि आ तारीख निकालब श्रमसाध्य तं अवश्य लगैछ, किन्तु, एहि दिनक चुनाव कारण सुमन जी प्रति अमरजी श्रद्धा थिक, से के नहिं मानताह. यद्यपि, ई दिन अमर जी कोना चुनलनि से कहबा ले, भाग्यवश एखन अमर जी छथिए. एहि सबहक विपरीत केदार कानन कहैत छथि, ओ भूमिका लिखबा ले कोनो विशिष्ट दिन नहिं तकैत छथि. ‘जखन मौका भेटल एके बैसक में लीखि गेलहुँ. पछाति आवश्यकता भेलैक तं कनेक मनेक देखि लेलियैक.’ किन्तु, नीचा देल उदाहरण किछु भिन्ने कथा कहैत अछि. अस्तु, आब विभिन्न विधा आ वयसक लेखकक भूमिका  लिखबाक दिनक उदहारण निचला टेबुल में देखी :

लेखक/ कवि

ग्रन्थ

शीर्षक

स्थान / दिन

भीमनाथ झा

कविता धन

प्रयोजन

स्वतंत्रता दिवस २०१३

 

काल-पात्र

 

दशकान्त ३१.१२. २०१०

सुभाष चन्द्र यादव

रमता योगी

दू टप्पी

५.३.२०१९

केदार कानन

लीखि पठाओल आखर

प्रकाशकीय

मणिपद्म आ राजकमल स्मृति दिवस १९.६.२०१६

योगेन्द्र पाठक ‘वियोगी’

किछु तीत मधुर

 

वसन्त पंचमी, २०१४

विद्यानाथ झा

विज्ञान, पर्यावरण, आ समाज

लेखकीय

-

ले.कर्नल मायानाथ झा

इजोत

 

मकर संक्रांति १४.१.२०११

हीरेन्द्र कुमार झा

सोनाक खोप

हमर मनक खोप

-

कुमार मनीष अरविंद

मिच्छामी दुक्कड़म

-

१५.१.२०१९

 आब मैथिली सं दूर हिन्दी, बांगला आ तमिल दिस आँखि फेरी. ‘वैशाली की  नगर वधू’ आ ‘वयं रक्षामः’ -सन प्रसिद्द ऐतिहासिक उपन्यासक प्रणेता, आचार्य चतुरसेन एहि दुनू पोथीक भूमिकाक दिन क्रमशः १/१/१९४९ आ २६/१/१९५५ अंकित कयने छथि. एही म सं जं एक टा वर्षक पहिल दिन थिक तं दोसर भारतक गणतन्त्र दिवस. अस्तु, दुनू दिन  ऐतिहासिक भेल, स्मरणीय भेल. किन्तु, ओही पीढ़ीक बंगला उपन्यासकार विभूतिभूषण बंद्योपाध्यायक उपन्यास ‘आरण्यक’ क प्रस्तावना में स्थान आ दिन चर्चा नहिं छैक.  तहिना निरद चौधुरीक Autobiography of An Unknown Indian क भूमिका में दिन आ स्थान क चर्चा नहिं अछि. किन्तु, इतिहासकार राजमोहन गाँधी अपन Modern South India क भूमिका लिखबाक दिन ०४ अक्टूबर २०१८ मात्र अंकित कयने छथि.

आब एक दू टा उदाहरण हिंदी सं ली. जतय आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी क ‘बाणभट्ट की ‘आत्म कथा’ नामक ग्रन्थ क निवेदन में ज्योतिषाचार्य आचार्य द्विवेदी २९.११.४६क दिन अंकित कयने छथि ओतहि   मिथिला गौरव आ हिन्दी साहित्यकार स्व. फणीश्वरनाथ  ‘रेणु’, ‘मैला आंचल’ संक्षिप्त भूमिका ०९ अगस्त १९५४ क लिखल छनि, जे ‘शहीद दिवस’ थिक.

आब जं तमिल दिस देखी तं सबसँ पहिने राजाजीक नाम सं प्रसिद्द, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी पर दृष्टि टिकैत अछि. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ‘कुरल’ केर अंग्रेजी अनुवादक प्रथम संस्करणक भूमिकाक काल दिसम्बर १९४७, आ दोसर संस्करणक दिन ४ सितम्बर १९६९  अंकित करैत छथि, जे महज संयोग-जकां लगैछ. किन्तु, कुरल केर परवर्ती संस्करणक भूमिकाक दिन स्व. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी मकर-संक्रांति, १४ जनवरी १९६५ अंकित करैत छथि. वर्तमान समयक जं गप्प करी तं प्रसिद्द नाभिकीय वैज्ञानिक आ सुपरिचित  मैथिली साहित्यकार योगेन्द्र पाठक ‘वियोगी’ अपन अद्यतन कृति ‘ त्रिनाताटकम’ केर प्रस्तावना विजय दसमी २०१९ क दिन लिखलनि, तं श्रीश चौधरी कहैत छथि ‘ हमर अमुक पोथी जे विजय दसमीए  दिन लिखब समाप्त भेल छल, उचिते ओकर भूमिकाक  दिन विजया दसमी भेलैक.’  

उपरोक्त संक्षिप्त उदहारण सं एतबा धरि अवश्य प्रतीत होइछ जे भूमिका लिखबाक दिन चुनबाक कोनो सर्वमान्य परिपाटी नहिं छैक. जं पुरान पीढ़ीक किछु मूर्धन्य साहित्यकार भूमिका लिखबाक दिनकें सुपरिचित दिन सं जोडि कय स्मरणीय बनाइओ देने छथिन तं ओहू पीढ़ीमें ई परिपाटी सार्वलौकिक नहिं छल. एखुनको पीढ़ीमें जं वैज्ञानिको भूमिका लिखबाले पर्व त्यौहारक दिन चुनलनि तं आन वैज्ञानिक भूमिकामें  दिन-तारीखक चर्चा धरि नहिं केने छथि. किछु नव युवक साहित्यकार जं परम्परा कें पकड़नहु छथि, तं किछु गोटे अपन सुविधाओ सं दिन चुनने छथि.   जं हम अपन गप्प करी, तं, हम जखन सोचि कय किछु लिखय बैसैत छी, हमरा छुट्टीक दिन- रवि वा राष्ट्रीय छुट्टी वा अवकाश- क दिन सब सं सुभितगर बूझि पड़ैत अछि. छुट्टी आ पलखतिक दिनक अतिरिक्त जखन हम अर्द्धनिद्रामें रहैत छी हमर चिंतन सहजतासं जागि उठैत अछि. ओहन स्थिति में जं चिंतन पर नींद भारी पड़ल, तं चिंतन अवचेतन में घोर मट्ठा भ’ सब कय किछु बिसरि जाइत अछि. किन्तु, जं नींद पर चिंतन भारी पड़ल, तं, उठि बैसैत छी, आ लिखय लागि जाइत छी. कखनो काल लिखबाक विचार आ लेख सबहक विचार-विन्दु  हमरा भोरुका वा संझुका टहलानक काल फुरैत अछि. अस्तु, टहलानक बाद जखने लिखबाक फुरसति भेटैत अछि विचार-विन्दु कें टीपि लैत छी. किन्तु, कोनो लेख वा भूमिका एके बैसाड में लिखा जेतैक वा एके बैसाड़में ‘फाइनल कॉपी’ बनि जेतैक से कहब हमरा ले असम्भव अछि. हम ओहुना स्वभाव सं अपना कें ‘compulsive editor’- जनिका एके लेखकें अनेक बेर पढ़ब अनिवार्य बूझि पड़ैत छनि-  क कोटि में रखैत छ. उपर सं, अनेक बेर हम अपन लेखकें, प्रकाशन सं पूर्व, मित्र-बन्धु लग peer-review ले सेहो पठबैत छियनि ; एहि सं लेख केर परिमार्जन भ’ जाइछ . एहना स्थितिमें हम भूमिका वा लेख लिखबाले मुहूर्त वा दिन कोना तका सकैत छी !  

2 comments:

अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

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