पांडिचेरीसँ
बंगलोर
2007 में
भारतीय सेनासँ ऐच्छिक सेवानिवृत्ति सोचल विचारल निर्णय छल. ओकर आगाँ पोखरा, नेपालक साढ़े पांच वर्षक प्रवास वरदान-जकाँ छल ; अन्नपूर्णा
पर्वतमालाक सोझाँ सेती नदीक कछेर पर पोखराक मृदु आ स्वास्थ्यवर्धक जलवायुमे वास. किन्तु,
2012 मे पोखरासँ पांडिचेरी जयबाक नेयारक निर्णय स्वाभाविके छल – स्वदेश वापसी आ
आर्थिक लाभ दुनू. मुदा, एहि बेर पांडिचेरीसँ बंगलोरक यात्रा पोखरासँ पांडिचेरीक यात्रासँ भिन्न छल. मेडिकल फील्डमें
लगातार करीब एकतालीस वर्षक सेवाक पछाति
पहिल बेर हम स्वेच्छासँ त्यागपत्र दए, पूर्णतः सेवानिवृत्त-जकाँ बंगलोर बिदा भेल
रही. किन्तु, एहि लेल हमरा ने कोनो पश्चाताप छल, आ ने कोनो दुःख. चिकित्सकक रूप
में लम्बा अवधि धरि सेना आ सेनासँ बाहर सम्पूर्ण देश आ विदेशमें सेवा कयल. सबठाम
लोकक आदर आ प्रेम भेटल, चाहे लद्दाख हो वा लखनऊ. मेडिकल कालेजमे सेहो लगातार तेरह
वर्षसँ अधिक प्रोफेसरक पद पर काज कयल आ नेत्र-चिकित्सा पढ़यबाक मनोरथ सेहो पूर भए गेल
छल.
सत्यतः, जं सेनासँ ऐच्छिक सेवानिवृत्तिकें सेहो जोड़ि दी, तं, महात्मा गाँधी मेडिकल कालेज, पांडिचेरी लगा कय ई हमर तेसर त्यागपत्र थिक. किन्तु, एहि बेरुक त्यागपत्रक परिस्थिति आ मनोभाव आन बेरसँ सर्वथा भिन्न छल; विगत एक वर्षक कोरोना-कालमे प्राण तं बंचि गेल, किन्तु, परिवारजनक ह्रदयमे कोरोनाक निरंतर भय अवघात नहि केलक से कोना कहब. यद्यपि, कोरोना कालमे सत्यतः हमरा अपना कहिओ प्राणक भय नहि भेल. जे किछु.पांडिचेरी छोड़बाक निर्णय भेलैक. पांडिचेरीसँ बंगलोर जयबाक हमर ई निर्णय हमर सहकर्मी लोकनिकें अचानक-जकाँ बूझि पड़लनि. आ महात्मा गांधी मेडिकल कालेजमे हमर ई निर्णय सत्यतः,सबकें चकित केलकनि. विभागाध्यक्ष तं कहलनि, ‘ I am shocked !’ किन्तु, हमर त्यागपत्र अचानक छल नहि. हं, पांडिचेर कें त्यागि, बंगलोर अयबाक निर्णय 9/07/2020 क राति, एक विपरीत परिस्थितिमे, अचानक अवश्य भेल छल. तथापि, निर्णयक आकस्मिकतासँ ने हम क्षुब्ध रही, आ ने चकित. एहि निर्णय ले हमरा कोनो पश्चाताप सेहो, ने तहिया छल, आ ने आइ अछि. कतेको आकस्मिक घटनामे अनेक नीक अवसर नुकायल रहैत छैक, से के नहि मानत. ताहि परसँ हमर निरंतर आशावादी प्रवृत्ति हमर कल्पनाकें हठे कोनो आसन्न विप्पत्तिक दिस किन्नहु नहि जाय दैत अछि. हमर इएह सोच हमर संजीवनी थिक ! सर्वविदित अछि, कोरोना कालमे जखन अनायास करोड़ों लोकक जीविका चल गेलैये, तखन स्वेच्छासँ जीविका छोड़ब विरोधाभास-सन प्रतीत होइछ. किन्तु, उचित-अनुचित केर कोनो एकटा मापदंड नहि. प्रत्येक निर्णय आ विचारकें परिस्थितिक परिप्रेक्ष्यमें देखबाक थिक. किन्तु, से आन कोना देखत. तथापि, हमर सहकर्मी, अस्पतालक मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट, आ विश्वविद्यालयक उच्चतम प्रशासनिक अधिकारी लोकनि हमरा निर्णय बदलबाक हेतु आग्रह अवश्य केलनि. विशेषतः एहि हेतु जे हमरा मेडिकल टीचिंगमे एखनो पांच वर्षक अवधि बांकी अछि. कतेक गोटे तं सत्तरि पार भेलहुँ पर आमदनी व अनमना लेल कालेज नहि छोड़य चाहैत छथि. हमर अपन सबसँ आप्त सहकर्मी लोकनि तं अंत धरि कहैत रहि गेलीह, ‘ हमरा सबकें होइत छल, अंतहुमें कोनो चमत्कार हेतैक आ अहाँ एतहि रहि जायब’. हम कहलियनि, ‘ आब तकर सम्भावना नहि. हमरा मन में पहिनहुसँ कोनो दुविधा नहि छल. हम कृतसंकल्प रही. तें, हुनका लोकनिक आशाक कारण, केवल हमर प्रति हुनका लोकनिक स्नेह आ श्रद्धा छलनि. हुनका लोकनिक स्नेह आ श्रद्धासँ हमरा बल अवश्य भेटैत छल. हम शरीरें स्वस्थ छी, पढ़ायब आ चिकित्सा करब हमर चुनल आ प्रिय अनमना थिक. किन्तु, सहकर्मी लोकनिक स्नेह आ श्रद्धाकें हम सदा निरपेक्ष भाव सँ देखैत रहलहहुँ आ ओहिसँ अपन निर्णयकें कहियो प्रभावित नहि होमय देलिऐक.
बामासँ दाहिना: प्रो.राजलक्ष्मी, लेखक, विभागाध्यक्ष प्रो. श्रीकान्त, प्रो. स्वाति |
कहैत छैक, सेना
मनुष्यकें बदलि दैत छैक. से कोनो बेजाय नहि. हमर निनानबे प्रतिशत व्यवहार, हमरा,अपन
सैनिक जीवनक अनुशासनसँ प्रेरित बूझि पड़ैत अछि. तें, अनुशासनक प्रति हमर दृढ़ताक कारण कखनो काल हमर छात्र लोकनिक, हमरा प्रति
अप्रसन्नताक आशा सेहो रहैत छल. कतेको छात्रकें हम, शर्ट केर खूजल बटन, हवाई चप्पल,
बिनु काटल दाढ़ी, वा बिनु पॉलिश कयल जूता लेल टोकने हेबनि. बिलम्बसँ क्लास वा काज
पर अयबाक तं प्रश्ने नहि. तथापि, जखन हमर अयबाक बेर भेल तं छात्र आ सहकर्मीक आदर-स्नेह
हमर धारणाकें निर्मूल तं कइए देलक, बल्कि, हमर बिदाईक भोज आ सहकर्मी आ छात्र
लोकनिक आदर-सत्कार हमरा अभिभूत कय देलक. सत्यतः, पोखरा, नेपालमे मणिपाल मेडिकल
कालेजसँ सेहो जखन निवृत्त भेल रही, विदाई
ओतहु उत्तम भेल छल. आ किएक नहि ; हमरा सबतरि छात्र आ सहकर्मी लोकनिक आदर आ स्नेह-सम्मान
भेटल. मुदा, पांडिचेरीक विदाई अविस्मरणीय छल. एहि विदाई विशेषता ई छलैक, जे विभागमे
रहितो सहकर्मी लोकनि हमरा विदाईक तैयारीक किछुओ
अनुमान नहि होबय देलनि. विभागाध्यक्ष एहि सबहक सूत्रधार तं छलाहे, बांकी शिक्षक
लोकनि, स्नातकोत्तर छात्रलोकनि, एहि विदाईक पूरा भार अपना उपर उठौने रहथि. सब स्तरक
स्टाफ लोकनिक सहभागिता सेहो रहैक. संयोग एहन रहैक जे हम अपन कार्यावधिक अंतिम
पन्द्रह दिनमे किछु छुट्टी नेने रही, आ किछु दिनक छुट्टीओ रहैक. तें, हमर बिदाईक सब तैयारी प्रायः हमर अनुपस्थितिएमे भेलैक. आ हमर छुट्टीएक अवधिमे विभागाध्यक्ष डाक्टर
श्रीकान्त, डाक्टर राजलक्ष्मी आ डाक्टर स्वाति हमर डेरा आबि कय 27 मार्च, शनि दिनक
दुपहरियाक भोजनक नोत देलनि. प्रोफ़ेसर राजलक्ष्मी तं पछिला आठ वर्षसँ हमरे यूनिटमें
छलीह, जतय ओ सहायक प्रोफेसरसँ प्रोफेसर
धरिक पद धरि पहुँचलीह. प्रोफेसर स्वाति सेहो एखन हमरे यूनिटमें छलीह. हमरा
लोकनिकें ई सौजन्य नीक लागल. मुदा, ई सौजन्यक आरम्भ छल. नोतक दिन, शनि, अस्पतालमें
छुट्टी रहैक. हम अपने भोजमे जयबाक तैयारीमे
रही. किन्तु, राजलक्ष्मी आ स्वाति स्वयं आबि हमरा आ हमर पत्नीकें होटल धरि लए गेलीह. ओतय विभागाध्यक्षक संग डिपार्टमेंटक
सम्पूर्ण छात्र, स्टाफ, नेत्र-विभागक वार्ड सबहक सिस्टर लोकनि, ऑपरेशन थिएटरक
सिस्टर लोकनि, सब मौजूद रहथि. दिव्य भोजन, हार्दिक सौजन्यक अतिरिक्त विद्यार्थी
लोकनि मनोरंजनक किछु आइटम सब सेहो तैयार केने रहथि. एकटा बंगाली स्नातकोत्तर छात्र,
डाक्टर अनुजीत पाल वायलिन पर रवीन्द्र संगीत बजओलनि. ई अद्भुत अनुभव छल. स्नातकोत्तर
छात्रा लोकनि समवेत स्वरमे हिन्दीक अनेक ह्रदयस्पर्शी गीत गओलनि. पछाति, स्नातकोत्तर वर्गक प्रत्येक वर्षक छात्र-छात्रा
सँ प्रतिनिधि-जकां भिन्न-भिन्न विद्यार्थी लोकनि हमर प्रशस्तिमें संक्षिप्त भाषण सेहो
देलनि ; सबमें हमर जयबाक कारण हुनका लोकनिक दुःख, आ हमर प्रशंसा रहैक. स्टाफ-सिस्टर-क्लर्क
लोकनि ततेक भाव विह्वल भय जाइत गेलीह जे कतेककें किछु कहैत-कहैत कोंढ़ फाटय लगलनि. विदाईक
रूप में विभाग दिससँ हमर आठ वर्षसँ बेसीक लगभग प्रत्येक स्मरणीय गतिविधिक फोटो सबहक
फ्रेम्ड कोलाज भेंट कयल गेल. भेंटमे फोटो सबहक प्रिंटेड कॉपीक एकटा अलबम सेहो छल. डिपार्टमेंटक
टेक्निकल असिस्टेंट कार्तिक हमर एकटा पैघ पोर्ट्रेट भेंट केलनि. ऑपरेशन थिएटरक
नर्स लोकनि स्वामी रामकृष्ण परमहंसक जीवनी आ स्वामी परमहंस योगानंदक आत्मकथाक तमिल
अनुवाद भेंट केर रूपमें देलनि. ओतय सबकें बूझल छलैक जे हम तमिल पढ़ैत छी; विभागाध्यक्ष डाक्टर श्रीकांतक कुर्सीक पाछाँ
तं हमर ‘कुरल मैथिली भावानुवाद’क प्रति
पिछला तीन वर्षसँ तेना रखने छथि जे हुनक कमरामे प्रवेश करिते सबहक दृष्टि ओहि पर
पड़ैत छैक अछि. एकर अतिरिक्त, वार्ड केर
सिस्टर लोकनि हमरा ले अलगसँ उपहार अनने
छलीह. ई अभूतपूर्व छल. एतेक सौजन्यसँ हमरा
लोकनिक अभिभूत हएब उचिते छल. हमरा नहि बूझल छल जे विभागमें सब गोटे हमरा एतेक मानैत छल !
अंतमें हम
संक्षेप भाषणमें सबकें धन्यवाद देलिअनि. हमरा मोन छल महात्मा गाँधी मेडिकल कालेजमें
योगदानक हफ्ता भरिक भीतरे हमरा डेंगू ज्वर भय गेल छल. ओहि वर्ष 2012 मे तमिलनाडुक
केवल मदुरै शहरमें डेंगू सँ करीब दू सौ व्यक्तिक जान गेल रहैक. तखन हमरा विभागमे
लोक नीक-जकाँ जनितो नहि छल. तथापि, वर्त्तमान विभागाध्यक्ष डाक्टर श्रीकान्त, हमराले
सिद्ध चिकित्साक प्रणालीक, डेंगूक हेतु गुणकारी औषधि-‘ नीलबेम्बू कुडिनीर’- नामक (
चिरैताक ) काढ़ाक एक बोतल, अपने मोने हमरा लेल कीनि कय अनने रहथि. हुनक ई गुण हम से
कोना बिसरितियनि. ‘हुनक एहि सौजन्यसँ हमरा
तहिया भान भेल छल जे हम अपन परिवारक बीचे आबि गेलहुँ-ए’. हमर एहि स्मरणक चर्चासँ
डाक्टर श्रीकांतक आँखिमसँ नोर खसय लगलनि, आ ओ आँखि पोछय लागल रहथि, से पछाति हमर
पत्नी कहलनि. हम जखन छात्र लोकनिकें संबोधित करैत ई कहलिऐक जे शिक्षक वस्तुतः कहिओ
मरैत नहि छथि. ओ लोकनि सर्वदा छात्र लोकनिक भीतर वर्तमान रहैत छथि, तं, कतेको
छात्र लोकनिक आँखि नोरा गेलनि, से हम अपनो देखलिऐक.
पछाति, डाक्टर
राजलक्ष्मी आ स्वाति हमरा डेरा धरि पहुँचा गेलीह. सामानक बान्ह-छानक कारण अस्त-व्यस्त घरहुमे
ओ लोकनि हमरा सबहक संगे किछु काल छलीह. वयसें तं ई लोकनि हमर कन्याक वयसक छथि आ हिनका
लोकनिसँ लम्बा अवधिक संग अछि. हमरा आँखिक सोझाँमें शिक्षकक विभिन्न स्तरकें पार
करैत ई लोकनि आब प्रोफेसर छथि. मुदा, हमरा संग हिनका लोकनिक भाव परस्पर आदरक छनि,
आ हम हिनका लोकनिक योग्यता आ अनुभवक सदा आदर करैत छियनि. ई लोकनि छथियो दक्ष आ
कार्य कुशल. हमर दिन-प्रतिदिनक काजकें ई
लोकनि निरंतर बल दैत छलीह. ताहिसँ हम प्रसन्न रहैत छलहुँ आ हम आश्वस्त सेहो रहैत छलहुँ , जे ई लोकनि कोनो
प्रकारक समस्याकें सम्हारि लेतीह. विभागाध्यक्ष संगे हिनका लोकनिक तादात्म दोसर
छलनि. फलतः, ई लोकनि हमरा लग आबि अपन अनेक समस्या कहैत छलीह. आब हमरा गेने तकर कमीक
अनुभव हेतनि, से हमरा प्रतीत होइछ. कहैत गेलीह, ‘ अहाँक गेला उत्तर सेहो हमरा
लोकनि गाहे-बगाहे अहाँकें फोन करबे करब’. हम भविष्यहुमे सम्पर्क-सहयोग आ मार्गदर्शनक
हेतु आश्वस्त केलिअनि. किन्तु, जीवनमे की
स्थायी होइत छैक ! अन्ततः, लोककें माता-पिताक छाया सेहो उठिए जाइछ. सएह गप्प. हमरो
हेतु हिनका लोकनिक साहचर्य एक सुखद अनुभव छल. कोरोना कालमे एवं ओहिसँ पहिनहु ई
लोकनि एतबा खयाल रखैत छलीह जे हमरा पर काजक बेसी भार नहि पड़य. हम सेहो हिनका लोकनिके
प्रोफेशनल स्वतंत्रता, आ प्रचुर अवसर दैत रहलिअनि. अस्तु, हम हिनका लोकनिक
व्यक्तिगत आ प्रोफेशनल दक्षता तरासबामे जतबो किछु योगदान विगत आठ वर्षमे केलिअनि
से जीवन पर्यन्त हिनका लोकनिक संग रहतनि. संगहि, पांडिचेरी जं किछु तमिल सिखल तं
ताहिमें हमर एतुका सहकर्मी लोकनिक योगदान अवश्य छनि. राजलक्ष्मीकें तं कतेक बेर हम
तमिल भाषाक ‘फॉर्मल टीचिंग’ देबा ले सेहो कहियनि . आइ काल्हि तमिल भाषीओ लोकनिक
बीच तमिलमें दक्ष व्यक्ति भेटब सुलभ नहि. राजलक्ष्मी ओहि दृष्टिऍ अपवाद छथि. ताहिसँ
हम निरंतर लाभ उठाओल. श्रीकान्त सेहो यदा-कदा सहायता करैत छलाह. हम अपन रुचिए एतय
रहैत प्रसिद्द तमिल ग्रन्थ ‘कुरल’क भावानुवाद
प्रकाशित कयल सेहो एकटा संयोगे छल; ओना ई पोथी तं पन्द्रह वर्ष धरि हमरा संग कतय-कतय
ने घूमल. ‘कुरल’क भावानुवादक कारण एतय हम ओहुना बहुतो गोटेक श्रद्धाक पात्र भए गेल
रही. हमरा अछैत, हमर आप्त सहकर्मी लोकनिकें
सेहो मिथिला आ मैथिलीक किछु अनुभव भेलनि. एहि स्मरणकें स्थायित्व देबा ले हम डाक्टर
श्रीकांत, राजलक्ष्मी, स्वाति आ एक आओर भूतपूर्व सहकर्मी डाक्टर अशोककें ‘मधुबनी
पेंटिंग’क नामसँ प्रसिद्ध मिथिला चित्रकलाक
एक-एक प्रति उपहार स्वरुप देलिअनि जाहिसँ ओ लोकनि अपन घर सजाबथि, आ मिथिला-मैथिलीक संग
हमरो नहि बिसरथि.
हँ, संयोगसँ पेंटिंगक गप्प भेलैक तं हमरा एम. एस. नेत्र चिकित्साक अंतिम वर्षक हमर छात्रा डाक्टर स्टेफनी सेबेस्टियनकें बिसरब असंभव. ई मृदुभाषी, मेधावी, मलयाली छात्रा जेहने पढ़बामें नीक छथि, तेहने गुणवती; अमेज़न इंडिया पर हिनक अंग्रेजी उपन्यास ‘ Love to Death’ स्वतः आकृष्ट करत. मुदा, गप्प से नहि. ई छात्रा महात्मा गाँधी अस्पतालमे हमर काजक अंतिम दिन फाइनल इयर केर आन छात्र-छात्रा लोकनिक संग हमरा लग अयलीह आ फाइनल इयरक छात्र लोकनिक दिससँ, अपन हाथें कागज पर पेंसिलसँ बनाओल हमर स्केचकें फ्रेम करा हमरा ले उपहारमें देने गेलीह.
नेत्र-चिकित्सक डा.स्टेफनी सेबस्टियनक बनाओल हमर रेखाचित्र |
आब बंगलोर अयना करीब तीन हफ्तासँ बेसी भए गेल. कोरोनाक संकट छोड़ि ककरो चेतनामे एखन आओर किछु नहि अबैत छैक. किन्तु, जं-जं दिन बिततैक हमरा नहि लगैत अछि, पांडिचेरीक प्रवास आ ओतुका, छात्र आ सहकर्मी लोकनि हमरा कहियो बिसरताह. हुनका लोकनिकें हमहूँ कोना बिसरबनि.
हमर नाम डा. स्टेफनी सेबेस्टियनक पत्र |
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