Saturday, September 12, 2020

हमर गाम-अवाम, आ आम

                               हमर गाम-अवाम, आ आम

हमर गाम- अवाम गामक नाम अवाम किएक पड़लैक से कहब मोसकिल.किन्तु, एहि तीन अक्षरक शब्दम सं जं ‘व’ हंटा दिऐक तं ‘आम’ बंचतैक. आम माने फलक राजा. सत्यतः, जं अवाम गामक नाम आमक गाम रहितैक तं कोनो बेजाय नहिं. तकर कारणों छैक; हमरा लोकनिक ज्ञान-प्राणमें जेमहर देखिऐक सर्वत्र गाछीए आ कलम-बाग़. बस्तीक नाम पर घोदा-माली घर केर छोट-छोट टोल आ चारू कात आमक बाग़. अवाम गाममें जतय बस्ती आ गाछी कलम नहिं रहैक, ततय पोखरि सब रहैक. बस्तीक उत्तर नासी रहैक. नासी माने, नदीक छाड़न व वाहा, जकर संपर्क कमलाक मुख्य धारसं कटि गेल होइक. बरसातमें इएह नासी पानि सं भरि जाइत छलैक आ पछाति, ऋतुक अनुकूल ई अजस्र भेंटक फूलक सरोवर, माछक आ धानक श्रोत छल. सत्यतः, जं अवाम कोनो राजाक गढ़ होइतनि तं राजाकें उत्तर भर सीमाक चिन्ता किछु कम अवश्य होइतनि ! मुदा, एखन अवामक आमक गप्प करी.

पछिला शताब्दीक मध्यमें अवाममें आमक जे गाछी, कलम आ नरै रहैक, ताहि म सं कोनो, गाछक आकार-प्रकारक अनुमानसं सौ सालसं कम आयुक कदाचिते छलैक. हमरा लोकनिक माता-पिताओक जीवन कालमें रोपल गाछी कलम सेहो थोड़े रहैक. जतय  गाछी-कलमक गाछ कटि गेल रहैक लोक नव गाछ रोपैत छल. ओना गाछी-कलमकेर नाम किछु भू-स्वामीक नाम पर रहनि, तं, किछुकें लोक रखबारक नाम सं चिन्हैत छल. किन्तु, हमरा गामक सबसँ  विशाल बड़का आमक बगीचा छल, बड़की नरै. ताहि सं छोट, किन्तु, किन्तु, चारि सौ गाछक कलम छल, किशोरी झाक कलम, जे एखन धरि बंचल तं अछि, किन्तु, जमीन पर जनसंख्याक दवाबक कारण आम गाछक नीचा मालिक लोकनि जजात उपजबैत छथि. एहि सं आमक फड़ब पर की असरि पड़लैक अछि, से कहब कठिन. आन  पैघ कलम-गाछी सबमें छल- इंद्रनाथ बाबूक कलम, बौअन ठाकुरक बीजू, आ छोट सब में  ठेंगी झा गाछी, आदि. कटलाहा गाछी, भोली बाबू गाछी, आ बोनही गाछी- तहियाक श्मसान- निरंतर कटैत आ विलुप्त होइत गाछी सबहक इतिहास आ साक्षी छल जाहि में गाछ तं रहैक नहि, किन्तु, ओतुका न-खेतीक नाम गाछीक नामकें जोगाकय रखने छल. किन्तु, एहि सब नामित बगीचाक अतिरिक्त अनेक पैघ-पैघ अनामा गाछी कलम गाओं के बड़का आम्रकुञ्जक बीचक बस्तीक पर्याय बनाकय रखने छल.

अब अवाम गामक गाछी-कलम-नरैक आमक गप्प करी. गाछी-कलम में कलमी आ सरही दुनू आमक गाछ रहैक. बम्मै, सपेता, जर्दालू. कृष्णभोग, लडूब्बा, कलकतिया मिथिलाक प्रचलित आम थिक, जाहि म सं जं किछु केर नाम वर्ण पर- सपेता सफेदाक अपभ्रंश छल, तं किछु स्थान सं जुड़ल, जेना बम्मै, कलकतिया, किछु मनुष्यक नाम सं , जेना कृष्णभोग आ फज़ली आ किछुक नाम आकार पर आधारित छल, जेना, आ लडूब्बा आ सजमनिया. तथापि, कलमी आममें संख्यामें आ लोकप्रियतामें सपेता आ कलकतियाक गाछ बेसी रहैक . सपेता अत्यंत मधुर, गुदगर, पातर खोंइचा आ सोन( fibre) सं मुक्त. कलकतिया रंगमें गाढ़ हरियर, आकारमें पांच इंच धरि आ स्वादमें बेस, अर्थात् साधारण. मुदा, कलकतिया क गुण ई जे कलकतियक गाछ प्रतिवर्ष थोड़बो फड़बे करत. आन आमक गाछमें तकर गारंटी नहि.  तें, जनिका गाछ लगेबाक भूमिक अभाव होइनि से बेसी कलकतिया रोपथि आ ‘ पाल परहक कलकतिया सपेताक बाप होइछ’* से कहि चुप करथि.  बल्कि,जं पानि-बिहाडिक प्रकोप के छोडिओ दी तं आमक नीक फसल साधारणतया प्रत्येक तेसरे वर्ष पर देखल जाइछ. अवाम गाम में जर्दालूक गाछ कम रहैक,  बेतिया इलाकाक विशिष्ट आम ज़र्दा एकदम एकदम नहिं.  तथापि, सुपरिचित आमक अलावा किछु गोटे आवेशें अपन गाछी-कलममें कतिकी, दोफसिला, राढ़ि, चौरबी- काँचेमें मधुर स्वाद बला- गुलाबखाश, हाफुस- प्रायः अलफोंसो, सेहो लगौने रहथि. मुदा, जहाँ धरि मन पड़ैत अछि हमर गाममें सिपिया आ शुकुल-सन अंतमें पकबाबला आम कतहु नहि रहैक. तथापि, ई सब भेल कलमी- grafted – आम भेल. मुदा, हमरा अनुमान अछि अवाममें कलमी सं बेसी सरहीए  वा बीजू ,अर्थात् बीज वा आंठी सं जनमल, आमक गाछ बगीचा-  अनुपातमें बेसी रहैक. कारण, बूझब असंभव नहिं. कलमी आम लगेबा ले आमक कलम कीनू. आ सरही ले तकर आवश्यकता नहिं, जे आम पसिन्न पड़ल तकर आंठी रोपि दिऔक. सरही आम वर्णसंकर भेलाक कारण काफी pest-resistant होइत छैक आ फड़इत बेसी छैक. स्वादमें सेहो विविधता. तकर चर्चा पुनः हयत.

एहि सबहक बावजूद धनिक सं गरीब धरि जकरा जतबे भूमि रहनि, दसो गाछ नवगछुली अवश्य रोपैत रहथि. भूमि नहिं रहैक तं बास भूमिएमें, घरक आगूए-पाछू गौआं लोकनि गाछ रोपथि. हमर माता कहथि, ‘गाछ लगयबाकें लोक धर्म बूझैत छल; खास कय आमक गाछ रोपबकें’ . कहथिन, ‘वर्षा-ऋतुमें अपन लगाओल गाछक पात परसं खसैत पानिक बुन्न, रोपनिहारकें स्वर्गमें मधुक रूपमें भेटैत छनि ! तें, जखन भगवान दत्त** बाबूक बीजू जखनि रोपल जाइत रहनि, तं हुनकर परिवारक बौअसिन लोकनि कहार-सवारी पर चढ़ि कय गाछी धरि आबथि आ खूनल दरी ( गड्ढा ) में कनरी (माटि) सहित काटल गाछ द’  कय आपस जाइत जाथि’. हमरा जनैत, प्रायः उपादेयताक कारण,  गाछ रोपब कें आमक गाछ रोपबसं, आ प्रकृति-प्रेमक कारण, समाज गाछ रोपबकें धर्म-पुण्यसं जोडि देने रहैक.आखिर तकर आवश्यकताओ रहैक. जाहि युगमें जतय लोककें नगदी आमदनी कम रहैक, लोक जे उपजबैत छल, सएह खाइत छल. सब आदिम समाजहुमें इएह गति रहैक. तें, देहाती जीवन में जखन परिवारक समृद्धिक लेखा-जोखा होइत रहैक तं लोक डीह-डाबर, खेत-पथारक संग गाछी-कलम, बाँस-खड़होरि, जलकर आ पोखरिक गणना अवश्य करथि. कारण, गुजर-बसर ले जे किछु चाही, से वस्तु जतेक कम किनय पड़य, परिवार ओतेक समृद्ध भेल.  सतत ( sustainable ) अस्तित्व ले ई आवश्यको.

आब आमक स्वादक गप्प करी. भिन्न-भिन्न आमक स्वाद जं बुझबाक, बुझयबाक एकेटा तरीका छैक- आम गुदगर होइक तं आमक कतरा मुँह में दिऔक,  आ रसगर होइक तं मारू चोभा ! विश्वास नहिं हो तं आम में चोभा लगबैत नेनाक मुँह पर संतुष्टि देखिऔक. ओना जतेक, आम ततेक स्वाद. समान नामक कलमी आमक आकार, रंग आ स्वादमें लगभग सबतरि एकरूपता होइछ. ओना गाछ पुरान भेलासं वा गाछक जडिमें बरसात में पानि जमा भेलासं आम में सोन( fibre) भ’ जायब स्वाभाविक बूझल जाइछ. तथापि, किछु स्वाद परिचित आ वर्णन योग्य होइछ, जेना, सुरसुरहा- खयलासं कंठमें सुरसुरी लागत, धुमनाहा, माने धूमनक सुगंधिबला. मुदा, ई सब नाम सरही और बीजूए आम ले प्रयुक्त होइत छल. असलमें जेना पहिने कहने छी, स्वादक आ नामक विविधता बीजूए में भेटत. कारण, स्वाद जं वर्णसंकरताक कारण, जेनेटिक संरचना, आ प्रकृति- जलवायु- निर्धारित करैछ, तं नाम मनुष्यक कल्पना, आमक आकार, स्वाद, रंग आ पकबाक मासक सहयोग सं देल जाइछ. उदाहरणक हेतु आकारक अनुसार नाम- सजमनिया, केरबी ( केरा –सन ); बरबरिया- सुपडिया आकारमें छोट ; रंगसं सिनुरिया, पीरी- पियर; स्वाद पर मिश्री भोग, पकबाक मास पर भदैबा, आदि . एकर अतिरिक्त आमक नाम में नारायण भोग, आ ह्रदयजुड़ओना सेहो सुनबैक. संभव छैक बड़का बाग़ सब में कोन परहक गाछ कोनैला , दू टा मुख्य शाखा बला वृक्ष दूफेंडा सदृश आ किछु अनामा फल सेहो अभडय. ओना समाजमें प्रचलित धारणा रहैक जे मनुष्यक, आमक, धानक आ गामक नामक गणना नहिं भ’ सकैछ.

संयोग सं हमरा लोकनिक जीवन कालमें जनसंख्या आ खेत-खरिहानक बंटवाराक असरि गाछी-कलम आ बगीचा पर सेहो पड़लैए. ई सर्वविदित अछि. एहि में बंटवाराक अतिरिक्त गाछक काटब आ रोपबमें कमीक योगदान तं छैके, एहि सबमें गाम सं युवा वर्गक पलायनक योगदान सेहो छैक. कारण, मनुखे-जकां गाछ-वृक्षके सेहो सेवा आ देखभाल सेहो चाहियैक. यद्यपि, ई सत्य थिक, आमक गाछ एकबेर पैघ भेलापर बेसी सेवाक मांग नहिं करैछ. तथापि, एखनुक युगमें देहातमें बहुतो फड़ैत गाछ कीड़ा- गड़ाड सं, आ दिबाड ( दीमक ) क कारण सुखा रहल अछि, से हमर अपन अनुभव कहैत अछि. तें, देखभाल चाहबो करी.  मुदा, जखन आब नेना-भुटका आ युवक वर्ग आमक उपभोग धरि ले गाम नहिं आबि पबैत अछि, तहना स्थितिमें गाछी-कलमक सेवाले समय निकालब तं असंभवे. तें, परिस्थितिवश गाम आ गाछी–कलमसं लोकक अपनापन थोड़ भेलैये. पहिलुक युग में नेना-भुटका आ चेतन आम पकबाक मासक प्रतीक्षा तं करिते छल, आमसं संबंधित पूरा ऋतुक अनेक गतिविधि आमक गाछ पर टिकुला अबिते आरंभ भ’ जाइत रहैक. जं चटनी ले लोक  टिकुला बिछैत छल तं महिला लोकनि  कांच आमक आमिल-अचार-खटमिट्ठी बनबैत छलीह. एखनो ओहि विन्यासक जं अलग इतिहास आ वर्तमान छैक, तं आमक गाछीमें कांच-पाकल आम बिछ्बाक, आ चोराकय आम बिछबाक रोमांच , आ गाछसं लटकैत झूलापर झुलबाक धिया-पुताक आनंद हमर पीढ़ीक अनेको व्यक्तिक हेतु बाल्यकालक स्मरणक मधुर धरोहर थिक. ततबे नहिं, आमक गाछी, रखबारक मचान, बगबारक खोपड़ी कतेको ऐतिहासिक सम्बन्ध, बाल-मनक गोपनीय आनंदक साक्षी बनैत छल, नहिं तं ‘आम खयबाक मुँह’ आ ‘आमक जलखरी’-सन पोथीक रचना कोना होइत. मुदा, एखनो गाछी-कलम तं छैके.लोक आम खाइतो अछि. तथापि, प्रायः गामक आमक बेसी खपत गाम सं बाहरे होइछ. हमरो लोकनि के खयबा जोकर जे गाछ अछि, मन नहिं पड़ैत अछि कहिया खेने रही.

आब तं मिथिला सं बाहर रहबाबला परवर्ती मैथिल पीढ़ीकें मिथिलाक आमक विविधताक  संस्कृति सं जोड़ब एकटा कठिन काज थिक. भ’ सकैत अछि, गाम सबमें  सुधरैत आधारभूत संरचना, शिक्षा आ स्वास्थ्यक सुविधामें सुधार, यातायातक सुविधा, आ शहरी जीवनक कष्टक कारण फेर लोक गाम दिस आबय आ परिस्थिति बदलैक. किन्तु, निकट भविष्यमें एकर आशा कम. संभव इहो छैक, उत्तर प्रदेश आ आन राज्य-जकां जं पैघ बगीचाबला किसान जं आमक गाछी-कलम में फार्म हाउस-सन सुविधाक व्यवस्था करथि, आ मैंगो-टूरिज्मक विकास हो तं स्थिति बदलय. एहि सं आर्थिक लाभक आशा तं छैक, किन्तु, बिना सोच आ आर्थिक निवेश के ई असम्भव. एखन तं एहिना प्रतीत होइत अछि, रॉकेटक गति सं उड़इत मनुष्यक जीवन में क्षण भरि बिलमि कय जीवनक सुलभ आनंदक उपभोग ले समय कतय ! तें, हमरा अपन गाम अवामक आम मन पड़ैत अछि आ एकरा हम लीखि लेल. मिथिलाक आम पर किछु लिखबाक प्रेरणा हमरा स्व. मिहिर कुमार झा, जे स्वतंत्र भारतमें पहिल मैथिल आइ.पी. एस. अफसर रहथि, सं भेटल छल. तें, ई संस्मरण हुनक प्रति हमर श्रद्धांजलि थिक.

 ज्ञातव्य थिक, सदासं मिथिलाक जलवायु आमक हेतु अनुकूल अछि. इतिहास विदित अछि, मुगल बादशाह अकबर दरभंगा इलाकामें एक लाख आम गाछक ‘लाख बाग़’ लगबओने रहथि. इहो विदित अछि, आमक बागवानी पुर्तगाली लोकनि भारतहिंसं दक्षिण अमेरिका, आ मुगल लोकनि पर्सिया धरि ल’ गेल छलाह.

* हमर स्वर्गीय अग्रज उदयनाथ झाक अनुसार ई उक्ति स्व. डाक्टर सुभद्र झा क थिकनि.

** भगवान दत्त झा, अवाम, दरभंगाक अंतिम महाराज सर कामेश्वर सिंहक माम लोकनि म सं एक रहथिन.

         

   

 

  

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