Monday, September 9, 2024

तरल ह्रदय आ ऊसर डीह

 

तरल ह्रदय आ ऊसर डीह

मालिक कका, कनियाँ काकी (काकी-मौसी), आ हरितालिका पूजा

डीह पर भांगक जंगल. अंगनामे घास. बाड़ीमे पहिनहि-जकाँ आम, जामुनक गाछ. जहिना तहिया रहनि. केवल ओ धात्रीक गाछ, जकर छाहरिमे कतेक बेर नोत खयने हएब, नदारद. ई सब देखि अकस्मात् मालिक कका, कनियाँ काकी (काकी मौसी) परिवार आँखिक आगाँ जीवंत भए उठल.
मालिक कका-बालगोविंद बाबू- आ कनियाँ काकी रहथि, निःसंतान. मुदा, सर-समाजक कोनो धिया-पुताकें अपन संतानसँ कम कहाँ बुझथिन ओलोकनि. सुनैत छी, हुनक मस्तमौला, शाहखर्ची स्वभावक कारण हुनक केओ बालसखा एकबेर जे हुनका ‘मालिक’ कहब शुरू केलखिन, से ओ सब दिन आ सबहक लेल ‘मालिक’ भए रहि गेलाह: मालिक बौआ, मालिक काका, आ पछाति, मालिक बाबा.

 मुदा, आइ आधा शताब्दीसँ बेसी अवधिक पछाति, एक भिन्न कारणसँ मालिक कका आ कनियाँ काकीक स्मरण भए आयल अछि.  भरि गाममे ‘हरिताली’क उपास बहुतो महिलालोकनि करथि, मुदा, हरितालिका पूजा केवल मालिक कका आ कनियाँ काकीए अंगनामे होइनि. जाहि आँगनमे कहियो कोनो मुंडन-उपनयन-विवाहक अवसर नहि अयलैक, ओ आँगन हरितालिका पूजाक अवसर पर हठात् जीवंत भए उठैत छल. अंगना-बहरी/ दरबज्जा धियापुता, माउगि-पुरुखसँ भरि जाइत छल. लोक अबैत छल श्रद्धा-पूर्वक पूजा-अर्चना करैत छल आ एहि वार्षिक उत्सवमे सहभागी होइत छल.
कदमे छोट, मध्यम बान्ह आ पिण्डश्याम रंगक, मालिक कका स्वभावसँ मखौलिया रहथि. बात-बातमे ककरो हँसा देब हुनका हेतु सुलभ रहनि. दियाद-बाद आ सर-समाजक नेना-भुटकाकें चेष्टा आ स्वभावक अनुकूल, भतखोखारि, गुड़गुड़ी लाल सदृश तेहन नामकरण कए देथिन, जे चेतन आ वयस्क तं हँसबे करथि, अपन नाम सुनि धियापुताकें अपनहुँ हँसी लागि जाइक.
मालिक ककाकें पहिने तं काज जोकर मरौसी भूमि रहनि. मुदा, जीवन-यापनक पद्धतिक विपरीत, उद्यमक अभावसँ निःसंतान रहितो, क्रमशः निर्भूमि भए गेल रहथि. सुनैत छी, अपन जवानीमे हुनका ओतय, किरासन तेलक इजोतमे राति क’ नाचक आयोजन होइत छल. कमलाक मारल निर्धन गाँवमे जहिया मनोरंजनक साधनक नितांत अभाव रहैक, रामलीला-कीर्तन-पूजा-नाच- भाओ- भूतक झाड़ब- गुदरियाक सारंगी वादने जनसामान्यक हेतु मनोरंजनक साधन रहैक.  स्वभाव आ सहमिलू-सहृदय रहनि. जाति-पाँतिक आरि-धूरक बहुत परबाहि नहि करथिन. तें, मालिक कका सबहक बीच लोकप्रिय रहथि.  

गहुँआ रंग, मध्यम बान्ह, नमतीमे औसतसँ बेसी, स्वभावें मृदु आ सहृदय, मालिक ककाक पत्नी, कनियाँ काकी/ काकी-मौसी अद्भुत शिल्पकार रहथि. मुरुत गढ़ब, मड़बा-कोबर- देहरि आ देवाल पर चित्रकलाक, जकरा आइ-काल्हि मिथिला वा मधुबनी चित्रकला कहैत छैक, अद्भुत दक्षता रहनि. अवाम गाममे हुनकासँ नीक सामा-चकेबा प्रायः केओ नहि बनबथि. तें, हुनकर बनाओल सामा-चकेबा देखबाक हेतु जेर बान्हि सखी-बहिनपालोकनि हुनकर अंगना जाथि. एहि सबसँ ऊपर प्रति वर्ष हरितालिका पूजाक हेतु  हुनका हाथें बनाओल बसहा बड़द पर सवार शिव-पार्वतीक मूर्तिक निर्माण कनियाँ काकीक शिल्पकलाक उत्कृष्टताक नमूना होइत छल. तहिया गाममे ककरो लग कैमरा तं रहैक नहि, तखन केवल स्मरण ओकर प्रमाण थिक. 

 हरितालिका ( गौआँक शब्दे ‘हरिताली’) पूजाक हेतु तैयारी पूजाक दिनसँ बहुत पहिने आरंभ होइत रहैक. मुदा, ओ शिव-पार्वतीक मूर्तिक निर्माण पूजासँ कतेक दिन पहिने आरंभ करथिन, से स्मरण नहि अछि. पहिने सब किछुक आरंभ नीके दिन ताकि होइत छलैक. मुदा, एतबा अवश्य जे बसहा बड़द आ शिव-पार्वतीक माटिक मूर्तिक निर्माण एकटा जटिल प्रक्रिया रहैक. साफ़ चिक्कनि माटिक चुनाव. बाँसक कमचीक आ खढ़क बनाओल आकृतिक ऊपर परत-दर-परत माटिक लेप. सब किछुकें सुखायब, चुनेटब, रंगब आ  सजावट, सेहो बरखा-बुन्नीक मासमे अवश्य श्रमसाध्य छल हेतैक.

साठि वर्षक धक्कामे आबि, पारिवारिक परंपराकें तोड़ैत मालिक काका अपनहि घरमे छोट-मोट दोकान सेहो खोललनि. मुदा, दोकान कतेक दिन चलओलनि से कहब मुश्किल.

अवामक सामाजिक काजमे मालिक ककाक एकटा आओर योगदान छनि; 1978 वर्ष मे मालिक कका एवं नुनू भाई (अभयनाथ झा प्रसिद्ध भरत जी) क अगुआईमे अवाम गाममे पहिल बेर (शारदीय ) दुर्गापूजाक आयोजन भेल रहैक, जे आब बहुत पैघ स्तर पर मनाओल जाइछ। अवाम गामक सामाजिक-सांस्कृतिक  क्षेत्रमे हिनकालोकनिक ई कालजयी योगदान थिक।

मालिक ककाकें अंतिम बेर हम दरभंगा मेडिकल कालेजक मेडिकल वार्डमें देखने रहियनि. तहिया हम पढ़िते रही. मालिक काका कोनो जटिल बीमारीक चिकित्सा लेल अस्पतालमें भर्ती रहथि. ओ हमरा देखिते विह्वल भए गेल रहथि. सहजहि. हमर जन्म हुनका आँखिक सोझाँ भेल छल. आयब-जायब- खायब पीयबक व्यवहार छल. सहृदय तं छलाहे. हमर छात्रजीवनमे आन गौआँ जकाँ हमरा उत्साहितो करथि. से  ओहि दिन हम डाक्टर-जकाँ हुनका बेडक लग, पौथानमे ठाढ़ रही.  अस्तु, विपत्तिमे अपन लोककें देखि जे हुबा हेबाक चाही, से भेल हेतनि, से असंभव नहि. तथापि, मालिक कका कहिया मरि गेलाह, स्मरण नहि अछि. कनियाँ काकीकें मालिक ककाक मृत्युक पछाति अनेक बेर देखबाक अवसर भेल. एकाकी जीवनक कारण विक्षिप्तता आ ओही कारण अनेक रोग. हुनको मृत्यु कहिया भेलनि, स्मरण नहि अछि. मुदा, कनियाँ काकी आ बालगोविंद (झा) बाबू / मालिक कका हमरा कोना बिसरताह. हुनक हास परिहास जे सुनने छथि, तनिका ओ कोना बिसरथिन.   
हँ, एतबा अवश्य, हुनकालोकनिक मृत्युक पछाति अवाममे आन कोनो परिवार मे ओहन हरितालिका व्रत-पूजाक आयोजन आन केओ केलनि से हमरा सुनल नहि अछि.
नोट: हरितालिका व्रत-पूजाक महात्म्यक विस्तृत वर्णन हमरा निम्नलिखित ब्लॉग पर भेटल.[1]

सन्दर्भ :                                                                                                                           
1. https://sanskritbhasi.blogspot.com/2018/09/blog-post_12.html#google_vignette
सारांश:
 पं. जगदानन्द झाक उपरोक्त ब्लॉग पर स्कन्द पुराणमे वर्णित हरितालिका पूजाक इतिहास, महात्म्य एवं          विधान भेटत.[1] सारांश ई जे नारद मुनिक प्रस्ताव पर पार्वतीक पिता हिमवान, पार्वतीक सहमतिक           विना हुनक विवाह विष्णु भगवानसँ करयबाक सहमति दए देलखिन ई पार्वतीक इच्छाक विरुद्ध छल. सखी   लोकनिक सुझाव आ सहयोगें पार्वती सखी लोकनिक संग एक सुदूर पर्वतीय गुफामे जा शिवक        पूजा-अर्चनाक      हेतु चलि गेलीह. माए-बापकें किछु बूझल नहि भेलनि.अर्थात् पार्वती सखी (ताली) द्वारा हरण कए गेल     रहथि:    (हरिता तालिभिः या सा हरितालिका अर्थात् पार्वती ). ओही दिन भाद्र मासक तृतीयाक दिन       हस्त नक्षत्रमे बालुक शिवलिंगक स्थापना कए शिवक पूजा-अर्चना कयलनि (आ शिवकें पतिक           रूपमे प्राप्त             केलनि). पछाति, स्वयं शिव ओहि पूजाक महत्व पार्वतीकें कहलखिन. इएह हरितालिका पूजाक आदि थिक.


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