Monday, July 12, 2021

प्रवासी जीवन में मिथिला आ मैथिलीक उपस्थिति

 

6 सितम्बर 2009, रवि दिन. न्यूयॉर्क सिटी, अमेरिका. हमरा लोकनि टाइम्स स्क्वायर लग घूमैत रही. हमरा संग  हमर पत्नी, कन्या, जमाय आ हुनक एकटा गुजराती मित्र परिवारक  रहथि. सड़कक कातक साइड-वाक पर नीक चहल-पहल छलैक. अकस्मात्, हमरा लागल, पाछूसँ  छूबि केओ हमर ध्यान आकृष्ट केलनि-ए. उनटिकय  देखैत छी, तं एकटा मैथिल परिवार : युवक, पत्नी, बरख दसेक एकटा बालक आ एकटा छोटि कन्या. मुसुकाइत कहलनि, ‘अपने सब कें मैथिली बजैत सुनलहु, तें...’ एतेक दूर में अपन भाषा बजैत नागरिकसं भेंट भेने जेहने हर्ष आ कौतूहल ओहि  मैथिल परिवारकें भेल रहनि, तेहने हमरो लोकनिकें भेल छल. हमरा लोकनि ओत्तहि ठाढ़े-ठाढ़ पांच मिनट परिचय-पात कयल आ अपन-अपन बाट धयल. मधुबनी जिलाक निवासी ओ युवक न्यूयॉर्कहिं में काज करैत रहथि.न्यूयॉर्कक टाइम्स स्क्वायरक भीड़में मैथिली सूनि एहि परिवारक  अचानक आकृष्ट हयब एतबा तं अवश्य सिद्ध करैछ, जे विदेशहु में रहला उत्तर, मातृभाषा एकटा चुम्बक प्रमाणित होइछ. 

                                       न्यूयॉर्क मधुबनीक मैथिल परिवारसँ अचानक भेंट, वर्ष 2009  

तथापि, प्रवासी जीवन में मिथिला आ मैथिलीक उपस्थितिकें महत्वकें प्रमाणित करबाले केवल एकटा ई उदाहरण पर्याप्त नहिं. तें, एहि विषयक कनेक विस्तारसं जाँच करी.                                                                                         सत्यतः, प्रवासी जीवन में मिथिला आ मैथिलीक उपस्थितिक जांचले दू प्रकारक मापदंड चाही. एक, प्रवासी मैथिल लोकनिक बीच सर्वेसँ  ई ताकल जाय जे ओ लोकनिक अपन जीवनमें मिथिला आ मैथिलीक केहन उपस्थितिक अनुभव करैत छथि; दू, भारतसँ  विदेश जाइत मैथिल अपन देखल अनुभवक आधार पर स्वतंत्र  निष्कर्ष  निकालथि जे ओ लोकनि विदेशमें प्रवासी मैथिल लोकनिक जीवन में मिथिला आ मैथिलीक केहन उपस्थिति देखलनि. हमरा अपन निष्कर्ष निकलबाक हेतु एहि दुनू म सं कोनो मापदंडक नहिं अछि. तें, हमरा अपन परिवारजन सहित अनेको प्रवासी लोकनिक संग देशसं बाहर आ भारतक भीतर जे सम्पर्क भेल अछि, ओही सम्पर्कक अनुभवक आधारपर हमर हम अपन विचार एतय रखैत छी.

जं प्रवासी लोकनिकें कनेक काल ले छोडि दी, तं, अपन इलाकाक प्रति लगावक एकटा भिन्न उदाहरण दैत छी. ईसवी सन 2006 में एगारह बजे रातिक करीबक एक ट्रेन में चढ़बाक क्रममें धक्का-धुक्कीक कारण, तीन गोटे नई दिल्ली स्टेशन पर अबैत ट्रेनक सामने रेलक पटरी पर खसिकय मरि गेलाह. हमरा अनुमान अछि,  फगुआ, दसमी, आ छठिक पूर्व दिल्ली-नई दिल्ली स्टेशन पर घरामुंहा बिहारी लोकनिक एहन भीड़  बहुतो गोटे कें देखल हयत. प्रश्न उठैछ, पर्व-त्यौहारक अवसर पर लोक गाम अबैले कोना आफन तोड़ने रहैछ, देशक भीतरक प्रवासी लोकनिकें गाम अपना दिस किएक  एना घीचैत छनि, जखन कि दशहरा–होली-दिवाली-छठि आब दिल्लियोमें मनाओल जाइछ, एहि सब पर्वक छुट्टी दिल्लीओमें  होइत छैक. माने, पर्वक  आलावा सेहो गाम में एहन किछु अदृश्य आकर्षण अवश्य छैक जे लोककें गाम दिस झिकैत छनि : ककरो माता-पिता, ककरो परिवार आ नेना आ ककरो केवल अपन भूमि आ कमला-कोसीक धार, वा गोसाउनि-ब्रह्मबाबा अपना दिस झिकैत छथिन . विदेश बसैत प्रवासी भारतीय लोकनि सेहो अपन भूमिक दिससं एहने घिचावक  अनुभव करैत छथि, से सब कहताह. किन्तु, कतेको बेर समयक अभाव, दूरी, आ व्यय बाधा बनि ठाढ़ भ’ जाइछ.  एतबे नहिं, देश दिस घिचाव आ जुड़ाव केर  आओर अनेको सूत्र छैक, जे कखनो आवश्यकतासं प्रेरित होइछ, आ कखनो महज भावनात्मक तन्तुक जोरसं  सेहो. हम अनेको परिवारसँ परिचित छी जे जीवन समुद्रपार बितौने छथि, किन्तु, सन्तान लोकनिक हेतु जीवन संगीक तलाश मिथिलहि में आबि कय कयने छथि. एकर अपवादो अवश्ये भेटत. किन्तु, ई प्रवासी लोकनिक जीवन में मिथिला आ मैथिलीक उपस्थितिक एकटा विन्दु भेल तं अवश्य.                                                            आब एकटा दोसर गप्प. की प्रवासी लोकनिक अपन जीवनमें मैथिल समाजक अभावक शून्यताक अनुभव करैत छथि ? हमरा जनैत, सब दिन जं नहिओ तं, कहिओ काल अवश्य. प्रवासी लोकनि जतय कतहु छथि अपन  देश आ भूमि पर  छूटल  अपन समाजक अभावक अनुभव अवश्य करैत छथि. तें, जतहु मैथिल लोकनिक पर्याप्त संख्यामें छथि, अपन गाम-घरक मैथिल समाजक कमी कें दूर करैक हेतु, मिथिला-मैथिलीक संस्था बनाकय, एक दोसराक सम्पर्क में रहैत छथि.  आओर नहिं किछु, तं,‘कठौती में गंगा’ तं सब सुननहिं छी. सएह सही.  यूनाइटेड किंगडम (UK) में लन्दनमें मिथिला सोसाइटी यू के नामक एकटा संस्था सक्रिय अछि से तं हमरा बूझल अछि. ई संस्था यूनाइटेड किंगडम (UK) क विभिन्न भागमें काज करैत, आ बसल, मैथिल लोकनिक संस्था थिक. एहि संस्थाक सदस्य लोकनि अपन संस्थाक दिससं समय-समय पर सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमक आयोजन करैत छथि, आ अपन पर्व-उत्सव मनबैत छथि. भारत सं अबैत साहित्य आ ललितकलासँ  जुड़ल व्यक्ति सबहक संग सम्मेलन, आ हिनका लोकनिक अभिनन्दनक हेतु सेहो, ई संस्था आयोजन करैत अछि, से सुनल अछि. संस्थाक माध्यमसँ सबहक एक दोसराक सम्पर्क में रहलासं बेर-कुबेर पर एक दोसराक सहायता सेहो होइत छैक. एतय एकटा गप्प बूझब आवश्यक, जे  घर सं जतेक दूर जायब, अपन देश-प्रदेशमें सामान्यतया जे छोट-छोट देवाल देखबामें अबैछ से सब खसय लगैछ. तें, इंग्लैंड-अमेरिका तं छोडू बंगलोर धरिमें मैथिल लोकनि समस्त बिहार-उत्तरप्रदेशक हिंदी-भोजपुरी-मैथिली भाषी लोकनि संग मीलि कय सामूहिक संस्था चलबैत छथि. एहिसँ  समूह सेहो पैघ होइछ आ एके संग अनेक भाषिक समुदायकें अपन समाजक संम्पर्कमें रहबाक बोध सेहो होइत छैक. तें, विदेशमें सेहो संस्था सब राष्ट्रीय स्वरुप ल’ लैछ. तें, विदेशमें  भारतीय नागरिकक वृहत समाजक प्रतिनिधि संस्था सब सेहो लोककें क्षेत्रीय मित्रभाव आ मेलजोलक अवसर आ सुविधा दैत छैक.                                                                                   

आब अमेरिकाक गप्प करी. अमेरिका आकारमें योरपक देश सबसँ बड्ड पैघ. शहर सभक आकार सेहो तहिना. तें, पैघ शहरक गप्प हम नहिं कहि सकब. किन्तु, हमरा अमेरिकाक नार्थ कैरोलिना राज्यक एकटा छोट-सन यूनिवर्सिटी टाउनशिप, चैपल हिलमें, किछु दिन रहबाक अवसर भेल छल. ओहि समयमें चैपल हिलमें किछु मैथिल छात्र आ नोकरिहा लोकनि रहथि. हुनका लोकनिसँ हमरा सम्पर्क भेल छल. ओतय ओ लोकनि एक दोसरासं जुड़ल  अवश्य रहथि. हमरा एक गोटेक ओतय जयबाक अवसरो भेटल. ई दम्पति, दुनू, मैथिल. घरमें जनमौटी नेना रहनि. बच्चाक जन्ममें सहायताक हेतु नेनाक नानी आयल रहथिन तें हुनकोसँ  भेंट भेल. हिनका लोकनिक परिवारमें भाषा मैथिली आ सामान्यतः भोजन-सांजन मैथिल रुचिक.

हालमें, अमेरिकामें रहैत नेपाली मैथिल लोकनिक सांस्कृतिक गतिविधिक एकटा समाचार काठमांडूसं प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक The Rising Nepal क 28 दिसंबर 2019 क अंक में भेटल. समाचारक अनुसार एसोसिएशन ऑफ़ नेपाली तराईअन इन अमेरिका (ANTA ) आ मैथिल्स ऑफ़ नार्थ अमेरिका (MoNA ) क संयुक्त सहयोगसँ अमेरिकाक न्यू जर्सी शहरमें 14 दिसंबर 2019 क विद्यापति समारोह आयोजित भेल छल.एहि समारोह में नेपालसँ आमंत्रित किछु कलाकार आ साहित्यकार सेहो ओतय गेल रहथि. समाचारक अनुसार एहि समारोह में अमेरिकाक विभिन्न भारतीय आ नेपाली समुदायक नेता लोकनि सेहो सम्मिलित भेल रहथि.

                 न्यू जर्सी अमेरिका में विद्यापति पर्व. फोटो: The Rising Nepal, काठमांडू के सौजन्यसँ 

हमर अनुभव कहैछ, मैथिल विदेशमें जतय छथि, अपन पीढ़ी धरि मैथिली बजैत छथि, आ बहुधा अपन रूचि आ सुविधाक अनुसार भोजन-सांजनमें
  मैथिल-जकां खाइत-पिबैत छथि. किन्तु, दोसर पीढ़ी जाइत-जाइत मैथिली भाषा आ व्यवहार विलुप्त भ’ जाइछ. एकर कतेको कारण छैक. पहिल तं सामान्य जीवनमें भाषा आ व्यवहारक अभाव. दोसर, विवाह-दानक हेतु समाजक परिधि जेना-जेना पैघ भ रहल छैक, परिवारसँ मैथिली कतियाअल जा रहल अछि. भारतहु में बसैत मैथिल परिवारहुक स्थिति एहने अछि. तें, जाहि परिवारमें पति-पत्नी दुनू मैथिली भाषी नहिं छथि, ओहि परिवार में नेना-भुटकाकें मैथिली सुनबाक अवसर कदाचिते भेटैत छैक. अस्तु, ओतय मैथिली बिलाय लगैछ. मुदा, जं पति-पत्नी दुनू मैथिली भाषी छथि, तं, बच्चाकें लोक भले मैथिलीमें नहिं टोकौक, बच्चा माय-बापक बीचक गुप्प सुनिओकय किछु मैथिली अवश्य सीखि लैछ, से हम अनुभवसं कहैत छी. किन्तु, जं अहाँ पूछब, प्रवासी लोकनिक जीवनमें मैथिलीक स्थान केहन छनि, तं, हम एतबे कहब, जे भारतहिंमें मिथिलासं दूर बसैत मैथिलक जीवनमें मैथिलीक स्थान केहन छनि ! उत्तर सूनि हताशा हयब सम्भव, किन्तु, ई सत्य थिकैक. प्रवासी लोकनिमें कें जे मैथिलीकें जिया कय रखने छथि, ओ केवल अपन ममत्वसं, आवश्यकतासं नहिं. ततबे नहिं, जहिना भारतमें रहितो बहुतो मैथिल, मैथिली पढ़ब नहिं जनैत छथि, तहिना प्रवासी मैथिल म सं बहुतो मैथिली ने पढ़इत छथि, ने पढ़ि सकैत छथि. किन्तु, समस्या ई छैक जे  प्रवासी मैथिली पढ़हु चाहैत छथि, तं अंतर्राष्ट्रीय मार्केटिंग प्लेटफार्म सब पर मैथिलीक पोथीक अभावक कारण मैथिलीक पोथी हुनका सबहक लग पहुंचि नहिं पबैछ. अतः, मैथिलीक प्रति ममत्व रहितो ओ लोकनि मैथिलीसं दूर भ’ जाइत छथि. तें, अंतर्राष्ट्रीय मार्केटिंग प्लेटफार्म पर मैथिलीक उपस्थितिक आवश्यक. कारण, हमरा जनैत, विदेशमें मैथिलीक मांग सेहो छैक. तकर एकटा प्रमाण मैथिली भाषाक हमर अपन ब्लॉग ‘ कीर्तिनाथक आत्मालाप’ थिक. पिछला दस वर्षमें पाठक लोकनि हमर एहि ब्लॉगक पेजकें आइ धरि करीब 88834  उलटौलनि-ए, से analytics कहैत अछि . आश्चर्यक गप्प ई, जे एहि म सं अधिकांश पाठक समुद्र पारेक छथि ! माने, समुद्र पारहु सं लोक मैथिली तकैत तं अवश्य छथि !                                           

अंतमें, वर्तमान मिथिलाक समाजक हेतु प्रवासी मैथिल लोकनिक योगदानक गप्प करी. सफल पूत सदायसँ अपन समाजक उत्थानमें योगदान करैत एलैये.  आ तकर आशा उचितो. किन्तु, अपन समाजक उत्थानक हेतु प्रवासी लोकनिक योगदान ले ककरो तं डेग उठबहि पड़तैक. हम पूर्णतः विश्वासक संग ई नहिं कहि सकैत छी, जे प्रवासी मैथिल लोकनि सामूहिक रूपें पैघ स्तरपर मिथिलामें शिक्षा, समाज-सुधार, वा आधारभूत संरचनाक सुधारक कोनो अभियानक सहयोगी छथि वा नहिं. किन्तु, व्यक्तिगत स्तर पर कतेको गोटे मिथिलाक छोट-छोट स्थानीय अभियानमें सहयोग करैत छथि तकर एक-दू टा सूचना हमरा लग अवश्य अछि. हमर अनुमान अछि, विदेश गेल बहुतो सफल मैथिल, गाम-घरक लेल आरम्भ कयल  इमानदार आ सार्थक स्थानीय पहलमें कम वा बेसी सहयोग अवश्य करताह. किन्तु, एहि हेतु पहिल डेग तं केओ उठाबथि. ई डेग वा पहल मिथिलहुसं आरम्भ भ सकैछ. 

( 'तीरभुक्ति' नामक पत्रिका में प्रकाशित )                                   

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