Saturday, October 31, 2020

डायबिटिज रोगी आँखिक ज्योतिक सुरक्षा कोना करथि

 

डायबिटिक रेटिनोपैथीसँ आँखिक सुरक्षा कोना करी

डायबिटीज विश्व स्तर पर एकटा प्रमुख समस्या थिक. उपलब्ध आंकड़ाक अनुसार वर्ष 2020में भारतमें करीब सात करोड़ सत्तरि लाख नागरिक डायबिटीजसं पीड़ित छथि. ई संख्या भविष्यमें बढ़त. ज्ञातव्य थिक, डायबिटीजक  दुष्प्रभाव शरीरक अनेक भाग पर पड़ैत छैक. आँखि सेहो ओही सब म सं एक थिक. बुझबाक इहो थिक जे विकासितो देशमें 20-74 वर्षक आयुक नागरिकमें डायबिटीज अन्धताक एक प्रमुख कारण थिक. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्लीक हाल केर एक अध्ययनक अनुसार अनुमानित अछि, भारत वर्षमें डायबिटीजसं पीड़ित व्यक्ति लोकनिमें फी सदी लगभग 17 व्यक्तिक आँखि जांच कयलासं आँखिमें  डायबिटीजक  दुष्प्रभाव (डायबिटिक रेटिनोपैथी) देखबामें आएल. ई संख्या थोड़ नहिं. अस्तु, एहि समस्याक  हेतु हमरा लोकनिके डायबिटिक रेटिनोपैथीक विषयमें मोट-मोट बातक जानकारी आवश्यक, जाहिसं आँखिक ज्योतिकें डायबिटिक रेटिनोपैथीक दुष्प्रभावसं बंचाओल जा सकय.

एहि लेखमें लोक-स्वास्थ्य आ लोकहितक हेतु एही विषयपर जानकारी देब हमर लक्ष्य अछि.एकरा हम एतय सामान्यतया पूछल गेल प्रश्नोत्तरीक रूपें प्रस्तुत करैत छी. एकर अतिरिक्त हम सहर्ष प्रश्नोत्तरीक हेतु प्रस्तुत छी.

आरम्भमें कहि दी,  तीस वर्षक वयससं पहिने होबयबला डायबिटिज ( type 1 diabetes mellitus ) तीस वर्षक वयससं बाद होबयबला डायबिटिज ( type 2 diabetes mellitus ) एक होइतहु मूल स्वभावमें  भिन्न-भिन्न थिक. तें आब आगू एहि दुनूक चर्चा भिन्न-भिन्न नामें हयत.

की प्रत्येक डायबिटिक के रेटिनोपैथी हेबे करतनि ?

अमेरिकामें एक समुदायमें डायबिटिजक किछु रोगी लोकनिक लम्बा अवधिक देखभालसं किछु तथ्य सामने आयल अछि जे नीचा देल अछि:

1. type 1 diabetes mellitus में 20 वर्षक रोग बाद 99 % रोगीमें  में रेटिनोपैथी देखल गेलैक  

2. type 2  diabetes mellitus में 20 वर्षक रोग बाद  60 % रोगीमें रेटिनोपैथी देखल गेलैक

यद्यपि आँखिक रोशनी खराब हयबाक सम्भावना एहि म सं किछुए प्रतिशत रोगीमें  मानल गेलैये.

डायबिटीजक आँखिकें कोना प्रभावित करैछ  ?

डायबिटीज मूलतः शरीरक सूक्ष्म रक्त नली सबकें प्रभावित कय रक्तक बहाव, आ रक्तक लाल कोशिकासं रेटिनाक बांकी कोशिका धरि आक्सीजनक बहावकें बाधित करैत. एकर अतिरिक्त डायबिटीजमें रक्त आ लाल रक्त कोशिकामें सेहो किछु आओरो विपरीत परिवर्तन रक्तक बहावकें बाधित करैछ. रक्तक केशनली सब बाटें रक्त बहाव बहावक इएह समस्या आँखिक संवेदी परत, रेटिना,क स्वास्थ्यक अहित करैछ. फलतः, जहाँ-तहाँ रेटिनाक भीतर शोणितक जमाव, शोणितक नव-नव आ हानिकारक केशनलीक बनब, आँखि भीतर रक्तक थक्काक जमाव आँखिक रोशनीकें खराब करैछ. डायबिटीजमें रेटिनाक भीतरक एही सब परिवर्तनक संकलित स्वरुपक नाम थिक डायबिटिक रेटिनोपैथी. डायबिटिक रेटिनोपैथीक  अतिरिक्त डायबिटीजमें मोतियाविंदु आ ग्लौकोमा ( काला मोतिया ) क संभावना सेहो बेसी होइछ. अंततः, सब किछु मिलि डायबिटीजक रोगीक आँखिक ज्योतिमें बाधाक सम्भावना बढ़ि जाइछ.

डायबिटिक रेटिनोपैथीक खतरा कोना बढ़इछ ?

1. डायबिटीजक अवधि डायबिटिक रेटिनोपैथीक हेतु सबसँ मूल खतरा थिक, जकर चर्चा ऊपर भेल अछि. किन्तु, एकर उपाय नहिं. बढ़ैत उम्रक संग डायबिटिक रेटिनोपैथीक खतरा बढ़ब स्वाभाविक थिक.

2. ब्लड सुगर केर परिमाण डायबिटिक रेटिनोपैथीक दोसर मूल खतरा थिक.

3. हाई ब्लड प्रेशर

4. रक्तमें वसा (Lipid)केर अधिक मात्रा

5. नस्लगत ( यूरोपीय आ एशियाई ) खतरा, गर्भाधान, तमाकूक सेवन  (smoking)

डायबिटिक रेटिनोपैथीसँ बचाव कोना करी ?

1. डायबिटीजक पकड़में अबिते आँखिक विशेषज्ञ द्वारा आँखिक पुतलीक आकारकें बढ़ाकय आँखिक परदा (रेटिना)क जांच हो आ पछाति आँखिमें डायबिटिक रेटिनोपैथीक लक्षण नहिओ हो तं प्रतिवर्ष आँखिक विशेषज्ञ द्वारा आँखिक पुतलीक आकारकें बढ़ाकय आँखिक परदा (रेटिना)क जांच हो.

2. ब्लड सुगरकेर नीक कंट्रोल रहय. रक्तमें Hb1Ac कमात्रा 7 % सं कम रहब  रेटिनोपैथीसं,  आ आँखिक रोशनी ख़राब हयबा सं बंचबैछ.

3. ब्लड प्रेशरकें कंट्रोल में राखी.

4. ब्लडमें वसा (Lipid)केर  नियंत्रण ले तेल-घी सं बंची. आवश्यकता भेला पर डाक्टर औषधि (statin tablet ) सेहो लिखताह.

5. सिकरेट-बीड़ी-तमाकूसं बंची.

6. डायबिटीजक महिला जं गर्भ धारण करथि तं आरम्भमें आँखिक जांच हो. पछाति आँखिक डाक्टरक सलाह अनुसार देखबैत रही.

7. आँखिक रोशनीमें शिकायत भेला पर आँखिक डाक्टरसँ तुरत सलाह ली.

सारांशमें सुगर, बीपी, वसाक नियंत्रण, आँखिक नियमित जांच आ तमाकू-बीडी सिकरेट सं बंचावसं डायबिटीजोमें आँखिक ज्योतिक रक्षा संभव छैक.

       

Friday, October 30, 2020

Thinking Aloud-2: Publishing in Maithili Needs Multipronged Approach

 

Publishing in Maithili Needs Multipronged Approach

Oftentimes I buy English books after reading reviews in The Hindu. Reviews help me chose book/s of my taste, books that satisfy my needs intellectual, or serve a good time-pass during travel. Maithili has no newspapers. Journals and magazine publish reviews irregularly, sometimes from readers, and sometimes reputed authors. Yet,conflict of interest makes it difficult to shift grain from the chaff. Travelers at railways stations buy books and magazines more out of instinct. They rarely read reviews. However classics, works of reputed writers and publications sell more. Maithili draws a blank there too. No reputed publishers. No writers to write abundantly on genres that satisfy popular taste. Even in popular genres we haven’t have Premchand, Chatursen, or Renu. No Bachchan or Dinakara either. We have not produced one books of the kind of Aranyak or Srikant. Why? Is it all because finance or market? No. We have’nt created literature of popular taste that commercially stands on its own feet. We have plenty of writers who publish out of their own pocket. Yet when it comes to quality and taste, they are not ready to face the truth. Yes, we have publications. But none to publish quality literature and is commercially successful. They all thrive on out pocket finance by the authors. I think situation is not beyond control. It only needs plan and sustained efforts. I have a few suggestions that may serve Maithili in long-term. Efforts to include Maithili in curriculum in schools have to go hand-in-hand.   

Here are my suggestions:

1.    Survey popular taste

2.    Hunt for quality writing; inspire talents to write on topics of their interests. Dr. Yogendra Pathak Viyogi is an excellent example of quality writing in popular science. Identify writers with expertise in their fields.

3.    Expand the genre of writing. Illustrated literature for children has huge market. 

     Organising events in schools and mohallas for authors to read their works for children and interested adults shall popularise good literature and inculcate reading habit.

4.    Offer editorial help. Even good writers benefit from editing.

5.   Subject works to honest pre-publication double-blinded peer reviews.

6.   Offer the authors/ publishers consultancy, and guide them to tap in potential government/ non-government sources of finance

7.   Seek established publishers from other languages. Profit draws investors like honey draws ants. Also seek out authors ready to finance his publication.

8.    Expand marketing to rural areas; motivated unemployed youth may be roped in on the basis of fair share of profit. Nothing comes for free, mother tongue included.

9.   Make writing in Maithili remunerative; get the authors their share of profit that at least defrays the expenditure on printing.

      Above prescription sounds impossible ?  But short-cuts guarantee no cure.Who will do all this ? You may ask. Well, the answer is: anyone who aspires to be a successful publisher , may be even as a cooperative venture of like-minded authors, like नवारम्भ, किसुन संकल्प लोक or जखन- तखन for a start ! It’s just a food for thought. Yes, I am thinking aloud.

Saturday, October 24, 2020

कोलु: दक्षिण भारतमें शारदीय नवरात्रिमें घरक भीतर खेलौनाक सजावट

 

दक्षिण भारतमें शारदीय नवरात्र : कोलु, गोम्बे हब्बा,बोम्मइ कोलु, आ बोम्मे गल्लु

बिहार, उड़ीसा, बंगाल, आ पूर्वोत्तर भारतमें असम, त्रिपुरा आ मेघालयक अतिरिक्त पड़ोसी देश नेपालक हिन्दू लोकनिक बीच शारदीय नवरात्रक केहन महत्व अछि, से सर्वविदित अछि. उत्तरकेर कुलूकेर दशहरा आ मैसूरक दशहरा उत्तर आ दक्षिणक पारंपरिक दुर्गापूजासँ सर्वथा भिन्न अछि.  किन्तु, मैसूरक अतिरिक्त दक्षिण भारतमें एहि पर्वकें जेना मनाओल जाइछ से भारतक सांस्कृतिक इन्द्रधनुषक एकटा भिन्न फलक थिक. तें, आइ ओकरे गप्प करी. दक्षिण भारतमें शारदीय नवरात्र सामूहिक सामाजिक उत्सव-जकां नहिं भ’ कय एकटा पारिवारिक पूजाक स्वरुप लैत अछि जकरा दक्षिणक भिन्न-भिन्न राज्यमें भिन्न-भिन्न नाम- कोलु (तमिलनाडु), गोम्बे हब्बा (कर्नाटक),बोम्मइ कोलु (आंध्र-तेलंगाना), बोम्मे गल्लु(केरल)- कहल जाइछ. ई अवसर परिवारक भीतर  देवी देवताक पूजा अर्चनाक संग सामाजिक मेलजोलक अवसर सेहो थिक जाहिमें नारि समाजक रचनाशीलता  कल्पना आ रचनाशीलता देखबामें अबैछ. संयोगसँ  एहि वर्ष कोरोना सामाजिक मेलजोलकें तं छीनि लेलक, किन्तु, परम्परा हत्या कोरोनासँ कतहु संभव होइक. किन्तु, परम्परामें अबैत एखुनाका बाधाक  दुःख अनेक पत्र-पत्रिकामें प्रकाशित  लेख सब में आबि रहल अछि.

बोम्मइ अर्थात् खेलौना जुड़ल एहि पर्वक मोटा-मोटी स्वरुप सम्पूर्ण दक्षिणमें लगभग एके रंग छैक.[1] तथापि,सुनैत छी, सबठाम बोम्मइ’क महत्व भिन्न-भिन्न छैक. विकिपीडियाकें मानी तं तमिलनाडुमें जं एहि परम्पराकें दैवी उपस्थिति जोड़ल जाइछ, तं आंध्र प्रदेशमें   खेलौना सबहक दरबार, आ कर्नाटक में ई खेलौना सबहक सजावटक पर्व थिक. एखन हमरा लोकनि तमिलनाडुक ’बोम्मइ कोलु’क गप्प करी ,जकर गतिविधि परिवार आ समीपी महिला मंडलीए धरि सीमित रहैछ. हमर पत्नी कहैत छथि, विभिन्न ठामक हमर सेवाक अवधिमें हुनका अनेकठाम महिला लोकनिक संग बोम्मइक उत्सवमें सम्मिलित हेबाक अवसर भेटल छलनि. यद्यपि, 'बोम्मइ कोलु' की थिक से हमरा एखन धरि  बुझलो नहिं छल ! तें, आब एकर गप्प कनेक विस्तारसं.

बोम्मइ कोलुक पर्व असलमें महालयाक दिन आरम्भ होइछ, आ एकर पहिल पूजा नवरात्रिक पहिल दिन मनाओल जाइछ, यद्यपि, एकर तैयारी अनेक दिन पहिनहिं आरम्भ भ’ जाइछ. कोलुक तैयारीक भार मूलतः नारि लोकनि आ कन्या लोकनि अपना ऊपर लैत छथि, कारण ई पर्वो हुनके लोकनिक थिकनि.एहि त्यौहारकें मनयबाक हेतु  सबसँ पहिने घरमें जोगाकय राखल देवी-देवताक धातु, लकड़ी, माटि, चीनी-मिट्टी वा पेपर-मैसीक मूर्ति  सब निकालल आ झाड़ल-पोछ्ल जाइछ छथि. संगहि, संभव भेल तं भगवान- भगवतीक किछु नव मूर्ति, आ नव खेलौना सेहो आनल गेल. एकरा सबकें सजयबाक हेतु घरक कोनो एक कोठलीमें 5, 7, 9 वा एगारह विषम सीढ़ीक आसन लगाओल जाइछ आ ओकरा कपड़ासँ झांपलो जाइछ. एहि हेतु जे किछु कपड़ा घरमें उपलब्ध भेल,तकर उपयोग कयल गेल. एकटा लेखिका-आशा बालकृष्णन- चेन्नईकें मयिलापुर इलाकाक एक घरक खीसा कहैत छथि जे ‘ तहिया हुनक मात्रिकमें बिस्कुटकेर चौखुट टिन सबहक उपयोगसं सीढ़ी बनाओल जाइत छल जकरा ओ अपन ताता (मातामह )क उज्जर धोती (वेष्टि)सं झाँपिक बोम्मई कोलुक ‘पड़ी’ (सीढ़ी वा श्रेणी) बनबैत छलीह. यद्यपि, सजावटक हेतु टेबुल बेंचक अतिरिक्त आओर कोनो उपलब्ध उपस्करक प्रयोग भ’ सकैत अछि.  लेखिका आगू कहैत छथि, आसनक आगाँ ओ लोकनि अपन रुचिक उपलब्ध सामग्रीतं सजबिते छलीह, सजावटक आगाँ पार्क-सड़क-गाछ-वृक्ष आ परिधि सेहो बनाओल जाइत छल.   तखन आरम्भ होइत छल कोलुक सजावट. जाहिमें सब सं नीचा सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य, आ धिया-पुताक खेलौना होइत छल. ऊपर क्रमश: देवी-देवताक संग अपन-अपन स्थानपर रखल जाइत छलाह, जाहि में प्रधानता लक्ष्मी-सरस्वती-महिषासुरमर्दिनी दुर्गाक होइत छलनि कारण ई नवरात्र महिषासुर वधक उत्सव थिक.[2] किन्तु, एहि सजावटमें एकटा जे मूर्ति आवश्यके-जकां होइत अछि ओ थिक बियहुती परिधानमें  ‘मरपाची बोम्मइ’ ( काठक पुतरी ) दम्पति,  जे विवाहक समय बेटीकें  बिदाईक सामानक संग सांठल जाइछ. एकटा सामान्य मध्यवित्त परिवारमें कोलुक सजावटक एकटा फोटो हमरा अपन सहकर्मी डाक्टर स्वाति नागराजन देलनि जाहिमें हुनक घरक भीतरक सजावट अछि. एहि सजावटक नामावली  निम्नवत अछि :

Photo courtesy : Dr. Swathi Nagaraj

सबसँ  उपर बामसँ दहिन : भगवती आंडाल, विष्णुदुर्गा, राजराजेश्वरी, मुरुगन (कार्तिक)- वल्ली-देवयानी, गणेश, कृष्ण

उपरसँ दोसर सीढ़ी : दशावतार तथा केंद्रमें आदिशेषपर विष्णु-लक्ष्मी

तेसर पांति : गणेश-कार्तिक, कैलाशपर शिव-पार्वती ( महाराष्ट्रमें निर्मित ई मूर्ति प्लास्टर ऑफ़ पेरिस केर थिक), बालाजी-पद्मावती, कलशम आ तंजावुर शंकु (तीन गोट) आ हनुमान

चारिम पाँति: मीनाक्षी, लक्ष्मी, महिषासुरमर्दिनी, सरस्वती, विष्णुदुर्गा, लकड़ीक पुतरी (‘मरपाची बोम्मई’)

पाचम पाँति: हयग्रीव-लक्ष्मी, कलिंगक ऊपर कृष्ण, नागथाम्मन (नागमाता), गणेश-शिव-पार्वती, गुरुवायुर अप्पन( विष्णु)

भूमिपर : संगीतक त्रिदेव (त्यागराज, श्यामा शास्त्री,मुथुस्वामी दीक्षितार) तिरुवल्लुवर, बुद्ध, साईंबाबा, राघवेन्द्र, कांची महापेरियावल, अन्न एवं फल-फूल सहित सेट्ठियर एवं सेट्ठीची, नकली घोड़ाक नर्तक दुनू कात,तकर कात, एक कात मीनाक्षी एवं सुन्दरेस्वरक विवाह, आ दोसर कात हाथी पर गुरुवायूर अप्पन

ज्ञातव्य थिक, ई सजावट परिवारमें उपलब्ध मूर्ति, खेलौना आ अपन रुचिक प्रतीक थिक जकर कोनो निश्चित विधि नहिं छैक .तें, एहि सब संकलनमें प्रयोगधर्मिता आ परिवर्तन निहिते छैक, जे समसामयिकता आ धिया-पुताक अपन रुचिक प्रतिबिम्ब सेहो होइछ, जेना कोरोना कालमें एखन बहुतो ठाम दुर्गामें ‘कोरोना-मर्दिनी’-जकां प्रदर्शित कयल जा रहल अछि.  किन्तु, एतबा अवश्य जे कोलुकेर आगाँ पियर रंगल नारिकेर सहित घटस्थापना आ दीपश्रृखला (कुत्तुविलक्कु) सजावटकें एकटा धार्मिक आभा दैत छैक.  महिला लोकनि कोलुक आगाँ लोक विभिन्न प्रकारक अरिपन वा कोलम सेहो बनबैत छथि. ज्ञातव्य थिक, तमिलनाडुक मदुरै मीनाक्षीक मन्दिर सहित तमिलनाडुक अओरो अनेक मन्दिर सबमें सेहो कोलुक प्रदर्शनक परम्परा छैक.

आब कनेक  कोलुक अवसरक पूजा पाठक गप्प करी. नवरात्रिक पहिल दिन गणपति-लक्ष्मी-पार्वती आ सरस्वतीक कलश-आवाहन होइछ, जे अपना सबहक ओहिठाम कलश-स्थापन होइछ. ओकर पछाति, प्रतिदिन विभिन्न प्रकारक नैबेद्यक रूपें दलिहन, जेना काबुली, चना, वा मूंगफली इत्यादिकें नोनक संग उसिनि आ छौंकि कय ‘सुंडल’ बनाओल आ चढ़ाओल जाइछ. विभवक अनुसार घरमें नमकीन आ मधुर सेहो बनैछ. घरक महिला आगंतुक अहिबाती लोकनिक हरदि-कुंकुमसँ  अभिषेक करैत छथिन आ जलखै-पनिपियाइसँ स्वागत करैत छथिन. बच्चासब मौज मस्ती करिते अछि. नवम दिन सरस्वती पूजा होइछ आ विजया दशमीक  दिन आयुधपूजाक रूप में मनाओल जाइछ. एम्हर आयुधपूजाक दिन नव काज आरम्भ करब शुभ आ उपयुक्त मानल जाइछ. ज्ञातव्य थिक, दक्षिण भारतमें अपना सब-जकां वसंत पंचमी दिन सरस्वती पूजा नहिं होइछ.

हमरा जखन पहिलबेर अपन सहकर्मी महिला लोकनि ‘कोलु’ परम्पराक गप्प कहलनि तं हम एकर अनुसन्धान करय लगलहुँ . किन्तु, नवरात्र महिषासुरक वधक पर्व थिक तकर  आगू एहि परम्पराक तार्किकताक समर्थनमें किछु भेटल नहिं. यद्यपि, एकटा समाचार पत्रक एकटा आलेखमें एतबा अवश्य भेटल जे चूंकि एहि ऋतु में पानिक बाहा इत्यादिक सफाई होइत छलैक आ ओहि माटिसँ माटिक मूर्ति बनैत छल. अस्तु, लोक  कुम्हार-मूर्तिकार सबहक प्रोत्साहन ले लोक मूर्ति किनैत छल.किन्तु, बहुत दिनसँ छल अबैत परम्पराक एकेटा ई तर्क बहुत संगत नहिं लगैछ. एहि लेखकक इहो कहब छनि जे ‘कोलु’ में प्रदर्शित सब वस्तु इहो प्रमाणित करैछ, जे पृथ्वीपर जे किछु छैक, तकर स्रष्टा इश्वरे थिकाह.  एकठाम इहो पढ़बामें भेटल जे गोलुमें सब देवी देवता एहि हेतु सम्मिलित होइत छथि कारण, सब देवी देवताक सामूहिक शक्तिएसँ महिषासुरमर्दिनीक अवतार भेल छल ; एकर चर्चा दुर्गासप्तशती में सेहो अछि. तें, ई तर्कसंगत बूझि पडैछ. जे किछु हो, कोलु, गोम्बे हब्बा,बोम्मइ कोलु, आ बोम्मे गल्लु एतबा तं अवश्य करैछ जे ई उत्तर भारतक नवरात्रकें दक्षिणमें सेहो समाने प्रासंगिकता दैत अछि.

______________________________________________________________________________

संदर्भ:

1. https://en.wikipedia.org/wiki/Golu

2. आशा बालकृष्णन: FInancial Express 16.10.2020 https://www.financialexpress.com/lifestyle/navratri-golu-celebrations-in-chennais-mylapore-history-and-significance-of-navratri-golu-during-dussehra/2107130/

3. श्रेया पारीक: The Better India 4.10.2014  https://www.thebetterindia.com/14830/golu-traditional-festival-dolls-south-india/    

 

 

 

Sunday, October 18, 2020

Thinking Aloud: Why not publishing Houses in Bihar take publishing in Maithili like The Indian Nation did ?

Following constitute my arguments in favour of such a venture :

-There is a market.

-Publishing houses have the technology and capacity to spare.

-They have marketing teams.

- Paid editorial staff will have pressure to create content that is competitive, and sells.

-Readers have no hesitation in buying newspapers and journals from reputed publishers who they have been patronising for years.

- Good quality journals from paid journalists shall weed out mediocrity from mushrooming low-quality journals that finds no takers, myself included.

- Even if  established newspapers lose some customers to Maithili, still in the long term it is a win-win situation for all; Maithili shall gain in quality, and papers a larger rural customer-base. For sure, customers of English editions will continue to read what they read.



Thursday, October 1, 2020

पोथी पकवान नहिं छियैक

 

पोथी पकवान नहिं छियैक

वर्ष 2016. फरबरी मास. पटना. दरभंगा मेडिकल कालेजक 1973क एम बी बी एस बैचक सम्मलेन. तीन दिन धरि खूब मौज मस्ती भेलैक.एहि मौका पर जकरा जे उपहार मोन भेलैक, सहपाठी सब ले अनने छल. हमरा लोकनि तीन गोटे अपन-अपन प्रकाशित पोथी सेहो सबकें उपहारमें देलियनि. दू टा पोथी मैथिलीक रहैक आ एकटा हिन्दी. पोथी सब मुफ्त भेटैत रहैक, तें, जेहो नहिं पढ़निहार सेहो मांगि-मांगि पोथी जमा केलनि आ ल’ गेलाह.

वर्ष 2020. अंत सितम्बर. लेखक-कविक एहि तीन गोटेक  बीच एक व्यक्ति अपन कोनो दोहा व्हाट्सएप्प ग्रुप पर पोस्ट केलनि. हम हुनका हुनक उपनाम, जे हुनक उपहार स्वरुप देल पोथी में मुद्रित रहनि, ताहिसं संबोधित कय प्रसंशा कयलियनि, तं, लागल जे सहपाठी सब हुनक नामसं  सर्वथा अपरिचित रहथि. मुश्किलसं दू गोटेकें मोन रहनि जे हमर  ओ सहपाठी-कवि तीन वर्ष पूर्व सबकें अपन पोथी उपहारमें देने रहथिन ! ओकरे विपरीत, ओही सम्मेलनमें दक्षिण भारत स्थित हमर एक सहपाठी विशाखापत्तनमसं सब ले आंध्रप्रदेशक पूर्वी गोदावरी जिलाक एकटा विशिष्ट मधुर- पूतारेकुलु- अनने रहथि. हमरा मोन अछि, मीटिंग हॉल में राखल ओहि  मधुरकें लोक हाथे-हाथ तेना लोकि लेने रहैक जे हमरा अपन हिस्सा  नहिंए भेटि सकल ! ततबे नहिं, एखनो चारि वर्षक बाद एखनो ओ मधुर सबकें मोने छैक.

पटनाक ओहि सम्मेलनमें हमहूं अपन एकटा पोथी बंटने रही. किन्तु, साहित्यकार समेत, हमर कोनो सहपाठी ओहि  पोथीक विषयमें फोन केने हेताह वा दू पांती चिठ्ठी वा मेल लिखने हेताह से मोन नहिं अछि. ओकर विपरीत पछिला 2018 में कोच्ची , केरलमें हमरा लोकनिक बैचक सम्मलेन भेल छल. ओतय हमर समेत, आन मित्र लोकनि जे किछु उपहार ल’ गेल रहथिन, सबकें मोन छैक. किएक, से बुझबाले न्यूटन वा आइन्सटाइनक दिमाग नहिं चाही !

आब एखनुक गप्प करी. हालमें हमर एकटा नव पोथी छपल. बहुतो गोटेकें ओ पोथी पहुँचलनि-ए. मुदा, पहुँचनामा देनिहारक संख्या एक हाथक आंगुरपर गनला पर एखनो किछु आंगुर बंचले अछि. तें, हमर विचार जे मुफ्तहु में पोथी हुनके दियनि जे पढ़थि. कारण, कतेक गोटे मुफ्त भेटलासं माहुरहु ले हाथ पसारि दैत छथिन.

एहि विषयमें बहुत दिन पूर्व सुनल एकटा कथा मन पड़ैत अछि: एक गोटे कें टाकाक अभाव नहिं रहनि. ताहि पर ककरोसं सुनने छलाह जे ब्लड हाउंड जातिक कुकूर राखब प्रतिष्ठा आ ऐश्वर्यक प्रतीक थिकैक. फलतः, पहुंचि गेलाह ब्लड हाउंड किनय. मुदा, खरीददारक व्यक्तित्वकें देखि बेचनिहार हुनका हाथें ब्लडहाउंड  कुकुर बेचब अस्वीकार क’ देलकनि. बेचारे, हताश भेलाह. तामसो भेलनि. मुदा, व्यर्थ. कारण, कुकुर पोसनिहार कहलकनि, अहाँक व्यक्तित्व ब्लड हाउंड पोसबाक हेतु उपयुक्त नहिं अछि ! अस्तु, हमरा जनैत केवल पोथीक मोल सं परिचित व्यक्ति वा पढ़निहारे टा कें मुफ्तो पोथी लेबाक अधिकार छनि !         


मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो