Wednesday, January 24, 2018

मूनलैंड, लामयुरु विहार आ मुलबेख चम्बा



मूनलैंड, लामयुरु विहार आ मुलबेख चम्बा

दर्शनीय स्थान की थिक ? एहन स्थान जे मनोरम, आश्चर्यनक, ऐतिहासिक , धार्मिक, वा अहाँक रुचिक अनुकूल हो . जं एहन स्थान सब में रूचि अछि तं लेह-कारगिल-श्रीनगर मार्गपर तकर कमी नहिं. मोन हयत हमरा लोकनि लेह सं खालसी-बटालिक होइत कारगिल गेल रही. ज्ञातव्य थिक ओ बाट लेह सं कारगिल जयबाक सोझ बाट नहिं थिक; ओहि बाटें कारगिल जयबाक बाध्यता तखने हयत जखन सोझ बाटक फोतु-ला पास बर्फवारीक कारण बन्न हेतैक.
चलू आइ सोझ बाटें खालसी सं कारगिल-द्रास चली. एहि बाटपर दर्शनीय अनेको दर्शनीय स्थल अछि जकर वर्णन यथासमय हयत. फिलहाल सिन्धुकें पार करैत सिन्धुक दछिनबरिया पार चली. खालसी में सिन्धुपर मोटोरैबुल पुल छैक. यद्यपि एतय सं बटालिकक बाटमें जतय पुल नहिं छैक नागरिक लोकनि पुरान ढर्राक लोहाक एकहिटा रस्सीपर आधारित, बस एक मनुक्खक बैसबा योग्य कुर्सी-सन झूला पर बैसि, झूलाकें स्वयं झिकैत चाकर, गहिंड आ उधियाइत सिन्धुके जखन-तखन पार करैत रहथि. किन्तु, सामरिक महत्वक एहि इलाकामें आब नित्तत जहां-तहां सड़क आ पुलकेर जाल बिछाओल जा रहल अछि. चीन-पाकिस्तानक बढ़इत सामरिक सहयोग आ देशक दूर दराज आ अद्यावधि विस्मृत एहि इलाका सबमें एकर आवश्यकताओ छैक.
खालसीमें सिन्धु पार करिते सड़क उपर दिस चढ़य लगैछ. जाहि देशमें साधन आ टेक्नोलॉजी  छैक ओतय पहाड़में टनलिंगकेर द्वारा बहुतो ठाम पहाड़ी अवरोध पार भ जाइछ. इएह कारण थिक जे स्विट्ज़रलैंड-सन पहाड़ी देशमें लगभग प्रत्येक गांओ आ शहर तं छोडू, समतल भूमिसं सुंग-फ्राउ-सन हिमाच्छादित पर्वत शिखर धरि ट्रेन सोझे चढ़इत अछि. किन्तु, पहिलुका युगमें एहि दुर्गम पहाड़ी इलाकामें सड़क आ पुल बनायब सुलभ नहिं रहैक. साधन आ प्रोद्योगिकीक अभावमें सड़ककें नीचासं उपर चढ़बामें कतेक बेर दाहिना आ बामाक मोड़ लेबय पड़ैत रहैक. अनेक मोड़क सडकक  इएह लहरिया खण्ड, जलेबीमोड़क नाम सं प्रसिद्द अछि. खालसी-लामयुरु सड़क खण्डपर जलेबीमोड़ पर्यटक लोकनिक हेतु एकटा आकर्षण थिक. 
जलेबी मोड़
थोड़बे दूरमें, अनेक मोड़ बला सड़कक एहने खण्ड दार्जीलिंग इलाकामें बतसिया-लूपक नाम सं प्रसिद्द अछि. मोन हयत, सत्तरिक दशकमें लोकप्रिय अभिनेता राजेश खन्नाके ओहि इलाकामें खुला जीप ड्राइव करैत, 'मेरे सपनों की रानी कब आओगी तुम' गबैत अभिनेत्री शर्मीला ठाकुरक पछोड़ धेने देखने हएबनि. पहाड़क एके पक्खाक अनेक ऊंचाईपर कतेको सड़कक श्रृखला जोशीमठ-बद्रीनाथ इलाकामें सेहो देखबैक. किन्तु, जलेबीमोड़क सड़क दू भागक पहाड़के जोड़ैत अछि. किन्तु, ई मोड़ दोसर भागक पहाड़क ऊँचाईपर चढ़लेपर नीक जकां देखबा में आओत. हमरा सुनल, अछि खालसी-लामायुरू सड़क खण्ड केर जलेबी मोड़क ई अलाइनमेंट सोनम नोर्बू नामक लद्दाखी इंजिनियरक डिजाईन कयल छनि. ओहि युग में जहिया लद्दाख़-सन सुदूर इलाकामें उच्च शिक्षाक अत्यंत अभाव रहैक, सोनम नोर्बू शेफील्ड (यू.के) में ट्रेनिंग प्राप्त कयने रहथि. हमरा इहो सुनल अछि, 1947-48 ई. में जम्मू-कश्मीरपर पाकिस्तानी आक्रमणक समयमें इंजिनियर सोनम नोर्बू स्वयं लद्दाखी युवक लोकनि एकटा पैघ दलकें नेतृत्व करैत पैदल लेह आयल छलाह आ एहि दलक सहायतासं ओ स्वयं लेह एयर फील्डकें पाकिस्तानी लश्करक आक्रमणसं सुरक्षित रखने छलाह. दुःखक विषय थिक, सोनम नोर्बूक नाम पर विकिपीडिया बौक अछि. अस्तु, हम एहि विषयक ऐतिहासिक प्रमाणक खोजमें लागल छी. एखन लेहकेर  सोनम नोर्बू मेमोरियल हॉस्पीटलक स्थापना एही सोनम नोर्बू योगदानक प्रति आभार थिक.
जलेबीमोड़ पार केलापर सड़कपर सं एकाएक ऊँचाईक अनुभव होयत. सर्वविदित अछि, पहाड़पर जेना-जेना ऊँचाई बढ़इत छैक, वायुमंडलक  दवाब आ तापमान घटय लगैछ, आ वायुक गति बढ़य लगैछ. एहि सब सं वायुक स्पर्श भले शीतल किन्तु, अत्यंत स्फूर्तिदायक लागत. तथापि उपयुक्त गर्म कपड़ा आ टोपी पहिरब जुनि बिसरी. एहि सब इलाकामें आकाशक गाढ़ नील वर्ण मन कें स्वतः मोहि लेत. एकर अतिरिक्त पहाड़ी इलाकाक एकांत नीरवता मननकेर हेतु अत्यंत उपयुक्त मानल गेलैये. तें, सदाय सं  साधक लोकनि जंगल-पहाड़ आ अन्हार गुफामें मनन चिंतनक हेतु शरण लैत छलाह आ अपन साधनाक बालें कालजयी वांग्मयक श्रृजन करैत छलाह.
मूनलैंड: एहि सड़क पर थोडबे दूर आगां परिदृश्यमें नाटकीय परिवर्तन देखबा में आओत. मूनलैंड नामक एहि पहाड़ी फलकक स्वरुप एतुका बलुआह आ पथराह माटि सं भिन्न चिक्कन माटि जकां छैक. आसपासक भूमिसं स्वरुपमें पूर्णतः भिन्न हयबाक कारणें प्रायः एकरा मूनलैंड कहल जाइछ. मूनलैंड देखला सं तेना लागत जेना पहाड़क ऊपर परक कोनो विशाल झीलक आधा भाग अचानक भूमिसात भ, ढहइत माटि आ बहैत पानिक संग नीचाक नदीक पानिक संग बहैत, विलीन भ गेल होइक, आ पानिसं खाली, झीलक बंचल आधा भाग, कछेर सं ल कय तलहटी धरि सुखायल पोखरि, झील आ जलाशय जकां निराश पड़ल हो. स्थानीय बौद्ध लोकनिक आस्था छनि, बौद्ध गुरु नारोपा अपन योगक बलें एहि झीलकें ध्वस्त कय एहि उपत्यकामें अपन अनुयायी लोकनिक हेतु आवासक भूमिक निर्माण केने छलाह. पछाति एहि स्थानपर लामयुरु गांओक गोम्पाक स्थापना भेल. 
मूनलैंड

लामयुरु बौद्ध विहार जनश्रुतिक अनुसारें लामयुरु गोम्पा लद्दाख़में 'बॉन' सम्प्रदायक सर्वप्रथम गोम्पा थिक जे पछाति बौद्ध लोकनिक नियंत्रण में आबि गेल. लद्दाख़क अनेक सब सं पुरान गोम्पा सब म सं एक लामयुरु गोम्पाक नियंत्रण तिब्बती बौद्ध लोकनिक द्र-गुं-पा सम्प्रदायक हाथमें अछि. एहि विहारक पांच टा म सं सब सं पुरान मन्दिर रिन्ज़ीन जांग्पो (प्रसिद्द अनुवादक लोत्सावा) क द्वारा स्थापित मानल जाइछ. ढहइत माटि आ बालुक पहाड़ीपर, गांओक ऊपर बसल ई विहार, आकारमें लद्दाख़क विशालतम विहार सब म सं एक अछि जाहि में एखनहु करीब डेढ़ सौ बौद्ध भिक्षु निवास करैत छथि.
लामयुरु बौद्ध विहार

लामयुरु गांओ सं पश्चिम सड़क पुनः ऊपर चढ़य लगैछ. ऊपर चढ़इत सड़क करीब पंद्रह कि.मी.क भीतर करीब साढ़े तेरह हज़ार फुट ऊँच फोतु-ला  पासक ऊँचाई धरि पहुंचि जाइछ. फोतु-ला पास (दर्रा) लेह कारगिल मार्गपर सब सं ऊँच स्थान थिक, जे जाड़म मासमें कतेक बेर बर्फ़बारी सं बन्न तं भ जाइछ, किन्तु, एहि ठाम नियमिकी रूपें सालो भरि बर्फ़ नहिं भेटत. फोतु-ला  पास पर टेलीविज़न रिले सेंटर आ आर्मी चेकपोस्ट आ सर्वत्र दृश्य पूजास्थल देखबैक. आब एतय सं सड़क नीचा मुंहें होइछ किन्तु, एहि बाटक अगिला मुख्य पड़ाव मुलबेख सं पूर्व एकटा आओर दर्रा नामिक-ला पार करय पड़त.
मुलबेख आ मैत्रेय बुद्ध लामयुरु सं करीब 67 कि. मी.पश्चिम आ कारगिल सं 45 कि. मी. पूब मुल्बेख गांओ मुलबेख गोम्पा आ मुलबेख मैत्रेय बुद्ध (मुलबेख चम्बा) क कारण प्रसिद्द अछि. एहि पुरान व्यापारिक मार्गक कातहिं एकटा छोट पहाड़ीक सड़क दिसुक फलक पर तरासल ठाढ़ मैत्रेय बुद्ध एहि पहाड़ीक उपरक गोम्पासं बेसी दृश्य परिचित अछि. नौ मीटर खड़ा मैत्रेय बुद्धक ई मूर्ति यात्री आ पर्यटककें दूरहिं सं आकृष्ट करैछ. ई मूर्ति कहिया बनल छल से ठीक-ठीक कहब कठिन. 




किछु विशेषज्ञ जं एहि मूर्ति कें मात्र छौ साढ़े छौ  सौ साल पुरान मानैत छथि, तं किछु इतिहासकार एकरा कनिष्ककालीन मानैत छथि. एहि मूर्तिक कतबहिं में खारोस्ती भाषामें लिखल एकटा आदेशक शिला-लेख छैक, जाहि में नागरिक लोकनिकें एकटा तत्कालीन पूजा विधि, जाहि में जीवित छागरक ह्रदय कें सोझे नोचि देवताकें अर्पित कयल जाइत छलनि, कें निषेध कयल गेल छैक. रोचक थिक, एहि शिला लेखक कतबहि में दोसर शिलालेखमें मनुक्खक मनक आदि कालक दुविधा व्यक्त कयल गेल छैक, ' जं देवता कें प्रिय उत्सर्ग नहिं भेटतनि तं देवता की कहताह !' जे किछु. मूक देवताक अव्यक्त अभिष्टक नाम पर आदि कालसं मनुक्ख धर्म-अधर्म करैत आयल अछि. वएह धर्म-अधर्म जखन सत्ताक सोपान भ जाइछ तं मनुक्ख अपन कृत्यक समर्थन में अनेक मतक प्रतिपादन करैछ. ज्ञातव्य थिक, मैत्रेय बुद्ध, सुपरिचित शाक्यमुनि बुद्धक विपरीत आगामी एहन युगमें जखन लोक धर्मकें पूर्णतः बिसरि चुकल हयत, सदेह अवतरित हेताह . ई प्रायः बौद्ध लोकनिक ओही प्रकारक मान्यता थिक जेना गीतामें कृष्ण कहैत छथि जे, 'जखन-जखन धर्मक ग्लानि आ अधर्मकेर अभ्युत्थान होइछ हम अवतार लैत छी'. सर्वविदित अछि, बुद्ध कृष्ण-जकां अपनाकें ने ईश्वर मानैत छथि आ ने बुद्ध अपना द किछु कहने छथि. अस्तु, ई सब मान्यता परवर्ती बौद्ध लोकनि थिकनि. 
मुलबेख सं आगू सैनिक ट्रांजिट कैंप में दुपहरियाक भोजन भेलै आ आगू बढ़लहु. किछु दूर आगू चिकतान इलाका अबैत छैक. पहिने एतहु एकटा छोट-छीन राज्य छलै. किन्तु, हमरा चिकतान एकटा दोसर प्रसंगक कारण मन पड़ैत अछि. एकर सम्बन्ध हमर व्यवसायिक जीवन सं अछि ; हम मूलतः मिलिटरी आइ (आँखिक) सर्जन छी. मिलिटरीमें सम्पूर्ण लद्दाख़में आँखिक जांचक सुविधा केवल लेह मिलिटरी अस्पतालमें, आ से एखन हमरे जिम्मा अछि.  अस्तु, सैनिक लोकनि आ हुनक परिवारजन हमरा लग अबैत छथि, आ हम सम्पूर्ण लद्दाख़में घूमि-घूमि आँखिक रोगक चिकित्सा करैत छी. एखन भारत सरकारक सौजन्य सं 'ऑपरेशन सद्भावना' क अन्तर्गत सेना सम्पूर्ण लद्दाख़क नागरिक लोकनिक हेतु सेहो मुफ्त चिकित्साक व्यवस्था केने अछि. मिलिटरी अस्पतालमें सुविधा नीक होइत छैक, से सब के बूझल छैक. अस्तु, लोक दूर-दूर सं विभिन्न रोगक चिकित्साले लेह मिलिटरी अस्पताल आ आन-आन  निकटवर्ती छोट-छोट सैनिक मेडिकल प्रतिष्ठान धरि अबैत अछि.एही क्रम में मन पड़ैत अछि, एक बेर एकटा युवक, 80-85 वर्ष वृद्ध, दुनू आँखिसं आन्हर, अपन पिताके पीठ पर लदने हमरा लग आयल रहथि. कहलनि, हम चिकतान सं आयल छी, बहूत दूर छैक. बुढ़ा शरीर सं स्वस्थ रहथि. हुनक स्मरण नीक छलनि. हुनका जखन बुझबामें अयलनि जे हमरा तिब्बत-लद्दाख़ विषयक वृत्तान्त में रूचि अछि तं ओ हमरा अपन पैदल तिब्बत यात्राक अनेक वृत्तान्त सुनौलनि. 



हमर मान्यता अछि, मनुक्ख केओ हो ओकरा संग गप्पमें नहिं जानि कखन कोन सूक्ति, कखन कोन ज्ञान, कखन कोन उक्ति अहां कें चमत्कृत क जायत. संगहिं हमर अनुभव अछि, डाक्टर सं गप्प कयलासं रोगीकें अपन अनजान भय पर नियंत्रण करबामें सफलता भेटैत छैक, आ डाक्टरक चिकित्सा सम्बन्धी काज अनेक अर्थ में सुलभ भ जाइछ. एखनुक युगमें वैज्ञानिक प्रगतिक कारण हाइ-टेक जांच पड़ताल डाक्टरकें रोगक सम्बन्धमें एतेक सूचना द दैत छैक जे डाक्टर ले रोगक इतिहास बुझब आ अपना हाथें रोगिक शरीरक जांच गौण भेल जा रहल अछि. एहि सं डाक्टरक-रोगिक बीचक विश्वास आ रोगिक संतुष्टिमें निरंतर ह्रास भ रहल छैक. ई नीक नहिं थिक. ई कनेक विषयांतर भेल. अस्तु, भर्तीक दोसरे दिन हम एके बैसाड़में बुढ़ाक दुनू आँखिक मोतियाविंदु निकालि  दुनू आँखिमें  (इंट्राऑकुलर) लेंस लगा देलिअनि. फलतः, जे बुढ़ा सुदूर चिकतान सं बेटाक पीठपर लदल लेह आयल छलाह से दोसर दिन अपने पयर पर चलैत हमरा कोठली में प्रवेश कयलनि आ हुनकर मुंहक मुस्की सं हमर कंसल्टेशन-रूम जेना चमकि गेल छल; डाक्टरले  संतुष्ट रोगी सं बेसी पैघ ने कोनो सफलता छैक आ  ने हर्ष. व्यवसायिक दृष्टिऐं अर्थ सेहो ओही सं अबैत छैक.  एहि ठाम एतबा कहब उचित होयत जे जं आँखिक बाहरी भाग पारदर्शी, आँखिक पर्दा आ स्नायु दुरुश्त हो तं मोतियाविंदुक कारण पूर्णतः आन्हर आँखिमें ऑपरेशनसं पहिनहिं-जकां पुनः सामान्य दृष्टि आनब सामान्य थिकैक. तथापि, एहि बुढ़ाक केस में एक टा गप्प नवीन भेलनि . सामान्यतया एक बैसाड़में दुनू आँखिक मोतियाविंदुक ऑपरेशन नहिं कयल जाइछ. किन्तु, ओहि में ने कोनो हर्ज नहिं, जं अपन दक्षतापर विश्वास हो आ ऑपरेशन थिएटरक व्यवस्था दोषमुक्त हो. एके बैसाड़में दुनू आँखिक ऑपरेशन करबाक दोसर अवसर हमरा ले पुनः लेहेमें आयल जखन एकटा अत्यंत गरीब, मध्य वयासाहु, मन सं विक्षिप्त महिलाकें हुनकर पुत्र हमरा लग अनने रहनि. लेहक दोसर नेत्र चिकित्सक हुनकर ऑपरेशन करब अस्वीकार क देने रहथिन, कारण ऑपरेशनक अवधिमें मन सं विक्षिप्त रोगीक व्यवहार आ मनोदशा केहन हेतैक के कहत ! तें केवल आँखिकें सुन्न क कय ऑपरेशन रोगी आ डाक्टर दुनू ले घातक भ सकैछ. तें छोट नेना, भयभीत वयस्क  आ मन सं विक्षिप्त रोगीक हेतु मोतियाविंदुक औपरेशन बेेेेहोश क कय कयल जाइछ. बेहोसीक अपन अवगुणक अतिरिक्त एहि सं चिकित्साक खर्च बढ़ि जाइछ. हमरा लोकनिक अस्पतालमे सब किछु मुफ्त. अतः अपन युवक सहयोगी निश्चेतक डाक्टरक सहायता सं पूर्णतया बेहोस कय हम एके बैसाड़में एहि महिलाक दुनू आँखिमें लेंस लगाओल. अनुमान अछि जं आन कोनो रोग नहिं भेल होइनि तं एक युगक पछातिओ ओ महिला एखनहु जीविते हेतीह. ज्ञातव्य थिक विशेषतः वार्धक्य (बुढ़ापा) में आन्हर आँखि अकाल मृत्यु एक महत्वपूर्ण कारण थिक. गप्पे-गप्पमें  चिकतान पाछू छुटल आ थोडबे कालमें कारगिल पहुंचब. कारगिलक गप्प अगिला बेर.             
 


     
 
 
  

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