कमला
के किनारे का बूढ़ा इमली का पेड़
1
कमला के रेत
पर सब कुछ उगता है; घास-फूस, कास-पटेर. धान, दलहन. परोड़, फूंट-खरबूज. तरबूज-पहलेज-ककड़ी.
सब कुछ. और सब कुछ बिना मेहनत के. बस बीज होना चाहिये. धूप सूरज देता है और रेत
गर्मी. पानी कमला देती है और खनिज-नमक हिमालय से आता है. हिमालय समुद्दर का बेटा
जो है.
लेकिन कमला
नदी है बड़ी मनमौज. जो इसके साथ चले उसका वाह-वाह.
जो सामने खड़ा हो जाय उसे तो उखाड़ ही फेंकती है. लेकिन कुछ लोग न कमला से डरते हैं,
न राजनेता से. ये वैसे लोग हैं, जो टूटते हैं, पर झुकते नहीं . दुबौली कें सपाट
बाधमें अकेला खड़ा इमली का पेड़ ऐसा ही अक्खड़ है. एक तो कमला के पेट यानी नदी के पाट
के आसपास में पैदा होना और फिर पांक, रेत,
पानी से जूझते बरसों-बरस बढ़ते जाना. यह एक कमाल नहीं तो और क्या है !
शायद यह पेड़
कुम्मरि पोखर के भीड़ पर पैदा हुआ था. कुम्मरि पोखर की भी अपनी कहानी है. लेकिन वह
बाद में कभी. हाँ, तो पहले के जमाने में कमला-कोसी की धार के पाटों के दोनों तरफ
कोई बाँध नहीं था. इन नदियों की जिधर इच्छा होती थी, चल देती थी. एक बार कमला
नजदीक के गांव कर्णपुर को ही लील गयी. गाँव के घर, माल मवेशी सारे बह गये. गाँव के
बाहर का सोलकन्ही गढ़ बंच गया, और गाँवके पूरब कुम्मरि पोखर बंच गयी. सच पूछिए तो
बंच क्या गयी, पानी से घिर गयी. भीतर पानी, बाहर पानी. केवल भीड़ ही तो था जो पानी
के बाहर दीख रहा था. शायद यही पोखर का भीड़ इमलीके इस बिरबे को बंचा गया होगा. अकाल-बिकाल
में थोड़ा भी सहारा मिल जाय, तो जीव जीवन को सम्हाल लेते हैं. सहारा नहीं मिले, तो कितने
हवा,पानी और धूप की भेंट चढ़ जाते हैं.
सच पूछिए तो
यहाँ किसी को मालूम नहीं, यह पेड़ कितना बूढ़ा है. शायद कभी गिर कर मर खप जाय तो
वैज्ञानिक इसकी आंत में से इसके उम्र की रहस्य निकालें. लेकिन, अपनी औकात साबित
करने के लिए मरना भी एक बेवकूफी ही है !
जिस इलाके
में नदियाँ हर साल अपनी राहें बदल लेती हैं, वहाँ गाँव वालों को रास्ते ढूढने में
मुश्किल भी होती है, और नहीं भी. जहां पैर रखने की जगह मिल गयी, लोग बस गये. जहाँ
आगे जमीन दीख गयी रास्ते बन गये. इसलिए, कमला के किनारे का यह इमली का पेड़ अभी राहगीरों का साथी बना हुआ है. वैसे तो, पाकड़,
बरगद और पीपल नामी गिरामी होते हैं; सब को सहारा देने वाले को पंथ का पाकड़ जो
बोलते हैं. लेकिन, यहाँ का सहारा यह इमली का पेड़ ही है. स्कूल जाते बच्चे जब ऊपर धूप
और नीचे रेत से पक जातें हैं, तो यह इमली का पेड़ यहाँ ठंडी छायाक एकमात्र धनी है. वैसे तो इनार और पोखर सब के होते हैं, और नहीं
भी होते हैं. पर, धनवान के धन पर केवल
धनवान का अधिकार होता है. लेकिन, कमला के किनारे की इस घनी छायाके धनवान इमली की
छाया सबकी है. और दुबौली का यह इमली का पेड़ सबका अपना है. इसकी एक वजह है; इमली का
पेड़ कोई शीशम-सागवान तो नहीं जिसकी लकड़ी बेशकीमती हो. यह आम-जामुन भी नहीं जिसके फल के लिए आदमी तो क्या
कौवे-कोयल -गिलहरी भी मार करें. आम से भरे इस इलाके में भला इमली की क्या बिसात. पर
बच्चों के लिए बातें वैसी नहीं है. उनके लिए न आम की कमी है, ना जामुन की किल्लत.पर
इमली–इमली है. फिर, लकड़ीवाले दरख़्त से उन्हें क्या लेना. पेड़ की छाया की जरूरत उन्हें आते-जाते रोज ही होती है. इस
इलाके में ढूँढने पर भी इमली के पेड़ शायद हीं मिले. इसलिए, यहाँ इमली की छायामें
बैठे-बैठे अगर इमली के दो फल, या दस बीस बीज मिल गये तो दोस्ती बन भी सकती है, और
बिगड़ भी सकती है. इसलिए, बच्चों के लिए कमला के किनारे का यह इमली का पेड़ इस इलाके
का अकेला हीरो हैं !
2
बूढ़ा इमली का
पेड़ कमला नदी के किनारे का हीरो है, यह पहली बार किसने कहा था किसी को याद नहीं. बूढ़े-पुराने लोगों को हीरो कहाँ मालूम
है. लेकिन, स्कूल जाते लडकों के बीच दो लड़के- सोहन और माधव-में किसी बात पर जब ठन गयी तो नौबत कुश्ती और मुक्केबाजी पर उतर
आयी. बात तो छोटी-सी थी, लेकिन स्कूली बच्चों में मारपीट के लिए कौन-सी ज़मीन-जायदाद
का मामला चाहिये. कभी कच्चे अमरुद, पके आम, बेर और तरबूज ही ऐसी परिस्थिति पैदा कर
देते हैं जिसका जोड़ केवल महाभारत में मिलेगा. सो उस दिन जब मल्लयुद्ध होने पर ही था तो, जीतन ने बीच-बचाव
करने की कोशिश की. बीच-बचाव से वे चिढ़ गये और
युद्ध पर उतारू योद्धा जीतन पर बमक पड़े. असल में सोहन और माधव और जीतन, सभी
महावीर जी के भक्त थे और परियाग बाभन के
अखाड़ा पर सुबह-सुबह बदन में मिट्टी लगाते थे. ऐसे पहलवानी के शौक़ीन को अगर कोई
कुश्ती से रोक दे, तो जो होना था, हुआ ; दोनों जीतन पर टूट पड़े. तुम कौन होते हो
फौज़दारी से मामला सुलझाने वाले ! हम अपना
फैसला खुद करेंगे. जीतन ने कहा, ‘मालूम नहीं, हम यहाँ के हीरो हैं. पिछले तीन साल
में कर्णपुर के अखाड़े पर अपनी बराबरी का कोई मुझे पछाड़ नहीं पाया है ! वो तो मुझे
कोई लड़ने नहीं देता है कि बच्चे हो, बरना तो मैं फुचुर झा पहलवान को पछाड़ दूं !’
फुचुर झा पहलवान इस इलाके के नामी गिरामी पहलवान
थे. इतने नामी कि उनके मरे हुए तीस-चालीस साल हो गये पर, पहलवानी में उनका नाम अभी
भी चलता है. लोग कहते हैं, फुचुर झा जब भी कहीं बाहर जाने के लिए घर से निकलते थे
तो बजाफ्ता उनके गले उन तगमों की हार होती थी जो उन्होंने समय-समय पर जीती थी.
-अच्छा ?-
सोहन ने कहा.
-तो क्या ?
-तो चढ़ो इस
इमली के पेड़ पर. और गिराओ इसके फल देखें तो तुम्हारा साहस.
-‘यह क्यों
चढ़ेगा ईमली के पेड़ पर ? इस पर तो भूत रहता है.’ जीतन के दोस्त आगे आये .
अच्छा तो अब
समझे हीरो का राज. भूत के नाम पर मूत !
इस पर जीतन ने
सोहन और माधव को एक-एक तमाचा जड़ डाला. वैसे
तो दोनों इस बेइज्जती के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन वे जीतन से कुश्ती में जीत भी नहीं
सकते थे.मगर, मुँह को कौन रोके. वे एक साथ बोलने लगे, ‘सच कहा तो लग गयी ना. हमने
कौन सा झूठ कहा था. यहाँ का हीरो तो यह इमली का पेड़ ही है. हिम्मत है तो दिखाओ. महेसर
सिंह मास्टर साहब तो उस दिन भी बोले थे, ‘ भूत हमरा वहम है .’ और वैसे भी इस पेड़
पर चढ़ना कौन- सी बड़ी बात है. डालें ज़मीन से थोड़े ही ऊपर से तो निकली है . और मदनपुर
के भैंसवार तो इस पेड़ से रोज इमली तोड़ते हैं, ऐसा कौन नहीं जानता !
अब बात
हिम्मत और पहलवानी पर आ गई तो फैसला होना ही था !
3
गाँव के पछबार
टोले के सारे लड़के नवकी पोखर के भीड़ के अखाड़े पर सुबह-सुबह जाते थे. किसी को फौज
में भर्ती होकर पलटनिया होने की साध थी, तो कोई कुश्ती कर के किसी दूसरे को मजा
चखाना चाहता था. फिल्म में हीरो बनना या लडकियों को लुभाने की बात कोई करता नहीं
था; गाँव में फिल्म की बाटें नहिं होती थी और अखाड़ा जाने वालों के लिए लड़कियों से
दूर रहने की सख्त हिदायत थी.
बहरहाल, दूसरे
दिन जब जीतन वहाँ पहुँचा तो परियाग झा पोखर के दाउर पर बैठे नीम का दातून चबा रहे थे.
दूर से ही जीतन को देखकर आवाज दी: का रे ? सुना है, तू फुचुर झा को मात दे रहा है !
-
कहाँ नारद जी - जीतन
सकुचाते हुए बोला. चेला चाटियों के बीच में परियाग झा का नाम नारद जी है. लोगों का
कहना है, इस पूरे गाँव में झगड़ा लगाने में नारद जी अव्वल हैं.
-
ठीक है. आज चल. फैसल
हो ही जाय.
जीतन मन ही
मन सोचने लगा; कहाँ मैं गाँव के लडकों को एक दूसरे का सर फोड़ने से बं चाव कर रहा
था. और कहाँ इन लोनो ने मेरी चुगली कर दी. तभी उसको वहाँ से खिसकने की एक तरकीब
सूझी. बोला, नारद जी मैं जरा हलुमान जी को जल चढ़ा कर आता हूँ. आज अखाड़ा से छूटकर
सीधा बाध जाकर गेहूं कटबाना है. बाबूजी बोलते हैं, एक दिन स्कूल छूट ही जाय तो कोई
बात नहीं, गैर हाजिरी का फैन दे देंगें. और जीतन परियाग झा की बातों को अनसुना कर
के आगे बढ़ गया.
4
स्कूली
बच्चों की लड़ाई की एक खासियत है : यह लड़ाई, लड़ाई नहीं पुआल की आग होती है, जैसे ही
तेज लपटें उठतीं वैसे हीं बुझ जातीं हैं. यह लड़ाई उम्रदराज लोगों की लड़ाई जैसी नहीं
होती है. इसलिए, समझदार माँ-बाप इन लड़ाईयों में नहीं पड़ते हैं. और इमली के पेड़ के
नीचे की उस दिन की लड़ाई का भी ऐसा ही हुआ. एक नयी सुबह और एक नयी कहानी.
दूसरे दिन
लड़के दूसरी ही बात ले कर आये. लेकिन स्कूल और गाँव की लम्बी दूरी के बीच आराम से
बातें इमली के पेड़ के नीचे ही होती थी. रेत पर पैदल चलते या कमला का धार पार करते
बातें होतीं हैं, लेकिन, जिस सहूलियत से बाटें पेड़ के नीचे होतीं हैं, वैसी नहीं.
आज बदरी
पण्डित एक नयी बात लेकर आया था. बोला- सुनते हो, माँ कहती थी कि भली माँ होगी तो
इमली के पत्ते के भी खाना खिला देगी.
बदरी की बातें सुनकर सभी
खिलखिला कर हँस पड़े. इमली पत्ते के भी खाना !
बदरी बिलबिला गया. बोला माँ तो
कह रही थी. पर तुम लोग हँस लो.
5
‘बदरी माँ
कहती थी कि भली माँ होगी तो इमली के पत्ते के भी खाना खिला देगी.’ पण्डित जी क्या
सच में इमली के पत्ते लोग खातें हैं ? – नथुनी ने पण्डित जी से पूछा.
पण्डित जी मुस्कराने
लगे. पण्डित जी बनखंडी मिशिर बच्चों के चहेते हैं. जबकि इसका कोई ठिकाना नहीं कि
कब किसको डांट पड़ जाये, थप्पड़ लग जाय या मुर्गा बनना पड़े. इसका कारण है : पण्डित
जी किसी भी प्रश्न को सुनकर हँसते नहीं है. सब के बातों का जवाब उनके पास होता है.
और कहानियाँ ? कहानियों का तो पिटारा है उनके पास. क्या शेर- खरगोश, नेवला-साँप, गीदर
और सियार . उनके पास सब की कहानी होती है. और तो और पंडित जी जर्मन और जापान की
अंग्रेजों से लड़ाई की भी कहानीमें गोला-बारूद का ऐसा मिर्च-मशाला डाल कर सुनाते हैं कि बच्चों की
भूख-प्यास मिट जाती है .
खैर, आज भी पहले
के तरह, पण्डित जी थोड़े गम्भीर हुए. पर जब जवाब देना शुरू किया तो उनकी हँसी छूट
गयी. बोले, बदरी तुम्हारी माँ ने सच कहा. पर तुमने ठीक से सुना नहीं.
पण्डित जी की
बाटें सुनकर सारे बच्चे उनकी तरफ देखने लगे. तो पण्डित जी ने कहा – ‘ हाँ, बदरी की
तुम्हारी माँ ने सच कहा. भली माँ होगी तो इमली के पत्ते के नहीं, इमली के पत्ते पे भी खाना खिला देगी ! कभी देखा है , इमली के
पत्ते ?
क्यों नहीं, पण्डित
जी ! सारे बच्चे एकसाथ बोल उठे. तो फिर शंका किस बात की. इतने छोटे पत्ते और उसके
सैकड़ों हिस्से. जिस पर एक चावल रखना
मुश्किल है , उसपर खाना खिलाना ! हैं न
ताज्जुब.
-
तभी तो !
-
पण्डित जी तभी तो
तुम सब भोले हो !
-
सभी बच्चे उपर की और
देखने लगे .
-
पण्डित जी ने कहा:
अरे, भोले इसका मतलब, माँ असम्भव को संभव कर सकती है !
सभी बच्चे एक
साथ ठहाक लगा कर हँसने लगे: इतनी-सी बात !
‘हाँ. इतनी-सी
बात. और किसी ने समझा नहीं.
और उस दिन की सभा खत्म हो गयी. अब इमली का पेड़ हीरो है या
नहीं इसका फैसल हो या ना हो, इसके नीचे रोज की बैठक को कौन रोक सकता है .
......क्रमशः
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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.