Saturday, November 6, 2021

अष्टदल कमल

 

अष्टदल कमल

कल्लूक अंगना में टटका पिसल पिठारक अष्टदल कमल आ ओहि पर सिन्दूरक ठोप देखि कए श्रीमती पंत कें आश्चर्य भेलनि. दू तल्लाक दू टा अलंग, चारि टा अफसर लोकनिक चारि टा फ्लैट. चारि टा सर्वेन्ट क्वार्टर. मुदा, अकस्मात् मैडम कें सेवादारक संग आम गाछ लग ठाढ़ देखि शान्ती  कें आश्चर्य भेलैक. ओ अढ़िया में आधा सानल चिक्कस कें ओहिना छोड़ि, दौड़ि कए मैडम लग आयलि. हुनका एकाएक एम्हर आयल देखि, चकित शान्तीकें श्रीमती पंत कहलखिन, पोद्दार कहलक आम गाछ सब बड्ड फड़ल छैक, तं देखबाक मोन भेल.’ 

‘त. ई गाछ कोनो साल नागा नहिं जाइछ, मेम साहेब.’ शान्ती बाजलि, ‘किछु ने किछु फड़िते छैक. कोनो बेर कम, कोनो बेर बेसी. एहि बेर तं टूटि कए फड़ल छैक.’

‘मुदा, पकबा धरि रहतैक तखन ने ! दिल्ली छावनी में हमर हाता में तेहन मीठ चौसा आ लंगड़ा आम फड़ैक जे.... आह ! एहन आम कतय भेटत !! मुदा, एखन कतेक हवा-बिहाड़ि अओतैक. बानर-लुक्खी, धिया-पुता रहय देतैक तखन ने .’ श्रीमती पंत बजलीह.

श्रीमती पंत केर गप्प सूनि शान्ती कहलकनि, ‘ हवा बिहाड़ि तं आमक मास में आबिए जाइत छैक, मुदा, एहि आम कें केओ नहिं छूअत. चुक्क खट्टा. केवल अंचार बनायब, तै ले नीक हैत. बनाउ ने. हमरा जखने कहब, फांक, कुटबी, जे कहब, हम सब काटि देब, कुच्चा बना देब.’

मुदा, श्रीमती पंत बात कटैत कहलखिन, शान्ती ई अरिपन के देलकैए ? कर्नल यादवक आया ?

‘नहिं मैडम. ई अरिपन हमही देने छियैक.’

‘अच्छा ?’ कहि श्रीमती पंत पोद्दार कें थोड़ेक आम तोड़बाले कहलखिन आ आपस भए गेलीह. जाइत-जाइत शान्ती कें कहलखिन, ‘आइ हम थोड़ेक कुच्चा अंचार बनाएब . जखन होअह आबि जैहह.’  

मुदा, डेरा आपस अयलो पर श्रीमती पंतक जिज्ञासाक आइ अंत नहिं भेलनि. कल्लूक आँगन में अष्टदल कमलक अरिपन ! लखनऊ में जतय साले-साल मुहर्रम में सिया-सुन्नीक बीचक हड़हड़-खटखट प्रशासनक निन्न हराम केने रहैत छैक ओतय तखन एहि अंगना में दू सौतिन, शान्ती आ शबनम, मिलि कए रहैछ. एके संग ईद-बकरीद सेहो मनबैत अछि. किन्तु, दुनूक बीच पूजा-पाठ, पर्व-त्यौहार ल’ कए एखन धरि खट-पट भेलैये से आइ तक केओ नहिं कहलक. ई श्रीमती पंत कें कनेक नव बूझि पड़लनि.

2

कल्लू सेनाक सिविलियन हजाम थिक. एकर पैघ परिवार दू अफसरक दू टा सर्वेन्ट क्वार्टर में रहि कए अफसर लोकनिक टहल-टिकौरा करैत अछि आ मिलि जुलि कए खुशी-खुशी रहैत अछि. सर्वेन्ट क्वार्टर छोट छैक. मुदा, तैयो एतय बहुत सुभीता छैक. छावनी में लखनऊ शहरसँ चोरि-डकैती कम छैक. बिजुलीक लाइन नहिं कटैत छैक. कल्लूक मेडिकल बटालियन सेहो एतयसँ लग पड़ैत छैक. अस्पताल-स्कूल सब लगे. आओर चाही की ? एही सबहक दुआरे सिविलन नौकर-चाकर डीही जकां पुश्त-दर-पुश्त छावनीक में रहैत आयल अछि. अफसर आ सैनिक चलन्त थिकाह. आइ एलाह, काल्हि गेलाह. नौकर-चाकर सर्वेन्ट क्वार्टर में रहैत कतेको पीढ़ी गुजारि दैत अछि. कखनो काल डेरा बदललक, कहियो काल इलाका सेहो. मुदा, ई लोकनि चुप मुँहे अफसर लोकनिक लग  रहैत छथि, अफसर लोकनिक सेवा करैत छथि, आ गुजर करैत छथि. आयालोकनि  अफसर लोकनिक बदलीक समय मेम साहिब कें नोर भरल आँखिए बिदा करैत छथिन. आ फेर, अनायास अगिला साहेब-मेम साहेबक सेवा में लागि जाइत छथि. इएह कारण थिक जे नौकर-चाकर-नाई-बाबर्ची- व्यापारी छावनीक जीवित इतिहास थिक. तें जं छावनीक मुँह जवानी इतिहास सुनय चाहैत छी तं वयसाहु  सर्वेंटसँ  सुनू, चिकन कपड़ाक व्यापारी रहीम चाचासँ  सुनू, करीम बार्बरसँ सुनू. रहीम चाचा अपन हीरो ‘पुक’ मोपेड पर जतबे चिकन साड़ी-सलवार-कमीज-कुर्ता- दुपट्टा संगे अनैत अछि, ओ अपना संग ओतबे गप्प सेहो अनैत अछि. मेम साहेब लोकनि गप्प सुनैत-सुनैत साड़ी-सलावार-कमीज-कुर्ता- दुपट्टाक चुनाव करैत छथि आ रहीम चाचा हुनका लोकनि कें साहब-मेमसाहिब लोकनिक पीढ़ी दर पीढ़ीक  खीसा-खेड़हा सुनबैत अछि. करीम हजामत बनबैत, चम्पी करैत कतेको नव-पुरान गप्प सुनि लैछ, कहि जाइछ. मुदा, छावनीक बहुतो परिपाटी मीलक पाथर जकां अचल अछि. एहि अर्थ में छावनीक पुरान भत्थन इनारक जबकल पानि थिक. मुदा, आब समयक संग छावनीक बदलि रहल अछि, तथापि, एतुका बहुतो परिपाटी जक-थक  अछि. तें, कल्लू आ शान्ती, शबनम आ कल्लूक धिया-पुता ले छावनी एहन अभयारण्य थिकैक जतय अनेक प्रकारक लोक धर्म आ परम्परा एके संग पलैछ. एतय जे नौकर-चाकर एक बेर छावनी में बसि गेल तकरा एतुका नीक-बेजाय सब किछुक हिस्सक लागि गेलैये. तें, शान्ती जे संयोगहिं एक दिन लखनऊ छावनी में आयल छलि, एतुके भ’ कए रहि गेल.

3

माए-बाप शान्ती कें मोन नहिं छैक. गाम में लोक कहैक जे बाप मुन्ना लाल बाराबंकी शहर में काज करैत रहैक. ओत्तहि एक बेर  हैजा पसरि गेल रहैक. ओही में मुन्ना लाल शान्त भए गेल रहैक. जखन मुन्ना लाल शान्त भेल छल, शान्तीक माए सितिया कें दू टा सन्तान रहैक- करीब छौ बरखक शान्ती आ बरख दुइएक, सुरेश. लोक कहैक जे मुन्ना लालक मरलाक बरख भीतरे सितिया, शान्तीक बियाह करा कए, ककरो संग संबंध क कए, कहांदन नेपाल दिस भागि गेल रहैक. मुदा, से गप्प ततेक पुरान भए गेल रहैक जे शान्ती कें सरि भए कए मायक मुँह मोनो नहिं छैक. लोक गाओं में एतबा अवश्य कहैक जे बेटी गराक घेघ छलैक तें दूधपीबे (शान्ती) कें बियाहि देलकै आ साँए-बेटा के ल कए भागि गेल; बेटा कमा कए जे खोअओतैक !   

जहिया बुधनक संग शान्तीक विवाह भेल रहैक, ओकर वयस छौ-सात वर्खक करीब छल हेतैक. दोहारा बान्ह, गहुमा रंग, पैघ-पैघ, कुइर आँखि, आ चेहरा पर गोटीक दाग. नमती में वयससँ छरहर छलि. बजैत कम छलि, मुदा, छल काजुल. तें, शान्ती पर सब कें दया आबि जाइक. काजुल छलि, तं अपन घर-अंगनाक काजक ऊपर आन अंगनाक काज सं किछु खुदरा पाइ, फाटल-पुरान कपड़ा आ कखनो काल दू मुट्ठी काँच-पाकल अन्न सेहो भेटि जाइक.

शान्तीक घरवला,बुधन,क वयस  तहिया सोलह, नहिं तं हे सत्रह ! ताहिसँ बेसी तं  नहिंए छल हेतैक. बुधनक परिवार में बुधन आ शान्तीक आलावा एकर एकटा दूरक संबंधक केओ रहैत छलि, नाम छलैक रेशमी. बुधन कहै जे बहिन छी.एकटा खोपड़ी सन घर रहैक. ओही में एक कात चूल्हा रहैक आ दोसर दिस ई तीनू राति कए भूंइए पर पड़ि रहैत छल. दुआरि पर एकटा गाए आ एकटा बाछी सेहो रहैक. बुधन बोनि-बुत्ता करैत छल, रेशमी घर सम्हारैत छलैक, भानस करैत छलैक. शान्ती गाए बाछी चरबैत छलि, गोबर करसी करैत छल. ऊपरसँ कनेक-मनक अनको काज कए दैत छलैक. नेना वयस आ एतेक काज.  थाकल देहे, राति क’ शान्ती कें कखन निन्न भए जाइक बुझबो नहिं करैक.’  से एक दिन श्रीमती पंतक पुछला पर शान्ती कें कहने रहनि. मुदा, ओहिसँ  बेसी नहिं. शान्ती कें बूझल रहैक जे  मेम साहिब लोकनि जतबे पूछथि, ततबे बाजी. अपना दिससँ हुनकालोकनिसँ गप्प नहिं करी. हुनका लोकनिक  घरक गप्प कहियो बिसरियो कए ने पुछियनि. ने गप्पक बीचमें टोक दियनि. नौकरीक ई रिवाज एकरा मौसी कहने रहैक.

जहिया शान्ती कल्लूक संग क्वार्टर में पहिले पहिल आयल छलि तहिया परिवार में कल्लू आ शान्ती दुइए गोटे छलि. कल्लू शान्ती कें बुझबैत कहने रहैक जे ‘ककरोसँ फालतू गप्प सप्पक कोनो काज नहिं. एहि क्वार्टर केर गप्प दोसर क्वार्टर,   दोसरक गप्प तेसरक सामने भेल तं एतुका दाना पानी तं बिसरिए जैंहें. तखन कोनो मैडम अपन डेरा लग टपय नहिं देथुन.’ शान्ती कल्लूक एहि गप्प कें गेठरी में बान्हि कए राखि नेने छल.

एहि ठाम छावनी में कल्लूक डेरा में सब भोरे उठि जाइत छल. कल्लू के पाँचहि बजे उठि कए बटालियन जाय पड़ैक. एक-एक बटालियन में चारि सौ-पाँच सौ रंगरूट. मुदा, हज़ाम दुइए गोटे- एकटा फौजी आ दोसर कल्लू. केश कटैत कटैत केक दिन दुपहरिया भए जाइक. शबनमक बेटा छेटगर रहैक, स्कूल जाइक. शान्तीक बेटा, दीपू, छोट छलैक. मुदा, स्कूल ओहो जाइत छलैक. शबनम केर दू टा टेल्हगर बेटी सेहो रहैक. ओकरा सब कें घरेक काजसँ फुरसति नहिं. ऊपरसँ  दुनू दू क्वार्टर में काज सेहो धेने छलि. शबनम आ शान्ती के फूटे दू टा क्वार्टरक टहल टिकौरा  रहैक. तें दुनू सौतिन लोकनि मिलि भोरे उठि कए पहिने घरक काज सम्हारैत छल. भानस-भात संपन्न करैत छल आ तखन क्वार्टर में झाडू-पोछा-बरतन ले जाइत छल. हरेक क्वार्टर में डेराक एवज में दू टा काज बान्हल रहैक. जं भानस- भात- कपड़ा धोअब आदि आओर काज ले मैडम कहलखिन तं ओहिसँ  किछु नकदीओ आमदनी भए जाइत रहैक. एहि बीच में जं मैडम लोकनि कें कहिओ आंग-स्वांग भए जानि तं ई सब हुनका लोकनिक सेवा-बरदाइस अपन डयूटीए बूझैत छलि.

ओहि बीचे अचानक श्री मती पंत कें ठेहुनक दर्द उठि गेल रहनि. डाक्टरी दवाई आ संयम चलिते रहनि. तथापि, कष्ट रहनि. नीक स्वभाव आ मधुर बोलक कारण शान्ती कें श्रीमती पंत बड़ नीक लगथिन. हुनकासँ गप्प करब शान्ती कें नीक लगैक. कारण, श्री मती पंत ने अपने मोने कहिओ किछु खोद-बेद करथिन आ ने कोनो आन मेम साहेबक गप्प-खिधांश पुछथिन.  तें हुनका कष्ट में देखि, शान्ती अपने मोने आबि हुनका कखनो कए दवाईक मालिश कए दनि, हाथ-पयर जांति देनि. एक दिन एहिना शान्ती श्रीमती पंत केर ठेहुन में दवाई लगबैत रहनि. श्रीमती पंत आरामकुर्सी पर बैसलि कोनो पत्रिका उलटबैत रहथि. शान्ती कें की फुरलैक, पुछलकनि,  ‘मेम साहेब एहि बेर अहाँक माँ लोकनि एतय नहिं एलखिन ? दुर्गा-पूजाक छुट्टिओ बीति गेलैक.’

‘हं, एहि बेर नहिं एलखिन.’ श्री मती पंत अन्यमनस्कतासँ कहलखिन. मुदा, फेर हुनक की फुरलनि, पुछलखिन, ‘शान्ती तोहर नैहर कतय छह ? माय-बाप ?’ 

शान्तीक आँखिसँ टप-टप  नोर खसय लगलैक. शान्तीकें चुप देखि श्रीमती पंत मूड़ी ऊपर उठओलनि, तं शान्तीक नीचा झुकल मूड़ी आ गालपर टघरैत नोर पर नजरि गेलनि. पुछलखिन, की भेलह ? शान्ती किछु नहिं बाजलि, तं ओएह फेर पुछलखिन, ‘किएक कनैत छह ? कोनो आंग-स्वांग भेलैए ?’

शान्ती चुप्पे मुँहे मूड़ी डोलाकय, नहिं, केर संकेत देलकनि. श्रीमती पंत चुप भए गेलीह. हुनका चुप देखि शान्ती नोर पोछैत नहुँसँ बाजलि, ‘मैडम हमरा आन ठाम केओ अछि. हमरासँ अभागल के हयत ! माय ने बाप. हम अबोधे रही, बाप तखने मरि गेल. माए जिबैए कि मरि गेल, जानाथि भगवान.  जे अछि, एत्तहि जकरा देखै छियैक, बस सएह.’

शान्तीक गप्प सूनि मिसेज पंत शान्तीक मुँह ताकय लगलथिन, तं, शान्ती पुनः शुरू भए गेल. कहलकनि, ‘मैडम गरीबक जीवन कोनो जीवन थिकैक. नेने रही तं माए बुधन संग बियाह करा कए सासुर विदा कए देने छलि. तहिया ने वयस छल ने अक्किल. मुदा, की कहू. जिनगी हमरा संग कोन कोन ने खेल केलक. मेम साहेब, रहि तं जइतिऐक हम गामो में. मुदा, दुःखे एहन भेल, जे भेल जे जिनगीसँ मरन भला. कहबे तं केलहुँ, मेम साहेब, बियाह भेल तं नान्हिए टा रही. मुदा, जखन देह-दशा भेल, ज्ञान भेल  तं अपने आँखिए देखलिऐक जे बुधना की छल. हम बुझबो ने करितिऐक. हमरा तं कहैओ में लाज होइए, मेम साहेब. मुदा, एक राति हमरा पेट में बड्ड जोर दर्द उठि गेल रहय. हम निसाभाग राति में उठि कए बैसि गेलहुँ. तखन जे हम बुधना आ रेशमीक बीचक खेला देखलहुँ, तं,  हमर सागर देह में तं जेना आगि लागि गेल. तहिये हम बुझलियैक, मैडम, जे  ओहि घर में पहिनहिंसँ हमर सौतिन बसैत छल. पाछू जखन सर-समाज बुझलकैक, हमहूं हम बुधनाकें गारि सराप देबय लगलिऐक तं  दिन-रातिक कल्लह हुअए लागल. जखन नित्तह कल्लह, मारि-गारि-गंजनसँ मोन आजिज भ’ गेल तं एक दिन इनारमें कूदि गेलहुँ. मुदा, मरलहुँ नहिं. इनार में पानि कम रहैक. अक्किल तं छल नहिं. मगर,अरुदा बचल छल. मुदा, हम ओही दिन सोचि लेलहुँ जे बुधनक संग हमर निमहता नहिं हयत. आ जखन अपने बोनि-बुत्ता करब तं कत्तहु कमायब, दू मुट्ठी अन्न आ सूतैक ठाम में भेटिए जायत. हमर मौसी लखनऊ में रहै छल. ओ आयल, गप्प सुनलकै तं हमरा बड्ड फज्झति केलक. हम कहलियैक, हमरा बुधना आ रेशमीक संग निमहता नहिं हैत. तं, ओ अपने संग  हमरा लखनऊ नेने आयल आ अपने संग एकटा क्वार्टर में काज धरा देलक. हम राति कए ओकरे कोठली में कहुना सूति रही. किछु दिनक बाद  एत्तहि काज करैत कल्लूसँ भेंट भेल. क्वार्टर सब में साहेब सब लग ओकरा अवर्यात रहैक. ओ एत्तहि काज करैत छल, से कहलक. बोली बानी नीक रहैक. ओ हमरो नीक लागय. दुखायल मोन में केओ दू टा नीक बोल कहै छै तं नीक लगिते छै ने, मेम साहेब. हम गामसँ आयल. छौ-पाँच नहिं बुझिऐक. ओ छौ मास-बरख दिनक बाद एक दिन पुछलक, ‘हमरा संगे रहबें ?’ हम की कहितिऐक ? एसगरि रही. एसगरि मौगी, शहर बजार में कोन धरानी रहैए से हम अहाँ कें की कहब, मेम साहेब !   मौसी के पुछलिऐक, कहलक, ‘कोन बेजाय कहै छौक. बुधनासँ नीके छौ. ओ घुरिओ कए ताकए एलौ ! एबो ने करतौ, से जानि ले. कल्लू कें सरकारी नौकरी छै, एत्तहि रहैए. हमरा तं कोनो ऐब नहिं बूझि पड़ैए.’  आ हम कल्लू कें ‘हं’ कहि देलिएक. मुदा, मैडम जखन कैसरबाग़ कोर्ट में कल्लूक संग बियाह ले गेलहुँ आ कोर्ट में ई अप्पन नाम ‘करीम’ कहलकैक तं कहै छी मैडम, हमरा तं गस आबि गेल. हम कोना एकर जाति बूझितिऐक ! नामो तं जरलाहा ‘कल्लू’  रखने अइ. हम तं ठामे खसि पड़लहुँ. एक दिससँ कल्लू मुँह पर पानि छिटलक. दोसर दिससँ मौसी पंखा हौकए लागल. हाकिम पुछलकैक, ‘ क्या बात है ? मौसी गप्प सम्हारि लेलकैक, ‘ कहलकैक, माने, धूप बहुत है. सुबह से मुँह में कुछ पानी भी नहीं दिया है, चक्कर आ गया. लौंडियों का तो आप जानते है, हजूर.’ मौसी तं कहियासँ लखनऊ में छल.  आब ओकरा सब गप्प बूझल रहै, कि नहिं, से ओकर धरम जानय. हमरा ओ नरकसँ बहार क कए लखनऊ अनने छल. हम झूठ आगि उठेबै तं हमरा नरको में ठाँव भेटत, मेम साहेब ! मुदा, हम की कहू, ओइ घड़ी हमरा मन में की भेल छल. मुदा,निरुपाय रही. घुरती में हम कल्लू के बड्ड गारि-सराप देलिऐक. मुदा, जे बात छियैक. ओ ओही दिन हमरा कहलक. ‘देख, हम सरकारी नौकर छी. तोरा दुःख नै देबौ. जेना मोन होउ, रहिहें.’ बाद में इहो बुझलिऐक, एकर घर गौंडा जिला में रहैक. ओतय कलुआ कें पहिनहिसँ लोक-बेद सेहो रहैक. तहिया तामस तं बड्ड भेल. बेर बखत अप्पन अक्किल पर कचोट तं आइओ होइए. मुदा, जानथि भगवान, ककरो आगि नहिं उठाबी. जेना कलुआ हमरा कहलक, से ने ओ अपने, आ ने हमर सौतिन शबनम, आइ धरि हमरा कोनो दुःख नहिं देलक. शबनम केर बेटा-बेटी सेहो अलो-मलो केने रहैए, जे बात छियै, मेम साहेब.  हम जहिना रही, तहिना रहै छी. तुलसी में पानि ढारै छी, अरिपन दै छी. दसमी में नौ दिन फलाहार करै छी, कलश रखै छी. शबनम के जे फुरै छै, ओहो करैए. बस ! ’ कहि शान्ती चुप भए गेलि.

तखने मिसेज पंत देखलखिन, शान्तीक बरख आठेक बेटा, दीपू स्कूलसँ  आबि रहल छलैक. ओही काल शबनमक बेटी, छोटी मुन्नी, आबि कए शान्ती कें कहलकैक, ‘ छोटी मम्मी चलिए, मम्मी बुला रही है. पापा खाना के लिए आ गये हैं .’

शान्ती मिसेज पंतसँ छुट्टी कए अपन डेरा दिस बिदा भेल. मिसेज पंत सेहो उठिकए भीतर गेलीह. हुनका शान्तीसँ  फेर कहिओ आओर किछु पुछबाक आवश्यकता नहिं बूझि पड़लनि.

 

No comments:

Post a Comment

अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो