Tuesday, September 22, 2020

वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में विद्यापतिक प्रासंगिकता

वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में विद्यापतिक प्रासंगिकता

समान सामाजिक-आर्थिक उद्देश्य पयबाले समाजमें वैचारिक भिन्नता जनतंत्रक रीति थिकैक. किन्तु, प्रत्येक परिस्थितिमें सर्वसम्मत उद्देश्यकें पयबाले सामाजिक सौहार्द्र आवश्यक छैक. एहन समाज जाहिमें सब सुरक्षित अनुभव करय, आ सबकें होइक जे ई समाज अपने थिक, देश अपने थिक, आदर्श समाज थिक. किन्तु, तात्कालिक राजनैतिक वा व्यक्तिगत लाभ ले व्यक्ति, व्यक्तिसमूह, वा राजनितिक दल अनेको बेर एहन कृत्य करैत छथि वा एहन कृत्यकें  बढ़ावा दैत छथि जाहि सं सामाजिक सद्भावकें ठेस पहुँचैत छैक. अपना प्रति भेल नव वा पुरान अन्यायक बोध कतेक बेर एहि गतिविधिक औचित्य-जकां प्रस्तुत कयल जाइछ. मुदा, समाजमें समरसताक अभावसं भेल समाजक तात्कालिक आ दूरगामी अहित तं सब कें देखबा में अबिते छैक.

इतिहास विदित अछि, यूनानी-तुर्क-मंगोल-अफगान आक्रमणकारी पहिने आर्थिक लाभ, आ पछाति धर्मप्रचार ले भारत आयल छल. भारतक समाजपर ओकर प्रभाव सर्वविदित अछि. इतिहासक ओही कालखंडमें मिथिला सेहो गयासुद्दीन तुग़लक आक्रमणक शिकार भेल. राजा हरि सिंह देवकें सेहो मिथिला छोडि नेपाल भागि जाय पड़लनि. पछाति, मिथिलाक राजा आ विद्यापति ठाकुरक आश्रयदाता  राजा शिव सिंह सेहो दिल्लीक सुल्तानक हाथें पराजित भेलाह. सुल्तान शिव सिंह के पकडि दिल्लीओ ल’ गेल छल. अर्थात् विद्यापति आश्रय दाता आ हुनक आस्थाक ‘ रूप नारायण’ मुसलमान सुल्तानक हाथें अन्यायक  शिकार भेल रहथि. ई सब इतिहास विदित अछि. तथापि,  कालजयी कवि आ शास्त्रकारक रूप में जखन विद्यापति पुरुष-परीक्षा लिखय बैसैत छथि, तखन शास्त्रकारक रूप में जखन ओ मनुष्यकें मात्र मनुष्य बूझैत छथि, तखन हुनक निरपेक्षता देखबा योग्य अछि. एतय हम विद्यापति ठाकुरक पुरुष-परीक्षाक तेसर कथा दयावीरक कथाक चर्चा करैत छी.


 ‘दयावीरक कथा’ पुरुष-परीक्षाक तेसर कथा थिक. एही कथामें  राजा हम्मिर देव आ यवन सुल्तान अलावदीन आ ओकर प्रधान सेनापति महिमा साहीक कथा अछि. ई कथा आब कविकोकिल विद्यापतिए मुँहसं सुनू :

यमुनाक किनेर पर योगिनीपुर नामक स्थानमें अलावदीन नामक एकटा मुसलमान सुल्तान रहैत छल. ओकर  प्रधान सेनापतिक नाम महिमा साही रहैक. एक दिन कोनो कारण सं अलावदीन अपन प्रधान सेनापति महिमा साही सं असंतुष्ट भ’ गेल. सुल्तानक स्वभावसं परिचित महिमा साही सोचलक जे गुप्तचर, साँप आ राजा व्यवहारक कोनो ठेकान नहिं. कारण, राजा बिनु सोच-विचारहुक अचानक प्राण हरि सकैछ. अस्तु, महिमा साही प्राण रक्षाक हेतु सपरिवार समीपक राजा हम्मिर देवक शरणमें अयलाह आ प्रार्थना केलनि, जे सुल्तान अलावदीन अकारण प्राण लेबाक हेतु आतुर छथि. अस्तु, हम अहाँक शरणमें आयल छी. जं, अपने हमरा हमलोकनिकें  प्राण रक्षाक वचन दी, तं, बेस, अन्यथा हम कतहु अंतय चल जाइ. महिमा साहीक एहि प्रार्थना पर दयालु राजा हम्मिर देव कहलथिन, ‘ अहाँ शरणागत छी. अतः, तें, निर्भय भ’ एतय रहू. हम वचन दैत छी, जा धरि अहाँ हमर शरण में रहब, सुल्तानक कोन कथा यमराजहु अहाँक कोनो अहित नहिं क’ सकताह. ’ आ महिमा साही सपरिवार  निर्भय राजाक शरण में रहय लगलाह. किन्तु, शीघ्रे जखन सुल्तान अलावदीनकें महिमा साहीक राजा हम्मिर देवक शरणमें हयबाक सूचना भेटलैक तं  ओ क्रोधमें सोझे राजा हम्बिर देवक  किला पर आक्रमण क’ देलक. किन्तु, राजा हम्मिर देवक किला एहन दुर्भेद्य रहनि जे निरंतर तीन वर्षक अवधि तक युद्धक पर्यन्त  अलावदीन राजा हम्मिर देवकें पराजित करबामें सफल तं नहिंए  भ’ सकल, एतेक  लम्बा अवधिमें अलावदीन सेना मरैत-खपैत आधा भ’ गेलैक. एहिसं अंततः ओकर ओकर मनोबल टूटि गेलैक आ  अन्ततः सुल्तानक निराश भय आपस हेबाक निर्णय क लेलक. किन्तु, एही समयमें राजाक विरुद्ध  एकटा नव गप्प भ’ गेलनि: राजा हम्बिर देवक दू गोट असंतुष्ट मंत्री, रायमल्ल आ रामपाल, राजाक शत्रु सुल्तान अलावदीन लग गेलाह आ ओकरा सं हम्मिर  देवक किलाक गोपनीय वस्तुस्थितिक सूचना देबाक निवेदन करैत कहलथिन, ‘अहाँ निरर्थक आपस जेबाक गप्प करैत छी. हमरा लोकनि वस्तुस्थिति सं परिचित छी. दुर्गक स्थिति नीक नहिं छैक. ओतय शीघ्रे अन्न-पानिक भयानक अभाव हेबापर छैक. अस्तु, अहाँ आपस जेबाक विचार छोडि, हम्मिर देवक किलापर पुनः आक्रमण करी.  अहाँक  विजय निश्चित अछि.’ एहि पर अलावदीन खूब संतुष्ट भेल आ मंत्री लोकनिकें उचित पारितोषिक द’ बिदा केलक. बढ़ल मनोबलक स्थिति में अलावदीन,  चेतावनीक संग, तुरत अपन दूतकें सेहो हम्मिर देवक दरबारमें  पठौलक. सारांश ई जे ‘ एखनहुँ,  जं, अहाँ महिमा साहीकें हमरा हाथ सुपुर्द क दी, तं, हम आक्रमणक विचार छोडि देब. अन्यथा, महिमा शाही तं मरबे करत, काल्हि भोरे अहाँक किला सेहो भूमिसात भ’ जायत !’ मुदा, राजा अपन संकल्प पर दृढ़ छलाह.  तथापि, दूत कें अबध्य  बूझि ओकरा तं कोनो दण्ड नहिं देलखिन, किन्तु, शरणागत महिमा साहीके शत्रुक हाथ देब अस्वीकार करैत, ओही दूतक माध्यमसं सुल्तानअलावदीनकें अगिला दिन भोरे युद्धक हेतु  प्रस्तुत रहबाक हेतु चेतावनी सेहो पठा देलखिन. ई घटना विदेशी मुसलमान आ हम्मिर देवक शत्रुक पूर्व सेनापति, महिमा साही ले विस्मयकारी छलैक तं छलैके, सम्भव छल, राजाक विचित्र संकल्पसं राजाक मंत्री लोकनि सेहो असहमत होथि. अस्तु, राजा  अपन मंत्री आ सेनापति लोकनिकें एकत्र कय अपन सेनापति यज देव कें कहलथिन, ‘ हम शरणागतक रक्षाक हेतु कृतसंकल्प छी, आ काल्हि भोरे सुलतान पर आक्रमण करबे करब. किन्तु, अहाँ लोकनि म सं जं केओ एहि युद्धकें निरर्थक बूझैत होइ, तं, युद्धसं पहिनहिं एतयसं अंतय छल जाइ.’ किन्तु, मंत्री आ सेनापति लोकनिकें राजाक निर्णय पर कोनो शंका नहिं रहनि, तें,  ओ लोकनि  राजाए-जकां कृतसंकल्प रहथि . अस्तु, ओलोकनि एके स्वर में रजाक समर्थन करैत कहलथिन, अपने जखन एकटा  यवनक प्रति केवल दयाभावें रणमें अपन प्राण उत्सर्ग करय चाहैत छी, तखन शंका कोन ?  अपने निर्दोष छी. हमरा लोकनि अपनहि सं पालित छी. प्राणक भय सं अपनेकें रणमें  एसगर छोडि, हमरा लोकनि कोना कय कापुरुष कहायब ! अस्तु, काल्हि भोरे, अपनेक संग हमरा लोकनि सब गोटे एकभय शत्रुपर प्रहार करबैक. किन्तु, अपने जकर रक्षा करय चाहैत छियैक, युद्धक कारण जं तकरे रक्षा नहिं भ’ सकतैक तं युद्ध निरर्थक भ’ जायत. तें, अपने एहि यवनक सुरक्षाक हेतुहिनका लोकनिकें  कतहु अंतय पठा दिअनि.’ एहि पर  यवन सेनापति महिमा साही बजलाह, ‘हे राजा, अपने हमर-सन विदेशी ले एहन हानि किएक सहब. अपने हमरा सबकें अलावदीनक हाथें सौंपि दी आ  अपन स्त्री-पुत्र आ राज्यक नाशसं बंची.’ एही पर राजा हम्मिर देव विचारलनि , शरीर नाशवान थिक. तें, जं कोनो अमर कीर्ति एहि शरीर सं संभव छैक, शरीरके बंचा कय कोन पुरुष तकर त्याग करत.’ तथापि, ओ महिमा साही कें कहलथिन, ‘हं, जं अहाँ चाही, तं अहाँकें अपना हेतु जे स्थान सुरक्षित प्रतीत हो, अहाँके सपरिवार हम ओतय पठा दी.’ मुसलमान महिमा साही बाजल, ‘ हे राजा, हमरा कोनो दुविधा नहिं. देखबैक, काल्हि भोर युद्धमें  अहाँक संग शत्रुक समक्ष सबसं आगाँ हमही रहब. मुदा, हमर परिवारकें चाही तं अपने कतहु सुरक्षित स्थान पर पठा सकैत छियनि. किन्तु, महिमा साहीक परिवारक केओ अंतय जायब स्वीकार नहिं केलनि. अंततः, दोसर दिन सुल्तान अलावदीन आ राजा हम्मिर देवक बीच  घमासान युद्ध भेल. आ अंततः, दयालु राजा हम्बिर देव शरणागत यवन, महिमा साहीक प्रति दयालुताक कारण सर्वस्व सहित अपन प्राण न्यौछावर कय अमर-कीर्ति अर्जित केलनि.[1]

हमरा जनैत, जाहि में कथा में, विद्यापति ठाकुर, हिन्दू राजा द्वारा शरणागत आक्रमणकारी मुसलमानकें आश्रय द’  अपन राज्य आ प्राणक आहूति देबाक घटनाकें राजाक ‘पुरुषार्थ’क प्रमाणक रूप में प्रस्तुत  कयने छथि, ओहि कथामें  सन्निहित संदेशकें स्पष्ट करबाक हेतु आओर कोनो व्याख्याक आवश्यकता नहिं. कारण, अजुका विखंडित होइत समाजक  हेतु एहि कथामें निहित विद्यापतिक कालजयी संदेश स्पष्ट अछि. 

1. Grierson GA.  The Test of A Man being the Purusha-Pariksha of Vidyapati Thakkura, 1935; London: The Royal Asiatic Society pp 9-12.

No comments:

Post a Comment

अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो