Monday, September 16, 2024

पाठकीय प्रतिक्रिया : प्रियवर

 

पाठकीय प्रतिक्रिया                                             

प्रियवर
(पं. रामकृष्ण झा ‘किसुन’ क पत्राचारक संकलन )

संपादक: केदार कानन एवं रमण कुमार सिंह

प्रकाशक: किसुन संकल्प लोक, सुपौल

मूल्य : ३०० रूपैया

प्रकाशक: किसुन संकल्प लोक, किसुन कुटीर, गुदरी बजार, सुपौल-८५२१३१
 मोबाईल : ७५४२०४३९९१ / ७००४९१७५११

वितरक: मैत्रेयी प्रकाशन नई दिल्ली ११००८४
 
e-mail : maitreyipublication@gmail.com

चिट्ठी-पत्री लिखब लोक कहिया आरंभ केलक तकर ठीक-ठीक अनुमान करब कठिन. मुदा, पचास-साठि वर्ष, पूर्व थोड़बो दूरी पर लोक हथचिट्ठीसँ  वा डाक द्वारा चिट्ठीसँ एक दोसरासँ संपर्क रखैत छल. कालक्रमे चिट्ठी लिखब एकटाक कलाक रूप सेहो लनेने छल. मुदा, देखिते-देखैत पछिला किछु वर्षमे चिट्ठी इतिहास भए गेल. एहिसँ साहित्यक हानि भेलैए. कारण, साहित्यकार लोकनिक बीचक पत्राचारमे कुशल समाचारक अतिरिक्त बहुतो एहन किछु रहैत छलैक, जकर ऐतिहासिक महत्व होइक. खांटी पारिवारिक आ  सामाजिक-साहित्यिक संबंधक सुगन्धिक अतिरिक्त साहित्यकार लोकनिक  पत्राचारमे साहित्यक इतिहासक नेओ, निर्माणक  भव्य स्वरुप तथा अनेक साहित्यकारक जीवनक यथार्थ सेहो रहैत छलैक. ओहिमे नव रचनाक योजना, प्रकाशन, पाठकीय प्रतिक्रिया, साहित्यक राजनीति, जीवनक मर्म, आ एक दोसराक संग व्यक्तिगत संबंधक झलक सेहो रहैक छलैक.
एतय चर्चा विषय थिक
, किसुन संकल्प लोक, सुपौलसँ प्रकाशित टटका पोथी, ‘प्रियवर’. ई पोथी पं. रामकृष्ण झाकिसुनजीक पत्रक संकलन थिक. संकलनक अपन-अपन भूमिकामे केदार कानन एवं रमण कुमार सिंह ‘प्रियवर’क  प्रकाशन आ प्रासंगिकता पर अभिमत स्पष्ट कयने छथि.
 एहि लेखमे ‘प्रियवर’मे संकलित सामग्रीक विशिष्ट विन्दुकें संक्षेपमे पाठकक सोझाँ प्रस्तुत करबाक प्रयास करैत, पत्र-साहित्यक संरक्षण, संकलन, प्रकाशनमे सूचना प्रोद्योगिकी तथा मोबाइल फ़ोन एवं कंप्यूटरक उपयोगक उपादेयता पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत करय चाहैत छी.

प्रियवरतीन भाग, एवं परिशिष्टमे विभक्त अछि. भाग एक, दू एवं तीनमे क्रमशःकिसुन जीक पत्र लेखकक नाम’, ‘लेखक लोकनिक पत्र किसुन जीक नाम’, एवं हिन्दीक पत्र संकलित अछि. तीन खण्डमे विभक्त परिशिष्टमे किसुनजीक लिखल संपादकीय, पुस्तक-परिचय, लेख, कविता एवं यात्रा-संस्मरणक अतिरिक्त मैथिलीएवं हिन्दीक किछु समाचार तथा किसुन जीक निधनक पछातिक शोक-संदेश संकलित अछि. एहि लेखमे परिशिष्टक सार-संक्षेप नहि भेटत.
ई कहब अतिशयोक्ति नहि हएत, हिन्दी-मैथिलीक साहित्यकार बीच किसुन जीक पत्राचारक परिधि बहुत पैघ रहनि. तें ‘प्रियवर’मे  प्रायः बहुसंख्यक प्रतिष्ठित साहित्यकारक अतिरिक्त, हिन्दी-मैथिली अनेक अल्पपरिचित एवं नवोदित साहित्यकारक पत्र भेटत. स्मरण रखबाक थिक, प्रकाशित पत्र किसुनजीक कुल पत्र नहि थिक. तथापि, विषय-वस्तुक महत्व आ साहित्यमे कृतीक स्थान एवं  पत्रमे विश्लेषित वा वर्णित विषयक प्रासंगिकताकें ध्यानमे रखैत, बानगीक रूपमे किछु पत्रक सीमित अंश एतय प्रस्तुत करैत छी, जाहिसँ पोथीक उपादेयता पर प्रकाश देल जा सकय. एतय हम स्पष्ट कए दी जे एहि विधामे हमरा कोनो दक्षता नहि अछि. अस्तु, एहि पुस्तकमे निहित संपदाक अनुमानक हेतुप्रियवरपढ़ब आवश्यक.
एतय प्रस्तुत अछि साहित्यकार लोकनिक नामे किसुन जीक प्रत्रसँ चुनल किछु प्रसंग, उक्ति, आ हुनक जीवनक अनुभूत सत्य.
(‘टापूक निवासी’) किसुन जीक पहिल पत्र अमर नामे जीक थिक. पत्राचारमे हिन्दी वा मैथिलीक प्रयोग हो, किसुनजीक ताहि दुविधाक संग, एहिमे दुनू भाषाक हितक प्रति किसुनजीक चिंताक संकेत सेहो भेटैछ. पत्र सबमे किसुन जीक पेटक रोगक चर्चा सेहो अछि जे १९४७ हि मे आरंभ भेल आ अंततः किसुन जीकें संगहि नेने चल गेलनि. 

आगूक पत्रमें किसुन जी १९४९ हि इसवीसँ विलियम्स स्कूल, सुपौलमे पाक्षिक कविता पाठक आयोजनक सूचना दैत छथिन. संगहि अछि, किसुन जीक कृतिइन्द्रधनुषप्रकाशित हेबाक सूचना. संगहि भेटैत अछि मैथिली पत्र पत्रिकासँ किसुन जीक मोहभंगक संकेत; ओ लिखैत छथि, ‘ मैथिलीक कोनो मासिक वा पाक्षिक कोनो तरहक  पत्रिका पर निष्ठा नहि रहल’. किएक से अनुमानक विषय थिक. २७.३. ५० क ओही पत्रमे किसुनजी इहो लिखैत छथि जेहमरा लोकनिकें (मैथिलीक हेतु )  एक क्रांति करक आवश्यकता अछि’.  ई तहियाक गप थिक जहिया दरभंगासँ साँझ पाँच बजे चलि कए तीन-चारि ठाम ट्रेन बदलि, सोलह घंटाक यात्राक पछाति, दोसर दिन नौ बजे लोक सुपौल पहुँचैत छल!
 १७.७.५८क हुनक पत्रसँ इहो बुझबामे अबैछ जे तहिया (१९५८) इसवीमे जखन लोक साधनहीन छल, तहियो (मित्रहुसँ) लोक किताब कीनि कए पढ़ैत छल!

मुदा
, जीवकांतक नामे किसुन जीक पत्र सोझे मठाधीश लोकनिक प्रति आक्रोशसँ आरंभ होइछ, जाहिमे किसुनजी  ‘पुरानक पिचायल, मूइल, सड़ल लहासकेंधूबनाकए नाम ऊँच कयनिहार, डाक्टरेट लेनिहार दलपतिलोकनिककाटसँ उद्वेलित भए एक कविता लिखबाक चर्चा करैत छथि. मुदा, जीवकांतहिक नामक पत्रमे नव कविताक पूर्ण व्याख्या, स्वीकार, तकर विश्लेषण,आ संस्थापन-मूल्यांकनक गप उठैत अछि. एही पत्रमे ओ वैश्विक समस्याकें कवितामे अनबाक अनिवार्यताक गप सेहो करैत छथि, यद्यपि तहियो ओ (रोगग्रस्त भए)ओछैन धेनहि’  छथि! १९ .१.६७ क किसुनजीक पत्रमे नव कविता पर निबंध संग्रहक रूप-रेखा आ लेखक लोकनिक नाम प्रस्तावित छैक. मुदा, जीवकांतक नाम हिनक अन्य पत्रमे एक ठाम किसुनजीक तेवरसँ हठात् साक्षात्कार होइछ जाहिमेप्रेम न बाड़ी उपजै...’  लिखनिहार कबीरकें गारि पढ़ैत किसुनजी लुच्चाकहि कबीरक उपहास करैत छथिन, आ प्रतिवादमे नव दृष्टिए अपन उक्ति सुनबैत छथिन. तथापि, किसुन जी ओहि कविताकें, प्रकाशित कएव्यर्थक चर्चानहि बढ़बय चाहैत छथि! मुदा, बंचब संभव नहि. कारण, अगिले पत्रमे ओ दुर्गानाथ झा श्रीशक ओहि आलेखक गप करैत छथि, जे पत्र श्रीश  नव कवि सबके गरियबैतलिखि कए पठौने  रहथिन.

मुदा, चिट्ठीक सबहक बीच, अमरजीक चिठ्ठीसँ हुनक उक्तिअसलमे पूछह तँ आब तँ कखनहुँ  वितृष्णा होइत अछि. एहि मैथिली-मैथिलीमे जीवन भरि लागल रहलहुँ, अपन भविष्यक हत्या तँ भेवे कयल, धियोपुताक भविष्यकें चौपट्ट कए देलिऐकसेहो उद्धृत अछि. अंततः ई उक्ति केवल समयसँ पूर्व अमरजीक उत्ताप प्रमाणित भेल.
 एक अन्य पत्र ( २.८.६८) मे दरभंगाबला सबहक द्वारा सहरसा जिलाक उपेक्षाक गप सेहो अभरल. ई सत्य नहि थिक, से के कहत? संगहि, जाहि अंतरंगतासँ जीवकांतक संग किसुनजी  पत्राचार होइत छलनि ताहीमे एक ठाम एहनो सत्य सेहो अभिव्यक्त होइछ जे, ‘ पत्र हीन नग्न गाछ  ‘दू पत्रकें नहि , यात्री जी आ व्यास जी कें ( कृति नहि व्यक्ति कें ) अकादेमी पुरस्कृत कयलक अछि. यैह मैथिली साहित्यक स्थिति-मापन थिक.एकर चर्चा मोहन भरद्वाजक नामें ७.३.७० कलिखल एक अन्य पत्रमे सेहो भेल अछि, जतय मैथिलीक जंगलमेपुरना गलित नखदंत होइतहु मारान्तक सिंहसबहक चर्चा अछि. पछाति ’प्रियवर’मे अन्यत्र संकलित एक पत्रमे मोहन भारद्वाज सेहो एहि विषय पर दुविधाक संकेत व्यक्त कयने छथि.

 मुदा, चिट्ठी सबमे सबसँ मार्मिक लागल, किसुन जीक उक्तिहोइए अर्थ सबसँ बेसी जरूरी थिक, व्यर्थ थिक शब्दक खेती’. किसुन जीक ई शब्द आइओ कतेक प्रासंगिक अछि, से ओएह बुझैत छथि, जे मसिजीवी भए गुजर करबाक अव्यवहारिक मनोरथ पालैत पराजित भए जाइत छथि. कारण, मैथिली मे लेखन बैसाड़ीक अनमना भए सकैछ, जीविकाक साधन नहि.       
              ११.६.७० क दिन कुर्जी अस्पताल पटनासँ कविता-जकाँ लिखल किसुनजीक पत्र, एहि संकलनमे जीवकांतक नामे किसुन जीक अंतिम पत्र थिक, जाहिमे ओ रोग, जीवन, आ मृत्युकें निरपेक्ष भावें देखैत, ओ गीताक एक श्लोक ( हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं ) कें उद्धृत करैत ऑपरेशनक सफलता आ विफलताकें तराजूके दू पलड़ा पर राखि, रोगमुक्ति आ मृत्यु, दुनू परिणामकें समान रूपें लाभकारी-जकाँ प्रस्तुत करैत छथि. ई प्रायः रोगसँ थाकल युवकक विवशता थिक, मृत्युकें वरण करबाक गृहस्थक मनोरथ वा वैराग्य नहि, से १२.६.७० क परिवारजनलोकनिक  (वीसो, सुशील, मन्नू आदिकें ) नामें अस्पतालक वार्डसँ पेटक ऑपरेशनससँ पहिने लिखल हिनक पत्रसँ स्पष्ट होइछ, जाहिमे किसुन जीभगवती सब नीके करतीहक विश्वास व्यक्त करैत छथि.

‘प्रियवर’क  दोसर खण्ड-लेखक लोकनिक पत्र किसुन जीक नाम- सुमन जीक पत्रसँ आरंभ होइछ. एहि सबमे पहिले पत्रमे सुमन जीक उक्ति, ‘मातृभाषा द्वारा शिक्षाक प्रसारमे सांस्कृतिक अभ्युदयक संग आर्थिको लाभक दृष्टि छैकमैथिलीक माध्यमसँ  शिक्षा प्रसारक आर्थिक पक्षक संबंधमे हुनक चिंतनकें फरिच्छ करैछ.
आगू अबैत छथि किरणजी. २०.४. ५६ क, सरिसबसँ किसुन जीक नामे लिखल किरण जीक पत्र, एहि संकलनमे हुनक पहिले पत्र थिक. एहि पत्रमे किरणजी किसुन जीक स्वास्थ्य पर चिंता व्यक्त करैत, ध्यानपूर्वक स्वास्थ्यक रक्षा करबाक सलाह दैत किरण जी कहैत छथिन, ‘अहाँक स्वास्थ्य अपने टा हेतु नहि, मिथिलाओ हेतु अमूल्य अछि. अस्तु, वयसक अंतरक अछैतो, दुनू व्यक्तिक बीच आत्मीय आ परस्पर आदरक संबंध रहनि, से किरण जीक  दोसरो पत्रसँ बूझि पड़ैछ ; किरणजी एक पत्र मैथिली आन्दोलनसँ अपन मोहभंग एवं पीड़ा स्पष्ट करैत मैथिली भाषाक राजनितिक एक दारुण पक्ष उद्घाटित करैत लिखैत छथिन:
 ‘...... मैथिलीक क्षेत्र मे आतंरिक संघर्षमे हमरा क्षति भेल, वैयक्तिक. संघर्ष मे विजय भेटल. सरिसब उजानक भाषाकें स्टैण्डर्ड माननिहार सहरसाकें मैथिलीक केंद्र घोषित कयलक से कि अनेरे ?
 मुदा, जत भगत सुभाष कें मारि नेहरु वर्ग कें स्वर दय भारत मित्र अंगरेज बनल आ नेहरुलोकनि ओकरा मित्र मानि लेल, तेहने नीति ओ सब अपनौलनि. हमरा हत्या अपना मने क कय उदार बनि जाइत गेलाह. आ मैथिलीक सहित्यकार – जनिका निमित्त हमर संघर्ष छल – से सभ हुनक आरती करय लगलाह- एहि बातक चोट हमरा हृदय पर बड़ अछि मुदा तें आस्था नहि छोड़ब. हमर हत्या पर आन साहित्यकार फुलओ, भेल कोन थोड़ ?’

एहि चिट्ठी सबहक बीच किसुन  जी द्वारा मैथिली पुस्तकालयक उद्घाटन, सुधांशुशेखरचौधरीकमिथिलापत्रक प्रकाशनक आरंभ, मिथिला मिहिरक संपादकक रूपें हुनकधर्मयुगसाप्ताहिक हिन्दुस्तानकें ध्यानमे रखैतमिथिला मिहिरकें बिहारक सर्वश्रेष्ठ साप्ताहिक सिद्ध करबाक हेतुसोंगर बनबाक निवेदन सहित १९६० ई. पत्र अछि.

‘प्रियवर’मे किसुनजीक नाम  शिष्य सकेतानन्दक अनेक पत्र संकलित अछि. एहिमे सकेतानन्दक एक पैघ पत्र (२६.११.६४ क )मे मैथिलीमे वर्तनीक विभिन्नता, व्याकरणक अभाव, लेखनक स्तरहीनता, संस्कृतनिष्ठ  भाषाक प्रभाव, आ गुटबाजीक अतिरिक्त साहित्य अकादेमी द्वारा भाषाक रूपमे मैथिलीक स्वीकृतिक अतिरिक्त मैथिलीमे लोकप्रियरुचिक पत्रिकाक प्रकाशनक आवश्यकताकें रेखंकित कयने छथि. ओही पत्रमे प्रभास कुमार चौधरीक लेखनसँ मैथिलीक हित, तथा  मैथिलीमेमहावीर प्रसाद द्विवेदी’- सन व्यक्तिक अभावक चर्चा सेहो अछि. ई सब विषय  साठि बरखक बादहु आइओ प्रासंगिक बूझि पड़ैछ.

एहि संकलनमे धूमकेतुक केवल तीन गोट पत्र छनि. मुदा, विषय एवं निहित संवाद हमरा अत्यंत गंभीर लागल. एहिमे कथाक परिभाषा पर हुनक दृष्टि सर्वथा मौलिक बूझि पड़ल. तीन पैराग्राफक पहिल पत्रमे  धूमकेतु कहैत छथि, ‘श्रेष्ठ कथा वैह थिक जाहिमे घटनाक अंतसमे प्रभावित क्षणिक द्वन्दके पकड़बाक दृष्टि आ ओकर तीब्रताकें भोगबाक सामर्थ्य आ धैर्य व्यक्त भेल होइक. ......हमर खिस्साकें अही पृष्ठभूमि पर आँकल जाय.
 हम स्वयं धूमकेतुकें मैथिलीक अद्वितीय कथाकार मानैत छियनि. हुनक कथाक मूल्यांकन हएब एखन बाँकीए अछि. मुदा, धूमकेतुक चिठ्ठीमे  एकटा एहन आओर गप अछि जाहिसँ मैथिलीक माध्यमे गुजर कयनिहार लोकनि धरि आइओ सर्वथा निरपेक्ष छथि. अपन चिठ्ठीमे धूमकेतु, आम चुनावसँ पहिने एक सार्वजानिक आयोजनमेराधानन्दन झा एवं ललित (नारायण मिश्र ) बाबूक संग प्रमुख मैथिली साहित्यकारक सोझाँ मैथिलीक संवैधानिक मान्यता, सदनमे मैथिलीक हेतु एवं मैथिलीमे बजनिहार राजनेताक चुनाव, तथा उत्तर बिहारमे रेडियो स्टेशनक स्थापनाकें चुनावी मुद्दा बना कांग्रेस पार्टीकें धमकी देबाक, एवं मैथिली एवं उर्दूक मुद्दाक चर्चा कयने छथि.

पत्र सबहक बीच आगाँ एक नाम अबैछ उपेन्द्रक. तहियाक ई युवक किसुनजीक संग समताक आधार पर संवाद करैत छथि.आत्मनेपदकिसुनजी पूर्णतःरिप्रेजेंटनहि करैत छनि’  वाएहि संग्रह (आत्मनेपद)कें केओ खिच्चड़ि सेहो कहि सकैछकिसुनजीकें से धरि कहबाक धृष्टता तं उपेन्द्र करिते छथि, ओ हुनका  प्रकाशनक लेल पठाओल अपन कथाकेंपुश-अपनहि करबाक हेतु निवेदन सेहो करैत छथिन. मुदा, ओहूसँ बेबाक अछि उपेन्द्रक १७.९.६९ क चिट्ठी जाहिमे रेडिओ प्रसारण पर किसुन जीक कविता सुनि आओर मुखर भए उठल छथि. लगैत अछि, मैथिली साहित्यमेस्तुतिक परंपराक विपरीत, ई कवि आलोचनाकें निन्दा नहि बूझि निर्भीकतासँ अपन पक्ष रखबाक अभ्यस्त रहथि. पछाति उपेन्द्र पुरान पीढ़ीक मैथिलीक कविकेंभोजखौकाकहैत ‘सड़ि मरि जयबाक’ कामना करैत छथि, आ मैथिलीमे रचनाक सम्यक मूल्यांकनक अभाव एवं ‘(मिथिला) मिहिर’सँ नहि पटबाक कारण लेखनसँ सन्यास लेबाक निर्णयक सूचना सेहो किसुन जीकें दैत छथिन. रोचक थिक, यात्री-नागार्जुन अपन पत्रमे किसुन जीकआत्मनेपदकेंविलक्षण एवं स्फूर्तिमयक संज्ञा दैत छथिन.
 उपेन्द्रहिक जोड़ीदार गंगानाथ गंगेश अपन पत्र सबमेसंकल्पपत्रिकामे प्रकाशनक हेतु एक कथा पठबैत पत्रिकाक स्तरीयताक निर्बाहक हेतु अनेक सुझाव दैत, पत्रिकाक सदस्यताक हेतु व्यक्तिक दिससँ सदस्यता शुल्क पठयबाक सूचना सेहो दैत छथिन.  पछाति ओ उपेन्द्रक संग एक कविता संग्रहक रचनाक प्रकाशनक योजनाक सूचना दैत, ओहो मैथिली पत्रिका सबसँ अपन उदासीनताक चर्चा सेहो कहैत छथिन.

एहि पत्र सबमे आओर अनेक साहित्यकार ( रामदेव झा, वीरेंद्र मल्लिक, आर. के. रमण, भद्रनाथ, हितेन्द्र नारायण चौधरी इत्यादि ) अपन पत्रमे भिन्न-भिन्न विषयक - प्रकाशन योजना, रचना पठयबाक सूचना, जिला साहित्यकार सम्मेलनमे सहभागिता, वा सहभागी नहि भए सकबाक खेद, साहित्यिक आयोजनक हेतु हकार/निमंत्रणक - अतिरिक्त अन्य विविध विषयक चर्चा करैत छथि.  एहि सबहक बीच अछि, हंसराज (२.६.६८ क) एक आत्मीय पत्र जाहिमे किसुन जीक रोग पर हुनक दार्शनिक दृष्टि निक्षेप अजगुत लागल.
एक पत्रमे रमानाथ झा अभिनन्दन ग्रंथ समितिक मंत्रीक रूपे दुर्गानाथ झा श्रीशक १९६८ ई, एक पत्रमे  ‘सहरसा ओ तकर परिसरक मैथिली साहित्य सेवापर आलेखक आग्रह सेहो अछि. पछाति ओही पत्रमेजे देबय चाहथितनिकासँ सहयोगक चर्चा सेहो अछि: सर्वविदित अछि, किसुन जी अध्यापनक अतिरिक्त साहित्यिक प्रकाशन, भाषाक प्रचार -प्रसार, साहित्यिक-सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन, एवं पत्रकारिताक माध्यमसँ सबहक सहायता करथि, अनेक स्थानक यात्रा करथि, समारोहमे सहभागी होथि.
            ‘प्रियवर
मे मैथिलीक जुझारू सेनानी बाबू साहेब चौधरीक अनेको पत्र सेहो अछि. स्वतः विषय-वस्तु मैथिलीक हेतु आन्दोलन, भिन्न-भिन्न साहित्यिक आयोजन एवं प्रकाशनसँ संबंधित अछि.
 पत्र सबहक एही बंडलमे आगू भेटल मायानाथ मिश्रक एक पैघ पत्र जे मैथिली साहित्यमे प्रकाशनक व्यवसायक एक एहन  अन्हार पक्षकें उजागर करैछ, जाहि पर तहिया हठें पाठकक दृष्टि नहि पड़ैत छलनि. यद्यपि थिक तं इहो इतिहासे, मुदा,एकपक्षीय बयानकें सत्य मानि बैसब पूर्वाग्रहसँ कम नहि. अस्तु, जे अछि, से अछि. ततबे.

किसुनजीक नाम यात्री-नागार्जुनक पत्रमे अनेक विषयक चर्चा भेटत. एक बेर (१७.६.७० क पत्रमे) ओ मैथिली साहित्यमेप्रखर वामपंथी साहित्यक आवश्यकता पर जोर दैत कहैत छथि, ‘भाषाक समस्या जाधरि भूमिहीन वर्ग-अछोप समाज-शोषित समाजक दैनिंदिन संघर्ष सँ समन्वित नहि हेतइ ताधरि उपरे उपर एहिना दहाइत भसिआइत रहती मैथिली....’ . ई आइओ प्रासंगिक अछि.

पत्रक श्रृंखलामे किसुन जीक नाम जीवकांतक अनेक पैघ-छोट पत्र  संकलित अछि. ई कहब पुनरुक्ति हएत जे जीवकांत पत्राचारमे कीर्तिमान स्थापित कयनिहार एहन साहित्यकार छलाह जे अपन पत्र सबमे अनेक विषय पर विस्तृत विवेचना आ विश्लेषणक अभ्यासी रहथि. अस्तु, जीवकांतक पत्र मैथिली साहित्यमे अनेक अनुसंधानक स्वतंत्र संपदा थिक, जे क्रमशः सोझाँ आओत से आशा करैत छी.

पत्रकारिता इतिहासक प्रथम ड्राफ्ट मानल जाइछ. पत्र सेहो मनुष्य आ समाजक जीवनक इतिहासकफर्स्ट ड्राफ्टथिक. तहिना, साहित्यकार लोकनिक बीचक पत्राचार जं साहित्यक इतिहास हेतु एक प्रकारक कच्चा माल थिक, अनुसंधेताक हेतु पूँजी थिक, तं ‘प्रियवर’-सन संकलित सामग्री थारीमे सांठल दिव्य भोजन. कठिन परिश्रमसँ, किसुनजी पत्राचारक सम्पूर्ण उपलब्ध संपदाक एक ठाम संकलन मैथिली साहित्यक हेतु संपादकद्वय, केदार कानन एवं रमण कुमार सिंह,क बड़का उपहार थिक.एहि हेतु ई लोकनि साधुवादक पात्र थिकाह. एहि संकलनमे प्रायः हिन्दी-मैथिलीक, किसुन जीक कोनो समकालीन प्रायः छूटल  नहि छथि. मुदा, ई लोकनि ‘प्रियवर’ क शीर्षकक संग, पं. रामकृष्ण झा ‘किसुन’ क पत्राचारक संकलन- सदृश कोनो उपनाम किएक नहि देलखिन से आश्चर्य. उपनाम देने पुस्तकालयमे सूचीकरण (indexing) में सुविधा होइतैक, आ पाठककें पोथी ताकब सुलभ होइतैक.
 स्मरणीय थिक, पत्रक संकलन-संपादन आ प्रकाशन श्रमसाध्य कार्य थिक. एहि हेतु श्रम, अर्थ एवं समय चाही. मुदा, सूचना प्रोद्योगिकीक उपकरणक प्रयोगसँ, केवल मोबाइल फोनसँ पत्र एवं अन्य पाण्डुलिपिकें स्कैन कए पत्रकें कम्प्यूटरमे संकलित कय नष्ट हेबासँ  बचाओल जा सकैछ, सामग्री दूर-दूर धरि पाठककें उपलब्ध कराओल जा सकैछ. ई सामग्रीक संरक्षणक हेतु सुलभ विधि थिक. अनेको व्यक्तिक एहन प्रयास एकक बोझकें दसक लाठी बना, साहित्यक संपदाकें परवर्ती पीढ़ीक हेतु सुरक्षित कयल जा सकैछ. केवल एतबा प्रयाससँ साहित्यक सामग्रीकें सुरक्षित राखल जा सकैछ.

Tuesday, September 10, 2024

संस्मरणक सार्थकता

 

संस्मरणक सार्थकता

संस्मरण की थिक ? किछु इतिहास आ किछु लेखा जोखा . मनुक्खसँ  समाज बनैछ. समाजक इतिहास, देश-दुनियाक इतिहास होइछ. तें मनुक्खक इतिहास, वृहत् इतिहासक आधारशिला होइछ. मनुक्ख के छलाह, ओ समाजले की-की केलनि, ई  सब प्रश्न व्यक्तिक जीवनकें सामाजिक सार्थकता प्रदान करैत छैक . मुदा जं कोनो मनुख्यक जीवन सार्वजनिक हितक नहिओ होइक , सार्वजानिक जीवनक हिस्सा नहिओ होइक, तथापि 'मानुस जनम अनूप' तं थिकैक. तें अदनो मनुक्खक जीवन समाजक निरंतर गतिमान धाराक जल तं थिके. भले एक बुन्न जल, वा एकटा जिनगी क कोनो अपन स्वतंत्र अस्तित्व नहि होइक. मुदा, बूंदे- बूंदेसँ  तं समुद्र बनैछ .अस्तु, हमर संस्मरण भले समुद्रक बून्दे थिक, आइ हम अपन अनुभवकें मोन पाड़बामे प्रवृत भेलहुँ-ए.

भारतक स्वतन्त्रता प्राप्तिक किछुए वर्ष पछाति हमरा लोकनिक जन्म भेल छल . देशमे नव स्फूर्ति आ आशा जागल छलैक. क्रमशः की भेलैक आ भ’ रहल छैक से सर्वविदित अछि. फलतः, आब स्वतंत्रताक ७७  वर्षक पछाति, लोकक मनमे आशाक संग निराशा आ अविश्वास सेहो जड़ि जमा चुकल छैक . एतबे दिनमे आशाक संग निराशा मिज्झर भए गेलैक ? मनुष्यमे एहन कोन परिवर्तन भेलैये जे लोकके समाज आ संविधान परसँ  विश्वास उठि गेलैये. एहि  देशकेर ओहि  वर्ग, जकरा पर पहिने ककरो अविश्वास नहि छलैक ओकर विरुद्ध  अविश्वासक बीआ रोपबाक प्रयास भ’ रहल अछि. एहि सब अभियानसँ  समाजपर कोन आ केहन  असरि पड़तैक से सोचबाक विषय थिक . तथापि, हम भारतेंदु हरिश्चंदकेर ओहि उक्तिसँ  सहमत नहि छी जाहिमे शताब्दी पूर्व ओ कहने रहथिन:

सब भांति देव प्रतिकूल एहि नाशा, 

अब तजहु वीरवर भारत की सब आशा

एखनहु पूर्ण आशा अछि. हमरालोकनि निरंतर प्रगतिक दिस अग्रसर छी; हमरा लोकनि सफल हयब.                     हमर अपन जीवन यात्रा मिथिलाक विशुद्ध देहातसँ  आरम्भ भेल छल . पढ़लहुँ  चिकित्सा शाश्त्र आ अंततः सेना चिकित्सा कोर केर सेवाक प्रसादें चरितार्थ भेल भेल, 'अग्रतः सकलं शास्त्रं, पृष्ठतः सशरं धनुः'. भारतीय  सेनाक नौकरी, आ पछाति असैनिक सेवाक प्रतापें  सम्पूर्ण देशकें लगसँ  देखबाक अवसर भेटल. अनुभव कहैत अछि , किछु-किछु तं  सम्पूर्ण भारतमे एके रंग छैक मुदा किछु-किछु सर्वथा भिन्न . भाषा सब ठाम भिन्न-भिन्न छै , मुदा, गरीब-गुरुबाक  स्वरुप एके रंग . आधारभूत संरचना आ प्रशासनमे भिन्नता छैक, मुदा, राजनेता आ भ्रष्टाचार  एके रंग. हवा -पानिमे भिन्नता छै, देवी देवताक स्वरुप भिन्न-भिन्न छनि, मुदा, विश्वास आ  धर्मभीरुता एके रंग . मुदा एकटा रोग सब ठाम एके रंग पसरि  रहलैए : सार्वजानिक चिकित्सा व्यवस्थामे सरकारक घटैत भागीदारी आ प्राइवेट स्वास्थ्य सेवाक प्रसारक संग बढ़ैत बेईमानी . ई परिवर्तन आम आदमीक जीवनकें दुस्कर तं बनाइये रहलैके, लोककें आब वकीले- मुख़्तार-जकाँ डाक्टरसँ  भय होमय लगलैए. मुदा करत की ? थिकाह तं  'वैद्यो नारायणो हरिः' ! मुदा, लगैत अछि, कनिएक दिनमे वैद्य आ बनियाँ, डाक्टर आ डकैत एके पांतीमे बैसाओल जयताह, से असम्भव नहि . पहिनहुँ   तं केओ कहनहि  छथिन:


वैद्यराज नमस्तुभ्यं यमराजसहोदर ।

यमः हरति प्राणाः , वैद्यो प्राणाः धनानि च !

अस्तु,  अहाँ वैद्यकें बूझी नारायण-हरि वा यम,  आब हमर (सैनिक-वैद्यक) जीवनक अनुभवक प्रतीक्षा करू. हमर अनुभव जतय अहाँक अनुभवक संग पूरैत अछि , ओ समाजक सामान्य अनुभव भेल . जतय हमर आ अहाँक अनुभव फूट -फूट बाट धेने आगू बढ़इत अछि, कहबाले हमरा लग किछु नव अवश्य अछि. आ सएह थिक एहि संस्मरणक नवीनता वा सार्थकता.

डायरीक एक पन्ना : पांडिचेरीसँ बंगलोर

 

पांडिचेरीसँ बंगलोर

2007 में भारतीय सेनासँ ऐच्छिक सेवानिवृत्ति सोचल विचारल निर्णय छल. ओकर आगाँ पोखरा, नेपालक  साढ़े पांच वर्षक प्रवास वरदान-जकाँ छल ; अन्नपूर्णा पर्वतमालाक सोझाँ सेती नदीक कछेर पर पोखराक मृदु आ स्वास्थ्यवर्धक जलवायुमे वास. किन्तु, 2012 मे पोखरासँ पांडिचेरी जयबाक नेयारक निर्णय स्वाभाविके छल – स्वदेश वापसी आ आर्थिक लाभ दुनू. मुदा, एहि बेर पांडिचेरीसँ बंगलोरक यात्रा पोखरासँ  पांडिचेरीक यात्रासँ भिन्न छल. मेडिकल फील्डमें लगातार करीब एकतालीस  वर्षक सेवाक पछाति पहिल बेर हम स्वेच्छासँ त्यागपत्र दए, पूर्णतः सेवानिवृत्त-जकाँ बंगलोर बिदा भेल रही. किन्तु, एहि लेल हमरा ने कोनो पश्चाताप छल, आ ने कोनो दुःख. चिकित्सकक रूप में लम्बा अवधि धरि सेना आ सेनासँ बाहर सम्पूर्ण देश आ विदेशमें सेवा कयल. सबठाम लोकक आदर आ प्रेम भेटल, चाहे लद्दाख हो वा लखनऊ. मेडिकल कालेजमे सेहो लगातार तेरह वर्षसँ  अधिक प्रोफेसरक पद पर काज कयल आ   नेत्र-चिकित्सा पढ़यबाक मनोरथ सेहो पूर भए गेल छल.

सत्यतः, जं सेनासँ ऐच्छिक सेवानिवृत्तिकें सेहो जोड़ि दी, तं, महात्मा गाँधी मेडिकल कालेज, पांडिचेरी लगा कय ई हमर तेसर त्यागपत्र थिक. किन्तु, एहि बेरुक त्यागपत्रक परिस्थिति आ मनोभाव आन बेरसँ सर्वथा भिन्न छल; विगत एक वर्षक कोरोना-कालमे प्राण तं बंचि गेल, किन्तु, परिवारजनक ह्रदयमे कोरोनाक  निरंतर भय अवघात नहि केलक से कोना कहब. यद्यपि, कोरोना कालमे सत्यतः हमरा अपना कहिओ प्राणक भय नहि भेल.    जे किछु.पांडिचेरी छोड़बाक निर्णय भेलैक. पांडिचेरीसँ बंगलोर जयबाक हमर ई निर्णय हमर सहकर्मी लोकनिकें अचानक-जकाँ बूझि पड़लनि. आ महात्मा गांधी मेडिकल  कालेजमे हमर ई  निर्णय सत्यतः,सबकें चकित केलकनि. विभागाध्यक्ष तं कहलनि, ‘ I am shocked !’ किन्तु, हमर त्यागपत्र अचानक छल नहि. हं, पांडिचेर कें त्यागि, बंगलोर अयबाक निर्णय 9/07/2020 क राति, एक विपरीत परिस्थितिमे, अचानक अवश्य भेल छल. तथापि, निर्णयक आकस्मिकतासँ ने हम क्षुब्ध रही, आ ने चकित. एहि निर्णय ले हमरा कोनो पश्चाताप सेहो, ने तहिया छल, आ ने आइ अछि. कतेको आकस्मिक घटनामे अनेक नीक अवसर नुकायल रहैत छैक, से के नहि मानत. ताहि परसँ हमर निरंतर आशावादी प्रवृत्ति हमर कल्पनाकें हठे कोनो आसन्न विप्पत्तिक दिस किन्नहु नहि जाय दैत अछि. हमर इएह सोच हमर संजीवनी थिक !   सर्वविदित अछि, कोरोना कालमे जखन अनायास करोड़ों लोकक जीविका चल गेलैये, तखन स्वेच्छासँ जीविका छोड़ब विरोधाभास-सन  प्रतीत होइछ. किन्तु, उचित-अनुचित केर कोनो एकटा मापदंड नहि. प्रत्येक निर्णय आ विचारकें परिस्थितिक परिप्रेक्ष्यमें देखबाक थिक. किन्तु, से आन कोना देखत. तथापि, हमर सहकर्मी, अस्पतालक मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट, आ विश्वविद्यालयक उच्चतम प्रशासनिक अधिकारी लोकनि हमरा निर्णय बदलबाक हेतु आग्रह अवश्य केलनि. विशेषतः एहि हेतु जे हमरा मेडिकल टीचिंगमे एखनो पांच वर्षक अवधि बांकी अछि. कतेक गोटे तं सत्तरि पार भेलहुँ  पर आमदनी व अनमना लेल कालेज नहि छोड़य चाहैत छथि. हमर अपन सबसँ आप्त सहकर्मी लोकनि तं अंत धरि कहैत रहि गेलीह, ‘ हमरा सबकें होइत छल, अंतहुमें कोनो चमत्कार हेतैक आ अहाँ एतहि रहि जायब’. हम कहलियनि, ‘ आब तकर सम्भावना नहि.  हमरा मन में पहिनहुसँ  कोनो दुविधा नहि छल. हम कृतसंकल्प रही. तें, हुनका लोकनिक आशाक कारण, केवल हमर प्रति हुनका लोकनिक स्नेह आ श्रद्धा छलनि. हुनका लोकनिक स्नेह आ श्रद्धासँ हमरा बल अवश्य भेटैत छल. हम शरीरें स्वस्थ छी, पढ़ायब आ चिकित्सा करब हमर चुनल आ प्रिय अनमना थिक.  किन्तु, सहकर्मी लोकनिक स्नेह आ श्रद्धाकें हम सदा निरपेक्ष भाव सँ देखैत रहलहहुँ  आ ओहिसँ अपन निर्णयकें कहियो प्रभावित नहि होमय देलिऐक.

बामासँ दाहिना: प्रो.राजलक्ष्मी, लेखक, विभागाध्यक्ष प्रो. श्रीकान्त, प्रो. स्वाति  

कहैत छैक, सेना मनुष्यकें बदलि दैत छैक. से कोनो बेजाय नहि. हमर निनानबे प्रतिशत व्यवहार, हमरा,अपन  सैनिक जीवनक अनुशासनसँ प्रेरित बूझि पड़ैत  अछि. तें, अनुशासनक प्रति हमर दृढ़ताक कारण  कखनो काल हमर छात्र लोकनिक, हमरा प्रति अप्रसन्नताक आशा सेहो रहैत छल. कतेको छात्रकें हम, शर्ट केर खूजल बटन, हवाई चप्पल, बिनु काटल दाढ़ी, वा बिनु पॉलिश कयल जूता लेल टोकने हेबनि. बिलम्बसँ क्लास वा काज पर अयबाक तं प्रश्ने नहि. तथापि, जखन हमर अयबाक बेर भेल तं छात्र आ सहकर्मीक आदर-स्नेह हमर धारणाकें निर्मूल तं कइए देलक, बल्कि, हमर बिदाईक भोज आ सहकर्मी आ छात्र लोकनिक आदर-सत्कार हमरा अभिभूत कय देलक. सत्यतः, पोखरा, नेपालमे मणिपाल मेडिकल कालेजसँ  सेहो जखन निवृत्त भेल रही, विदाई ओतहु उत्तम भेल छल. आ किएक नहि ; हमरा सबतरि छात्र आ सहकर्मी लोकनिक आदर आ स्नेह-सम्मान भेटल. मुदा, पांडिचेरीक विदाई अविस्मरणीय छल. एहि विदाई विशेषता ई छलैक, जे विभागमे रहितो सहकर्मी लोकनि हमरा विदाईक  तैयारीक किछुओ अनुमान नहि होबय देलनि. विभागाध्यक्ष एहि सबहक सूत्रधार तं छलाहे, बांकी शिक्षक लोकनि, स्नातकोत्तर छात्रलोकनि, एहि विदाईक पूरा भार अपना उपर उठौने रहथि. सब स्तरक स्टाफ लोकनिक सहभागिता सेहो रहैक. संयोग एहन रहैक जे हम अपन कार्यावधिक अंतिम पन्द्रह दिनमे किछु छुट्टी नेने रही, आ किछु दिनक छुट्टीओ रहैक. तें, हमर बिदाईक  सब तैयारी प्रायः हमर अनुपस्थितिएमे भेलैक.  आ हमर छुट्टीएक अवधिमे विभागाध्यक्ष डाक्टर श्रीकान्त, डाक्टर राजलक्ष्मी आ डाक्टर स्वाति हमर डेरा आबि कय 27 मार्च, शनि दिनक दुपहरियाक भोजनक नोत देलनि. प्रोफ़ेसर राजलक्ष्मी तं पछिला आठ वर्षसँ हमरे यूनिटमें छलीह, जतय ओ सहायक प्रोफेसरसँ  प्रोफेसर धरिक पद धरि पहुँचलीह. प्रोफेसर स्वाति सेहो एखन हमरे यूनिटमें छलीह. हमरा लोकनिकें ई सौजन्य नीक लागल. मुदा, ई सौजन्यक आरम्भ छल. नोतक दिन, शनि, अस्पतालमें छुट्टी रहैक. हम अपने भोजमे  जयबाक तैयारीमे रही. किन्तु, राजलक्ष्मी आ स्वाति स्वयं आबि हमरा आ हमर पत्नीकें  होटल धरि लए गेलीह. ओतय विभागाध्यक्षक संग डिपार्टमेंटक सम्पूर्ण छात्र, स्टाफ, नेत्र-विभागक वार्ड सबहक सिस्टर लोकनि, ऑपरेशन थिएटरक सिस्टर लोकनि, सब मौजूद रहथि. दिव्य भोजन, हार्दिक सौजन्यक अतिरिक्त विद्यार्थी लोकनि मनोरंजनक किछु आइटम सब सेहो तैयार केने रहथि. एकटा बंगाली स्नातकोत्तर छात्र, डाक्टर अनुजीत पाल वायलिन पर रवीन्द्र संगीत बजओलनि. ई अद्भुत अनुभव छल. स्नातकोत्तर छात्रा लोकनि समवेत स्वरमे हिन्दीक अनेक ह्रदयस्पर्शी गीत गओलनि. पछाति,  स्नातकोत्तर वर्गक प्रत्येक वर्षक छात्र-छात्रा सँ प्रतिनिधि-जकां भिन्न-भिन्न विद्यार्थी लोकनि हमर प्रशस्तिमें संक्षिप्त भाषण सेहो देलनि ; सबमें हमर जयबाक कारण हुनका लोकनिक दुःख, आ हमर प्रशंसा रहैक. स्टाफ-सिस्टर-क्लर्क लोकनि ततेक भाव विह्वल भय जाइत गेलीह जे कतेककें किछु कहैत-कहैत कोंढ़ फाटय लगलनि. विदाईक रूप में विभाग दिससँ हमर आठ वर्षसँ बेसीक लगभग प्रत्येक स्मरणीय गतिविधिक फोटो सबहक फ्रेम्ड कोलाज भेंट कयल गेल. भेंटमे फोटो सबहक प्रिंटेड कॉपीक एकटा अलबम सेहो छल. डिपार्टमेंटक टेक्निकल असिस्टेंट कार्तिक हमर एकटा पैघ पोर्ट्रेट भेंट केलनि. ऑपरेशन थिएटरक नर्स लोकनि स्वामी रामकृष्ण परमहंसक जीवनी आ स्वामी परमहंस योगानंदक आत्मकथाक तमिल अनुवाद भेंट केर रूपमें देलनि. ओतय सबकें बूझल छलैक जे हम तमिल पढ़ैत  छी; विभागाध्यक्ष डाक्टर श्रीकांतक कुर्सीक पाछाँ तं हमर  ‘कुरल मैथिली भावानुवाद’क प्रति पिछला तीन वर्षसँ तेना रखने छथि जे हुनक कमरामे प्रवेश करिते सबहक दृष्टि ओहि पर पड़ैत छैक  अछि. एकर अतिरिक्त, वार्ड केर सिस्टर लोकनि हमरा ले अलगसँ  उपहार अनने छलीह. ई अभूतपूर्व छल. एतेक सौजन्यसँ  हमरा लोकनिक अभिभूत हएब उचिते छल. हमरा नहि बूझल छल जे  विभागमें सब गोटे हमरा एतेक मानैत छल !

अंतमें हम संक्षेप भाषणमें सबकें धन्यवाद देलिअनि. हमरा मोन छल महात्मा गाँधी मेडिकल कालेजमें योगदानक हफ्ता भरिक भीतरे हमरा डेंगू ज्वर भय गेल छल. ओहि वर्ष 2012 मे तमिलनाडुक केवल मदुरै शहरमें डेंगू सँ करीब दू सौ व्यक्तिक जान गेल रहैक. तखन हमरा विभागमे लोक नीक-जकाँ जनितो नहि छल. तथापि, वर्त्तमान विभागाध्यक्ष डाक्टर श्रीकान्त, हमराले सिद्ध चिकित्साक प्रणालीक, डेंगूक हेतु गुणकारी औषधि-‘ नीलबेम्बू कुडिनीर’- नामक ( चिरैताक ) काढ़ाक एक बोतल, अपने मोने हमरा लेल कीनि कय अनने रहथि. हुनक ई गुण हम से कोना बिसरितियनि. ‘हुनक एहि सौजन्यसँ  हमरा तहिया भान भेल छल जे हम अपन परिवारक बीचे आबि गेलहुँ-ए’. हमर एहि स्मरणक चर्चासँ डाक्टर श्रीकांतक आँखिमसँ  नोर खसय  लगलनि, आ ओ आँखि पोछय लागल रहथि, से पछाति हमर पत्नी कहलनि. हम जखन छात्र लोकनिकें संबोधित करैत ई कहलिऐक जे शिक्षक वस्तुतः कहिओ मरैत नहि छथि. ओ लोकनि सर्वदा छात्र लोकनिक भीतर वर्तमान रहैत छथि, तं, कतेको छात्र लोकनिक आँखि नोरा गेलनि, से हम अपनो देखलिऐक.

पछाति, डाक्टर राजलक्ष्मी आ स्वाति हमरा डेरा धरि पहुँचा  गेलीह. सामानक बान्ह-छानक कारण अस्त-व्यस्त घरहुमे ओ लोकनि हमरा सबहक संगे किछु काल छलीह. वयसें तं ई लोकनि हमर कन्याक वयसक छथि आ हिनका लोकनिसँ लम्बा अवधिक संग अछि. हमरा आँखिक सोझाँमें शिक्षकक विभिन्न स्तरकें पार करैत ई लोकनि आब प्रोफेसर छथि. मुदा, हमरा संग हिनका लोकनिक भाव परस्पर आदरक छनि, आ हम हिनका लोकनिक योग्यता आ अनुभवक सदा आदर करैत छियनि. ई लोकनि छथियो दक्ष आ कार्य कुशल. हमर दिन-प्रतिदिनक काजकें  ई लोकनि निरंतर बल दैत छलीह. ताहिसँ हम प्रसन्न रहैत छलहुँ  आ हम आश्वस्त सेहो रहैत छलहुँ , जे ई लोकनि कोनो प्रकारक समस्याकें सम्हारि लेतीह. विभागाध्यक्ष संगे हिनका लोकनिक तादात्म दोसर छलनि. फलतः, ई लोकनि हमरा लग आबि अपन अनेक समस्या कहैत छलीह. आब हमरा गेने तकर कमीक अनुभव हेतनि, से हमरा प्रतीत होइछ. कहैत गेलीह, ‘ अहाँक गेला उत्तर सेहो हमरा लोकनि गाहे-बगाहे अहाँकें फोन करबे करब’. हम भविष्यहुमे सम्पर्क-सहयोग आ मार्गदर्शनक हेतु आश्वस्त केलिअनि.  किन्तु, जीवनमे की स्थायी होइत छैक ! अन्ततः, लोककें माता-पिताक छाया सेहो उठिए जाइछ. सएह गप्प. हमरो हेतु हिनका लोकनिक साहचर्य एक सुखद अनुभव छल. कोरोना कालमे एवं ओहिसँ पहिनहु ई लोकनि एतबा खयाल रखैत छलीह जे हमरा पर काजक बेसी भार नहि पड़य. हम सेहो हिनका लोकनिके प्रोफेशनल स्वतंत्रता, आ प्रचुर अवसर दैत रहलिअनि. अस्तु, हम हिनका लोकनिक व्यक्तिगत आ प्रोफेशनल दक्षता तरासबामे जतबो किछु योगदान विगत आठ वर्षमे केलिअनि से जीवन पर्यन्त हिनका लोकनिक संग रहतनि. संगहि, पांडिचेरी जं किछु तमिल सिखल तं ताहिमें हमर एतुका सहकर्मी लोकनिक योगदान अवश्य छनि. राजलक्ष्मीकें तं कतेक बेर हम तमिल भाषाक ‘फॉर्मल टीचिंग’ देबा ले सेहो कहियनि . आइ काल्हि तमिल भाषीओ लोकनिक बीच तमिलमें दक्ष व्यक्ति भेटब सुलभ नहि. राजलक्ष्मी ओहि दृष्टिऍ अपवाद छथि. ताहिसँ हम निरंतर लाभ उठाओल. श्रीकान्त सेहो यदा-कदा सहायता करैत छलाह. हम अपन रुचिए एतय रहैत प्रसिद्द तमिल ग्रन्थ  ‘कुरल’क भावानुवाद प्रकाशित कयल सेहो एकटा संयोगे छल; ओना ई पोथी तं पन्द्रह वर्ष धरि हमरा संग कतय-कतय ने घूमल. ‘कुरल’क भावानुवादक कारण एतय हम ओहुना बहुतो गोटेक श्रद्धाक पात्र भए गेल रही. हमरा अछैत, हमर आप्त सहकर्मी  लोकनिकें सेहो मिथिला आ मैथिलीक किछु अनुभव भेलनि. एहि स्मरणकें स्थायित्व देबा ले हम डाक्टर श्रीकांत, राजलक्ष्मी, स्वाति आ एक आओर भूतपूर्व सहकर्मी डाक्टर अशोककें ‘मधुबनी पेंटिंग’क नामसँ  प्रसिद्ध मिथिला चित्रकलाक एक-एक प्रति उपहार स्वरुप देलिअनि जाहिसँ  ओ लोकनि अपन घर सजाबथि, आ मिथिला-मैथिलीक संग हमरो नहि बिसरथि.

हँ, संयोगसँ  पेंटिंगक गप्प भेलैक तं हमरा एम. एस. नेत्र चिकित्साक अंतिम वर्षक हमर छात्रा डाक्टर स्टेफनी सेबेस्टियनकें बिसरब असंभव. ई मृदुभाषी, मेधावी, मलयाली छात्रा जेहने पढ़बामें नीक छथि, तेहने गुणवती; अमेज़न इंडिया पर हिनक अंग्रेजी उपन्यास ‘ Love to Death’ स्वतः आकृष्ट करत. मुदा, गप्प से नहि. ई छात्रा महात्मा गाँधी अस्पतालमे हमर काजक अंतिम दिन फाइनल इयर केर आन छात्र-छात्रा लोकनिक संग हमरा लग अयलीह आ फाइनल इयरक छात्र लोकनिक दिससँ, अपन हाथें कागज पर पेंसिलसँ बनाओल हमर स्केचकें फ्रेम करा हमरा ले उपहारमें देने गेलीह. 


नेत्र-चिकित्सक डा.स्टेफनी सेबस्टियनक बनाओल हमर रेखाचित्र  

एहि चित्र केर नीचा हिंदी कवितामें हमर प्रशंसाक तीन पाँतिक अतिरिक्त अंग्रेजीमें हमर प्रति कृतज्ञता
 सेहो छल. लिखल पाँतिक नीचा फाइनल इयरक पांचो डाक्टर- श्राव्या, जूही, कौशिक, महालक्ष्मी आ स्टेफनीक नाम लिखल छैक. हमरा एखन धरि ई नहि बूझल छल जे ई डाक्टर-लेखिका-उदीयमान नेत्र चिकित्सक  एतेक नीक चित्रकार सेहो छथि. वस्तुतः हमरा सहित अधिकांश  शिक्षक मेडिकल कालेजक छात्रक व्यवसायिक दक्षताक अतिरिक्त छात्र लोकनिक व्यक्तित्वक आन पक्षकें कदचिते देखि पबैत छथिन. तकर कारणो छैक; हमरा लोकनिकें छात्र लोकनि सबसँ सामाजिक स्तर पर मेलजोलक अवसर कदाचिते भेटैछ. पेंसिल स्केच केर अतिरिक्त डाक्टर स्टेफनी हमरा ले फूटसँ अपना हाथें लिखल एक पेजक एकटा चिट्ठी सेहो अनने छलि जकरा पढ़िकय आइओ हमर आँखि नोरा गेले. हमरा लगैत अछि, शिक्षकक रूपें ई चिट्ठी हमरा हेतु एकटा तगमा थिक !

आब बंगलोर अयना करीब तीन हफ्तासँ  बेसी भए गेल. कोरोनाक संकट छोड़ि ककरो चेतनामे एखन आओर किछु नहि अबैत छैक. किन्तु, जं-जं दिन बिततैक हमरा नहि लगैत अछि, पांडिचेरीक प्रवास आ ओतुका, छात्र आ सहकर्मी लोकनि हमरा कहियो बिसरताह. हुनका लोकनिकें हमहूँ  कोना बिसरबनि.

हमर नाम डा. स्टेफनी सेबेस्टियनक पत्र 

Monday, September 9, 2024

तरल ह्रदय आ ऊसर डीह

 

तरल ह्रदय आ ऊसर डीह

मालिक कका, कनियाँ काकी (काकी-मौसी), आ हरितालिका पूजा

डीह पर भांगक जंगल. अंगनामे घास. बाड़ीमे पहिनहि-जकाँ आम, जामुनक गाछ. जहिना तहिया रहनि. केवल ओ धात्रीक गाछ, जकर छाहरिमे कतेक बेर नोत खयने हएब, नदारद. ई सब देखि अकस्मात् मालिक कका, कनियाँ काकी (काकी मौसी) परिवार आँखिक आगाँ जीवंत भए उठल.
मालिक कका-बालगोविंद बाबू- आ कनियाँ काकी रहथि, निःसंतान. मुदा, सर-समाजक कोनो धिया-पुताकें अपन संतानसँ कम कहाँ बुझथिन ओलोकनि. सुनैत छी, हुनक मस्तमौला, शाहखर्ची स्वभावक कारण हुनक केओ बालसखा एकबेर जे हुनका ‘मालिक’ कहब शुरू केलखिन, से ओ सब दिन आ सबहक लेल ‘मालिक’ भए रहि गेलाह: मालिक बौआ, मालिक काका, आ पछाति, मालिक बाबा.

 मुदा, आइ आधा शताब्दीसँ बेसी अवधिक पछाति, एक भिन्न कारणसँ मालिक कका आ कनियाँ काकीक स्मरण भए आयल अछि.  भरि गाममे ‘हरिताली’क उपास बहुतो महिलालोकनि करथि, मुदा, हरितालिका पूजा केवल मालिक कका आ कनियाँ काकीए अंगनामे होइनि. जाहि आँगनमे कहियो कोनो मुंडन-उपनयन-विवाहक अवसर नहि अयलैक, ओ आँगन हरितालिका पूजाक अवसर पर हठात् जीवंत भए उठैत छल. अंगना-बहरी/ दरबज्जा धियापुता, माउगि-पुरुखसँ भरि जाइत छल. लोक अबैत छल श्रद्धा-पूर्वक पूजा-अर्चना करैत छल आ एहि वार्षिक उत्सवमे सहभागी होइत छल.
कदमे छोट, मध्यम बान्ह आ पिण्डश्याम रंगक, मालिक कका स्वभावसँ मखौलिया रहथि. बात-बातमे ककरो हँसा देब हुनका हेतु सुलभ रहनि. दियाद-बाद आ सर-समाजक नेना-भुटकाकें चेष्टा आ स्वभावक अनुकूल, भतखोखारि, गुड़गुड़ी लाल सदृश तेहन नामकरण कए देथिन, जे चेतन आ वयस्क तं हँसबे करथि, अपन नाम सुनि धियापुताकें अपनहुँ हँसी लागि जाइक.
मालिक ककाकें पहिने तं काज जोकर मरौसी भूमि रहनि. मुदा, जीवन-यापनक पद्धतिक विपरीत, उद्यमक अभावसँ निःसंतान रहितो, क्रमशः निर्भूमि भए गेल रहथि. सुनैत छी, अपन जवानीमे हुनका ओतय, किरासन तेलक इजोतमे राति क’ नाचक आयोजन होइत छल. कमलाक मारल निर्धन गाँवमे जहिया मनोरंजनक साधनक नितांत अभाव रहैक, रामलीला-कीर्तन-पूजा-नाच- भाओ- भूतक झाड़ब- गुदरियाक सारंगी वादने जनसामान्यक हेतु मनोरंजनक साधन रहैक.  स्वभाव आ सहमिलू-सहृदय रहनि. जाति-पाँतिक आरि-धूरक बहुत परबाहि नहि करथिन. तें, मालिक कका सबहक बीच लोकप्रिय रहथि.  

गहुँआ रंग, मध्यम बान्ह, नमतीमे औसतसँ बेसी, स्वभावें मृदु आ सहृदय, मालिक ककाक पत्नी, कनियाँ काकी/ काकी-मौसी अद्भुत शिल्पकार रहथि. मुरुत गढ़ब, मड़बा-कोबर- देहरि आ देवाल पर चित्रकलाक, जकरा आइ-काल्हि मिथिला वा मधुबनी चित्रकला कहैत छैक, अद्भुत दक्षता रहनि. अवाम गाममे हुनकासँ नीक सामा-चकेबा प्रायः केओ नहि बनबथि. तें, हुनकर बनाओल सामा-चकेबा देखबाक हेतु जेर बान्हि सखी-बहिनपालोकनि हुनकर अंगना जाथि. एहि सबसँ ऊपर प्रति वर्ष हरितालिका पूजाक हेतु  हुनका हाथें बनाओल बसहा बड़द पर सवार शिव-पार्वतीक मूर्तिक निर्माण कनियाँ काकीक शिल्पकलाक उत्कृष्टताक नमूना होइत छल. तहिया गाममे ककरो लग कैमरा तं रहैक नहि, तखन केवल स्मरण ओकर प्रमाण थिक. 

 हरितालिका ( गौआँक शब्दे ‘हरिताली’) पूजाक हेतु तैयारी पूजाक दिनसँ बहुत पहिने आरंभ होइत रहैक. मुदा, ओ शिव-पार्वतीक मूर्तिक निर्माण पूजासँ कतेक दिन पहिने आरंभ करथिन, से स्मरण नहि अछि. पहिने सब किछुक आरंभ नीके दिन ताकि होइत छलैक. मुदा, एतबा अवश्य जे बसहा बड़द आ शिव-पार्वतीक माटिक मूर्तिक निर्माण एकटा जटिल प्रक्रिया रहैक. साफ़ चिक्कनि माटिक चुनाव. बाँसक कमचीक आ खढ़क बनाओल आकृतिक ऊपर परत-दर-परत माटिक लेप. सब किछुकें सुखायब, चुनेटब, रंगब आ  सजावट, सेहो बरखा-बुन्नीक मासमे अवश्य श्रमसाध्य छल हेतैक.

साठि वर्षक धक्कामे आबि, पारिवारिक परंपराकें तोड़ैत मालिक काका अपनहि घरमे छोट-मोट दोकान सेहो खोललनि. मुदा, दोकान कतेक दिन चलओलनि से कहब मुश्किल.

अवामक सामाजिक काजमे मालिक ककाक एकटा आओर योगदान छनि; 1978 वर्ष मे मालिक कका एवं नुनू भाई (अभयनाथ झा प्रसिद्ध भरत जी) क अगुआईमे अवाम गाममे पहिल बेर (शारदीय ) दुर्गापूजाक आयोजन भेल रहैक, जे आब बहुत पैघ स्तर पर मनाओल जाइछ। अवाम गामक सामाजिक-सांस्कृतिक  क्षेत्रमे हिनकालोकनिक ई कालजयी योगदान थिक।

मालिक ककाकें अंतिम बेर हम दरभंगा मेडिकल कालेजक मेडिकल वार्डमें देखने रहियनि. तहिया हम पढ़िते रही. मालिक काका कोनो जटिल बीमारीक चिकित्सा लेल अस्पतालमें भर्ती रहथि. ओ हमरा देखिते विह्वल भए गेल रहथि. सहजहि. हमर जन्म हुनका आँखिक सोझाँ भेल छल. आयब-जायब- खायब पीयबक व्यवहार छल. सहृदय तं छलाहे. हमर छात्रजीवनमे आन गौआँ जकाँ हमरा उत्साहितो करथि. से  ओहि दिन हम डाक्टर-जकाँ हुनका बेडक लग, पौथानमे ठाढ़ रही.  अस्तु, विपत्तिमे अपन लोककें देखि जे हुबा हेबाक चाही, से भेल हेतनि, से असंभव नहि. तथापि, मालिक कका कहिया मरि गेलाह, स्मरण नहि अछि. कनियाँ काकीकें मालिक ककाक मृत्युक पछाति अनेक बेर देखबाक अवसर भेल. एकाकी जीवनक कारण विक्षिप्तता आ ओही कारण अनेक रोग. हुनको मृत्यु कहिया भेलनि, स्मरण नहि अछि. मुदा, कनियाँ काकी आ बालगोविंद (झा) बाबू / मालिक कका हमरा कोना बिसरताह. हुनक हास परिहास जे सुनने छथि, तनिका ओ कोना बिसरथिन.   
हँ, एतबा अवश्य, हुनकालोकनिक मृत्युक पछाति अवाममे आन कोनो परिवार मे ओहन हरितालिका व्रत-पूजाक आयोजन आन केओ केलनि से हमरा सुनल नहि अछि.
नोट: हरितालिका व्रत-पूजाक महात्म्यक विस्तृत वर्णन हमरा निम्नलिखित ब्लॉग पर भेटल.[1]

सन्दर्भ :                                                                                                                           
1. https://sanskritbhasi.blogspot.com/2018/09/blog-post_12.html#google_vignette
सारांश:
 पं. जगदानन्द झाक उपरोक्त ब्लॉग पर स्कन्द पुराणमे वर्णित हरितालिका पूजाक इतिहास, महात्म्य एवं          विधान भेटत.[1] सारांश ई जे नारद मुनिक प्रस्ताव पर पार्वतीक पिता हिमवान, पार्वतीक सहमतिक           विना हुनक विवाह विष्णु भगवानसँ करयबाक सहमति दए देलखिन ई पार्वतीक इच्छाक विरुद्ध छल. सखी   लोकनिक सुझाव आ सहयोगें पार्वती सखी लोकनिक संग एक सुदूर पर्वतीय गुफामे जा शिवक        पूजा-अर्चनाक      हेतु चलि गेलीह. माए-बापकें किछु बूझल नहि भेलनि.अर्थात् पार्वती सखी (ताली) द्वारा हरण कए गेल     रहथि:    (हरिता तालिभिः या सा हरितालिका अर्थात् पार्वती ). ओही दिन भाद्र मासक तृतीयाक दिन       हस्त नक्षत्रमे बालुक शिवलिंगक स्थापना कए शिवक पूजा-अर्चना कयलनि (आ शिवकें पतिक           रूपमे प्राप्त             केलनि). पछाति, स्वयं शिव ओहि पूजाक महत्व पार्वतीकें कहलखिन. इएह हरितालिका पूजाक आदि थिक.


Thursday, September 5, 2024

Reflections on Primary Education in India

 Teachers’ Day 2024

Reflections on Primary Education in India


Long colonial rule played havoc with literacy and education in India.[1] Today, seventy-seven years after Independence, the quality of  primary education is far from satisfactory. 

Facts given below substantiate the statement above. Suggestions on improving the learning outcome in government primary schools are also offered in this brief note.

Annual Status of Education Report (ASER) on the cognitive skills of adolescents, and a report on the quality of teachers by the Tata Institute of Social Sciences on India’s school education landscape paint a disturbing picture.[2] The first report, ‘Beyond Basics’ reveals that 25%  per cent pupils in the 14-18 age group cannot read Class II level text fluently even in their mother tongue. Also, more than half the children in rural India have difficulty with basic mathematics. These findings based on a large and varied sample cast a shadow of doubt over India’s literacy rate of 77.7 percent that NFHS-5 (2019-21) revealed. In other words, the pupils lack the three elementary skills: reading, writing, and arithmetic.

The above reports give insight into the problem at National Level.

At state level, situation in Bihar are rather revealing.As per a report published by Jan Jagran Shakti Sanghathan (JJSS) in January-February 2023 on a survey of eighty-one government primary and upper-primary schools in Katihar and Araria districts of Bihar, ‘none of the surveyed schools met the norms of the Right to Education (RtE) Act.’[2] The problems include poor pupil attendance (20), high student/ teacher ratio, and absence of teachers from schools. According to this report, Direct Benefits Transfer for textbooks and uniform has also adversely impacted education since the parents in poor families prioritize their own needs over textbooks and uniform.[3] 

The report also found an increasing prevalence of cheap and dingy tuition centers threatening to displace government schools. They prove a barrier to quality education and pose risks to children’s health as well. Thus success in achieving the goals of the Right to Education(RtE), 2009  and the Sarv Shiksha Abhiyan( SSA) remain a pipe dream particularly among the students from impoverished families and marginalized communities.

Apart from the above,one major challenge facing quality education for children in rural areas is the non- availability of trained and qualified teachers, particularly in urban poor, and rural areas. [4] 

According to a study by the National Institute of Educational Planning and Administration (NIEPA), only 53% of teachers in rural areas have received any form of teacher training, compared to 86% of teachers in urban areas.[5]

Therefore, to summarize the current situation in primary education is far from ideal. To improve the situation following suggestions targeted at major problems are offered:

  1. Poor student attendance:  

  1. Involvement of social workers, teachers and religious teachers to impress upon parents to ensure attendance of their children and wards.

  2. Strict enforcement of Prevention of Child Labour 

  3. Direct Benefit Transfer be linked with defined month-on- month percentage of pupil attendance.


       2. Improving the quality of teachers and teachers’ attendance

           require both short- and  long-term  measures. 

                  a. Interventions for improvement in higher education and  

                   training of teachers in pedagogy requires action by the 

                   state governments. 

                  b. Ensuring attendance of teachers also falls under the

                     administrative domain.

        3. Improvement in Learning outcome

  1. Everyone must acquire writing, reading and arithmatic skills during first 5 years of schooling.

  2. Defined metrics for learning outcome be employed for continuous and periodic assessment of students along with separate performance metrics for teachers and the institutions.

  3. Performance-based grants to schools, and increments to teachers.

  4. Strict ban on private tuition by teachers employed in Govt. Schools.

         4. Improvement in School Infrastructure

Conclusion

Status of primary education in India has improved in the last half a century. Yet, it remains far from ideal. To achieve the goals of Sarva Shiksha Abhiyan and Right to Education, interventions both at social and administrative levels are imperative. Involvement of society as a whole shall help achieve the goal sooner than later.


References:

1. Dharampal.The Beautiful Tree: Indigenous Indian Education in the Eighteenth Century.


2. Editorial. Poor teenage learning levels, a national crisis, Business  Line Jan 21, 2024

https://www.thehindubusinessline.com/opinion/editorial/poor-teenage-learning-levels-a-national-crisis/article67762298.ece. published Jan 21, 2024.


3. Frontlline News desk https://frontline.thehindu.com/news/bihar-schooling-crisis-survey-report/article67157898.ece. published Aug 04, 2023.


4. Kumar Ashwini. Current education reforms and policies in India for primary (elementary) school children.https://www.linkedin.com/pulse/current-education-reforms-policies-india-primary-elementary-kumar. Published Dec 16, 2022.


5. National Institute of Educational Planning and Administration (NIEPA: Teachers in Indian Education System.NRRPS/001/2016.

http://www.niepa.ac.in/download/Research/Teachers_in_the_Indian_Education_System.pdf

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो