दक्षिण भारतमें शारदीय नवरात्र
: कोलु, गोम्बे हब्बा,बोम्मइ कोलु, आ बोम्मे गल्लु
बिहार, उड़ीसा, बंगाल, आ पूर्वोत्तर भारतमें असम, त्रिपुरा आ मेघालयक अतिरिक्त पड़ोसी देश नेपालक हिन्दू लोकनिक बीच शारदीय नवरात्रक केहन महत्व अछि, से सर्वविदित अछि. उत्तरकेर कुलूकेर दशहरा आ मैसूरक दशहरा उत्तर आ दक्षिणक पारंपरिक दुर्गापूजासँ सर्वथा भिन्न अछि. किन्तु, मैसूरक अतिरिक्त दक्षिण भारतमें एहि पर्वकें जेना मनाओल जाइछ से भारतक सांस्कृतिक इन्द्रधनुषक एकटा भिन्न फलक थिक. तें, आइ ओकरे गप्प करी. दक्षिण भारतमें शारदीय नवरात्र सामूहिक सामाजिक उत्सव-जकां नहिं भ’ कय एकटा पारिवारिक पूजाक स्वरुप लैत अछि जकरा दक्षिणक भिन्न-भिन्न राज्यमें भिन्न-भिन्न नाम- कोलु (तमिलनाडु), गोम्बे हब्बा (कर्नाटक),बोम्मइ कोलु (आंध्र-तेलंगाना), बोम्मे गल्लु(केरल)- कहल जाइछ. ई अवसर परिवारक भीतर देवी देवताक पूजा अर्चनाक संग सामाजिक मेलजोलक अवसर सेहो थिक जाहिमें नारि समाजक रचनाशीलता कल्पना आ रचनाशीलता देखबामें अबैछ. संयोगसँ एहि वर्ष कोरोना सामाजिक मेलजोलकें तं छीनि लेलक, किन्तु, परम्परा हत्या कोरोनासँ कतहु संभव होइक. किन्तु, परम्परामें अबैत एखुनाका बाधाक दुःख अनेक पत्र-पत्रिकामें प्रकाशित लेख सब में आबि रहल अछि.
बोम्मइ
अर्थात् खेलौना जुड़ल एहि पर्वक मोटा-मोटी स्वरुप सम्पूर्ण दक्षिणमें लगभग एके
रंग छैक.[1] तथापि,सुनैत छी, सबठाम बोम्मइ’क महत्व भिन्न-भिन्न छैक. विकिपीडियाकें
मानी तं तमिलनाडुमें जं एहि परम्पराकें दैवी उपस्थिति जोड़ल जाइछ, तं आंध्र प्रदेशमें ई खेलौना
सबहक दरबार, आ कर्नाटक में ई खेलौना सबहक सजावटक पर्व थिक. एखन हमरा लोकनि तमिलनाडुक
’बोम्मइ कोलु’क गप्प करी ,जकर गतिविधि परिवार आ समीपी महिला मंडलीए धरि सीमित रहैछ.
हमर पत्नी कहैत छथि, विभिन्न ठामक हमर सेवाक अवधिमें हुनका अनेकठाम महिला लोकनिक संग बोम्मइक उत्सवमें
सम्मिलित हेबाक अवसर भेटल छलनि. यद्यपि, 'बोम्मइ कोलु' की थिक से हमरा एखन धरि बुझलो नहिं छल ! तें, आब एकर गप्प कनेक विस्तारसं.
बोम्मइ कोलुक पर्व असलमें महालयाक दिन आरम्भ होइछ, आ एकर पहिल पूजा नवरात्रिक पहिल दिन मनाओल जाइछ, यद्यपि, एकर तैयारी अनेक दिन पहिनहिं आरम्भ भ’ जाइछ. कोलुक तैयारीक भार मूलतः नारि लोकनि आ कन्या लोकनि अपना ऊपर लैत छथि, कारण ई पर्वो हुनके लोकनिक थिकनि.एहि त्यौहारकें मनयबाक हेतु सबसँ पहिने घरमें जोगाकय राखल देवी-देवताक धातु, लकड़ी, माटि, चीनी-मिट्टी वा पेपर-मैसीक मूर्ति सब निकालल आ झाड़ल-पोछ्ल जाइछ छथि. संगहि, संभव भेल तं भगवान- भगवतीक किछु नव मूर्ति, आ नव खेलौना सेहो आनल गेल. एकरा सबकें सजयबाक हेतु घरक कोनो एक कोठलीमें 5, 7, 9 वा एगारह विषम सीढ़ीक आसन लगाओल जाइछ आ ओकरा कपड़ासँ झांपलो जाइछ. एहि हेतु जे किछु कपड़ा घरमें उपलब्ध भेल,तकर उपयोग कयल गेल. एकटा लेखिका-आशा बालकृष्णन- चेन्नईकें मयिलापुर इलाकाक एक घरक खीसा कहैत छथि जे ‘ तहिया हुनक मात्रिकमें बिस्कुटकेर चौखुट टिन सबहक उपयोगसं सीढ़ी बनाओल जाइत छल जकरा ओ अपन ताता (मातामह )क उज्जर धोती (वेष्टि)सं झाँपिक बोम्मई कोलुक ‘पड़ी’ (सीढ़ी वा श्रेणी) बनबैत छलीह. यद्यपि, सजावटक हेतु टेबुल बेंचक अतिरिक्त आओर कोनो उपलब्ध उपस्करक प्रयोग भ’ सकैत अछि. लेखिका आगू कहैत छथि, आसनक आगाँ ओ लोकनि अपन रुचिक उपलब्ध सामग्रीतं सजबिते छलीह, सजावटक आगाँ पार्क-सड़क-गाछ-वृक्ष आ परिधि सेहो बनाओल जाइत छल. तखन आरम्भ होइत छल कोलुक सजावट. जाहिमें सब सं नीचा सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य, आ धिया-पुताक खेलौना होइत छल. ऊपर क्रमश: देवी-देवताक संग अपन-अपन स्थानपर रखल जाइत छलाह, जाहि में प्रधानता लक्ष्मी-सरस्वती-महिषासुरमर्दिनी दुर्गाक होइत छलनि कारण ई नवरात्र महिषासुर वधक उत्सव थिक.[2] किन्तु, एहि सजावटमें एकटा जे मूर्ति आवश्यके-जकां होइत अछि ओ थिक बियहुती परिधानमें ‘मरपाची बोम्मइ’ ( काठक पुतरी ) दम्पति, जे विवाहक समय बेटीकें बिदाईक सामानक संग सांठल जाइछ. एकटा सामान्य मध्यवित्त परिवारमें कोलुक सजावटक एकटा फोटो हमरा अपन सहकर्मी डाक्टर स्वाति नागराजन देलनि जाहिमें हुनक घरक भीतरक सजावट अछि. एहि सजावटक नामावली निम्नवत अछि :
सबसँ
उपर बामसँ दहिन
: भगवती आंडाल, विष्णुदुर्गा, राजराजेश्वरी, मुरुगन (कार्तिक)- वल्ली-देवयानी, गणेश, कृष्ण
उपरसँ
दोसर सीढ़ी : दशावतार तथा केंद्रमें आदिशेषपर विष्णु-लक्ष्मी
तेसर
पांति : गणेश-कार्तिक, कैलाशपर शिव-पार्वती
( महाराष्ट्रमें निर्मित ई मूर्ति प्लास्टर ऑफ़ पेरिस केर थिक), बालाजी-पद्मावती, कलशम
आ तंजावुर शंकु (तीन गोट) आ हनुमान
चारिम
पाँति: मीनाक्षी, लक्ष्मी, महिषासुरमर्दिनी,
सरस्वती, विष्णुदुर्गा, लकड़ीक पुतरी (‘मरपाची
बोम्मई’)
पाचम
पाँति: हयग्रीव-लक्ष्मी, कलिंगक ऊपर कृष्ण,
नागथाम्मन (नागमाता), गणेश-शिव-पार्वती, गुरुवायुर अप्पन( विष्णु)
भूमिपर
: संगीतक त्रिदेव (त्यागराज, श्यामा शास्त्री,मुथुस्वामी दीक्षितार) तिरुवल्लुवर, बुद्ध,
साईंबाबा, राघवेन्द्र, कांची महापेरियावल, अन्न एवं फल-फूल सहित सेट्ठियर एवं
सेट्ठीची, नकली घोड़ाक नर्तक दुनू कात,तकर कात, एक कात मीनाक्षी एवं सुन्दरेस्वरक
विवाह, आ दोसर कात हाथी पर गुरुवायूर अप्पन
ज्ञातव्य थिक, ई सजावट परिवारमें उपलब्ध मूर्ति, खेलौना आ अपन रुचिक प्रतीक थिक जकर कोनो निश्चित विधि नहिं छैक .तें, एहि सब संकलनमें प्रयोगधर्मिता आ परिवर्तन निहिते छैक, जे समसामयिकता आ धिया-पुताक अपन रुचिक प्रतिबिम्ब सेहो होइछ, जेना कोरोना कालमें एखन बहुतो ठाम दुर्गामें ‘कोरोना-मर्दिनी’-जकां प्रदर्शित कयल जा रहल अछि. किन्तु, एतबा अवश्य जे कोलुकेर आगाँ पियर रंगल नारिकेर सहित घटस्थापना आ दीपश्रृखला (कुत्तुविलक्कु) सजावटकें एकटा धार्मिक आभा दैत छैक. महिला लोकनि कोलुक आगाँ लोक विभिन्न प्रकारक अरिपन वा कोलम सेहो बनबैत छथि. ज्ञातव्य थिक, तमिलनाडुक मदुरै मीनाक्षीक मन्दिर सहित तमिलनाडुक अओरो अनेक मन्दिर सबमें सेहो कोलुक प्रदर्शनक परम्परा छैक.
आब कनेक कोलुक अवसरक पूजा पाठक गप्प करी. नवरात्रिक पहिल दिन गणपति-लक्ष्मी-पार्वती आ सरस्वतीक कलश-आवाहन होइछ, जे अपना सबहक ओहिठाम कलश-स्थापन होइछ. ओकर पछाति, प्रतिदिन विभिन्न प्रकारक नैबेद्यक रूपें दलिहन, जेना काबुली, चना, वा मूंगफली इत्यादिकें नोनक संग उसिनि आ छौंकि कय ‘सुंडल’ बनाओल आ चढ़ाओल जाइछ. विभवक अनुसार घरमें नमकीन आ मधुर सेहो बनैछ. घरक महिला आगंतुक अहिबाती लोकनिक हरदि-कुंकुमसँ अभिषेक करैत छथिन आ जलखै-पनिपियाइसँ स्वागत करैत छथिन. बच्चासब मौज मस्ती करिते अछि. नवम दिन सरस्वती पूजा होइछ आ विजया दशमीक दिन आयुधपूजाक रूप में मनाओल जाइछ. एम्हर आयुधपूजाक दिन नव काज आरम्भ करब शुभ आ उपयुक्त मानल जाइछ. ज्ञातव्य थिक, दक्षिण भारतमें अपना सब-जकां वसंत पंचमी दिन सरस्वती पूजा नहिं होइछ.
हमरा
जखन पहिलबेर अपन सहकर्मी महिला लोकनि ‘कोलु’ परम्पराक गप्प कहलनि तं हम एकर
अनुसन्धान करय लगलहुँ . किन्तु, नवरात्र महिषासुरक वधक पर्व थिक तकर आगू एहि परम्पराक तार्किकताक समर्थनमें किछु
भेटल नहिं. यद्यपि, एकटा समाचार पत्रक एकटा आलेखमें एतबा अवश्य भेटल जे चूंकि एहि ऋतु
में पानिक बाहा इत्यादिक सफाई होइत छलैक आ ओहि माटिसँ माटिक मूर्ति बनैत छल. अस्तु, लोक कुम्हार-मूर्तिकार
सबहक प्रोत्साहन ले लोक मूर्ति किनैत छल.किन्तु, बहुत दिनसँ छल अबैत परम्पराक एकेटा
ई तर्क बहुत संगत नहिं लगैछ. एहि लेखकक इहो कहब छनि जे ‘कोलु’ में प्रदर्शित सब
वस्तु इहो प्रमाणित करैछ, जे पृथ्वीपर जे किछु छैक, तकर स्रष्टा इश्वरे थिकाह. एकठाम इहो पढ़बामें भेटल जे गोलुमें सब देवी
देवता एहि हेतु सम्मिलित होइत छथि कारण, सब देवी देवताक सामूहिक शक्तिएसँ
महिषासुरमर्दिनीक अवतार भेल छल ; एकर चर्चा दुर्गासप्तशती में सेहो अछि. तें, ई
तर्कसंगत बूझि पडैछ. जे किछु हो, कोलु, गोम्बे हब्बा,बोम्मइ कोलु, आ बोम्मे गल्लु
एतबा तं अवश्य करैछ जे ई उत्तर भारतक नवरात्रकें दक्षिणमें सेहो समाने प्रासंगिकता
दैत अछि.
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संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Golu
2.
आशा बालकृष्णन: FInancial Express 16.10.2020
https://www.financialexpress.com/lifestyle/navratri-golu-celebrations-in-chennais-mylapore-history-and-significance-of-navratri-golu-during-dussehra/2107130/
3.
श्रेया पारीक: The Better India 4.10.2014 https://www.thebetterindia.com/14830/golu-traditional-festival-dolls-south-india/
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