Thursday, August 27, 2020

कर्फ्यू

 

कर्फ्यू

मैथिली साहित्यकार लोकनिक सोशल मीडिया पेज - ‘गोनू झाक चौपाड़ि’ पर आइ कत्तहु केओ नहिं. ने भोर सं प्रणाम-नमस्कार, ने ककरो कोनो हाल-चाल. आइ केओ अपन पोथी, गीत, वा कविता धरिक चर्चा तं नहिंए केलनि, कोनो ‘ फोरवार्ड’ धरि नदारद. करबो कोना करितथि. सवाले एहन रहैक. अंततः जखन सांझक छौ बाजि गेल आ एहि ‘गोनू झाक चौपाड़ि’ नामक सोशल मीडिया पेज दिस केओ घूरि कय तकबो नहिं केलक, तं निर्बाहक (administrator) कें नहिं रहि भेलनि.पेजहिं पर पूछि देलखिन, ‘ आइ एहि पेज पर एना कर्फ्यू  किएक लागल अछि ? मुदा, कथी ले केओ  'चूं' धरि करताह. अंततः, निर्बाहक महोदय, सहायक निर्बाहककें फ़ोन केलखिन. की औ कवि जी ? आइ ‘चौपाड़ि’ पर एना कर्फ्यू किएक लागल अछि ? बिहारी कवि जनिका दोस्त मित्र लोकनि हिनक कविता पढ़बाक शैली दुआरे ‘बिहाड़ि’ कहैत छथिन, गोंगिआय लगलाह. निर्बाहक महोदय कें तामस चढ़ि गेलनि, कहलखिन एना की गोंगियाइ छी ! शुद्ध भ’ क' बाजू ने.

-की बाजू ?

- की  बाजू ! जे बूझल अछि, जे कहय चाहैत छी, बाजू. कंठमें बिदेसर अंटकल छथि !! सहायक निर्बाहक गुरुक पी. एच-डी.क छात्र छलखिन.

-‘असल में बाते तेहन भ’ गेलैक.

-की भ’ गेलैक ?

-ओहि दिन ओ हुनका खूब जोश द’ देलखिन, आ ओ काल्हि रातिए  ....

आहि रे  ब्बा ! ‘ओ’ , ‘ओहि दिन’,’हुनका’ ! के ? ककरा ? कतय ? की क’ देलखिन ? कोन बज्र खसि पड़ल, जे आइ बिभूति जी 'बाबाक बिभूत'क दोहा धरि नहिं बिलहलनि !

कवि 'बिहाड़ि' खूब जोर सं खखास केलनि. कात में राखल लोटा उठा भरि छाक पानि पीलनि, आ बाजब शुरू केलनि,  ‘आब एतेक बनियबैत छी, तं, सुनू,सर. शनि दिन लालबाग़क कवि गोष्ठीक पछाति, घुरबाकाल टावर पर सब गोटे पान खाइत रही. ओही समय में पच्छिम भर सं प्रोफेसर साहेब प्रेससं किताबक बंडल नेने डेरा दिस जाइत रहथि. रहथि ओ जल्दीमें. किन्तु, नव किताबक बंडल देखि साहित्यकारकें कतहु रहल जाइ ! सब  रोकि लेलकनि. छिटकबाक तं कोशिश खूब केलनि, कहय लगलखिन, व्हाट्सएप पर पी डी एफ प्रति पठा देब. किन्तु, ओ की बुझथिन जे लड्डू आ लड्डूक फोटोक एक स्वाद नहिं होइत छैक. अंततः, प्रोफेसर साहेब रिक्शासँ उतरलाह. नव किताबक बंडल सेहो खूजल आ दस बीस टा किताब तं बिनु विमोचनेके, तत्काले, हाथे-हाथ बिलहय पड़लनि. उत्साहमें एक गोटे मोबाइल पर फोटो घीचि ,तुरते व्हाट्सएप तुरते सबकें पठाइओ देलखिन. परफेसर साहेब, नव लेखक, लोकक सौजन्य देखि द्रवित भ' गेलाह. हमरा सबसँ पूछय लगलाह, किताब बिकेतैक, कि  ने ? ताहि पर कतेको गोटे जोश देबय लगलनि, कि तं अहाँकेंं के नहिं चिन्हइए, किताब हाथो हाथ बिका जायत. निसाभाग राति, रविक भोर, बीच दुपहरिया, समय ताकि कय सोशल मीडियापर, फेसबुुुक पर सबटा डिटेल दिऔक. प्रोफेसर साहेब एहि  टिटकारी पर आबि गेलाह: हुनका की बूझल रहनि जे हमरा लोकनि सबकें एहिना टिटकारी दैत छियैक. ओ जिनगी भरि गौहाटीमें परफेसरी केलनि. ओ की बुझथिन, दरभंगाक फुटपाथ पर बाबा नागार्जुनो अपन पोथीक पन्नाक पुड़ियामें फुटहा फँकने छथि ! सर, अहाँ ध्यान नै दैत छियैक. अहाँ जकरा कल्हुका पोस्ट बूझिकय आइ भोर में अनदेखा क’ देलियैक सबटा गुड़ गोबर सैह केलक. ई बूडिराज काल्हि रातिए साढ़े एगारह बजे पोथी परिचयक संग अपन बैंक खाता आ मूल्य धरिक सूचना ‘गोनू झाक चौपाड़ि’ पर पोस्ट क देने छ्लखिने. आब लियअ हडहडी बज्र अहाँक कपार पर खसल, गोनू झाक चौपाड़िए चौपट्ट भ' गेल. पेज पर कर्फ्यूए लागि गेल !! ई सबटा ‘स्वतंत्र’क चालि थिक,परफेसर साहेबकें जोश दियबै में सब सं आगू ओएह छल. ओ अहाँसं ओहिना जरैए, सर ! हम कहैत छी, ओ एक दिन एहि चौपाडि कें बंद नहिं कराबय,, तं हमरा कहब.’

निर्बाहक माथा हाथ द’  कय  ठामहिं बैसि गेलाह. कहलखिन , ‘छोड़बनि नहिं सार कें !”

 

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