Saturday, May 7, 2022

गुणी लोकनिक कथा

 

व्यंग

गुणी लोकनिक कथा

उचित बाजब अप्रिय होइत छैक, तें तं मैथिली मे कहावत छैक, उचित कहैत घर झगड़ा. एहि प्रकारक उक्ति संस्कृत सहित अनेक भाषा मे भेटत. ततबे नहिं,उचित बजलाक कारण  दण्डित हेबाक उदाहरणक कोनो कमी नहि. बहुतो विद्वान, राजनेता, आ संत उचित बजबाक फल भोगने छथि आ भोगि रहल छथि. ई सदासँ होइत आबि रहल अछि. सत्य बजने दण्डित हेबाक उदाहरण महाभारत काल  आ गैलिलियोक युग धरिमे भेटत. फलतः, बहुतो कतेको गोटे भले अनुचितक समर्थन नहिं करथि, मुदा, उचित बजितो नहि छथि. किन्तु, सब ठाम परिस्थिति एक रंग नहि. कखनो घटना व्यक्तिक जीवन होइछ आ कखनो सामाजिक वा  सार्वलौकिक.

अपन अहित होइत देखि मौन रहब व्यक्तिगत निर्णय थिक. तात्कालिक भय वा  भविष्यक चिंताक एकर कारण भए सकैछ. किन्तु, कोनोक समूहक प्रतिनिधित्वक भार लेला उत्तर अपन समूहक हितक चिंता नहि करब अनुचित थिक. अनुचित होइत देखि उचित नहि, बाजब अनुचितक समर्थन थिक.

सत्यतः, कोनो सत्य परम सत्य  नहिं होइछ. केवल जीवन आ मरण  एकर एकर अपवाद थिक. अन्यथा, सत्य, देश, काल, नीति आ  व्यवस्था-सापेक्ष होइछ ? तथापि, व्यावहारिक जीवन मे सत्य आ असत्य बीच भेद करबाक हेतु एतेक दूर जयबाक काज नहिं.

एतय प्रश्न अछि, सत्यक अवहेलनासँ स्वयं प्रभावित होइतो  लोक किएक चुप लगा जाइछ? एहन कोन बाध्यता होइछ.

की एहि प्रकारक बाध्यताक कारण राजाक नवका पोशाक (https://en.wikipedia.org/wiki/The_Emperor%27s_New_Clothes) नामक लोक कथा लिखल गेल छल. ई कथा प्रायः निरंतर असत्य बजबा में अभ्यस्त दरबारी लोकनिकें देखार करबाक हेतु लिखल गेल छल. मुदा, एहि कथाक प्रासंगिकता एखनो छैक.

कथाकें दोहरायब आवश्यक नहिं. तथापि, कहिए दी.

‘राजाक नवका पोशाक’ नामक ई कथा ओहि राजाक थिक जे अपन राज-काजक स्थान पर अपन पहिरना-ओढ़नाकें बेसी महत्व दैत रहथिन. एक दिन ठक लोकनिक एक दल, जोलहा बनि हुनका ओतय आयल आ कहलकनि जे हमरा लोकनि एहन वस्त्र बिनि सकैत छी जे विशिष्ट होइतो लोककें देखबा मे नहिं अओतैक.  राजाकें विश्वास भए गेलनि. किछु दिनक पछाति एक दिन ओ जोलहा लोकनि राजाकें नव वस्त्र पहिरयबा ले' उपस्थित भेल आ हुनका संग वस्त्र पहिरयबाक प्रपंच कयलक. राजाकें विश्वास भए गेलनि जे सत्ये अत्यंत निपुण (ठक) जोलहाक दल हुनका  नव (अदृश्य) पोशाक पहिरएबामे सफल भेल अछि. राजा ओहि चमत्कारिक परिधानकें देखयबाक लोभें अपन दरबार मे तं ओहिना बैसबे केलाह, अपन ओही (नग्न) स्वरुपमे नगर भ्रमण ले सेहो बहरा गेलाह. राजाकें नग्न देखितो  सभासद आ मंत्रीगण राजाक अप्रसन्न हेबाक भयसँ किछु नहि बजलाह. किन्तु, ओहि समूह मे उपस्थित एकटा नेना कें सब किछु आश्चर्यजंक लगलैक. ओ नेना कहि देलकनि: जा ! राजा तं नंगटे छथिन ! 

कथाक दोसर स्वरुपमे केओ निर्भीक वा सोझमतिआ नागरिक राजाकें पूछि देलकनि: ‘सरकार, की अपने दिगंबर जैन बनि गेलिएक-ए ?’

तखन अकस्मात् राजाकें  बुझबा में अयलनि जे ओ ठकल गेल छथि !

ओना मैथिलीमे एकटा आओर कहबी आओर छैक: अपन हारल बहुक मारल कतहु बाजए  !

बहुक मारलमे भले लोकलाजक भय होइक, किन्तु, जं सार्वजनिक प्रतियोगितामे बैमानीसँ अहाँ हरा देल गेल होइ, तं बजबामे कोन हानि ? सेहो जखन प्रतियोगिता सबहक सामने खुला मैदानमे भेल होइक ! एहि गप्प पर हमरा एकटा घटना मोन पड़ैत अछि. प्रायः एहुना होइत होइक आ लोक हारि मानि लिअय. तखन तं ठीके सत्य कें खिहारबाक कोन काज. जे भेल देह लगा कए मारू !  मुदा बाट तेहन  नहिं होइक तखन ?

चलू आब खीसा सुनू:

कोनो गाममे अनेक गुणी रहथि. ओतय गुणी सबहक समूहमे किछु गोटे एहनो रहथि जनिका गुणी हेबाक दाबी रहनि, मुदा, रहथि मूढ़, किन्तु, दबंग. 

मुदा, एतेक गोटेमे सबसँ बेसी गुणी  के ? एकर निर्णय करब असंभव छलैक. अनेक दिन धरि सब गोटे अपनामें खूब घोंघाउज-घमर्थनि केलनि. कोनो परिणाम नहि बहराएल. अंततः, सब गोटे सहमत भेलाह जे हमरा लोकनि अपने गामक पंडित लोकनिसँ ई  निर्णय कराबी. बड्ड बेस. 

आब भेल जे निर्णय कहिया हो. ई बड़का समस्या छल. किछु गोटे कहलखिन, पंडित लोकनिसँ  पुछैत छियनि. ओ लोकनि जखन कहताह, जायब. किन्तु, ओहि म सँ दबंग लोकनि अड़ि गेलाह. कहलखिन  आइए निर्णय करए पड़त. असलमे सब युवके छलाह आ सौराठ सभाक दिन लगिचायल रहैक. अंततः, सब गोटे हकासल पियासल एके संग गामक संस्कृत पाठशाला पर पहुँचि, पण्डित लोकनिक समक्ष उपस्थित भेलाह आ पण्डित  लोकनिकें अपना लोकनिक बीचक  समस्या कहलखिन.

पंडित लोकनि ओहि दिन बड्ड जल्दीमे रहथि. हुनका लोकनि सब गोटे संग-संग कतहु नोत खयबा ले विदा भेल रहथि. ओ लोकनि कहलखिन,  देखू काज कठिन छैक. एहन काजमे जल्दी नीक नहि. नीचेनसँ निर्णय हो से उचित. मुदा, बहुमत छलैक, जे आइए दूधक दूध आ पानिक पानि भए जाए. अंततः, जखन गामक गुणी  लोकनि पण्डित लोकनिक सबहक समक्ष कोनो विकल्प नहि छोड़लखिन तं पण्डित लोकनि एक दोसराक मुँह ताकए लगलाह. बुझलनि जे आइ कोनो उपाय नहि. अस्तु, ओ लोकनि तुरत अपना मे इशारहिसँ किछु मन्त्रणा केलनि. फलतः, पण्डित लोकनिमे सबसँ तेजस्वी पण्डितक विचार सब गोटे मानि लेलखिन. सोचलनि, विपत्तिमे कोनो बाट तं खूजल.

पण्डित लोकनिक प्रतिनिधि बाजब आरंभ केलनि: ‘बेस ! निर्णय एखने भ’ जायत. मुदा, एकटा शर्त पर.

युवक लोकनि साकांक्ष भेलाह.

वरिष्ठ पण्डित मुसुकी छोड़ैत कहलखिन, ‘ हं. निर्णय हएत. मुदा, हमरा लोकनि जे निर्णय एक बेर कए देल सबकें मानय पड़त ! मंजूर अछि ?’

गुणी लोकनि एक दोसराक मुँह ताकए लगलाह. जे लोकनि वस्तुतः गुणी रहथि, सोचलनि, चिंता कोन !  निर्णायकमे एक सँ एक पण्डित छथि. प्रतिष्ठित छथि. प्रतिष्ठित पण्डित लोकनि अपर अविश्वास करबो पापे थिक ! जे बकलेल रहथि, हुनको चिंता नहिं. सोचलनि: भाग्यं फलति सर्वत्रः, न विद्या न च पौरुषम् ! 

अस्तु, सब एक स्वरमे कहलखिन, ‘ अवश्य ! एवमस्तु .’

वरिष्ठ पण्डित सब प्रतियोगीकें एकटा वृत्त बना  विद्यालयक अंगनैमे भूमि पर  बैसय कहलखिन. दसो प्रतियोगी ठामहि पलथा मारि बैसि गेलाह. पण्डित लोकनि सेहो चतुस्पाटी पर बैसलाह. पण्डितक प्रतिनिधि अपन दहिना हाथक तर्जनीसँ प्रतियोगी लोकनिक दिस निर्देश दैत आरंभ केलनि:

औका, बौका, तीन तलौका  

लौआ लाठी, चानन काठी !

एवं क्रमे ई मंत्रोच्चार चलैत गेल. गुणी  लोकनि अवाक् देखैत रहि गेलाह. तेसर चक्कर चलैत-चलैत पण्डित जी निर्णय करैत विजेताक कान्ह पर हाथ धए हुनका उठा ठाढ़ केलनि आ विजेता घोषित केलनि !

बलेल बाबू सबसँ बकलेल होइतो विजेता गुणी घोषित भेलाह. बाँकी सब गोटे मुँह बिधुऔने घर घूरि गेलाह. किन्तु, प्रतियोगी तं छोड़ू परोपट्टामे कहियो केओ नहि बाजल जे ई अनुचित भेल.

अगिला साल हुरा-हरीक उत्सवक अवसर पर गौआ लोकनि विजेता गुणी कें माला पहिरओलनि.

ई गप्प बहुतोकें अनसोहांत लगलनि.

फलतः, गाम दिस घुरबाकाल एक गोटे सत्यतः गुणी, मुदा, पराजित प्रतियोगीक प्रति सहानुभूति देखबैत हुनका पुछलखिन, ‘अंय यौ, एहनो अन्याय भेलैए ! मुदा, अहाँ बजलिऐक किएक ने ?

प्रतियोगी दांत  निपोड़ैत कहलखिन, ‘ बताह भेलौं-ए ! हम अहीं जकाँ नेना छी. एके माघमे जाड़ नहिं जाइत छैक ! हुरा-हरी अगिलो साल हेतैक ने !!

गुणीक मित्र कें दांती लागि गेलनि. आ प्रश्न कयनिहार ठामहि भूमि पर खसि पड़लाह !    

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