Monday, September 16, 2024

पाठकीय प्रतिक्रिया : प्रियवर

 

पाठकीय प्रतिक्रिया                                             

प्रियवर
(पं. रामकृष्ण झा ‘किसुन’ क पत्राचारक संकलन )

संपादक: केदार कानन एवं रमण कुमार सिंह

प्रकाशक: किसुन संकल्प लोक, सुपौल

मूल्य : ३०० रूपैया

प्रकाशक: किसुन संकल्प लोक, किसुन कुटीर, गुदरी बजार, सुपौल-८५२१३१
 मोबाईल : ७५४२०४३९९१ / ७००४९१७५११

वितरक: मैत्रेयी प्रकाशन नई दिल्ली ११००८४
 
e-mail : maitreyipublication@gmail.com

चिट्ठी-पत्री लिखब लोक कहिया आरंभ केलक तकर ठीक-ठीक अनुमान करब कठिन. मुदा, पचास-साठि वर्ष, पूर्व थोड़बो दूरी पर लोक हथचिट्ठीसँ  वा डाक द्वारा चिट्ठीसँ एक दोसरासँ संपर्क रखैत छल. कालक्रमे चिट्ठी लिखब एकटाक कलाक रूप सेहो लनेने छल. मुदा, देखिते-देखैत पछिला किछु वर्षमे चिट्ठी इतिहास भए गेल. एहिसँ साहित्यक हानि भेलैए. कारण, साहित्यकार लोकनिक बीचक पत्राचारमे कुशल समाचारक अतिरिक्त बहुतो एहन किछु रहैत छलैक, जकर ऐतिहासिक महत्व होइक. खांटी पारिवारिक आ  सामाजिक-साहित्यिक संबंधक सुगन्धिक अतिरिक्त साहित्यकार लोकनिक  पत्राचारमे साहित्यक इतिहासक नेओ, निर्माणक  भव्य स्वरुप तथा अनेक साहित्यकारक जीवनक यथार्थ सेहो रहैत छलैक. ओहिमे नव रचनाक योजना, प्रकाशन, पाठकीय प्रतिक्रिया, साहित्यक राजनीति, जीवनक मर्म, आ एक दोसराक संग व्यक्तिगत संबंधक झलक सेहो रहैक छलैक.
एतय चर्चा विषय थिक
, किसुन संकल्प लोक, सुपौलसँ प्रकाशित टटका पोथी, ‘प्रियवर’. ई पोथी पं. रामकृष्ण झाकिसुनजीक पत्रक संकलन थिक. संकलनक अपन-अपन भूमिकामे केदार कानन एवं रमण कुमार सिंह ‘प्रियवर’क  प्रकाशन आ प्रासंगिकता पर अभिमत स्पष्ट कयने छथि.
 एहि लेखमे ‘प्रियवर’मे संकलित सामग्रीक विशिष्ट विन्दुकें संक्षेपमे पाठकक सोझाँ प्रस्तुत करबाक प्रयास करैत, पत्र-साहित्यक संरक्षण, संकलन, प्रकाशनमे सूचना प्रोद्योगिकी तथा मोबाइल फ़ोन एवं कंप्यूटरक उपयोगक उपादेयता पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत करय चाहैत छी.

प्रियवरतीन भाग, एवं परिशिष्टमे विभक्त अछि. भाग एक, दू एवं तीनमे क्रमशःकिसुन जीक पत्र लेखकक नाम’, ‘लेखक लोकनिक पत्र किसुन जीक नाम’, एवं हिन्दीक पत्र संकलित अछि. तीन खण्डमे विभक्त परिशिष्टमे किसुनजीक लिखल संपादकीय, पुस्तक-परिचय, लेख, कविता एवं यात्रा-संस्मरणक अतिरिक्त मैथिलीएवं हिन्दीक किछु समाचार तथा किसुन जीक निधनक पछातिक शोक-संदेश संकलित अछि. एहि लेखमे परिशिष्टक सार-संक्षेप नहि भेटत.
ई कहब अतिशयोक्ति नहि हएत, हिन्दी-मैथिलीक साहित्यकार बीच किसुन जीक पत्राचारक परिधि बहुत पैघ रहनि. तें ‘प्रियवर’मे  प्रायः बहुसंख्यक प्रतिष्ठित साहित्यकारक अतिरिक्त, हिन्दी-मैथिली अनेक अल्पपरिचित एवं नवोदित साहित्यकारक पत्र भेटत. स्मरण रखबाक थिक, प्रकाशित पत्र किसुनजीक कुल पत्र नहि थिक. तथापि, विषय-वस्तुक महत्व आ साहित्यमे कृतीक स्थान एवं  पत्रमे विश्लेषित वा वर्णित विषयक प्रासंगिकताकें ध्यानमे रखैत, बानगीक रूपमे किछु पत्रक सीमित अंश एतय प्रस्तुत करैत छी, जाहिसँ पोथीक उपादेयता पर प्रकाश देल जा सकय. एतय हम स्पष्ट कए दी जे एहि विधामे हमरा कोनो दक्षता नहि अछि. अस्तु, एहि पुस्तकमे निहित संपदाक अनुमानक हेतुप्रियवरपढ़ब आवश्यक.
एतय प्रस्तुत अछि साहित्यकार लोकनिक नामे किसुन जीक प्रत्रसँ चुनल किछु प्रसंग, उक्ति, आ हुनक जीवनक अनुभूत सत्य.
(‘टापूक निवासी’) किसुन जीक पहिल पत्र अमर नामे जीक थिक. पत्राचारमे हिन्दी वा मैथिलीक प्रयोग हो, किसुनजीक ताहि दुविधाक संग, एहिमे दुनू भाषाक हितक प्रति किसुनजीक चिंताक संकेत सेहो भेटैछ. पत्र सबमे किसुन जीक पेटक रोगक चर्चा सेहो अछि जे १९४७ हि मे आरंभ भेल आ अंततः किसुन जीकें संगहि नेने चल गेलनि. 

आगूक पत्रमें किसुन जी १९४९ हि इसवीसँ विलियम्स स्कूल, सुपौलमे पाक्षिक कविता पाठक आयोजनक सूचना दैत छथिन. संगहि अछि, किसुन जीक कृतिइन्द्रधनुषप्रकाशित हेबाक सूचना. संगहि भेटैत अछि मैथिली पत्र पत्रिकासँ किसुन जीक मोहभंगक संकेत; ओ लिखैत छथि, ‘ मैथिलीक कोनो मासिक वा पाक्षिक कोनो तरहक  पत्रिका पर निष्ठा नहि रहल’. किएक से अनुमानक विषय थिक. २७.३. ५० क ओही पत्रमे किसुनजी इहो लिखैत छथि जेहमरा लोकनिकें (मैथिलीक हेतु )  एक क्रांति करक आवश्यकता अछि’.  ई तहियाक गप थिक जहिया दरभंगासँ साँझ पाँच बजे चलि कए तीन-चारि ठाम ट्रेन बदलि, सोलह घंटाक यात्राक पछाति, दोसर दिन नौ बजे लोक सुपौल पहुँचैत छल!
 १७.७.५८क हुनक पत्रसँ इहो बुझबामे अबैछ जे तहिया (१९५८) इसवीमे जखन लोक साधनहीन छल, तहियो (मित्रहुसँ) लोक किताब कीनि कए पढ़ैत छल!

मुदा
, जीवकांतक नामे किसुन जीक पत्र सोझे मठाधीश लोकनिक प्रति आक्रोशसँ आरंभ होइछ, जाहिमे किसुनजी  ‘पुरानक पिचायल, मूइल, सड़ल लहासकेंधूबनाकए नाम ऊँच कयनिहार, डाक्टरेट लेनिहार दलपतिलोकनिककाटसँ उद्वेलित भए एक कविता लिखबाक चर्चा करैत छथि. मुदा, जीवकांतहिक नामक पत्रमे नव कविताक पूर्ण व्याख्या, स्वीकार, तकर विश्लेषण,आ संस्थापन-मूल्यांकनक गप उठैत अछि. एही पत्रमे ओ वैश्विक समस्याकें कवितामे अनबाक अनिवार्यताक गप सेहो करैत छथि, यद्यपि तहियो ओ (रोगग्रस्त भए)ओछैन धेनहि’  छथि! १९ .१.६७ क किसुनजीक पत्रमे नव कविता पर निबंध संग्रहक रूप-रेखा आ लेखक लोकनिक नाम प्रस्तावित छैक. मुदा, जीवकांतक नाम हिनक अन्य पत्रमे एक ठाम किसुनजीक तेवरसँ हठात् साक्षात्कार होइछ जाहिमेप्रेम न बाड़ी उपजै...’  लिखनिहार कबीरकें गारि पढ़ैत किसुनजी लुच्चाकहि कबीरक उपहास करैत छथिन, आ प्रतिवादमे नव दृष्टिए अपन उक्ति सुनबैत छथिन. तथापि, किसुन जी ओहि कविताकें, प्रकाशित कएव्यर्थक चर्चानहि बढ़बय चाहैत छथि! मुदा, बंचब संभव नहि. कारण, अगिले पत्रमे ओ दुर्गानाथ झा श्रीशक ओहि आलेखक गप करैत छथि, जे पत्र श्रीश  नव कवि सबके गरियबैतलिखि कए पठौने  रहथिन.

मुदा, चिट्ठीक सबहक बीच, अमरजीक चिठ्ठीसँ हुनक उक्तिअसलमे पूछह तँ आब तँ कखनहुँ  वितृष्णा होइत अछि. एहि मैथिली-मैथिलीमे जीवन भरि लागल रहलहुँ, अपन भविष्यक हत्या तँ भेवे कयल, धियोपुताक भविष्यकें चौपट्ट कए देलिऐकसेहो उद्धृत अछि. अंततः ई उक्ति केवल समयसँ पूर्व अमरजीक उत्ताप प्रमाणित भेल.
 एक अन्य पत्र ( २.८.६८) मे दरभंगाबला सबहक द्वारा सहरसा जिलाक उपेक्षाक गप सेहो अभरल. ई सत्य नहि थिक, से के कहत? संगहि, जाहि अंतरंगतासँ जीवकांतक संग किसुनजी  पत्राचार होइत छलनि ताहीमे एक ठाम एहनो सत्य सेहो अभिव्यक्त होइछ जे, ‘ पत्र हीन नग्न गाछ  ‘दू पत्रकें नहि , यात्री जी आ व्यास जी कें ( कृति नहि व्यक्ति कें ) अकादेमी पुरस्कृत कयलक अछि. यैह मैथिली साहित्यक स्थिति-मापन थिक.एकर चर्चा मोहन भरद्वाजक नामें ७.३.७० कलिखल एक अन्य पत्रमे सेहो भेल अछि, जतय मैथिलीक जंगलमेपुरना गलित नखदंत होइतहु मारान्तक सिंहसबहक चर्चा अछि. पछाति ’प्रियवर’मे अन्यत्र संकलित एक पत्रमे मोहन भारद्वाज सेहो एहि विषय पर दुविधाक संकेत व्यक्त कयने छथि.

 मुदा, चिट्ठी सबमे सबसँ मार्मिक लागल, किसुन जीक उक्तिहोइए अर्थ सबसँ बेसी जरूरी थिक, व्यर्थ थिक शब्दक खेती’. किसुन जीक ई शब्द आइओ कतेक प्रासंगिक अछि, से ओएह बुझैत छथि, जे मसिजीवी भए गुजर करबाक अव्यवहारिक मनोरथ पालैत पराजित भए जाइत छथि. कारण, मैथिली मे लेखन बैसाड़ीक अनमना भए सकैछ, जीविकाक साधन नहि.       
              ११.६.७० क दिन कुर्जी अस्पताल पटनासँ कविता-जकाँ लिखल किसुनजीक पत्र, एहि संकलनमे जीवकांतक नामे किसुन जीक अंतिम पत्र थिक, जाहिमे ओ रोग, जीवन, आ मृत्युकें निरपेक्ष भावें देखैत, ओ गीताक एक श्लोक ( हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं ) कें उद्धृत करैत ऑपरेशनक सफलता आ विफलताकें तराजूके दू पलड़ा पर राखि, रोगमुक्ति आ मृत्यु, दुनू परिणामकें समान रूपें लाभकारी-जकाँ प्रस्तुत करैत छथि. ई प्रायः रोगसँ थाकल युवकक विवशता थिक, मृत्युकें वरण करबाक गृहस्थक मनोरथ वा वैराग्य नहि, से १२.६.७० क परिवारजनलोकनिक  (वीसो, सुशील, मन्नू आदिकें ) नामें अस्पतालक वार्डसँ पेटक ऑपरेशनससँ पहिने लिखल हिनक पत्रसँ स्पष्ट होइछ, जाहिमे किसुन जीभगवती सब नीके करतीहक विश्वास व्यक्त करैत छथि.

‘प्रियवर’क  दोसर खण्ड-लेखक लोकनिक पत्र किसुन जीक नाम- सुमन जीक पत्रसँ आरंभ होइछ. एहि सबमे पहिले पत्रमे सुमन जीक उक्ति, ‘मातृभाषा द्वारा शिक्षाक प्रसारमे सांस्कृतिक अभ्युदयक संग आर्थिको लाभक दृष्टि छैकमैथिलीक माध्यमसँ  शिक्षा प्रसारक आर्थिक पक्षक संबंधमे हुनक चिंतनकें फरिच्छ करैछ.
आगू अबैत छथि किरणजी. २०.४. ५६ क, सरिसबसँ किसुन जीक नामे लिखल किरण जीक पत्र, एहि संकलनमे हुनक पहिले पत्र थिक. एहि पत्रमे किरणजी किसुन जीक स्वास्थ्य पर चिंता व्यक्त करैत, ध्यानपूर्वक स्वास्थ्यक रक्षा करबाक सलाह दैत किरण जी कहैत छथिन, ‘अहाँक स्वास्थ्य अपने टा हेतु नहि, मिथिलाओ हेतु अमूल्य अछि. अस्तु, वयसक अंतरक अछैतो, दुनू व्यक्तिक बीच आत्मीय आ परस्पर आदरक संबंध रहनि, से किरण जीक  दोसरो पत्रसँ बूझि पड़ैछ ; किरणजी एक पत्र मैथिली आन्दोलनसँ अपन मोहभंग एवं पीड़ा स्पष्ट करैत मैथिली भाषाक राजनितिक एक दारुण पक्ष उद्घाटित करैत लिखैत छथिन:
 ‘...... मैथिलीक क्षेत्र मे आतंरिक संघर्षमे हमरा क्षति भेल, वैयक्तिक. संघर्ष मे विजय भेटल. सरिसब उजानक भाषाकें स्टैण्डर्ड माननिहार सहरसाकें मैथिलीक केंद्र घोषित कयलक से कि अनेरे ?
 मुदा, जत भगत सुभाष कें मारि नेहरु वर्ग कें स्वर दय भारत मित्र अंगरेज बनल आ नेहरुलोकनि ओकरा मित्र मानि लेल, तेहने नीति ओ सब अपनौलनि. हमरा हत्या अपना मने क कय उदार बनि जाइत गेलाह. आ मैथिलीक सहित्यकार – जनिका निमित्त हमर संघर्ष छल – से सभ हुनक आरती करय लगलाह- एहि बातक चोट हमरा हृदय पर बड़ अछि मुदा तें आस्था नहि छोड़ब. हमर हत्या पर आन साहित्यकार फुलओ, भेल कोन थोड़ ?’

एहि चिट्ठी सबहक बीच किसुन  जी द्वारा मैथिली पुस्तकालयक उद्घाटन, सुधांशुशेखरचौधरीकमिथिलापत्रक प्रकाशनक आरंभ, मिथिला मिहिरक संपादकक रूपें हुनकधर्मयुगसाप्ताहिक हिन्दुस्तानकें ध्यानमे रखैतमिथिला मिहिरकें बिहारक सर्वश्रेष्ठ साप्ताहिक सिद्ध करबाक हेतुसोंगर बनबाक निवेदन सहित १९६० ई. पत्र अछि.

‘प्रियवर’मे किसुनजीक नाम  शिष्य सकेतानन्दक अनेक पत्र संकलित अछि. एहिमे सकेतानन्दक एक पैघ पत्र (२६.११.६४ क )मे मैथिलीमे वर्तनीक विभिन्नता, व्याकरणक अभाव, लेखनक स्तरहीनता, संस्कृतनिष्ठ  भाषाक प्रभाव, आ गुटबाजीक अतिरिक्त साहित्य अकादेमी द्वारा भाषाक रूपमे मैथिलीक स्वीकृतिक अतिरिक्त मैथिलीमे लोकप्रियरुचिक पत्रिकाक प्रकाशनक आवश्यकताकें रेखंकित कयने छथि. ओही पत्रमे प्रभास कुमार चौधरीक लेखनसँ मैथिलीक हित, तथा  मैथिलीमेमहावीर प्रसाद द्विवेदी’- सन व्यक्तिक अभावक चर्चा सेहो अछि. ई सब विषय  साठि बरखक बादहु आइओ प्रासंगिक बूझि पड़ैछ.

एहि संकलनमे धूमकेतुक केवल तीन गोट पत्र छनि. मुदा, विषय एवं निहित संवाद हमरा अत्यंत गंभीर लागल. एहिमे कथाक परिभाषा पर हुनक दृष्टि सर्वथा मौलिक बूझि पड़ल. तीन पैराग्राफक पहिल पत्रमे  धूमकेतु कहैत छथि, ‘श्रेष्ठ कथा वैह थिक जाहिमे घटनाक अंतसमे प्रभावित क्षणिक द्वन्दके पकड़बाक दृष्टि आ ओकर तीब्रताकें भोगबाक सामर्थ्य आ धैर्य व्यक्त भेल होइक. ......हमर खिस्साकें अही पृष्ठभूमि पर आँकल जाय.
 हम स्वयं धूमकेतुकें मैथिलीक अद्वितीय कथाकार मानैत छियनि. हुनक कथाक मूल्यांकन हएब एखन बाँकीए अछि. मुदा, धूमकेतुक चिठ्ठीमे  एकटा एहन आओर गप अछि जाहिसँ मैथिलीक माध्यमे गुजर कयनिहार लोकनि धरि आइओ सर्वथा निरपेक्ष छथि. अपन चिठ्ठीमे धूमकेतु, आम चुनावसँ पहिने एक सार्वजानिक आयोजनमेराधानन्दन झा एवं ललित (नारायण मिश्र ) बाबूक संग प्रमुख मैथिली साहित्यकारक सोझाँ मैथिलीक संवैधानिक मान्यता, सदनमे मैथिलीक हेतु एवं मैथिलीमे बजनिहार राजनेताक चुनाव, तथा उत्तर बिहारमे रेडियो स्टेशनक स्थापनाकें चुनावी मुद्दा बना कांग्रेस पार्टीकें धमकी देबाक, एवं मैथिली एवं उर्दूक मुद्दाक चर्चा कयने छथि.

पत्र सबहक बीच आगाँ एक नाम अबैछ उपेन्द्रक. तहियाक ई युवक किसुनजीक संग समताक आधार पर संवाद करैत छथि.आत्मनेपदकिसुनजी पूर्णतःरिप्रेजेंटनहि करैत छनि’  वाएहि संग्रह (आत्मनेपद)कें केओ खिच्चड़ि सेहो कहि सकैछकिसुनजीकें से धरि कहबाक धृष्टता तं उपेन्द्र करिते छथि, ओ हुनका  प्रकाशनक लेल पठाओल अपन कथाकेंपुश-अपनहि करबाक हेतु निवेदन सेहो करैत छथिन. मुदा, ओहूसँ बेबाक अछि उपेन्द्रक १७.९.६९ क चिट्ठी जाहिमे रेडिओ प्रसारण पर किसुन जीक कविता सुनि आओर मुखर भए उठल छथि. लगैत अछि, मैथिली साहित्यमेस्तुतिक परंपराक विपरीत, ई कवि आलोचनाकें निन्दा नहि बूझि निर्भीकतासँ अपन पक्ष रखबाक अभ्यस्त रहथि. पछाति उपेन्द्र पुरान पीढ़ीक मैथिलीक कविकेंभोजखौकाकहैत ‘सड़ि मरि जयबाक’ कामना करैत छथि, आ मैथिलीमे रचनाक सम्यक मूल्यांकनक अभाव एवं ‘(मिथिला) मिहिर’सँ नहि पटबाक कारण लेखनसँ सन्यास लेबाक निर्णयक सूचना सेहो किसुन जीकें दैत छथिन. रोचक थिक, यात्री-नागार्जुन अपन पत्रमे किसुन जीकआत्मनेपदकेंविलक्षण एवं स्फूर्तिमयक संज्ञा दैत छथिन.
 उपेन्द्रहिक जोड़ीदार गंगानाथ गंगेश अपन पत्र सबमेसंकल्पपत्रिकामे प्रकाशनक हेतु एक कथा पठबैत पत्रिकाक स्तरीयताक निर्बाहक हेतु अनेक सुझाव दैत, पत्रिकाक सदस्यताक हेतु व्यक्तिक दिससँ सदस्यता शुल्क पठयबाक सूचना सेहो दैत छथिन.  पछाति ओ उपेन्द्रक संग एक कविता संग्रहक रचनाक प्रकाशनक योजनाक सूचना दैत, ओहो मैथिली पत्रिका सबसँ अपन उदासीनताक चर्चा सेहो कहैत छथिन.

एहि पत्र सबमे आओर अनेक साहित्यकार ( रामदेव झा, वीरेंद्र मल्लिक, आर. के. रमण, भद्रनाथ, हितेन्द्र नारायण चौधरी इत्यादि ) अपन पत्रमे भिन्न-भिन्न विषयक - प्रकाशन योजना, रचना पठयबाक सूचना, जिला साहित्यकार सम्मेलनमे सहभागिता, वा सहभागी नहि भए सकबाक खेद, साहित्यिक आयोजनक हेतु हकार/निमंत्रणक - अतिरिक्त अन्य विविध विषयक चर्चा करैत छथि.  एहि सबहक बीच अछि, हंसराज (२.६.६८ क) एक आत्मीय पत्र जाहिमे किसुन जीक रोग पर हुनक दार्शनिक दृष्टि निक्षेप अजगुत लागल.
एक पत्रमे रमानाथ झा अभिनन्दन ग्रंथ समितिक मंत्रीक रूपे दुर्गानाथ झा श्रीशक १९६८ ई, एक पत्रमे  ‘सहरसा ओ तकर परिसरक मैथिली साहित्य सेवापर आलेखक आग्रह सेहो अछि. पछाति ओही पत्रमेजे देबय चाहथितनिकासँ सहयोगक चर्चा सेहो अछि: सर्वविदित अछि, किसुन जी अध्यापनक अतिरिक्त साहित्यिक प्रकाशन, भाषाक प्रचार -प्रसार, साहित्यिक-सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन, एवं पत्रकारिताक माध्यमसँ सबहक सहायता करथि, अनेक स्थानक यात्रा करथि, समारोहमे सहभागी होथि.
            ‘प्रियवर
मे मैथिलीक जुझारू सेनानी बाबू साहेब चौधरीक अनेको पत्र सेहो अछि. स्वतः विषय-वस्तु मैथिलीक हेतु आन्दोलन, भिन्न-भिन्न साहित्यिक आयोजन एवं प्रकाशनसँ संबंधित अछि.
 पत्र सबहक एही बंडलमे आगू भेटल मायानाथ मिश्रक एक पैघ पत्र जे मैथिली साहित्यमे प्रकाशनक व्यवसायक एक एहन  अन्हार पक्षकें उजागर करैछ, जाहि पर तहिया हठें पाठकक दृष्टि नहि पड़ैत छलनि. यद्यपि थिक तं इहो इतिहासे, मुदा,एकपक्षीय बयानकें सत्य मानि बैसब पूर्वाग्रहसँ कम नहि. अस्तु, जे अछि, से अछि. ततबे.

किसुनजीक नाम यात्री-नागार्जुनक पत्रमे अनेक विषयक चर्चा भेटत. एक बेर (१७.६.७० क पत्रमे) ओ मैथिली साहित्यमेप्रखर वामपंथी साहित्यक आवश्यकता पर जोर दैत कहैत छथि, ‘भाषाक समस्या जाधरि भूमिहीन वर्ग-अछोप समाज-शोषित समाजक दैनिंदिन संघर्ष सँ समन्वित नहि हेतइ ताधरि उपरे उपर एहिना दहाइत भसिआइत रहती मैथिली....’ . ई आइओ प्रासंगिक अछि.

पत्रक श्रृंखलामे किसुन जीक नाम जीवकांतक अनेक पैघ-छोट पत्र  संकलित अछि. ई कहब पुनरुक्ति हएत जे जीवकांत पत्राचारमे कीर्तिमान स्थापित कयनिहार एहन साहित्यकार छलाह जे अपन पत्र सबमे अनेक विषय पर विस्तृत विवेचना आ विश्लेषणक अभ्यासी रहथि. अस्तु, जीवकांतक पत्र मैथिली साहित्यमे अनेक अनुसंधानक स्वतंत्र संपदा थिक, जे क्रमशः सोझाँ आओत से आशा करैत छी.

पत्रकारिता इतिहासक प्रथम ड्राफ्ट मानल जाइछ. पत्र सेहो मनुष्य आ समाजक जीवनक इतिहासकफर्स्ट ड्राफ्टथिक. तहिना, साहित्यकार लोकनिक बीचक पत्राचार जं साहित्यक इतिहास हेतु एक प्रकारक कच्चा माल थिक, अनुसंधेताक हेतु पूँजी थिक, तं ‘प्रियवर’-सन संकलित सामग्री थारीमे सांठल दिव्य भोजन. कठिन परिश्रमसँ, किसुनजी पत्राचारक सम्पूर्ण उपलब्ध संपदाक एक ठाम संकलन मैथिली साहित्यक हेतु संपादकद्वय, केदार कानन एवं रमण कुमार सिंह,क बड़का उपहार थिक.एहि हेतु ई लोकनि साधुवादक पात्र थिकाह. एहि संकलनमे प्रायः हिन्दी-मैथिलीक, किसुन जीक कोनो समकालीन प्रायः छूटल  नहि छथि. मुदा, ई लोकनि ‘प्रियवर’ क शीर्षकक संग, पं. रामकृष्ण झा ‘किसुन’ क पत्राचारक संकलन- सदृश कोनो उपनाम किएक नहि देलखिन से आश्चर्य. उपनाम देने पुस्तकालयमे सूचीकरण (indexing) में सुविधा होइतैक, आ पाठककें पोथी ताकब सुलभ होइतैक.
 स्मरणीय थिक, पत्रक संकलन-संपादन आ प्रकाशन श्रमसाध्य कार्य थिक. एहि हेतु श्रम, अर्थ एवं समय चाही. मुदा, सूचना प्रोद्योगिकीक उपकरणक प्रयोगसँ, केवल मोबाइल फोनसँ पत्र एवं अन्य पाण्डुलिपिकें स्कैन कए पत्रकें कम्प्यूटरमे संकलित कय नष्ट हेबासँ  बचाओल जा सकैछ, सामग्री दूर-दूर धरि पाठककें उपलब्ध कराओल जा सकैछ. ई सामग्रीक संरक्षणक हेतु सुलभ विधि थिक. अनेको व्यक्तिक एहन प्रयास एकक बोझकें दसक लाठी बना, साहित्यक संपदाकें परवर्ती पीढ़ीक हेतु सुरक्षित कयल जा सकैछ. केवल एतबा प्रयाससँ साहित्यक सामग्रीकें सुरक्षित राखल जा सकैछ.

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